विशेष लेख: भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद: चिकित्सा अनुसंधान में अग्रणी डॉ. के.एन. पांडेय* किसी भी राष्ट्र की प्रगति उसके...
विशेष लेख:
आईसीएमआर, नई दिल्ली
आभार : पत्र सूचना कार्यालय भारत सरकार
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद: चिकित्सा अनुसंधान में अग्रणी
डॉ. के.एन. पांडेय*
किसी भी राष्ट्र की प्रगति उसके स्वस्थ नागरिक पर निर्भर करती है। देश का नागरिक रोग मुक्त रहे, स्वस्थ रहे, उसे पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं मिलें, इसके लिए सरकार की ओर से अनेक कदम उठाए जाते हैं। भारत सरकार का स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भी इस दिशा में पूर्णरूपोण समर्पित है। इसके बावजूद विशाल देश की स्वास्थ्य समस्याएं भी गंभीर हैं। आज देश में प्रतिवर्ष 15 लाख लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं, जिनमें हाल में लगभग 750 मौतें हुई हैं। लगभग 20,000 लोग डेंगू की चपेट में आते हैं, जिनमें 169 मौतें हुईं। वर्ष 2011 में जेईके 8249 मामले प्रकाश में आए, जिनमें 1169 मौतें हुईं। कालाज़ार से लगभग 33000 लोग पीडि़त हुए, जिनमें लगभग 80 मौतें हुईं। इसी प्रकार देश की एक बड़ी आबादी हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर तथा अन्य असंचारी रोगों से पीडि़त हैं। इन स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने की दिशा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत गठित स्वास्थ्य अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के देश भर में स्थित 33 संस्थानों और कई क्षेत्रीय इकाइयों के माध्यम से विविध क्षेत्रों में शोध कार्य जारी हैं।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, (Indian Council of Medical Research -ICMR), नई दिल्ली भारत में बायोमेडिकल क्षेत्र में अनुसंधान करने, समन्वय स्थापित करने तथा शोध कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की शीर्षस्थ संस्था है। इसकी संस्थापना वर्ष 1911 में इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन (IRFA) के रूप में की गई थी, जिसे वर्ष 1949 में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के नाम के साथ नई दिल्ली स्थित वर्तमान भवन में स्थानांतरित किया गया। बाद में परिषद ने चिकित्सा विज्ञान में अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की। परिषद के अपने संस्थानों द्वारा किए जा रहे शोध कार्यों (इंट्राम्युरल शोध) के अलावा परिषद द्वारा देश भर में स्थित विभिन्न शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों को तदर्थ एवं टास्क फोर्स परियोजनाओं के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करके एक्स्ट्राम्युरल अनुसंधान को प्रोत्साहन दिया जाता है।
मानव संसाधन विकास के अंतर्गत परिषद द्वारा जूनियर रिसर्च फैलोशिप्स, सीनियर रिसर्च फैलोशिप्स के साथ-साथ अंडरग्रेजुएट मेडिकल स्टूडेंट्स जैसे विविध कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं। वैज्ञानिकों को भारत में अन्य प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थानों में उन्नत शोध तकनीकों को सीखने के लिए लघुकालिक विजि़टिंग फैलोशिप्स प्रदान की जाती है। इसके अलावा, विदेशों में सम्मेलनों में भाग लेने हेतु यात्रा के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। परिषद द्वारा सेवा निवृत्त वैज्ञानिकों/शिक्षकों को इमेरिटस साइंटिस्ट का पद प्रदान किया जाता है, जिससे वे जैवआयुर्विज्ञान के विशिष्ट विषयों पर शोध कार्य कर सकें।
परिषद के विभिन्न अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से संचारी रोगों, असंचारी रोगों, मौलिक आयुर्विज्ञान, प्रजनन स्वास्थ्य, पोषण के क्षेत्र में लक्ष्योन्मुख अनुसंधान किए जाते हैं। परिषद के 6 क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्रों के माध्यम से क्षेत्रीय स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने की दिशा में शोध कार्य किए जा रहे हैं। जिनमें विशेषतया जनजातीय, पूर्वोत्तर, मरुस्थली क्षेत्रों की स्वास्थ्य समस्याओं पर शोध कार्य किए जा रहे हैं।
