nCoV-2019 :मिथक और यथार्थ ,क्या कहतें हैं विषाणुविशेषग्य ? मुझे याद पड़ता है जब हमारी माँ ने ६९ साल की उम्र भुगताकर हैटाइटिस -सी की चपेट ...
nCoV-2019 :मिथक और यथार्थ ,क्या कहतें हैं विषाणुविशेषग्य ?
मुझे याद पड़ता है जब हमारी माँ ने ६९ साल की उम्र भुगताकर हैटाइटिस -सी की चपेट में आके शरीर छोड़ा था ,बेरिअर नर्सिंग की थी नर्सों ने हमारी माँ की। जब तक सांस में सांस थी हमने सेवा की पतले दस्त के निपटारे के बाद हाथ लाइफ्बोय से पंद्रह सेकिंड तक मल -मलके साफ किये थे हर बार अनिगनत बार यही क्रम दोहराया था लेकिन जब उनका फीडिंग ट्यूब शरीर छोड़ने के बाद हटाया गया कार्डिएक पल्मोनरी रीसशिएशन के बाद तब हम एक दम से साबधान हो गए थे।
अम्मा जा चुकीं थीं मिट्टी से मोह कैसा ?
जब टेक्सी वाले ने कहा शव डिक्की में रखूंगा हमने प्रतिरोध नहीं किया साथ में मेरी छोटी बेटी थी अब उसको संक्रमण से बचाना हमारी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर था ,टेक्सी वाला ऐसी शर्त न रखता तो निश्चित ही मैं उन्हें कमसे कम सिरहाना ज़रूर देता अपने शरीर का। लेकिन टेक्सी वाले की शर्त से हम को भी राहत महसूस हुई।
अलबत्ता हज़ार से ऊपर कोरोना वाइरस से जान गंवाने वालों की बढ़ती तादाद के आलोक में चीन ने शव को फ़टाफ़ट दफन करने का जो निर्णय लिया है भले वह अर्थव्यवस्था की गिरावट से जुड़ा हो गलत नहीं है।उसे हर हां संक्रमण को और बढ़ने से रोकना है मरता क्या न करता।
माहिर हमारे मत से सहमत नहीं हैं कनाडा में २००३ में सार्स महामारी के आपदा प्रबंधन में सक्रिय भागेदारी करने वाले रोनाल्ड सेंट जोंस कहतें हैं सुपुर्दे ख़ाक की प्रक्रिया में होने वाली रीतिरिवाज़ में लगा समय इस संक्रमण के खतरे को और नहीं बढ़ा सकता।
माना जाता है चीन से अन्यत्र पहुंचा साज़ो सामान भी ऐसे संक्रमण की वजह नहीं बन सकेगा क्योंकि गंतव्य तक लगा समय इसके जीवित रहने की अवधि से बहुत ज्यादा है। एचआईवी - एड्स विषाणु भी इन वीवो (in vivo survival )के लिए जाना जाता है। उस्तरे ब्लेड को एस्ट्रिंजेंट से साफ़ करना पर्याप्त सावधानी समझा गया है।अलबत्ता इन्फेक्टिड ब्लड की और बात रही है।
कोरोना के गिर्द अनेक मेक एन्ड बिलीव विश्वास ,सुनी सुनाई चल पड़े हैं जिनका कोई चिकित्सा विज्ञान सम्मत आधार नहीं है।चाहे वह लहसुन का किसी भी विध सेवन हो या कुछ और।
