कितना मान्य है कण भौतिकी का मानक निदर्श - -स्टेंडर्ड मॉडल ,एक पुनर्मंथन

कितना मान्य है कण भौतिकी का मानक निदर्श -स्टेंडर्ड मॉडल ,एक पुनर्मंथन  भले कई सीमाओं से संयुक्त है स्टेंडर्ड मोडल लेकिन इसकी  संभावनाएं भ...

कितना मान्य है कण भौतिकी का मानक निदर्श -स्टेंडर्ड मॉडल ,एक पुनर्मंथन 

भले कई सीमाओं से संयुक्त है स्टेंडर्ड मोडल लेकिन इसकी  संभावनाएं भी कमतर नहीं रही हैं यही इस निदर्श की खूबसूरती है ,आज इसकी मार्फ़त नास्तिक भी एक ऐसे कण की बात करने लगे हैं जिसे द्रव्य के शेष कणों  का भगवान रिज़कदाता (उन्हें द्रव्य  राशि मुहैया करवाने )वाला बुनियादी कण कहा जाने लगा है। इतनी लोकप्रियता आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद सिद्धांत (स्पेशल थ्योरी आफ रिलेटिविटी )के बाद शायद  ही किसी अन्य वैज्ञानिक अवधारणा को मिली हो।इसके बहाने लोगों ने भारतीय विज्ञानी सत्येंद्र नाथ बासु को भी याद किया जिनके विज्ञान को योगदान को स्मरणीय बनाये रखने के लिए द्रव्य की इस बहुचर्चित कनिका गॉड पार्टिकिल को बोसॉन नाम दिया गया।

देखें सेतु :https://www.biography.com/people/satyendra-nath-bose-20965455

स्टेंडर्ड मॉडल सृष्टि के बुनियादी इंग्रेडिएंट्स (आवयविक मूलभूत )कणों की न सिर्फ इत्तला देता है यह भी खबर देता है ,कैसे यह नार्मल मैटर इनको थामे हुए है.जिन कणों में आगे संरचनाएं मौजूद हैं वह अपने आवयविक हिस्सों को कैसे बांधे हुए हैं मसलन प्रोटोन अपने क्वार्कों को कैसे थामे  हुए है वगैरहा वगैरहा।

दो मूलभूत (बुनियादी )विचार इस निदर्श (स्टेंडर्ड मॉडल )को टेका लगाए हुए हैं :

(१) सभी सामान्य पदार्थ (नार्मल मैटर )द्रव्य की ऐसी कणिकाओं का ही बना हुआ है जो स्वयं और किन्हीं अन्य कणिकाओं से मिलके नहीं बनी हैं खुद ही एलिमेंटरी हैं ।यानी कुछ बुनियादी कणिकाएं (फंडामेंटल पार्टिकिल्स )ही इस पदार्थ  के मूल में हैं  .

(२)ये कणिकाएं परस्पर एक दूसरे के साथ क्रिया -अनुक्रिया करने के लिए इंटरेक्ट करने के लिए -कुछ फील्ड पार्टिकिल्स का आपस में विनिमय करतीं हैं। ये फील्ड पार्टिकिल्स प्रकृति में कार्यरत बलों से संबद्ध होते हैं। बुनियादी कणों  का यही "फील्ड -पार्टिकिल्स " दूसरा वर्ग या परिवार कहा गया है स्टेंडर्ड मॉडल में।

 इन्हें ही बोसॉन परिवार कहा गया है।

बाकी बुनियादी कणों  को फर्मीयोंस की संज्ञा दी गई है।

The 'Standard Model' describes what matter is made of  and how it holds together .It rests on two basic ideas :

(1)all matter is made up of particles ,and

(2 )these particles, interact with each other by exchanging other particles associated with fundamental forces .

