देश में आये दिन निर्दोष महिलाओं को जादू-टोने के आरोप में प्रताड़ित करने की घटनाएं होती है उनमें से अधिकांश मामले आम लोगों की नजरों के सामने...
देश में आये दिन निर्दोष महिलाओं को जादू-टोने के आरोप में प्रताड़ित करने की घटनाएं होती है उनमें से अधिकांश मामले आम लोगों की नजरों के सामने नहीं आते, सिर्फ ऐसी घटनाएं जिनमें महिला को दी गई प्रताड़ना हद से बाहर सी हो गई हो, सांघाटिक चोटें पहुंची हो या हत्या हो गई हो, वे ही मामले पुलिस व प्रेस या सामाजिक कार्यकर्ताओं तक पहुंचते है। छोटी-छोटी घटनाएं तो लोगों की जानकारी में आती ही नहीं, कुछ मामलों में लोग बदनामी के डार से मामले को उजागर नहीं करते है। कहीं-कहीं प्रताड़ना करने वाला गुट इतना शक्तिशाली व प्रभावी होता है कि उसकी पहुंच के कारण मामला रफा-दफा कर दिया जाता है।
समाचार की सुर्खियां बनती प्रताड़ना की घटनाएं किसी एक क्षेत्र या प्रदेश की नहीं हैं, बल्कि देश के लगभग सभी प्रांतों से ऐसी घटनाओं की जानकारी मिलती है। फिर भी सर्वाधिक मामले झारखंड व छत्तीसगढ़ के है। पिछली कुछ चर्चित घटनाओं को देखें तो मानवीय व आधुनिक मानने वाले समाज की वास्तविकता सामने आ जाएगी।
पिछले दिनों मंदिर हसौद के पास ग्राम टेकारी में रेवती बाई की हत्या जादू-टोने के शक में एक युवक द्वारा कर दी गई। इसके पूर्व अम्बिकापुर के लखनपुर ब्लाक के एक गांवझारपारा (जोधपुर) में पिछले वर्ष टोनही के संदेह में नौ महिलाओं को प्रताड़ित किये जाने की घटना घटी। नौ महिलाओं को बैगाओं ने 8 दिन तक बुरी तरह प्रताड़ित किया। दो बैगाओं ने महिलाओं के सीने में बैठकर पिटाई की। उन महिलाओं को बबूल के कांटों पर सुलाया गया। उन्हें भूखे प्यासे रखा गया, उन्हें लोहे के चाबुक से कई बार मारा गया, इस पर भी जब उन्होने स्वयं पर लगाये जादू-टोने के आरोप को स्वीकार नहीं किया तब उनके बाल काट दिये गये। उन्हें निर्वस्त्र कर नाले पर नहलाया गया व गले में झाड़ू पहिनाकर गांव भर में बाजे-गाजे के साथ घुमाया गया।
झारखंड के गोड्डा जिले के ओराटाड में दो महिलाओं को जिन्दा जलाने, रांची के मांडर थाने के बजरा गांव में एक वृद्व महिला का सिर कलम करने, इटकी थाने के तरगड़ी गांव में मोटरी बाई को जिन्दा जलाने, बिहार के समस्तीपुर में कल्याणपुर थाने के अंतर्गत झझुरी गांव में आशादेवी की गड़ासे से काटकर हत्या, पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के वंशिया गांव में महिला की हत्या, उड़ीसा के मयूरगंज जिले में मधुनायक नामक महिला की हत्या, कादुउनी गांव में कार्मी मुर्भू की सिर काटकर हत्या, राउरकेला के दहीजिरा गांव में डायन करार का महिला को गोबर खिलाना, सारंगागढ़ में सूर्यमणि की हत्या, तेसार गांव की नोनी इक्का को नंगा कर घुमाने का वाकया, गुजरात के दाहोद में रूमाली बेन, संगा बेन और केशो बेन की डायन की संदेह में पिटायी व सिर मुड़ाकर घुमाया जाना, म.प्र. के बड़वानी जिले के खेतिया थाने के केलम्बा की वृध्दा कुमाइदी बाई की पिटाई, मंडला के खलवारा गांव में सेमवती की हत्या, गुना के नेतलपुर में रउतबाई को मैला खिलाकर पिटायी, महाराष्ट्र के थाने में जादू -टोने के शक में महिला की पिटायी, नागपुर के कलमना थाने के अंतर्गत टीकम बाई की निर्वस्त्र कर पीट-पीटकर हत्या, अम्बाला के बड़ागढ में राधिका की हत्या, मुजफ्फर नगर के बुढाना में महिला को निर्वस्त्र कर घुमाने व खंभे से बांधकर पिटायी करने की घटनाएं समाज को आईना दिखाती है।
छत्तीसगढ़ में तो डायन (टोनही) के संदेह में प्रताड़ना के 200 मामलों में 100 से अधिक महिलाओं के हत्या के मामलों की प्रमाणिक जानकारी हमारी पास है, जिसमें 14 वर्ष की बालिका से लेकर 80 वर्ष तक वृध्दा को प्रताड़ित करने के मामले है। ये कुछ ऐसे उदाहरण है जो अंधविश्वास के कारण डायन (टोनही) के संदेह में प्रताड़ना को स्पष्ट दर्शाते है।
