Einstein's unified field theory in Hindi.
In physics, a unified field theory (UFT) is a type of field theory that allows all that is usually thought of as fundamental forces and elementary particles to be written in terms of a single field.
भौतिकीविद और दार्शनिक आइंस्टाइन का जीवन भर का स्वप्न था एकीकृ-क्षेत्र सिद्धांत, जिसके कलेवर में चारों प्राकृत बल के अलावा वो तमाम कण भी आ जाएँ, जिन्हें द्रव्य के बुनियादी कण (फंडामेंटल पार्टिकिल्स) कहा गया था।
एक कण को घेरे हुए जो भी क्षेत्र (या एक से अधिक किस्म के) क्षेत्र रहते हैं वही अन्य कणों पर बल डालते हैं। यानी एक कण का क्षेत्र दूसरे कण पर बल डालता है बिना किसी भौतिक सम्पर्क के -एक्शन अट ए डिस्टेंस इसे ही कहा गया था। यानी क्षेत्र इन प्राकृत बलों के वाहक या वाहन समझे गए हैं।
साधारण भाषा में किसी भी द्रव्यमान युक्त कण के आसपास एक गुरुत्वीय क्षेत्र तो होगा ही जिसका प्रभाव दूर दराज़ के अन्य कणों तक भी अनंत दूरी तक जाता है। इसीलिए न्यूटन ने कहा था जब आप एक ऊँगली उठा किसी सितारे की तरफ इशारा करते हैं तब शेष विश्व का गुरुत्वीय संतुलन बदल जाता है।
यह दीगर है की इसका मान या मैग्नीट्यूड अन्य कणों से इसकी दूरी दोगुनी होने पर घटके चौथाई, तीन गुना होने पर नौवां हिस्सा ही इसके द्वारा अन्य कणों पर पहले डाले गए बल की बनिस्पत रह जाएगा। यानी दूरी के बढ़ने पर यह क्षेत्र द्वारा डाला गया बल तेज़ी से घटता है। इसे ही फ़िज़िक्स में विलोम वर्ग का अनुपाती सिद्धांत कहा गया है। इनवर्स स्कायर ला कहा गया है।
इसी प्रकार एक चार्ज युक्त कण के गिर्द वैद्युत बल, चुंबकीय कण के गिर्द चुंबकीय बल काम करता है। आम तौर पर जहां एक परिवर्तन शील वैद्युत क्षेत्र रहता है वहां उसी के संगत एक चुंबकीय क्षेत्र स्वत: ही पैदा होता है जो आवेशित कणो में होने वाले वेगपरिवर्तन का परिणाम होता है। ये दोनों बल परस्पर लंबवत लेकिन साथ-साथ इनसे पैदा विक्षोभ (विद्युतचुंबकीय तरंग) दोनों ही क्षेत्रों के लंबवत आगे बढ़ते हैं।
What is Einstein's unified field theory?
Early in the 20th century, Albert Einstein's general theory of relativity - dealing with gravitation - became the second field theory. The term unified field theory was coined by Einstein, who was attempting to prove that electromagnetism and gravity were different manifestations of a single fundamental field.
1905 में आइंस्टाइन ने विशिष्ट सापेक्षवाद की बुनियादी अवधारणाएं प्रस्तुत की, बतलाया-
(1) भौतिकी के एवं अन्य सभी भौतिक नियम परस्पर एक समान सरळ-रेखात्मक गति करने वाली समस्त प्रणालियों सिस्टम्स या निकायों के लिए एक समान काम करते हैं। ऐसे सिस्टम्स को ही इनर्शियल या नान-एक्सलरेटिंग फ्रेम आफ रेफरेंस कहा गया।
(2) प्रकाश का वेग ऐसे जड़त्वीय निकायों के लिए एक समान यानी नियत बना रहता है।
माप-जोख के लिए जो कोर्डिनेट प्रणाली अपनाई जाती है, उसे ही फ्रेम-आफ-रेफरेंस कहा जाता है। यह अंतरिक्ष में परस्पर लंबवत तीन अक्षों के सापेक्ष उस कण पे निगाह रखता है उसका स्थिति, गति संबंधी हिसाब रखता है।
It is a co-ordinate system with respect to which all measurements are made.
