ऐसे बहुत कम लोग होंगे जिन्हें अपनी ही मौत का समाचार पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ हो। नोबल शांति पुरस्कार के अधिष्ठाता एल्फ्रेड नोबल ऐसे एक व्यक...
ऐसे बहुत कम लोग होंगे जिन्हें अपनी ही मौत का समाचार पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ हो। नोबल शांति पुरस्कार के अधिष्ठाता एल्फ्रेड नोबल ऐसे एक व्यक्ति थे। इस समाचार ने उनकी जिंदगी ही बदलकर रख दी।
हुआ यों कि एल्फ्रेड के बड़े भाई का निधन हुआ था, पर अखबारनवीसों ने ज्यादा तहकीकात न करके यह मान लिया कि अधिक प्रसिद्ध एल्फ्रेड नोबल ही दिवंगत हुए हैं और उन्हीं की मृत्य की खबर छाप दी। खबर में उन्होंने एल्फ्रेड नोबल का संक्षिप्त परिचय भी दिया और कहा कि ये मौत के सौदागर के रूप में मशूहर थे। अखबारों ने यह टिप्पणी इसलिए की क्योंकि एल्फ्रेड नोबल ने डाइनामाइट सहित अनेक विस्फोटक पदार्थों का आविष्कार किया था, जिनका युद्धों में बड़े पैमाने पर उपयोग होने लगा था, और उनके कारण बहुत अधिक जन-क्षति हो रही थी।
यह टिप्पणी पढ़कर एल्फ्रेड का मन क्षोभ से भर उठा। उन्हें मौत का सौदागर कहलाना बिलकुल पसंद नहीं आया। उन्होंने उसी वक्त संकल्प कर लिया कि वे अपनी इस छवि को बदल डालेंगे।
एल्फ्रेड नोबल का जन्म 1883 में स्वीडन में स्टोकहोल्म के पास हुआ था। किशोरावस्था से ही वे अपने पिता की प्रयोगशाला में काम करने लगे थे। उन्हें नाइट्रोग्लिसरीन नामक तरल विस्फोटक में काफी रुचि थी। बहुत कम लोग इस खतरनाक विस्फोटक पर काम करना चाहते थे। वह बारूद से अधिक शक्तिशाली था पर वह कब कहां और कैसे फटेगा इसका अनुमान लगाना बिलकुल असंभव था। पर एल्फ्रेड को भरोसा था कि वे इस रसायन को साध सकेंगे और उससे सुरक्षित और नियंत्रित विस्फोट करा सकेंगे। अनेक प्रयोग करने के बाद उन्होंने एक तरकीब ढूंढ़ ही निकाली। वह था एक छोटा विस्फोट कराकर नाइट्रोग्लिसरीन में बड़ा विस्फोट कराना। एल्फ्रेड ने एक पात्र में थोड़ा नाइट्रोग्लिसरीन लिया और उसमें बारूद की एक छोटी पुड़िया रख दी। उस पुड़िया के साथ एक लंबी बत्ती भी जोड़ दी। अब बत्ती को सुलगाकर इस तामझाम में दूर से और सुरक्षित रूप से विस्फोट कराना संभव था। बारूद फटने से जो आघात होता था, उससे नाइट्रोग्लिसरीन में धमाका हो जाता था।
अनेक प्रयोगों के बाद एल्फ्रेड को विश्वास हो गया कि उनका यह आविष्कार काम में लगाने लायक बन गया है। वे उसे ब्लास्टिंग कैप कहते थे, और उसे अपनी प्रयोगशाला में बड़े पैमाने पर बनाने और बेचने लगे। पर उन्हें अब भी इसका अंदाजा नहीं हो पाया था कि यह तरल विस्फोटक कितना घातक है।
एक सुबह उनके छोटे भाई एमिल और कुछ अन्य लोग प्रयोगशाला में ब्लास्टिंग कैप बना रहे थे। अचानक नाइट्रोग्लिसरीन फट गया जिससे एमिल और चार व्यक्ति मारे गए। एक महीने बाद नाइट्रोग्लिसरीन ले जानेवाले एक जहाज में रखा नाइट्रोग्लिसरीन में विस्फोट हुआ जिससे 74 मरे। इसी तरह सान फ्रांसिस्को में एक गोदाम में भी विस्फोट हुआ जिसमें 14 लोग मारे गए। इस गोदाम में भी नाइट्रोग्लिसरीन रखा हुआ था। इस तरह के भीषण विस्फोटों में जर्मनी, न्यू योर्क और आस्ट्रेलिया में भी लोगों की जानें गईं।