21वीं सदी में प्रवेश कर चुका हमारा समाज जहां एक ओर स्वयं को अति आधुनिक मानता है, वहीं दूसरी ओर भांति-भांति के अंधविश्वास समाज में जड़ जमाये हुए है। जादू-टोने के नाम पर महिला को दी जाने वाली प्रताड़ना डायन/टोनही समस्या के नाम से जानी जाती है, देश व छत्तीसगढ़ के प्रमुख अंधविश्वासों में से एक है। अंधविश्वास एवं टोना-टोटका जैसी घिसी-पिटी मान्यताओं के दम पर आज भी कई स्थानों पर महिला प्रताड़ना का कारण है। इस संबंध में एक आश्चर्य की बात यह है कि साक्षरता के प्रकाश से दूर अनपढ़ ग्रामीणों को लेकर पढ़े-लिखे लोग भी इन बातों पर कुछ न कुछ भरोसा करते हैं।
अंधविश्वास के जुनून की बलि चढ़ती महिला प्रताड़ना की घटनाएं सभ्य व पढ़े-लिखे समाज के लिए एक शर्म की बात है, वहीं दूसरी ओर पूर्ण साक्षरता की ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे देश के काफी नागरिकों के मन में अभी भी संदेह ही है, कि क्या डायन या टोनही वास्तव में कोई ऐसी शक्तियों से युक्त महिला होती है, जो किसी के सम्मुख आर्थिक, शारीरिक, मानसिक उलझने पैदा कर सके या टोना कर किसी को बीमारी या नुकसान पहुंचा सके। क्या टोनही (डायन) का कोई चमत्कारिक अस्तित्व है, जो लोगों को इतना नुकसान पहुंचा सकता है, कि उससे बचाव के लिए उसके साथ मारपीट कर गांव निकाला कर, या हत्या करना ही एकमात्र उपाय है या अंधविश्वास का सहारा लेकर जादू, टोना, टोटका का कुप्रचार कर, गांव में भय व भ्रम का वातावरण निर्मित कर स्वयं की स्वार्थसिध्दि ही इसके मूल में है।
किसी महिला को ''टोनही'' जादूगरनी (डायन) घोषित करने से उसे शारीरिक प्रताड़ना, मारपीट, मानसिक प्रताड़ना, सामाजिक बहिष्कार जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। कई बार प्रताड़नाओं के चलते या तो उसे घर-बार छोड़कर गांव से बाहर निकलना पड़ता है, जिससे या तो वह स्वयं आत्महत्या कर लेती है अथवा कई मामलों में मारपीट कर उसकी हत्या कर दी जाती है। महिला अत्याचार की ऐसी घटनाएं गांवों, कस्बों में अधिकांश घटित होती रहती हैं।
आजादी के पहले देश में शिक्षा व चिकित्सा सुविधा का प्रसार देश में बहुत कम था, गांव, कस्बों में या तो स्कूल कालेजों की पढ़ाई करने के लिए तथा मीलों चलकर जाना पड़ता था, वहीं चिकित्सा के लिए मजबूरीवश गांव में जो भी बैगा गुनिया, झाड़-फूंक करने वालों के ही भरोसे रहना पड़ता था, आजादी के बाद आज स्थिति कुछ सुधरी जरूरी है, लेकिन अब भी पुरानी मान्यताओं के चलते ग्रामीण अंचलों में किसी बच्चे को बुखार आने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, रात में रोने, नींद न आने पर, गांव में फसल कम होने, पानी कम गिरने या अधिक गिरने, पशुओं की तबियत खराब होने, दूध न देने, पशुओं के मरने आदि जितनी भी किस्म की विपरीत परिस्थितियां होती है, उनका कारण जादू, टोना करना, नजर लगाना को ही मान लिया जाता है तथा लोग बैगा गुनिया में झाड़-फूंक कराने, ताबिज पहनने, भभूत खाने के चक्कर में लोग समय व धन नष्ट करते हैं।
बैगा गुनिया नजर लगाने, जादू-टोना करने की बात करने लगते हैं तथा पूरा का पूरा गांव उस महिला की खोज में लग जाता है, जिसकी जादू टोने से उस व्यक्ति की तबियत खराब, फसल खराब, व्यापार में हानि हुई हो। गांव में ही ऐसे कई लोग होते हैं जो किसी महिला को डायन अर्थात जादू-टोना करने वाली टोनही करार देते हैं व उसके खिलाफ दुष्प्रचार होता रहता है। धीरे-धीरे गांव ही उस महिला के विरोध में हो जाता है। कथित डायन/टोनही के विरोध में कई किस्से कहानियां गढ़ दी जाती हैं।