1915 में आइंस्टाइन ने प्रागुक्ति की पृथ्वी के गिर्द अंतरिक्ष-काल मुड़-तुड़ जाते हैं वारपिंग हो जाती है स्पेसटाइम की। हमारे इस पृथ्वी नामक पिंड का घूर्णन (रोटेशन या नर्तन) ऐंठन (ट्विस्ट) पैदा कर देता है स्पेसटाइम में। इसे ही सरल भाषा में कहा गया -अंतरिक्ष में पदार्थ (किसी भी द्रव्यराशि युक्त कण) की मौजूदगी अपने आसपास के अंतरिक्ष काल को घुमावदार बना देती है।
कालक्रम में आइंस्टाइन द्वारा आविष्कृत गुरुत्व बल क्षेत्र दूसरा फ़ील्ड आफ फ़ोर्स था। पहला जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (जून 13, 1831-नवंबर 5,1879) का विद्युतचुंबकीय क्षेत्र यानी इलेक्ट्रोमेग्नेटिक फील्ड आफ फ़ोर्स था। आपने इसकी व्याख्या के लिए मैक्सवेल समीकरण दिए थे जो क्लासिअक्ल फ़िज़िक्स की धरोहर समझे गए।
ये समीकरण इलेक्ट्रिक चार्ज (विद्युत् आवेश) और विद्युत् धाराएं (एल्क्ट्रिक करेंट्स) कैसे विद्युत् चुंबकीय एवं संगत चुंबकीय क्षेत्रों का सृजन करते हैं और हमेशा सहोदरों की मानिंद ही रहते हैं। ये दोनों क्षेत्र इस बात का बेहतरीन खुलासा करतीं हैं। यही वे मनोरम एवं कॉम्पेक्ट गणितीय प्रारूप है। विद्युतचुंबकीय बल का जो यह समझाता है कि कैसे एक परिवर्तनशील विद्युतक्षेत्र एक ऐसे ही परिवर्तन शील चुंबकीय क्षेत्र की रचना करता है, जो प्रत्युत्तर में फिर एक ऐसा ही परिवर्तन शील विद्युतक्षेत्र रचता है और परिणामी विद्युतचुंबकीय तरंग एक विक्षोभ के रूप में एम्प्टी स्पेस में परस्पर लंबवत बने इन क्षेत्रों के लंबवत खुद आगे बढ़ती जाती है। इसे पारगमन के लिए कोई माध्यम नहीं चाहिए। गौरतलब है हाइनरिख रुडोल्फ हर्ट्स (जर्मन भौतिकी विद फरवरी 22, 1857 - जनवरी 1, 1894) ने पहले पहल अपने प्रयोगों द्वारा इन बल क्षेत्रों की पुख्ता पुष्टि की थी।
भारतीय विज्ञानी जगदीश चंद बासु का नाम विद्युतचुंबकीय क्षेत्र तरंगों के पहले प्रदर्श एवं प्रसारण के साथ जोड़ा गया है। आपने इन तरंगों से दूरस्थ एक घंटी को बजाकर के गनपाउडर में विस्फोट करा दिया था। इन तरंगों ने 75 फ़ीट की दूरी तय की थी प्रकाश के निर्वातीय वेग से।
न्यूटन कहते थे प्रकृति का प्रत्येक कण शेष सभी कणों पर बल डालता है। आइंस्टाइन ने कहा एक कण का बल क्षेत्र दूसरे कण पर बल डालता है। आइंस्टाइन ने कहा एक कण का क्षेत्र दूसरे कण पर बल डालता है यानी क्षेत्र दोनों के बीच की आकर्षक डोर बन जाता है। कालान्तर में आइंस्टाइन के इसी एकीकृत बल क्षेत्र या फील्ड आफ फ़ोर्स सिद्धांत को जो आजीवन उनके लिए एक स्वप्न ही रहा- थ्योरी आफ एवरीथिंग कहा जाने लगा। इसे यूनिफाइड फील्ड थ्योरी आफ एवरीथिंग (TOE) या संक्षेप में थ्योरी आफ एवरीथिंग भी कहा गया ।
