आप कहें १ मील की दूरी है, अगला कहे १ किमी. आप मांगे १ पाव, दुकानदार समझता ग्राम की भाषा. माँ अभी भी हमारे जन्म का समय याद कर कहती हैं, तुम ५...
आप कहें १ मील की दूरी है, अगला कहे १ किमी. आप मांगे १ पाव, दुकानदार समझता ग्राम की भाषा. माँ अभी भी हमारे जन्म का समय याद कर कहती हैं, तुम ५ पौंड की थीं, हम सोचते ५ किग्रा! वह बोलती नहीं, १ किग्रा २.२ पौंड के बराबर होता है। १ किग्रा. ऊन खरीदने जातीं तो आउंस के हिसाब से. १ तोला सोना लेने जाओ तो पता चलता है कि १० ग्राम नहीं बल्कि ११.६६ ग्राम सोना मिलेगा. अभी भी एकड़ के साथ बीघे के हिसाब से खेत के विषय में बात करते हैं हम. बड़ी गड़बड़ है. हर देश का अपना ही मापदंड. अमेरिका में पेट्रोल अभी भी गेलन के हिसाब से भरा जाता है और हमारे यहाँ लीटर. कहीं लम्बाई इंच से फीट तक कभी सेंटीमीटर से मीटर तक.
पर अब छटांक, पाव, पौंड, मील कोई इस्तेमाल नहीं करता. क्यों? .अब हम सब एक ही भाषा बोलते हैं कम से कम माप तोल की दुनिया में,और वह है SI units की भाषा. दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस बात की आवश्यकता महसूस होने लगी कि विश्व भर में नापने की एकसमान प्रणाली होनी चाहिए. इससे पहले १८७५ में एक "General conference on weights and measures" नाम की संस्था बनायी गयी थी. इसी संस्था को यह काम सौंपा गया क वह नापने की अलग अलग प्रणालियों का अध्ययन करे, वैज्ञानिक,तकनीकी और शैक्षिक समूहों की ज़रूरतों को समझे और एक विश्व व्यापी प्रणाली सुझाये. इस अध्ययन के आधार पर १९५४ में पेरिस में इस संस्था के दसवें सम्मलेन में यह तय हुआ कि मीटर(दूरी) ,किलोग्राम(वजन ),सेकेण्ड(समय) , एम्पियर(विद्युत प्रवाह ) ,केल्विन(तापमान) और केंडेला(प्रकाश की तीव्रता) ,इन ६ को मूल इकाइयां मानकर एक अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली स्थापित की जाये. इस प्रस्ताव को १९६० में इस संस्था के ११वे अधिवेशन में लागू किया गया और फिर चलने लगी "SI units" की प्रणाली .इस वर्ष यह यूनिट्स की पचासवीं सालगिरह है. १९७१ १ में एक और मूल इकाई "मोल" को भी इसमें जोड़ दिया गया.
इस लिंक को खोलकर देखिये , हर इकाई के बारे में संक्षिप्त में बताया गया है.
नीचे दिए गए चार्ट से ज़ाहिर होगा कि कौन से देश ने कब एस आई यूनिट्स अपनायीं. इस विधि को लागू करना किसी भी देश के लिए आसान नहीं होता क्योंकि सबकी ज़बान पर पारंपरिक इकाईयां ही रहती हैं और उनका इस्तेमाल सदियों से हो रहा होता है .
लेकिन ऐसा नहीं है कि अब हर जगह SI मात्रक चलते हैं, लाएबीरिया, म्यानमार और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने अभी भी यह विधि नहीं अपनाई है .अमेरिका में गाड़ियाँ अभी भी मील प्रति घंटे की रफ़्तार से चलती हैं. देखिये एक विधि से दूसरे में बदलने का एक नमूना ,
श्रेय: http://lamar.colostate.edu/~hillger/internat.htm
लेकिन अलग अलग पद्धति के प्रयोग का नतीजा खरनाक भी हो सकता है . ऐसा ही हुआ १९९९ में मंगल गृह की परिक्रमा करने वाले एक उपग्रह का '.मार्स क्लाईमेट ओर्बईटर', NASA द्वारा मंगल गृह के मौसम,वातावरण आदि की जांच के लिए १९९८ में प्रक्षेपित किया गया . इस उपग्रह को मंगल से १४०-१५० किमी की दूरी पर परिक्रमा कक्ष में घुसना था पर वह ५७ किमी तक नीचे पहुँच गया और घर्षण की ऊर्जा से इसके पुर्जों ने काम करना बंद कर दिया .लगता है यह नष्ट तो नहीं हुआ लेकिन अन्तरिक्ष में कहीं चला गया और वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे हैं कि शायद सूर्य की परिक्रमा कर रहा होगा. . यहाँ दो अलग कम्पनियाँ अलग यूनिट का प्रयोग कर रही थीं.लोकहीद मार्टिन नाम की कंपनी ने , जिसने यह उपग्रह बनाया था , अंग्रेज़ी पद्धति के हिसाब से बल को पौंड फोर्स में बताया और NASA ,खुद मेट्रिक पद्धिति के अनुसार न्यूटन में इस कारण उपग्रह कुछ ज्यादा ही मंगल के वातावरण में घुस गया .