डायन/टोनही करार दी जाने वाली महिला साधारणतया गरीब घर की प्रौढ़, विधवा तथा कई बार नि:संतान महिला होती है, जिनके घर में या तो सदस्य कम होते हैं अथवा निर्धन, अकेले होने के कारण सामूहिक व सुनियोजित षडयंत्र का प्रतिकार करने में अक्षम होते हैं। पहले तो उस महिला को कहा जाता है कि उसेन जादू-टोने के बल से जिस परिवार पर विपदा लायी है, इसलिए स्वयं ही उसे दूर करें, जो कि उसके वश में होता ही नहीं। धीरे-धीरे दुव्यर्वहार, प्रताड़ना, मारपीट, सामाजिक बहिष्कार, गांव से निकालने का प्रयास आदि की कोशिशें की जाती है। जिसमें वे बहुत कम खबरें ही हमारे सभ्य कहे जाने वाले समाज के पास पहुंच पाती है, अधिकांश घटनाएं पता ही नहीं लग पाती। समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं प्रमुखता से प्रकाशित होने के बाद भी जाने क्यों सामाजिक चेतना को प्रभावित नहीं कर पाती।
अंधविश्वास के चलते कई प्रकार की अफवाहों का बाजार गर्म रहता है, ऐसे अमुक औरत के पास नहीं जाना, वह नजर लगा देगी, या टोटका टोना कर देगी, उससे कुछ लेकर खाना नहीं आदि आदि। बच्चों को इस प्रकार की बात सिखाई जाती है, जिससे उनके दिमाग में एक अनजाना भय भी रहता है। नजर लगाने व नजर उतारने का प्रपंच चलते ही रहता है, किसी के दरवाजे पर नींबू, सिंदूर, मिर्च, लाल कपड़ा आदि किसी ने शरारतवश रख दिया तो जादू-टोने, टोटके का हल्ला हो जाता है। गांव व कस्बों में भ्रम व भय व तनाव का माहौल बन जाता है। जबकि इस सबका अंत एक महिला को टोनही, डायन घोषित कर उसे प्रताड़ित कर होता है, लेकिन अंधविश्वास व निहित स्वार्थ के कारण हो रहे इन अत्याचारों पर प्रभावी रोक लगाना अनावश्यक है, क्योंकि आज भी अधिकांश गांव ऐसे हैं जहां साक्षरता, प्रौढ़ शिक्षा के प्रचार के बावजूद भी टोनही बैगा, जादू टोना जैसी बातों पर अंधश्रध्दा रखते हैं। विनाशकारी, चमत्कारी शक्ति को देखने का दावा कहीं भी कोई भी नहीं करता, बल्कि सुनी सुनायी बातों व अफवाहों को फैलाने में सब लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मदद करते हैं।
पिछले अनेक वर्षो से इस मुद्दे पर मैं लगातार लिखते व कार्य करते हुए मैंने यह अनुभव किया है कि आज भी अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं जिसका कारण अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा की कमी, पुरानी परंपराओं का दबाव व वैज्ञानिक दृष्टिकोण का न होना है। विभिन्न सभाओं के दौरान ग्रामीण जनों में से जागरूक लोग अपने गांव के बैगाओं व ओझाओं की करतूतें व कारगुजारियां बताते हैं व सामाजिक कुरीतियों पर खुलकर बातचीत करते हैं व प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में भाग लेते है। यदि किसी गांव में किसी बैगा का सम्मान है उसे गांव के कार्यक्रमों में सम्मानपूर्वक बुलाया जाता है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे किसी महिला को टोनही घोषित करने का व गांव के लोगों को भ्रमित कर एक निर्दोष महिला के साथ मारपीट करने व जान से मारने का अधिकार मिल गया है? कोई भी संस्कृति व परम्परा किसी दोषी को बचाने की वकालत नहीं करती तथा न ही किसी निर्दोष को चारों ओर से घेरकर मारने की इजाजत देती है।
आईये, कुछ ऐसे उपायों पर चर्चा करें, जो डायन/ ''टोनही प्रताड़ना'' के निर्मूलन में प्रभावकारी हो सकते हैं, चूंकि ऐसे प्रकरणों की संख्या ग्रामों, कस्बों, छोटे शहरों में अधिक होती है, इसलिए न स्थलों पर कोटवार, समाजसेवी संस्थाओं, ग्राम पंचायत, शिक्षकों, चिकित्सकों, पुलिस कर्मियों की सक्रिय भूमिका हो सकती है तथा महिलाएं प्रताड़ना से बचायी जा सकती हैं यदि कोई प्रकरण आरंभिक अवस्था में ही ज्ञात हो जाता है तो उसका निराकरण संभव है। कोटवार, पंच-सरपंच को टोनही प्रताड़ना, जादू टोना संबंधी थोड़ी सी भनक पड़ने पर आसपास के नागरिकों को लेकर मामले को तुरंत सुलझाना चाहिए। गांवों में किसी व्यक्ति के बीमार होने, चाहे व बच्चा ही क्यों न हो अथवा बुजुर्गवार व चिकित्सक की सलाह लेकर उसका उपचार कराना चाहिए।
