आपने कबूतर तो देखा ही होगा? अरे वही, 'कबूतर जा-जा' वाला। हाँ, तो कहा जाता है कि जब कबूतर के सामने कोई मुसीबत आती है, तो वह अपनी आँख...
आपने कबूतर तो देखा ही होगा? अरे वही, 'कबूतर जा-जा' वाला। हाँ, तो कहा जाता है कि जब कबूतर के सामने कोई मुसीबत आती है, तो वह अपनी आँखें बंद कर लेता है। और ऐसा करते समय वह सोचता है कि जिस प्रकार मैं इस मुसीबत को नहीं देख रहा हूँ, वैसे ही यह मुसीबत भी मुझे नहीं देख पाएगी। लेकिन होता क्या है, यह सबको पता है। ...और अगर गहराई से देखा जाए, तो हम मनुष्य भी कुछ-कुछ कबूतर जैसा ही व्यवहार कर रहे हैं। कैसे? बता रहे हैं ओजस्वी ब्लॉगर अंकित..
ग्लोबल वार्मिंग, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, पारिस्थितिकी असंतुलन - बहुत ही गंभीर बिंदु हैं ये सब| इन सब पर बहुत विचार किया जा चुका है, बहुत कागज़ काला किया जा चुका है और बहुत से चिट्ठे भी लिखे जा चुके हैं इनके परिणामों की भयावहता पर और यह होना भी चाहिए।
पर क्या केवल यही होना चाहिए ? क्या यह पर्याप्त है ?
चलिए हम आपको एक प्रयोग बताते हैं। हो सकता है की यह आपको थोडा़ सा अमानवीय लगे परन्तु यह आपको आपकी स्थिति समझने में सहायता प्रदान करेगा। एक बर्तन में गर्म पानी लीजिये (लगभग 80०C)। अब इसमें एक मेढक डाल दीजिये। यह मेढक तुरंत ही उछलकर बाहर आ जायेगा। अब एक चूल्हे पर एब बर्तन रख कर उसमे ठंडा पानी भर कर उसमे एक दूसरा (या फिर आप चाहें तो वही) मेढक डाल दीजिये और फिर उस पानी को बहुत ही धीमी गति से गर्म कीजिये। वह मेढक उसी में बैठा रहेगा चाहे पानी कितना भी गर्म क्यूँ ना हो जाए। अब यदि आप चाहें तो उस मेढक को बाहर निकाल सकते हैं परन्तु ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है की हमारी मनोस्थिति भी उस मेढक से ज्यादा अलग नहीं है और हमें तो कोई बचाने वाला भी नहीं है। इसका मतलब है कि हमें ही कुछ करना होगा|
तो जो मैं कहना चाहता हूँ वह यह है की अब हमें अंतर्जाल पर चिट्ठे लिखने, पढ़ने, उनपर अपनी प्रतिक्रियाएं देने और उनकी प्रशंसा करने से ज्यादा कुछ करना होगा क्यूंकि समय सचमुच बहुत ही कम बचा है|
अब जबकि मैंने इतना कुछ कहा है तो मुझे ये भी बताना चाहिए हम क्या कर सकते हैं| हमें अपनी जीवन शैली में कुछ छोटे परिवर्तन करने पड़ेंगे और यकीन मानिये ये परिवर्तन सचमुच छोटे ही हैं और आसन भी--
1. क्या आप सब्जी खरीदने के लिए जाते समय खाली हाथ जाते हैं और वापस आते समय ढे़र सारी पॉलीथिन लेकर आते हैं? घर से थैला लेकर जाना शुरू कीजिये। कुछ पुराना फैशन है पर आप फैशन बदल सकते हैं।
2. क्या आप रोज कचरा पॉलीथिन न में भर कर फेकते हैं ? पॉलीथिन को बाकी कूड़े से अलग करके फेंकिये | हाँथ गंदे हो जायेंगे पर पृथ्वी के गंदे होने से तो बेहतर ही है ना। क्यूँ?
