How God Create World in Hindi
आखिर ये दुनिया कैसे बनी, ये सवाल हमारे जेहन में अक्सर घूमता रहता है। इसी सवाल पर दुनिया के विभिन्न धर्मों ने ही नहीं, वैज्ञानिकों ने भी मंथन किया है। मशहूर वैज्ञानिक आइंसटाइन को भी यह सवाल मथता रहा है। उनके इस बारे में क्या विचार हैं, बता रहे है चर्चित विज्ञान पत्रकार संदीप जी:
मैं ये जानना चाहता हूं कि ये दुनिया आखिर भगवान ने कैसे बनाई। मेरी रुचि किसी इस या उस धार्मिक ग्रंथ में लिखी बातों पर आधारित किसी ऐसी या वैसी अदभुत और चमत्कारिक घटनाओं को समझने में नहीं है। मैं भगवान के विचार समझना चाहता हूं (1)।
किसी व्यक्तिगत भगवान का आइडिया एक एंथ्रोपोलॉजिकल कॉन्सेप्ट है, जिसे मैं गंभीरता से नहीं लेता (2)।
अगर लोग केवल इसलिए भद्र हैं, क्योंकि वो सजा से डरते हैं, और उन्हें अपनी भलाई के बदले किसी दैवी ईनाम की उम्मीद है, तो ये जानकर मुझे बेहद निराशा होगी कि मानव सभ्यता में दुनियाभर के धर्मों का बस यही योगदान रहा है।
किसी व्यक्तिगत भगवान का आइडिया एक एंथ्रोपोलॉजिकल कॉन्सेप्ट है, जिसे मैं गंभीरता से नहीं लेता (2)।
अगर लोग केवल इसलिए भद्र हैं, क्योंकि वो सजा से डरते हैं, और उन्हें अपनी भलाई के बदले किसी दैवी ईनाम की उम्मीद है, तो ये जानकर मुझे बेहद निराशा होगी कि मानव सभ्यता में दुनियाभर के धर्मों का बस यही योगदान रहा है।
मैं ऐसे किसी व्यक्तिगत ईश्वर की कल्पना भी नहीं कर पाता तो किसी व्यक्ति के जीवन और उसके रोजमर्रा के कामकाज को निर्देशित करता हो, या फिर वो, जो सुप्रीम न्यायाधीश की तरह किसी स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हो और अपने ही हाथों रचे गए प्राणियों के बारे में फैसले लेता हो। मैं ऐसा इस सच्चाई के बावजूद नहीं कर पाता कि आधुनिक विज्ञान के कार्य-कारण के मशीनी सिद्धांत को काफी हद तक शक का फायदा मिला हुआ है (आइंस्टीन यहां क्वांटम मैकेनिक्स और ढहते नियतिवाद के बारे में कह रहे हैं)। मेरी धार्मिकता, उस अनंत उत्साह की विनम्र प्रशंसा में है, जो हमारी कमजोर और क्षणभंगुर समझ के बावजूद थोड़ा-बहुत हम सबमें मौजूद है। नैतिकता सर्वोच्च प्राथमिकता की चीज है...लेकिन केवल हमारे लिए, भगवान के लिए नहीं (3)।
ऐसी कोई चीज ईश्वर कैसे हो सकती है, जो अपनी ही रचना को पुरस्कृत करे या फिर उसके विनाश पर उतारू हो जाए। मैं ऐसे ईश्वर की कल्पना नहीं कर सकता जिसके उद्देश्य में हम अपनी कामनाओं के प्रतिरूप तलाशते हैं, संक्षेप में ईश्वर कुछ और नहीं, बल्कि छुद्र मानवीय इच्छाओं का ही प्रतिबिंब है। मैं ये भी नहीं मानता कि कोई अपने शरीर की मृत्यु के बाद भी बचा रहता है, हालांकि दूसरों के प्रति नफरत जताने वाले कुछ गर्व से भरे डरावने धार्मिक विचार आत्माओं के वजूद को साबित करने में पूरी ताकत लगा देते हैं(4)।
