Kapde katne wale pret ki sachchi kahani.
सुधीर की पत्नी मायके गई हुई थी। जिस दिन वह वापिस ससुराल आई उसी दिन से घर में अनोखी घटनाएं होने लगीं। इन घटनाओं से परेशान होकर घर वाले एक के बाद एक तांत्रिकों तथा ओझों को तथा कथित भूत-प्रेतों को काबू करने के लिए लाने लगे, परंतु घटनाएं बढ़ती ही गईं।
घर में कपड़े कटने का रहस्य सुलझा
सुधीर तथा कमला की शादी के 5-6 मास बाद तक
सारा परिवार सामान्य जीवन बिता रहा था। अचानक ही घर में कपड़े कटने शुरू हो गए।
पहले पहल तो कमरे में टंगे हुए कुछ कपड़े कट गए। दूसरे दिन बैग में रखे हुए कपड़े
कट गए। अगले दिन पेटी में रखे हुए बिना सिले उनके सूट कट गए, उस समय पेटी को ताला नहीं लगा था।
इस प्रकार पिछले 15-16 दिन से उनके घर में कभी थोड़े कभी ज्यादा कपड़े कट रहे थे। कटने वाले सभी कपड़े सुधीर तथा कमला के ही थे। उनमें भी अधिकतर कमला के दहेज में आए हुए सूट ही थे। कपड़ों को इतनी बुरी तरह से काटा जाता था कि वे पहनने योग्य न रहें, कुछ नए सूट तो तार-तार कर दिए गए थे।
उनका परिवार अत्याधिक गरीब था तथा वे मेहनत मजदूरी करके अपना गुजारा चला रहे थे। ऐसे में ये घटनाएं उन्हें बहुत भयानक लग रही थी। इससे कुछ दिन पूर्व सुधीर को खून के दस्त लग गए थे। फिर कुछ दिन बाद उसकी दाई टांग सुन्न रहने लगी थी। धीरे-धीरे टांग में दर्द बढऩे लगा तथा उसे चलने फिरने में बहुत परेशानी होने लगी। अब वह लाठी के सहारे लंगड़ा कर चलता था।
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सुधीर की पत्नी मायके गई हुई थी। जिस दिन वह वापिस ससुराल आई उसी दिन से घर में ऐसी घटनाएं होने लगी थी। इन घटनाओं से परेशान होकर घर वाले एक के बाद एक तांत्रिकों तथा ओझों को तथा कथित भूत-प्रेतों को काबू करने के लिए लाने लगे, परंतु घटनाएं बढ़ती गई। पहले तो वे गांव के ही चौकी लगाने वाले भगत के पास गए, उसने हवन इत्यादि किया।
हवन के दौरान भी कमरे में एक कपड़ा कट गया। भगत यह कह कर चला गया कि यह तो बहुत बड़ी चीज है। इस से घर वाले और भी डर गए। फिर वे दो-चार और बाबों के पास गए परंतु घटनाएं जारी रही। फिर वे गांव छलौंदी से एक भगत को लेकर आए। उसने 500/- रुपये का खर्च करवाया। उनके घर वह एक रात ठहरा, उनके सामने वह खूब शेखी बघारता रहा। सवेरे जब वह सोकर उठा तो उसकी पगड़ी ही एक तरफ से कटी हुई मिली। वह डर गया और कहने लगा कि यह तो कोई बहुत भयानक प्रेत है जो कि उसके बस से बाहर है। सारा परिवार और भी डर गया।
सुधीर की पत्नी मायके गई हुई थी। जिस दिन वह वापिस ससुराल आई उसी दिन से घर में ऐसी घटनाएं होने लगी थी। इन घटनाओं से परेशान होकर घर वाले एक के बाद एक तांत्रिकों तथा ओझों को तथा कथित भूत-प्रेतों को काबू करने के लिए लाने लगे, परंतु घटनाएं बढ़ती गई। पहले तो वे गांव के ही चौकी लगाने वाले भगत के पास गए, उसने हवन इत्यादि किया।