इनमें से प्रत्येक मौत के लिए एल्फ्रेड को लगा कि मैं व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हूं, क्योंकि उनके ब्लास्टिंग कैप के कारण ही नाइट्रोग्लिसरीन का इतने व्यापक रूप से उपयोग होने लगा था। उन्होंने निश्चय किया कि वे नाइट्रोग्लिसरीन को अधिक सुरक्षित बनाने के लिए अपना जी-जान लगा देंगे। वे ऐसे किसी पदार्थ की खोज में जुट गए जिसे नाइट्रोग्लिसरीन में मिलाने से यह तरल अधिक सुरक्षित बन सके।
कठोर परिश्रम करके 1866 तक उन्होंने पता लगा लिया कि केइसेलगुहर नामक पदार्थ इसके लिए सबसे अच्छा है। केइसेलगुहर चिकनी मिट्टी जैसा एक पदार्थ है जो भूमि में मिलता है। वह अच्छा अवशोषक है। जिस तरह स्पंज पानी सोख लेता है, उसी तरह वह नाइट्रोग्लिसरीन को सोखकर पुट्टी जैसा बन जाता था। इस पुट्टी में ब्लास्टिंग कैप लगाकर एलफ्रेड ने विस्फोट कराकर देखा। उन्होंने पाया कि यद्यपि यह मिश्रण शुद्ध नाइट्रोग्लिसरीन जितना शक्तिशाली नहीं था, पर अधिक सुरक्षित था।
ऐल्फ्रेड ने इस पुट्टी को कागज में लिपटे हुए छड़ों का रूप दिया और उसका नाम डाइनामाइट रखा। बहुत जल्द वह दुनिया भर का सबसे पसंद का विस्फोटक बन गया। ऐल्फ्रेड रातों रात अत्यंत समृद्ध हो गए और लोर्ड डाइनामाइट कहलाने लगे।
डाइनामाइट के आविष्कार के बाद भी विस्फोटकों में एल्फ्रेड की रुचि बनी रही और उन्होंने अनेक नए विस्फोटकों का आविष्कार किया। इनमें से एक ब्लास्टिंग जेलाटिन है, जो डाइनामाइट से लगभग आधा शक्तिशाली होता है। इसका उपयोग करके आल्प्स पर्वत के नीचे चट्टानों को फोड़कर एक लंबी सुरंग बनाई गई। इस आवष्कार के बाद उन्होंने बैलिस्टाइट नामक एक और विस्फोटक बनाया। यह जल्द ही यूरोप भर की सेनाओं में उपयोग किया जाने लगा, जिसे देखकर एल्फ्रेड को बहुत दुख हुआ। वे युद्ध को सबसे बड़ा और अक्षम्य अपराध मानते थे।
इन खोजों के कारण अब तक एल्फ्रेड विध्वंस लानेवाली सामग्रियों के आविष्कारक के रूप में प्रसिद्ध होने लगे थे। पर उनकी प्रतिभा विस्फोटकों तक सीमित नहीं थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में 355 पेटेंट प्राप्त किए जो सब ऐसी चीजों के लिए थे, जिनसे मानव जाति का खूब फायदा पहुंचा। उदाहरण के लिए, उन्होंने हवाई फोटोग्राफी पर अनेक प्रयोग किए, साइकिल के लिए शिफ्ट गियर विकसित किया, और पेंट और वार्निश पर भी काम किया। उन्होंने टेलिफोन के कुछ पुर्जों को सुधारा, और कृत्रिम रेशम, चमड़ा और रबड़ बनाने पर भी दिमाग चलाया। उन्होंने वाटर-मीटर की भी खोज की, जिसका अब हर नगरपालिका द्वारा उपयोग किया जाता है।
जब वे अपनी प्रयोगशाला में काम नहीं कर रहे होते थे, एल्फ्रेड दुनिया भर में स्थित अपने मित्रों से पत्रव्यवहार करते रहते थे। वे छह भाषाएं बोल और लिख लेते थे। उन्होंने कविताएं और उपन्यास भी लिखे हैं।
उस दिन अखबार में अपनी ही मृत्यु का समाचार पढ़कर और उसमें अपना उल्लेख मौत के सौदागर के रूप में देखकर एल्फ्रेड ने निश्चिय किया कि वे अपनी बाकी की जिंदगी और अपनी अपार दौलत का उपयोग विश्व में शांति लाने के लिए करेंगे। उन्होंने एक मित्र को इस बारे में लिखा, “मैं इस विस्फोटक विश्व में शांति का गुलाब खिलाना चाहता हूं।”
एल्फ्रेड ने तय किया कि मैं अपनी सारी संपत्ति मानव जाति की भलाई के नाम कर दूंगा। उन्होंने सोचा कि ऐसा करने से वे शांति के दूत के रूप में याद किए जाएंगे, न कि मौत के सौदागर के रूप में।
