जाकिर जी ने मुझसे अनुरोध किया की मैं "मेरी इस पोस्ट" को SBA ब्लॉग पर लगाऊं. मैं इसे मेरी खुशकिस्मती मानता हूँ की उनको मेरी यह...
जाकिर जी ने मुझसे अनुरोध किया की मैं "मेरी इस पोस्ट" को SBA ब्लॉग पर लगाऊं. मैं इसे मेरी खुशकिस्मती मानता हूँ की उनको मेरी यह पोस्ट इतनी अच्छी लगी की वो इसे SBA के इस ब्लॉग पर स्थान देने के लिए तैयार हो गए.
जब भी कोई विपत्ति आती है हम आसानी से घबरा जाते हैं और अखबार और टीवी वाले भी आग में घी डालने का काम ही करते हैं.
एक भयानक प्राकृतिक विप्पत्ति के कारण आज जापान में और कुछ अन्य स्थानों में विकिरण की समस्या उत्पन्न हुई ज़रूर है. पर हमें डरने के वजाय इन बातों को अच्छी तरह समझना ज़रूरी है.
चारों तरफ हल्ला मचा है कि परमाणु उर्जा खराब है. कारण यह दिया जा रहा है कि जापान में रडियोधर्मी विकिरण फ़ैल गया है. इसकी वजह से कितने लोगों को तकलीफ हुई है या होगी ये बाद में देखा जायेगा. पहले तो ये चिल्लाओ कि पूरी दुनिया मरने वाली है.
दरअसल बात ऐसी नहीं है जैसी कि अखबार या टीवी वाले जता रहे हैं... बात को अच्छी तरह समझने के लिए बात की तह तक जाने की ज़रूरत है.
चलिए आज मैं इस तथाकथित “विलेन” के बारे में आप लोगों को कुछ बताता हूँ.
हम आज इसलिए डर रहे हैं क्यूंकि एक भयानक प्राकृतिक विप्पत्ति से जापान के नाभिकीय उर्जा संयंत्र में कुछ समस्याएं उत्पन्न हुई है जिससे जापान के लोगों को खतरा है ... और केवल जापान ही नहीं दुसरे देशों में भी यह रेडियोधर्मी विकिरण समस्या पैदा कर सकती है ऐसा कहा जा रहा है.
पर सच क्या है? विलेन कौन है ? जिसे विलेन बनाया जा रहा है, क्या वो सचमुच विलेन है ?
अब तक जापान में आये भूकंप और सुनामी से कितने लोग मरे हैं? कुल 15000 से ज्यादा, 450000 लोग बेघर हो गए हैं, करोड़ों के संपत्ति बर्बाद हो चुकी है ... भूकंप के कारण बाँध टूटने से 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं ... ये खबर अखबार वाले या टीवी वाले बड़ा-चड़ा कर पेश नहीं कर रहे हैं ... न ही बारम्बार दोहरा रहे हैं ...
अब देखते हैं कि नाभिकीय संयंत्र में उत्पन्न समस्या और रेडियोधर्मी विकिरण से कितने मारे गए हैं? सच तो यह है कि अब तक एक भी मौत नहीं हुई है. ये भी सच है कि भविष्य में विकिरण से समस्या हो सकती है, पर यह समस्या किस तरह की होगी और इससे कितने लोगों की जान को खतरा है यह भी देखना होगा.
कुछ सवाल ...
क्या भविष्य में कोयले के खान में, ताप विद्युत केन्द्रों में और जल-विद्युत संयंत्रों के कारण लोगों की जान नहीं जायेगी? क्या इन सब उद्योगों से पर्यावरण को हानि नहीं पहुँच रही है? और अगर पहुँच रही है तो क्यूँ न एक बार कोई तुलनात्मक अध्ययन किया जाय?
क्या भविष्य में कोयले के खान में, ताप विद्युत केन्द्रों में और जल-विद्युत संयंत्रों के कारण लोगों की जान नहीं जायेगी? क्या इन सब उद्योगों से पर्यावरण को हानि नहीं पहुँच रही है? और अगर पहुँच रही है तो क्यूँ न एक बार कोई तुलनात्मक अध्ययन किया जाय?
रेडियोधर्मी विकिरण जानलेवा हो सकता है ... पर देखना यह है कि यह कितनी मात्रा में फ़ैल रहा है ... और इससे क्या और किस तरह की समस्या आ सकती है ... रेडियोधर्मी वस्तु तो हर जगह उपस्थीत है ... क्या आपके देह में कोई रेडियोधर्मी वस्तु नहीं है?