हवन के दौरान भी कमरे में एक कपड़ा कट गया। भगत यह कह कर चला गया कि यह तो बहुत बड़ी चीज है। इस से घर वाले और भी डर गए। फिर वे दो-चार और बाबों के पास गए परंतु घटनाएं जारी रही। फिर वे गांव छलौंदी से एक भगत को लेकर आए। उसने 500/- रुपये का खर्च करवाया। उनके घर वह एक रात ठहरा, उनके सामने वह खूब शेखी बघारता रहा। सवेरे जब वह सोकर उठा तो उसकी पगड़ी ही एक तरफ से कटी हुई मिली। वह डर गया और कहने लगा कि यह तो कोई बहुत भयानक प्रेत है जो कि उसके बस से बाहर है। सारा परिवार और भी डर गया।
किसी हमदर्द ने उन्हें मेरा पता दिया। सुधीर का पिता मेरे पास आया तथा अपनी व्यथा सुनाकर रोने लगा। मैंने उसका धीरज बंधाया और उसके साथ चल पड़ा।
सारे हालात का जायजा लेने के पश्चात पहले तो मेरा शक कमला पर गया, क्योंकि जिस दिन से वह मायके से आई थी, उसी दिन से ही ऐसी घटनाएं हो रही थी। मैंने उससे प्यार, हमदर्दी तथा सम्मोहन विधि द्वारा पूछताछ की, परंतु उसने इन घटनाओं से पूरी तरह से अनभिज्ञता प्रकट की।
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अब मैंने सुधीर को बुला कर उससे पूछताछ की। सचेत रूप से बातचीत करने पर वह घटनाओं से इंकार करता रहा। जब मैंने उसे सम्मोहित किया तो सम्मोहन अवस्था में वह बताने लगा कि उसे तीन भूत-पे्रत ऐसी घटनाएं करने के लिए बाध्य करते हैं। मैंने सम्मोहनावस्था में ही उसके मन में बसे तीन भूतों के डर को निकाल दिया तथा उससे आगे से ऐसी घटनाएं न करने का वचन लिया। फिर मेरे पूछने पर उसने बताया कि सभी कपड़े उसी ने दाढ़ी बनाने में प्रयोग में लाए गए ब्लेड के साथ काटे हैं।
अब मैंने सुधीर को बुला कर उससे पूछताछ की। सचेत रूप से बातचीत करने पर वह घटनाओं से इंकार करता रहा। जब मैंने उसे सम्मोहित किया तो सम्मोहन अवस्था में वह बताने लगा कि उसे तीन भूत-पे्रत ऐसी घटनाएं करने के लिए बाध्य करते हैं। मैंने सम्मोहनावस्था में ही उसके मन में बसे तीन भूतों के डर को निकाल दिया तथा उससे आगे से ऐसी घटनाएं न करने का वचन लिया। फिर मेरे पूछने पर उसने बताया कि सभी कपड़े उसी ने दाढ़ी बनाने में प्रयोग में लाए गए ब्लेड के साथ काटे हैं।
शारीरिक
दुर्बलता मानसिक परेशानी का एक प्रमुख कारण होती है। कई बार शारीरिक रूप से दुर्बल
व्यक्ति को क्रोध भी अधिक आता है। क्रोध से तनाव बढ़ता है तथा फिर घरेलू झगड़े
शुरू हो जाते हैं। छोटे-छोटे घरेलू झगड़े कई बार अनेक प्रकार की पेचीदा समस्याएं
पैदा कर देते हैं। संबंधित घर में भी छोटे-छोटे झगडों से पेचीदा समस्याएं
उत्पन्न हुई, इसी मानसिक तनाव ने सुधीर को अवचेतन तौर
पर कपड़े काटने के लिए बाध्य किया।
कमला जब मायके गई हुई थी तो बाद में सुधीर को खून के दस्त लग गए, उनसे वह काफी कमजोर हो गया। फिर स्नायु प्रबंध में किसी गड़बड़ी के कारण उसकी दाई टांग में दर्द रहने लगा। चलने के लिए उसे लाठी का सहारा लेना पड़ता था। जब वह ससुराल में पत्नी को लेने गया तो उसकी पत्नी ने कुछ दिन और मायके में रहने की जिद की। उसके मायके में रहने की बात ने सुधीर के मन में अनेक शंकाएं पैदा कर दी। वह इससे स्त्री की मायका-पे्रम की भावना को न समझ सका, बल्कि उसने इसे गलत अर्थों में लिया। वह अपनी पत्नी के चरित्र पर ही संदेह करने लगा। उसके मन में विचार आया कि वह तो लंगड़ा हो गया है, इसी कारण वह उसके साथ नहीं जाना चाहती। वह उससे लड़-झगड़ कर वापिस आ गया। घर आकर वह मानसिक तौर पर बहुत परेशान हो गया।