मैं ऐसे ईश्वर को तवज्जो नहीं दे सकता जो हम मानवों जैसी ही अनुभूतियों और क्रोध-अहंकार-नफरत जैसी तमाम बुराइयों से भरा हो। मैं आत्मा के विचार को कभी नहीं मान सकता और न ही मैं ये मानना चाहूंगा कि अपनी भौतिक मृत्यु को बाद भी कोई वजूद में है। कोई अपने वाहियात अभिमान या किसी धार्मिक डर की वजह से अगर ऐसा नहीं मानना चाहता, तो न माने। मैं तो मानवीय चेतना, जीवन के चिरंतन रहस्य और वर्तमान विश्व जैसा भी है, उसकी विविधता और संरचना से ही खुश हूं। ये सृष्टि एक मिलीजुली कोशिश का नतीजा है, सूक्ष्म से सूक्ष्म कण ने भी नियमबद्ध होकर बेहद तार्किक ढंग से एकसाथ सम्मिलित होकर इस अनंत सृष्टि को रचने में अपना पुरजोर योगदान दिया है। ये दुनिया-ये ब्रह्मांड इसी मिलीजुली कोशिश और कुछ प्राकृतिक नियमों का उदघोष भर है, जिसे आप हर दिन अपने आस-पास बिल्कुल साफ देख और छूकर महसूस कर सकते हैं (5)।
वैज्ञानिक शोध इस विचार पर आधारित होते हैं कि हमारे आस-पास और इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी घटता है उसके लिए प्रकृति के नियम ही जिम्मेदार होते हैं। यहां तक कि हमारे क्रियाकलाप भी इन्हीं नियमों से तय होते हैं। इसलिए, एक रिसर्च साइंटिस्ट शायद ही कभी ये यकीन करने को तैयार हो कि हमारे आस-पास की रोजमर्रा की जिंदगी में घटने वाली घटनाएं किसी प्रार्थना या फिर किसी सर्वशक्तिमान की इच्छा से प्रभावित होती हैं (6)।
सच्चाई तो ये है कि मेरे धार्मिक विश्वासों के बारे में आप जो कुछ भी पढ़ते हैं, वो एक झूठ के अलावा कुछ और नहीं। एक ऐसा झूठ जिसे बार-बार योजनाबद्ध तरीके से दोहराया जाता है। मैं दुनिया के किसी पंथ या समूह के व्यक्तिगत ईश्वर पर विश्वास नहीं करता और मैंने कभी इससे इनकार नहीं किया, बल्कि हर बार और भी जोरदार तरीके से इसकी घोषणा की है। अगर मुझमें धार्मिकता का कोई भी अंश है, तो वो इस दुनिया के लिए असीमित प्रेम और सम्मान है, जिसके कुछ रहस्यों को विज्ञान अब तक समझने में सफल रहा है (7)।
‘कॉस्मिक रिलिजन’ का ये एहसास किसी ऐसे व्यक्ति को करवाना बेहद मुश्किल है जो दुनियावी धर्मों के दलदल में गले तक धंसा हो और जो पीढ़ियों पुराने अपने धार्मिक विश्वास को छोड़, कुछ और सुनने तक को तैयार न हो। ऐसी ही धार्मिक अडिगता, हर युग के शिखर धर्म-पुरुषों की पहचान रही है, जिनके विश्वास तर्क आधारित नहीं होते, वो अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं के लिए कारण नहीं तलाशते, यहां तक कि कई धर्म-नेताओं को तो ऐसा भगवान भी स्वीकार्य नहीं होता जिसका आकार मानव जैसा हो। हम सब प्रकृति की संतानें हैं, जिनका जन्म प्रकृति के ही कुछ नियमों के तहत हुआ है, लेकिन अब हम प्रकृति के उन नियमों को ही अपना ईमान नहीं बनाना चाहते। कोई भी चर्च ऐसा नहीं है, जिनके आधारभूत उपदेशों में इन नियमों की बात की गई हो। मेरे विचार से इस सृष्टि को रचने वाले प्राकृतिक नियमों के प्रति लोगों में सम्मान की भावना उत्पन्न करना और इसे आने वाली पीढ़ियों तक प्रसारित करना ही कला और विज्ञान की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है (8)।