क्या आपको पता है कि एक साल एक परमाणु संयंत्र के पास रहने पर उससे जितना रेडियोधर्मी विकिरण आपके शरीर में जाता है उतना तो एक केला खाने से जाता है? पड़ गए न अचरज में? ऐसे ही कुछ तथ्य आपके सामने लाया हूँ आज ... क्यूंकि मानव प्रकृति है कि जब भी डर का कोई कारण होता है हम दिमाग से सोचना छोड़कर बस अत्यंत भयभीत होकर हर बात को नकारना शुरू कर देते हैं ...
- फुकुशिमा दाईची स्थित परमाणु संयंत्र 40 साल से विद्युत उत्पन्न कर रहे थे ... बिना किसी बड़े दुर्घटना के ... बिना कोई जानमाल के नुक्सान के ... इससे कोई नुकसानदेह धुंआ या रेडियोधर्मी विकिरण पैदा नहीं हो रहा था जिससे कि किसीको इन 40 सालों में कोई नुक्सान हुआ हो ... क्या आप ऐसी बात दावे के साथ किसी कोयला खान या ताप विद्युत केन्द्र के बारे में कह सकते हैं? दुनिया में कोई नहीं कह सकता है.
- आज जो समस्या उत्पन्न हुई है वो एक ऐसी भयानक प्राकृतिक आपदा की वजह से हुई है जिसके कारण अब तक 15000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. पर इन नाभिकीय उर्जा संयंत्रों की वजह से या इनसे उत्पन्न रेडियोधर्मी विकिरण से अब तक एक भी जान नहीं गई है.
यह तो हो गई जापान की बात. अब मैं परमाणु उर्जा और ऐसे संयंत्रों के बारे में कुछ तथ्य आपके सामने पेश करने जा रहा हूँ.
- एक यूरेनियम परमाणु से जितनी उर्जा मिलती है उतनी उर्जा के लिए एक करोड कार्बोन (कोयला) के परमाणु चाहिए होते हैं. यानि कि एक टन यूरेनियम दसियों लाख टन कोयला या तेल के बराबर उर्जा पैदा कर सकती है.
- 1979 में संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित Three mile Island के परमाणु उर्जा संयंत्र में जो दुर्घटना हुई थी उसके बारे में आप सबको पता ही होगा. पर क्या आपको यह पता है कि उस संयंत्र के 15 किमी रेडियस में रहने वाले लोगों को जितनी मात्रा में रेडियोधर्मी विकिरण डोज़ मिला था उतना डोज़ हमारे शरीर में जाता है अगर हम एक बार न्यूयोर्क से लोस एंजेल्स तक का वापसी यात्रा कर लें तो.
- क्या आपको पता है कि यदि आप एक साल किसी परमाणु संयंत्र के पास रहे तो आपको जितना रेडियोधर्मी विकिरण डोज़ मिलेगा उससे ज्यादा डोज़ हमें एक साल में अपने कंप्यूटर के CRT Monitor से मिलता है.
- कई लोग यह कहते नहीं थकते कि कि क्यूँ न हम पवन उर्जा, सौर उर्जा या फिर जैव ईंधन को अपना ले? अब मैं आप सबके सामने एक तुलनात्मक तथ्य रखने जा रहा हूँ. यह तथ्य एक भारत जैसे एक अत्याधिक आबादी वाले देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. एक 1000 मेगावाट उर्जा संयंत्र के लिए कितनी जगह चाहिए होती है? यदि यह कोई परमाणु संयंत्र है तो 1-4 वर्ग किलोमीटर, सौर उर्जा संयंत्र के लिए 20-50 वर्ग किलोमीटर, पवन उर्जा संयंत्र के लिए 50-150 वर्ग किलोमीटर और जैव ईंधन के लिए 4000–6000 वर्ग किलोमीटर.
- यूरेनियम खान में हुई दुर्घटनाओं से अब तक कितने लोग मारे गए है? हर साल कोयले खानों में दुर्घटना के कारण हज़ारों लोग मारे जाते हैं. क्या ये डर का कारण नहीं है?
- परमाणु उर्जा संयंत्र से (यदि कोई भयंकर दुर्घटना न हो तो) कोई ज़हरीली गैस नहीं फैलती है, वायुमंडल में कोई राख के धुल नहीं फैलते हैं. कोयला खान के चारों तरफ के इलाके में कोयले के धुल उड़ते रहते हैं जिससे कितने ही लोगों को फुस्फुस की बिमारी हो जाती है. ताप विद्युत केन्द्रों के आसपास के इलाकों में धुआं, धुल, इत्यादि के कारण फूसफूस की बीमारी, कैंसर इत्यादि आम बात है. तो क्या हम कोयले के खान और विद्युत केन्द्र बंद कर दें?