क्योंकि बीमारियां सूक्ष्म जीवाणु, विषाणु के प्रकोप से होती हैं, जिनका निदान समय रहते कर लिये जाने पर पूर्णत: किया जा सकता है। बीमारियों के उपचार के लिए जादू-टोना, झाड़ फूंक की मदद लेने से बचना चाहिए। पशुओं की बीमारियों, दूध कम देने, आदि का कारण भी अलग अलग होता है। इसी प्रकार अकाल पड़ने, पानी कम गिरने, बाढ़ आने, गर्मी पड़ने, भूकंप आने का कारण भी प्राकृतिक है। यह न ही किसी पुरूष व महिला की चमत्कारिक शक्ति का प्रताप होता है। इसलिए ऐसे किसी भी कारण से किसी महिला को डायन टोनही, बैगिन कहना गलत है, क्योंकि जो महिला अपनीस्वयं की परिवार वालों की रक्षा नहीं करसकती, वह किसी दूसरे का भला व बुरा करने में समर्थ कैसे हो सकती है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं को चौपालों, पंचायतों, कस्बो में जाकर लोगों को सच्चाई से रूबरू कराना चाहिए। इस कार्य में मीडिया की भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। टेलिविजन के विभिन्न चैनलों में भूत, प्रेत, जादू, टोना की धारणाओं वाले सीरीयलों पर भी नियंत्रण लगाने पर सरकार को विचार करना चाहिए। पंचों, चिकित्सकों, शिक्षकों का सहयोग इसमें लिया जा सकता है। कला जत्थों को नाटकों, एकांकी के माध्यम से लोगों को यह समझाना होगा। समाज में सभी महिला-पुरूष बराबर हैं। कोई भी व्यक्ति कथित चमत्कारिक शक्ति के सहारे, किसी के परिवारजनों, पशुओं, खेती, नौकरी का नुकसान नहीं कर सकता। यदि ऐसी घटनाएं प्रारंभ में ही नजरों में आ जावे, तो समाज की कोई भी महिला डायन के रूप में अभिशापित होने से बच जावेगी व समाज से इस अंधविश्वास का निर्मूलन किया जा सकेगा।
समाचार की सुर्खियां बनती प्रताड़ना की घटनाएं किसी एक क्षेत्र या प्रदेश की नहीं हैं, बल्कि देश के लगभग सभी प्रांतों से ऐसी घटनाओं की जानकारी मिलती है। फिर भी सर्वाधिक मामले झारखंड व छत्तीसगढ़ के है। पिछली कुछ चर्चित घटनाओं को देखें तो मानवीय व आधुनिक मानने वाले समाज की वास्तविकता सामने आ जाएगी।
पिछले दिनों मंदिर हसौद के पास ग्राम टेकारी में रेवती बाई की हत्या जादू-टोने के शक में एक युवक द्वारा कर दी गई। इसके पूर्व अम्बिकापुर के लखनपुर ब्लाक के एक गांवझारपारा (जोधपुर) में पिछले वर्ष टोनही के संदेह में नौ महिलाओं को प्रताड़ित किये जाने की घटना घटी। नौ महिलाओं को बैगाओं ने 8 दिन तक बुरी तरह प्रताड़ित किया। दो बैगाओं ने महिलाओं के सीने में बैठकर पिटाई की। उन महिलाओं को बबूल के कांटों पर सुलाया गया। उन्हें भूखे प्यासे रखा गया, उन्हें लोहे के चाबुक से कई बार मारा गया, इस पर भी जब उन्होने स्वयं पर लगाये जादू-टोने के आरोप को स्वीकार नहीं किया तब उनके बाल काट दिये गये। उन्हें निर्वस्त्र कर नाले पर नहलाया गया व गले में झाड़ू पहिनाकर गांव भर में बाजे-गाजे के साथ घुमाया गया।
झारखंड के गोड्डा जिले के ओराटाड में दो महिलाओं को जिन्दा जलाने, रांची के मांडर थाने के बजरा गांव में एक वृद्व महिला का सिर कलम करने, इटकी थाने के तरगड़ी गांव में मोटरी बाई को जिन्दा जलाने, बिहार के समस्तीपुर में कल्याणपुर थाने के अंतर्गत झझुरी गांव में आशादेवी की गड़ासे से काटकर हत्या, पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के वंशिया गांव में महिला की हत्या, उड़ीसा के मयूरगंज जिले में मधुनायक नामक महिला की हत्या, कादुउनी गांव में कार्मी मुर्भू की सिर काटकर हत्या, राउरकेला के दहीजिरा गांव में डायन करार का महिला को गोबर खिलाना, सारंगागढ़ में सूर्यमणि की हत्या, तेसार गांव की नोनी इक्का को नंगा कर घुमाने का वाकया, गुजरात के दाहोद में रूमाली बेन, संगा बेन और केशो बेन की डायन की संदेह में पिटायी व सिर मुड़ाकर घुमाया जाना, म.प्र. के बड़वानी जिले के खेतिया थाने के केलम्बा की वृध्दा कुमाइदी बाई की पिटाई, मंडला के खलवारा गांव में सेमवती की हत्या, गुना के नेतलपुर में रउतबाई को मैला खिलाकर पिटायी, महाराष्ट्र के थाने में जादू -टोने के शक में महिला की पिटायी, नागपुर के कलमना थाने के अंतर्गत टीकम बाई की निर्वस्त्र कर पीट-पीटकर हत्या, अम्बाला के बड़ागढ में राधिका की हत्या, मुजफ्फर नगर के बुढाना में महिला को निर्वस्त्र कर घुमाने व खंभे से बांधकर पिटायी करने की घटनाएं समाज को आईना दिखाती है।
