साईंस ब्लागर्स अशोसियेशन ने विज्ञानं लेखन में कदाचार के मुद्दे पर लेखकों को निरंतर आगाह किया है लोगों को फिर भी मगर...
साईंस ब्लागर्स अशोसियेशन ने विज्ञानं लेखन में कदाचार के मुद्दे पर लेखकों को निरंतर आगाह किया है लोगों को फिर भी मगर शर्म नहीं आती ...साहित्यिक चोरी का ताजा और शर्मनाक उदाहरण है प्रकाशन विभाग ,सूचना और प्रकाशन मंत्रालय से प्रकाशित पुस्तक "विकासवाद के जनक चार्ल्स डार्विन" जिसके लेखक मनीष मोहन गोरे हैं और सम्पादन किया है आर.अनुराधा ने .ब्लॉग जगत में इस मामले की ओर पहले संकेत किया गया था और इसका नतीजा यह हुआ की चोर की दाढी में तिनका की प्रकृति के चलते लेखक और सम्पादक को पुस्तक में छपते छपते चिपकी और विषय सूची के ठीक पीछे के पृष्ठ पर जहां आमतौर पर कुछ नहीं लिखा जाता यह घोषणा करनी पडी़-
चिपकी में यह लिखा है- "पुस्तक में यदा कदा कुछ विज्ञान लेखकों डॉ. सुबोध मोहंती, डॉ. अरविन्द मिश्र और श्री प्रेमचन्द श्रीवास्तव की रचनाओं के प्रभाव आ गए होंगे जिनके प्रति लेखक आभारी है. साथ ही अगले पृष्ठ पर यह घोषणा भी है- "पुस्तक के अध्याय 6, 7 और 8 विज्ञान लेखक डॉ. अरविन्द मिश्र के डार्विन केन्द्रित लेखों पर व्यापक रूप से आधारित हैं. इस हेतु लेखक कृतज्ञ है."
मजे की बात यह है 6, 7, 8 ही नहीं पुस्तक में व्यापक रूप से दूसर लेखकों की प्रचुर सामग्री वाक्य दर वाक्य, कामा, फुलस्टाप सहित अक्षरशः छापी गयी है. पुस्तक के तीसरे अध्याय, डार्विन की जीवनी के पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे पैराग्राफों और पुनः पृष्ठ 30 के दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवे पैराग्राफ को बिना कामा फुलस्टाप हटाये डॉ. अरविन्द मिश्र के डार्विन पर ही विज्ञान प्रगति के दिसंबर 2008 में 44-47 पृष्ठ पर प्रकाशित लेख से जस का उड़ा लिया गया है. फिर चौथे अध्याय का पृष्ठ 35 का दूसरा पैराग्राफ और पांचवे अध्याय का डार्विनवाद नामक पैरा भी डॉ. मिश्र के लेख से ही उठाया गया है, कहीं भी कामा फुलस्टाप तक बदलने और सम्पादन की जहमत नहीं उठाई गयी है. इसी तरह छठवें पृष्ठ के पैराग्राफ 2, 3 और 4 को भी वहीं से इसी तरह लिया गया है।
आगे ७ वें,पूरे का पूरा अध्याय ही विज्ञान परिषद्, प्रयाग से प्रकाशित होने वाली पत्रिका विज्ञान के डार्विन विशेषांक में डॉ. अरविन्द मिश्र के पृष्ठ संख्या 64-66 पर छपे लेख ईश्वर डार्विन और मनुष्य से लेख के शीर्षक सहित जस का तस बिना हलंत संशोधन के उड़ा लिया गया है. इसी तरह आठवें अध्याय को डॉ. अरविन्द मिश्र के अमृत प्रभात के 18 अप्रैल 1982 के लेख बन्दर, डार्विन और आदमी से शुरू किया गया है. अगले एक अध्याय ओरिजिन : चयनित उद्धरण की सारी सामग्री ही सन 1964 में उत्तर प्रदेश के हिन्दी समिति, सूचना विभाग से प्रकाशित पुस्तक जातिवर्गों का विकास -सर चार्ल्स डार्विन (अनूदित ) (लेखक- स्वर्गीय डॉ. उमाशंकर श्रीवास्तव) से पृष्ठ संख्या 5, 6, 10, 59, 66, 192, 482 से हूबहू ले ली गयी है ....जबकि लेखक को डार्विन की मूल कृति से चयनित उद्धरणों का स्वयं अनुवाद करना चाहिए था. पुस्तक में इसी ब्लॉग जगत के ब्लॉग -साई ब्लॉग में पूर्व प्रकाशित डार्विन लेखमाला के भी कई प्रस्तर हूबहू अध्याय 6, 7, 8 में उड़ा लिए गए हैं.