- परमाणु उर्जा संयंत्रों से उत्पन्न अवशिष्ट पदार्थ यूँ ही हवा में उड़ते नहीं रहते हैं. यूँ ही नदियों में बहा नहीं दिया जाता है. यूँ ही कोई गड्ढे में नहीं डाला जाता है. इन्हें पहले संयंत्र के अहाते में ही जमा करके रखा जाता है और फिर 95 % फिर से इस्तमाल किया जाता है. बाकी के अवशेष ऐसी जगह रख दिया जाता है जहाँ से आसानी से जन संपर्क में न आये.
- परमाणु उर्जा संयंत्र खतरनाक होते हैं इन्हें बंद कर देना चाहिए यह कहने से पहले ज़रा सच क्या है इस बात पर गौर कीजियेगा ...
ऐसे न जाने कितने तथ्य हैं जिन्हें आम जनता नहीं जानती है ... आम जनता को अखबार या टीवी पर जो खबर आती है उससे मतलब होता है ... पर अपने मन में कोई अवधारणा बनाने से पहले कृपया सच जानने की कोशिश कीजिये ... केवल अखबार या टीवी पर आ रहे खबरों पर भरोसा करना नहीं चाहिए ... खबरों के पीछे का सच क्या है ये जानना ज्यादा ज़रूरी है ... और ये सच आपको कोई अखबार नहीं बताएगी ... कोई टीवी नहीं दिखायेगा ..
मैं जानता हूँ कि दिलासे की बातों पर भरोसा करना मुश्किल होता है जब आप स्वयम आँखों के सामने कोई दुर्घटना होते देख रहे हों ... पर उपरोक्त तथ्य केवल दिलासे के लिए नहीं है ... ये वो सच है जो TRP के लिए लड़ रहे टीवी चेनल या फिर ज्यादा बिकने के लिए पैंतरे बाजी करने वाले अखबार आपको नहीं बताएँगे ... उनका अस्तित्व लोगों के मन में जो डर है उसपे टिका हुआ है ...
डर के भागने से बेहतर है डर का सामना करना ... उसे समझना ...
यहाँ ज़रूरत है जापान के समस्याओं से सीख लेना, न कि परमाणु उर्जा को ही सिरे से खारिज कर देना ... कुछ प्राकृतिक दुर्घटनाओं की वजह से तो कुछ मानवीय गलितयों की वजह से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है ... हमें इनसे सीखना है और ऐसे कदम उठाने हैं कि भविष्य में ऐसी स्थिति न उत्पन्न हो ...
परमाणु ऊर्जा खराब नहीं है मगर मानवीय भूलों और लापरवाही इसे दानव बना सकती है यह भी सच है ! अगर हम इसका प्रयासपूर्ण उपयोग नहीं करते और उपेक्षात्मक तरीके से छोड़ देते हैं तो यह फ्रैंकेंन्स्टीन या भस्मासुर भी बनने को उद्यत है !
ReplyDeleteसीख देती और जागरूक करती अच्छी पोस्ट.
ReplyDeleteआपका लेख एक दम सही समय पर आया है, जागरूकता की आवश्यकता है, अब जबकि लगभग सभी ऊर्जा के साधन खत्म होने के कगार पर हैं तब सिर्फ परमाणु ऊर्जा ही हमारा एकमात्र सहारा है|
ReplyDeleteबधाई स्वीकारिये इस अच्छे और महत्वपूर्ण लेख के लिए
क्या खराब है क्या अच्छा है ये तों होने वाली परिस्तिथि पर निर्भर करेगा, लेकिन इतना जरूर कहूँगा की इसका सीमित मात्र में ही इस्तेमाल किया जाए. बाकि सच्चाई पूरी तरह तब पता चलेगी जब ऐसा कुछ होगा.
ReplyDeleteबहुत ही जरूरी मुद्दा उठाया गया है। जहां दिन होता है, वहीं रात भी होती है। हर चीज में अच्छाई और बुराई दोनों होती है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम किसी वस्तु का सदुपयोग करते हैं या दुरुपयोग। किसी भी वैज्ञानिक उपलब्धि को बुरा कह कर नकार देने से फायदा कम नुकसान ही ज्यादा होगा। कुछ तथाकथित पर्यावरण हितैषियों का यह पेशा है और हमें इस बात को समझना चाहिए। परमाणु उर्जा बुरी नहीं है, बुराई है उसका सुरक्षित उपयोग न होने में। कुछ ऐसी ही बात जेनेटिकली मोडीफाइड फसलों के बारे में भी है। कुछ लोग या तो पूरी तरह इसके पक्ष में बोलते हैं तो कुछ पूरी तरह इसके विपक्ष में। दोनों का यह पेशा है और सामान्य जनता भी उनके झांसे में आ जाती है। जीन संवर्धन तकनीक का यदि सरकारी नियंत्रण में समुचित विकास हो तो इससे पौधों की गुणवत्ता में विकास होगा और हमारी जैव विविधता को तनिक भी आंच नहीं आएगी, बल्कि वह और समृद्ध होगी। लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण में इसका विकास होगा तो वे अपने फायदे के लिए जैव विविधता को नष्ट कर अपनी कंपनी द्वारा उत्पादित बीज का एकाधिकार जमाने की चेष्टा करेंगी। वे मुनाफे के लिए लोगों की सेहत का ख्याल किए बिना बीटी जीन डालकर सारे पौधों को जहरीला बना डालेंगी।.. और वे ऐसा कर भी रही हैं। जरूरी है कि लोग सही बात समझें और दूसरों को भी समझाएं। साधुवाद।
ReplyDeleteजाकीर जी, इस लेख को यहाँ स्थान देने के लिए शुक्रिया ...