छत्तीसगढ़ में तो डायन (टोनही) के संदेह में प्रताड़ना के 200 मामलों में 100 से अधिक महिलाओं के हत्या के मामलों की प्रमाणिक जानकारी हमारी पास है, जिसमें 14 वर्ष की बालिका से लेकर 80 वर्ष तक वृध्दा को प्रताड़ित करने के मामले है। ये कुछ ऐसे उदाहरण है जो अंधविश्वास के कारण डायन (टोनही) के संदेह में प्रताड़ना को स्पष्ट दर्शाते है।
21वीं सदी में प्रवेश कर चुका हमारा समाज जहां एक ओर स्वयं को अति आधुनिक मानता है, वहीं दूसरी ओर भांति-भांति के अंधविश्वास समाज में जड़ जमाये हुए है। जादू-टोने के नाम पर महिला को दी जाने वाली प्रताड़ना डायन/टोनही समस्या के नाम से जानी जाती है, देश व छत्तीसगढ़ के प्रमुख अंधविश्वासों में से एक है। अंधविश्वास एवं टोना-टोटका जैसी घिसी-पिटी मान्यताओं के दम पर आज भी कई स्थानों पर महिला प्रताड़ना का कारण है। इस संबंध में एक आश्चर्य की बात यह है कि साक्षरता के प्रकाश से दूर अनपढ़ ग्रामीणों को लेकर पढ़े-लिखे लोग भी इन बातों पर कुछ न कुछ भरोसा करते हैं।
अंधविश्वास के जुनून की बलि चढ़ती महिला प्रताड़ना की घटनाएं सभ्य व पढ़े-लिखे समाज के लिए एक शर्म की बात है, वहीं दूसरी ओर पूर्ण साक्षरता की ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे देश के काफी नागरिकों के मन में अभी भी संदेह ही है, कि क्या डायन या टोनही वास्तव में कोई ऐसी शक्तियों से युक्त महिला होती है, जो किसी के सम्मुख आर्थिक, शारीरिक, मानसिक उलझने पैदा कर सके या टोना कर किसी को बीमारी या नुकसान पहुंचा सके। क्या टोनही (डायन) का कोई चमत्कारिक अस्तित्व है, जो लोगों को इतना नुकसान पहुंचा सकता है, कि उससे बचाव के लिए उसके साथ मारपीट कर गांव निकाला कर, या हत्या करना ही एकमात्र उपाय है या अंधविश्वास का सहारा लेकर जादू, टोना, टोटका का कुप्रचार कर, गांव में भय व भ्रम का वातावरण निर्मित कर स्वयं की स्वार्थसिध्दि ही इसके मूल में है।
किसी महिला को ''टोनही'' जादूगरनी (डायन) घोषित करने से उसे शारीरिक प्रताड़ना, मारपीट, मानसिक प्रताड़ना, सामाजिक बहिष्कार जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। कई बार प्रताड़नाओं के चलते या तो उसे घर-बार छोड़कर गांव से बाहर निकलना पड़ता है, जिससे या तो वह स्वयं आत्महत्या कर लेती है अथवा कई मामलों में मारपीट कर उसकी हत्या कर दी जाती है। महिला अत्याचार की ऐसी घटनाएं गांवों, कस्बों में अधिकांश घटित होती रहती हैं।
आजादी के पहले देश में शिक्षा व चिकित्सा सुविधा का प्रसार देश में बहुत कम था, गांव, कस्बों में या तो स्कूल कालेजों की पढ़ाई करने के लिए तथा मीलों चलकर जाना पड़ता था, वहीं चिकित्सा के लिए मजबूरीवश गांव में जो भी बैगा गुनिया, झाड़-फूंक करने वालों के ही भरोसे रहना पड़ता था, आजादी के बाद आज स्थिति कुछ सुधरी जरूरी है, लेकिन अब भी पुरानी मान्यताओं के चलते ग्रामीण अंचलों में किसी बच्चे को बुखार आने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, रात में रोने, नींद न आने पर, गांव में फसल कम होने, पानी कम गिरने या अधिक गिरने, पशुओं की तबियत खराब होने, दूध न देने, पशुओं के मरने आदि जितनी भी किस्म की विपरीत परिस्थितियां होती है, उनका कारण जादू, टोना करना, नजर लगाना को ही मान लिया जाता है तथा लोग बैगा गुनिया में झाड़-फूंक कराने, ताबिज पहनने, भभूत खाने के चक्कर में लोग समय व धन नष्ट करते हैं।