मैं एक पैटर्न देखता हूं तो उसकी खूबसूरती में खो जाता हूं, मैं उस पैटर्न के रचयिता की तस्वीर की कल्पना नहीं कर सकता। इसी तरह रोज ये जानने के लिए मैं अपनी घड़ी देखता हूं कि, इस वक्त क्या बजा है? लेकिन रोज ऐसा करने के दौरान एक बार भी मेरा ख्यालों में उस घड़ीसाज की तस्वीर नहीं उभरती जिसने फैक्ट्री में मेरी घड़ी बनाई होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि मानव मस्तिष्क फोर डायमेंशन्स (चार विमाएं – लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई या गहराई और समय) को एकसाथ समझने में सक्षम नहीं है, इसलिए वो भगवान का अनुभव कैसे कर सकता है, जिसके समक्ष हजारों साल और हजारों डायमेंशन्स एक में सिमट जाते हैं (9)।
इतनी तरक्की और इतने आधुनिक ज्ञान के बाद भी हम ब्रह्मांड के बारे में कुछ भी नहीं जानते। मानव विकासवाद की शुरुआत से लेकर अब तक अर्जित हमारा सारा ज्ञान किसी स्कूल के बच्चे जैसा ही है। संभवत: भविष्य में इसमें कुछ और इजाफा हो, हम कई नई बातें जान जाएं, लेकिन फिर भी चीजों की असली प्रकृति, कुछ ऐसा रहस्य है, जिसे हम शायद कभी नहीं जान सकेंगे, कभी नहीं (10)।
इतनी तरक्की और इतने आधुनिक ज्ञान के बाद भी हम ब्रह्मांड के बारे में कुछ भी नहीं जानते। मानव विकासवाद की शुरुआत से लेकर अब तक अर्जित हमारा सारा ज्ञान किसी स्कूल के बच्चे जैसा ही है। संभवत: भविष्य में इसमें कुछ और इजाफा हो, हम कई नई बातें जान जाएं, लेकिन फिर भी चीजों की असली प्रकृति, कुछ ऐसा रहस्य है, जिसे हम शायद कभी नहीं जान सकेंगे, कभी नहीं (10)।
मैं बार-बार कहता रहा हूं कि मेरे विचार से व्यक्तिगत ईश्वर की अवधारणा बिल्कुल बचकानी है। लेकिन मैं व्यावसायिक नास्तिकों के उस दिग्विजयकारी उत्साह में भागीदारी नहीं करना चाहता जो अपनी बात मनवाने के जुनून में भरकर नौजवानो से उनके धार्मिक विश्वासों को छुड़वाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। बल्कि, प्रकृति को समझने में अपनी बौद्धिक और मानवीय कमियों के साथ मैं विनम्रता भरे व्यवहार को प्राथमिकता दूंगा।
भविष्य का धर्म एक ‘कॉस्मिक रिलिजन’ होगा। ये दुनियाभर के व्यक्तिगत भगवानों की जगह ले लेगा और बिना तर्क के धार्मिक विश्वासों और तमाम धार्मिक क्रिया-कलापों, कर्म-कांडों को बेमानी कर देगा। ये प्राकृतिक भी होगा और आध्यात्मिक भी, ये उन अनुभवों से बने तर्कों पर आधारित होगा कि सभी प्राकृतिक और आध्यात्मिक चीजें इस तरह एक हैं जिनका समझा जा सकने वाला एक अर्थ है। ये जो कुछ भी मैं कह रहा हूं, इसका जवाब बौद्ध धर्म में है। अगर कोई ऐसा धर्म है जो भविष्य में आधुनिक वैज्ञानिक जरूरतों के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकता है, तो वो बौद्ध धर्म ही होगा। -अल्बर्ट आइंस्टीन
References-
(1) (The Expanded Quotable Einstein, Princeton University Press, 2000 p.202)
(2) (Albert Einstein, Letter to Hoffman and Dukas, 1946)
(3) (Albert Einstein,The Human Side, edited by Helen Dukas and Banesh Hoffman, Princeton University Press)
(4) (Albert Einstein, Obituary in New York Times, 19 April 1955)
(5) (Albert Einstein, The World as I See It)
(6) (Albert Einstein, 1936, The Human Side. Responding to a child who wrote and asked if scientists pray.)