आश्चर्य है प्रकाशन विभाग जैसे प्रतिष्ठित सरकारी विभाग के अधीन ऐसा गोरखधंधा और सम्पादकीय लापरवाही चल रही है जिससे इस ख्याति प्राप्त प्रकाशन संस्थान की छवि भी धूमिल होगी... यह भी दुःख है, यह जानते हुए भी की सफलता का अक्सर कोई शार्टकट नहीं होता लोग ऐसे अनैतिक कामों में लग जाते हैं जो बौद्धिक समाज पर एक कलंक लगा जाती है. बौद्धिक चोरी का स्थान अकादमीय दुनिया में बहुत घृणित है और लेखकों को इससे सावधान रहना चहिये.
साईंस ब्लागर्स इस प्रकरण को सम्बन्धित लोगों और ब्लॉग जगत के सामने रख रहा है ताकि मुद्दे की व्यापक भर्त्सना के साथ दोषी का चेहरा उजागर हो सके और प्रकाशन विभाग इस मुद्दे को संज्ञान में लेकर तत्काल पुस्तक के सर्कुलेशन को रोक सके, ताकि किसी दूसरे के बौद्धिक कार्य का किसी और को नाजायज लाभ न मिले. मगर इन दिनों तो चोर गुरुओं का जमाना है. कहीं यह प्रकरण भी कानो में तेल डाले बैठे अधिकारियों से अनसुना न रह जाय. कोई सुन रहा है ????
चिपकी में यह लिखा है- "पुस्तक में यदा कदा कुछ विज्ञान लेखकों डॉ. सुबोध मोहंती, डॉ. अरविन्द मिश्र और श्री प्रेमचन्द श्रीवास्तव की रचनाओं के प्रभाव आ गए होंगे जिनके प्रति लेखक आभारी है. साथ ही अगले पृष्ठ पर यह घोषणा भी है- "पुस्तक के अध्याय 6, 7 और 8 विज्ञान लेखक डॉ. अरविन्द मिश्र के डार्विन केन्द्रित लेखों पर व्यापक रूप से आधारित हैं. इस हेतु लेखक कृतज्ञ है."
मजे की बात यह है 6, 7, 8 ही नहीं पुस्तक में व्यापक रूप से दूसर लेखकों की प्रचुर सामग्री वाक्य दर वाक्य, कामा, फुलस्टाप सहित अक्षरशः छापी गयी है. पुस्तक के तीसरे अध्याय, डार्विन की जीवनी के पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे पैराग्राफों और पुनः पृष्ठ 30 के दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवे पैराग्राफ को बिना कामा फुलस्टाप हटाये डॉ. अरविन्द मिश्र के डार्विन पर ही विज्ञान प्रगति के दिसंबर 2008 में 44-47 पृष्ठ पर प्रकाशित लेख से जस का उड़ा लिया गया है. फिर चौथे अध्याय का पृष्ठ 35 का दूसरा पैराग्राफ और पांचवे अध्याय का डार्विनवाद नामक पैरा भी डॉ. मिश्र के लेख से ही उठाया गया है, कहीं भी कामा फुलस्टाप तक बदलने और सम्पादन की जहमत नहीं उठाई गयी है. इसी तरह छठवें पृष्ठ के पैराग्राफ 2, 3 और 4 को भी वहीं से इसी तरह लिया गया है।
