अमूमन साइनुसाइटिस पर चार हफ़्तों में काबू पा लिया जाता है. लेकिन अगर यह संक्रमण साइनस का 12 हफ्ता या और भी ज्यादा अवधि तक बना रहे तब य...
अमूमन साइनुसाइटिस पर चार हफ़्तों में काबू पा लिया जाता है. लेकिन अगर यह संक्रमण साइनस का 12 हफ्ता या और भी ज्यादा अवधि तक बना रहे तब यह क्रोनिक साइनुसाइटिस कहलाती है.
साइनस: नाक से जुड़ी चेहरे की हड्डियों के बीच की खाली जगह को अस्थि रन्ध्र या शिरानाल (साइनस) को कहा जाता है. साइनुसाइटिस में यह खाली जगह अवरुद्ध हो जाती है. एयर सेल्स बंद हो जातीं हैं इस इलाके के. (Sinus: Sinus is a cavity in bone of skull. It is a cavity filled with air in the bones of the face and skull, specially one opening into the nasal passages.) खोपड़ी या कपाल की अस्थि संरचना में यह एक कैविटी है, छिद्र या खाली स्थान है, दराज़ है, जिसमें वायु मौजूद रहती है. यह छिद्र खासकर नथुनों में खुलते हैं. इस बीमारी में ऐसा लगता है किसी ने सिर पर बोझा लाद दिया है. भारी भारी हो जाता है सिर.
अमरीकी जनगणना ब्यूरो ने 2004 में एक आलमी (ग्लोबल) सर्वेक्षण किया था इस बीमारी का. पता चला 13 करोड़ चालीस लाख भारतीय इसकी चपेट में थे. शहरों में बढ़ता प्रदूषण धूल धक्कड़ इस बीमारी के मामलों में इजाफा कर रहा है.
कोकिला बैन धीरूभाई अम्बानी अस्पताल, मुंबई के एक माहिर (Consultant ENT-head and neck surgeon) डॉ. संजीव बधवार के मुताबिक़ इसके मामलों में 14-20 फीसद की वृद्धि देखी जा रही है.
साइनिसाइटिस में खोपड़ी की वो दराजें जो नासिका विवर में आके खुलती हैं तथा जो म्यूकस तैयार करती हैं वह अवरुद्ध हो जातीं हैं.
म्यूकस हमारी नाक के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करता है. इसका प्रवाह रुकना नहीं चाहिए. एक तरफ यह नाक को नम रखता है दूसरी तरफ विजातीय कणों (प्रदूषकों) को नासिका छिद्रों से होकर फेफड़ों तक नहीं पहुँचने देता है. बस यह संक्रमण लग जाने पर यह प्रवाह म्यूकस का बाधित होने लगता है.
साइनसिज़ में जीवाणु से पैदा संक्रमण होने के मौके भी बढ़ने लगते हैं, पीप (पस) भी भरने लगता है साइनस में. ऐसे में नाक से सांस लेना दूभर हो जाता है. आँखों, गालों, नाक और माथे के गिर्द सूजन भी चढ़ सकती है. कभी कभार आँखों पे बढ़ता अतिरिक्त दवाब डबल विजन की भी वजह बनने लगता है साइनुसाइटिस में.
श्लेष्मा झिल्ली में अतिरिक्त बढ़वार (ग्रोथ इन म्यूकस मेम्ब्रेंस) तथा नेज़ल सेप्टम में विचलन (डिविएशन ऑफ़ दी नेज़ल सेप्टम) भी इस बीमारी की वजह बनते देखी गई है. श्लेष्मा झिल्ली में होने वाली वृद्धि को पोलिप्स कहा जाता है.
साइनस: नाक से जुड़ी चेहरे की हड्डियों के बीच की खाली जगह को अस्थि रन्ध्र या शिरानाल (साइनस) को कहा जाता है. साइनुसाइटिस में यह खाली जगह अवरुद्ध हो जाती है. एयर सेल्स बंद हो जातीं हैं इस इलाके के. (Sinus: Sinus is a cavity in bone of skull. It is a cavity filled with air in the bones of the face and skull, specially one opening into the nasal passages.) खोपड़ी या कपाल की अस्थि संरचना में यह एक कैविटी है, छिद्र या खाली स्थान है, दराज़ है, जिसमें वायु मौजूद रहती है. यह छिद्र खासकर नथुनों में खुलते हैं. इस बीमारी में ऐसा लगता है किसी ने सिर पर बोझा लाद दिया है. भारी भारी हो जाता है सिर.
अमरीकी जनगणना ब्यूरो ने 2004 में एक आलमी (ग्लोबल) सर्वेक्षण किया था इस बीमारी का. पता चला 13 करोड़ चालीस लाख भारतीय इसकी चपेट में थे. शहरों में बढ़ता प्रदूषण धूल धक्कड़ इस बीमारी के मामलों में इजाफा कर रहा है.
