समुद्र का पानी खारा क्यों? बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण पहले एक बुंदेली लोक कथा सुनिए। देवी ने प्रसन्न होकर एक बुढ़िया को एक चक्की दी ...
समुद्र का पानी खारा क्यों?
बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
पहले एक बुंदेली लोक कथा सुनिए।
देवी ने प्रसन्न होकर एक बुढ़िया को एक चक्की दी और कहा, तुम जो भी इच्छा करोगी, यह चक्की चलने लगेगी और तुम्हारे मन की चीज के पहाड़ के पहाड़ लगा देगी। लेकिन तुम अपनी जरूरत भर चीजें पाकर, यह मंत्र बुदबुदा देना और चक्की बंद हो जाएगी। बुढ़िया अपनी जरूरत के अनुसार चीजें चक्की से लेती और मंत्र बुदबुदाकर उसे बंद कर देती।
उन्हीं दिनों नगर में एक विदेशी व्यापारी आया था। वह इस तिलस्मी चक्की को ले उड़ा और अपने जल-जहाज में उसे लेकर भागने लगा। रास्ते में उसे अपने खाने के साथ नमक की जरूरत पड़ी। नमक जहाज में था नहीं। उसने चक्की से अपनी इच्छा प्रकट की। चक्की तुरंत चल उठी और नमक के पहाड़ के पहाड़ खड़े होने लगे। जहाज डूबने डूबने को हो आया लेकिन उसे चक्की बंद करने का मंत्र नहीं आता था। अंत में जहाज डूब गया और आज भी समुद्र के तल में चक्की लगातार चल रही है। समुद्र का पानी खारा होने का कारण भी यही है।
(पिरथवी भारी है, रमेशदत्त दुबे, 1995, नेशनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली, से साभार)
कैसी लगी यह कहानी? नहीं मजा आया? ठीक है, समुद्र का पानी खारा क्यों है के लिए वैज्ञानिक जो कहानी सुनाते है, अब उसे सुनाता हूं।
समुद्र में जो नमक है, उसका अधिकांश करोड़ों वर्षों के दौरान नदियों द्वारा वहां पहुंचाया गया है। जब समुद्र का पानी वाष्पीकृत होता है, तो वह हवा में उठकर बादल बन जाता है। यही बादल जमीनी इलाकों में पहुंचकर वर्षा के रूप में बरसता है। बरसते समय उसका संपर्क हवा में मौजूद कार्बन डाइआक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड आदि गैसों से होता है। ये गैसें पानी में घुल जाती हैं, जिससे वर्षा जल हल्का सा अम्लीय हो जाता है। जब यह अम्लीय जल चट्टानों और जमीन पर गिरता है, वह उनमें मौजूद लवणों को घुला लेता है। सतह से जब यह पानी बहकर नदियों में पहुंचता है, तो नदी के पानी में भी यह लवणांश आ जाता है, पर लवणांश बहुत कम होने से हमें नदी का पानी मीठा ही लगता है। नदियों का यह लवणयुक्त पानी समुद्रों में पहुंचता है। इस तरह धीरे-धीरे करोड़ों सालों से नदियों द्वारा लाया गया नमक समुद्रों में इकट्ठा होता आ रहा है।
समुद्रों के तल में भी चट्टानें मौजूद हैं, जिनके लवण भी समुद्र जल में घुलते रहते हैं। इसी तरह समुद्रों के नीचे ज्वालामुखियां भी हैं, जो भी समय-समय पर फटकर लावा और क्लोरीन, सल्फर डाइआक्साइड आदि गैसें छोड़ती रहती हैं। समुद्र में सोडियम आदि पदार्थ भी हैं। इनके साथ क्लोरीन आदि की अभिक्रिया से लवण बन जाते हैं। खाने का नमक सोडियम और क्लोरीन का यौगिक ही होता है (NaCl)। तो इस तरह भी समुद्र में नमक बनता रहता है।
