इन संख्याओं पर ध्यान दीजिए – 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34 ... प्रथम दो संख्याओं को छोड़कर बाकी सब संख्याओं में एक विशेषता है, वे उनसे पहले...
इन संख्याओं पर ध्यान दीजिए – 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34 ...
प्रथम दो संख्याओं को छोड़कर बाकी सब संख्याओं में एक विशेषता है, वे उनसे पहले की दो संख्याओं के योग के बराबर हैं। यथा
2 = 1+1
3 = 2+1
5 = 3+2
8 = 5 + 3
प्राचीन काल में भारत में एक गणितज्ञ हुए थे, जिनका नाम था पिंगल। कहते हैं वे विख्यात संस्कृत वैय्याकरण पाणिनी के भाई थे। इस तरह वे ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के हुए। पिंगल ने एक ग्रंथ रचा, छंदससूत्र। इसमें उन्होंने संस्कृत में आए छंदों में ह्रस्व और दीर्घ वर्णों की आवृत्ति के क्रम का विश्लेषण किया है। यह विश्लेषण करते समय उन्हें उपर्युक्त प्रकार की संख्याओं के बारे मे पता चला। उन्होंने इन संख्याओं को मात्रामेरु नाम दिया।
उनके बाद के अनेक भारतीय गणितज्ञों ने भी संख्याओं के इस क्रम पर विस्तार से लिखा है। इनमें प्रमुख हैं गोपाल (1135 ईस्वीं), हेमचंद्र (1150 ईस्वीं), आदि।
भारतीय गणित की यह अवधारणा अरबों के माध्यम से यूरोप पहुंची। वहां एक इतालवी गणितज्ञ ने इस तरह की संख्याओं को आधुनिक गणित की शब्दावली में प्रस्तुत किया। इनका नाम था फिबोनाकी। इनका समय हेमचंद्र से 70 वर्ष बाद का है। इन्होंने छंद शास्त्र के संबंध में नहीं बल्कि आदर्श स्थिति में खरगोशों की संतानोत्पत्ति के संदर्भ में इन संख्याओं की व्याख्या की।
आजकल ये संख्याएं इस इतालवी गणितज्ञ के नाम से फिबोनाकी संख्याओं के रूप में ही अधिक जानी जाती हैं। ये काफी रोचक संख्याएं हैं। आइए इनकी कुछ विशेषताओं के बारे में जानें।
फिबोनाकी श्रेणी में हर तीसरी संख्या सम होती है, अर्थात उसे 2 से विभाजित किया जा सकता है।
फिबोनाकी श्रेणी में केवल 144 ऐसी संख्या है जिसका वर्गमूल है (12)।
ज्यामिति के साथ भी इन संख्याओं का घनिष्ट संबंध है, जैसे, समकोण त्रिभुजों में कर्ण की लंबाई और अन्य दो भुजाओं की लंबाई कई बार फिबोनाकी क्रम में होती है।
किन्हीं दो क्रमागत फिबोनाकी संख्याओं का अनुपात 1.6180... के निकट की कोई संख्या होती है। इस अनुपाद को स्वर्ण अनुपात कहा जाता है। प्रकृति में इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं।
जिस आयत की छोटी और बड़ी भुजाओं का अनुपात स्वर्ण अनुपात में होता है (यानी 1 : 1.6180...) उस आयत को स्वर्ण आयत कहते हैं। बहुत से कलाकार मानते हैं कि इस आयत को दर्शानेवाली चीजें मनुष्य को सुंदर लगती हैं। इस संबंध में एक सर्वेक्षण भी किया गया था, और उसके परिणामों से भी इस बात की पुष्टि होती है। मनुष्य के आसपास की कई कलाकृतियों में हम इस तरह के आयतों को देख सकते हैं। एक उदाहरण सलीब (ईसाइयों द्वारा पवित्र माना जानेवाला क्रॉस) है। उसकी दोनों भुजाओं की लंबाइयां स्वर्ण अनुपात में होती हैं। एक अन्य उदाहरण क्रेडिट कार्ड है।
वास्तुकला, चित्रकारी, आदि में भी स्वर्ण आयतों के उदाहरण देखने को मिलते हैं। कई कलाकार अपनी रचनाओं को फिबोनाकी संख्याओं अथ्वा स्वर्ण अनुपात के अनुसार बनाने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, ल्योनार्डो डि वेन्सी की मशहूर पेंटिंग मोना लिसा के बारे में कहा जाता है कि वह स्वर्ण अनुपात को चरितार्थ करती है। कलाकारों का मानना है कि इस तरह गणितीय सटीकता से बनाई गई कला कृतियां लोगों को सुंदर लगती हैं।