ReplyDeleteआज सावधानी की ज़रूरत है ... बेवकूफी की नहीं ... दोनों बातों में फर्क है ...
हम चाकू का इस्तमाल सब्जी काटने के लिए भी कर सकते हैं और गला काटने के लिए भी ... क्या हम चाक़ू इस्तमाल करना बंद कर दें ?
सावधानी से इस्तमाल करना बुद्धिमानी है ... बिलकुल इस्तमाल न करना बेवकूफी है ...
जितने पुख्ता सुरक्षा उपाय परमाणु ऊर्जा के संदर्भ में किए जाते हैं उतने किसी अन्य संदर्भ में नहीं सुने जाते. नि:संदेह इसमें जोखिम तो है पर क्या हमारे पास सोलर, वायु या जल जैसे स्रोतों पर पूर्णतया निर्भर होने कर माद्दा है (?)... पहले इसका जवाब पाना बहुत आवश्यक है
ReplyDeleteइन्द्रनील जी, बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteइस जरूरी मुद्दे को इस लोकप्रिय मंच पर लेन के लिए ! मैं इस विषय पर टिप्पणी दे दे कर परेशां हो गया कि परमाणु ऊर्जा का आज कि परिस्थितियों में कोई विकल्प नहीं है ! लोग तो यह भी नहीं जानते कि कोयला आधारित ताप बीजली घर परमाणु संयत्र से ज्यादा विकिरण फैलाते है , ग्रीन हाउस गैसे अलग से !
परमाणु ऊर्जा का विकल्प बी परमाणु ऊर्जा है, विखंडन की जगह संलयन होगा ! लेकिन अभी इसमे देर है !
नाभिकिय विकिरण कब हानीकारक होता है ?: कुछ तथ्य
जापानी नाभिकिय दुर्घटना : तथ्यो का अभाव और समाचारो की बाढ़
@काजल कुमार जी,
ReplyDeleteपहली बात तो यह है कि यह धरना ही गलत है कि परमाणु उर्जा ज्यादा खतरनाक है ...
इसमें दो बातें हैं ... एक तो यह है कि आज तक के इतिहास में आप देख लीजिए ... परमाणु बमों को छोड़ दिया जाय ... तो परमाणु उर्जा संयंत्रों से जितनी भी मौतें हुई है वो केवल दुर्घटनाओं की वजह से ही हुई है चाहे वो चेरनोबिल हो या K-19 ...
दूसरी तरफ दुसरे उर्जा स्रोत, जैसे कि ताप विद्युत केंद्र इत्यादि अपने कार्यकाल में ही पर्यावरण को इतने ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं कि उसीसे हज़ारों लोग मरते रहते हैं ...
हर साल कोयला खानों में ही हज़ारों लोग मर जाते हैं ...
परमाणु उर्जा संयंत्रों में इतने ज्यादा सुरक्षा उपाय किये जाते हैं तभी तो यह इतनी सुरक्षित उर्जा स्रोत मन जाता है ...
बाकी के उर्जा स्रोत के बारे में हमें देखना ज़रूर है पर उनके अपने कुछ सीमाएं हैं ... ऐसी एक परेशानी है जगह की ... इसके बारे में मैंने अपने पोस्ट में लिखा है ...
और भी बहुत सारी बातें हैं जिसके बारे में फिर कभी बताऊंगा ...
जानकारीपरक आलेख!