समुद्र जल में विद्यमान नमक तो उसी में रहता है, पर सूर्य की गरमी से समुद्र का जल वाष्पीकृत होकर समुद्र से बाहर आता रहता है, और आकाश में घनीभूत होकर बादल बन जाता है। यह वाष्प शुद्ध जल होता है, यानी उसमें लवणांश नहीं रहता। इस तरह समुद्र का पानी तो निरंतर पुनश्चक्रित होता रहता है, पर लवणांश समुद्र में बस जमा ही होता जाता है।
इन्हीं प्रक्रियाओं के कारण करोड़ों वर्षों में समुद्र जल खारा हो गया है।
आप सोच रहे होंगे, कि उपर्युक्त प्रक्रियाओं के निरंतर चलते रहने के कारण समुद्र का खारापन उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता होगा। पर ऐसा नहीं है। समुद्र के अंदर ऐसी कई प्रक्रियाएं होती रहती हैं, जिनके कारण समुद्र जल का लवणांश समुद्र तल में निक्षेपित भी होता रहता है। इसमें कुछ शल्क-धारी जीव-जंतु भी योगदान करते हैं। ये जीवधारी अपना खोल बनाने के लिए समुद्र जल से लवणांश लेते रहते हैं। जब ये मरते हैं, तो इनका खोल समुद्र के तल में इकट्ठा होने लगता है, और बहुत समय बीतने पर चूना पत्थर में बदल जाता है। भू-सतह के हलचल के दौरान चूना पत्थर की परतें कहीं से कहीं पहुंच जाती हैं, यानी समुद्र से बाहर निकल जाती हैं। इनका खनन करके ही हम घर की दीवारों में लगानेवाला चूना प्राप्त करते हैं। एक बार चट्टानों में बदल जाने पर समुद्र का लवण फिर समुद्र के पानी को खारा नहीं बना सकता। इसलिए समुद्र का खारापन करोड़ों वर्षों से एक-सा ही बना हुआ है।
समुद्र के जल में औसतन 3.5 प्रतिशत लवणांश होता है। इसका मतलब यह हुआ, हर 100 ग्राम समुद्र जल से आपको 3.5 ग्राम लवण प्राप्त होगा। इस लवण में मुख्यतः क्लोरीन के लवण होते हैं, जैसे खानेवाला नमक (NaCl)। लवणों की यह सांद्रता समुद्र की हर जगह एक समान नहीं होती है। उदाहरण के लिए नदी मुखों के पास समुद्र जल का खारापन कम होता है क्योंकि वहां नदियों के कारण मीठे जल की भारी आमद रहती है।
इसी प्रकार कुछ छोटे समुद्रों में खारापन कहीं ज्यादा हो सकता है। मसलन मृत सागर में, जिसका खारापन सामान्य समुद्रों से कुछ दस गुना अधिक होता है, यानी करीब 33.7 प्रतिशत। इसका कारण यह है कि वह अन्य समुद्रों से अलग-थलग है, जिससे उनके साथ वह जल-विनिमय नहीं कर सकता है। दूसरा कारण यह है कि इस सागर में वाष्पीकरण बहुत अधिक होता है। इसलिए लवणों का सांद्रीकरण भी बड़ी तेजी से होता है।
इतने अधिक खारेपन के कारण मृत सागर की उत्प्लावकता भी असामान्य रूप से अधिक होती है, इतनी कि आदमी इस समुद्र में डूब ही नहीं सकता, वह लकड़ी की तरह पानी में तैरता रहेगा।
इस उच्च लवणीयता के कारण मृत सागर में सूक्ष्मजीवी भी अधिक नहीं पनपते और इसलिए सूक्ष्मजीवियों को खाकर जिंदा रहनेवाली मछलियां और अन्य जीव-जंतु भी इसमें कम ही होते हैं। शायद इसी कारण से इस सागर को मृत सागर कहा जाता है।
पर सैलानियों में यह सागर बहुत लोकप्रिय है, शायद इसलिए कि वे उसमें डूबने के डर से निश्चिंत होकर जल-क्रीडाएं कर सकते हैं। लोग यह भी मानते हैं कि इस सागर के जल में अनेक रोगों को ठीक करने की क्षमता होती है।
बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
पहले एक बुंदेली लोक कथा सुनिए।