आगे ७ वें,पूरे का पूरा अध्याय ही विज्ञान परिषद्, प्रयाग से प्रकाशित होने वाली पत्रिका विज्ञान के डार्विन विशेषांक में डॉ. अरविन्द मिश्र के पृष्ठ संख्या 64-66 पर छपे लेख ईश्वर डार्विन और मनुष्य से लेख के शीर्षक सहित जस का तस बिना हलंत संशोधन के उड़ा लिया गया है. इसी तरह आठवें अध्याय को डॉ. अरविन्द मिश्र के अमृत प्रभात के 18 अप्रैल 1982 के लेख बन्दर, डार्विन और आदमी से शुरू किया गया है. अगले एक अध्याय ओरिजिन : चयनित उद्धरण की सारी सामग्री ही सन 1964 में उत्तर प्रदेश के हिन्दी समिति, सूचना विभाग से प्रकाशित पुस्तक जातिवर्गों का विकास -सर चार्ल्स डार्विन (अनूदित ) (लेखक- स्वर्गीय डॉ. उमाशंकर श्रीवास्तव) से पृष्ठ संख्या 5, 6, 10, 59, 66, 192, 482 से हूबहू ले ली गयी है ....जबकि लेखक को डार्विन की मूल कृति से चयनित उद्धरणों का स्वयं अनुवाद करना चाहिए था. पुस्तक में इसी ब्लॉग जगत के ब्लॉग -साई ब्लॉग में पूर्व प्रकाशित डार्विन लेखमाला के भी कई प्रस्तर हूबहू अध्याय 6, 7, 8 में उड़ा लिए गए हैं.
आश्चर्य है प्रकाशन विभाग जैसे प्रतिष्ठित सरकारी विभाग के अधीन ऐसा गोरखधंधा और सम्पादकीय लापरवाही चल रही है जिससे इस ख्याति प्राप्त प्रकाशन संस्थान की छवि भी धूमिल होगी... यह भी दुःख है, यह जानते हुए भी की सफलता का अक्सर कोई शार्टकट नहीं होता लोग ऐसे अनैतिक कामों में लग जाते हैं जो बौद्धिक समाज पर एक कलंक लगा जाती है. बौद्धिक चोरी का स्थान अकादमीय दुनिया में बहुत घृणित है और लेखकों को इससे सावधान रहना चहिये.
साईंस ब्लागर्स इस प्रकरण को सम्बन्धित लोगों और ब्लॉग जगत के सामने रख रहा है ताकि मुद्दे की व्यापक भर्त्सना के साथ दोषी का चेहरा उजागर हो सके और प्रकाशन विभाग इस मुद्दे को संज्ञान में लेकर तत्काल पुस्तक के सर्कुलेशन को रोक सके, ताकि किसी दूसरे के बौद्धिक कार्य का किसी और को नाजायज लाभ न मिले. मगर इन दिनों तो चोर गुरुओं का जमाना है. कहीं यह प्रकरण भी कानो में तेल डाले बैठे अधिकारियों से अनसुना न रह जाय. कोई सुन रहा है ????
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अफ़सोस जनक
ReplyDeleteकम से अब पता तो लगता है इन चोर-उचक्कों के बारे में. पहले तो ये भी पता नहीं चलता था और ये हैं कि मूछों पर ताव देते घूमते थे ..लेखक बने हुए. प्रकाशन विभाग में तो जुगाड़ का खेल है, प्रतिष्ठा-व्रतिष्ठा इनके लिए बेमतलब की ओछी बातें हैं
ReplyDeleteलेखकों को एक नाम ही तो मिलता आया था अबतक .. अब वो भी नदारद हो गया !!
ReplyDeleteचिप्पियों में धन्यवाद किसलिये ? सहलेखक बतौर अरविन्द जी का नाम उडाया ये तो समझ में आया पर उनके आलेख हूबहू अपने नाम से छापनें से पहले उनकी लिखित अनुमति तो ले ही ली होगी ?
