पर शुरू करते हैं एक छोटे से प्रयोग से। तो उठाइए अखबार का एक पन्ना (लेकिन पहले घर के सब लोगों से पूछ लीजिए कि उसे पढ़ लिया है, ताकि घर में बव...
पर शुरू करते हैं एक छोटे से प्रयोग से। तो उठाइए अखबार का एक पन्ना (लेकिन पहले घर के सब लोगों से पूछ लीजिए कि उसे पढ़ लिया है, ताकि घर में बवाल न मचे!)। आपको इस अखबार के कागज को 10 बार मोड़ना है। आप सोचेंगे, इसमें क्या मुश्किल है, अखबार का कागज इतना पतला है कि यह तो आसानी से हो जाना चाहिए।
तो देर किस बात की, शुरू कीजिए उसे मोड़ना। आपको उसे मोड़ना है दस बार।
आप कितनी बार मोड़ पाए?
रुकिए, मैं बताता हूं – आठ बार? या शायद नौ बार? इतनी ही बार हम भी मोड़ पाए।
आइए देखते हैं, ऐसा क्यों हुआ। इसे समझने के लिए आपको चरघातांकी वृद्धि नामक गणितीय अवधारणा के बारे में कुछ जानना होगा।
जब अखबार के कागज को एक बार मोड़ते हैं, कागज की दो तहें बनती हैं। इन दो तहों को फिर मोड़ते हैं, तो चार तहें बनती हैं (2 x 2)। तीन बार मोड़ने पर आठ तहें बनती हैं (2 x 2 x 2)। चार बार मोड़ने पर 16 तहें (2 x 2 x 2 x 2) – देख रहे हैं, तहों की संख्या कितनी तेजी से बढ़ रही है? पांच मोड़, तहों की संख्या हुई 32। छह, 64। सात, 128। आठ, 256। नौ, 512। और (बाप रे!) दस, 1,024!
अब पता चला कि आप नौ से ज्यादा बार कागज को क्यों नहीं मोड़ पाए? दसवीं बार मोड़ने पर आप 512 तहों को मोड़कर 1,024 तहें बनाने की कोशिश कर रहे थे। प्रत्येक बार जब आप मोड़ें, तहों की संख्या 2 से गुणित हो रही थी।
इस कागज वाले प्रयोग से आपको विदित हो गया होगा कि किसी राशि को दुगना करते जाने से हमें बहुत बड़ी बड़ी संख्याएं मिलने लगती हैं। इस तरह बढ़नेवाली संख्याओं को चरघातांकी संख्याएं कहा जाता है। दैनंदिन के अनुभव की अनेक चीजों के अध्ययन में संख्याओं की इस तरह की वृद्धि देखी जाती है। उदाहरण के लिए जनसंख्या वृद्धि।
मनुष्य की आबादी चरघातांकी दर से बढ़ती है। उस पल से जब प्रथम मनुष्य इस धरा पर प्रकट हुआ था और उस पल तक जब उसकी आबदी 1 अरब हुई, 25 लाख वर्ष का फासला था। यह लगभग 1800 ईस्वीं में हुआ, यानी करीब 1800 ईस्वीं में मानव आबादी 1 अरब के बराबर हुई। इस आबादी को दुगना होकर 2 अरब होने के लिए एक और 25 लाख वर्ष नहीं लगे, बल्कि मात्र 130 वर्ष ही लगे, यानी 1930 तक मनुष्य की आबादी 2 अरब हो गई थी। और इन दो अरब मनुष्यों को एक बार फिर दुगना होकर 4 अरब मनुष्य होने में केवल 44 साल लगे, यानी 1974 तक यह हो गया।
उसके बाद से हमारी आबादी के दुगना होने की रफ्तार कुछ धीमी हुई है। विश्व की आबादी अब लगभग 6.5 अरब के बराबर है। और उसके 8 अरब (यानी 1974 के 4 अरब का दुगना) होने की संभावना 2030 तक नहीं है। इसका गणित से कोई संबंध नहीं है। बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, गर्भनिरोधन के अनके तरीके उपलब्ध हो जाने, लोगों के देर से शादी करने, अधिक संख्या में लोगों के कुंवारा रहने, आदि अनेक कारणों से जनसंख्या वृद्धि की दर कम हुई है।
आइए चरघातांकी वृद्धि के कुछ और आम-फहम उदाहरण देखते हैं।
विपणन (मार्केटिंग) की एक अति सामान्य तकनीक शृंखलात्मक विपणन है। यह कुछ इस तरह से होता है। हर व्यक्ति को तीन या चार अन्य व्यक्तियों को कुछ सामान बेचना होता है। इनमें से प्रत्येक व्यक्ति को भी अन्य तीन या चार व्यक्तियों को बेचना होता है। इस तरह कुछ ही समय में बहुत बड़ी संख्या में लोगों को सामान बेचा जा सकता है। एमवे आदि इसी पद्धति का अनुसरण करते हैं।