कोकिला बैन धीरूभाई अम्बानी अस्पताल, मुंबई के एक माहिर (Consultant ENT-head and neck surgeon) डॉ. संजीव बधवार के मुताबिक़ इसके मामलों में 14-20 फीसद की वृद्धि देखी जा रही है.
साइनिसाइटिस में खोपड़ी की वो दराजें जो नासिका विवर में आके खुलती हैं तथा जो म्यूकस तैयार करती हैं वह अवरुद्ध हो जातीं हैं.
म्यूकस हमारी नाक के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करता है. इसका प्रवाह रुकना नहीं चाहिए. एक तरफ यह नाक को नम रखता है दूसरी तरफ विजातीय कणों (प्रदूषकों) को नासिका छिद्रों से होकर फेफड़ों तक नहीं पहुँचने देता है. बस यह संक्रमण लग जाने पर यह प्रवाह म्यूकस का बाधित होने लगता है.
साइनसिज़ में जीवाणु से पैदा संक्रमण होने के मौके भी बढ़ने लगते हैं, पीप (पस) भी भरने लगता है साइनस में. ऐसे में नाक से सांस लेना दूभर हो जाता है. आँखों, गालों, नाक और माथे के गिर्द सूजन भी चढ़ सकती है. कभी कभार आँखों पे बढ़ता अतिरिक्त दवाब डबल विजन की भी वजह बनने लगता है साइनुसाइटिस में.
श्लेष्मा झिल्ली में अतिरिक्त बढ़वार (ग्रोथ इन म्यूकस मेम्ब्रेंस) तथा नेज़ल सेप्टम में विचलन (डिविएशन ऑफ़ दी नेज़ल सेप्टम) भी इस बीमारी की वजह बनते देखी गई है. श्लेष्मा झिल्ली में होने वाली वृद्धि को पोलिप्स कहा जाता है.
बीमार के लक्षण:
बीमारी के लक्षणों में गाढ़ा पीला श्लेष्मा नाक से बाहर आता है नाक को निचोड़ने, छिनकने पर. नाक को साफ़ करने पर. सर दर्द और थकावट इसके अन्य आम लक्षणों में शुमार हैं. कभी कभार मुख दुर्गन्ध तथा घ्राण शक्ति का गायब होना भी देखा जाता है.
असल कसूरवार है खुद अपना वैद्य बनना, नीम हकीमी करना घर बैठे बैठे या फिर सुनी सुनाई करके अपने से ही ओवर दी काउनटर ड्रग लेके खाते रहना.
आम खांसी जुकाम के मामले अमूमन विषाणु से पैदा होते हैं तथा 5-10 दिनों में पिंड छोड़ देते हैं. लेकिन यदि मामला इससे लंबा खिंच जाए तब आपको माहिर के पास ही पहुंचना चाहिए. आम फिजिशियन (काया चिकित्सक या एमडी डाक्टर के पास नहीं).
विस्तृत जांच कैसे की जाती है इस बीमारी की?
सीटी स्कैन एकदम से सुनिश्चित तौर पर रोग निदान की पुष्टि करता है. क्रोनिक साइनुसाइटिस होने न होने की इत्तला देता है. एक मर्तबा इस बीमारी की पुष्टि हो जाने पर इलाज़ के बतौर एयर सेल्स को खोलने वाली दवाएं डीकन्जेसटेंट, एलर्जी रोधी दवाएं (एंटीहिस्तामिंस) तथा जीवाणुनाशी एंटीबायटिक्स दिए जाते हैं.
नेज़ल इस्प्रेज़ का भी इस्तेमाल किया जाता है. 90 फीसद मामलों में नियम निष्ठ हो पूरी दवा खाने से इस बीमारी के मरीजों को आराम आ जाता है. बाकी दस फ़ीसद का समाधान माहिरों के अनुसार शल्य चिकित्सा प्रस्तुत करती है. यही राय है अपोलो अस्पताल, बेंगलुरु के डॉ. सुनील नारायण दत्त का.
उपचार की विधि:
असल कसूरवार है खुद अपना वैद्य बनना, नीम हकीमी करना घर बैठे बैठे या फिर सुनी सुनाई करके अपने से ही ओवर दी काउनटर ड्रग लेके खाते रहना.
आम खांसी जुकाम के मामले अमूमन विषाणु से पैदा होते हैं तथा 5-10 दिनों में पिंड छोड़ देते हैं. लेकिन यदि मामला इससे लंबा खिंच जाए तब आपको माहिर के पास ही पहुंचना चाहिए. आम फिजिशियन (काया चिकित्सक या एमडी डाक्टर के पास नहीं).