ReplyDeleteअरविन्द मिश्रा कानूनी कार्यवाही करें या आपको मित्रवत क्षमादान दें ! पर यह ध्यान रहे कि पढनें वाले बच्चे आपको किस रूप में जानेंगे ? और हम तो आपको 'एक खेद' 'एक लज्जा' के रूप में चीन्ह ही रहे हैं !
It's a shame!
ReplyDeleteकोई भी बहाना इस कुकृत्य को जस्टिफाइ नहीं कर सकता है। सीधा सादा "अमानत में खयानत" और सीनाज़ोरी का मामला है यह! किताब पर हडबडी में चिपकाया हुआ स्टिकर भी आपकी पिछ्ली पोस्ट का ही परिणाम है वरना तो रात के अन्धेरे में अब तक न जाने कितने लेखकों के साथ यह भ्रष्टाचार हुअ होगा, क्या मालूम?
इस मामले में आपकी सामग्री लेकर छपी पुस्तक पर छपे दोनों नामों "आर अनुराधा" और "मनीष मोहन गोरे" और प्रकाशक पर प्लेज्यरिज़्म का मुकदमा चलाइये। पहली नज़र से स्पष्ट है कि "आर. अनुराधा" ने तो इस मामले में व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों और स्वार्थ को अपनी संस्था के हर्ज़े खर्चे पर भुनाया है। कानूनी कार्र्वाई से आपके साथ न्याय होने के साथ-साथ विज्ञान लेखन से जुडे लोगों को इन लोगों के काले कारनामे की जानकारी भी मिलेगी।
अब इस तरह के लेखक भी क्या करें, बीबी बच्चे संभालें, कमाएं या किताब लिखने के लिए अपनी बुद्धि पर जोर डालें, जुगाड़ लगाकर डिग्री ली, जुगाड़ से ही नौकरी सो जुगाड़ से ही किताब भी लिख रहे हैं, मेरी आपको सलाह है कि आप भी जुगाड़ लगाओ और इन _________ से हर्जाना वसूल करो, अगली बार से ये जुगाड़ लगाना भूल जायेंगे, _______ कहीं के |
ReplyDeleteबहुत गलत काम किया है सम्बन्धितों ने… तत्काल अनुराधा जी और मोहन गोरे को आकर स्पष्टीकरण देना चाहिये तथा मिश्र जी को उचित मुआवज़ा भी।
ReplyDeleteआपने लिखा… "प्रकाशन विभाग जैसे प्रतिष्ठित सरकारी विभाग के अधीन ऐसा गोरखधंधा और सम्पादकीय लापरवाही चल रही है जिससे इस ख्याति प्राप्त प्रकाशन संस्थान की छवि भी धूमिल होगी ...यह भी दुःख है, यह जानते हुए भी की सफलता का अक्सर कोई शार्टकट नहीं होता लोग ऐसे अनैतिक कामों में लग जाते हैं जो बौद्धिक समाज पर एक कलंक लगा जाती है .बौद्धिक चोरी का स्थान अकादमीय दुनिया में बहुत घृणित है और लेखकों को इससे सावधान रहना चहिये…"
यह आज के दौर का दुर्भाग्य है, और पुस्तकों के अलावा विभिन्न विश्वविद्यालयों के तथाकथित शोध ग्रन्थों में आमतौर पर पाया जा रहा है।
कई बार कई-कई मामलों में शोधार्थी तो क्या बड़े-बड़े प्रोफ़ेसर और कुलसचिव स्तर के लोग भी चोरी की पीएच डी में धराये हैं… नकली पीएच डी के जरिये नौकरी भी मिल गई, प्रमोशन भी और रुतबा भी… सब को शॉर्टकट चाहिये, मेहनत कौन करे… लेकिन ऐसे लोगों को छोड़ना भी नहीं चाहिये, बुरी तरह अपमानित करके सम्भव हो तो बाकायदा कोर्ट में घसीटना चाहिये, तभी अक्ल आयेगी।
अरविन्द जी को कानूनी कार्यवाई करनी चाहिये। शर्मनाक वाक्या है। धन्यवाद।
ReplyDeleteWakai Sharmanaak hai...Aabhar!!
