आँखें हैं, तो जहान है, आँखें नहीं, तो सारी दुनिया एक धुप्प अंधकार के सिवा कुछ भी नहीं। सोचिए उनके बारे में जो किसी दुर्घटना या बीमारी ...
नेत्रदान महादान
किसी दृष्टिहीन व्यक्ति के कठिनाई भरे जीवन का अंदाज सिर्फ आप कुछ पलों के लिए अपनी आँखें बंद कर ही लगा सकते है। आँखें बंद करते ही जीवन के सुन्दर दृश्य प्राकृतिक छटायें, सूर्य, जल, पृथ्वी, आकाश व जनजीवन के विभिन्न रूप अदृश्य हो जाते हैं, वहीं मन में एक भय व असुरक्षा की भावना समा जाती है और तत्काल आँखें खोलने को मजबूर हो जाते हैं। प्रकाश व दृष्टि से परे, जीवन का एक दूसरा रूप यह भी जानिए कि पूरी दुनिया में करीब तीन करोड़ लोग पूरी तरह से दृष्टिहीन है। 80 लाख लोगों की एक आँख खराब हैं तथा 4-5 करोड़ लोग कम दृष्टि के कारण घर से बाहर निकलने, मन-माफिक काम करने, चलने फिरने से पूरी तरह बाधित हैं।
प्रकृति ने जीव को दृष्टि एक ऐसा अमूल्य उपहार दिया है, जिसकी कोई कीमत नहीं आंकी जा सकती है। जिस अंधकार में हम एक क्षण बिताने की कल्पना नहीं कर सकते, उसी गहन अंधकार में कितने ही लोग जिन्दगी गुजारने को मजबूर है। क्या इनके जीवन में प्रकाश की कोई किरण आ सकती है। इस प्रश्न का उत्तर निःसंदेह हाँ, इनमें से काफी लोग मरणोपरान्त नेत्रदान से लाभ उठा सकते हैं।
आँखों के स्वच्छ पटल अथवा कार्निया में सफेदी आने से होने वाले अंधत्व के इस उपचार के लिए सोलहवीं सदी में ही चिकित्सकों ने प्रयास शुरू किये, पर साधनों की अनुपलब्धता के कारण बात नहीं बनी। विश्व के अनेक हिस्सों में चिकित्सकों ने इस दिशा में काम आरंभ किया। 1837 से 1850 के दौरान कुछ नेत्र चिकित्सकों ने पशुओं की कार्निया प्रत्यारोपण का प्रयास किया पर अपेक्षित परिणाम नहीं ले। 1853 से 1862 के मध्य कार्निया की जगह पारदर्शी कांच लगाने के संबंध में भी प्रयास किये गये। सर्वप्रथम सन् 1771में पेलियर डी किन्जसी ने कार्निया के प्रत्यारोपण की परिकल्पना की, कि सफेद व अपारदर्शी कार्निया की जगह साफ-सुथरी स्वच्छ कार्निया प्रत्यारोपण संभव है। सन् 1888 में बान हिप्पल ने पहली बार कार्निया प्रत्यारोपण किया। इसके करीब आठ वर्ष बाद 1906में ‘‘जिम’’ ने माईक्रो सर्जरी तथा सूक्ष्म उपकरणों से कार्निया प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किया।
नेत्रदान वह प्रक्रिया है जिसमें मानव नेत्रदान द्वारा दान-दाताओं से उनकी मृत्यु के बाद ग्रहण किये जाते हैं। नेत्रदान से प्राप्त इन आंखों की स्वच्छ कार्निया को ऐसे दृष्टिहीन व्यक्ति, जिनका जीवन कार्निया में सफेदी आ जाने से अंधकारमय हो गया है, को प्रत्यारोपित कर नेत्र ज्योति लौटायी जा सकती है। आमतौर पर नेत्रदान के संबंध में अधिक जानकारी आम नागरिकों को नहीं है। नेत्रदान तथा प्रत्यारोपण में बाधक कौन-कौन सी बाते हैं? जिनकी जानकारी आमजन को होना आवश्यक है, ताकि यहां भी नेत्रदान जैसे पवित्र कार्य का विस्तार हो सके।