ReplyDelete--
टीम इण्डिया ने 28 साल बाद क्रिकेट विश्व कप जीतनें का सपना साकार किया है।
एक प्रबुद्ध पाठक के नाते आपको, समस्त भारतवासियों और भारतीय क्रिकेट टीम को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सैल जी, इस महत्वपूर्ण पोस्ट को यहां देने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteआजकल मेरा फिरोजाबाद ट्रांसफर हो गया है, इसलिए नेट से जुड पाना बहुत दूभर हो रहा है।
सैल जी, इस महत्वपूर्ण पोस्ट को यहां देने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteआजकल मेरा फिरोजाबाद ट्रांसफर हो गया है, इसलिए नेट से जुड पाना बहुत दूभर हो रहा है।
भौतिकशास्त्र में विकिरण या रेडिएशन से आशय एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें गतिशील कण या तरंगें किसी माध्यम अथवा स्पेस के जरिये आगे बढ़ते हैं। जापान में भूकंप और सुनामी के बाद सबसे बड़ा खतरा परमाणु विकिरण का पैदा हो गया है। वहां के फुकुशीमा परमाणु संस्थान में हुए दो विस्फोटों से स्थिति द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी में अमरीका द्वारा परमाणु बम गिराये जाने के बाद के जैसी हो गयी है। सनद रहे कि उस बेरहम हमले में जापान के 2 लाख 10 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। इसलिए जापान में भूकंप और सुनामी से भी ज्यादा अगर दहशत इस समय किसी चीज की है तो वह रेडियो विकिरण की है।
ReplyDeleteदो तरह का विकिरण होता है—आयनीकृत (आयोनाइजिंग) और गैर आयनीकृत (नॉन आयोनइजिंग)। रेडिएशन या विकिरण शब्द दोनों ही तरह के विकिरणों के लिए इस्तेमाल होता है। लेकिन जब हम गैर आयनीकृत विकिरण की बात करते हैं तो उसे स्पष्ट रूप से नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन या गैर आयनीकृत विकिरण लिखते हैं।
परमाणु बिजली घरों से जो कचरा उत्पन्न होता है उससे भी सालों तक रेडिएशन पैदा होता है। लेकिन जब जापान जैसे हालात पैदा हो जाएं कि किसी परमाणु संस्थान में विस्फोट हो जाए तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि रेडिएशन की कितनी बड़ी आशंका पैदा हो जाती है। रेडिएशन में अल्फा, बीटा और गामा किरणें निकलती हैं। अल्फा किरणों वाले विकिरण कण बाहरी अवरोध से रोके जा सकते हैं। बीटा किरणों वाले विकिरण कणों को अल्यूमीनियम की प्लेट या चादर से रोका जा सकता है जबकि गामा रेडिएशन वाले कण बहुत खतरनाक होते हैं। इन्हें जमीन में गाड़कर ही निपटाया जाता है।
दुनिया में ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों के चलते परमाणु बिजली घर बड़ी संख्या में बनाए गए हैं लेकिन कचरे को निपटाने की अभी कोई ऐसी अंतिम फुलप्रूफ व्यवस्था नहीं है जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि रेडिएशन का खतरा खत्म हो गया है। जिस तरह से जीवाश्म ऊर्जा की कमी हो रही है और परमाणु ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ रही है, उसके चलते दुनिया दिन पर दिन रेडिएशन के शिकंजे में फंस रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आंकलन के मुताबिक खनिज तेल से उत्पन्न प्रदूषण से हर साल दुनियाभर में 30 लाख से ज्यादा मौतें होती हैं। लेकिन जब इसी पैमाने पर परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल होगा तो वैज्ञानिकों का मानना है कि रेडिएशन से मरने वाले लोगों की संख्या कहीं ज्यादा होगी।
परमाणु ऊर्जा से निकलने वाली एक्स रे, गामा रेज, सुपर अल्ट्रा वायलेट जैसी किरणें ही रेडिएशन हैं। अल्फा किरणें आमतौर पर तब बड़ी मात्रा में उत्सर्जित होती हैं जब कोई बड़ा परमाणु विखंडन होता है। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अनुसार 88′ रेडिएशन प्राकृतिक स्रोतों मसलन सूर्य की रोशनी, भूमि से निकलने वाली ऊर्जा या कहीं-कहीं चट्टानों से निकलने वाली गर्मी के कारण होता है। महज 12 फीसदी रेडिएशन ही परमाणु बिजली घरों या दूसरे परमाणुवीय गतिविधियों के चलते होता है। चिकित्सकीय उपकरणों तथा मोबाइल टावरों से भी रेडिएशन होता है। सूर्य के प्र्रकाश या भूमि से निकलने वाली ऊष्मा भी रेडिएशन पैदा करती है। लेकिन मानव स्वास्थ्य के लिए यह ज्यादा खतरनाक नहीं होती; क्योंकि इनका प्रभाव संघनित या फोकस्ड नहीं होता। लेकिन परमाणु बिजली घरों से होने वाला रेडिएशन न सिर्फ बहुत खतरनाक है बल्कि भविष्य में इसके और ज्यादा बढऩे की आशंका है।
यदि किसी संस्थान को अपनी गतिविधियों में रेडिएशन का इस्तेमाल करना होता है तो वहां रेडिएशन मॉनिटर रखना होता है जिससे आंकड़ों का डाटा रखा जा सके। दरअसल यह डाटा इसलिए रखना जरूरी होता है क्योंकि परमाणु ऊर्जा नियामक एजेंसी समय-समय पर इसे चेक करती है और इसके मुताबिक कायदे कानून तय करती है। अगर विकिरण ज्यादा हो रहा हो तो उसे कम किया जाता है; लेकिन यह परमाणु ऊर्जा एजेंसी के द्वारा ही किया जाता है। जब चिकित्सकीय वजहों से रेडिएशन की डोज दी जाती है तो उसका भी रिकॉर्ड रखा जाता है। क्योंकि उससे ही तय होता है कि भविष्य में उस व्यक्ति को किस तरह के खतरे हो सकते हैं। रेडिएशन की और भी कई समस्याएं हैं।
आज सावधानी की ज़रूरत है ... बेवकूफी की नहीं ... दोनों बातों में फर्क है ...
