अंटार्कटिका के बारे में जानने की उत्सुकता देख कर अच्छा लगा ..यह जगह ही ऐसी है जिस को अच्छे तरह से जानने की इच्छा स्वभाविक है ...इसके बा...

बहुत पहले भूगोलवेत्ता और दार्शनिक यह कल्पना करते थे कि यदि धरती के उत्तरी छोर पर एक विशाल गड्ढा यानी की महासागर है और दक्षिण छोर पर एक उभार मतलब कि एक महाद्वीप होना चाहिए ....उस वक्त नक्शा बनाने वाले यहाँ महाद्वीप बना कर उस में एक घूमती हुई ड्रेगन बना दिया करते थे .....यहाँ किसी के आगे न जाने का कारण था बेहद ठंडा पानी जो अंटार्कटिका को गहरी खाई की तरह से घेरे हुए था ... शीत काल में यह सगार एक हजार से डेढ़ हजार किलोमीटर तक जम जाता तब कोई जहाज इसको पार नहीं कर पाता था .... गर्मी के महीने में यहाँ दो महीने तक लगातार सूरज चमकता जिस से वह बर्फ पूरी तरह से न पिघल कर मोटे मोटे टुकडो में टूट जाती जिसे पैकआइस कहते हैं और जिसकी चपेट में आ कर बड़े से बड़े जहाज तक टूट जाते क्यों कि यह हिमखंड पैकआइस हवा के चलने पर यूँ ही आवारा सागर में इधर उधर चलते रहते और लकड़ी के जहाज तब तक इसका मुकाबला कर पाते सो इस तरह दक्षिणी महाद्वीप दुनिया में नजर आने से बचा रहा ...
फ़िर धीरे धीरे जहाज के आकार प्रकार में परिवर्तन हुआ और वह हलके पैकआइस के झटको को सहने लगे .इसी काल में धरती के उत्तरी इलाको में सील और व्हेल मछलियों के शिकार से उनकी संख्या में भारी कमी आने लगी ..इसी खोज में अनेक मछुआरे यहाँ तक पहुचने की कोशिश में लग गए और यहाँ तो सील मछलियों के साथ साथ कई अनोखे शिकार थे .. इन्हीं मछुआरों के द्वारा दुनिया को नए नए द्वीपों की खबर मिल रही थी इसको सुन कर कई देशों के शासकों के कान खड़े हो गए और नई जमीन का सपना देखने लगे ... इस में रूस, इंग्लॅण्ड, अमरीका जैसे देश शमिल थे .. अब इनके जहाजों ने यहाँ के चक्कर लगाने शुरू कर दिए |
उस वक्त रुसी जार ने दो बड़े जहाजो में दो सौ नाविकों का एक बड़ा जत्था यहाँ खोज के लिए भेजा सन 1820 /27 जनवरी को पहली बार उन्होंने करीब ५० किलोमीटर से सिर्फ़ बर्फ ही बर्फ देखी यहाँ उन्हें कोई जमीन जैसी चीज नहीं दिखी न कोई जानवर जिस तरह की कल्पना उन्होंने की थी ..सो वह वहां से सब अनदेखा कर के वापस आ गए पर यही थी पहली खोज जब किसी आदमी ने इस जमीन का यही बर्फीला हिस्सा देखा था |
फ़िर सन 1840 में तीन विशाल राष्टीय अभियान अंटार्कटिका की खोज में जुट गए ..इनके नाम थे फ्रांस के दी उर्विल. अमरीका के विल्कीज और इंग्लॅण्ड के रास .. दुनिया को इस के बारे में वास्तविक जानकरी देने का श्रेय इन्हीं तीनों को जाता है ...इन्होने यहाँ दर्जनों स्थानों की जमीन तो खोजी ही पर साथ ही दो तीन बार लगातार परिक्रमा कर के यह सिद्ध कर दिया कि यह जमीन सब एक दूसरे से जुड़ी है और यह कल्पना सच हुई कि इस सिरे पर एक महाद्वीप होना चाहिए पर बाद में यहाँ पर आते बर्फीले तूफानों ने यहाँ में रूचि कम कर दी ,न रहने की जगह समझ कर इस में लोगों का जानना कम हो गया|
सन 1868 में एक क्रांतिकारी आविष्कार हुआ हार्पून का जो कहीं भी दूर दिखती व्हेल मछली पर दाग दिया जाता था और आसानी से उसका शिकार कर लेते थे इस से पहले भाला फेंक कर इन्हे मारा जाता जो खतरनाक तरीका था इस ने अब यहाँ पर जाने के लिए और मछुआरों को उत्साहित किया सन 1873 में एक ब्रिटिश जहाज चैलेंजर भाप से चलने वाला पहली बार अंटार्कटिका सागर में आज्ञा इस के पहले जाने वाले सारे जहाज पाल और मस्तूल के होते थे | व्हेल मछली के शिकार में अधिक से अधिक और आगे जाने की प्रतियोगिता शुरू हुई ....