परिषद द्वारा स्वास्थ्य प्रणाली अनुसंधान संस्थानों के माध्यम भारतीय स्वास्थ्य प्रणालियों को सुदृढ़ बनाने और उन्हें बेहतर बनाने के उद्देश्य से अनुसंधान को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। ट्रांसलेशनल अनुसंधान यूनिट द्वारा आईसीएमआर के संस्थानों/केंद्रों में स्थित 25 ट्रांसलेशनल अनुसंधान सेल्स की गतिविधियों को सहायता प्रदान की जाती है। इन गतिविधियों के अंतर्गत स्वदेशी उत्पादों, प्रक्रियाओं और विधियों को विकसित करने की दिशा में नवाचारों (इनोवेशंस) की पहचान एवं विकास करना है, जिनमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यकमों में परिवर्तित किए जाने की संभावना है। सामाजिक एवं व्यवहारात्मक अनुसंधान के क्षेत्र में टास्क फोर्स अध्ययनों/परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करके किशोरवय के प्रजनन स्वास्थ्य एवं यौन आचरण, महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े मामले, एचआईवी/एड्स आदि जैसे क्षेत्रों में शोधकार्य को बढ़ावा दिया जा रहा है। परिषद के अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रभाग द्वारा विशिष्टि समझौतों/सहमति ज्ञापनों के माध्यम से भारत और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के बीच बायोमेडिकल अनुसंधान हेतु अंतरराष्ट्रीय सहयोग का समन्वय किया जाता है।
औषधीय पादप यूनिट द्वारा औषधीय पादपों के क्षेत्र में पुस्तकों/मोनोग्राफ्स की श्रृंखला का प्रकाशन किया जा रहा है, जिनमें रिव्यूज़ ऑन इंडियन मेडिसिनल प्लांट्स, मोनोग्राफ्स ऑफ डिसीजे़ज ऑफ पब्लिक हैल्थ इम्पॉर्टैंस प्रमुख हैं। आईसीएमआर के प्रकाशन एवं सूचना प्रभाग द्वारा चिकित्सा जगत में प्रसिद्ध इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च, आईसीएमआर पत्रिका के प्रकाशन के साथ-साथ अनेक पुस्तकों, टेक्निकल रिपोर्ट्स आदि का भी प्रकाशन किया जाता है। जन साधारण में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में जागरूकता उत्पन्न करने हेतु विविध अवसरों पर प्रदर्शनियां भी आयोजित की जाती हैं।
शब्ताब्दी समारोहों का आयोजन
नवंबर 2011 में आईसीएमआर के राष्ट्र की सेवा में 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर परिषद मुख्यालय के साथ-साथ परिषद के संस्थानों द्वारा कार्यशालाओं, सम्मेलनों, व्याख्यानों, सेमिनारों, संगोष्ठियों का आयोजन किया गया। इनका उद्देश्य भारत में बेहतर स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में वर्तमान शोध कार्यक्रमों और नई नीतियों को विकसित करने की दिशा में जारी प्रयासों की समीक्षा करना था। परिषद मुख्यालय द्वारा आयोजित विशेष शताब्दी समारोहों के अंतर्गत दिनांक 8 नवंबर, 2011 को माननीय केंद्रीय दूर संचार एवं प्रौद्योगिकी मंत्री श्री कपिल सिब्बल, माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री श्री एस.गांधीसेल्वन एवं श्री सुदीप बंधोपाध्याय द्वारा पांच रुपये मूल्य के आईसीएमआर शताब्दी वर्ष संस्मारक डाक टिकट जारी किए गए। आईसीएमआर शताब्दी वर्ष समापन समारोह पर दिनांक 15 नवंबर, 2011 को माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आज़ाद द्वारा पांच और सौ रुपये के आईसीएमआर शताब्दी संस्मारक सिक्के जारी किए गए। इस अवसर पर मंत्री महोदय ने आईसीएमआर की गतिविधियों पर निर्मित वीडियो फिल्मों युक्त एलबम भी रिलीज् किए।
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग
मौलिक, व्यावहारिक और चिकित्सीय अनुसंधान के लिए मानव संसाधनों को बढ़ाने, मूलभूत ढांचे को विकसित करने के माध्यम से देश में आयुर्विज्ञान को बढ़ावा देने के मुख्य उद्देश्य से वर्ष 2007 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग की स्थापना की गई। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की प्रशासनिक एवं निगरानी प्रक्रिया भारतीय जनसामान्य के लाभ के लिए शोध एवं विकास हेतु स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के लिए एक आधार के रूप में कार्य करेगी।
इस नवीन विभाग को सौंपी गई जिम्मेदारियां निम्न हैं :
1. मेडिकल, बायोमेडिकल और स्वास्थ्य अनुसंधान से संबद्ध क्षेत्रों में मौलिक, व्यावहारिक और क्लीनिकल अनुसंधान को बढ़ावा देना और समन्वय स्थापित करना।
2. मेडिकल और स्वास्थ्य अनुसंधान में एथिकल पहलुओं सहित शोध गवर्नैंस पर दिशानिर्देश देना एवं बढ़ावा देना।
3. मेडिकल, बायोमेडिकल और स्वास्थ्य अनुसंधान से संबद्ध क्षेत्रों में पब्लिक-प्राइवेट भागीदारी को बढ़ावा देना और अंतर्क्षेत्रीय समन्वय स्थापित करना।
4. भारत और विदेश में मेडिसिन और स्वास्थ्य से जुड़े शोध क्षेत्रों में उन्नत प्रशिक्षण हेतु फैलोशिप्स सहित वित्तीय सहायता प्रदान करना।
5. भारत और विदेश में संबंधित क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों सहित मेडिकल और स्वास्थ्य अनुसंधान में अंतरराष्ट्रीय सहयोग।
6. महामारियों और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में तकनीकी सहायता प्रदान करना।
7. नवीन एवं बाह्य कारकों से उत्पन्न प्रकोपों का अध्ययन करना उनके निवारण हेतु साधन विकसित करना।
8. चिकित्सा और स्वास्थ्य अनुसंधान के क्षेत्रों में वैज्ञानिक संस्थाओं एवं संगठनों, चैरिटेबल और धार्मिक निधियों से संबंधित विषय।
9. इस विभाग को सौंपे गए विषयों से संबंधित क्षेत्रों में केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के अंतर्गत आने वाली संस्थाओं एवं संस्थानों के बीच समन्वय स्थापित करना तथा चिकित्सा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेष अध्ययनों को बढ़ावा देना।
प्रमुख नवीन उपलब्धियां
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के अंतर्गत भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की कुछ प्रमुख नवीन उपलब्धियां निम्न हैं :
जनजातीय स्वास्थ्य अनुसंधान फोरम, वेक्टर साइंस फोरम, मेडिकल कॉलेजों को विशेष सहायता और ट्रांसलेशनल अनुसंधान जैसे 4 प्रमुख कार्यक्रमों की शुरुआत की गई।
जनजातीय स्वास्थ्य अनुसंधान फोरम का उद्देश्य जनजातीय स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत आईसीएमआर के 7 संस्थानों के शोध कार्यों को गहन और सहक्रियात्मक बनाना है।
वेक्टर साइंस फोरम का उद्देश्य विशेष ध्यानाकर्षण वाले नवीन क्षेत्रों की पहचान करने और प्रगति की समीक्षा करने हेतु रोगवाहक जन्य रोगों पर समन्वित शोध की बैठकों को बढ़ावा देना है, जिससे उन्हें राष्ट्रीय कार्यक्रमों में सम्मिलित किया जा सके।
भारत के अनेक मेडिकल कॉलेजों विशेषतया उत्तर और पूर्वोत्तर के राज्यों में स्थित मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी सदस्यों को शोधविधि और अध्ययन की रूपरेखा तैयार करने हेतु गहन प्रशिक्षण एवं प्रारंभिक शोध ग्रांट देने की शुरुआत की गई है।
ट्रांसलेशनल अनुसंधान के अंतर्गत विभिन्न शोध कार्यों से प्राप्त नवीन विधियों, उत्पादों, प्रक्रियाओं की पहचान करना और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करना सम्मिलित है, जिससे रोग नियंत्रण कार्यक्रमों में उनका व्यापक प्रयोग किया जा सके।
भारत और विदेश में लगभग 50 पेटेंट फाइल किए गए और अनेक प्रौद्योगिकियां जनसामान्य को उपलब्ध कराए जाने की उन्नत अवस्था में हैं।
प्रौद्योगिकी विकास एवं ट्रांसलेशनल अनुसंधान
· रोगवाहक मच्छरों में जेई वायरस प्रतिजन की पहचान।
· मलेरिया पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को ज्ञात करने हेतु जलवायु आधारित मॉडल विकसित।
· कालाज़ार के लिए उतरदायी लीशमानिया डोनोवानी पेरासाइट की पहचान हेतु जाति-विशिष्ट पीसीआर विधि विकसित।
