धर्म,विज्ञान और अन्धविश्वास

धर्म,विज्ञान और अन्धविश्वास एक बार फिर - "बात निकली है तो दूर तलक जायेगी". अन्धविश्वास के विरुद्ध जागरूकता की हमारे ब्लौग्स पर ...

धर्म,विज्ञान और अन्धविश्वास


एक बार फिर - "बात निकली है तो दूर तलक जायेगी". अन्धविश्वास के विरुद्ध जागरूकता की हमारे ब्लौग्स पर शुरू हुई पहल और इसे धार्मिक चश्मे से देखने की कतिपय चेष्टा ने धर्म, विज्ञान और अन्धविश्वास के अंतर्संबंधों पर पुनर्दृष्टि डालने को प्रेरित किया.

स्वामी विवेकानंद ने कहा था - " जहाँ विज्ञान ख़त्म होता है, वहां से आध्यात्म आरम्भ होता है". शायद यह विज्ञान का धर्म और आध्यात्म के पीछे छुपे रहस्यों को वैज्ञानिक दृष्टि से देखने की सीमा को तो इंगित करता ही है, साथ ही इन रहस्यों की खोज के प्रयास की सतत भावना की भी.  (ध्यान रहे कि वास्तविक 'हिन्दू ह्रदय सम्राट' स्वामी विवेकानंद ने यहाँ 'धर्म' का नाम नहीं लिया है.)
अन्धविश्वास उन्मूलन की बात करते हुए हमें उसके मूल में भी जाने की जरुरत है, तभी समस्या की वास्तविक पहचान और उसका समाधान संभव हो पायेगा.

मेरे मत में, सभ्यता के आदि काल में अपने आस-पास की प्रकृति और परिवर्तनों से चमत्कृत होते मानव ने इसे किसी अदृश्य और अतिशक्तिशाली सत्ता का प्रभाव माना. इस प्रभाव ने उसे अपनी लघुता का बोध कराते हुए उस पराशक्ति के प्रति भय मिश्रित समर्पण का मनोवैज्ञानिक भाव प्रकट कराया. आदिम पाषाण पूजन, बलि, तंत्र-मन्त्र, जादू-टोने संभवतः इसी भावना की उपज थे. यही कारण है कि आज भी आदिम जनजातियों और उनके रीती-रिवाजों में श्रद्धा और आस्था के मूल में भय ही है. ऐसा सुसभ्य और अतिशिक्षित माने जाने वाले उच्च वर्ग में भी है, जो चाहे किसी भी धर्म से जुड़ा हो.

हर धर्म के धर्म-सुधार आन्दोलनों ने भय की इसी भावना का उन्मूलन कर 'प्रेम' के सिद्धांत का प्रादुर्भाव किया. ईसा मसीह का शैतान का भय छोड़ परमपिता परमेश्वर से प्रेम,  मोहम्मद साहब का मूर्ति-पूजा त्याग एक सर्वोच्च सत्ता के प्रति समर्पण, सनातन धर्म के अध्यात्म के द्वारा प्रेम के सिद्धांत का प्रतिपादन इसी सुधार आन्दोलन के द्वारा आदिम मान्यताओं को शास्त्रीय या सुसंस्कृत किये जाने का ही प्रयास था. हमारी परम्पराओं में नरबली से पशुबलि और पशु बलि से नारियल का समर्पण एक आदिम परंपरा के शास्त्रियकरण का ही उदाहरण है.

इतिहास साक्षी है कि भारत में पहली मूर्ति गौतम बुद्ध की बनी, और वो भी उनकी मृत्यु के 200 वर्षों बाद. ऐसा ही लगभग समस्त विश्व में रहा. फिर मोहम्मद साहब और गौतम बुद्ध आदि किस मूर्ति पूजा के विरोध की बात कर रहे थे !  जहाँ तक मैं समझता हूँ इन तमाम सुधार आन्दोलनों ने खुद से जुडाव के लिए मुख्यतः जनजातीय या कबीलाई लोगों को ही मुख्य लक्ष्य बनाया. वैसे ही जैसे आज मिशनरियां अपनी अधिकांश गतिविधियाँ जनजातीय इलाकों पर ही केन्द्रित रखती हैं. इन लोगों को कहीं तलवार के बल पर तो कहीं प्रेम से नए शास्त्रीय रूप से संशोधित 'जीवन-पद्धति' जिसने कालांतर में 'धर्म' का रूप ले लिया में दीक्षित कर लिया गया.

