शराब की लत लगने के कारण और उसके दुष्पभाव।
शराब जिसका नाम सुनते ही उन लोगों के मन में आनन्द का संचार हो उठता है जो इसका प्रयोग करते हैं और वहीँ उन लोगों के मन में घृणा का संचार होता है जो इसका प्रयोग नहीं करते हैं. सवाल ये उठता है कि ऐसी कौन सी वजह है जो इंसान को शराब पीने का आदि बना देती है? ऐसे कौन से कारण हैं जिससे कोई मदमस्त होने के लिए बेक़रार हो उठता है?
शराबखोरी की सबसे बड़ी वजह है इसका वंशानुगत होना. शराबी (alcoholics) और गैर-शराबी (non-alcoholic) व्यक्ति में एक फ़र्क होता है, एक दिमाग़ी फ़र्क. शराबी के दिमाग में एक ख़ास तरह का रसायन (THIQ) पाया जाता है जबकि जो गैर-शराबी है उनमें यह नहीं पाया जाता है. वैज्ञानिकों ने शोध के ज़रिये यह निष्कर्ष निकला है कि ज़्यादातर शराबी का बेटा शराबी होता है वहीँ सामान्यतया एक शराबी की बेटी की शादी शराबी से होती है. यह भी पता चला कि अगर कोई शराबी की संतान को कोई स्वस्थ दंपत्ति (गैर-शराबी ही क्यूँ न हो) गोद लेता है तो उसकी अपनी संतान के मुक़ाबले गोद ली हुई संतान शराब का सेवन अधिक मात्रा में करती है.
शराबखोरी की सबसे बड़ी वजह है इसका वंशानुगत होना. शराबी (alcoholics) और गैर-शराबी (non-alcoholic) व्यक्ति में एक फ़र्क होता है, एक दिमाग़ी फ़र्क. शराबी के दिमाग में एक ख़ास तरह का रसायन (THIQ) पाया जाता है जबकि जो गैर-शराबी है उनमें यह नहीं पाया जाता है. वैज्ञानिकों ने शोध के ज़रिये यह निष्कर्ष निकला है कि ज़्यादातर शराबी का बेटा शराबी होता है वहीँ सामान्यतया एक शराबी की बेटी की शादी शराबी से होती है. यह भी पता चला कि अगर कोई शराबी की संतान को कोई स्वस्थ दंपत्ति (गैर-शराबी ही क्यूँ न हो) गोद लेता है तो उसकी अपनी संतान के मुक़ाबले गोद ली हुई संतान शराब का सेवन अधिक मात्रा में करती है.
शराब के मुताल्ल्लिक़ जानवरों पर किये गए शोध से कुछ नए तथ्य सामने आये! वैज्ञानिकों ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर कौन से ऐसे फ़र्क हैं जो शराब के सेवन करने और शराब के सेवन न करने वालों के बीच हैं. उन्होंने उनको अल्कोहल का इंजेक्शन दिया और पाया कि वे बेहोश से होने लगे (अर्थात सोने से लगे). जबकि कुछ लगभग सामान्य ही रहे.
यह तो हम जानते ही है कि अल्कोहल एन्जाईम से ओक्सिकृत को कर एसीट एल्डीहाईड बनता है और एसीट एल्डीहाईड भी ओक्सिकृत होकर एसिटिक एसिड बनता है. यह किण्वन प्रक्रिया है. आख़िर यह प्रक्रिया होती क्यूँ है? क्यूँ इस तरह के एन्जाईम हमारे शरीर में पैदा होते हैं? क्या ईश्वर ने हमें बनाते वक़्त यह predict (अनुमान) लगा लिया था कि हम एक दिन शराब पीने लगेंगे और इस तरह के एन्ज़ाईम्स की ज़रुरत हमें पड़ेगी? अगर हम शराब न भी पीयें तब भी हमारे शरीर में किण्वन क्रिया होती है और इंडोजीनियस नामक अल्कोहल (endogenous alcohol) बनता है.