एल्फ्रेड ने अपनी वसीयत में लिखा कि उनकी संपत्ति से भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, साहित्य और शांति के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करनेवाले व्यक्तियों को पुरस्कार दिया जाए। वे चाहते थे कि शांति का पुरस्कार हर साल किसी ऐसे व्यक्ति को दिया जाए जिसने, "विश्व के राष्ट्रों को अधिक निकट लाने के लिए, या राष्ट्रों की सेनाओं में सर्वाधिक कटौती लाने के लिए, या शांति सभाएं आयोजित करने के लिए, या शांति को बढ़ावा देने के लिए सबसे अच्छा काम किया हो।"
इन पुरस्कारों को नोबल पुरस्कार कहा गया। नोबल पुरस्कारों की पहली खेप 10 दिसंबर 1901 को दी गई, यानी एल्फ्रेड नोबल के निधन की पांचवी बरसी पर।
बहुत जल्द ये पुरस्कार दुनिया भर में मशहूर हो गए और उनके पीछे जो व्यक्ति था, उसे, यानी एल्फ्रेड नोबल को, सब लोग शांति के दूत के रूप में पहचानने लगे। इस तरह मौत के सौदागर से शांति का दूत बनने की एल्फ्रेड नोबल की अभिलाषा पूरी हो गई।
हुआ यों कि एल्फ्रेड के बड़े भाई का निधन हुआ था, पर अखबारनवीसों ने ज्यादा तहकीकात न करके यह मान लिया कि अधिक प्रसिद्ध एल्फ्रेड नोबल ही दिवंगत हुए हैं और उन्हीं की मृत्य की खबर छाप दी। खबर में उन्होंने एल्फ्रेड नोबल का संक्षिप्त परिचय भी दिया और कहा कि ये मौत के सौदागर के रूप में मशूहर थे। अखबारों ने यह टिप्पणी इसलिए की क्योंकि एल्फ्रेड नोबल ने डाइनामाइट सहित अनेक विस्फोटक पदार्थों का आविष्कार किया था, जिनका युद्धों में बड़े पैमाने पर उपयोग होने लगा था, और उनके कारण बहुत अधिक जन-क्षति हो रही थी।
यह टिप्पणी पढ़कर एल्फ्रेड का मन क्षोभ से भर उठा। उन्हें मौत का सौदागर कहलाना बिलकुल पसंद नहीं आया। उन्होंने उसी वक्त संकल्प कर लिया कि वे अपनी इस छवि को बदल डालेंगे।
एल्फ्रेड नोबल का जन्म 1883 में स्वीडन में स्टोकहोल्म के पास हुआ था। किशोरावस्था से ही वे अपने पिता की प्रयोगशाला में काम करने लगे थे। उन्हें नाइट्रोग्लिसरीन नामक तरल विस्फोटक में काफी रुचि थी। बहुत कम लोग इस खतरनाक विस्फोटक पर काम करना चाहते थे। वह बारूद से अधिक शक्तिशाली था पर वह कब कहां और कैसे फटेगा इसका अनुमान लगाना बिलकुल असंभव था। पर एल्फ्रेड को भरोसा था कि वे इस रसायन को साध सकेंगे और उससे सुरक्षित और नियंत्रित विस्फोट करा सकेंगे। अनेक प्रयोग करने के बाद उन्होंने एक तरकीब ढूंढ़ ही निकाली। वह था एक छोटा विस्फोट कराकर नाइट्रोग्लिसरीन में बड़ा विस्फोट कराना। एल्फ्रेड ने एक पात्र में थोड़ा नाइट्रोग्लिसरीन लिया और उसमें बारूद की एक छोटी पुड़िया रख दी। उस पुड़िया के साथ एक लंबी बत्ती भी जोड़ दी। अब बत्ती को सुलगाकर इस तामझाम में दूर से और सुरक्षित रूप से विस्फोट कराना संभव था। बारूद फटने से जो आघात होता था, उससे नाइट्रोग्लिसरीन में धमाका हो जाता था।
अनेक प्रयोगों के बाद एल्फ्रेड को विश्वास हो गया कि उनका यह आविष्कार काम में लगाने लायक बन गया है। वे उसे ब्लास्टिंग कैप कहते थे, और उसे अपनी प्रयोगशाला में बड़े पैमाने पर बनाने और बेचने लगे। पर उन्हें अब भी इसका अंदाजा नहीं हो पाया था कि यह तरल विस्फोटक कितना घातक है।