चरघातांकी वृद्धि को समझानेवाला एक लोकप्रिय उदाहरण यह कहानी है, सुनिए।
एक बार एक कलाकार ने अपने देश के राजा को शतरंज का एक सुंदर पटल भेंट किया। आप जानते ही हैं, शतरंज के पटल में 64 वर्ग होते हैं। राजा को वह इतना पसंद आया कि उसने कलाकार से कहा, इसके बदले तुम जितनी स्वर्ण मुद्राएं चाहो मांग लो।
कलाकार चालाक था। उसने कहा, शतरंज के इस पटल के पहले वर्ग में मैं एक स्वर्ण मुद्रा रखता हूं। अगले वर्ग में उससे दुगना, यानी दो स्वर्ण मुद्राएं, उसके अगले वर्ग में इससे दुगना, यानी चार मुद्राएं रखता हूं, इस तरह रखते जाने पर आखिरी वर्ग में जितनी मुद्राएं होंगी, उतनी स्वर्ण मुद्राएं आप मुझे दे दें।
राजा ने बिना सोचे-समझे कहा, इसमें क्या बड़ी बात है, और उसने कोषाध्यक्ष को बुलाकर गणना करके उतनी स्वर्ण मुद्राएं कलाकार को दे देने का आदेश जारी कर दिया।
शुरू-शुरू में तो कोई दिक्कत नहीं आई, पर जल्द ही राजा को पता चल गया कि कलाकार की बात मानना संभव नहीं है। 21 वें वर्ग में स्वर्ण मुद्राओं की संख्या 10 लाख से अधिक हो जाती है, और 42 वें वर्ग में वह एक खरब से अधिक। इस तरह 64 वें वर्ग में जितनी स्वर्ण मुद्राएं होती हैं, उतने एक राज्य में तो क्या पूरी दुनिया में भी नहीं हो सकतीं।
तो यह चरघातांकी वृद्धि का एक रोचक उदाहरण था।
एक और उदाहरण लीजिए।
किसी राज्य में एक बहुत बड़ा तालाब था। वही उस राज्य का मुख्य जल-स्रोत भी था। हुआ यह कि कहीं से उस तालाब में जल-कुंभी नामक जल पौधा पनपने लगा। पहले उसके एक-दो पौधे ही थे, और वे इस बड़े तालाब के एक छोटे से अंश को ही ढंक रहे थे, पर हर रोज वे दुगने क्षेत्र पर फैल जाते थे। उस देश के राजा ने इस खतरे को गंभीरता से नहीं लिया, और जल-कुंभी फैलती रही। आखिर एक दिन तालाब के ठीक आधे हिस्से को उस पौधे ने ढंक लिया।
राजा अब भी नहीं चेता। उसने सोचा अभी तो आधा तालाब ही ढंका गया है, अभी भी वक्त है। मैं आनेवाले दिनों में कुछ करूंगा।
पर अब कुछ न हो सकता था क्योंकि अगले ही दिन वह पौधा पूरे तालाब को ढंक लेनेवाला था।
हमारे शरीर में रोगाणुओं की वृद्धि भी चरघातांकी तरीके से ही होती है, उसी तरह जैसे तालाब में जल-कुभी फैली थी। पहले एक दो रोगाणु ही पहुंचते हैं शरीर में। ये हर कुछ समय में दुगने होते रहते हैं और थोड़े ही समय में इतने बढ़ जाते हैं कि हम बीमार हो जाते हैं।
तो है न गणित की यह अवधारण मजेदार?
तो देर किस बात की, शुरू कीजिए उसे मोड़ना। आपको उसे मोड़ना है दस बार।
आप कितनी बार मोड़ पाए?
रुकिए, मैं बताता हूं – आठ बार? या शायद नौ बार? इतनी ही बार हम भी मोड़ पाए।
आइए देखते हैं, ऐसा क्यों हुआ। इसे समझने के लिए आपको चरघातांकी वृद्धि नामक गणितीय अवधारणा के बारे में कुछ जानना होगा।
जब अखबार के कागज को एक बार मोड़ते हैं, कागज की दो तहें बनती हैं। इन दो तहों को फिर मोड़ते हैं, तो चार तहें बनती हैं (2 x 2)। तीन बार मोड़ने पर आठ तहें बनती हैं (2 x 2 x 2)। चार बार मोड़ने पर 16 तहें (2 x 2 x 2 x 2) – देख रहे हैं, तहों की संख्या कितनी तेजी से बढ़ रही है? पांच मोड़, तहों की संख्या हुई 32। छह, 64। सात, 128। आठ, 256। नौ, 512। और (बाप रे!) दस, 1,024!