हमारे ख़ून में अल्कोहल की कुछ न कुछ मात्रा ज़रूर होती है. अरे अरे घबराईये नहीं... यह शराब नहीं है और न ही इससे नशा आ जायेगा...और यह इतना कम होता है कि ड्राइविंग करते वक़्त आपको नशे में होने के कारण अरेस्ट होने का कोई ख़तरा नहीं है!!! हाँ यह ज़रूर है कि अगर यह एंजाइम्स हमारे शरीर में न हो तो नशे का खतरा बढ़ जायेगा. एन्ज़ाईम्स के कारण ही इंडोजीनियस नामक अल्कोहल (endogenous alcohol) का ऑक्सीकरण होता है.
जब कोई शराब का सेवन करता है तो उसमें एन्ज़ाईम्स द्वारा उक्त क्रियान्वयन होता है अगर किसी में यह कम मात्रा में होगा तो उसको पीते वक़्त बहुत बुरा आभास होता है क्यूंकि एन्ज़ाईम्स द्वारा अल्कोहल या एसिड एल्डीहाईड का पर्याप्त ऑक्सीकरण नहीं हो पाता है. और इस तरह से एसिड एल्डीहाईड की मात्रा बढती है और वह पीने वाले को विषाक्त अनुभव सा अहसास दिला यह आभास करा देती है कि उसे अब पीना बंद कर देना चाहिए. इसके ठीक विपरीत जिस व्यक्ति में प्रबल एन्ज़ाईम्स क्रियान्वयन होता है वह शराब को बहुत अधिक मात्रा में पी सकने की सहनशीलता रखता है और जब वह एक बार शुरू कर देता है तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता है अर्थात वह जल्दी खत्म नहीं करता है. ऐसे ही व्यक्तियों को नशेडी नंबर 1 या शराबी नंबर 1 कहा जाता है.
शराबखोरी की अन्य वजहें भी हो सकती है लेकिन एन्ज़ाईम्स का यह क्रिया-कलाप निर्भर करता है हमारे जींस पर! यही वजह है कि शराबखोरी की सबसे बड़ी वजह इसका वंशानुगत होना है. वैज्ञानिकों ने शोध के ज़रिये यह निष्कर्ष निकला है कि ज़्यादातर शराबी का बेटा शराबी होता है !!! आप बताईये क्या आपका बेटा शराब पिएगा ???
होली आ रही है, ज़्यादातर लोग तो इसी फ़िराक़ में रहते हैं कि होली कब है.... कब है होली.... और वह हाथ में गिलास ले अमित भइया का यह गाना गुनगुनाएं....रंग में भंग लगा हो चका-चक... या फ़िर जय जय शिव-शंकर काँटा लगे न कंकर, ये प्याला तेरे नाम का पिया... तो प्लीज़ ज़रा रुकिए हम ये क्या कर रहें हैं, विज्ञान भी यह कहता है कि ज़्यादातर शराबी दा पुत्तर शराबी ही हो सकता है... हम अगर शराब का सेवन कर रहें है तो आने वाली पीढ़ी को शराबी ही बना रहे हैं...वैसे भी सदियों पहले हमारे पूर्वज भी शराबखोरी की मनाही कर गए हैं... यकीन नहीं तो अपनी-अपनी किताबें उठा कर देख लें...तो प्लीज़ अब बस भी कीजिये...
हमारे ख़ून में अल्कोहल की कुछ न कुछ मात्रा ज़रूर होती है. अरे अरे घबराईये नहीं... यह शराब नहीं है और न ही इससे नशा आ जायेगा...और यह इतना कम होता है कि ड्राइविंग करते वक़्त आपको नशे में होने के कारण अरेस्ट होने का कोई ख़तरा नहीं है!!! हाँ यह ज़रूर है कि अगर यह एंजाइम्स हमारे शरीर में न हो तो नशे का खतरा बढ़ जायेगा. एन्ज़ाईम्स के कारण ही इंडोजीनियस नामक अल्कोहल (endogenous alcohol) का ऑक्सीकरण होता है.