(7) (Albert Einstein, 1954, The Human Side, edited by Helen Dukas and Banesh Hoffman, Princeton University Press)
(8) (The Expanded Quotable Einstein, Princeton University Press, p. 207)
(9) (The Expanded Quotable Einstein, Princeton University Press, 2000 p. 208)
(10) (The Expanded Quotable Einstein, Princeton University Press, Page 208)
बहुत सुन्दर वैचारिक आलेख -आभार !
Deleteसबकी अपनी अपनी सोच है।
Deleteकॉस्मिक रिलिजिन की यह परिकल्पना बहुत अपीलिंग है . तर्क से प्रभावित होने वाले मन को यह लेख बहुत पसन्द आया .सच तो यही है कि धर्म ,ईशवर यह सब मानव कल्पना का नतीजा है . प्राक्रितिक नियमों का पालन ही हमारा सर्वोच्च धर्म होना चाहिये. जब भी मैँ आसमान को देखती हूँ ,तो ब्रह्मांड की असीमितता का एह्सास पुलकित भी करता है और डराता भी है.धरती ब्रम्हान्ड की विशालता का कितना नगण्य ,कितना सूक्षम हिस्सा और फिर भी हमें कितना अहंकार है !
Delete--भगवान ने दुनिया कैसे बनाई ..इसका तो कोई ज़िक्र ही नहीं है??
Delete---सबका अपना अपना विचार है,==== बस यही विचार भगवान है.आइन्सटीन ने कहीं भी यह नहीं कहा कि भगवान नहीं है,चर्च, मन्दिर,मस्ज़िद में बसे धमकी देने वाले भगवान उन्हें मान्य नहीं हैं....पर.अपने ही बयान....
"लेकिन फिर भी चीजों की असली प्रकृति, कुछ ऐसा रहस्य है, जिसे हम शायद कभी नहीं जान सकेंगे, कभी नहीं (10)।"----वही रहस्य भगवान है जो भगवान ने ही बनाया व भगवान ही जाने। ---और अन्तिम कथन---
"अगर कोई ऐसा धर्म है जो भविष्य में आधुनिक वैज्ञानिक जरूरतों के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकता है, तो वो बौद्ध धर्म ही होगा। -अल्बर्ट आइंस्टीन " ---अर्थात धर्म व ईश्वर को वे नकार नहीं पाये,( आज तक कोई वैग्यानिक नहीं नकार पाया) एक धर्म(=बौद्ध) को मानना व्यक्तिगत बात है जो सिर्फ़ एक विचार ,सामयिक चिन्तन,गलत व भ्रम भी होसकता है।
aainstainji ne kabhi ''wed'' nahi pdhhe ya shayd 'bosji' ke sath wedo ka litrechar jarur 'churaya'jin 'wedo'ke vyakhyano me''om hirnygarbhaha sam_vart'tagre bhutsy jat...'aadi richao me''anrgi =urja ka 'sapekshta'sidhhant ' ko darshaya gaya hai ..jo ruchaye ''gaso ke tapmaniy ''vishLeshano''ka O'rdhwik 'Updhanat'mak 'darshan karati hai...ya aadishankarachary ke ''waidik tarko ko'nahi jana jin aadishnkaracharyji ne ''tathakthit 'dharmo ko 'tark shakti dwara ;parajit' kar ...japan;thayland; 'bhagne'' ko majbur kar diya..