फिर से दोहरा दें :
किसी भी कण के आसपास का क्षेत्र चाहे उस कण या पिंड पर कोई चार्ज है या नहीं, आवेशित है वह कण या आवेशहीन है, जिसमें उसका प्रभाव कोई और कण महसूस करता है फील्ड आफ फ़ोर्स या केवल फील्ड भी कहलाता है।
सभी पिंडों के लिए यही एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत -सभी ज्ञात ऐसी प्रक्रियाओं (प्रसवित घटना, हेप्निंग्स) को एक साथ लाकर जिनका ज़ायज़ा हम अपनी ज्ञानेंन्द्रीय से ले सकते हैं सृष्टि में मौजूद सभी पदार्थों एवं ऊर्जा की व्याख्या कर लेना चाहता रहा है।
विभिन्न परस्पर असंगत क्षेत्र सिद्धानों में सामंजस्य बिठाकर यह एकीकृत फील्ड थ्योरी आफ एवरीथिंग समीकरणों का एक व्यापक जाल बुनना चाहता। यानी कुछ गणितीय समीकरण ही सृष्टि के सभी क्षेत्र सिद्धांतों की एकीकृत व्याख्या कर लें।
कुछ विज्ञानमाहिरों के अनुसार यह सिद्धांत एक इंच लम्बा एक ऐसा समीकरण रचना चाहता है जो यह जान ले ईश्वर के दिमाग में क्या चल रहा है। कालक्रम में पहली क्षेत्र थ्योरी इल्क्ट्रोमैग्नेटिज़्म के जनक जेम्स क्लार्क मैक्सवेल, 1915 में आइंस्टाइन लाये गुरुत्व संबंधी अपना सापेक्षवाद सिद्धांत जिसे दूसरी फील्ड थ्योरी का दर्ज़ा दिया गया।
आइंस्टाइन ऐसा मानते बूझते थे- गुरुत्व और विद्युतक्षेत्र एक ही बुनियादी क्षेत्र के दो पहलु हैं। क्वांटम थ्योरी ने आकर इस प्रस्तावना को उलझा दिया। आइंस्टाइन का गुरुत्व स्थूल स्तर पर घटित प्रक्रियाओं की व्याख्या करता है तो क्वांटम सिद्धांत परमाणु और अवपरमाणुविक स्तर पर उनकी सूक्ष्तम स्तर पर व्याख्या करता है।
गुरुत्व और क्वांटम यांत्रिकी इस प्रकार परस्पर असंगत हो जाते हैं। अपने अपने मेक्रो और माइक्रो-जगत के लिए भले चंगे हों।
प्रक्रियाओं का रुख स्थूल जगत और सूक्ष्म जगत पर परस्पर एक दूसरे का विरोधी दीख पड़ता है। आइंस्टाइन इन दोनों का ही मेलमिलाप चाहते थे -एक ही सिद्धांत स्थूल और सूक्ष्म स्तर पर तमाम प्रक्रियाओं का भगवान (नियंता) बन जाए, पैरोकार बन बैठे यही उनकी मंशा थी आजीवन खाब था, जो उनके जीतेजी खाब (ख़्वाब) ही बना रहा।
स्टेंडर्ड मॉडल हालांकि इल्क्ट्रोमैग्नेटिज़्म, स्ट्रांग एन्ड वीक न्युक्लीअर फ़ोर्स फील्डों की तो एक ही छत तले व्याख्या कर लेता है, गुरुत्व इस स्टेंडर्ड मॉडल के दायरे से बाहर अव्याख्येय (अन-एक्स्प्लेंड) ही रह जाता है। स्टेंडर्ड मॉडल के तहत काम नहीं करता।
संदर्भ श्रोत- 01, 02, 03, 04
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