ReplyDelete"लेकिन जब जापान जैसे हालात पैदा हो जाएं कि किसी परमाणु संस्थान में विस्फोट हो जाए तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि रेडिएशन की कितनी बड़ी आशंका पैदा हो जाती है।"
ReplyDeleteसबसे पहली बात तो यह बता दूँ कि किसी भी परमाणु संयंत्र में विष्फोट नहीं हो सकता है ... एक परमाणु बम और एक परमाणु संयंत्र में फर्क होता है ... जहाँ बम में HEU इस्तमाल होता है वहीँ संयंत्र में LEU इस्तमाल होता है (इनका हिंदी प्रतिशब्द मुझे पता नहीं है इसलिए मैं अंग्रेजी के शब्द ही इस्तमाल कर रहा हूँ ... माफ कर दीजियेगा) ...
जापान में कोई विश्फोर नहीं हुआ है ... ज़रा खबरों को फिर से देख लीजियेगा ... चेरनोबिल में भी कोई विष्फोट नहीं हुआ था ...
जिस विष्फोट की बात अखबार वाले कर रहे हैं वो uranium इंधन की वजह से नहीं कुछ hydrogen गैस बन जाने के कारण हुए हैं ...
आपके जानकारी के लिए बता दूँ कि हर साल कोयले खदानों में विष्फोट से हज़ारों लोग मरते हैं ...
चेरनोबिल में जिस तरह के रिअक्टार इस्तमाल हुए थे ... वैसे रिअक्टार ज्यादातर रशिया में ही इस्तमाल होते हैं ... भारत में जिस प्रकार के रिअक्टार इस्तमाल होते हैं वो अलग प्रकार के हैं और ज्यादा सुरक्षित हैं ...
भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम के बारे में आप यहाँ जान सकते हैं :
ReplyDeletehttp://www.dae.gov.in/power/npcil.htm
http://en.wikipedia.org/wiki/India%27s_three_stage_nuclear_power_programme
http://india.gov.in/sectors/science/nuclear_stage_III.php
http://www.dae.gov.in/publ/3rdstage.pdf
इससे आप यह जान पाएंगे कि दरअसल परमाणु उर्जा संयंत्रों में इस्तमाल होने वाला 95% उर्जा अवशेष फिर से इस्तमाल किया जायेगा ...
बाकी के अवशेष को भी ठिकाने लगा दिया जायेगा ...
यह अवशेष खतरनाक है ये बात हमारे परमाणु उर्जा संयंत्र के वैज्ञानिकों को अच्छी तरह पता है ... और इसलिए इनको जब ठिकाने लगया जायेगा तब ये ध्यान रखा जायेगा कि और विशेष सावधानी बरती जायेगी कि किसीको कोई ख़तरा न रहे ...
"दुनिया में ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों के चलते परमाणु बिजली घर बड़ी संख्या में बनाए गए हैं लेकिन कचरे को निपटाने की अभी कोई ऐसी अंतिम फुलप्रूफ व्यवस्था नहीं है"
ReplyDeleteक्या ताप विद्युत संयंत्रों से निकले अवशेष, धुंआ इत्यादि को निपटने की "अंतिम फुलप्रूफ व्यवस्था" हो चुकी है ?
क्या आपको पता है कि ताप उर्जा संयंत्रों से किस प्रकार के अवशेष निकलते हैं ?
उससे निकला हुआ धुंआ कितना खतरनाक है ?
उससे हर साल कितने लोग फूसफूस के कैंसर से मरते हैं ?
ताप विद्युत संयंत्रों से जो धुंआ और धुल निकलता है उससे कई प्रकार की बिमारी होती है ...
केवल इतना ही नहीं उससे पर्यावरण को कितना नुक्सान पहुँचता है ?
आपने रेडियोधर्मी विकिरण के बारे में अच्छी मूलभूत जानकारी दी है ... चलिए इस बारे में थोडा और आगे चलते हैं ...