इसी सिलसिले में नार्वे का एक मछुआरा जहाज भी गया ... इसी जहाज में बोशरग्रेविक नाम का शोकिया प्रवासी भी था ...वह सिर्फ़ शौक से तरह तरह के वैज्ञानिक नमूने एकत्र करता था, इसका जहाज एक दिन ऐसी जगह पहुँचा जहाँ किनारे पर जाना आसान लगा वहां से एक छोटी सी नाव पानी में उतारी गई और वह दल अंटार्कटिका की जमीन पर 24 जनवरी 1895 में पहली बार पहुँचा.
यह पहला कदम था इंसान का वहां की धरती पर उस के बाद वहां से लौट कर बोशरग्रेविक वहां फ़िर से जाने के अभियान पर जुट गया और उसके साथ दस लोगों के एक छोटे से दल ने फरवरी 1899 से 1900 तक यानी पूरे एक साल तक रह कर वहां की धरती पर वहां के वातावरण को खूब अच्छे से महसूस किया ..सारे भयानक तूफ़ान झेले, मानव सभ्यता से एक साल कट कर रहे महीनों लम्बी पोलर नाईट देखी मौसम की जानकरी एकत्र की, पत्थरों और काई के नमूने लिए, पेंगुइन और वहां रहने वाले अन्य पक्षियों का पशुओं का व्यवहार देखा, और साल में आने वाली कठिनाइयों का लेखा जोखा लिया ...यह एक खोजी शोकिया की और से विज्ञान को एक बहुत बड़ा योगदान था |

अब इस से यह तो साबित हो गया कि यहाँ साल भर रहा जा सकता है पर जब एक खोज पूरी हो जाए तो फ़िर इंसान और आगे बढ़ने की सोचने लगता है ..अब यह जमीन तो मिल गई पर इसके केन्द्र बिन्दु को तलाशने का साहस भी लोगों में पैदा हो गया कि कौन होगा जो सबसे पहले यहाँ पहुंचेगा और इतिहास के इस पन्ने पर अपना नाम करेगा |
इस में पहला प्रयास था इंग्लॅण्ड के राबर्ट स्काट (Robert Scott) का जिन्होंने 1902 में एक अभियान किया पर पूरी तरह से मौसम की जानकरी न होने कारण, कुत्तो को संभाल न पाने की निपुणता और विटामिन सी कमी से बहुत ही बुरी हालत में आ कर यह दल वापस आ गया तब यह धुव्र यहाँ से 835 किलो मीटर दूर रह गया था पर यहाँ से वापस आ कर इनका होंसला टूटा नहीं और 1910 में अपने पच्चीस सदस्यों की टीम के साथ 19 साइबेरियन घोडे, 3 मोटर ट्रेक्टर स्लेज और 33 कुतो को ले कर यह वहां दल गया और दूसरा नाम था नार्वे के एमंडसन का जो उत्तरी ध्रुव पर पहला इंसान बनने से चुक गया था और अब यहाँ पर सबसे पहले पहुँच कर अपना नाम इतिहास में दर्ज़ करवाना करना चाहता था। वह बहुत अनुभवी अन्वेषक था यह कई महीनो तक बर्फ सर्दी हस्की कुत्तो और एस्किमो के साथ ठण्ड का अनुभव ले चुका था | उसने यह तैयारी सारी तैयारी गुपचुप तैयारी की, ताकि वह यहाँ पहुचंने वाला पहले इंसान बने |
इस तरह से अब एक रेस शुरू हुई जिस में दोनों दलों की जिंदगी दांव पर लगी हुई थी ....यह अभियान कोई आसान नही था उस वक्त यह माना जाता था कि साइबेरियन हस्की कुत्ते और स्लेज गाडियां यहाँ जाने का सबसे अच्छा साधन है | स्कर्वी रोग से बचने के उपाय किए गए खूब सारे विटामिन सी से युक्त भोजन को साथ लिया गया जब दक्षिण ध्रुव सिर्फ़ 500 किलीमीटर रह गया तो इस के साथ जाने वाले बहुत से साथी बहुत ही अधिक घायल अवस्था में आ चुके थे और इनका भोजन भी कम था तब एमंडसन ने एक कठोर फैसला लिया और उन कुत्तो को भोजन के रूप में बदल दिया ताकि दल का बोझ भी घटे और कई दिन का भोजन भी मिल जाए ....