कई यूरोपीय देशों में इससे अस्वीकार करने वाली जनजातियाँ और सभ्यताएं तो बर्बरता से कुचल भी दी गयीं.  नई जीवन पद्धति को अपना चुकी ये जनजातियाँ अपनी आदिम परम्पराओं और मान्यताओं को पूर्णतः छोड़ नहीं पाईं.  जिसका परिणाम बौद्ध धर्म की परिणति के रूप में ही समझा जा सकता है. जिस तंत्र-मन्त्र और कर्मकांड के विरोध में यह धर्म अस्तित्व में आया वो खुद 100 वर्ष के अन्दर ही इसी अंतर्द्वंद में 2 भागों में टूट गया, और इसकी एक शाखा ने तंत्र साधना को ही आराधना का माध्यम बना लिया. इस विडम्बना का शिकार कमोबेश हर धर्म को होना पड़ा.

हिंसा, घृणा, क्रोध जैसे आदिम मनोभावों की तरह वहम, अन्धविश्वास आदि भाव भी पीढी-दर-पीढी हमारे अंतर्मन में कहीं गहरे स्थापित हो चुके हैं, जो कभी भी मानसिक दुर्बलता के क्षणों में हमारे मष्तिस्क पर हावी हो जाते हैं.

मेरे विचार से अन्धविश्वास को एक मनोवैज्ञानिक समस्या मान इसके वैज्ञानिक समाधान की जरुरत तो है ही, 'धर्मों' जो आज पुनः कर्मकांड जैसी जटिलताओं में जकड़ते नजर आ रहे हैं, को एक नए सुधार आन्दोलन द्वारा परिष्कृत कर मानव जाति को एक नई राह दिखाने की भी आवश्यकता है.

अंत में प्रभु ईसु के शब्दों में-
"झूठे भविष्यवक्ताओं से बचो. वे तुम्हारे पास सरल भेड़ों के रूप में आते हैं किन्तु भीतर से वे खूंखार भेड़िये होते हैं. तुम उन्हें उनके कर्मों के परिणामों से पहचानोगे. "
(कहीं किसी हालिया ब्रेकिंग न्यूज़ की याद तो नहीं आ रही न आपको!)
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'तस्‍लीम' में पढें - 'क्‍या खूबसूरत होना लता का जुर्म है? (और अब भूत पहेली)'
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COMMENTS

BLOGGER: 27
  1. बिलकुल सही कहा है आपने अगर लोग धरम और अध्यात्म के फर्क को जान लें तो दुनिया स्वर्ग बन जाये फिर ये अँध विश्वास भी नहीं रहेंगे आभार्

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  2. स्वामी जी का आध्यात्म से तात्पर्य दर्शन से था। दर्शन ने सदैव विज्ञान को दिशा दी है और विज्ञान ने प्रकृति को समझा और उस के नियमों को खोजा है। विज्ञान ने दर्शनों को बदला है।
    स्वामी जी ने तो यह भी कहा था कि धर्मों को विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए। लेकिन कोई धर्म इस बात को मानता है क्या?

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  3. @दिनेशराय द्विवेदी
    सही कहा द्विवेदी जी आपने. आधुनिक धर्माधिकारी तो अपने-अपने धर्मों को विज्ञान और तर्कों की सीमाओं से परे मान बैठे हैं.

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  4. धर्म और अध्यात्म की खिचड़ी बना कर परोसना ही बाबा लोगों की दुकान चलवा रहा है.

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  5. स्वामी विवेकानन्द की उन्मेषी दृष्टि ने अध्यात्म को जीवन की संश्लिष्ट चेतना से संयुक्त कर दिया था । विवेकानन्द के बहाने अच्छे विषय पर बेहतर आलेख । धन्यवाद ।

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  6. धर्म और विज्ञानं की अपनी-अपनी व्याख्याएँ है ,यह बहस तो चलती ही रहेगी .