Deleteसही कहा स्वामी जी ---वेदों के ज्ञान को आइन्स्टीन ने कभी नहीं जाना व पढ़ा ...अन्यथा वे जानते कि बौद्ध धर्म भी वैदिक ज्ञान की एक शाखा ही है...
DeletePehle mai mantramugdh hoti rahi ki ye itna perfect akhir likha kisne hai...!
DeleteEinstein ..!
It sounds just perfect to me..
rashmiji,hamse_charchh_kijiye_ham_apko_aainstain_jaise_'bhondu'Logo_ke_science_ka_kchhra_btate_hai,bataiye..bhaLa_' aankhe_drushy_ko_dekha_sakti_hai_Lekin_'khud_aapne'aap_ko_kyo_nahi_dekha_sakti_jabki_vo { aankhe }_dekhane_ke_Liye_hi_bani_hai_?????
Deleteबहुत सुन्दर आलेख -आभार !
DeleteDimag men khujli hone lagi. Aaabhar.
DeletePrerna Gupta, Lucknow
डाक्टर श्याम गुपता जी से पूरी तरह सहम्त हूँ। आस्था के आगे कुछ नही भले उसे कुछ भी कहो साई़स या भगवान ,जो देख लिया वो साई़स है जो अभी साईंस ने नही जाना ,नही देखा वही भगवान है। धन्यवाद।
Deleteसही कहा --कपिला जी...
DeleteDuniya me jitni bhi pragati huyi hai sab tathakathit Bhagwan ke banaye niyamo ke viruddh ja kar hi huyi hai. Tathakathit Bhagwan ke niyam maanane walo ke pass apna dimag nahi hota.
Deleteसही कहा मनोज, बस- यह दिमाग ही तो भगवान ने बनाया है।---विचारो, समझो और करो--भगवान को मानो या न मानो क्या फ़र्क पडता है.
Delete....and rashmi ji why einstein sounds you parfect----while he could not decide wheather God exists or not & succambed to one Dharm, like a common man;--- just because he is not Indian...but....
DeletePlease have a look at the following video also
Deletehttp://www.facebook.com/video/video.php?v=145687818790725
Its really amazing observation, many things in nature confirm to this series...
My cousin recommended this blog and she was totally right keep up the fantastic work!
Deleteसारगर्भित वैज्ञानिक आलेख। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
Deleteविचार::पूर्णता
Wow this is a great resource.. I’m enjoying it.. good article
Deleteविचारपूर्ण आलेख!
Deleteईश्वर कुछ और नहीं बल्कि क्षुद्र मानवीय इच्छाओं का ही प्रतिबिंब है।
Deleteआइन्स्टीन के इस कथन से मैं सहमत हूं।
आलेख के अंत में आइन्स्टीन ने बौद्ध धर्म का समर्थन किया है। मेरे विचार से आइन्स्टीन को बौद्ध धर्म कहने की बजाए बौद्ध दर्शन कहना चाहिए था। धर्म शब्द के साथ अपने आप आडंबर, पाखंड और कर्मकांड जुड़ ही जाता है।
बौद्ध दर्शन मानवतावादी और नास्तिक दर्शन है। समस्या तो यहीं आती है कि लोग दर्शन को समझ नहीं पाते और उसमें कर्मकांड जोड़कर उसे धर्म बना देते है।
जर्मनी के दार्शनिक हेन्स राइखेन बाख द्वारा वैज्ञानिक दर्शन का प्रतिपादन किया जा चुका है।
मैं आशा करता हूं कि भविष्य का धर्म वैज्ञानिक धर्म होगा।
आज भी सबसे वैज्ञानिक धर्म व दर्शन --वैदिक दर्शन ही है....पढ़कर देखिये ...