3. क्या आप अपने घर के बचे हुए खाद्य पदार्थों को कूड़े के साथ फेक देते हैं? उसे छत या सड़क के किनारे पर रख दीजिये, जहाँ उसे पशु-पक्षी खा लेंगे और पारिस्थितिकी संतुलन बनेगा।
4.क्या आप अभी भी परंपरागत बल्बों का प्रयोग करते हैं? CFL का प्रयोग करिए पैसे भी बचेंगे और धरती भी।
5.क्या आप कोई नया इलेक्ट्रोनिक उपकरण खरीदने जा रहे हैं? उसकी 'स्टार रेटिंग' अवश्य देखिएगा। जितने ज्यादा तारे, उतना कम बिजली का खर्च और उतना पर्यावरण हितैषी (अधिकतम 5 संभव)।
6. क्या आप अपनी शानदार गाड़ी से कार्यालय जाते हैं? ठीक है, सबने आपकी गाड़ी देख ली। अब सार्वजानिक परिवहन का प्रयोग करिए, आप भी स्वस्थ रहेंगे और आपकी पृथ्वी भी।
7.क्या आप अपने कार्यालय के अकेले कमरे में बैठते हैं? टाई मत पहनिए और अब आपको 2०C अधिक तापमान सुखद लगेगा AC पर कम भर और कम बिजली का खर्च।
8. क्या आप मच्छरों को भगाने के लिए रसायनों का प्रयोग करते हैं? अपने घर के सभी खिड़की दरवाजे और रौशनदान सूर्यास्त के एक घंटे पहले से एक घंटे बाद तक बंद रखिये मछर आयेंगे ही नहीं। और अगर कुछ मच्छर पहले से मौजूद हों, तो उसके लिए मच्छरदानी है न।
9 .क्या आप नया संगणक (कंप्यूटर) खरीदने जा रहे हैं? रुकिए! आप तो पुराने को भी पूरी तरह प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं। विश्वास नहीं हो रहा, तो ठीक है आप दिन भर अपना टास्क मैनेजर चला कर काम कीजिये और देखिये की कितने प्रतिशत आप प्रयोग करते हैं? आपके लिए तो 2000 या 2002 का कोई संगणक (कंप्यूटर) ही पर्याप्त है।
ग्लोबल वार्मिंग, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, पारिस्थितिकी असंतुलन - बहुत ही गंभीर बिंदु हैं ये सब| इन सब पर बहुत विचार किया जा चुका है, बहुत कागज़ काला किया जा चुका है और बहुत से चिट्ठे भी लिखे जा चुके हैं इनके परिणामों की भयावहता पर और यह होना भी चाहिए।
पर क्या केवल यही होना चाहिए ? क्या यह पर्याप्त है ?
चलिए हम आपको एक प्रयोग बताते हैं। हो सकता है की यह आपको थोडा़ सा अमानवीय लगे परन्तु यह आपको आपकी स्थिति समझने में सहायता प्रदान करेगा। एक बर्तन में गर्म पानी लीजिये (लगभग 80०C)। अब इसमें एक मेढक डाल दीजिये। यह मेढक तुरंत ही उछलकर बाहर आ जायेगा। अब एक चूल्हे पर एब बर्तन रख कर उसमे ठंडा पानी भर कर उसमे एक दूसरा (या फिर आप चाहें तो वही) मेढक डाल दीजिये और फिर उस पानी को बहुत ही धीमी गति से गर्म कीजिये। वह मेढक उसी में बैठा रहेगा चाहे पानी कितना भी गर्म क्यूँ ना हो जाए। अब यदि आप चाहें तो उस मेढक को बाहर निकाल सकते हैं परन्तु ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है की हमारी मनोस्थिति भी उस मेढक से ज्यादा अलग नहीं है और हमें तो कोई बचाने वाला भी नहीं है। इसका मतलब है कि हमें ही कुछ करना होगा|
तो जो मैं कहना चाहता हूँ वह यह है की अब हमें अंतर्जाल पर चिट्ठे लिखने, पढ़ने, उनपर अपनी प्रतिक्रियाएं देने और उनकी प्रशंसा करने से ज्यादा कुछ करना होगा क्यूंकि समय सचमुच बहुत ही कम बचा है|
अब जबकि मैंने इतना कुछ कहा है तो मुझे ये भी बताना चाहिए हम क्या कर सकते हैं| हमें अपनी जीवन शैली में कुछ छोटे परिवर्तन करने पड़ेंगे और यकीन मानिये ये परिवर्तन सचमुच छोटे ही हैं और आसन भी--
1. क्या आप सब्जी खरीदने के लिए जाते समय खाली हाथ जाते हैं और वापस आते समय ढे़र सारी पॉलीथिन लेकर आते हैं? घर से थैला लेकर जाना शुरू कीजिये। कुछ पुराना फैशन है पर आप फैशन बदल सकते हैं।
2. क्या आप रोज कचरा पॉलीथिन न में भर कर फेकते हैं ? पॉलीथिन को बाकी कूड़े से अलग करके फेंकिये | हाँथ गंदे हो जायेंगे पर पृथ्वी के गंदे होने से तो बेहतर ही है ना। क्यूँ?