कमला की मां ने बाद में सोचा कि दामाद के ऐसे लड़-झगड़ कर चले जाने के बाद यदि वह बेटी को अपने साथ रखेगी तो लोग क्या कहेंगे? साथ ही बात बिगड़ जाने का डर भी था। अत: अगले दिन वह स्वयं ही कमला को साथ लेकर उसके ससुराल पहुंच गई। उन्हें देखकर सुधीर का क्रोध बेकाबू हो गया। अपनी सास के सामने तो उसने कमला को कुछ न कहा, वह उठकर कमरे में चला गया। क्रोध के पागलपन में उसने कमरे के अंदर टंगे हुए कपड़े ब्लेड के साथ काट दिए।
जब घरवालों ने कटे हुए कपड़े देख कर इसे भूत-प्रेतों का कारनामा घोषित कर दिया तो अवचेतन मन में अपनी पत्नी से बदले की भावना के रूप में ऐसी घटनाएं करने की बात बैठ गई। इसीलिए लगभग वही कपड़े उसके क्रोध का शिकार बने, जो वह दहेज में लाई थी। सम्मोहित अवस्था में मैंने उसके मन में से उसकी पत्नी के प्रति बैठे हुए संदेह को दूर किया तथा उसे विश्वास दिलाया कि उसकी पत्नी एक पतिव्रता स्त्री है, वह उसे अब भी पहले की तरह ही चाहती है। फिर उन दोनों पति-पत्नी को पास बुलाकर मैंने उन्हें आपस में पे्रम-भावना के साथ रहने के लिए समझाया। दोनों ने ही ऐसा करने का आश्वासन दिया।
अब मैंने उसके मां-बाप को बुलाकर उसकी टांग का डॉक्टरी ईलाज करवाने की सलाह दी। लगभग दो महीने के डॉक्टरी इलाज से उसकी टांग बिल्कुल ठीक हो गई। अब दो वर्ष से भी अधिक समय बीत चुका है तथा वे सुखमय जीवन बिता रहे हैं। यदि समय पर उनका वैज्ञानिक ढंग से इलाज न किया जाता तो तांत्रिकों के चक्कर में पड़ कर उसकी टांग अवश्य ही खराब हो जाती, क्योंकि इन्होंने इसे भी भूत-प्रेतों का कारनामा समझ कर इसका डॉक्टरी इलाज नहीं करवाना था।
नोट: यह लेख सत्य घटना पर आधारित है किसी विशेष कारण से पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं।
(द्वारा मा. दर्शन बवेजा)
पढ़ और अपढ़ (दोनों ही में व्याप्त )सामाजिक भ्रांतियों का खूब सूरत समाधान और व्याख्या प्रस्तुत करती है यह रिपोर्ट .सम्मोहन चिकित्सा की एक मान्य विधा है जो बाईपोलर इलनेस और शिजोफ्रेनिया जैसे मानसिक विकारों में भी कारगर सिद्ध होतीं हैं .मैंने ऐसा एक मरीज़ खुद बहुत नज़दीक से अपने व्यक्तिक परिवेश में भी देखा है ,भुगता है उसे लेकिन हौसला नहीं खोया है .अब वह ठीक है निरंतर ज़ारी मनो -चिकित्सा के बाद जो गत १९-२० सालों से ज़ारी है .हाँ दवाएं ( SUSTENANCE DOSE)लेनी ही है हर हाल . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
सर्दी -जुकाम ,फ्ल्यू से बचाव के लिए भी काइरोप्रेक्टिक
कई बार तो लगता है कि यह सब वहम है हमारे दिमाग का
ReplyDeleteAn excellent case study. Samaj mein vyapt aisi mithya kuritiyon ko door karane ki nitant avashyakata hai.
ReplyDeleteअंधविश्वास निर्मूलन के यह प्रयास स्तुत्य है।
ReplyDeleteप्रो0 बलवंत सिंह जी को सादर नमन!!