बैगा गुनिया नजर लगाने, जादू-टोना करने की बात करने लगते हैं तथा पूरा का पूरा गांव उस महिला की खोज में लग जाता है, जिसकी जादू टोने से उस व्यक्ति की तबियत खराब, फसल खराब, व्यापार में हानि हुई हो। गांव में ही ऐसे कई लोग होते हैं जो किसी महिला को डायन अर्थात जादू-टोना करने वाली टोनही करार देते हैं व उसके खिलाफ दुष्प्रचार होता रहता है। धीरे-धीरे गांव ही उस महिला के विरोध में हो जाता है। कथित डायन/टोनही के विरोध में कई किस्से कहानियां गढ़ दी जाती हैं।
डायन/टोनही करार दी जाने वाली महिला साधारणतया गरीब घर की प्रौढ़, विधवा तथा कई बार नि:संतान महिला होती है, जिनके घर में या तो सदस्य कम होते हैं अथवा निर्धन, अकेले होने के कारण सामूहिक व सुनियोजित षडयंत्र का प्रतिकार करने में अक्षम होते हैं। पहले तो उस महिला को कहा जाता है कि उसेन जादू-टोने के बल से जिस परिवार पर विपदा लायी है, इसलिए स्वयं ही उसे दूर करें, जो कि उसके वश में होता ही नहीं। धीरे-धीरे दुव्यर्वहार, प्रताड़ना, मारपीट, सामाजिक बहिष्कार, गांव से निकालने का प्रयास आदि की कोशिशें की जाती है। जिसमें वे बहुत कम खबरें ही हमारे सभ्य कहे जाने वाले समाज के पास पहुंच पाती है, अधिकांश घटनाएं पता ही नहीं लग पाती। समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं प्रमुखता से प्रकाशित होने के बाद भी जाने क्यों सामाजिक चेतना को प्रभावित नहीं कर पाती।
अंधविश्वास के चलते कई प्रकार की अफवाहों का बाजार गर्म रहता है, ऐसे अमुक औरत के पास नहीं जाना, वह नजर लगा देगी, या टोटका टोना कर देगी, उससे कुछ लेकर खाना नहीं आदि आदि। बच्चों को इस प्रकार की बात सिखाई जाती है, जिससे उनके दिमाग में एक अनजाना भय भी रहता है। नजर लगाने व नजर उतारने का प्रपंच चलते ही रहता है, किसी के दरवाजे पर नींबू, सिंदूर, मिर्च, लाल कपड़ा आदि किसी ने शरारतवश रख दिया तो जादू-टोने, टोटके का हल्ला हो जाता है। गांव व कस्बों में भ्रम व भय व तनाव का माहौल बन जाता है। जबकि इस सबका अंत एक महिला को टोनही, डायन घोषित कर उसे प्रताड़ित कर होता है, लेकिन अंधविश्वास व निहित स्वार्थ के कारण हो रहे इन अत्याचारों पर प्रभावी रोक लगाना अनावश्यक है, क्योंकि आज भी अधिकांश गांव ऐसे हैं जहां साक्षरता, प्रौढ़ शिक्षा के प्रचार के बावजूद भी टोनही बैगा, जादू टोना जैसी बातों पर अंधश्रध्दा रखते हैं। विनाशकारी, चमत्कारी शक्ति को देखने का दावा कहीं भी कोई भी नहीं करता, बल्कि सुनी सुनायी बातों व अफवाहों को फैलाने में सब लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मदद करते हैं।
पिछले अनेक वर्षो से इस मुद्दे पर मैं लगातार लिखते व कार्य करते हुए मैंने यह अनुभव किया है कि आज भी अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं जिसका कारण अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा की कमी, पुरानी परंपराओं का दबाव व वैज्ञानिक दृष्टिकोण का न होना है। विभिन्न सभाओं के दौरान ग्रामीण जनों में से जागरूक लोग अपने गांव के बैगाओं व ओझाओं की करतूतें व कारगुजारियां बताते हैं व सामाजिक कुरीतियों पर खुलकर बातचीत करते हैं व प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में भाग लेते है। यदि किसी गांव में किसी बैगा का सम्मान है उसे गांव के कार्यक्रमों में सम्मानपूर्वक बुलाया जाता है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे किसी महिला को टोनही घोषित करने का व गांव के लोगों को भ्रमित कर एक निर्दोष महिला के साथ मारपीट करने व जान से मारने का अधिकार मिल गया है? कोई भी संस्कृति व परम्परा किसी दोषी को बचाने की वकालत नहीं करती तथा न ही किसी निर्दोष को चारों ओर से घेरकर मारने की इजाजत देती है।