खैर पचासवीं सालगिरह पर एस आई पद्धति को सलाम और यह आशा है कि हर देश इसको अपनाकर दुनिया के एकीकरण में सहयोग करे.आखिर अब तो यह विश्व है एक 'ग्लोबल विलेज"।
पर अब छटांक, पाव, पौंड, मील कोई इस्तेमाल नहीं करता. क्यों? .अब हम सब एक ही भाषा बोलते हैं कम से कम माप तोल की दुनिया में,और वह है SI units की भाषा. दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस बात की आवश्यकता महसूस होने लगी कि विश्व भर में नापने की एकसमान प्रणाली होनी चाहिए. इससे पहले १८७५ में एक "General conference on weights and measures" नाम की संस्था बनायी गयी थी. इसी संस्था को यह काम सौंपा गया क वह नापने की अलग अलग प्रणालियों का अध्ययन करे, वैज्ञानिक,तकनीकी और शैक्षिक समूहों की ज़रूरतों को समझे और एक विश्व व्यापी प्रणाली सुझाये. इस अध्ययन के आधार पर १९५४ में पेरिस में इस संस्था के दसवें सम्मलेन में यह तय हुआ कि मीटर(दूरी) ,किलोग्राम(वजन ),सेकेण्ड(समय) , एम्पियर(विद्युत प्रवाह ) ,केल्विन(तापमान) और केंडेला(प्रकाश की तीव्रता) ,इन ६ को मूल इकाइयां मानकर एक अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली स्थापित की जाये. इस प्रस्ताव को १९६० में इस संस्था के ११वे अधिवेशन में लागू किया गया और फिर चलने लगी "SI units" की प्रणाली .इस वर्ष यह यूनिट्स की पचासवीं सालगिरह है. १९७१ १ में एक और मूल इकाई "मोल" को भी इसमें जोड़ दिया गया.
इस लिंक को खोलकर देखिये , हर इकाई के बारे में संक्षिप्त में बताया गया है.
नीचे दिए गए चार्ट से ज़ाहिर होगा कि कौन से देश ने कब एस आई यूनिट्स अपनायीं. इस विधि को लागू करना किसी भी देश के लिए आसान नहीं होता क्योंकि सबकी ज़बान पर पारंपरिक इकाईयां ही रहती हैं और उनका इस्तेमाल सदियों से हो रहा होता है .
लेकिन ऐसा नहीं है कि अब हर जगह SI मात्रक चलते हैं, लाएबीरिया, म्यानमार और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने अभी भी यह विधि नहीं अपनाई है .अमेरिका में गाड़ियाँ अभी भी मील प्रति घंटे की रफ़्तार से चलती हैं. देखिये एक विधि से दूसरे में बदलने का एक नमूना ,
श्रेय: http://lamar.colostate.edu/~hillger/internat.htm
लेकिन अलग अलग पद्धति के प्रयोग का नतीजा खरनाक भी हो सकता है . ऐसा ही हुआ १९९९ में मंगल गृह की परिक्रमा करने वाले एक उपग्रह का '.मार्स क्लाईमेट ओर्बईटर', NASA द्वारा मंगल गृह के मौसम,वातावरण आदि की जांच के लिए १९९८ में प्रक्षेपित किया गया . इस उपग्रह को मंगल से १४०-१५० किमी की दूरी पर परिक्रमा कक्ष में घुसना था पर वह ५७ किमी तक नीचे पहुँच गया और घर्षण की ऊर्जा से इसके पुर्जों ने काम करना बंद कर दिया .लगता है यह नष्ट तो नहीं हुआ लेकिन अन्तरिक्ष में कहीं चला गया और वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे हैं कि शायद सूर्य की परिक्रमा कर रहा होगा. . यहाँ दो अलग कम्पनियाँ अलग यूनिट का प्रयोग कर रही थीं.लोकहीद मार्टिन नाम की कंपनी ने , जिसने यह उपग्रह बनाया था , अंग्रेज़ी पद्धति के हिसाब से बल को पौंड फोर्स में बताया और NASA ,खुद मेट्रिक पद्धिति के अनुसार न्यूटन में इस कारण उपग्रह कुछ ज्यादा ही मंगल के वातावरण में घुस गया .
खैर पचासवीं सालगिरह पर एस आई पद्धति को सलाम और यह आशा है कि हर देश इसको अपनाकर दुनिया के एकीकरण में सहयोग करे.आखिर अब तो यह विश्व है एक 'ग्लोबल विलेज"।
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पूनम जी, एस आई पद्धति के बारे में बहुत ही रूचिकर आलेख लिखा है आपने। मेरी ओर से बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteपूनम जी!
ReplyDeleteरोचक अंदाज़ में महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
interesting!!
ReplyDeleteरोचक अंदाज़ में महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
रोचक। उपयोगी। ज्ञानवर्द्धक।
ReplyDeleteI like reading your website because you can always bring us new and cool things, I think that I ought to at least say thanks for your hard work.
ReplyDelete- Henry
Nice post. Congrats.
ReplyDeleteपूनम जी, आपके लेख बहुत रूचिपूर्ण और आकर्षक होते हैं।
ReplyDeletegyanverdhak lekh k liye badhai...........
ReplyDeleteसुन्दर जानकारी !
ReplyDeleteरोचक अंदाज़ में महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ..आभार !
ReplyDeleteGreat blog, how about links exchanging? Please contact me asap, Thanks.
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