· डेंगू वायरल RNA की पहचान हेतु एक रियल टाइम RT-PCR विधि विकसित।
· जेई के लिए एक किट विकसित और राष्ट्रीय कार्यक्रम में उसकी आपूर्ति।
· मच्छर डिंभकनाशी, बैसिलस थुरिंजिएंसिस वैर.इज़राइलेंसिस के उत्पादन की प्रौद्योगिकी विकसित और उद्योग को हस्तांतरित।
· बाईवैलेंट त्वरित नैदानिक मलेरिया किट का परीक्षण किया गया, संस्तुत और राष्ट्रीय कार्यक्रम में सफलतापूर्वक सम्मिलित होने की दिशा में अग्रसर।
· विशरल लीशमैनियता (VL) और PKLD के चिकित्सीय नमूनों में परजीवी भार का पता लगाने के लिए रियल टाइम PCR आमापन विधि विकसित।
जीवाणुज रोग/अतिसारीय रोग/प्रजनन स्वास्थ्य/मानसिक स्वास्थ्य
· TB और लेप्रा बैसिलाई की उत्तरजीविता का अध्ययन करने के लिए DNA चिप्स विकसित।
· TB में रिफैम्पिसिन, आइसोनियाजि़ड और इथमब्युटॉल के प्रति प्रतिरोध की पहचान के लिए वीन त्वरित आण्विक विधियां विकसित।
· TB और अन्य माइकोबैक्टीरियल संक्रमणों के निदान हेतु उपयोगी एक नवीन DNA फिंगरप्रिंटिंग विधि विकसित।
· कॉलरा के त्वरित निदान के लिए एक प्रतिरक्षा-क्रोमैटोग्राफिक डिपस्टिक किट विकसित।
· हीमोग्लोबिन विकृति की पहचान के लिए जिम्मेदार फ्रैज़ाइल एक्स-सिंड्रोम के लिए एक सरल और सस्ती जांच विधि विकसित।
पोषण
· दोहरे पुष्टीकृत नमक (DFS) और लौह एवं अन्य आवश्यक पोषक तत्वों के साथ गेहूं के आटे के पुष्टीकरण की प्रौद्योगिकियां उद्योग को हस्तांतरित।
· हीमोलाइटिक अरक्तता में ऑस्मोटिक फ्रैजिलिटी के मूल्यांकन हेतु एक सस्ती, त्वरित एवं शुद्ध फ्लो साइटोमीट्रिक तकनीक स्थापित।
· सूखे रक्त स्पॉट का प्रयोग करते हुए रक्त नमूनों में विटामिन ए के आकलन की प्रौद्योगिकी विकसित।
अन्य माइक्रोबियल संक्रमण
· लेप्टोस्पाइरोसिस के लिए त्वरित lgM एलाइज़ा और लेटेक्स एग्लूटिनेशन परीक्षण विकसित।
· पूर्वोत्तर भारत में पैरागोनिमस जाति की विशेषता ज्ञात करने के पश्चात पैरागोनिमिएसिस (लंग फ्लूक) की पहचान हेतु एलाइज़ा किट विकसित।
· क्लैमाइडिया ट्राइकोमैटिस संक्रमण ग्रस्त रोगियों की पहचान के लिए मोनोक्लोनल प्रतिपिंड आधारित स्वदेशी नैदानिक आमापन विधि विकसित।
इनके अलावा परिषद के विभिन्न संस्थानों में राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सम्मिलित किए जाने से पूर्व अनेक चिकित्सीय परीक्षण जारी हैं। ये परीक्षा विषाणुविज्ञान, अतिसारीय रोगों, जीवाणुज रोगों, रोगवाहक जन्य रोगों, प्रजनन स्वास्थ्य, पोषण आदि क्षेत्रों में जारी है। इनके साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में जानपदिक रोगविज्ञानी/परिचालन अनुसंधान भी जारी हैं।
हाल ही में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के अंतर्गत आईसीएमआर के नेटवर्क में दो नए संस्थानों/केंद्रों को क्रमश: स्थापित एवं सम्मिलित किया गया है। ये हैं - (1) बेंगलुरू स्थित राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र तथा (ए) भोपाल स्थित भोपाल स्मारक अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्रों इनके अलावा आईसीएमआर संस्थानों के कुछ नवीन फील्ड/स्टेशनों की भी स्थापना की गई, जिनमें प्रमुख हैं - कार निकोबार, नॉनकॉवरी, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह; गोरखपुर, उत्तरप्रदेश; अलपुझा; केरल; रायगढ़ एवं कालाहांडी; उड़ीसा; गुवाहाटी, असम। इनका उद्देश्य स्थानीय समुदायों की स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करना है।
वर्तमान में डॉ. विश्व मोहन कटोच स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव हैं, जो भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक भी हैं। उन्होंने सूक्ष्म जीवविज्ञान, विशेषतया क्षयरोग और कुष्ठरोग के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक शोध कार्य किए हैं, जिनके परिणामस्वरूप देश-विदेश के उत्कृष्ट मेडिकल जर्नलों में उनके 250 से अधिक उच्च कोटि के शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं।
*वैज्ञानिक 'ई'