प्रकृति में भी फिबोनाकी संख्याओं के उदाहरण खूब मिलते हैं। पर वहां सुंदरता से ज्यादा किफायत के कारण ऐसा देखा जाता है। पौधों में पत्तों, डालियों, पंखुड़ियों आदि की संख्याएं कई बार फिबोनाकी श्रेणी के अनुसार होती हैं। ऐसे फूलों की बहुतायत है जिनमें पंखुड़ियों की संख्या 3,5,8,13,21 आदि होती है, यानी फिबोनाकी संख्याओं के अनुसार। अनन्नास के कांटों का विन्यास भी फिबोनाकी श्रेणी में होता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस तरह की संख्याओं में पंखुड़ियां, पत्तियां आदि होने से उपलब्ध जगह का सबसे अच्छा उपयोग होता है, या सूर्यप्रकाश को अधिकतम मात्रा में सोखने के लिए यह सर्वोत्तम विन्यास होता है।
समुद्र में रहनेवाले कुछ तरह के जीवों के शंखों के घुमाव को स्वर्ण आयतों के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। इसका श्रेष्ठ उदाहरण नोटिलस नामक जीव का शंख है।
मनुष्य के शरीर में भी फिबोनाकी श्रेणी के उदाहरण मिलते हैं। अपने हाथ की किसी उंगली की हड्डियों पर गौर कीजिए, उनकी लंबाइयों को फिबोनाकी क्रम में पाएंगे। इसी तरह कुहनी से कलाई तक की और कलाई से उंगलियों के सिरे तक की लंबाई के बीच का अनुपात स्वर्ण अनुपात के नजदीक होता है।
गणित को नीरस और कठिन विषय बताया जाता है, पर वास्तव में वह बहुत रोचक चीज है। फिबोनाकी संख्याओं से परिचय पाकर आप भी इससे सहमत होंगे।
प्रथम दो संख्याओं को छोड़कर बाकी सब संख्याओं में एक विशेषता है, वे उनसे पहले की दो संख्याओं के योग के बराबर हैं। यथा
2 = 1+1
3 = 2+1
5 = 3+2
8 = 5 + 3
प्राचीन काल में भारत में एक गणितज्ञ हुए थे, जिनका नाम था पिंगल। कहते हैं वे विख्यात संस्कृत वैय्याकरण पाणिनी के भाई थे। इस तरह वे ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के हुए। पिंगल ने एक ग्रंथ रचा, छंदससूत्र। इसमें उन्होंने संस्कृत में आए छंदों में ह्रस्व और दीर्घ वर्णों की आवृत्ति के क्रम का विश्लेषण किया है। यह विश्लेषण करते समय उन्हें उपर्युक्त प्रकार की संख्याओं के बारे मे पता चला। उन्होंने इन संख्याओं को मात्रामेरु नाम दिया।
उनके बाद के अनेक भारतीय गणितज्ञों ने भी संख्याओं के इस क्रम पर विस्तार से लिखा है। इनमें प्रमुख हैं गोपाल (1135 ईस्वीं), हेमचंद्र (1150 ईस्वीं), आदि।
भारतीय गणित की यह अवधारणा अरबों के माध्यम से यूरोप पहुंची। वहां एक इतालवी गणितज्ञ ने इस तरह की संख्याओं को आधुनिक गणित की शब्दावली में प्रस्तुत किया। इनका नाम था फिबोनाकी। इनका समय हेमचंद्र से 70 वर्ष बाद का है। इन्होंने छंद शास्त्र के संबंध में नहीं बल्कि आदर्श स्थिति में खरगोशों की संतानोत्पत्ति के संदर्भ में इन संख्याओं की व्याख्या की।
आजकल ये संख्याएं इस इतालवी गणितज्ञ के नाम से फिबोनाकी संख्याओं के रूप में ही अधिक जानी जाती हैं। ये काफी रोचक संख्याएं हैं। आइए इनकी कुछ विशेषताओं के बारे में जानें।
फिबोनाकी श्रेणी में हर तीसरी संख्या सम होती है, अर्थात उसे 2 से विभाजित किया जा सकता है।