3. क्या आप अपने घर के बचे हुए खाद्य पदार्थों को कूड़े के साथ फेक देते हैं? उसे छत या सड़क के किनारे पर रख दीजिये, जहाँ उसे पशु-पक्षी खा लेंगे और पारिस्थितिकी संतुलन बनेगा।
4.क्या आप अभी भी परंपरागत बल्बों का प्रयोग करते हैं? CFL का प्रयोग करिए पैसे भी बचेंगे और धरती भी।
5.क्या आप कोई नया इलेक्ट्रोनिक उपकरण खरीदने जा रहे हैं? उसकी 'स्टार रेटिंग' अवश्य देखिएगा। जितने ज्यादा तारे, उतना कम बिजली का खर्च और उतना पर्यावरण हितैषी (अधिकतम 5 संभव)।
6. क्या आप अपनी शानदार गाड़ी से कार्यालय जाते हैं? ठीक है, सबने आपकी गाड़ी देख ली। अब सार्वजानिक परिवहन का प्रयोग करिए, आप भी स्वस्थ रहेंगे और आपकी पृथ्वी भी।
7.क्या आप अपने कार्यालय के अकेले कमरे में बैठते हैं? टाई मत पहनिए और अब आपको 2०C अधिक तापमान सुखद लगेगा AC पर कम भर और कम बिजली का खर्च।
8. क्या आप मच्छरों को भगाने के लिए रसायनों का प्रयोग करते हैं? अपने घर के सभी खिड़की दरवाजे और रौशनदान सूर्यास्त के एक घंटे पहले से एक घंटे बाद तक बंद रखिये मछर आयेंगे ही नहीं। और अगर कुछ मच्छर पहले से मौजूद हों, तो उसके लिए मच्छरदानी है न।
9 .क्या आप नया संगणक (कंप्यूटर) खरीदने जा रहे हैं? रुकिए! आप तो पुराने को भी पूरी तरह प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं। विश्वास नहीं हो रहा, तो ठीक है आप दिन भर अपना टास्क मैनेजर चला कर काम कीजिये और देखिये की कितने प्रतिशत आप प्रयोग करते हैं? आपके लिए तो 2000 या 2002 का कोई संगणक (कंप्यूटर) ही पर्याप्त है।
तो अब प्रारंभ कर दीजिये, आज ही। क्यूंकि कल तक तो बहुत ही देर हो जायेगी |
हमे लगता है कुछ परिवर्तन होगा। आपको क्या लगता है?
अपनी गिनती मूर्खों में करवा कर भी इन बातों का यथा सम्भव ध्यान रखता हूँ.
ReplyDeleteअंकित भाई, बात को कहने का आपका ढंग पसंद आया। बधाई।
ReplyDeleteबेवकूफी भरी पोस्ट! जब तक आप समस्या का निदान नहीं है , तब तक आप समस्या ही है |
ReplyDeleteये सब उपभोक्तावादी तरीके कभी काम नहीं आयेंगे | ये सिर्फ इस बात का एहसास कराएँगे की आप
कुछ कर रहे है बस |
कितना बढिया आलेख लिखा है आपने .. काश सभी इन नियमों कर पालन करते !!