हर स्वस्थ व्यक्ति जिसकी आँखें सही सलामत है, नेत्रदान की घोषणा कर सकता है। इस हेतु एक शपथ का फार्म भरना होता है जो प्रायः सभी शासकीय कित्सालयों, निजी नेत्र विशेषज्ञों के पास उपलब्ध होता है। ऐसे व्यक्ति जो वायरल हिपेटाईटिस, पीलिया, यकृत रोग, रक्त कैंसर, टी.बी., मस्तिष्क ज्वर, एड्स से संक्रमित होते हैं, से नेत्र नहीं लिये जाते। अप्राकृतिक मौत, एक्सीडेन्ट की हालत में मजिस्ट्रेट की अनुमति से नेत्र ग्रहण किये जा सकते हैं। ऐसे दृष्टिहीन व्यक्ति जिनकी आँखों की कार्निया, किसी बैक्टीरिया, वायरल संक्रमण रोग, दुर्घटना, रासायनिक पदार्थो के गिरने जैसे एसिड, क्षार, घाव, अल्सर आदि के बाद सफेद व अपारदर्शी हो गई हो तथा उससे दृष्टि एकदम कम हो गई हो का इलाज नेत्रदान से प्राप्त कार्निया प्रत्यारोपण से संभव है। लेकिन रेटिना या आँखों के परदे की बीमारी, परदा उखड़ना, लेंस की बीमारी, मोतियाबिंद, आप्टिक नर्व की बीमारी व चोटों का इलाज कार्निया प्रत्यारोपण से संभव नहीं है। जिन दृष्टिहीनों की आँख पूरी की पूरी, कैंसर, चोट, या संक्रमण से निकालना पड़ा हो, उन्हें नेत्रदान से लाभ नहीं होता।
नेत्रदान से प्राप्त आंखों का स्वच्छ पटल या कार्निया जो कि पारदर्शी होती है, का ही उपयोग किया जाता है, इस ऑपरेशन को कार्निया प्रत्यारोपण ही कहा जाता है। एक और महत्वपूर्ण प्रश्न है क्या कार्निया की बीमारी से दृष्टिहीन हुए शत-प्रतिशत मरीजों में कार्निया प्रत्यारोपण संभव है? जी नहीं, कुछ ऐसी भी दशाएं है जैसे काँच बिन्दु काला मोतिया में आंखों का दबाव अधिक रहता है जिसके कारण प्रत्यारोपण असफल हो सकता है। दूसरी बात है कि यदि कार्निया की सफेदी के साथ आँख के आंतरिक भाग में भी संक्रमण या इंफेक्शन है तो कार्निया लगाने के बाद पुनः सफेदी आ जाती है।
हमारे देश में पिछले कई वर्षो से राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। अगस्त के अंतिम सप्ताह से सितम्बर के प्रथम सप्ताह तक चलने वाला यह पखवाड़ा राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जाता है। लेकिन आज भी नेत्रदान की संख्या पिछले कई वर्षो में अंगुलियों में गिनने लायक ही है। जिसके कारण नेत्रदान से लाभान्वित होने वाले मरीजों की संख्या अल्प ही रही। जबकि देश के कुछ प्रदेशों में नेत्रदाताओं की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी है।
नेत्रदान को महादान की संज्ञा दी गई है, भारत में करीब 25 लाख मरीज कार्निया के रोगों से पीड़ित है जो नेत्रदान से प्राप्त आंख की बाट जोह रहे हैं, इसमें प्रतिवर्ष 20 हजार दृष्टिहीनों की संख्या जुड़ती जा रही है। जबकि शासकीय व निजी स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रयासों के बावजूद देश में एक साल में करीब बारह हजार नेत्र प्रत्यारोपण के ऑपरेशन हो पाते हैं। श्रीलंका जैसा छोटा देश भी नेत्रदान के मामले में भारत से आगे है। नेत्र बैंकों में नेत्रदान के घोषणा पत्र हजारों की संख्या में भरे रखे हुए। मृत्युपर्यत्न दान किये जान सकने वालों नेत्रों को भी दान करने में इतना संकोच क्यों?