क्रिमेशन बेशक मानक सुपुर्दे ख़ाक से अपेक्षाकृत जल्दी हो जाता है जब एक दिन में सौ मौत हो जाएँ तब और किया भी क्या जाए। चीन के तो इस बाबत कोई धार्मिक विश्वास भी आड़े नहीं आते न कोई आफ्टर लाईफ का सवाल न पुनर्जन्म की चर्चा वामपंथी इधर भी वहीँ हैं उधर भी अलबत्ता इधर उनके नाम धर्मिक है जैसे सीताराम ,वृंदा ,ज्योति ,सोमनाथ आदिक कहते ये तमाम लोग अपने को सेकुलर ही हैं।
कोरोना और इबोला के गिर्द अलग अलग सावधानियां रहीं हैं इबोला कहीं अधिक सावधानी मांगता था।शव के निपटान तक वहां चौकसी की ज्यादा जरूरत समझी गई थी।शव का परम्परागत निपटान और उस में लगा समय २० फीस नए मामलों का कारण वहां बतलाया गया था। यहां कोरोना के मामलों में ये क़िस्सा नहीं है।
संदर्भ के लिए निम्न सेतु देखें :
https://www.who.int/mediacentre/news/ebola/06-october-2014/en/
४५१७१ पुख्ता मामले वुहान कोरोना विषाणु -२०१९ संक्रमण के १२ फरवरी तक आ चुकें हैं।
अलबत्ता शव से रिश्ते किसी भी प्रकार के तरल से इसके संक्रमण की सम्भवना माहिर नहीं बतला रहें हैं।
चीन की बात शी चिन पिंग जाने।
अलबत्ता इबोला के मामले में बीस फीसद नए मामले इन्हीं कर्मकांड (रिवाजानुकूल सुपुर्दे ख़ाक )से जुड़े हुए थे। कोरोना मामलों में ऐसा नहीं समझा गया है।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा ,२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार काम्प्लेक्स ,दिल्ली -छावनी -११० ०१[०
८५ ८८ ९८ ७१ ५०
![China virus funeral order fuels upset as death toll rises China's health commission has ordered swift cremations and no funerals for the coronavirus dead [Yuan Zheng/EPA]](https://www.aljazeera.com/mritems/imagecache/mbdxxlarge/mritems/Images/2020/2/9/a83bb794bc554c87ab06939f776c9200_18.jpg)
संदर्भ -सामिग्री :https://www.aljazeera.com/news/2020/02/china-virus-funeral-order-fuels-upset-death-toll-exceeds-sars-200209010139644.html
मुझे याद पड़ता है जब हमारी माँ ने ६९ साल की उम्र भुगताकर हैटाइटिस -सी की चपेट में आके शरीर छोड़ा था ,बेरिअर नर्सिंग की थी नर्सों ने हमारी माँ की। जब तक सांस में सांस थी हमने सेवा की पतले दस्त के निपटारे के बाद हाथ लाइफ्बोय से पंद्रह सेकिंड तक मल -मलके साफ किये थे हर बार अनिगनत बार यही क्रम दोहराया था लेकिन जब उनका फीडिंग ट्यूब शरीर छोड़ने के बाद हटाया गया कार्डिएक पल्मोनरी रीसशिएशन के बाद तब हम एक दम से साबधान हो गए थे।
अम्मा जा चुकीं थीं मिट्टी से मोह कैसा ?
