वैसे तो दैनिन्दन बढ़ते प्लास्टिक के प्रयोग से ऐसा नहीं लगता कि उनसे हमें कोई खतरा भी है, लेकिन इनमें प्रयुक्त रसायनों से मनुष्य स्वास्थ्य प...
वैसे तो दैनिन्दन बढ़ते प्लास्टिक के प्रयोग से ऐसा नहीं लगता कि उनसे हमें कोई खतरा भी है, लेकिन इनमें प्रयुक्त रसायनों से मनुष्य स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभावों को लेकर जो शोध परिणाम सामने आ रहे हैं वे चिन्तित करने वाले हैं। अमेरिका में जैव पर्यवेक्षण के ताजे परिणाम में `सेन्टर फार डिज़ीज कन्ट्रोल एण्ड प्रिवेन्शन ने पाया है कि अमेरिकी लोगों में 212 पर्यावरणीय रसायन की मौजूदगी है जिसमें आर्सेनिक और कैडमियम से लेकर कई पेस्टीसाईड तक मौजूद हैं। साथ ही मनुष्य के शरीर में घुसपैठ कर गये दूसरे तत्वों में आग बुझाने वाले `फ्लेम रिटार्टन्ड´ और राकेट ईंधन में पाया जाना वाला तत्व `परक्लोरेट´ भी है। अमेरिका के ही सिनसिनाटी चिल्ड्रेन इनवायरमेन्टल हेल्थ सेन्टर के निदेशक डा0 ब्रूस लैनफियर का कहना है कि यह केवल पर्यावरण के ही दूषित होने का मामला नहीं है, हमारे शरीर तक प्लास्टिक रसायनों से प्रदूषित हो चुके हैं।
हर ओर बिखरा प्लास्टिक कचरा
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पाया है कि इन तत्वों की सूक्ष्म मात्रा भी गम्भीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकती है। हमारे बच्चों का भविष्य बिगाड़ सकती हैं कुछ सबसे खतरनाक तत्वों में, बिस्फेनाल ए और थैलेट्स भी हैं जो आजकल के प्लास्टिक उद्योग में अपरिहार्य हैं, इनके चलते मनुष्य की नाजुक अन्तस्रावी प्रणाली गडमड हो सकती है जिससे शारीरिक विकास की बड़ी समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं। इनके चलते मोटापा, मधुमेह, आटिज्म, ध्यान केन्द्रण में कमी, अति ध्यान सक्रियता जैसी समस्यायें ऐसे रसायनों के मानव शरीर में घुसपैठ के चलते हो सकती हैं। अमेरिका में इन दिनों पर्यावरण संरक्षा एजेन्सी नये राष्ट्रपति की पहल में इस मुद्दे पर सक्रियता से कार्य कर रही है।
कहते हैं स्विटजरलैण्ड मूल के थियोफ्रेस्टस फिलिप्पस ओरिओलस बोम्बास्टस होहेनहोम उर्फ पैरासेलस जिन्हें विष-औघधि विज्ञान का जनक कहा जाता है, ने चिकित्सा विज्ञान में रसायनों के फायदे-नुकसान से सोलहवीं सदी में ही लोगों को अवगत करा दिया था। उनका जुमला था कि, ``मात्रा-अनुपान ही किसी रसायन को विष या अमृत बनाते हैं´´। यह तब तक नुकसानदायक नहीं है जब तक कि इसकी अल्प और नियिन्त्रत मात्रा बनी रहती है। आज के चिकित्साशास्त्री भी इसी बात को तरजीह देते हैं। नये शोधों में यह तथ्य उजागर हो गया है कि औद्योगिक रसायनों और खासकर प्लास्टिक के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक तत्वों की एक अति सूक्ष्म मात्रा का एक खरबवां हिस्सा या यूं कहें कि एक ओलम्पिक स्पर्धा के मानक तरणताल की बून्द के बीसवे हिस्से के बराबर की इनकी मात्रा भी मनुष्य स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकती है।
कुछ विषैले तत्व जैसे सीसे के 10 माइक्रोग्राम की अति सूक्ष्म मात्रा भी `आई क्यू´ को सीधे प्रभावित कर सकती है। बिस्फेनाल ए जैसे तत्व भी कम खतरनाक नहीं है। बी0पी0ए0 की खोज 1891 में हुई थी, 1940 से इसका इस्तेमाल पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक और एक कृत्रिम गोन्द के निर्माण में शुरू हुआ। इन खतरनाक रसायनों की पहचान के लिए प्लास्टिक के बोतलों जिनमें इनका इस्तेमाल किया गया हो को अमेरिका में एक संख्या-रिसाइकलिंग नम्बर/रेजिन आइडेेन्टीफिकेशन नम्बर से जानकर आगाह हुआ जा सकता है। जैसे पलीकार्बोनेट के लिए `रिसाइिक्लंग नम्बर-7´ का उल्लेख होता है।