बुनियादी कणों के  इन दो परिवारों में नर्तन या घूर्णन -परिमाण (amount of rotation or quantity or spin )घूर्णन आवेग (angular momentum )का  फर्क होता है।

फर्मीयोंस के लिए इस नर्तन -का मान (परिमाण या मेग्नीट्यड )अर्द्ध -पूर्णांक (1/2 integer )होता है

बोसानों (फील्ड पार्टिकिल्स )के लिए शून्य या पूर्णांक (० ,१ ,.... )

फर्मीयोंस के आगे दो परिवार हैं :

(१) इलेक्ट्रॉन जैसे हलके कण या 'लेप्टोन  -परिवार ' ,इनके छः सदस्य हैं। इलेक्ट्रॉन एक प्रख्यात लेपटोन है और

(२)'क्वार्क -परिवार ' ,इनकी सदस्य संख्या भी छ: ही है।

'अप' (u  )और 'डाउन '(d )नामी और नामचीन क्वार्क आज तक किसी को मुक्त अवस्था में  नहीं मिलें हैं प्रोटोन और न्यूट्रॉनों के अंदर ही एक बद्ध - अवस्था बाउंड स्टेट में इनके होने के कयास(अनुमान ) स्टेंडर्ड मॉडल लगाता है।  फिलवक्त तो प्रोटोन -न्यूट्रॉन द्वय को ही यौगिक -कण समझा जाता है ,अपेक्षाकृत भारी क्वार्क भी कल इसी नियति को प्राप्त न होवें ,कौन जानता है ?

कुल मिलाकर आज तो ये बारह फर्मीयोन ही पदार्थ की बुनियादी ईंटें कही गई हैं। इनमें से प्रत्येक का नर्तन -मान (spin value )१/२ कही गई है।

ये बारह कण ही परस्पर क्रिया करने के लिए प्राकृत -बलों (इलेक्ट्रोमैग्निटिज़म ,स्ट्रांग न्यूकियर ,वीक -न्युक्लीअर और ग्रेविटी बल ) का सहारा लेते हैं।इनमें से प्रत्येक प्राकृत बल का एक या एक से ज्यादा भी वाहक बल (फील्ड आफ फ़ोर्स पार्टिकिल )हो सकता है।

नाभिकीय बल का वाहक ग्लुआन('g ') बनता है यही प्रोटोन और न्यूट्रॉन में क्वार्कों को बांधे रख़ता है।

फील्ड पार्टिकिल 'फोटोन' का संबंध इलेक्ट्रोमेग्नेटिक फ़ोर्स से रहता है।

कमज़ोर नाभिकीय बल (वीक -इंटरेक्शन )अपनी भूमिका रेडिओएक्टिव-डीके में प्रकट करता है।

चंद तत्वों (उत्तर -युरेनियम -तत्वों )के  नाभिकों  से स्वत :कुछ कण ऊर्जा स्वरूप बाहर आते रहते हैं ,टाइनी एटमी -स्वत : स्फूर्त विस्फोट हैं ये विखंडन या डीके। ,लेकिन कौन सा नाभिक कब टूटेगा इसका कोई निश्चय नहीं मौत की तरह।

Z और W बोसॉन बनते हैं इस वीक न्युक्लीअर फ़ोर्स के वाहक। सबकी स्पिन वेल्यू ('१') रहती है।

The main point is :there are  grains of matter ,the fermions ,with spin 1/2 ,and force carriers (the field particles ), or the bosons with spin 1.

एक गणितीय प्रारूप ही है 'स्टेंडर्ड -निदर्श' इस सबका जो हम ऊपर कह बता आये हैं । ज़हां पेचीला समीकरणों के द्वारा यह तथ्य अभिव्यक्त हुए हैं। गत पांच दशकों में की गईं सभी प्रागुक्तियाँ (प्रिडिक्शन्स )इन्हीं समीकरणों के आधार पर किये  गए हैं। नापने योग्य भौतिक राशियों  के मान इस अनुमान के अनुरूप ही पाए गए हैं। त्रुटियाँ मान्य परास (रेंज )की ही रहीं हैं ,इतना तो ऊपर नीचे होना मान्य रहा है। जैसे अवांछित विकिरण एक्सपोज़र  के मामलों में हम कह देते है-मैक्सिमम परमिजिबिल लिमिट। यही खूबसूरती कही जा सकती है इस निदर्श की।

फिर अमान्य या दोषपूर्ण क्या रहा है इस निदर्श से चस्पां ?