एमंडसन में सिर्फ़ यही जनून था कि उसने स्काट से पहले वहां पहुँचाना है और अपना नाम इतिहास के पन्नो में दर्ज़ करवाना है इसको जीत कर | इस तरह वह बर्फीले तूफ़ान और कई तरह की तकलीफों को झेल कर यहाँ तक पंहुचा और 14 दिसम्बर 1911 की दोपहर 03बजे ठीक दक्षिणी ध्रुव पर नार्वे का अपना झंडा गाडा ,साथ में पहुँचने वाले पाँच सदस्यों के नाम लिखे और स्काट के लिए एक पत्र अपने पहुचंने का छोडा..... सिर्फ़ 34 दिन के अन्तर से स्काट यह दौड़ हार गया|
वापसी पर सही दिशा व सही भोजन न मिलने पर उसकी डायरी के मिले आखरी पन्नों से पता चला कि" खाने की कुछ नही है हमारे पास अब तो लिखा भी नही जा रहा है ....तूफ़ान थमने का नाम नहीं ले रहा है, अंत अब अधिक दूर नही ....भगवान् के लिए हमारे परिवार का ध्यान रखना ॥एक साल बाद एक ने खोजी दल को स्काट और उसके अन्य साथियों के शव बर्फ में जमे हुए मिले और साथ ही वह डायरी भी जिस में अन्तिम दिनों का संघर्ष लिखा है ..आज भी दक्षिण ध्रुव पर अमरीका के वैज्ञानिक केन्द्र का नाम एमंड सन -स्काट स्टेशन (Amundsen Scott Station) रखा गया है |
इस तरह इंसान की खोज उसको कहाँ से कहाँ ले जाती है ..यह थी इसको खोजे जाने की कहानी .. जिसको मैंने अपने लफ्जों में ब्यान किया ..मैं इस तरह के विषय पर पहली बार लिख रही हूँ .. कोई कमी हो तो जरुर बताये .पूरी किताब अक्षर दर अक्षर लिखने में बहुत अधिक समय लगेगा, इसलिए मेरी कोशिश यही रहेगी कि इसकी रोचकता को बनाए रखते हुए आपको इस जगह के रोमांच से परिचित करवाया जाए वही रोमांच जो पढने वक्त मैंने महसूस किया और आप सब का साथ यूँ ही मिलता रहेगा ..आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद यूँ होंसला बढाने के लिए अगली कड़ी में जानेंगे कि यह अनोखा धुव्र कैसा है? कहाँ पर है और क्या क्या खासियत हैं यहाँ की.....
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रंजना [रंजू ] भाटिया
रंजना जी, आप ने पहली बार में बहुत अच्छा लिखा है। बधाई! बहुत उपयोगी जानकारी है।
ReplyDeleteरंजना जी!!
ReplyDeleteअंटार्कटिका के बारे में इतनी विशद जानकारी देने का शुक्रिया !!
बहुत ही रोमांचक सफर है यह...पढ़ कर मेरी भी कंपकंपी छूट गई!स्कॉट और उसके साथियों ने जो हिम्मत दिखायी[बलिदान दिया]और जानकारी दी वह आगे की खोजों में सहयोगी रही होगी.
ReplyDeleteरंजना जी लेख बिल्कुल दुरुस्त है..बहुत अच्छा है.
अनोखे ध्रुव के बारे में जानने की उत्सुकता है.अगली कड़ी का इंतज़ार है
रंजू जी, जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही हैं। और रोमांच लिए हुए यह पोस्ट। आगे के रोमांच का इंतजार है।
ReplyDeleteअंटार्कटिका एक ऐसी रहस्यमय दुनिया है, जो हर प्रकृतिप्रेमी को अपनी ओर खींचती है। पर वहॉं जाने का सौभाग्य तो बिरलों को ही मिलता है। जब भी डिस्कवरी पर उससे जुडा कोई प्रोग्राम आता है, मेरा रिमोट न चाहते हुए भी वहीं रूक जाता है।
ReplyDeleteउस रहस्यमयी एवं अलौकिक दुनिया से परिचय कराने का शुक्रिया। अगली कडियों का भी बेसब्री से इंतजार रहेगा।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति. अन्टार्क्टिका के बारे में बहुत कम मालूम था. आभार.
ReplyDeleteरोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारी। आभार।
ReplyDeleteयह कड़ी भी बहुत अच्छी लिखी गयी है अन्तिम कड़ी में अन्टार्कटिका की मौजूदा हालत पर भी लिखें !
ReplyDeleteAn informative & interesting article.
ReplyDeleteBahut achha laga padha ke....
ReplyDeleteaage ki kari ka intzaar rahega.
बहुत रुचिकर लेख
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ
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