ऐसे केस में सम्मोहन विधा के जानकार की मानव-जीवन निष्ठा बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अन्धविश्वास इन्सान को बर्बाद कर देता है, वस्तुतः जो लोग मानसिक रूप से सशक्त नहीं होते,वे ही इस प्रकार के प्रपंचों में पद जातें हैं,और कुछ अन्य लोग उनकी इस अज्ञानता का लाभ उठा लेते है,आपके इस कार्य ने एक परिवार को नष्ट होने से बचा लिया.आपको इस सुकार्य और ऐसे लोगों को वास्तिकता से परिचित कराने हेतु,नमन है
ReplyDeleteबहुत अच्छा
ReplyDeleteमनोरोगों के बारे में एक छोर पर अज्ञेयता दूसरे पर इन्हें परिवार के लिए कलंक समझने की मानसिकता इन्हें छिपाए रखना शादी विवाह के मामले में भी भारतीय समाज का बड़ा अहित कर रही है जबकि यह आम रोगों की तरह साध्य हैं ,ला -इलाज़ नहीं हैं दवा तो ता -उम्र मधु मेह ,उच्च रक्तचाप ,हृदय रोगों के प्रबंधन के लिए भी खानी पड़ती है कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्रेफ्टिंग के बाद भी ताउम्र .
ReplyDeleteहाँ सम्मोहन चिकित्सा के कई माहिर जयपुर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रहें हैं .एक जानी मानी महिला मुंबई में हैं जिनसे एपोइंतमेंट मिलने में कमसे कम छ : माह लग जातें हैं .कई टी वी धारावाहिकों पर भी आपने इन्हें देखा होगा .हमारे पास इनका दूर भाष था लेकिन यहाँ इस वक्त मेरे पास नहीं है ,मेरे मुंबई आवास पर है .कृपया यहाँ भी पधारें -
मंगलवार, 21 अगस्त 2012
सशक्त (तगड़ा )और तंदरुस्त परिवार रहिए
सशक्त (तगड़ा )और तंदरुस्त परिवार रहिए
http://veerubhai1947.blogspot.com/
ReplyDeleteबाला जी (मेहंदीपुर चौक ,राजस्थान )जाकर भी मैंने ऐसे मनो -रोगियों को देखा है जिनके सम्बन्धी उन्हें कई मर्तबा मवेशियों की तरह ज़ंजीर से बाँध के लातें हैं .यहाँ दरबार लगता है बाला जी का तारीख पड़ती है और लोग ठीक हो जातें हैं ऐसा जन विश्वास लोगों में व्याप्त है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है .भले प्लेसिबो इफेट लाभ लेने लोग जाएं लेकिन प्राथमिक चिकित्सा मनोरोगों की आधार भूत चिकित्सा से परहेज़ न रखें .सामने आएं ,समाज से न डरें ,समाज तो मैं और आप ही हैं .मैं तो ता -उम्रे ऐसे रोगियों से घिरा रहा हूँ जिनसे मेरा खून का रिश्ता है ,रिश्तेदारी रही है ,PGI,CHANDIGARH ,VIMHANS NEW-DELHI ,PGI ROHTAK के अलावा वरिष्ठ मनो -चिकित्सकों और मनो -सलाहकारों (CLINICAL PSYCHOLOGISTS),मनो -विदों का संग साथ भी मिला है अकसर विमर्श भी हुआ है उनके साथ मनो -रोगों के प्रबंधन पर .चंद दिमागी जैव रसायनों का असंतुलन , उनका दिमाग के कुछ हिस्सों में कम या ज्यादा बनना बायोकेमिकल इम्बेलेंस मनो रोगों की वजह बनता है .जिसकी दुरुस्ती के लिए बेहतरीन दवाएं आज मौजूद हैं .लोग आगे आएं ओझा गिरी से बचें ये ओझा तो आज राजनीति को भी कहा गए .मेरी आपकी क्या बिसात है .बचके रहें इनसे .
सचमुच, अंधविश्वास की जड़े समाज में गहराई तक धंसी हुई हैं। यही कारण है कि आज बलवंत जी जैसे सामाजिक डॉक्टरों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गयी है।
ReplyDeleteदर्शन भाई, इस केस स्टडी को यहां पर साझा करने के लिए आभार। हो सकता है इसे पढकर ही कुछ लोगों की आंखें खुल जाएं।
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डायन का तिलिस्म!
हर अदा पर निसार हो जाएँ...
अंधविश्वासों के निर्मूलन पर सतत प्रयास हों!
ReplyDeleteप्रोफेसर जी इस मामले को सुलझाने के लिये बधाई के पात्र हैं।
ReplyDeleteअंधलिश्वास का मूल कारण अशिक्षा है...
ReplyDeleteबहुत ही शिक्षाप्रद लेख...।