Indian Antarctic Program in Hindi
अंटार्कटिका में पाई जाने वाली विविधताओं के बाद अब जानते हैं कि भारत कैसे वहां तक पहुँचा, यहाँ पर पहुँचने के लिए रास्ता क्या है और कौन-कौन जा सकता है इस सुदूर सुंदर जगह पर।
सन 1981 में जुलाई के महीने में दिल्ली में महासागर विकास विभाग बनाया गया। इसका महत्व इसी बात से साफ़ हो जाता है कि यह सीधे प्रधानमंत्री की देख-रेख में आता था। उस समय की प्रधानमंत्री थी श्रीमती इंदिरा गांधी (Indira Gandhi)। उन्होंने इस विभाग की अंटार्कटिका में जाने और एक गुप्त योजना पर काम करने का आदेश दिया। इस आपरेशन का नाम रखा गया आपरेशन गंगोत्री (Operation Gangotri)। इसको गुप्त रखने का एक ही कारण था कि वहां के मौसम के बारे में सही जानकारी नहीं थी और पता नही नही था कि यहाँ के आनिश्चित वातवरण में यह आपरेशन सफल होगा भी या नहीं।
इस गोपनीय मिशन की कमांड डॉ जहूर कासिम (Dr Syed Zahoor Qasim) को सौंपी गई। श्री वोहरा और डॉ एस.एन. सिद्धीकी इस दल के उपनेता बनाए गए। श्री वोहरा एक प्रसिद्ध गलेशियर विशेषज्ञ थे जो एवेरस्ट शिखर पर भी जा चुके थे। डॉ सिद्धकी समुद्र भू वैज्ञानिक थे। वह अभियान के वैज्ञानिक साजो सामन की व्यापक तैयारी को संभाले हुए थे। दिसम्बर 1981 में गोवा से पानी के जहाज द्वारा 21 सदस्यों का का विमान रवाना हुआ और 9 जनवरी 1982 को भारतीय दल ने यहाँ पहला कदम रखा।
इस गोपनीय मिशन की कमांड डॉ जहूर कासिम (Dr Syed Zahoor Qasim) को सौंपी गई। श्री वोहरा और डॉ एस.एन. सिद्धीकी इस दल के उपनेता बनाए गए। श्री वोहरा एक प्रसिद्ध गलेशियर विशेषज्ञ थे जो एवेरस्ट शिखर पर भी जा चुके थे। डॉ सिद्धकी समुद्र भू वैज्ञानिक थे। वह अभियान के वैज्ञानिक साजो सामन की व्यापक तैयारी को संभाले हुए थे। दिसम्बर 1981 में गोवा से पानी के जहाज द्वारा 21 सदस्यों का का विमान रवाना हुआ और 9 जनवरी 1982 को भारतीय दल ने यहाँ पहला कदम रखा।
भारत ने अंटार्कटिका में बेस कैंप बनाया और वहां पर कुछ वैज्ञानिक प्रयोग किये। उसके बाद यह दल वापिस लौट आया। सन 1982 में एक दल अंटाकर्टिका और गया। इसको और थोड़ा वैज्ञानिक विस्तार दिया गया। सन 1983 में डॉ हर्ष गुप्त के निर्देशन में तीसरा दल गया तब यहाँ भारत का पहला अंटार्कटिका स्टेशन बनाया गया जिसका नाम रखा गया दक्षिण गंगोत्री (Dakshin Gangotri). पाँच साल तक यह स्टेशन काम करता रहा, पर आइस शेल्फ पर बने होने के कारण यह धीरे धीरे बर्फ में दब गया। तब सन 1988 में श्रीमाचेर पहाडी की चट्टानों पर भारत के नए स्टेशन मैत्री (Maitri) का निर्माण हुआ। तब से अब तक यही स्टेशन अनुसन्धान का केन्द्र बना हुआ है।
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Rasik Ravindra Antarctic Resercher |
आजकल भारतीय दल में चयन की प्रक्रिया फरवरी में शुरू हो जाती है। महानगर विकास द्वारा गोवा में स्थपित अंटार्कटिका केन्द्र (National Centre for Antarctic and Ocean Research (NCAOR) देश के सभी प्रमुख अखबारों में सूचना देता है और अंटार्कटिका में शोध कार्यों के लिए प्रस्ताव आमंत्रित करता है। विज्ञान के किसी भी रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए यहाँ संभावना है। यह व्यक्तिगत भी हो सकते हैं, पर किसी वैज्ञानिक विभाग या किसी विश्वविद्यालय द्बारा इसको मान्यता मिलना जरुरी है। इसको भेजने से पहले यह देख लेना जरुरी होता है कि पहले इस पर कितना काम हो चुका है और क्या नया हो सकता है, या कुछ ऐसा नया जो एक नयी खोज दे जाए।
अंटार्कटिका जाने वाले अभियान दल के दो हिस्से होते हैं समर और विंटर टीम। ये टीमें 50 या 55 सदस्यों की चुनी जाती हैं, जो सदस्य दिसम्बर में जा कर मार्च में लौट आते हैं, वह समर टीम के सदस्य होते हैं बाकी वही मैत्री में रुक जाते हैं साल भर के लिए। जो सदस्य आगामी मार्च में वापस आते हैं वह विंटर टीम के सदस्य माने जाते हैं। अंटार्कटिका जाने वाले खोजी दल में वैज्ञानिकों के अलावा अन्य विशेषज्ञों प्रस्ताव भी स्वीकार किए जाते हैं। ये लोग पत्रकार, फोटोग्राफर, मनोवैज्ञानिक, और समाज शास्त्री भी हो सकते हैं।