प्रकाशन एवं सूचना प्रभाग
आईसीएमआर, नई दिल्ली
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आदरणीय पाण्डेय जी, आपने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के योगदानों को बहुत ही सरल शब्दों में रेखांकित किया है। अच्छा लगा उसके बारे में विस्तार से जानना। आभार।
ReplyDeleteDear Dr Zakir Ali Rajnish ji, I am glad to see your encouraging comments. Regards. Dr K N Pandey
Deleteभारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद् का विस्तृत लेखा जोखा आपने मुहैया करवाया ,इसकी गति -विधियों को समझाया आभार डॉ जाकिर भाई ,डॉ परम आदरणीय पांडे जी .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
गर्भावस्था में काइरोप्रेक्टिक चेक अप क्यों ?
Dear Sharma Ji, Article aapko pasand aaya, hardik dhanyavaad. Dr K N Pandey
Deleteआई सी एम आर पर एक समग्र जानकारी आम लोगों के लिए ...
ReplyDeleteआभार डॉ. कृष्णानंद पाण्डेय जी ...
Respected Dr Mishra Ji, I express my sincere thaks for putting the article on your Blog which has enabled its wide dissemination. On behalf of ICMR and from self, I extend my gratefulness to you. Also I am thrilled to see very wise & encouraging comments from established science writers like Dr Rajnish and Mr Virendra Kumar Sharma. Regards, Dr K N Pandey
DeleteDon't mention it boss,I am doing my duty only!
DeleteGreat Boss!
DeleteDhanyavaad Dr Saheb.
ReplyDeleteआदरणीय पाण्डेय जी, इस सारगर्भित लेख को यहां पर उपलब्ध कराने का शुक्रिया। आशा है आगे भी आपका जुडाव साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के साथ बना रहेगा।
ReplyDeleteDhanyavaad.
Deleteअच्छा है बहुत सुंदर कहीं तो साइंस हो रहा है अपने इंडिया में !
ReplyDeleteThanks sir, science to ho raha hai par dissemination utna nahin ho rah jitna aavashyak hai. This Blog is doing a wonderful job in this respect. Credit goes to all cocerned fellows.
Deleteमहत्वपूर्ण संस्थान पर उपयोगी जानकारी. इनके निदेशक महोदय द्वारा इसके कुछ क्रिया कलापों की जानकारी 'सत्यमेव जयते' से भी मिली थी...
ReplyDeleteDhanyavad Mishra ji.Satyamev Jayate mein kisi anya institute ke DG mahoday ne jaankari di thi.
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteधन्यवाद. आपने सही याद दिलाया. वो शायद 'मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया' से थे...
DeleteYou are right sir. Dhanyavad for liking the article. Regards.
Deleteचिकित्सा एक जटिल विषय है। इस दिशा में चौतरफा प्रयास किए जाने की ज़रूरत है। हमारा पारम्परिक चिकित्सा-ज्ञान भी कम मूल्यवान नहीं है,किंतु इस दिशा में यह स्वदेशी संस्थान भी कुछ विशेष प्रयास करता नहीं दिखता।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThanks Mr Kumar Saheb for your valuable comments. AYUSH, an independent Department under the Min of Health & Family Welfare is totally dedicated towards the traditional systems of Medicine. However, the ICMR do supports the research projects on almost all fields of medical science including the traditional medicines to Indian universities, medical colleges & recognised research insitutions. One of ICMR institutes, Regional Medical Research Centre located at Belgaum is dedicated on traditional medicine research. A no. of Books on Medicinal Plants have also been brought out by the ICMR, the list is avaiable on icmr.nic.in . So, the ICMRs is conducting and providing financial supports in almost alls field of medical science including the traditional system of medicine. Regards.
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