यह सच है कि सामाजिक परम्पराएं सदियों से चली आ रही हैं। लोगों की उन पर आस्था रहती है लेकिन जब ये परम्पराएं, कुरीतियों के रूप में बदल जाती है व निर्दोष व्यक्तियों के शोषण का आधार बन जाती हैं तब उनमें समय समय पर परिवर्तन होना चाहिए। जिसमें समाज के लोगों को आगे बढ़कर सक्रियता पूर्वक हिस्सा लेना चाहिए। हाथ पर हाथ रखकर बैठने से कुरीतियां नहीं बदलेगी। सिर्फ कानून बलों या पुलिस कार्यवाही से काम नहीं चलेगा विचारों के आदान-प्रदान की, नये दृष्टिकोण को जागृत करने की आवश्यकता है।
आईये, कुछ ऐसे उपायों पर चर्चा करें, जो डायन/ ''टोनही प्रताड़ना'' के निर्मूलन में प्रभावकारी हो सकते हैं, चूंकि ऐसे प्रकरणों की संख्या ग्रामों, कस्बों, छोटे शहरों में अधिक होती है, इसलिए न स्थलों पर कोटवार, समाजसेवी संस्थाओं, ग्राम पंचायत, शिक्षकों, चिकित्सकों, पुलिस कर्मियों की सक्रिय भूमिका हो सकती है तथा महिलाएं प्रताड़ना से बचायी जा सकती हैं यदि कोई प्रकरण आरंभिक अवस्था में ही ज्ञात हो जाता है तो उसका निराकरण संभव है। कोटवार, पंच-सरपंच को टोनही प्रताड़ना, जादू टोना संबंधी थोड़ी सी भनक पड़ने पर आसपास के नागरिकों को लेकर मामले को तुरंत सुलझाना चाहिए। गांवों में किसी व्यक्ति के बीमार होने, चाहे व बच्चा ही क्यों न हो अथवा बुजुर्गवार व चिकित्सक की सलाह लेकर उसका उपचार कराना चाहिए।
क्योंकि बीमारियां सूक्ष्म जीवाणु, विषाणु के प्रकोप से होती हैं, जिनका निदान समय रहते कर लिये जाने पर पूर्णत: किया जा सकता है। बीमारियों के उपचार के लिए जादू-टोना, झाड़ फूंक की मदद लेने से बचना चाहिए। पशुओं की बीमारियों, दूध कम देने, आदि का कारण भी अलग अलग होता है। इसी प्रकार अकाल पड़ने, पानी कम गिरने, बाढ़ आने, गर्मी पड़ने, भूकंप आने का कारण भी प्राकृतिक है। यह न ही किसी पुरूष व महिला की चमत्कारिक शक्ति का प्रताप होता है। इसलिए ऐसे किसी भी कारण से किसी महिला को डायन टोनही, बैगिन कहना गलत है, क्योंकि जो महिला अपनीस्वयं की परिवार वालों की रक्षा नहीं करसकती, वह किसी दूसरे का भला व बुरा करने में समर्थ कैसे हो सकती है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं को चौपालों, पंचायतों, कस्बो में जाकर लोगों को सच्चाई से रूबरू कराना चाहिए। इस कार्य में मीडिया की भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। टेलिविजन के विभिन्न चैनलों में भूत, प्रेत, जादू, टोना की धारणाओं वाले सीरीयलों पर भी नियंत्रण लगाने पर सरकार को विचार करना चाहिए। पंचों, चिकित्सकों, शिक्षकों का सहयोग इसमें लिया जा सकता है। कला जत्थों को नाटकों, एकांकी के माध्यम से लोगों को यह समझाना होगा। समाज में सभी महिला-पुरूष बराबर हैं। कोई भी व्यक्ति कथित चमत्कारिक शक्ति के सहारे, किसी के परिवारजनों, पशुओं, खेती, नौकरी का नुकसान नहीं कर सकता। यदि ऐसी घटनाएं प्रारंभ में ही नजरों में आ जावे, तो समाज की कोई भी महिला डायन के रूप में अभिशापित होने से बच जावेगी व समाज से इस अंधविश्वास का निर्मूलन किया जा सकेगा।
लेखक- डॉ.दिनेश मिश्र
एम्.बी.बी.एस. डी.ओ.एम्.एस.(नेत्र रोग)
डॉ मिश्र सन 1995 से देश में विज्ञान संचार एवं वैज्ञानिक
दृष्टिकोण के एवं सामाजिक अन्धविश्वासों एवं कुरीतियों के खिलाफ सतत
संघर्षरत हैं। इन्हें छत्तीसगढ़ राज्य में टोनही प्रताड़ना निरोधक अधिनियम तथा उत्कृष्ट कार्यो के लिए राज्य सरकार द्वारा 2006 में राज्य
सम्मान, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा देश
में विज्ञान लोकप्रियकरण एवं विज्ञानं संचार के लिए उल्लेखनीय कार्यों के
लिए 2007 में नेशनल एवार्ड, महिला आयोग द्वारा डायन/टोनही प्रताड़ना के विरोध में किये गए सामाजिक कार्यो के लिए सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
उत्तम लेख .. सचमुच अंधविश्वास समाज से दूर नहीं हो रहा .. अभी हाल में मैने नजर लगने से संबंधित लेख अपने ब्लॉग पर पोस्ट की है ... विषय एक होने के कारण लिंक लगा रही हूं !!