अंटार्कटिका जाने वाले दल के सभी सदस्यों का सम्पूर्ण डाक्टरी परीक्षण किया जाता है, जिसमें खून की जांच, फेफेडों का एक्स रे, ई सी जी, दिल की धड़कनें, आंखों की रौशनी, दांत के छेद, हड्डियाँ आदि शामिल हैं। विन्टर टीम के सदस्यों को बड़े विस्तृत मनोवैज्ञानिक परिक्षण से भी गुजरना होता है। यह जांचने के लिए कि यह 16 महीने के एकांतवास में वह कैसे रह सकते हैं, रह भी पायेंगे या नहीं। उसके बाद ही इन्हें आगे के लिए हरी झंडी दी जाती है।
अब आखिरी बाधा है हिमालय पर बर्फ की एक ट्रेकिंग की ट्रेनिंग। ओली में यह प्रशिक्षण दिया जाता है। यहाँ पर बर्फ में स्कीइंग, बर्फ से बचाव, परिचय और तकनीकी जानकरी दी जाती है। यहीं पर सदस्य एक दूसरे को पहचानते हैं और आगे जाने के लिए तैयार होते हैं।
पहले यहाँ जाने का रास्ता गोवा से था, जिस में समुन्दर से 26 या 27 दिन तक लग जाते थे ...एक महीना तक यह यात्रा समुंदरी बहुत थका वाली होती थी और खर्चा भी बहुत होता था। अब यह दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर से जहाज पर होने लगी है, इसलिए भारी सामान को माल वाहक जहाज से भेज दिया जाता है और यहाँ से यह यात्रा 9 या 10 दिन में पूरी हो जाती है। अजकल कुछ प्राइवेट कंपनियों ने भी केपटाउन से अंटार्कटिका की हवाई यात्रा शुरू कर दी है। अंटार्कटिका में इनके उतरने वाली हवाई पट्टी मैत्री से सिर्फ़ 15 किलोमीटर दूर है। इस हवाई जहाज से पानी की यात्रा 10 दिन की सिर्फ़ छ घंटे में पूरी हो जाती है।
अंटार्कटिका अभियान और महिलाएं:
अंटार्कटिका अभियान में महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया है। भारत का पहला स्टेशन दक्षिण गंगोत्री 1984 के अभियान में भारत की पहली दो महिलायें वैज्ञानिक डॉ सुदीप्ता सेनगुप्ता और डॉ अदिति पन्त चार महीने के लिये गई थीं। डॉ सुदीप्ता भूवैज्ञानिक के रूप में जानी जाती हैं और डॉ अदिति समुद्र विज्ञान के अनुसंधान में निपुण हैं। यह दोनों दुबारा भी पाँचवे और नौवें अभियान में जा चुकी हैं। इनके किए अनेक प्रयोग कई जगह प्रकशित हुए हैं। डॉ सुदीप्त ने तो बहुत सारे रोचक लेख भी लिखे हैं जो बंगाल में बहुत लोक प्रिय हुए हैं।
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Sudipta Sengupta, Antarctica Researcher |
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Dr. Kamal Vilku, Antarctic Researcher |
उनके ख़ुद के भी अनेक लेख प्रकाशित हुए, जिसमें उन्होंने लिखा कई भारतीय महिलाओं का योगदान अंटार्कटिका में हो, इसके बारे में उन्हें जरा भी संदेह नहीं है। चार महीने का तो प्रवास वह वहां आसानी से कर सकती हैं। 16 महीने के लिए उनको अपने घर बार से दूर रहना होगा, तूफानी हवा का सामना, कडाके की सर्दी, मौसम का सामना करना और स्टेशन की देखभाल करना आदि काम हैं, जिसको कोई भी महिला अपने संघर्ष से आसानी से कर सकती है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या होती है पुरूषों की मानसिकता से, जो ख़ुद को महिलाओं से अधिक श्रेष्ट मानते हैं। और यहाँ तो वैसे भी पुरुषों का दबदबा रहा है। यह सिर्फ़ भारतीय पुरुषों के साथ नहीं है, अन्य केन्द्र भी यहाँ इसी दंभ से भरे हुए हैं। बस यही एक समस्या है कि जब अकेली महिला वहां हो, तो उसको इस अतरिक्त मानसिक दबाब को सहना पड़ता है।
भारतीय महिलाओं में तीन वैज्ञानिक महिलाओं डॉ सुदीप्त सेनगुप्ता, डॉ आदिती पन्त और डॉ जया नैथानी और एक मेडिकल आफिसर डॉ कंवल विल्कू को अंटार्कटिका अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
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सुंदर जानकारी के लिए आभार. रही महिला-पुरुष समीकरण, यह बेमानी है.