ReplyDeleteज़रा इस लिंक पे नज़र घुमाके आइये ...
http://www.informationisbeautiful.net/visualizations/radiation-dosage-chart/
कभी भी किसी बात की सतही जानकारी नहीं होनी चाहिए ...
और जब हम किसी उर्जा संयंत्र या कार्यक्रम की नुक्सान गिनाते हैं तो ज़रा तुलनात्मक ढंग से बात करें तो बेहतर होगा ...
वरना वही बात हो जायेगी कि "शेर शेर" चिल्लाओ और बच्चा डर से ही मर जाये ...
"सनद रहे कि उस बेरहम हमले में जापान के 2 लाख 10 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।"
ReplyDeleteक्या आपको पता है कि हर साल दुनिया भर में केवल हिंसा के कारण (चाकू, तलवार, बन्दुक की गोली) २,०००,००० से ज्यादा लोग मारे जाते हैं ...
जैसे कि मैंने पहले ही कह चूका हूँ हम चाकू का इस्तमाल सब्जी काटने के लिए भी कर सकते हैं और गला काटने के लिए भी ... ये तो इस्तमाल करनेवाले पर है ... पर हम चाकू का इस्तमाल अब तक बंद नहीं किये हैं ... न ही भविष्य में करेंगे ...
बम से होने वाली मौत को परमाणु उर्जा संयंत्रों के साथ जोडके देखना शायद उपरोक्त इस्तमाल वाली बात जैसी हो गई ...
जैसे कि मैंने पहले भी कह चूका हूँ ... कि परमाणु उर्जा संयंत्र के सामान्य कार्यकाल के दौरान ये दुनिया का सबसे सुरक्षित उर्जा स्रोत होता है ... कोई विकिरण नहीं, कोई गैस नहीं, कोई पर्यावरण को नुक्सान नहीं ...
केवल भयानक दुर्घटना के चलते ही ये खतरनाक हो सकता है ... वो भी हर बार नहीं ...
इस बारे में मैंने अपने पोस्ट में जानकारी दी है ... ज़रा ध्यान से पढियेगा ...
@Indranil Bhattacharjee ........."सैल"
ReplyDeleteधन्यवाद
मै जानता हूँ
पर ये जरूरी था
और सब के लिए भी
आभार
यदि आपकी बात मान ली जाए तो हमें ये कहना पड़ेगा कि ये जापान और फ़्रांस के लोग निहायत बेवक़ूफ़ हैं जो इतने सालों से परमाणु उर्जा पे भरोसा किये बैठे हैं ...
ReplyDeleteध्यान रहे कि ये दोनों देश दुनिया के सबसे उन्नत देशों में गिने जाते हैं ...
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी इनका परमाणु उर्जा पे भरोसा करना ... देखिये कितने बेवक़ूफ़ हैं ये !
और इस दुर्घटना के बाद भी जापानी लोग ये कह रहे हैं कि परमाणु उर्जा दुनिया का सबसे सुरक्षित उर्जा है ... हद हो गई ...
दुनियाभर के वैज्ञानिक हर उर्जा स्रोत के तुलनात्मक अध्ययन करते हैं, कर चुके हैं और तभी कह रहे हैं कि परमाणु उर्जा स्रोत एक सुरक्षित उर्जा स्रोत है ... और केवल सुरक्षित ही नहीं ... बाकी के उर्जा स्रोत के तुलना में आर्थिक दृष्टि से भी बेहतर है ...
ReplyDeleteज़रा इस लिंक पे नज़र डालियेगा ...
http://solareis.anl.gov/guide/environment/index.cfm
PARMANU OORJA KO LEKAR IS GYANVARDHAK JANKAARI KO DAINIK HINDUSTAN KE TAIYARI PAGE MEIN AGLE MONDAY KO 1.2 MILLION READERS MEIN LE JANE KI BAARI HAMARI HAI, THANX. IZZAZAT MAIL KAREIN TO....
ReplyDeletePRADEEP SANGAM
@ प्रदीप जी,
ReplyDeleteमुझे कोई ऐतराज़ नहीं है ... मुझे खुशी होगी इस बात की ...
आप अपना मेल पता दीजिए ... मेरा पता है
indraneel1973@gmail.com
@बवेजा जी,
ReplyDeleteलोगों के मन से निरर्थक डर को हटाना आप-हम जैसे विज्ञानं से जुड़े लोगों का काम है ...
कृपया इसमें मेरा साथ दें ...
यदि परमाणु उर्जा नुकसानदेह होता तो मैं खुद इसके खिलाफ बात करता ...
कोई शक नहीं है कि इसके कुछ बुरी बात ज़रूर है ... पर हर उर्जा स्रोत के कुछ न कुछ बुराई है ... हमें तुलनात्मक अध्ययन करना होगा ...