जब कोई शराब का सेवन करता है तो उसमें एन्ज़ाईम्स द्वारा उक्त क्रियान्वयन होता है अगर किसी में यह कम मात्रा में होगा तो उसको पीते वक़्त बहुत बुरा आभास होता है क्यूंकि एन्ज़ाईम्स द्वारा अल्कोहल या एसिड एल्डीहाईड का पर्याप्त ऑक्सीकरण नहीं हो पाता है. और इस तरह से एसिड एल्डीहाईड की मात्रा बढती है और वह पीने वाले को विषाक्त अनुभव सा अहसास दिला यह आभास करा देती है कि उसे अब पीना बंद कर देना चाहिए. इसके ठीक विपरीत जिस व्यक्ति में प्रबल एन्ज़ाईम्स क्रियान्वयन होता है वह शराब को बहुत अधिक मात्रा में पी सकने की सहनशीलता रखता है और जब वह एक बार शुरू कर देता है तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता है अर्थात वह जल्दी खत्म नहीं करता है. ऐसे ही व्यक्तियों को नशेडी नंबर 1 या शराबी नंबर 1 कहा जाता है.
शराबखोरी की अन्य वजहें भी हो सकती है लेकिन एन्ज़ाईम्स का यह क्रिया-कलाप निर्भर करता है हमारे जींस पर! यही वजह है कि शराबखोरी की सबसे बड़ी वजह इसका वंशानुगत होना है. वैज्ञानिकों ने शोध के ज़रिये यह निष्कर्ष निकला है कि ज़्यादातर शराबी का बेटा शराबी होता है !!! आप बताईये क्या आपका बेटा शराब पिएगा ???
चित्र गूगल से साभार
अच्छी सलाह
ReplyDeletemujhe duniyan walon sharaabi na samjho main pita nahin hoon pilayee gayee hai
ReplyDeleteधन्यवाद मिश्रा जी
ReplyDeleteअच्छी सलाह है, आशा है होली के अवसर पर इसे ध्यान में रखा जाएगा।
ReplyDeleteथोडा सिगरेट पर भी रौशनी डालें..... हिच...हिच्च...हिच्च.....हिच्च...
ReplyDeleteमहफूज़ भाई, क्या सिगरेट पीने में ऐसी ही आवाजें निकलती हैं?
ReplyDeleteBadhiya hai, lage raho
ReplyDeleteऐब असहज साहब का फरमाना दुरुस्त है -संदर्भ दिए जा सकते हों तो अवश्य दिए जायं
ReplyDeleteमेरी जानकारी में epigenetics के अधीन ऐसे अध्ययन हाल में हुए हैं -इन्हें नेट पर भी दूंढा जा सकता है
reference(sandarbh) ki baat hi main bhi dohraunga.. kyonki unke bina kisi baat sahi nahin maan sakte..
ReplyDeleteTHIQ ka poora naam batayen..
महफूज़ भाई ने सिगरेट और .... एक साथ ले ली है शायेद.......:-}
ReplyDeleteसन्दर्भ ज़रूरी है और वह होने भी चाहिए.. वक़्त मिला तो उसको भी ज़ाहिर करूँगा...
ReplyDeleteलेकिन सवाल पूछने वालों से एक सवाल क्या शराब के सेवन की बुराईयों के लिए भी सन्दर्भ देना होगा ???
log kahte hain ki main sharaabi hoon
ReplyDeleteलगे रहो मुन्ना भाई!
ReplyDeleteखि़लाफ़े शरा, शैख़ कभी थूकता भी नहीं
ReplyDeleteमगर अँधेरे-उजाले में कभी चूकता भी नहीं
हा हा सलीम मियाँ बात तो आपकी उपदेशकों की नज़र में वाजिब ही है मगर इस दलील का क्या हो कि-
नातज्रब:कारी से, वाइज़ की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो,
कभी पी है ???
और अक्सर हिचकी किसी की याद में आती है--
महफ़ूज़ मियाँ को किसकी याद आ गई भाई ? हा हा।
अच्छी पोस्ट लिखी मियाँ। हमें भी इत्तेफ़ाक है आपकी बात पर।