बिजली के बारे में एक मजेदार चुटकुला है। जब अमेरिका में बिजली जाती है, तो लोग गिनीज बुक देखते हैं कि पिछली बार कौन से सन में गई थी। जब...

बिजली के बारे में एक मजेदार चुटकुला है। जब अमेरिका में बिजली जाती है, तो लोग गिनीज बुक देखते हैं कि पिछली बार कौन से सन में गई थी। जब अफगानिस्तान में बिजली आती है, तो लोग मिठाई बांटते हैं। और जब भारत में बिजली जाती है, तो लोग छत पर चढ़ कर देखते हैं। अगर पड़ोसी के घर आ रही है, तो टेन्शन बढ़ जाता है। ऐसा कैसा हुआ? लेकिन अगर उसकी भी गई, तब खुश होकर कहते हैं- चिंता की कोई बात नहीं, जब आना होगा, आएगी।
ये तो था चुटकुला। अब आते हैं बिजली पर वापस। बिजली आज हमारे जीवन में कितना महत्व रखती है, यह किसी से छुपा नहीं है। पर क्या आपको पता है कि बिजली बनती कैसे है? क्या कहा, नहीं पता? कोई बात नहीं। आपको इस विषय पर जानकारी दे रही हैं श्रीमती पूनम मिश्रा जी। हमें आशा ही नहीं, बल्कि विश्वास है कि आपको यह रोचक जानकारीपरक लेख अवश्य पसंद आएगा।
हम सब लोग हर दिन देखते हैं की एक स्विच दबाने से कैसे तुरंत बिजली जल जाती है. लेकिन यह बिजली कैसे बनती, कैसे हमारे घरों तक पहुँचती है, क्या यह जानने की इच्छा कभी हुई है?
बिजली बनाने के पीछे जो नियम है वह है चुम्बक के चलने पर बिजली का पैदा होना. विज्ञान का यह सिद्धांत है की जब एक चुम्बक को तार से लपेट दिया जाये और चुम्बक घूमने लगे तो तार में बिजली बहने लगती है या फिर एक तार को किसी छड़ पर लपेट दिया जाए और इसे किसी चुम्बक के बीच में रख कर घुमाया जाए तो इन तारों में बिजली बहने लगेगी. १८३१ में माइकिल फेरेड़े नाम के ब्रिटिश वैज्ञानिक ने यह सिद्धांत खोजा था. उन्होंने ने पाया की एक ताम्बे के तार को किसी चुम्बक के पास घुमाएं तो उस तार में बिजली बहने लगती है. यानी अगर एक चुम्बक और एक तार (जो बिजली चालक हैं) के बीच अगर गति है तब तार मं बिजली पैदा होती है. तार को आप एक बल्ब से जोड़ दें तब यह बल्ब जलने लगेगा. यह आप अपने घर में भी आसानी से कर सकते हैं. घूमते हुए तार की यांत्रिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा में बदल जाती है. इसी नियम को आधार मानकर चलते हैं सारे बिजली घर।
अब हमें यह पता चल गया की बिजली पैदा कैसे हो सकती है. तो हम क्रम से सोचें की कैसे हम एक बिजली घर बना सकते हैं और हमें किन चीज़ों की ज़रुरत पड़ेगी. ऊपर वाले नियम को लागू करने के लिए हमें चाहिए बहुत बड़े चुम्बक, तार जिनमें बिजली का प्रवाह हो सकता है, एक बहुत बड़ी छड़ जिस पर यह तार बंधा हो, और इस को छड़ को चलाने के लिए कोई मशीन. घर में आपने किसी बर्तन को कभी ढंककर पानी उबाला है. अगर किया है तो देखा होगा की पानी उबलने पर ढक्कन या तो गिर जाता है या उछलने लगता है. इसके मतलब भाप में ऊर्जा है जो हम किसी मशीन को चलाने में इस्तेमाल कर सकते हैं. याद है जेम्स वाट ने स्टीम इन्जन की शुरुआत इसी तरह उबलते पानी को देखकर की थी. तो फिर क्यों न हम इसी भाप से अपनी छड़ को चलायें? पर भाप बनाने के लिए चाहिए बहुत सा पानी और बहुत सा इंधन. हम अपना बिजली घर ऐसी जगह लगायेंगे जहां पानी का स्रोत हो जैसे कोई बहुत बड़ी झील या नदी. इंधन के लिए हम इस्तेमाल कर सकते हैं कोयला. लीजिये हमारे कोयले से चलने वाले बिजली घर की रूप रेखा तैयार हो रही है. अब देखते हैं की असली बिजली घर में यह सब कैसे होता है.