ReplyDeleteऐसे लोगों को चौराहे पर खड़ा करके नाली में भीगे हुए जूतों से पिटाई करनी चाहिए, तभी इनको समझ में आएगा कि चोरी का क्या दर्द होता है।
ReplyDeleteसचमुच दु:खद है यह स्थिति। मेरी समझ से लेखक को सामने आकर सारी स्थिति स्वयं ही स्पष्ट करनी चाहिए। यदि उसकी तरफ से कोई गल्ती हुई है, तो और अगर यह गल्ती सम्पादकीय विभाग की है, तो भी उसे सारी बातें स्पष्ट करनी चाहिए, जिससे पुस्तक के बारे में छाया कुहासा हट सके और दोषी की स्पष्ट पहचान सम्भव हो सके।
ReplyDeleteनिंदनीय! कानूनी कारवाई में दूध का दूध और पानी का पानी साफ़ हो सकता है.
ReplyDeleteशुक्रिया मीनिका यह मुद्दा यहाँ उठाने के लिये ,
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ReplyDeleteमिश्रा जी, पुस्तक की सम्पादिका तो उसी रचना की सहेली है, जिसने बहुत ही निंदात्मक शैली में आपको इस पुस्तक के छपने और आपके नाम हटाने की सूचना दी थी। कोर्ट में आप उसको भा नाम घसीटिए, क्योंकि उस जैसी घटिया मानसिकता वाली स्त्री को भी सबक मिलना ही चाहिए।
@अनाम भाई ,
ReplyDeleteकिसी भी महिला के प्रति ऐसी टिप्पणी न करें प्लीज ...जी हाँ उनका स्नैप शाट सुरक्षित है और पता भी ,वे भी निश्चय ही पार्टी बनेगीं
इन सार्वकालिक विषयों पर एवं डार्विन/डार्विन वाद जैसे विषयों पर कोई भी आलेख मूल विषय व मूल आदि लेखक के संदर्भित विषय पर ही होता है , अतः कोई भी लिखेगा वही बात लिखेगा ; अतः चोरी की कोई बात नहीं है, आप लोग व्यर्थ ही उछल रहे हैं। मैं स्वयं इस विषय पर कई आलेख लिख चुका हूं और कोई भी उस पर लिखे चिन्ता नहीं।
ReplyDelete---यह बात आपके मूल विचार, नवीन उद्घाटित तथ्य या सत्य या खोज के लिये लागू होती है।
--- ये सभी लोग कानूनी कार्यवाही करें अपने आप सत्य सामने आजायगा, शोर मचाने की क्या आवश्यकता है।
@मुझे कहना तो नहीं चाहिए डॉ श्याम गुप्ता जी मगर आपकी डाक्टरेट पर भी मुझे भ्रम होता है -कहीं से चुरा कर ली गयी है -कामा, फुलस्टाप ,हर्फ़ दर हर्फ़ ,वाक्य विन्यास की चोरी -चोरी है और आप इसे जस्टीफाई कर रहे हैं तो चोर चोर मौसेरे भाई की ही कहावत चरितार्थ कर रहे हैं -ठीक है यह नया अनुसन्धान नहीं है तो अपनी भाषा में लिखो न ! किसी का आलेख ही पूरा उड़ा लोगे ? कहाँ से पी एच डी किये हैं आप ? लानत है आप पर और उस संस्था पर जिसने आपको पी एच डी अवार्ड की ..
ReplyDelete@और आप इतना कूड़ा लिखते हैं आपका चुराएगा ही कौन ?
ReplyDeleteIt's a shame!
ReplyDeleteI am with you!!!
बेहद शर्मनाक!
ReplyDeleteलेखक तथा संपादन को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए....वैसे स्पष्ट करने लायक कुछ है भी कहाँ हैं..
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ReplyDeleteमिश्रा जी, श्याम गुप्ता नामक यह जीव कोई फ्राड लगता है। यह व्यक्ति हमेशा आलोचना ही करता है। कभी इसके मुंह से प्रशंसा नहीं सुनी गयी। इसकी पी-एच0डी0 की जाँच करवाई जाए, पक्का किसी दूसरे की उड़ाई गई होगी।
ReplyDeleteनिंदनीय ...बेहद शर्मनाक..