ReplyDeleteजी Anonymous जी , जब तक आप समस्या का निदान नहीं है , तब तक आप समस्या ही है और इसी लिए तो हम समाधान लेकर आये हैं | हो सकता है ये समाधान पर्याप्त ना हों परन्तु एक प्रारंभ की तो आवश्यकता है ही
ReplyDeleteसो हम प्रारंभ लेकर आये हैं आगे बड़े परिवर्तन भी होंगे| वैसे अगर आप कुछ अधिक अच्छे समाधानों के बारे में बड़ा सकें तो हम आपके अत्यंत आभारी होंगे | हम आपके ज्ञान का ,मानवता के हित में ,लाभ उठाने के आकांक्षी हैं |
@संगीता जी , हमने इन नियमो का पालन प्रारंभ कर दिया है आप भी कर दीजिये बाकी समाज आपको देखकर प्रारंभ करेगा
बहुत सरल तरीके वैज्ञानिक नजरिये के अनुकूल जीवन चर्या के सूत्र दिये हैं अपने अंकित !
ReplyDeleteबस वही मेढक वाला प्रयोग कोई न दुहराने लगे ....
अच्छा आलेख , शुरूआत तो करनी पड़ेगी और व्यक्तिगत रूप से मै प्रारम्भ भी करूंगा , प्लास्टिक को देखकर तो करना पड़ेगा , सिर्फ बाते नही अब अनुकरण भी .....वैसे वो थैले वाली बात जम गयी मुझे - अंकित निश्चित रूप से भारत का समझदार भविष्य है जो वर्तमान से प्रारम्भ हो चुका है ।
ReplyDeletebahut hi rochak prastutikaran, vaise yahan UK me to lagbhag in sabhi baton ka dhyaan rakhte hain magar fir bhi ab dhyan doonga kahin koi galti to nhin karta, dhyaan bantane ke liye shukriya Ankit..
ReplyDeleteJai Hind...
ज्यादातर का पालन कर रहे हैं।
ReplyDeleteअब और अधिक ध्यान देंगें जी
प्रणाम स्वीकार करें
वाव ! ग्रेट !! अद्भुत!!!
ReplyDeleteमैं आपकी सलाह में से सलाह नंबर १, ४, ५, ७ और ८ को अमल करता आ रहा हूँ और बाकी पर इंशा अल्लाह ज़रूर अमल करने की कोशिश करूँगा !!!
क्रिएटिव और सुधारात्मक दोनों !!!
सलीम ख़ान
स्वच्छ सन्देश: विज्ञान की आवाज़
SWACHCHHSANDESH.blogspot.com
@Anonymous jee lagta hai aapko sirf samasya hi nazar aa rahi hai samadhan nahin.
ReplyDeleteमैं आपको बताना चाहूँगा कि
दुनियां में तीन तरह के इंसान होते हैं:
एक निम्न कोटि के !
दुसरे मध्यम कोटि के !!
तीसरे उच्च कोटि के !!!
1. निम्न कोटि के व्यक्ति ज़्यादातर समस्याओं और व्यक्तियों की चर्चा करते हैं !
2. मध्यम कोटि के व्यक्ति ज़्यादातर घटनाओं का जिक्र करते हैं !!
और
3. उच्च कोटि के व्यक्ति हमेशा और हमेशा समाधान का जिक्र करते हैं !!!
सलीम ख़ान
स्वच्छ सन्देश: विज्ञान की आवाज़
SVACHCHHSANDESH.blogspot.com
ankit, abhi pichla project jo maine kiya tha uska title bhi isi se sambandhit tha... global warming:kitne jimmedar hain hum...iska sahi jawab hai apka ye lekh...
ReplyDeleteek bahut badhiya post samadhan ke sath aur hum kafi had tak inka pahle se hi palan karte hain aur chahenge sabhi log apni jimmedariyan samjhein.
ReplyDeleteअचछी व सार्थक सोच है, यदि हम सभी यह प्रारम्भ करदें तो सब कुछ ठीक होजाये ; पर सब कहां करते हैं। यदि कुछ % भी ठीक रहे तो हम तो सन्तुश्ट रहेंगे कि हमने तो किया । बधाई ।
ReplyDelete@anonymus जी , सलीम जी के कठोर शब्दों के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ और मैं यह भी स्वीकार करता हूँ की यह पोस्ट पूर्ण नहीं है | हमने तो केवल अपने ज्ञान के अनुसार लिखा था और यह केवल प्रारंभ है तथा हमारा मानना है की "एक नन्हा सा दिया बेहतर है अँधेरे से"| परन्तु हम कुछ ज्यादा बड़ा भी करना चाहेंगे जिसके लिए हमे आपके ज्ञान की आवश्यकता है| अतः कुछ ऐसे उपाय बताने का कष्ट करें जो वास्तव में प्रभावकारी हों तथा हमे भविष्य की आपदाओं से बचा सकें|
ReplyDeleteसचमुच ये एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा है हम सब के सामने.........