Deletewah_shyamji_apke_vichharo_hetu_A'bhinandan__
Deleteलिंक कापी करके रख लिए हैं उन दोस्तों को भेजने के लिए जो हर बार आइंस्टीन की दुहाई देते हैं कि जब उन जैसा वैज्ञानिक भी भगवान को मानता है तुम्हे क्या आपत्ति है?
Deleteमहेन्द्रजी, शायद आप धर्म व दर्शन का अर्थ ही नहीं जानते----धारयति इत धर्म --अर्थात जो मूल दर्शन अर्थात नियम, सिद्धान्त है, धारणा है--- वही धर्म है, धर्म और दर्शन एक ही हैं प्रथक नहीं, जो धर्म आप वर्णन कर रहे हैं, समझ रहे हैं वह ’रिलीजन’ या ’मज़हब’ है, धर्म नहीं...... वैग्यानिक दर्शन नाम की कोई वस्तु नहीं होती( चाहे बाख कहे या काख-राख ) क्योंकि दर्शन स्वयं में ही उच्च अवस्था का विग्यान है...
Deletewah_shyamji_apka'bhi'koi'jabab'nahi..congretsssss
DeleteI’ve recently started a blog, the information you provide on this site has helped me tremendously. Thank you for all of your time & work.
DeleteThanks for some quality points there. I am kind of new to online , so I printed this off to put in my file, any better way to go about keeping track of it then printing?
DeleteThis comment has been removed by the author.
Delete''jis'' jamane me ''vigyan ke pas ''''jada san_sadhan nahi the to ye log ''chand'' pe ja aaye .....Aaj jab ''bahut se san_sadhan'' hai to ye log chnd pe 'kyu'' ''kyu'' nahi ja rahe?
Delete''kya karn hai ki 'sansar me'''jitne bhi log hai 'unke 'chehare 'Alag_Alag 'hote hai .....lekin ''kutte'' sher'' billi''chidiya' koawe'unt jiraf ghdiyal ''ename '''Akjisa''na pahchan janewala ''kalewar hota hai...
Deleteस्वामी जी वो लोग आपस में पहचानते होंगें ....हम क्या जानें --आप क्या जाने ..आपको एक से लगते हैं ..
Delete'''''kya karan hai ki ''Aata pani se ''' bhigoya jata hai '''tel''' se ''kyo'' nahi
Deleteउसमें स्वाद लाने के लिए तेल व घी भी मिलाया जाता है....सिर्फ तेल व् घी में भी मांडा जाता है...
Delete''Aata aur ''tel'' dono jabki ''drav'' padartha hai''''budhhiwadiyo''btao
DeleteE=MC2 'anarji 'ak form se dusare form 'me jati hai...to 'sabase ' ...''starting'' me wo ''aayi kaha se/ sthiti ke bare me to bataya ''ut'patti' bhi batado yaro
Delete'''jo padarth ''sukshm_ti_sukshm hote hai''jab'' to ''unako'' ''dravy_man kise milata hai ''jo ki'' univars bhi bana de..
DeleteTHE UNIVERSE IS SO LARGE THAT NOWHERE IN THIS UNIVERSE HAS AWARENESS IN ABOUT US AND OUR LITTLE EARTH BUT THE THOUGHT AND THEORY OF 'EINSTEIN' IS APPLICABLE EVERYWHERE TO UNDERSTAND SOMETHING OF THIS UNIVERSE
Deleteआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति स्वर्गीय बटुकेश्वर दत्त जी की 51वीं पुण्यतिथि
Deleteऔर ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
bhagwan ne duniya kaise bnai ye aaj bhi rahasy hai... pr kya bhagwan ko dekha ya feel kiya hai
Deleteसही हे सरोज जी सब अपने तर्क का आधार हे
Deleteये सब डर है जो अपने अंन्दर विराजमान है बस कुछ नही,,,