ReplyDeleteकई रोचक बातें पता चली। अच्छा लगा पढकर। अगली का इंतजार।
ReplyDeleteविज्ञान पर केंद्रित ब्लॉग देख कर अच्छा लगा. लेकिन इसमें पोस्टों की संख्या है. इसे बाधाएं. विज्ञान की रोचक जानकारियाँ अगर आप लोग दे सके तो यह केवल आपके ब्लॉग ही नहीं, हिन्दी जगत का भी एक बड़ा काम होगा.
ReplyDeleteबार बार महिलाओं की क्षमता का उल्लेख करना भी अखरने लगता है। अब तो प्रमाणित है कि महिलाएँ वे सब काम कर सकती हैं जो पुरुष करते हैं। हाँ मनुष्य जाति के पुनरुत्पादन में ही उन की भूमिकाएँ भिन्न हैं और वहाँ भी अधिक जिम्मेदारी के काम महिलाओं के हिस्से में आये हैं।
ReplyDeleteआप ने बहुत अच्छी श्रंखला प्रस्तुत की है।
अंटार्कटिका से सम्बंधित महिलाओं की उपलब्धियॉं पढकर अच्छा लगा। इन रोचक जानकारियों के लिए आभार। अगले अंक की भी प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteAntarctica pahunchne ki prakriya ki jaankari pahli baar mili. Rochak aur prerak post.
ReplyDeleteआपके लेख से अंटार्कटिका पर बहुत रोचक जानकारियां मिल रही हैं......बिल्कुल नई जानकारी मिली कि अंटार्कटिका को जानने समझने में महिलाओं का योगदान भी रहा है....उम्मीद है कि आगे कि कडियां भी ऐसी ही रोचक जानाकारी से भरपूर होगी।
ReplyDeleteज्ञानवर्धक पोस्ट.इंदिरा गाँधी जी ने अपने समय में बहुत ही ऐसे सराहनीय कार्य किए था.देश उनका आभारी रहेगा.सभी बहादुर भारतीय महिलाओं के बारे में जानकर खुशी हुई.. ऐसे वातावरण में डॉ. कमल के लिए वहां १६ महीने रहना सच में बहुत मुश्किल ही रहा होगा.आगे को जानकारी जानने को उत्सुक हैं.
ReplyDeleteअच्छी चल रही है श्रृंखला मगर इसे जेंडर बायस का कोण देना क्या इसकी उत्कृष्टता पर आघात नही करेगा ? इसे अब अस्वीकारता ही कौन है कि तमाम काम महिलायें भी पुरुषों की भांति बखूबी या बेहतर भी कर सकती हैं !
ReplyDeleteइस श्रृंखला में महिलाओं की उपलब्धि लिखना सिर्फ़ वहां पर होने वाली घटनाओं में से एक है .जिसे लेखक ने इस किताब में बहुत बड़े एक पूरे चैप्टर के रूप में लिखा है ...मुझे इसी बात ने बहुत प्रभावित किया ..कि उन्होंने इस में यहाँ होने वाली हर घटना के तहत इसको भी बहुत स्वभाविक रूप से लिखा है ...इस लिए मैंने भी उसी स्वस्थ दृष्टिकोण से कुछ पंक्तियाँ यहाँ लिख दी है .सही है महिला आज किसी भी तरह से कम नहीं है ..पर उसकी उपलब्धियां और उसकी सुदूर स्थान पर यात्रा का उल्लेख किए बिना कुछ अधूरी सी लगती यह श्रृंखला ..:) वैसे भी मेरा आप सबसे वादा है कि इस में रोचक रोमांचक बातें लिखूंगी ..और एक महिला होने के नाते मेरे लिए सच में यह रोमांचकारी बात है :)...धन्यवाद
ReplyDeleteरचना जी ,मान गये ! आप उद्भट महिला सक्रियक हैं ! A woman activist par excellence !
ReplyDeletethis is a very good blog which is realeted to science reachers and developement. i like very much. thanks for it.
ReplyDeleteSAURABH PRAKASH
C-261 SRP OFFICE MUZAFFARPUR
महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आभार व्यक्त करते हैं. धन्यवाद..
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