पूरी दुनिया में 2.7 अरब किलोग्राम बी0पी0ए0 का उत्पादन प्रति वर्ष होता है। चूंकि बी0पी0ए0 एक संश्लेषित इस्ट्रोजेन (हार्मोन) है अत: बी0पी0ए0 वाले प्लास्टिक के टूटने, गर्म करने आदि पर `इस्ट्रोजन´ का परिसरण होता है जो खाने की सामग्री और पीने के पानी के जरिये अन्तत: मनुष्य के शरीर तक अपनी पहुंच बना ही लेता है। आज अमेरिका में स्थिति यहां तक जा पहुंची है कि 6 वर्ष के ऊपर के 93 प्रतिशत सर्वेक्षित अमरीकावासियों के मूत्र में इनके अंश विद्यमान पाये गये हैं। विगत 1998 में वार्शिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी की आनुवंशिकीविद पैट्रीसिया हंट ने चूहों पर किये गये शोध-परिणाम में पाया था कि बी0पी0ए0 युक्त आहार के चलते उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हुई थी।
एक संश्लेषित इस्ट्रोजेन हार्मोन से युक्त बी0पी0ए0 अन्य कुदरती हार्मोन जैसे टेस्टोस्टेरान या एड्रेनलिन की अधिक मात्रा से उत्पन्न हाने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें उत्पन्न करता है। यह गर्भकाल का भी समस्यायें उत्पन्न करता है। गर्भकाल के आरिम्भक तीन महीनों में मानव शिशुओं पर भी बी0पी0ए0 के कुप्रभाव का ऑकलन शुरु हो गया है और आरिम्भक नतीजे चेतावनी जनक हैं। आशंका है कि ऐसे शिशुओं में आगे चलकर वक्ष कैंसर और पुरुष प्रजनन अंगों पर दुप्रभाव की स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
इसी तरह थैलेट्स का अनुप्रयोग हर तरह के खतरों से भरा है। इनका प्रयोग पी0वी0सी0 प्लास्टिक के निर्माण में धड़ल्ले से होता है। पी0वी0सी0 पाइप से लेकर अन्य सामान जैसे शावर कर्टेन, कास्मेटिक्स, इन्ट्रावेनस फ्लूईड बैग्स में थैलेट्स की उपस्थिति होती है। परीक्षण जन्तुओं में थैलेट्स के चलते शुक्राणु अल्पता देखी गई है। पाली ब्रामेमियेटेड डाइफेनिल इथर्स भी ऐसा ही कुप्रभाव डालते हैं जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रानिक सामानों की प्लास्टिक, पाली यूरेथेन फोम आदि के निर्माण में होता है।
खाद्य सामिग्रयों में थैलेटस की बढ़ती मात्रा से समय पूर्व वक्ष विकास और कैन्सर की आशंकायें प्रबल होते जाने के दावे नये अध्ययनों में किये गये हैं। उन लड़को में अण्डकोषों के असामान्य विकास के मामले भी प्रकाश में लाये गये हैं, जिनकी माताओं को उनके गर्भकाल में अनजाने ही थैलेट्स का ज्यादा `इक्सपोजर´ हुआ था।
जब प्लास्टिक के इतने ढेर सारे सामान रोजमर्रा के कार्यों में इस्तेमाल हो रहे हैं तो आखिर उनसे कैसे निजात पाई जा सकती है. विकल्प क्या है? वैज्ञानिकों ने सुझाया है कि `हरित रसायनिकी´ ही इसका एक मात्र हल है. हरित रासायनिकी उभरता हुआ शास्त्र है जिसमें रसायनों के मानव उपयोग की ऐसी रुप रेखा तय की जाती है जिससे मानव स्वास्थ्य पर कुप्रभावों को बहुत कम किया जा सके। अमेरिका में ऐसे प्रौद्योगिक उत्पादों पर बड़े ईनामों की घोषणा की कई है जैसे एक नये जैव उत्पे्ररणीय विधि से कास्मेटिक निर्माण हो रहा है जिसमें विषैले पदार्थ/घोलकों का प्रयोग नहीं किया गया है। अभी पिछले वर्ष हरित रासायनिकी को लेकर अमेरिकन केमिकल सोसाइटी में 1600 प्रस्तुतियां की गईं। ``एक ऐसा समय आयेगा जब सारी रासायनिकी हरित हो जायेगी´´ कहना था जान वार्नर का जो `ग्रीन केमेस्ट्री´ के जाने माने वार्नर बैबकाक इन्स्टीच्यूट के निदेशक हैं।
प्लास्टिक के खतरों से आमजन को आगाह कराने के लिए जन जागरण अभियानों को बड़े पैमाने पर आरम्भ किया जाना है।सरकारी और गैर सरकारी संगठनो को इस मुहिम पर लगना होगा -ग्रीन पीस के कार्यकर्ताओं को चौकसी बढ़ानी होगी! सुन रही हैं सुनीता नारायण जी?