क्यों कहा गया है स्टेंडर्ड मॉडल ने  जितनी गुथ्थियाँ पैदा की हैं उतनी सुलझाई नहीं हैं ?

उच्च ऊर्जा पर प्राप्त नतीजों में इस निदर्श का शिराजा बिखरने लगता है -कण -को गति प्रदान करने वाले लार्ज - हेड्रॉन जैसे कोलाइडर्स या कण -त्वरक अभी तक उतनी गति हासिल न करवा सके हैं प्रोटोन जैसे कणों को जिन्हें आमने सामने से गोल -गोल घुमाकर परस्पर इनकी टक्करें करवाई गईं हैं भविष्य में इससे भी ज्यादा हेड-आन कॉलिजन्स ,ज़ोरदार टक्करें करवाई जाएंगी इन फर्मीयानों की  . 

समझ लीजिये वह नज़ारा वैसा ही होगा जैसा बिग -बैंग के फ़ौरन बाद होने की कल्पना की गई है। 

जैसे न्यूटन के नियम प्रकाश की गति के निकट की गतियों के लिए ज़वाब दे जाते हैं काम नहीं करते वहां आइंस्टाइन गणित काम करेगा ऐसा ही कुछ यहां है। कुछ अभिनव समीकरण चाहिए हो सकते हैं। एक नया गणित काम करेगा यहां ?

बिग -बैंग का बखान करते हुए कहा जाता है -इसके इवेंट होराईजन क्षितिज की लपेट में आने के बाद प्रकाश भी इसकी कोख से जो गरमा -गर्म सूप की बनी होती है बाहर नहीं  आ सकता है। यहां आकर भौतिकी के सभी ज्ञात नियम दम तोड़ जाते हैं। पदार्थ इतना दब -खप जाता है ,अपना अस्तित्व अपना आधार कार्ड ही खो देता है। 

It is called a mathematical singularity where all the known laws of physics collapses .matter  is crushed beyond recognition .

कौन इलेक्ट्रॉन है कौन प्रोटोन कौन जाने ?

'बिग -बेन्ग' की तो आप बात ही छोड़िये।बस इतना सोचिये तब इस निदर्श का क्या होगा (याद आया शोले का वह डायलॉग -तेरा क्या होगा कालिया ,हुज़ूर !हुज़ूर! मैंने आपका नमक खाया है ...अच्छा तो अब ले , ये गोली खा ).  

देखिये क्या -क्या कमियां रह जाती हैं इस निदर्श में ?

(१ )इसके कलेवर में गुरुत्व का समावेश नहीं किया गया है। गुरुत्व इतना कमज़ोर बल क्यों है  विद्युतचुंबकीय और नाभिकीय बलों के बरक़्स ?मसलन एक छोटे पिंड पर पृथ्वी के गुरुत्व बल के सारे असर को  फ्रिज से जुड़ा एक चुंबक बे - असर कर डालता है । 
एक फूले हुए गुब्बारे को अपनी कमीज  से रगड़ के आप दीवार से चिपका दीजिये ,पृथ्वी पर नहीं गिरेगा वह कुछ देर तक। गुब्बारा इलेक्ट्रिफाइड हो गया है ज़नाब कमीज से रगड़ खाके इसके और कमीज  के बीच इलेक्ट्रॉन का विनिमय हो गया है। ग्रेविटी को इसने बे -असर कर दिया है। निदर्श के पास इस सवाल का कोई ज़वाब नहीं है। 

(२)आखिर कुदरत के इन चार बलों में ही परस्पर इतना भेदभाव परिमाण का ,शक्ति का अंतर क्यों है ?