पहले तो शिक्षा का पर्याप्त प्रसार न होने से लोगों में तरह-तरह के अंधविश्वास तथा भ्रांतियां जैसे कुछ लोग यह मानते हैं कि नेत्रदान देने से व्यक्ति अगले जन्म में जन्मांध होगा, तो कुछ लोग भावनात्मक कारणों से मृत शरीर के साथ चीर-फाड़ उचित नहीं मानते, तथा नेत्र निकालने की अनुमति नहीं प्रदान करते है। तीसरा कारण है-जागरूकता व सामाजिक जिम्मेदारी का अभाव, कई बार नेत्रदान की घोषणा करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी उसके रिश्तेदार, परिचित नेत्र बैंक को सूचित नहीं करते। जबकि भारत में दानवीरता के किस्से हमें सुनने को मिलते रहे है। बुद्व, दधीचि, बली व कर्ण जैसे दानवीर भारत की जनता के मानव में रचे बसे हैं,उसके बाद भी नेत्रदान की कम संख्या इस पुनीत कार्यक्रम को आगे बढ़ने से रोक रही है।
नेत्रदान के अतिरिक्त अंग दान में भी अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति बेहद नाजूक है। ब्रेड डेथ के बाद एक व्यक्ति के शरीर के अंग 8 से 9 व्यक्तियों को लगाये जा सकते है, इसके अलावा 40 व्यक्तियों को छोटे छोटे अंग लगाकर उनकी शारीरिक कमियों को दूर किया जा सकता है। ब्रेन डेथ के बाद एक व्यक्ति के लगभग 37 अलग अलग अंग व टिशु निकाले जा सकते हैं। इनमें हृदय, लीवर, फेफड़े, किडनी, पैंक्रियाज मुख्य रूप से शामिल है। इंटरनेशनल रजिस्ट्री ऑफ ऑर्गन डोनेशन एण्ड ट्रांसप्लांट के अनुसार प्रति 10लाख की आबादी पर स्पेन में 35.9 क्रोएशिया में 33.5, पुर्तगाल में 28.5, अमेरिका में 25.9, आस्ट्रिया में 23.2, आस्ट्रेलिया में 14.9, न्यूजीलैण्ड में 8.6 व भारत में 0.05 डोनर हैं, जोकि हमारे जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिये चिंतनीय है।
क्या नेत्रदान से प्राप्त आँखों को सिर्फ ऐसे मरीजों में ही लगाया जाता है जिन्हें दृष्टि वापस आने की आशा हो? वास्तव में नेत्रदान से प्राप्त ऑंखों का उपयोग तीन प्रकार से किया जा सकता है। पहला- दृष्टि लाभ के लिये, जब दृष्टिहीन व्यक्ति की कार्निया अपारदर्शी हो, लेकिन आँखों के बाकी हिस्से, जैसे लेंस, रेटिना, सामान्य हो, तब मरीज को कार्निया प्रत्यारोपण से दृष्टि लाभ हो सकता है। दूसरा-कार्निया का पुराना घाव या अल्सर जो लंबे समय तक न भर पा रहा हो तब भी कार्निया प्रत्यारोपण किया जाता है, लेकिन इसके तकलीफ में कमी हो जाती है। तीसरी-वजह है जब कार्निया के साथ अंदरूनी हिस्से में भी खराबी हो तब कॉस्मेटिक कारण या सौंदर्य के दृष्टिकोण से
स्वच्छ, पारदर्शी कार्निया लगाई जा सकती है।
कार्निया प्रत्यारोपण के आपरेशन में अच्छे परिणाम के लिए आवश्यक है कि दान देने वाले व्यक्ति की आँखें मृत्यु के उपरांत जल्द से जल्द निकाल ली जावे तथा प्रत्यारोपण का आपरेशन भी यथासंभव शीघ्र सम्पन्न हो सके। फिर भी छह घंटो के अंदर दानदाता के शरीर से नेत्र निकाल लिये जाने चाहिए एवं 24 घंटों के अंदर प्रत्यारोपित हो जाने पर अच्छे परिणाम आते हैं।