ReplyDeleteभाई साहब सचमुच की डायन आगई तो फट जायेगी गरीब की बेवा को पीटने वालों की .फिर गरीब ही क्यों डायन घोषित की जाती है कहीं बदले की भवाना कहीं भंडास निकालने की और कहीं नारी को नग्न देखने की दृश्य रतिकता इसके मूल भी होती हो तो ताज्जुब न होगा .वो जो दिन रात कठपुतलियाँ नचाती है उसे डायन घोषित करके दिखाए कोई "छटी का दूध याद आजायेगा" .ये बे -लौस,बे -खौफ हिंसा, ये खापियों में भी व्याप्त हैजिनका निशाना किशोर प्रेम बन रहा है कौन है ये आज़ाद भारत में छुट्टा घूमने वाले लोग ,कौन हैं इनके राजनीतिक रहनुमा ,अकेला चना तो भाड़ झोंक नहीं सकता .किसी को डायन घोषित करने के पीछे कोई विज्ञान नहीं है शुद्ध ,ये उन्माद है ,मॉस हिस्टीरिया है ,मैनीयाक हैं ये हैवान. बढ़िया प्रस्तुति है . . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
बृहस्पतिवार, 23 अगस्त 2012
Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle
Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle
भाई साहब ये" विच हंटर " अपने से अलग राय रखने वाले लोगों पर तोहमत लगाकर उन्हें ठिकाने लगाने का भी खेल खेलतें हैं .यह कमज़ोर वर्ग का आर्थिक और भावात्मक शोषण करने की भी चाल है .वेम्पायरइज्म है यह .असली वैम्पायर ये दरिंदें हैं जो झुण्ड बनाके असहाय और निरुपाय पर न्रिशंश हमला करतें हैं .मात्र परपीड़क नहीं हैं ये मानवीय खाल पहने दरिन्दे ,कमसे कम ये आधुनिक मानव जाती के वंशज तो हैं नहीं ,कैसे कहिएगा इन्हें होमो -सैपीयंज़ ?
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
"आतंकवादी धर्मनिरपेक्षता "-डॉ .वागीश मेहता ,डी .लिट .,/ http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
ram ram bhai/
बृहस्पतिवार, 23 अगस्त 2012
Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle
Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle
डॉ0 दिनेश मिश्र जी ने डायन के कारण और निवारण की विशद चर्चा करके इसके पीछे के समाजशास्त्र को बखूबी सामने रखा है। वे व्यक्तिगत स्तर पर इस सामाजिक कुप्रता को मिटाने के लिए जिस समर्पण भाव से लगे हुए हैं, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
ReplyDeleteसंयोग से 'तस्लीम' पर भी इसी विषय पर चर्चा चल रही है, जिसमें स्वयम्बरा जी ने डायन प्रकरणों के एक महत्वपूर्ण पक्ष को बखूबी सामने रखा है। ये दोनों लेख यह स्थापित करते हैं कि यह कुप्रथा आज के सभ्य समाज के माथे का बड़ा भारी कलंक है, जिसको मिटाने के लिए हम सभी को आगे आना चाहिए।
पुन: डॉ0 दिनेश मिश्र जी को इस गहन विवेचनात्मक लेख के लिए हार्दिक बधाई और डॉ0 अरविंद मिश्र जी को इसे यहां प्रस्तुत करने के लिए आभार।
Ek sarahneey prayas. Kripya Dr. Dinesh Mishra ji ka Contact No, Mail Id bhi dene ka kasht karen, jisse awashyakta padne par unse sampark kiya ja sake aur unki sewayen li ja sake.
ReplyDeletebahut khub,behad jankari bhari,
ReplyDeletepar arvind ji 1000 ma 1 mahila ki creativity kuchh sandigdh hoti hai jinke karan aam log unhe tonhi bol dete hai,kuchh to jarur hota hoga .............
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (25-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteVery well written.
ReplyDeleteUnfortunately people are still uncivilized.
Need to spread awareness.
बेहतरीन लेख !
ReplyDeleteसांपों से जुडी जुगुप्साओं को लेकर लिखा गया डॉ0 मिश्र का एक बेहद प्रभावकारी आलेख अंधविश्वास की कुंडलियों में लिपटा है सांप 'सर्प संसार' पर प्रकाशित हुआ है। कृपया उसे अवश्य पढ़ें।
ReplyDeleteHighly impressed with the article by Dr Dinesh Mishra. Our social workers, scientists, NGOs, science communicators are making all efforts to remove this societal evil but it still prevails in our society. It pains a lot when the so called educated people don't come forward to educate and create awareness among the illiterate people against this evil. Dr Mishra's efforst in this direction is highly commendable. Thanks to Dr Arvind Mishra ji for putting the article here.
ReplyDeleteThanks prudent readers for appreciation -I would request Dr. Dinesh Mishra ji for his unbated crusade against superstitions.Please continue writing for SBA readers.
ReplyDeleteVery Good Article.
ReplyDeleteReaders shall bring more n more people to read this.
Special Thanks to its authors.