जब टेक्सी वाले ने कहा शव डिक्की में रखूंगा हमने प्रतिरोध नहीं किया साथ में मेरी छोटी बेटी थी अब उसको संक्रमण से बचाना हमारी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर था ,टेक्सी वाला ऐसी शर्त न रखता तो निश्चित ही मैं उन्हें कमसे कम सिरहाना ज़रूर देता अपने शरीर का। लेकिन टेक्सी वाले की शर्त से हम को भी राहत महसूस हुई।
अलबत्ता हज़ार से ऊपर कोरोना वाइरस से जान गंवाने वालों की बढ़ती तादाद के आलोक में चीन ने शव को फ़टाफ़ट दफन करने का जो निर्णय लिया है भले वह अर्थव्यवस्था की गिरावट से जुड़ा हो गलत नहीं है।उसे हर हां संक्रमण को और बढ़ने से रोकना है मरता क्या न करता।
माहिर हमारे मत से सहमत नहीं हैं कनाडा में २००३ में सार्स महामारी के आपदा प्रबंधन में सक्रिय भागेदारी करने वाले रोनाल्ड सेंट जोंस कहतें हैं सुपुर्दे ख़ाक की प्रक्रिया में होने वाली रीतिरिवाज़ में लगा समय इस संक्रमण के खतरे को और नहीं बढ़ा सकता।
माना जाता है चीन से अन्यत्र पहुंचा साज़ो सामान भी ऐसे संक्रमण की वजह नहीं बन सकेगा क्योंकि गंतव्य तक लगा समय इसके जीवित रहने की अवधि से बहुत ज्यादा है। एचआईवी - एड्स विषाणु भी इन वीवो (in vivo survival )के लिए जाना जाता है। उस्तरे ब्लेड को एस्ट्रिंजेंट से साफ़ करना पर्याप्त सावधानी समझा गया है।अलबत्ता इन्फेक्टिड ब्लड की और बात रही है।
कोरोना के गिर्द अनेक मेक एन्ड बिलीव विश्वास ,सुनी सुनाई चल पड़े हैं जिनका कोई चिकित्सा विज्ञान सम्मत आधार नहीं है।चाहे वह लहसुन का किसी भी विध सेवन हो या कुछ और।
क्रिमेशन बेशक मानक सुपुर्दे ख़ाक से अपेक्षाकृत जल्दी हो जाता है जब एक दिन में सौ मौत हो जाएँ तब और किया भी क्या जाए। चीन के तो इस बाबत कोई धार्मिक विश्वास भी आड़े नहीं आते न कोई आफ्टर लाईफ का सवाल न पुनर्जन्म की चर्चा वामपंथी इधर भी वहीँ हैं उधर भी अलबत्ता इधर उनके नाम धर्मिक है जैसे सीताराम ,वृंदा ,ज्योति ,सोमनाथ आदिक कहते ये तमाम लोग अपने को सेकुलर ही हैं।
कोरोना और इबोला के गिर्द अलग अलग सावधानियां रहीं हैं इबोला कहीं अधिक सावधानी मांगता था।शव के निपटान तक वहां चौकसी की ज्यादा जरूरत समझी गई थी।शव का परम्परागत निपटान और उस में लगा समय २० फीस नए मामलों का कारण वहां बतलाया गया था। यहां कोरोना के मामलों में ये क़िस्सा नहीं है।
संदर्भ के लिए निम्न सेतु देखें :
https://www.who.int/mediacentre/news/ebola/06-october-2014/en/
४५१७१ पुख्ता मामले वुहान कोरोना विषाणु -२०१९ संक्रमण के १२ फरवरी तक आ चुकें हैं।
अलबत्ता शव से रिश्ते किसी भी प्रकार के तरल से इसके संक्रमण की सम्भवना माहिर नहीं बतला रहें हैं।
चीन की बात शी चिन पिंग जाने।
अलबत्ता इबोला के मामले में बीस फीसद नए मामले इन्हीं कर्मकांड (रिवाजानुकूल सुपुर्दे ख़ाक )से जुड़े हुए थे। कोरोना मामलों में ऐसा नहीं समझा गया है।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा ,२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार काम्प्लेक्स ,दिल्ली -छावनी -११० ०१[०
८५ ८८ ९८ ७१ ५०
![China virus funeral order fuels upset as death toll rises China's health commission has ordered swift cremations and no funerals for the coronavirus dead [Yuan Zheng/EPA]](https://www.aljazeera.com/mritems/imagecache/mbdxxlarge/mritems/Images/2020/2/9/a83bb794bc554c87ab06939f776c9200_18.jpg)
संदर्भ -सामिग्री :https://www.aljazeera.com/news/2020/02/china-virus-funeral-order-fuels-upset-death-toll-exceeds-sars-200209010139644.html
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