एक सुबह उनके छोटे भाई एमिल और कुछ अन्य लोग प्रयोगशाला में ब्लास्टिंग कैप बना रहे थे। अचानक नाइट्रोग्लिसरीन फट गया जिससे एमिल और चार व्यक्ति मारे गए। एक महीने बाद नाइट्रोग्लिसरीन ले जानेवाले एक जहाज में रखा नाइट्रोग्लिसरीन में विस्फोट हुआ जिससे 74 मरे। इसी तरह सान फ्रांसिस्को में एक गोदाम में भी विस्फोट हुआ जिसमें 14 लोग मारे गए। इस गोदाम में भी नाइट्रोग्लिसरीन रखा हुआ था। इस तरह के भीषण विस्फोटों में जर्मनी, न्यू योर्क और आस्ट्रेलिया में भी लोगों की जानें गईं।
इनमें से प्रत्येक मौत के लिए एल्फ्रेड को लगा कि मैं व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हूं, क्योंकि उनके ब्लास्टिंग कैप के कारण ही नाइट्रोग्लिसरीन का इतने व्यापक रूप से उपयोग होने लगा था। उन्होंने निश्चय किया कि वे नाइट्रोग्लिसरीन को अधिक सुरक्षित बनाने के लिए अपना जी-जान लगा देंगे। वे ऐसे किसी पदार्थ की खोज में जुट गए जिसे नाइट्रोग्लिसरीन में मिलाने से यह तरल अधिक सुरक्षित बन सके।
कठोर परिश्रम करके 1866 तक उन्होंने पता लगा लिया कि केइसेलगुहर नामक पदार्थ इसके लिए सबसे अच्छा है। केइसेलगुहर चिकनी मिट्टी जैसा एक पदार्थ है जो भूमि में मिलता है। वह अच्छा अवशोषक है। जिस तरह स्पंज पानी सोख लेता है, उसी तरह वह नाइट्रोग्लिसरीन को सोखकर पुट्टी जैसा बन जाता था। इस पुट्टी में ब्लास्टिंग कैप लगाकर एलफ्रेड ने विस्फोट कराकर देखा। उन्होंने पाया कि यद्यपि यह मिश्रण शुद्ध नाइट्रोग्लिसरीन जितना शक्तिशाली नहीं था, पर अधिक सुरक्षित था।
ऐल्फ्रेड ने इस पुट्टी को कागज में लिपटे हुए छड़ों का रूप दिया और उसका नाम डाइनामाइट रखा। बहुत जल्द वह दुनिया भर का सबसे पसंद का विस्फोटक बन गया। ऐल्फ्रेड रातों रात अत्यंत समृद्ध हो गए और लोर्ड डाइनामाइट कहलाने लगे।
डाइनामाइट के आविष्कार के बाद भी विस्फोटकों में एल्फ्रेड की रुचि बनी रही और उन्होंने अनेक नए विस्फोटकों का आविष्कार किया। इनमें से एक ब्लास्टिंग जेलाटिन है, जो डाइनामाइट से लगभग आधा शक्तिशाली होता है। इसका उपयोग करके आल्प्स पर्वत के नीचे चट्टानों को फोड़कर एक लंबी सुरंग बनाई गई। इस आवष्कार के बाद उन्होंने बैलिस्टाइट नामक एक और विस्फोटक बनाया। यह जल्द ही यूरोप भर की सेनाओं में उपयोग किया जाने लगा, जिसे देखकर एल्फ्रेड को बहुत दुख हुआ। वे युद्ध को सबसे बड़ा और अक्षम्य अपराध मानते थे।
इन खोजों के कारण अब तक एल्फ्रेड विध्वंस लानेवाली सामग्रियों के आविष्कारक के रूप में प्रसिद्ध होने लगे थे। पर उनकी प्रतिभा विस्फोटकों तक सीमित नहीं थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में 355 पेटेंट प्राप्त किए जो सब ऐसी चीजों के लिए थे, जिनसे मानव जाति का खूब फायदा पहुंचा। उदाहरण के लिए, उन्होंने हवाई फोटोग्राफी पर अनेक प्रयोग किए, साइकिल के लिए शिफ्ट गियर विकसित किया, और पेंट और वार्निश पर भी काम किया। उन्होंने टेलिफोन के कुछ पुर्जों को सुधारा, और कृत्रिम रेशम, चमड़ा और रबड़ बनाने पर भी दिमाग चलाया। उन्होंने वाटर-मीटर की भी खोज की, जिसका अब हर नगरपालिका द्वारा उपयोग किया जाता है।