अब तो प्लास्टिक नाम से डर लगने लगा है
ReplyDeleteडरने से क्या होगा सर पॉलीथीन का उपयोग मत करीय और लोग ना करे उन्हें स्मछाएय। पॉलीथीन के बदले कपड़े के छोले का उपयोग करे।। please sir..हम सब को मिलकर साथ देना होगा।।
Deleteवृहद पैमाने पर यह जन जागरण अभियान चलाया जाना चाहिये.
ReplyDeleteसबसे पहले प्लास्टिक बनाने वाली फौक्ट्रियों को बन्द कराना होगा!
ReplyDeleteप्लास्टिक बनाने वाली फौक्ट्रियों को बंद नहीं बल्कि उसके प्रयोग को सिमित करना होगा!
ReplyDeleteबहुत ग्यानवर्द्धक आलेख है। धन्यवाद।
ReplyDeletePlastic ka kachraa aane wale dinon men bahut badee samasyaa khadee karne wala hai.
ReplyDeleteplastic par kanuni roop se rok lagani jaruri hai, sayad jab tak jarukta ayegi tab tak bahut der ho jayegi.
ReplyDeleteplastic par kanuni roop se rok lagana bahut jaruri hai.
ReplyDeleteजब जागे तभी सबेरा . ये बीमारी जिसने फैलायी वही अब परेशान है .हमारे लोग कब जागेंगे . अपने स्तर पर लोग प्रयास प्रारंभ करें तो महती प्रयास होगा आवश्यकता शिक्षा और उसके प्रसार की है .
ReplyDeletebahut upayogi janakari ke liye dhanyavavad.
ReplyDelete--हां हम जागते भी तभी हैं जब अमेरिका जगाता है । डा श्याम गुप्त की एक कविता पढिये , प्लास्टिकासुर..
ReplyDeletePLASTIKASUR A POEM--(Plastic ,The Demon of today)
The priest read the stars and wondered,
"Time of reincarnation of God",he thundered.
My young daughter,inquisitive and bold,
Smiled in amazement &thus she told,
"Since our childhood,we have heard,
When demon is born,in this world,
His powers are fortified by the boons of Tridev-
Either Brahma or Vishnu or great bestower Mahadev.
When there is chaos on the earth& everywhere,
The God incarnate to make things fair.
Nowadays on earth, no demon dwell,
Why incarnation of God do stars foretell
The priest grumbled & closed his book,
Rearranged his Uttariya with a sarcastic look;
"True my child ! clever and bold.
"The Asur is born" , the priest thus told;
Of extreme lust of worldly yields,
Of people at large from every field.
Breath still there many dreaded Asurs,
Most seen high headed,Plasticasur.
The plastic the pulse of our civilization,
Have brought our life a colourful passion,
His magical clutches in an auspicious way,
Engulf the world in pollution like spiders pray.
That icon of luxury & fulfillment ,
Is today a cancer of environment.
Dr Shyam Gupta
Soochneey sthiti.
ReplyDeleteबहुत ही खतरनाक परिस्थिति है. आजकल तो बीनने वाले भी नहीं दीखते. कठोर कदम उठाने होंगे.
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