फिबोनाकी श्रेणी में केवल 144 ऐसी संख्या है जिसका वर्गमूल है (12)।
ज्यामिति के साथ भी इन संख्याओं का घनिष्ट संबंध है, जैसे, समकोण त्रिभुजों में कर्ण की लंबाई और अन्य दो भुजाओं की लंबाई कई बार फिबोनाकी क्रम में होती है।
किन्हीं दो क्रमागत फिबोनाकी संख्याओं का अनुपात 1.6180... के निकट की कोई संख्या होती है। इस अनुपाद को स्वर्ण अनुपात कहा जाता है। प्रकृति में इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं।
जिस आयत की छोटी और बड़ी भुजाओं का अनुपात स्वर्ण अनुपात में होता है (यानी 1 : 1.6180...) उस आयत को स्वर्ण आयत कहते हैं। बहुत से कलाकार मानते हैं कि इस आयत को दर्शानेवाली चीजें मनुष्य को सुंदर लगती हैं। इस संबंध में एक सर्वेक्षण भी किया गया था, और उसके परिणामों से भी इस बात की पुष्टि होती है। मनुष्य के आसपास की कई कलाकृतियों में हम इस तरह के आयतों को देख सकते हैं। एक उदाहरण सलीब (ईसाइयों द्वारा पवित्र माना जानेवाला क्रॉस) है। उसकी दोनों भुजाओं की लंबाइयां स्वर्ण अनुपात में होती हैं। एक अन्य उदाहरण क्रेडिट कार्ड है।
वास्तुकला, चित्रकारी, आदि में भी स्वर्ण आयतों के उदाहरण देखने को मिलते हैं। कई कलाकार अपनी रचनाओं को फिबोनाकी संख्याओं अथ्वा स्वर्ण अनुपात के अनुसार बनाने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, ल्योनार्डो डि वेन्सी की मशहूर पेंटिंग मोना लिसा के बारे में कहा जाता है कि वह स्वर्ण अनुपात को चरितार्थ करती है। कलाकारों का मानना है कि इस तरह गणितीय सटीकता से बनाई गई कला कृतियां लोगों को सुंदर लगती हैं।
प्रकृति में भी फिबोनाकी संख्याओं के उदाहरण खूब मिलते हैं। पर वहां सुंदरता से ज्यादा किफायत के कारण ऐसा देखा जाता है। पौधों में पत्तों, डालियों, पंखुड़ियों आदि की संख्याएं कई बार फिबोनाकी श्रेणी के अनुसार होती हैं। ऐसे फूलों की बहुतायत है जिनमें पंखुड़ियों की संख्या 3,5,8,13,21 आदि होती है, यानी फिबोनाकी संख्याओं के अनुसार। अनन्नास के कांटों का विन्यास भी फिबोनाकी श्रेणी में होता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस तरह की संख्याओं में पंखुड़ियां, पत्तियां आदि होने से उपलब्ध जगह का सबसे अच्छा उपयोग होता है, या सूर्यप्रकाश को अधिकतम मात्रा में सोखने के लिए यह सर्वोत्तम विन्यास होता है।
समुद्र में रहनेवाले कुछ तरह के जीवों के शंखों के घुमाव को स्वर्ण आयतों के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। इसका श्रेष्ठ उदाहरण नोटिलस नामक जीव का शंख है।
मनुष्य के शरीर में भी फिबोनाकी श्रेणी के उदाहरण मिलते हैं। अपने हाथ की किसी उंगली की हड्डियों पर गौर कीजिए, उनकी लंबाइयों को फिबोनाकी क्रम में पाएंगे। इसी तरह कुहनी से कलाई तक की और कलाई से उंगलियों के सिरे तक की लंबाई के बीच का अनुपात स्वर्ण अनुपात के नजदीक होता है।
गणित को नीरस और कठिन विषय बताया जाता है, पर वास्तव में वह बहुत रोचक चीज है। फिबोनाकी संख्याओं से परिचय पाकर आप भी इससे सहमत होंगे।
बालसुब्रमण्यम
Rochak jaankari di hai aapne, Badhai.
ReplyDeleteबहुत खूब !पहली बार जाना
ReplyDeleteरोचक लगी यह जानकारी शुक्रिया
ReplyDeleteबिलकुल सहमत है.
ReplyDeleteबस हमारी खोज दुसरे के नाम से जानी जाती है इससे घोर असहमति है.