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  7. 'मेरे विचार से अन्धविश्वास को एक मनोवैज्ञानिक समस्या मान इसके वैज्ञानिक समाधान की जरुरत तो है ही, 'धर्मों' जो आज पुनः कर्मकांड जैसी जटिलताओं में जकड़ते नजर आ रहे हैं, को एक नए सुधार आन्दोलन द्वारा परिष्कृत कर मानव जाति को एक नई राह दिखाने की भी आवश्यकता है.'
    अभिषेक जी , बहुत प्रभावित किया आपके इस समन्‍वयवादी आलेख और खासकर उपरोक्‍त वाक्‍य ने .. बिल्‍कुल सही लिखा आपने .. कहा जाता है कि मेहनत करो , तो सफलता मिलेगी .. पर मेहनत के बावजूद किसी को सफलता नहीं मिल पाती .. किसी के जीवन का पूर्वार्द्ध सुखमय होता है और किसी के जीवन का उत्‍तरार्द्ध .. प्रकृति में इसका भी एक कारण होता है .. पर जबतक इसका कारण हमलोग नहीं समझ पाएंगे .. किसी अदृश्‍य शक्ति के प्रति आकर्षित होने की संभावना बनी रहेगी .. और मानव मन कमजोर बना रहेगा .. पर यदि प्रकृति का यह रहस्‍य हमारी समझ में आ जाए .. तो अंधविश्‍वास का खात्‍मा हो सकता है .. और इसी दिशा में 'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' का प्रयास जारी है ।

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  8. aankhen khol dene wala aalekh !
    mukammal aalekh !
    umda aalekh !
    badhaai !

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  9. Ager log samjhne lage ki Dharma kya hai aur Adhaytm kya hai to hindustaan ke adhe se zyada baba log BE-ROJGAAR ho jayenge...

    apne bahut achhi post likhi hai...

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  10. अगर हम अपने चारों ओर अगर ईमानदारी से देखें, तो हमारे चारों ओर धर्म कम आडम्‍बर ज्‍यादा छा गया है। और सारी गडबडी इसी वजह से होती है।

    अभिषेक जी, इस संतुलित आलेख के लिए बधाई।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  11. आपने पॉप अप एड्स लगाये हैं, उनसे कुछ आमदनी होने वाली नहीं लगाना ही है तो बैनर लगा दीजिये सम्भावना बढ़ेगी।

    धन्यवाद!

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  12. धर्म = दिव्य गुणों को धारण करना ही धर्म है। विज्ञान सामान्यतयाः जड़ वस्तुओं/प्रकृति पर अनुसन्धान करता है, जबकि धर्म/अध्यात्म चेतन/पुरुष/आत्मा पर अनुसंधान करता है।

    शेष कर्मकाण्ड पूजा, नमाज, प्रार्थना आदि विभिन्न विधियाँ हैं ईश्वर के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने की। कालक्रम में काफी पाखण्ड मिश्रित हो गए।

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  13. विवेकानन्द ने सही कहा था--जहां विग्यान समाप्त होताहै वहां से अध्यात्म ( हां सही शब्द --अध्यात्म, आध्यात्म नहीं )प्रारम्भ होता है। वस्तुतः विग्यान सिर्फ़ द्रश्य बस्तुओं का ही विश्लेषण, व ग्यान कराता है, शेष अद्रश्य का सिर्फ़ अनुमान व स्पेकुलशन ही करता है, यही अध्यात्म करता है ।(परन्तु वह मानवीय मूल्यों को साथ लेकर चलता है।ईश्वरीय भव लेकर ताकि विग्यान के प्रकाश के चकाचुन्ध मेंमानव दम्भी न होजाय।) यहां विग्यान ,अध्यात्म में समाहित होजाता है। सभी ग्यानी व प्रसिद्ध वैग्यानिक अन्तः अध्यात्म व ईश्वर की महत्ता के सामने नत मस्तक होते देखे गये हैं।
    धर्म वास्तव में मानवीय व्यवहार(-जो नैतिकता व मानव का मानव के प्रति सद व्यवहार है--)है। विभिन्न पद्दतियां देश, काल, आवश्यकतानुसार होतीं हैं।

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  14. स्वामी जी ने जिस धर्म और दर्शन की व्याख्या की थे उसको समझना ज़रूरी है और उसमे भेद करना भी जरूरी है........... आध्यात्म हर दर्म मरें है......... अछा लेखा है

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  15. are bhaaee naasawaa, ye ant men kyaa vaaky likhaa hai.

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  16. सारगर्भित ,ऐसा कुछ भी नहीं जिस पर आपत्ति की जाय -समग्र रूप से अनुमोदित ! ऐसे और लेखों की सतत आवश्यकता है !