अब पता चला कि आप नौ से ज्यादा बार कागज को क्यों नहीं मोड़ पाए? दसवीं बार मोड़ने पर आप 512 तहों को मोड़कर 1,024 तहें बनाने की कोशिश कर रहे थे। प्रत्येक बार जब आप मोड़ें, तहों की संख्या 2 से गुणित हो रही थी।
इस कागज वाले प्रयोग से आपको विदित हो गया होगा कि किसी राशि को दुगना करते जाने से हमें बहुत बड़ी बड़ी संख्याएं मिलने लगती हैं। इस तरह बढ़नेवाली संख्याओं को चरघातांकी संख्याएं कहा जाता है। दैनंदिन के अनुभव की अनेक चीजों के अध्ययन में संख्याओं की इस तरह की वृद्धि देखी जाती है। उदाहरण के लिए जनसंख्या वृद्धि।
मनुष्य की आबादी चरघातांकी दर से बढ़ती है। उस पल से जब प्रथम मनुष्य इस धरा पर प्रकट हुआ था और उस पल तक जब उसकी आबदी 1 अरब हुई, 25 लाख वर्ष का फासला था। यह लगभग 1800 ईस्वीं में हुआ, यानी करीब 1800 ईस्वीं में मानव आबादी 1 अरब के बराबर हुई। इस आबादी को दुगना होकर 2 अरब होने के लिए एक और 25 लाख वर्ष नहीं लगे, बल्कि मात्र 130 वर्ष ही लगे, यानी 1930 तक मनुष्य की आबादी 2 अरब हो गई थी। और इन दो अरब मनुष्यों को एक बार फिर दुगना होकर 4 अरब मनुष्य होने में केवल 44 साल लगे, यानी 1974 तक यह हो गया।
उसके बाद से हमारी आबादी के दुगना होने की रफ्तार कुछ धीमी हुई है। विश्व की आबादी अब लगभग 6.5 अरब के बराबर है। और उसके 8 अरब (यानी 1974 के 4 अरब का दुगना) होने की संभावना 2030 तक नहीं है। इसका गणित से कोई संबंध नहीं है। बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, गर्भनिरोधन के अनके तरीके उपलब्ध हो जाने, लोगों के देर से शादी करने, अधिक संख्या में लोगों के कुंवारा रहने, आदि अनेक कारणों से जनसंख्या वृद्धि की दर कम हुई है।
आइए चरघातांकी वृद्धि के कुछ और आम-फहम उदाहरण देखते हैं।
विपणन (मार्केटिंग) की एक अति सामान्य तकनीक शृंखलात्मक विपणन है। यह कुछ इस तरह से होता है। हर व्यक्ति को तीन या चार अन्य व्यक्तियों को कुछ सामान बेचना होता है। इनमें से प्रत्येक व्यक्ति को भी अन्य तीन या चार व्यक्तियों को बेचना होता है। इस तरह कुछ ही समय में बहुत बड़ी संख्या में लोगों को सामान बेचा जा सकता है। एमवे आदि इसी पद्धति का अनुसरण करते हैं।
चरघातांकी वृद्धि को समझानेवाला एक लोकप्रिय उदाहरण यह कहानी है, सुनिए।
एक बार एक कलाकार ने अपने देश के राजा को शतरंज का एक सुंदर पटल भेंट किया। आप जानते ही हैं, शतरंज के पटल में 64 वर्ग होते हैं। राजा को वह इतना पसंद आया कि उसने कलाकार से कहा, इसके बदले तुम जितनी स्वर्ण मुद्राएं चाहो मांग लो।
कलाकार चालाक था। उसने कहा, शतरंज के इस पटल के पहले वर्ग में मैं एक स्वर्ण मुद्रा रखता हूं। अगले वर्ग में उससे दुगना, यानी दो स्वर्ण मुद्राएं, उसके अगले वर्ग में इससे दुगना, यानी चार मुद्राएं रखता हूं, इस तरह रखते जाने पर आखिरी वर्ग में जितनी मुद्राएं होंगी, उतनी स्वर्ण मुद्राएं आप मुझे दे दें।
राजा ने बिना सोचे-समझे कहा, इसमें क्या बड़ी बात है, और उसने कोषाध्यक्ष को बुलाकर गणना करके उतनी स्वर्ण मुद्राएं कलाकार को दे देने का आदेश जारी कर दिया।
शुरू-शुरू में तो कोई दिक्कत नहीं आई, पर जल्द ही राजा को पता चल गया कि कलाकार की बात मानना संभव नहीं है। 21 वें वर्ग में स्वर्ण मुद्राओं की संख्या 10 लाख से अधिक हो जाती है, और 42 वें वर्ग में वह एक खरब से अधिक। इस तरह 64 वें वर्ग में जितनी स्वर्ण मुद्राएं होती हैं, उतने एक राज्य में तो क्या पूरी दुनिया में भी नहीं हो सकतीं।
तो यह चरघातांकी वृद्धि का एक रोचक उदाहरण था।