कई बार दान की घोषणा के बाद भी दानकर्ता के रिश्तेदार इस आशंका से अस्पताल में खबर नहीं करते कि मृत शरीर की चीर-फाड़ कर दुर्दशा क्यों की जावे। लेकिन इस मानसिकता को बदलना आवश्यक है जो निरंतर प्रचार व जन जागरण से ही संभव है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मृतक के परिवार के लोग नेत्रदान के इच्छुक है लेकिन उस स्थान पर नेत्र निकालने के चिकित्सक तथा उन्हें प्रत्यारोपित करने के लिए मरीज उस निर्धारित समयावधि में उपलब्ध न हो तो ऐसे में भी इस कार्यक्रम पर विपरीत असर पड़ता है।
जब मैं मुम्बई के कूपर हास्पीटल में कार्यरत था तब हम वहां पर नियुक्त मेडिको सोशल वर्कर को नेत्र बैंक में ऑंख उपलब्ध होने की जानकारी दे देते थे जो फोन, लोकल ट्रेन, बस का सफल करके भी समयावधि में इच्छुक मरीज को अस्पताल में भर्ती कर देते थे। देश के कुछ अस्पतालों में, मेडिको सोशल वर्कर नियुक्त होते हैं जो नेत्रदान करने वाले तथा उन्हें प्रत्यारोपण हेतु मरीज की उपलब्धता की बीच कड़ी को काम करते है। नेत्र बैंक में ऑंख उपलब्ध होने की जानकारी दे देते हैं जो फोन, लोकल ट्रेन, बस का सफल करके भी समयावधि में इच्छुक मरीज को अस्पताल में भर्ती कर देते हैं।
इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में स्थान-स्थान पर ऐसे सामाजिक संगठनों के सहयोग की आवश्यकता है। आवश्यकता पड़ने पर नेत्रदान व नेत्र प्रत्यारोपण के बीच कड़ी का काम कर सके, न केवल मरणासन्न व्यक्ति के परिवार को उस व्यक्ति के मरणोपरान्त नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित कर सके। बल्कि ऐसे व्यक्ति जिन्हें नेत्र प्रत्यारोपण की आवश्यकता है उन्हें भी नेत्रों के उपलब्ध होने की खबर जल्द से जल्द पहुंचाकर ऑपरेशन के लिए भर्ती करने व मानसिक रूप से तैयार होने में मदद कर सके। इसलिए निरंतर प्रचार व जन जागरण की आवश्यकता है।
आज सभी देशों में यह कार्य सफलतापूर्वक चल रहा है। वर्तमान में हमारे देश में 150 से अधिक नेत्र बैंक है। देश के कई भागों में जैसे-मुम्बई, मद्रास, गुजरात, नवसारी, दिल्ली में नेत्रदान काफी होते है तथा नेत्र बैंक काफी अच्छे ढंग से चल रहे है। इस संबंध में समाजसेवी संस्थाओ, समाचार पत्रों, मीडिया का सम्मिलित सहयोग लिया जा सकता है, उन्हें नेत्रदान जैसे पवित्र कार्य में अधिक सक्रिय किया जा सकता है।
आईये हम अधिक से अधिक लोगों को नेत्रदान के लिए प्रेरित करें, ताकि दृष्टिहीनों के जीवन में प्रकाश की किरणें जगमगाने लगें।
लेखक- डॉ.दिनेश मिश्र
नेत्र विशेषज्ञ, रायपुर
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डॉ .दिनेश मिश्र की साइंस ब्लॉग पर आवर्ती उपस्थिति सभी लोक प्रिय विज्ञान चिठ्ठाकारों के लिए एक बड़ी सुकून देने वालो खबर है .कुछ चिकित्सा व्यवसाय के और लोग इधर आयें और भी अच्छा हो .डॉ दराल का नाम दिमाग में आता है जो सक्रीय ब्लोगर हैं .