देवी ने प्रसन्न होकर एक बुढ़िया को एक चक्की दी और कहा, तुम जो भी इच्छा करोगी, यह चक्की चलने लगेगी और तुम्हारे मन की चीज के पहाड़ के पहाड़ लगा देगी। लेकिन तुम अपनी जरूरत भर चीजें पाकर, यह मंत्र बुदबुदा देना और चक्की बंद हो जाएगी। बुढ़िया अपनी जरूरत के अनुसार चीजें चक्की से लेती और मंत्र बुदबुदाकर उसे बंद कर देती।
उन्हीं दिनों नगर में एक विदेशी व्यापारी आया था। वह इस तिलस्मी चक्की को ले उड़ा और अपने जल-जहाज में उसे लेकर भागने लगा। रास्ते में उसे अपने खाने के साथ नमक की जरूरत पड़ी। नमक जहाज में था नहीं। उसने चक्की से अपनी इच्छा प्रकट की। चक्की तुरंत चल उठी और नमक के पहाड़ के पहाड़ खड़े होने लगे। जहाज डूबने डूबने को हो आया लेकिन उसे चक्की बंद करने का मंत्र नहीं आता था। अंत में जहाज डूब गया और आज भी समुद्र के तल में चक्की लगातार चल रही है। समुद्र का पानी खारा होने का कारण भी यही है।
(पिरथवी भारी है, रमेशदत्त दुबे, 1995, नेशनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली, से साभार)
कैसी लगी यह कहानी? नहीं मजा आया? ठीक है, समुद्र का पानी खारा क्यों है के लिए वैज्ञानिक जो कहानी सुनाते है, अब उसे सुनाता हूं।
समुद्र में जो नमक है, उसका अधिकांश करोड़ों वर्षों के दौरान नदियों द्वारा वहां पहुंचाया गया है। जब समुद्र का पानी वाष्पीकृत होता है, तो वह हवा में उठकर बादल बन जाता है। यही बादल जमीनी इलाकों में पहुंचकर वर्षा के रूप में बरसता है। बरसते समय उसका संपर्क हवा में मौजूद कार्बन डाइआक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड आदि गैसों से होता है। ये गैसें पानी में घुल जाती हैं, जिससे वर्षा जल हल्का सा अम्लीय हो जाता है। जब यह अम्लीय जल चट्टानों और जमीन पर गिरता है, वह उनमें मौजूद लवणों को घुला लेता है। सतह से जब यह पानी बहकर नदियों में पहुंचता है, तो नदी के पानी में भी यह लवणांश आ जाता है, पर लवणांश बहुत कम होने से हमें नदी का पानी मीठा ही लगता है। नदियों का यह लवणयुक्त पानी समुद्रों में पहुंचता है। इस तरह धीरे-धीरे करोड़ों सालों से नदियों द्वारा लाया गया नमक समुद्रों में इकट्ठा होता आ रहा है।
समुद्रों के तल में भी चट्टानें मौजूद हैं, जिनके लवण भी समुद्र जल में घुलते रहते हैं। इसी तरह समुद्रों के नीचे ज्वालामुखियां भी हैं, जो भी समय-समय पर फटकर लावा और क्लोरीन, सल्फर डाइआक्साइड आदि गैसें छोड़ती रहती हैं। समुद्र में सोडियम आदि पदार्थ भी हैं। इनके साथ क्लोरीन आदि की अभिक्रिया से लवण बन जाते हैं। खाने का नमक सोडियम और क्लोरीन का यौगिक ही होता है (NaCl)। तो इस तरह भी समुद्र में नमक बनता रहता है।
समुद्र जल में विद्यमान नमक तो उसी में रहता है, पर सूर्य की गरमी से समुद्र का जल वाष्पीकृत होकर समुद्र से बाहर आता रहता है, और आकाश में घनीभूत होकर बादल बन जाता है। यह वाष्प शुद्ध जल होता है, यानी उसमें लवणांश नहीं रहता। इस तरह समुद्र का पानी तो निरंतर पुनश्चक्रित होता रहता है, पर लवणांश समुद्र में बस जमा ही होता जाता है।
इन्हीं प्रक्रियाओं के कारण करोड़ों वर्षों में समुद्र जल खारा हो गया है।