एक और उदाहरण लीजिए।
किसी राज्य में एक बहुत बड़ा तालाब था। वही उस राज्य का मुख्य जल-स्रोत भी था। हुआ यह कि कहीं से उस तालाब में जल-कुंभी नामक जल पौधा पनपने लगा। पहले उसके एक-दो पौधे ही थे, और वे इस बड़े तालाब के एक छोटे से अंश को ही ढंक रहे थे, पर हर रोज वे दुगने क्षेत्र पर फैल जाते थे। उस देश के राजा ने इस खतरे को गंभीरता से नहीं लिया, और जल-कुंभी फैलती रही। आखिर एक दिन तालाब के ठीक आधे हिस्से को उस पौधे ने ढंक लिया।
राजा अब भी नहीं चेता। उसने सोचा अभी तो आधा तालाब ही ढंका गया है, अभी भी वक्त है। मैं आनेवाले दिनों में कुछ करूंगा।
पर अब कुछ न हो सकता था क्योंकि अगले ही दिन वह पौधा पूरे तालाब को ढंक लेनेवाला था।
हमारे शरीर में रोगाणुओं की वृद्धि भी चरघातांकी तरीके से ही होती है, उसी तरह जैसे तालाब में जल-कुभी फैली थी। पहले एक दो रोगाणु ही पहुंचते हैं शरीर में। ये हर कुछ समय में दुगने होते रहते हैं और थोड़े ही समय में इतने बढ़ जाते हैं कि हम बीमार हो जाते हैं।
तो है न गणित की यह अवधारण मजेदार?
बहुत सुंदर पोस्ट लिखा आपने .. इससे संबंधित सारी कहानियों को एक जगह एकत्रित कर देने से अवधारणा पूरी तरह साफ हो गयी है .. गणित की यह मजेदार अवधारणा है .. और इसके द्वारा किसी भी क्षेत्र में अनियंत्रित बढोत्तरी संभव है .. पर इसके बावजूद करोडो वर्षों से प्रकृति के हर जीव जंतु , विविध प्रकार के पादपों का अस्तित्व कायम है .. हर गुण , अवगुण और विशेषताओं का अस्तित्व कायम है .. इसका कारण भी यही अवधारणा मानी जा सकती है .. किसी भी चीज को दुगुणी कर पाने की एक सीमा होती है .. प्रकृति किसी भी चीज को 9 बार ही दुगुणी होने देती है .. दसवीं बार की कोशिश में उसका विनाश निश्चित है ।
ReplyDeleteबचपन में हम भी अखबार को मोड़ने वाला खेल खेलते थे... पर आज मालूम हुआ की इसे ९ बार से ज्यादा क्यूँ नहीं मोड़ सकते..
ReplyDeleteधन्यवाद.
संख्याओं के इस चक्रव्यूह में अच्छा उलझा दिया आपने. वैसे कल 'जनसँख्या दिवस' भी था, उसकी चर्चा भी प्रासंगिक रही.
ReplyDeleteयह जीवन का गणित है,इसके साथ-साथ --नेचुरल सिलेक्सन,सर्वाइवल ओफ़ फ़िटेस्ट व म्युटेसन द्वारा प्रक्रति नियमन करती रहती है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्याख्या।
aur isi prakaar kuchh chain link yojnaae chalaa kar log paise kamaa rahen hai!!!
ReplyDeleteab bilkul sahi baat hai, agar jyotish koi science hai, to ve khul kar predict kyo nahi karte.
ReplyDeleteAnd why do they publish their predictionsin paper.
Is it only the responsibility of scientists to bring the truth to the common people?
कहानी के ज़रिये गणित के एक रोचक रहस्य को समझा दिया.
ReplyDeleteरोचक और gyanvardhak post के लिए धन्यवाद .
शृंखलात्मक विपणन से इस देश में रोज़ करोड़ों के वारे-न्यारे हो रहे हैं.
ReplyDeleteजानकारी भरी पोस्ट ,धन्यवाद.
ReplyDeletebahut hi achhi jankari rahi.
ReplyDeleteपहले कुछ रूसी किताबें आया करती थी। रोचक भौतिकी और रोचक गणित। उसकी शैली भी ऐसी ही हुआ करती थी। आज याद आ गई उनकी।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी।
अगली बार आप दाब और बल के हवाले से कैंची से काटने की प्रक्रिया और धार करने के कारणों के बारे में भी बता सकते हैं।
बहुत रोचक
ReplyDeleteआपके इस पोस्ट के दौरान बहुत ही अच्छी जानकारी प्राप्त हुई उसके लिए धन्यवाद!
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