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  17. अभी मई के पहले सप्‍ताह में ही यह दावे से कहा जा सकता है कि 14-15जून को इस बार मानसून का आरंभ बडे ही जोरदार तरीके से होगा , यानि भयंकर गर्जन और चमक के साथ आंधी , पानी , तूफान सब एक साथ आएंगे। इसका असर दो चार दिन पहले से भी देखा जा सकता है।
    'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' ka eak aur dava jhutha nikla

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  18. एनोनिमस जी के प्रत्युत्तर में संगीता जी की यह प्रतिक्रिया जो किसी कारणवश उनसे पब्लिश नहीं हो पाई, उन्होंने मुझे भेज दी. जिसे यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ :-
    "अनोनिमसजी .. यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप इतने ध्‍यान से मेरी भविष्‍यवाणियों को पढते हें .. बहुत जल्‍द ही आप गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष को मानने लगेंगे .. क्‍योंकि मेरे पिताजी ने भी ज्‍योतिष के विरोध में ही पत्र पत्रिकाओं में लिखना शुरू किया था .. पर बाद में इसकी वैज्ञानिकता की झलक पा लेने से अपन पूरा जीवन इसी विषय पर समर्पित कर दिया .. व्‍यावसायिक तौर पर नहीं .. सिर्फ अध्‍ययन मनन तक ही सीमित रहे ये .. मैने अवश्‍य लिखा था कि "समूद्री तूफान या मैदानी चक्रवात के होने से पूरे भारतवर्ष के मौसम में अचानक परिवर्तन ला देने वाली घटना हर वर्ष छह आठ बार हुआ करती हैं।" .. और इसी आधार पर हमलोग मौसम की भविष्‍यवाणी करते है .. इसमें मानसून आने या न आने की कोई बात नहीं होती .. पर चूंकि मौसम विभाग के अनुसार जून के मध्‍य में मानसून आने की बात कही गयी थी .. इसलिए मैने लिखा कि "14-15जून को इस बार मानसून का आरंभ बडे ही जोरदार तरीके से होगा , यानि भयंकर गर्जन और चमक के साथ आंधी , पानी , तूफान सब एक साथ आएंगे। इसका असर दो चार दिन पहले से भी देखा जा सकता है।" अब आइला तूफान के अचानक आ जाने से इस मामले में मौसम विभाग का दावा गलत हो गया .. पर मेरा नहीं माना जा सकता .. क्‍योंकि 14-15 जून के के विशेष योग के प्रभाव से थोडे छोटे स्‍तर पर ही सही .. तीन चार दिन पहले से ही यानि 10 जून से लेकर 17 जून तक खासकर 14-15-16 जून तक मैदानी चक्रवात बनता रहा .. धूल धक्‍कड और आंधी तूफान के साथ पानी बरसात होती रही .. .. नहीं तो गूगल सर्च में मुझे इस दौरान के मौसम के इतने पन्‍ने कैसे मिल सकते थे .. यदि एक क्षेत्र में इतनी बात हो तो दूसरे क्षेत्र के न प्रभावित होने का प्रश्‍न ही नहीं है .. जरा आप भी नजर डालें ...