बहुत अच्छी जान कारी है, पिन्गल- नाग वन्श के थे,पूरा नाम पिन्गल नाग भी था। वे मूलतः छन्द शास्त्र के आचार्य थे, छन्द शास्त्र को आज भी पिन्गल या पिन्गल शास्त्र, नाम से जाना जाता है।
ReplyDeleteमात्रा-मेरु,शास्त्रीय छन्द रचना का प्रमुख सूत्र है।
पुराने भारतीयों की एक और उपलब्धि सामने रखने के लिए धन्यवाद। इस अनुपात का संगीत और हॉर्मोनिक श्रेणी में भी दर्शन होता है।
ReplyDeleteलेकिन इसके नाम पर भी बहुत से अन्धविश्वास और क्षद्म विज्ञान पश्चिमी जगत में प्रचलित हैं। आप बताइए कि 12x16 (अनुपात 1.33 का कमरा अच्छा होगा या 12x19.5 (स्वर्ण अनुपात 1.61)का ?
जाहिर है इस अनुपात को हर जगह नहीं लगाया जा सकता। पश्चिम में तो पूरी की पूरी इमारतें तक इस अनुपात में बनाने के प्रयास हुए हैं। वे इमारतें कहीं से भी अत्युत्त्म श्रेणी में नहीं आतीं।
बहुत ही शानदारी अंकज्ञान दिया | लगता है वास्तुशास्त्री भी कहीं न कहीं घर के नक्शों में इन का उपयोग करते है !!!!
ReplyDeleteumda jaankaari !
ReplyDeleteBahut sundar aur rochak jjankari hai. Gadit itni rochak hai, pahli baar jaanaa.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
पिंगल को विस्मृत कर फिबोनाकी का प्रचलन अजीब लग रहा है । पिंगल पाणिनी के भाई थे, यह जानना सुखद है ।
ReplyDeleteअत्यन्त रोचक जानकारी ।
बहुत सुंदर जानकारी .. दरअसल हमारे देश में सब पंडित हैं .. अपने अपने सिद्धांतों पर अडिग रहनेवाले .. कोई किसी को समझने की कोशिश ही नहीं करता .. इसलिए तो हमारी सारी खोजें दूसरों के नाम से जानी जाती हैं।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteबहुत बढिया जानकारी प्रदान की आपने... पिंगल नाथ रचित छन्द शास्त्र में एक द्विअंकी सिद्धान्त भी है जिसके बलबूत ही आज विश्व में क्म्पयूटर युग का प्रारम्भ हो पाया है। इस सिद्धान्त को उन्होने विज्ञान और कला के एकात्म स्वरूप में प्रस्तुत किया है।
ReplyDeleteलेकिन कितना दुख होता है ये देखकर कि हमारे पूर्वजों के अर्जित ज्ञान का लाभ विदेशी उठा रहें हैं ओर हम लोगों को अन्धविश्वास-अन्धविश्वास चिल्लाने से ही फुर्सत नहीं मिलती। हमारी नजर में तो हमारे जितने भी प्राचीन शास्त्र हैं,परम्पराएं हैं सब के सब अन्धविश्वास हैं, जब कि विदेशी इन्ही तथाकथित अन्धविश्वासों में से अपने मतलब का ज्ञान खोजकर श्रेय ले जाते हैं।
बहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteरोचक जानकारी.
ReplyDeleteलियोनार्दो दा विंसी अपनी हर कलाकृति में यह अनुपात रखने का प्रयास करते थे। यह बात मैंने डिस्कवरी चैनल पर एक प्रोग्राम के दौरान सुनी थी। उसमें इसी अनुपात के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई थी। मैं व्यस्तता की वजह से उसे देख नहीं पाया लेकिन अब फिबोनाकी के बारे में पढ़कर सुखद अनुभूति हुई। आपने पिंगल के बारे में जो जानकारी दी है वह अमूल्य है।
ReplyDeleteआभार...
Pahli baar ye jankari mili hai...
ReplyDeleteअत्यंत रोचक और मेरे लिए नयी जानकारी. साधुवाद.
ReplyDeletejaankaari to bahut achahi hain... par ham chahte hain ki vishv is sach ko jane aur mane bhi.....us disha mein kadam uta kar parinaam laya jaye tabhi prayaas sarthak mana jana chaiye
ReplyDeleteडा विंसी कोड में पढ़ी बातें ताजा हो आयीं
ReplyDeleteउम्मीद है अंको के जादू और उनकी रोचकता के बारे में और पढने को मिलता रहेगा