जब वे अपनी प्रयोगशाला में काम नहीं कर रहे होते थे, एल्फ्रेड दुनिया भर में स्थित अपने मित्रों से पत्रव्यवहार करते रहते थे। वे छह भाषाएं बोल और लिख लेते थे। उन्होंने कविताएं और उपन्यास भी लिखे हैं।
उस दिन अखबार में अपनी ही मृत्यु का समाचार पढ़कर और उसमें अपना उल्लेख मौत के सौदागर के रूप में देखकर एल्फ्रेड ने निश्चिय किया कि वे अपनी बाकी की जिंदगी और अपनी अपार दौलत का उपयोग विश्व में शांति लाने के लिए करेंगे। उन्होंने एक मित्र को इस बारे में लिखा, “मैं इस विस्फोटक विश्व में शांति का गुलाब खिलाना चाहता हूं।”
एल्फ्रेड ने तय किया कि मैं अपनी सारी संपत्ति मानव जाति की भलाई के नाम कर दूंगा। उन्होंने सोचा कि ऐसा करने से वे शांति के दूत के रूप में याद किए जाएंगे, न कि मौत के सौदागर के रूप में।
एल्फ्रेड ने अपनी वसीयत में लिखा कि उनकी संपत्ति से भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, साहित्य और शांति के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करनेवाले व्यक्तियों को पुरस्कार दिया जाए। वे चाहते थे कि शांति का पुरस्कार हर साल किसी ऐसे व्यक्ति को दिया जाए जिसने, "विश्व के राष्ट्रों को अधिक निकट लाने के लिए, या राष्ट्रों की सेनाओं में सर्वाधिक कटौती लाने के लिए, या शांति सभाएं आयोजित करने के लिए, या शांति को बढ़ावा देने के लिए सबसे अच्छा काम किया हो।"
इन पुरस्कारों को नोबल पुरस्कार कहा गया। नोबल पुरस्कारों की पहली खेप 10 दिसंबर 1901 को दी गई, यानी एल्फ्रेड नोबल के निधन की पांचवी बरसी पर।
बहुत जल्द ये पुरस्कार दुनिया भर में मशहूर हो गए और उनके पीछे जो व्यक्ति था, उसे, यानी एल्फ्रेड नोबल को, सब लोग शांति के दूत के रूप में पहचानने लगे। इस तरह मौत के सौदागर से शांति का दूत बनने की एल्फ्रेड नोबल की अभिलाषा पूरी हो गई।
सुब्रमण्यम जी, अल्फ्रेड नोबल के बारे में कई रोचक बातें पहली बार पता चलीं। इस रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक पोस्ट के लिए बहुत बहुत आभार।
ReplyDeleteरोचक एवं ज्ञानवर्द्धक पोस्ट .. किसी भी घटना से प्रभावित होकर अपने सोंच का ढंग बदला जा सकता है !!
ReplyDeleteअरे मुझे यह आज पता चला, शुक्रिया!
ReplyDelete----
शैवाल (Algae): भविष्य का जैव-ईंधन
बहुत ही रोचक जानकारी मिली.उनके बारे में कभी ऐसा पहले नहीं सुना था.
ReplyDeleteधन्यवाद.
एल्फ्रेड नोबल के संबंध में इस रुचिकर और ज्ञानवर्धक जानकारी के लिये धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत हार्दिक आभार और धन्यवाद यह जानकारी देने के लिये
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें
बहुत अच्छी जानकारी बदलाव एक सेकेण्ड में ही आता है |
ReplyDeleteरोचक एवं ज्ञानवर्द्धक जानकारी मिली...धन्यवाद
ReplyDeleteरोचक एवं ज्ञानवर्द्धक पोस्ट .
ReplyDeleteaapko bahut bahut dhnyavaad
ReplyDeleteis adbhut jaankaari k liye
waah
waah
____anupam post !
Alfred Nobel ke bare mein kai nai baatein janane ko milin, Dhanyavad.
ReplyDeleteone of the best article..thanks for posting...
ReplyDeleteआपके पोस्ट के दौरान अच्छी जानकारी प्राप्त हुई ! इस रोचक पोस्ट के लिए बधाई !
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