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  19. जरा आप भी नजर डालें ...
    बारिश से सुकून, उमस से बेहाल
    बूंदाबांदी से अच्छी बारिश की उम्मीद
    बारिश से मौसम बना खुशगवार
    अमरनाथ यात्रा मार्ग पर भूस्खलन में एक की मौत, पांच घायल
    अमरनाथ यात्रा खराब मौसम के कारण रुकी
    मानसून पूर्व गतिविधियों से अच्छी खासी बारिश
    हाड़ौती में बारिश, गर्मी से राहत
    उत्तर भारत में धूल भरी आंधी
    गर्मी, आंधी और बारिश
    अंधड़ ने मचाया आतंक ओले भी गिरे, पेड़ उखड़े
    जमकर बरसेंगे बादल
    बारिश के दौर के चलते शुरू हुई बुवाई
    शहर में झमाझम, गांव भी भीगे
    बारिश के साथ ओलों की बौछार
    बरसे मेघा, मिली राहत
    डेढ़ घंटे में 6 इंच बारिश
    आंधी, बारिश और ओले
    प्रदेशभर में अंधड़, ओले और बारिश
    हवा में उड़ी छत, ढही दीवारें
    अंधड़-बारिश ने बरपाया कहर अंचल में २ मासूम समेत ६ लोगों की मौत
    सागर के बंगला पान पर मौसम की मार
    अंधड़ ने मचाई तबाही
    टीन-टप्पर उड़े वृक्ष धराशायी
    जोधपुर के मथानिया कस्बे में बाढ जैसे हालात
    देर रात अंधड़ व बारिश
    उम्मीदों पर ओलावृष्टि
    बारिश ने दी हिमाचल में गर्मी से राहत
    रेत की आंधी, साए में शहर
    बारिश से मिली राहत
    भीगा भोपाल
    आंधी ने की सब ओर बर्बादी
    आसमान से बरसी राहत की बूंदे
    आसमान में उड़े छप्पर
    और ये रहा इनका वेब पता ....
    http://www.bhaskar.com/2009/06/15/0906150817_comfort_from_the_rain_heat_from_behal.html
    http://pratahkal.com/index.php?option=com_content&task=view&id=80458
    http://www.bhaskar.com/2009/06/15/0906150203_rain_in_bhopal.html
    http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_5550696.html
    http://in.jagran.yahoo.com/news/local/jammuandkashmir/4_10_5554707.html
    http://hindi.samaylive.com/news/22211/22211.html
    http://www.bhaskar.com/2009/06/16/0906160314_good_rain_in_madhya_pradesh.html
    http://www.bhaskar.com/2009/06/17/0906170216_hadhuti_in_the_rain_relief_from_the_heat.html
    http://www.bhaskar.com/business/article.php?id=16951
    http://www.bhaskar.com/2009/06/14/0906140356_rain_in_chooru.html
    http://www.bhaskar.com/2009/06/13/0906130731_threat_of_storm_and_downed_snowball_at_sagar.html
    http://pratahkal.com/index.php?option=com_content&task=view&id=80255
    http://pratahkal.com/index.php?option=com_content&task=view&id=80255
    http://www.bhaskar.com/2009/06/17/0906170325_rain_in_ajmer.html
    http://www.bhaskar.com/2009/06/16/0906160724_rain_in_chooru.html
    http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4641680.cms
    http://www.bhaskar.com/2009/06/15/0906150725_6_inch_and_a_half_hours_in_the_rain.html
    http://www.bhaskar.com/2009/06/16/0906160658_mansoon_in_pali.html
    http://www.bhaskar.com/2009/06/14/0906140741_uri_air_in_the_roof_walls_dhi.html
    http://pratahkal.com/index.php?option=com_content&task=view&id=80004
    http://www.bhaskar.com/2009/06/16/0906160531_storm_in_kota.html
    http://www.khaskhabar.com/showstory.php?storyid=3750
    http://pratahkal.com/index.php?option=com_content&task=view&id=80053
    http://pratahkal.com/index.php?option=com_content&task=view&id=79953
    http://www.bhaskar.com/2009/06/14/0906140629_snow_fall_in_hanumangarh.html
    http://hindi.samaylive.com/news/21579/21579.html
    ज्‍योतिष को माननेवालों को जहां मेरा यह जवाब संतुष्‍ट करेगा .. वही ज्‍योतिष को न मानने वाले इसे थोथी दलील भी समझ सकते हें .. उनके लिए मै यही कह सकती हूं कि क्‍या किसी दूसरी तिथि को भी इतने आंधी तूफान और बारिश हुए हैं ? इसके बारे में इतने सटीक ढंग से इतने लिंक दिए जा सकते हैं ?

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  20. जवाब थोडा विस्तृत होने की वजह से दो भागों में विभक्त कर पब्लिश करना पड़ा है.

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  21. शायद तथ्यात्मक गलती भी है , बुद्ध से पहले -सप्त्मात्रिका,त्रिमात्रिका आदि व अन्य नारी मूर्तियां, हरप्पा में बन चुकीं थीं। सूर्य की स्तोने मुर्ति की पुजा भी बहुत प्रागेतिहासिक समय से भारत में होरही हई।

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  22. (डॉ. श्याम जी, आपने जिस विषय पर ध्यान खिंचा है मैं उनपर अपनी राय रख रहा हूँ.Transliterator के ठीक से काम न कर पाने के कारण कुछ शब्दों की अस्पष्टता के लिए खेद है.)