हम सब लोग हर दिन देखते हैं की एक स्विच दबाने से कैसे तुरंत बिजली जल जाती है. लेकिन यह बिजली कैसे बनती, कैसे हमारे घरों तक पहुँचती है, क्या यह जानने की इच्छा कभी हुई है?
बिजली बनाने के पीछे जो नियम है वह है चुम्बक के चलने पर बिजली का पैदा होना. विज्ञान का यह सिद्धांत है की जब एक चुम्बक को तार से लपेट दिया जाये और चुम्बक घूमने लगे तो तार में बिजली बहने लगती है या फिर एक तार को किसी छड़ पर लपेट दिया जाए और इसे किसी चुम्बक के बीच में रख कर घुमाया जाए तो इन तारों में बिजली बहने लगेगी. १८३१ में माइकिल फेरेड़े नाम के ब्रिटिश वैज्ञानिक ने यह सिद्धांत खोजा था. उन्होंने ने पाया की एक ताम्बे के तार को किसी चुम्बक के पास घुमाएं तो उस तार में बिजली बहने लगती है. यानी अगर एक चुम्बक और एक तार (जो बिजली चालक हैं) के बीच अगर गति है तब तार मं बिजली पैदा होती है. तार को आप एक बल्ब से जोड़ दें तब यह बल्ब जलने लगेगा. यह आप अपने घर में भी आसानी से कर सकते हैं. घूमते हुए तार की यांत्रिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा में बदल जाती है. इसी नियम को आधार मानकर चलते हैं सारे बिजली घर।
अब हमें यह पता चल गया की बिजली पैदा कैसे हो सकती है. तो हम क्रम से सोचें की कैसे हम एक बिजली घर बना सकते हैं और हमें किन चीज़ों की ज़रुरत पड़ेगी. ऊपर वाले नियम को लागू करने के लिए हमें चाहिए बहुत बड़े चुम्बक, तार जिनमें बिजली का प्रवाह हो सकता है, एक बहुत बड़ी छड़ जिस पर यह तार बंधा हो, और इस को छड़ को चलाने के लिए कोई मशीन. घर में आपने किसी बर्तन को कभी ढंककर पानी उबाला है. अगर किया है तो देखा होगा की पानी उबलने पर ढक्कन या तो गिर जाता है या उछलने लगता है. इसके मतलब भाप में ऊर्जा है जो हम किसी मशीन को चलाने में इस्तेमाल कर सकते हैं. याद है जेम्स वाट ने स्टीम इन्जन की शुरुआत इसी तरह उबलते पानी को देखकर की थी. तो फिर क्यों न हम इसी भाप से अपनी छड़ को चलायें? पर भाप बनाने के लिए चाहिए बहुत सा पानी और बहुत सा इंधन. हम अपना बिजली घर ऐसी जगह लगायेंगे जहां पानी का स्रोत हो जैसे कोई बहुत बड़ी झील या नदी. इंधन के लिए हम इस्तेमाल कर सकते हैं कोयला. लीजिये हमारे कोयले से चलने वाले बिजली घर की रूप रेखा तैयार हो रही है. अब देखते हैं की असली बिजली घर में यह सब कैसे होता है.
कोयले से चलने वाले बिजली घर सबसे ज़्यादा पाए जाते हैं. इन्हें थर्मल पावर प्लांट कहते हैं. इसमें कोयला जला कर पानी को उबाला जाता है. कोयले को फर्नेस (furnace) में जलाया जाता है जिसके ऊपर बोइलर होता जहां पानी भरा है. कोयला जितना अच्छा होगा उसमें उतनी ज्यादा उष्ण ऊर्जा पैदा होगी. इसलिए कोयले को एकदम पाउडर बना दिया जाता है. पानी भाप बनकर बहुत ही मोटे पाईप से निकल कर टर्बाइन में जाता है. या फिर ऐसा भी होता है की फर्नेस में ही मोटे मोटे पाईप घूमते हैं जिनमें पानी बहता रहता है. यह गर्म हो कर भाप बन जाता है और इन पाईप का एक सिरा टर्बाइन से जुड़ा होता है. भाप की ऊर्जा से टर्बाइन घूमती है. टर्बाइन एक बड़ी सी चकरी होती है जिसमें ब्लेड लगे हैं. भाप के वेग से यह जोर से घूमने लगती है. यह जितनी तेज़ घूमेगी हमारा बिजली वाला तार भी उतनी तेज़ घूमेगा और उतनी अधिक बिजली पैदा होगी. इसलिए इस टर्बाइन पर भाप को बहुत ऊँचे दबाव और ऊंचे तापमान से लाया जाता है. टर्बाइन हमारी उस छड़ से जुड़ा है जिस पर तार बंधे हैं और जो चुम्बक के बीच में रखा है. इस को जेनेरेटर कहते हैं.