ReplyDeleteव्यक्तिगत वैमनस्यता की बलि वेदी पर बौद्धिकता की आहुति शर्मनाक है !...
ReplyDeleteटिप्पणी अली जी से साभार ...!
---लगता है आप लोग ठीक प्रकार से टिप्पणी पढते व उसके तत्वार्थ समझे बिना भावावेश में आकर वक्तव्य देने लगते हैं, जो बौद्धिक वर्ग के लिये प्रशन्सा की बात नहीं है।
ReplyDelete-बाद के दो पेरा में-दिये गये सुझावों पर अमल करें खुद सभी- दूध-पानी- होजायगा ।
---आलोचना करना बहुत कठिन होता है,सब के बस का नही; हां जी - हां जी -सरलतम नीति है, "हर्र लगे ना फ़िटकरी रंग चोखा होजाय"
बेहद शर्मनाक!
ReplyDeleteपर आज श्याम गुप्ता जी को सही सही जवाब मिल गए होंगे |
और तस्सळली भी |
इनके घटिया कमेंट्स इनकी मानसिकता के परिचायक है |
लानत भेज रहा हूँ स्वीकारे गुप्ता जी
यह जान कर बहुत दुःख हुआ..और कुछ लिखने लगा ही था कि संगीता जी की लिखी बात पर मेरी बात अटक गई --क्योंकि मैं भी बिल्कुल वही सोच रहा था ....
ReplyDeleteलेखकों को एक नाम ही तो मिलता आया था अबतक .. अब वो भी नदारद हो गया।
भैया , जिस के पास जो होगा बही तो देगा, हमने स्वीकारा ही नहीं, रखो अपने अपने पास। बातेओं की क्या है---
ReplyDelete"जा की रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी"
राजीव जी, बहुत सही कहा, ऊपर लिखी घटियातम टिप्पणियों से तो एसा ही लगता है कि --- " ऐसे ही लोगों के कारण अपना देश इस अवस्था में पहुंचा है।"
ReplyDeleteसही कहा गुप्ता जी, इस देश को पतन की ओर ले जाने में आप जैसे चोर उचक्कों का ही हाथ है।
ReplyDeleteआप सभी महानुभावों से आग्रह है कि कृपया मुद्दों पर आधारित बात करें, व्यक्तिगत आक्षेप वाली टिप्पणियाँ न करें, अन्यथा उन्हें डिलीट किया जा सकता है।
ReplyDelete---और ये कमेन्ट ब्लाग एडमि.. ने क्यों डिलीट कर दिया , इतने घटिया कमेन्टों मे एक और को देख लेने देते जनता को.
ReplyDelete---बेनामी की बात पर हंसी ही आ सकती है, जो अपना नाम भी छुपाते फ़िरते हैं वे क्या हो सकते हैं स्वयं समझें।
---मोनिका जी को बहुत बहुत धन्यवाद इस आलेख के लिये जाने कितनों के अन्दर की गहराई में छुपे अपूर्व साहित्यिक विचार बाहर आगये।
पता नही हम देश को किस ओर ले जा रहे हैं...दूसरों की मेहनत की चोरी करके नाम कमाना...बहुत शर्मनाक है यह सब...
ReplyDeleteयह लेखकीय घटियापन है, किसी के पूर्व प्रकाशित आलेख का अक्षरश: नकल चोरी ही कही जाएगी। पुस्तक के तथाकथित लेखक के साथ ही संपादक को भी कानूनी दायरे में खड़े करने की आवश्यकता है।
ReplyDeleteशेष आगे का स्टैप डॉ. अरविंन्द मिश्र जी को लेना है जो उन्होंनें अपनी टिप्पणी में कह ही दिया है।
निन्दनीय कृत्य!
ReplyDeleteमैं इस कार्य की भर्त्सना करता हूँ!
बहुत शर्मनाक है यह सब...