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  23. @ डॉ. श्याम गुप्ता
    आपसे पूर्णतः सहमत हूँ कि मूर्ति पूजा के प्रमाण पूर्व में भी मिलते हैं. मैंने भी प्रश्न रखा है कि "फिर मोहम्मद साहब और गौतम बुद्ध आदि किस मूर्ति पूजा के विरोध की बात कर रहे थे!" कुरान में भी कहा गया है कि - "क्या तुम उन्हें पूजते हो जिन्हें स्वयं तराशते हो !....."
    'ओल्ड टेस्टामेंट' में भी हजरत मूसा ने 'व्यवस्था विवरण' में निर्देश दिया है कि- " ... किसी जीवित के रूप में किसी का प्रतिक या मूर्ति न बनाओ. ऐसी मूर्तियाँ न बनाओ जो किसी पुरुष या स्त्री के सदृश्य हों..."
    गौतम बुद्ध ने भी अपने शिष्य आनंद को अपनी प्रतिमा बनाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. स्पष्ट है कि मूर्ति पूजा किसी - न - किसी रूप में समस्त विश्व में विद्यमान थी. प्रश्न यह उठता है कि क्या यह 'मूर्ति पूजा' वही थी, जिस रूप में यह आज देखि जाती है?
    मेरी समझ में इस 'मूर्ति पूजा' के सूत्र प्राकैतिहसिक सभ्यता से जुड़े हुए हो सकते हैं, जो 'मात्रसत्तात्मक' भी थी. यह सभ्यता कालांतर में कई अन्य महत्वपूर्ण सभ्यताओं की नींव भी बनी. वह सभ्यता जिसके लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं, मगर जो सम्पूर्ण विश्व में विद्यमान रही है, के सम्बन्ध में अनुवर्ती शास्त्रीय धर्मग्रन्थ (हर धर्म के) रहस्यमय चुप्पी साधे हुए हैं. ये उनकी कुछ परम्पराओं का प्रतिकार तो करते हैं, परन्तु लिपि का अविष्कार होने के बाद भी पूर्ववर्ती सभ्यताओं पर विस्तार से प्रकाश डालने से बचते रहे हैं. मुझे नहीं पता ऐसा क्यों किया गया और इन रहस्यों पर से आवरण हटाना उचित है या अनुचित; परन्तु इन पर एक समग्र विमर्श तो होना ही चाहिए. इस दिशा में आप जैसे विज्ञ जनों द्वारा प्रकाश डाला जाना हमारी जानकारी में वृद्धि करने में भी सहायक होगा.

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  24. अभिषेक जी, मेरे विचार से मूर्ति पूजा के सूत्र प्रागेतिहासिक सभ्यता से नहीं हैं, क्योंकि तब मानव प्राक्रतिक शक्तियों --बादल, इन्द्र,सूर्य,वरुण,मित्र ,अग्नि आदि की पूजा करता था। वेदों, उपनिशदों तक में मूर्ति पूजा के प्रमाण नहीं मिलते।तब शायद मूर्ति कला का विकास नहीं हुआ होगा। परिवर्ती साहित्य-पुराणों आदि ंमें अवश्य हैं।
    महाराजा दशरथ के महल में-सूर्य व विष्णु की प्रतिमा का होना,सिन्धुघाटी सभ्यता में मात्रिकाओंकी मूर्तियां,रावण द्वारा देवी एवम शिव् लिन्ग पूजा, अभी हाल तक ओर शायद अभी भी ग्राम देवी,वन देवी पूजा उसी कडी में हें । । वस्तुतः वेदिक समाज़ स्वयम- ईश्वर वादी,पुरुषार्थ्वादी, एक ईश्वर की पूजा में विश्वास वाला समाज़ था जिसे वे ब्रह्म,पर ब्रह्म आदि कहते थे। बाद मेंविश्व के सभी समुदायों में, शायद-महाजलप्लावन, आदि प्राक्रतिक आपदाओं के भय से इन शक्तियों के मानवीय रूप गढ कर पूजा प्रारम्भ की,जिसमेकालान्तर में( युगों बाद ) तत्कालीन अवान्छनीय तत्वों के सम्मिलित होने से स्थिति खराव होने पर आलोचना से ,कुरान आदि जो अत्यन्त बाद के एकेश्वर बादी धर्म/समाज़ हें एवम प्रतिक्रिया स्वरूप अस्तित्व में आये,ने मूर्ति पूजा पर प्रश्न उठाये। बौद्ध धर्म तो स्वयम ही अनीश्वर बादी धर्म है।
    लिखित साक्ष्य कहां होंगे, तब लेखन का विकास कहां हुआ होगा। अनुवर्ती हिन्दू धर्म ग्रन्थों में तो इसके तमाम साक्ष्य मिलते हें। पुराण, एतिहासिक ग्रन्थ, काव्य ग्रन्थ,रामायण आदि सभी में। अन्य मिश्र आदि प्राचीन सभ्यताओं के ग्रन्थों में भी ये साक्ष्य हैं । बाद में विजेता जातियों ने, विजित समाज़ों, धर्मॊ, देशों के इतिहास को नष्ट करके वह कार्य किया जिसका आप पता पूछ रहे हैं।