टर्बाइन के चलने से यह छड़ घूमती है और उससे तार जो चुमकाय क्षेत्र में रखा है . अब फेरेदे नियम लगना शुरू हो गया और शुरू हो गयी तार में बिजली बहनी! यही बिजली फिर स्विचयार्ड में ले जाई जाती है जहां से यह पारेषण प्रणाली यानी ट्रांसमिशन लाइन के ज़रिये हमारे घरों, कारखानों, दफ्तरों में पहुँचती है. लेकिन वह एक अलग कहानी है. अभी तो हमें देखना है कि टर्बाइन चलाने के बाद जो भाप है उसका क्या करें? इसमें की बहुत ऊर्जा निकल गयी है पर अभी भी यह काफी ऊंचे तापमान पर है. इस भाप को ठंडा करने वाली मीनार या कूलिंग टावर में ले जाते हैं जहां इसे पाईप में डाला जाता है और इसके चरों ओंर ठंडी हवा घुमाई जाती है जो इसकी गर्मी ले लेती है और यह भाप वापस पानी बन जाती है. इसे दुबारा फर्नेस में ले जाया जा सकता है. तो यह है हमारे असली बिजली घर की एक रूपरेखा.
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चित्र में एक साधारण बिजली घर के भागों को आप देख सकते हैं। |
क्या आपके मन में यह सवाल उठ रहा है कि कोयले के अलावा और भी किसी तरह से बिजली बन सकती है.? बहुत लोगों ने भाखरा नाँगल का नाम सुना होगा या देखा होगा कि कैसे पर्वतों में पानी को रोककर बाँध बनाकर भी बिजली पैदा की जाती है. इसे कहते हैं जल विद्युत् या फिर हाइड्रो पावर प्लांट. इसमें भाप की जगह ऊँचाई पर इकठ्ठा हुए पानी को बहुत वेग से नीचे टर्बाइन पर गिराया जाता है जिससे वह चलने लगती है. इस तरह के बिजली घर कोयले से चलने वाले बिजली घर के मुकाबले कम प्रदूषण करते हैं क्योंकि न तो इनमें कोयला जलने से प्रदूषण होता है और न भाप की वजह से आसपास के वायुमंडल का तापमान बढ़ता है.
पूनम जी, आप जिस सहजता से जानकारी को शब्दों में पिरो देती हैं, मैं वास्तव में उसे देखकर विमुग्ध हूँ। आपकी लेखनी को सलाम करता हूँ।
ReplyDeleteSuprb!!!
ReplyDeleteज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ji se main bhee sehmat hoon
ReplyDeleteआपकी लेखनी को सलाम:)
इस ज्ञानवर्धक लेख के लिये शुक्रिया
ReplyDeleteआपने जिस तरह से जानकारी दी है, वह वाकई लाजबाब है |
ReplyDeleteऐसे ही रोचक तरीके से जानकारी देते रहिये
साधारण शब्दों में बहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteमेहनत से लिखा सचित्र जानकारीपरक लेख -आभार !
ReplyDeletejaankari parak right up.
ReplyDeletecongrates
फिर से पता चला जी धन्यवाद.
ReplyDeleteसहज शब्दों में गूढ़ बिषय की जानकारी देकर एक सराहनीय कार्य किया आपने पूनम जी। साथ ही रजनीश जी के प्रारंभ ने इसे और रोचक बना दिया है। विद्युत अभियंत्रण (इस विधा में जीवन के करीब २२ बर्ष बीते) के जानकार होने के नाते कह सकता हूँ कि आपने बहुत सरलता से तथ्यों को रखा है।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
माइकल फेराडे और जेम्स वात को सलाम ।
ReplyDeleteपूनम मिश्रा जी को धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिये ।
बहुत ही उम्दा लेख
ReplyDeleteJust an interesting fact for all the readers - Las Vegas (USA) consumes more electricity per day than entire electricity generation capacity of INDIA for whole of the year.
ReplyDeleteसाधारण शब्दों में बहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteबिजली के निर्माण की रोचक प्रस्तुति के लिए पूनम जी को धन्यवाद.
ReplyDeletebahut achi Jankari hai
ReplyDeletebahut achi Jankari hai
ReplyDeletebahut achi Jankari hai
ReplyDeleteAap jankari bahut hi achi he.
ReplyDeleteरोचक जानकारी।
ReplyDeleteक्या अंदाज है आपका वाह वाह
ReplyDeleteBest knowwlage
ReplyDeleteAaj pata chala bijli kaise banti
ReplyDeleteHai. ..thanks for