ReplyDeleteआपके सुझाव सराहनीय भी हैं और अनुकरणीय भी......
पृथ्वी बचेगी तो हम बचेंगे भाई !
सब सही है और इस पर तो तत्काल अमल की जरूरत है- घर से थैला लेकर जाना शुरू कीजिये। कुछ पुराना फैशन है पर आप फैशन बदल सकते हैं।
ReplyDeleteसार्थक लेखन
ReplyDelete5.क्या आप कोई नया इलेक्ट्रोनिक उपकरण खरीदने जा रहे हैं? उसकी 'स्टार रेटिंग' अवश्य देखिएगा। जितने ज्यादा तारे, उतना कम बिजली का खर्च और उतना पर्यावरण हितैषी (अधिकतम 5 संभव)।
ReplyDeleteHas somebody verified this? What company claims that more number of stars save more power? Is it true? I was watching on TV, that it may or may not be true...Someone needs to check on it..
6. क्या आप अपनी शानदार गाड़ी से कार्यालय जाते हैं? ठीक है, सबने आपकी गाड़ी देख ली। अब सार्वजानिक परिवहन का प्रयोग करिए, आप भी स्वस्थ रहेंगे और आपकी पृथ्वी भी।
ReplyDeleteIt is really difficult. and i doubt people will agree doing it.
और चौथी किस्म के इन्सान सदैव स्वयम आगे बढके करते जाते हैं, अपने उदाहरण से बात आगे फ़ैलाते हैं।
ReplyDeleteNokia is recycling the old phones..
ReplyDeleteYou can donate your old phones and Nokia will plant 1 tree for each donated phone.
But I don't understand, why would one donate his phone, when he can get some money in return by selling it.
@ योगेश जी ,
ReplyDeleteआप शायद आप स्थिति की गंभीरता को समझ नही पा रहे हैं , क्या आपकी शानदार कार और नए उपकरण आपके जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं?? और अगर नहीं तो क्या आप अपने जीवन की रक्षा के लिए इनका मोह नहीं छोड़ सकते हैं ?
मैं आपसे यह नहीं कहूँगा की आप स्वार्थी ना बने , हम तो केवल इतना कह रहे हैं की आप मूर्ख या अंधे ना बने या फिर इसी पोस्ट में वर्णित मेढक ना बने
और यह धरती हमारी है तो हमारी है तो इसे बचाने का कर्त्तव्य भी हमारा है , हम किसी बहुरास्ट्रीय कंपनी या सरकार के भरोसे नहीं बैठ सकते हैं |
सही कहा है...खेल खेल से आगे निकलना होगा
ReplyDeletewo kehte hai na ki...
ReplyDelete"Little things makes big difference !"
''Something is better than nothing''
and
"Work speaks louder than words!"
Bahut hi behatreen(achuk bhi)example aapne diya. Jo bahut achhe se apki baat ko describe karne me kamyaab hua. Badhiya post.
Btw I follow almost all ways you suggested.
''Save the planet !''
हम सर्दियों में ब्लोवेर लगाकर गर्मी का आनंद लूटना चाहते हैं और गर्मी में ए.सी. चलाकर सर्दी का मज़ा लेना चाहते हैं. जबकि प्राकृतिक रूप से हमें दोनों तरह के मौसम का मज़ा उठाने का मौका मिलता है, इसे हम गवां देते हैं.
ReplyDeleteआपका लिखा यह लेख बहुत पसंद आया ..सुझाव अम्ल में लाने जरुरी है शुक्रिया
ReplyDeletebahut achcha lekh likha hai.
ReplyDeleteinhen bhi amal mein layen to bahut help ho sakti hai...
-Shukriya.