ReplyDeleteनिन्दनीय कृत्य!
मैं भी इस कार्य की भर्त्सना करता हूँ!
कानूनी कार्यवाही आवश्यक है।
ReplyDeleteयह साहित्यिक चोरी निन्दनीय कृत्य है..दूसरों की मेहनत की चोरी कर नाम कमाना!
ReplyDeleteमैं भी इस कार्य की भर्त्सना करती हूँ .इन पर कारवाई आवश्यक है
बहुत दु:खद बात हुई। परन्तु ये लेखिका मीनिका जी कौन हैं? पहले कभी इनका लिखा नहीं देखा।
ReplyDeleteआशा है आपको न्याय मिलेगा। शुभकामनाएँ।
घुघूती बासूती
निन्दनीय कृत्य!मैं भी इस कार्य की भर्त्सना करता हूँ...कानूनी कार्यवाही आवश्यक है.
ReplyDeleteपूरा घटनाक्रम शर्मनाक
ReplyDeleteपुस्तक के तथाकथित लेखक के साथ ही संपादक को भी कानूनी दायरे में खड़े करने की आवश्यकता है।
मीनिका जी कौन हैं?
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
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ReplyDeleteआश्चर्य का विषय यह है कि इस पोस्ट को अब तक 300 से अधिक बार पढ़ा जा चुका है, पर लेखक महोदय, सम्पादिका महोदया और इस सारे मामले को बहुत ही घटिया तरीके से पहली बार ब्लॉग जगत के सामने लाने वाली नारीवादी कहाँ लापता है?
बेहद शर्मनाक...
ReplyDeleteज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया!
ReplyDeleteशर्मनाक वाक्य है, जब आदरणीय अरविन्द जी के ब्लॉग पर कुछ दिन पूर्व इस विषय पर आलेख पढ़ा था तब लगा था की, पुस्तक आते आते सब विवाद हल हो जायेंगे और अरविन्द जी को पूरा न्याय मिलेगा. मगर यहाँ तो सब वहीं का वहीं है...???
ReplyDeleteregards
itni vyapak bhartsna un doshiyon ko behad sharminda hone aur chullu bhar pani me dub jane ko kafi hai.
ReplyDeleteapna kimti samay aur urja barbad karna vyarth jan padta hai. baishakhi pe chalne vale apne paro pe kabhi khade nahi ho pate. ishvar aur samay inhe durusht karenge. es manch se jo bhartsna hui vah samajhdar ke liye fansi se adhik ha.
chori urf ''anuharn'' kamjor logon ka kaam hotaa hai. choron ko samajh lenaa chahiye, ki logon ko pataa chal hi jataa hai. akhir pol khul hi gai. lakh ''chippi'' lagaye, usase kya fark padta hai.
ReplyDeleteचोरी गलत है, और निंदनीय है.
ReplyDeleteमगर यहां बौद्धिक जमावडे में ये व्यक्तिगत तू तू मैं मैं क्यों हो रही हैं? हर एक को अपने विचार रखने का हक है, और इसके लिये तिलमिलाना सही नही है.शालीनता का तकाज़ा कम से कम इस ब्लोग पर अपेक्षित है.
आहत होना जायज़ है, मगर इस पर कपडे उतारना सही नही है.
बहुत गलत है यह ...इस पर उचित कार्यवाही की जानी चाहिए
ReplyDeleteमैं बहुत देर से पहुंचा, खुदा खैर करे. अब तो चोरों की चांदी है भाई. इतनी कहावतें कहीं गयीं हैं, चोर-चोर मौसेरे भाई, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, बरियरा चोर सेंध में गावे, एक तो चोरी दूसरे सीनाजोरी आदि इत्यादि, इसका मतलब है कि यह प्रजाति पुरने जमाने से अपना कर्तव्य निर्वहन करती चली आ रही है. चोर विरादरी की आजकल काफी प्रतिष्ठा है, यह एक ऐसा विषय है, जिस पर विस्तार से लिखे जाने की जरूरत है. अरविन्द भाई हो जाय, एक आइटम.
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