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  25. आपदाओं से सिर्फ़ भय के साथ मैं यहां पर , प्रेम, विश्वास व श्रद्धा भी जोडना चाहूंगा ।

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  26. @ डॉ. श्याम गुप्ता
    आपकी टिप्पणियों से कुछ बातें निश्चित रूप से स्पष्ट हुईं. धन्यवाद. इस चर्चा ने मेरी जिज्ञासा थोडी और बढा दी है. मेरी समझ में वेदों का संकलन लिपी के आविष्कार के बाद हुआ होगा, जो निश्चित रूप से ज्ञान और अध्यात्म के शीर्ष पर पहुँच चुकी सभ्यता की ही देन रही होगी.और
    यह कार्य रहा होगा आर्यों का ही.
    मैंने सुना है कि पूर्ववर्ती अनार्यों का जिनके निवास स्थल 'पुर' का जिक्र शायद वेदों में है, परन्तु उनकी सभ्यता संस्कृति के बारे में विस्तार से वर्णन संभव होने पर भी नहीं है. ऐसा क्या 'विजेता' का भाव होने की वजह से है?
    यदि वेदों को आदिग्रंथ मान लें और तमाम अनुवर्ती सभ्यताओं, धर्मों को उनका परवर्ती मान कर देखें तो कहानी बिलकुल स्पष्ट हो जाती है, मगर लगता नहीं कि कहानी इतनी सीधी है.
    पौराणिक उदाहरण से ही इसे यदि थोडा और स्पष्ट करने का प्रयास करूँ तो अनार्य रावण की सभ्यता जिन अनुसंधानों के बल पर रावण को उच्च कोटि का ज्योतिष, वैज्ञानिक (अन्य गुणों के अलावे) बनाने में सक्षम हुई क्या उसके स्रोत के सम्बन्ध में वेदों में कोई संकेत हैं ! यदि नहीं तो उसपर मौन का कारण क्या है! या फिर यह बाद में की गई छेड़खानी का नतीजा है, जिसका संकेत आपने भी दिया है.
    कृप्या मेरी इस जिज्ञासा का भी समाधान करें.

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  27. अरविन्द जी,
    वस्तुतः आर्य-अनार्य, कर्म आधारित व्यवस्था थी। रावण स्वयम रिषिपुत्र था ,आर्य्पुत्र-परन्तु उसकी माता अनार्य भाव पर चलने वाले कुल की । उसने अनार्य भाव अपनाया।
    रावण स्वयम वेदों का ग्याता एवम वेदों का भाष्यकार, रावण संहिता का रचनाकार विद्वान था, परम शिव भक्त( शिव का अर्थ कल्याण-अर्थात कल्याण के विरुद्ध कर्म पर शिव-नाशक होजाते हैं), परन्तु ग्यानी का अहं सबसे घातक होता है,क्योंकि उसे कोई समझा नहीं सकता।शक्ति के मद में वह अनाचारी हुआ और उचित अन्त को प्राप्त।
    अनार्यों के पुरों का पुराणों में वर्णन है,कभी वे आकाश में त्रिपुर -स्वर्ण, रज़त, ताम्र मन्ज़िलों वाले-ज़िसे स्वयम शिवजी ने नष्ट किया व त्रिपुरारी कहलाये । कभी जल के अन्दर, कभी अद्रश्य--ये सभी अति-भौतिक उन्नत सभ्यतायें थीं, जिन्हें उनकी अमानवीयता,अकल्याण्कारी व अनाचारी क्रत्योंके कारण, जन बल समर्थित,बुद्धिबल का समुचित प्रयोगवाले आर्यों के द्वारा नष्ट किया गया ,क्योंकि अति भौति उन्नति, अति सुखमयता, विलासिता ,मदान्ध-आलस्य को जन्म देती है, जहां एक चूहा भी शेर के नख कुतर् कर उसे नकाम बना देता है। बाल्मिकि रामायण, रामचरित मानस आदि में लन्का का व्रहद वर्णन है। वस्तुतः वेदों व हिन्दू शास्त्रों कामुगलों से पहले, मुगल् व अन्ग्रेज़ी काल में काफ़ी विनाश हुआ। बाद में आधे अधूरे वेदों आदि का कुछ अन्ग्रेज़ों ने खोज्बीन का श्रेय लिया। कुछ पन्ने ही आपके पास हैं।