हर बात को तुलनात्मक ढंग से देखने पर पता चलता है ... कि परमाणु उर्जा अपनी बुराइओं के बावजूद एक सुरक्षित और आर्थिक दृष्टि से लाभदायक स्रोत है ...
मैं बाकी के उर्जा स्रोत के खिलाफ नहीं हूँ ...
बस मैं ये कहना चाहता हूँ कि हम समय, स्थान, ज़रूरत और संस्थान को ध्यान में रखते हुए अलग अलग उर्जा स्रोत का इस्तमाल करें ...
किसी भी उर्जा स्रोत को यूँही सोचे समझे बिना खारिज नहीं करना चाहिए ...
खास कर डर के कारण तो बिलकुल नहीं
मै तो आपके साथ ही हूँ ये तो स्वस्थ चर्चा के लिए जरूरी था जी
ReplyDeleteताकि भ्रान्ति पूरी तरह से दूर हो सके
@ दर्शनलाल जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ! आपका साथ पाकर अच्छा लग रहा है ... दरअसल आपने जो लिखा था ... उससे शायद मुझे ही यह गलफहमी हो गई कि डर की बात हो रही है ... खैर सबके जानकारी के लिए एक बढ़िया लिंक दे रहा हूँ .... इसे ज़रूर देखिएगा ...
http://www.washingtonpost.com/national/the-human-toll-of-coal-vs-nuclear/2011/04/02/AFOVHsRC_graphic.html
Aavashyakta Urja par atinirbharata aur inke apvyay ko niyantrit karne ki hai, magar Vikas ke liye Urja ki aavashyakta abhi aisa hone nahin degi. Aise mein Urja ke vividh sansadhanon ka saynamit upyog karna hi hoga.
ReplyDeleteAisi durghatnayein jagrukata aur sakaratmak parivartan bhi layengin.
@ अभिषेख जी,
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत हूँ उर्जा पे अतिनिर्भरता और इनका अपव्यय को नियंत्रित करना ज़रूरी है ...
पर यहाँ एक बात कहना चाहूँगा कि ... भारत वैसे ही उर्जा उपयोग के क्षेत्र में दुनिया में सबसे पीछे है ... हम भारतवासी इतना कम उर्जा से चला लेते हैं कि अब उर्जा अपव्यय रोकने का बहुत ज्यादा गुंजाईश नहीं है ...
हमारी बढती जनसँख्या की वजह से देश पे उर्जा संकट मंडरा रहा है ... देश में ज्यादातर भागों में विद्युत कटौती की जा रही है ...
इसलिए इस समय उर्जा अपव्यय रोने से काम नहीं चलेगा ... हमें ज्यादा उर्जा की ज़रूरत है जिसे हम विभिन्न स्रोत से हासिल कर सकते हैं ...
बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteमैं यह ब्लॉग पढता नहीं था इसलिये इस पोस्ट से वंचित रह गया था। इन्द्रनील जी, इस आलेख और टिप्पणियों के द्वारा शंका-निराकरण के लिये बधाई के पात्र हैं। भविष्य में भी इसी प्रकार की गुणवत्ता वाले आलेखों को प्रमुखता दी जानी चाहिये। [छपाई की एक त्रुटि है - थ्री माइल आइलैंड का देश सन्युक्त राष्ट्र नहीं सन्युक्त राज्य अमेरिका है]
ReplyDelete@ स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteधन्यवाद सराहने के लिए ... आपने जो सुधार का सुझाव दिया है वो कर दिया गया है ...
I very much agree with Ashok Pandey.
ReplyDeleteBut I believe that nuclear energy is not a panacea for climate change and the footprints it will leave are not likely to be green. We need to tackle climate change through improved energy efficiency and better demand and supply management, along with a greater emphasis on renewable solar and wind energy. •
TOKYO (Kyodo) -- Industry minister Yoshio Hachiro said Tuesday that the number of Japan's nuclear power plants would be "zero" in the future, based on Prime Minister Yoshihiko Noda's policy of not building new nuclear power plants and decommissioning aged ones.
ReplyDelete"Considering the premier's remarks at press conferences, it would be zero," Hachiro told reporters in answer to the question whether the number of nuclear plants would reduce to none in the future.
http://mdn.mainichi.jp/mdnnews/news/20110906p2g00m0dm118000c.html
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जो आप फरमा रहे हैं काश वह जापानियों को भी समझ आ जाए. वैसे जापानी परमाणु प्राद्यौगिकी के मामले में हमसे कहीं उन्नत और अनुभवी हैं, फिर इन्होने परमाणु ऊर्जा से तौबा करने का फैसला क्यों लिया? कुछ महीनो में फ़्रांस से भी कुछ ऐसी ही खबर आणि है की अब नए रिएक्टर नहीं लगेंगे, और पुराने हटाए जाएँगे.