(३)कथित बुनियादी कणों में इलेक्ट्रॉन से हलके और क्वार्क से  भारी कण क्यों है ?

(४)क्वार्कों में आपस में भी भेदभाव है। 'टॉप' क्वार्क 'अप' क्वार्क से ७५,००० गुना भारी है। एक ही परिवार में कुछ अम्बानी और कुछ दरिद्र नारायण ,बिलो -पावर्टी लाइन द्रव्य राशि से महरूम। 
(५ )हिग्स बोसॉन भी इससे बचे नहीं हैं। 
पदानुक्रम ,हाय -रारकी  (वर्गीकरण द्रव्य राशि का )यहां भी है। कोई किसी कम्पनी  का सीईओ है तो कोई दफ्तरी (चपरासी ). 
The hierarchy propblem is also related to the Higgs  boson mass .The equations of the Standard Model establish relations between the fundamental particles .For example ,in the equations ,the Higgs boson has a basic mass to which theorists add a correction for each particle that interact with it .

The heavier the particle ,the larger the correction .The top quark being the heaviest particle ,it adds such a large correction to the theoretical Higgs boson mass that theorists wonder how the measured Higgs boson mass be as small as it was found.

इस भेदभाव से अ -प्रत्याशित अंतर से  ऐसा प्रतीत होता है यहां कुछ और अभिनव और भी मनोरम कण अभी मिल सकते हैं। ऐसे अभि-कल्पित कण हिग्स मॉस में पैदा अतिरिक्त मॉस के प्रभाव को जो करेक्शन के रूप में  टॉप क्वार्क की वजह से आया था निष्प्रभावी  कर सकते हैं।
सुपरसिमिट्री ऐसे ही अभिनव कणों के अभी मिलने की प्रागुक्ति करती है।

(६ )अलावा इसके स्टेंडर्ड मॉडल केवल गोचर पदार्थ (विज़िबल मैटर )की बात करता है चाँद तारा ,निहारिकाओं में मौजूद सामन्य किस्म के पदार्थ की ही बात करता है। वह डार्क -मैटर कहाँ है जो सामान्य पदार्थ से परिमाण में पांच गुना ज्यादा है।

(७) डार्क एनर्जी और एंटी -मैटर कहाँ है ?

(८ )यह जगत नार्मल पदार्थ का ही बना है तो क्यों बना है। क्या एक समानांतर जगत है जो प्रति -पदार्थ का बना है। दोनों को कौन अलग रखे हुए है ?

विशेष : (1)कण -भौतिकी में सुपरसिमिट्री ( अति -सम-रूपता ) एक किस्म की काल -अंतरिक्ष सम -रूपता है  प्रस्तावित सममिति है ,
संक्षिप्त रूप SUSYजिसका संबंध उल्लेखित द्रव्य के दोनों परिवारों बोसॉन-परिवार तथा फर्मीयोंन -परिवार से जोड़ा गया है।
In particle physics, supersymmetry (SUSY) is a proposed type of spacetime symmetry that relates two basic classes of elementary particles: bosons, which have an integer-valued spin, and fermions, which have a half-integer spin.

(2 )'Superstring theory' is a shorthand for supersymmetric string theory because unlike bosonic string theory, it is the version of string theory that accounts for both fermions and bosons and incorporates supersymmetry to model gravity.

सुपर -स्ट्रिंग एक परिकल्पित छोटी सी एकायामी  डोर को कहा  जाता है स्ट्रिंग सिद्धांत में। इसे  द्रव्य के बुनियादी कण या कणों  का पर्याय कहा समझा जा सकता है। 



सन्दर्भ सामिग्री :

http://www.quantumdiaries.org/2014/03/14/the-standard-model-a-beautiful-but-flawed-theory/









COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-10-2017) को "ब्लॉग की खातिर" (चर्चा अंक 2746) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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Science Bloggers' Association: कितना मान्य है कण भौतिकी का मानक निदर्श - -स्टेंडर्ड मॉडल ,एक पुनर्मंथन
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