आप सोच रहे होंगे, कि उपर्युक्त प्रक्रियाओं के निरंतर चलते रहने के कारण समुद्र का खारापन उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता होगा। पर ऐसा नहीं है। समुद्र के अंदर ऐसी कई प्रक्रियाएं होती रहती हैं, जिनके कारण समुद्र जल का लवणांश समुद्र तल में निक्षेपित भी होता रहता है। इसमें कुछ शल्क-धारी जीव-जंतु भी योगदान करते हैं। ये जीवधारी अपना खोल बनाने के लिए समुद्र जल से लवणांश लेते रहते हैं। जब ये मरते हैं, तो इनका खोल समुद्र के तल में इकट्ठा होने लगता है, और बहुत समय बीतने पर चूना पत्थर में बदल जाता है। भू-सतह के हलचल के दौरान चूना पत्थर की परतें कहीं से कहीं पहुंच जाती हैं, यानी समुद्र से बाहर निकल जाती हैं। इनका खनन करके ही हम घर की दीवारों में लगानेवाला चूना प्राप्त करते हैं। एक बार चट्टानों में बदल जाने पर समुद्र का लवण फिर समुद्र के पानी को खारा नहीं बना सकता। इसलिए समुद्र का खारापन करोड़ों वर्षों से एक-सा ही बना हुआ है।
समुद्र के जल में औसतन 3.5 प्रतिशत लवणांश होता है। इसका मतलब यह हुआ, हर 100 ग्राम समुद्र जल से आपको 3.5 ग्राम लवण प्राप्त होगा। इस लवण में मुख्यतः क्लोरीन के लवण होते हैं, जैसे खानेवाला नमक (NaCl)। लवणों की यह सांद्रता समुद्र की हर जगह एक समान नहीं होती है। उदाहरण के लिए नदी मुखों के पास समुद्र जल का खारापन कम होता है क्योंकि वहां नदियों के कारण मीठे जल की भारी आमद रहती है।
इसी प्रकार कुछ छोटे समुद्रों में खारापन कहीं ज्यादा हो सकता है। मसलन मृत सागर में, जिसका खारापन सामान्य समुद्रों से कुछ दस गुना अधिक होता है, यानी करीब 33.7 प्रतिशत। इसका कारण यह है कि वह अन्य समुद्रों से अलग-थलग है, जिससे उनके साथ वह जल-विनिमय नहीं कर सकता है। दूसरा कारण यह है कि इस सागर में वाष्पीकरण बहुत अधिक होता है। इसलिए लवणों का सांद्रीकरण भी बड़ी तेजी से होता है।
इतने अधिक खारेपन के कारण मृत सागर की उत्प्लावकता भी असामान्य रूप से अधिक होती है, इतनी कि आदमी इस समुद्र में डूब ही नहीं सकता, वह लकड़ी की तरह पानी में तैरता रहेगा।
इस उच्च लवणीयता के कारण मृत सागर में सूक्ष्मजीवी भी अधिक नहीं पनपते और इसलिए सूक्ष्मजीवियों को खाकर जिंदा रहनेवाली मछलियां और अन्य जीव-जंतु भी इसमें कम ही होते हैं। शायद इसी कारण से इस सागर को मृत सागर कहा जाता है।
पर सैलानियों में यह सागर बहुत लोकप्रिय है, शायद इसलिए कि वे उसमें डूबने के डर से निश्चिंत होकर जल-क्रीडाएं कर सकते हैं। लोग यह भी मानते हैं कि इस सागर के जल में अनेक रोगों को ठीक करने की क्षमता होती है।
सामान्य जन को जाने समझने के अंदाज से लिखा गया बहुत रोचक और जानकारी परक लेख
ReplyDeleteसमुद्र के खारे पानी से जुडी लोक कथा बेहद रोचक लगी......और एनी जानकारी भी महत्वपूर्ण और ज्ञान वर्धक रही..आभार
ReplyDeleteregards
जरूरी कार्य।
ReplyDeleteशुभकामनाएं मित्र।
रूप में लावण्य है ,पसीने में लावण्य है
ReplyDeleteमादकता और श्रम के बिना जीवन निरर्थक है
तेज धूप का सफ़र
बोधगम्य जानकारपरक आलेख । धन्यवाद ।
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