विस्तृत जांच कैसे की जाती है इस बीमारी की?
सीटी स्कैन एकदम से सुनिश्चित तौर पर रोग निदान की पुष्टि करता है. क्रोनिक साइनुसाइटिस होने न होने की इत्तला देता है. एक मर्तबा इस बीमारी की पुष्टि हो जाने पर इलाज़ के बतौर एयर सेल्स को खोलने वाली दवाएं डीकन्जेसटेंट, एलर्जी रोधी दवाएं (एंटीहिस्तामिंस) तथा जीवाणुनाशी एंटीबायटिक्स दिए जाते हैं.
नेज़ल इस्प्रेज़ का भी इस्तेमाल किया जाता है. 90 फीसद मामलों में नियम निष्ठ हो पूरी दवा खाने से इस बीमारी के मरीजों को आराम आ जाता है. बाकी दस फ़ीसद का समाधान माहिरों के अनुसार शल्य चिकित्सा प्रस्तुत करती है. यही राय है अपोलो अस्पताल, बेंगलुरु के डॉ. सुनील नारायण दत्त का.
उपचार की विधि:
इसकी शल्य क्रिया हेतु दो प्राविधियाँ आज़माई जाती हैं- (1) फंक्शनल एंडोस्कोपी साइनस सर्जरी (FESS) (2) बैलून साइनुप्लास्टी (BALOON SINUPLASTY)
बेशक पहली प्राविधि में भी चीड़ फाड़ बहुत कम है. मकसद होता है एंडोस्कोप से एयर सेल्स (वायु कोशिकाओं) को खोलना जो साइनस की पुरानी पड़ चुकी सूजन में अवरुद्ध हो जातीं हैं. लेकिन यह इस बीमारी का अस्थाई इलाज़ है मुकम्मिल इलाज़ नहीं है. स्कारिंग और रक्तस्राव भी इस प्राविधि में हो सकता है.
दूसरी प्राविधि बेलून एंजियोप्लास्टी (अवरुद्ध धमनी को खोलने में आजमाई जाने वाली प्राविधि) से मिलती जुलती है लेकिन बहुत सुरक्षित और आउट पेशेंट प्रोसीज़र ही है एक तरह से क्योंकि यहाँ चीड़ फाड़ है ही नहीं. एक दम से नान-इन्वेज़िव है यह प्रोसीज़र. इसमें एक इसी मकसद से तैयार किया गया ख़ास बेलून-केथीटर (महीन लचीली नलिका) नासिका विवर (नथुनों) से होता हुआ सोजिश/संक्रमण से ग्रस्त साइनस केविटी तक पहुंचाया जाता है. साइनस मार्ग में ही अब बेलून को फुलाया जाता है. नासिका में किसी प्रकार की कोई स्कारिंग दाग, विक्षति, निशाँ वगहरा यहाँ नहीं हैं. इसीलिए मरीज़ को उसी दिन घर भी भेज दिया जाता है.
डॉ. दत्त के अनुसार इस प्रोसीज़र के बाद इस बीमारी की पुनरावृत्ति उन्होंने अपने मरीजों में नहीं देखी है यानी रोग जड़ से गया है. बेशक क्रोनिक साइनु-साईटिस कोई जानलेवा बीमारी न सही लेकिन जीवन की गुणवत्ता को ले उड़ती है. कई मर्तबा इसकी वजह नेज़ल ग्रोथ और एलर्जी भी बनती है. इन मामलों में दवाएं राहत नहीं पहुंचा पातीं. सर्जरी ही ऐसे में उपाय रह जाता है. माहिरों का यही ख्याल है.
बेशक पहली प्राविधि में भी चीड़ फाड़ बहुत कम है. मकसद होता है एंडोस्कोप से एयर सेल्स (वायु कोशिकाओं) को खोलना जो साइनस की पुरानी पड़ चुकी सूजन में अवरुद्ध हो जातीं हैं. लेकिन यह इस बीमारी का अस्थाई इलाज़ है मुकम्मिल इलाज़ नहीं है. स्कारिंग और रक्तस्राव भी इस प्राविधि में हो सकता है.
दूसरी प्राविधि बेलून एंजियोप्लास्टी (अवरुद्ध धमनी को खोलने में आजमाई जाने वाली प्राविधि) से मिलती जुलती है लेकिन बहुत सुरक्षित और आउट पेशेंट प्रोसीज़र ही है एक तरह से क्योंकि यहाँ चीड़ फाड़ है ही नहीं. एक दम से नान-इन्वेज़िव है यह प्रोसीज़र. इसमें एक इसी मकसद से तैयार किया गया ख़ास बेलून-केथीटर (महीन लचीली नलिका) नासिका विवर (नथुनों) से होता हुआ सोजिश/संक्रमण से ग्रस्त साइनस केविटी तक पहुंचाया जाता है. साइनस मार्ग में ही अब बेलून को फुलाया जाता है. नासिका में किसी प्रकार की कोई स्कारिंग दाग, विक्षति, निशाँ वगहरा यहाँ नहीं हैं. इसीलिए मरीज़ को उसी दिन घर भी भेज दिया जाता है.