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- दर्शन लाल बावेजा,1,- बी एस पाबला,1,-Dr. Prashant Arya,2,-अंकित,4,-अंकुर गुप्ता,7,-अभिषेक ओझा,2,-अल्पना वर्मा,22,-आशीष श्रीवास्‍तव,2,-इन्द्रनील भट्टाचार्जी,3,-काव्या शुक्ला,2,-जाकिर अली ‘रजनीश’,56,-जी.के. अवधिया,6,-जीशान हैदर जैदी,45,-डा प्रवीण चोपड़ा,4,-डा0 अरविंद मिश्र,26,-डा0 श्‍याम गुप्‍ता,5,-डॉ. गुरू दयाल प्रदीप,8,-डॉ0 दिनेश मिश्र,5,-दर्शन बवेजा,1,-दर्शन लाल बवेजा,7,-दर्शन लाल बावेजा,2,-दिनेशराय द्विवेदी,1,-पवन मिश्रा,1,-पूनम मिश्रा,7,-बालसुब्रमण्यम,2,-योगेन्द्र पाल,6,-रंजना [रंजू भाटिया],22,-रेखा श्रीवास्‍तव,1,-लवली कुमारी,3,-विनय प्रजापति,2,-वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई),81,-शिरीष खरे,2,-शैलेश भारतवासी,1,-संदीप,2,-सलीम ख़ान,13,-हिमांशु पाण्डेय,3,.संस्‍था के उद्देश्‍य,1,।NASA,1,(गंगा दशहरा),1,100 billion planets,1,2011 एम डी,1,22 जुलाई,1,22/7,1,3/14,1,3D FANTASY GAME SPARX,1,3D News Paper,2,5 जून,1,Acid rain,1,Adhik maas,1,Adolescent,1,Aids Bumb,1,aids killing cream,1,Albert von Szent-Györgyi de Nagyrápolt,1,Alfred Nobel,1,aliens,1,All india raduio,1,altruism,1,AM,18,Aml Versha,1,andhvishwas,5,animal behaviour,1,animals,1,Antarctic Bottom Water,1,Antarctica,9,anti aids cream,1,Antibiotic resistance,1,arunachal pradesh,1,astrological challenge,1,astrology,1,Astrology and Blind Faith,1,astrology and science,1,astrology challenge,1,astronomy,4,Aubrey Holes,1,Award,4,AWI,1,Ayush Kumar Mittal,1,bad effects of mobile,1,beat Cancer,1,Beauty in Mathematics,1,Benefit of Mother Milk,1,benifit of yoga,1,Bhaddari,1,Bhoot Pret,3,big bang theory,1,Binge Drinking,1,Bio Cremation,1,bionic eye Veerubhai,1,Blind Faith,4,Blind Faith and Learned person,1,bloggers achievements,1,Blood donation,1,bloom box energy generator,1,Bobs Award,1,Breath of mud,1,briny water,1,Bullock Power,1,Business Continuity,1,C Programming Language,1,calendar,1,Camel reproduction centre,1,Carbon Sink,1,Cause of Acne,1,Change Lifestyle,1,childhood and TV,1,chromosome,1,Cognitive Scinece,1,comets,1,Computer,2,darshan baweja,1,Deep Ocean Currents,1,Depression Treatment,1,desert process,1,Dineshrai Dwivedi,1,DISQUS,1,DNA,3,DNA Fingerprinting,1,Dr Shivedra Shukla,1,Dr. Abdul Kalam,1,Dr. K. 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