ReplyDeleteनेत्र दान के सभी पहलूँ पर आपने अथ से आधुनिक समय तक की बेहतरीन जानकारी परोसी है .नेत्र दान को लोग आगे आयें इससे बड़ी बात क्या हो सकती है ,आदमी के मरने की बाद भी वह किसी और की आँखों को रोशन किये रहे ,रोशनी बने किसी और की .बधाई इस बढ़िया आलेख के लिए .कृपया यहाँ भी पधारें -
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
कई मर्तबा व्यक्ति जो कहना चाहता है वह नहीं कह पाता उसे उपयुक्त शब्द नहीं मिलतें हैं .अब कोई भले किसी अखबार का सम्पादक हो उसके लिए यह ज़रूरी नहीं है वह भाषा का सही ज्ञाता भी हो हर शब्द की ध्वनी और संस्कार से वाकिफ हो ही .लखनऊ सम्मलेन में एक अखबार से लम्पट शब्द प्रयोग में यही गडबडी हुई है .
हो सकता है अखबार कहना यह चाहता हों ,ब्लोगर छपास लोलुप ,छपास के लिए उतावले रहतें हैं बिना विषय की गहराई में जाए छाप देतें हैं पोस्ट .
बेशक लम्पट शब्द इच्छा और लालसा के रूप में कभी प्रयोग होता था अब इसका अर्थ रूढ़ हो चुका है :
"कामुकता में जो बारहा डुबकी लगाता है वह लम्पट कहलाता है "
अखबार के उस लिखाड़ी को क्षमा इसलिए किया जा सकता है ,उसे उपयुक्त शब्द नहीं मिला ,पटरी से उतरा हुआ शब्द मिला .जब सम्पादक बंधू को इस शब्द का मतलब समझ आया होगा वह भी खुश नहीं हुए होंगें .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
ram ram bhai
आदरणीय दिनेश जी ने नेत्रदान के महत्व उसकी प्रक्रिया और उपयोगिता पर विस्तार से लिखा है। इस दिशा में चेतना जगाने की महती आवश्यकता है।
ReplyDelete............
आश्चर्यजनक किन्तु सत्य! हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन : अंग्रेजी अखबार के पहले पन्ने की पहली खबर!
नेत्रदान के विषय पर पहली बार इतनी विशद जानकारी प्राप्त हुई। अन्यथा नेत्रदान इतना प्रचलित शब्द हो गया है कि लोग इसे गम्भीरता से नहीं लेते। बस नेत्रदान के पक्ष में तकरीर देकर हाथ झाड लेते हैं। इस बहुमूल्य जानकारी के लिये धन्यवाद।
ReplyDeleteबेहद उम्दा और सार्थक पोस्ट ... जय हो !
ReplyDeleteकभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
नेत्रदान के प्रति जागरूक करती पोस्ट विस्तृत जानकारी के साथ ---बहुत बढ़िया
ReplyDeleteकल से मैंने अपना चौथा ब्लॉग "समाचार न्यूज़" शुरू किया है,आपसे निवेदन है की एक बार इसपे अवश्य पधारे और हो सके तो इसे फ़ॉलो भी कर ले ,ताकि हम आपकी खबर रख सके । धन्यवाद ।
ReplyDeleteहमारा ब्लॉग पता है - smacharnews.blogspot.com