डॉ. दत्त के अनुसार इस प्रोसीज़र के बाद इस बीमारी की पुनरावृत्ति उन्होंने अपने मरीजों में नहीं देखी है यानी रोग जड़ से गया है. बेशक क्रोनिक साइनु-साईटिस कोई जानलेवा बीमारी न सही लेकिन जीवन की गुणवत्ता को ले उड़ती है. कई मर्तबा इसकी वजह नेज़ल ग्रोथ और एलर्जी भी बनती है. इन मामलों में दवाएं राहत नहीं पहुंचा पातीं. सर्जरी ही ऐसे में उपाय रह जाता है. माहिरों का यही ख्याल है.
बेशक एलर्जी से पैदा होने वाली क्रोनिक साइनुसाइटिस को ठीक कर पाना मुश्किल काम होता है. एक आंकड़े के अनुसार तकरीबन 60 %बेंगलुरु वासी एलर्जिक राइनाइतिस से ग्रस्त रहते हैं. यह साइनुसाइटिस पूर्व की ही प्रावस्था होती है. इनमें से तकरीबन 90 फीसद बाहर से आये हुए लोग हैं जो यहाँ की हवा में मौजूद एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों के प्रति अरक्षित हैं. यहाँ की आबोहवा के अभ्यस्त नहीं रहे हैं ये लोग.
अब एलर्जी तो कभी भी, कहीं भी, किसी को भी, किसी भी चीज़ से, हो सकती है. महानगरों के तो कहने ही क्या हैं. जहां एलर्जन्स बे-शुमार हैं. पूरा स्पेकट्रम है इन अलर्जी पैदा करने वाले हवा में तैरते गैसीय और कणीय प्रदूषकों का. अगर किसी को सिर्फ इनमें से दो तीन से ही एलर्जी है तब तो ठीक, निभ जाएगा. वेक्सीन और दवाएं आपको बराबर फायदा करेंगी लेकिन ज्यादा एलर्जन्स के प्रति संवेदी होने से मुश्किल होगी.
समस्या का समय रहते पता लग जाए तो निदान भी सहज हो जाए. लेकिन साइनस के पूरी तरह रुक जाने पर मुश्किल पेश आती है. यदि आपका सर्दी जुकाम सात आठ दिन से लंबा खिंच जाता है, आप निश्चय ही किसी कान, नाक, कंठ माहिर (ENT SPECIALIST) की सलाह लीजिए. अगर कोई एंटीबायटिक लिखा गया है तो कृपया कोर्स पूरा करें. बीच में छोड़ेंगे तो मुश्किल होगी. बैक्टीरिया ढीठ हो जाएगा, दवा प्रतिरोध खड़ा कर लेगा. ऐसे में आपको लेने के देने पड़ सकते हैं.
सन्दर्भ सामग्री: Sinusitis/The Week, Health, September 23, 2012, Pages 44-45
बहुत ही उपयोगी जानकारी है, आभार।
ReplyDeleteram ram bhai
ReplyDeleteमुखपृष्ठ
बुधवार, 31 अक्तूबर 2012
सुपरस्ट्रोम सैंडी (हरिकेन सैंडी ):दूसरी क़िस्त
मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012
Super Storm Sandy
सभी मेहमान टिपण्णी कारों का दिल से शुक्रिया पधारने के लिए टिपियाने के लिए .
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ReplyDeleteडॉ .जाकिर भाई आपकी टिपण्णी हमारे लेखन की आंच को बनाए रहती है .आभार .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Useful
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ram ram bhai
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बृहस्पतिवार, 1 नवम्बर 2012
What is a Cyclone?
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वीरेंद्र जी हम आपका दिल से शुक्रिया अदा करते है की आप समय समय पर सवास्थ्य से सम्बंधित बहुत अच्छी जानकारी उपलब्ध कराते रहते है. आज फिर आपकी पोस्ट से नयी जानकारी मिली है बिलकुल सही बात है कि अगर बीमारी का समय रहते उपचार हो जाता है तो आगे का संकट टल जाता है बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteसर मुझे साइनोसाइटिस लगभग 5 साल से है अब तो दवाई से परेशान होकर काउंटर से ही दर्द की दवाओं से काम चलता है।मुझे क्या करना चाहिए।लोग कहते है सर्जरी कामयाब नही है।होमियोपैथी इलाज करो
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