पानी पर तैरते पत्थर लेखक -डॉ0 दिनेश मिश्र पानी पर तैरता पत्थर, आश्चर्य का विषय नहीं. क्या पत्थर भी पानी पर तैर सकते है? क्या पा...
पानी पर तैरते पत्थर
लेखक -डॉ0 दिनेश मिश्र
पानी पर तैरता पत्थर, आश्चर्य का विषय नहीं. क्या पत्थर भी पानी पर तैर सकते है? क्या पानी पर तैरने वाले पत्थरों का संचार में कोई अस्तित्व है? पत्थर भला पानी पर कैसे तैर सकते है आदि प्रश्न जनसामान्य के मस्तिष्क में उभरने लगते है। जब भी पत्थरों के जलसतह पर तैरने की खबर यहां-वहां से सुनने को मिलती है तो वे कभी आश्चर्य का विषय बन जाती है तो कभी इनके नाम पर अंघविश्वास का जमावड़ा बन जाता है धीरे-धीरे नाना प्रकार के किस्से, कहानियां, गाथाएं ऐसे कथित चमत्कारिक पत्थरों के वजूद से जुड़ जाती है व इन पत्थरों को चमत्कारिक मानकर इनकी पूजा-अर्चना शुरू कर दी जाती है। जबकि भारत के दक्षिणी भाग ही नहीं बल्कि श्रीलंका, जापान सहित अनेक स्थानों में ऐसे पत्थर मिलते है। ये सामान्यतः द्वीपों, समुद्र तट, ज्वालामुखी के नजदीकी क्षेत्रों पर काफी मात्रा में मिलते है।
आजकल ऐसे छोटे पत्थर कृत्रिम रूप से बनाये भी जाने लगे है। अपनी विशिष्ट आंतरिक संरचना के कारण पत्थर जल सतह पर तैर पाते है जो कि इनकी संरचनागत विशिष्टता के कारण संभव है। यह तथ्य भू-विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों तक में मौजूद है इस कारण यह न ही अचरज का विषय व न ही अंधविश्वास मुद्दा तथा न ही कौतूहल जगाने का साधन बनाना चाहिए। कोई भी वस्तु पानी पर तैरती क्यों है?
पहले यह अचरज का विषय था, जब किसी को भी तैरने के पीछे के संभावित कारण ज्ञात नहीं थे। पहले यह माना जाता रहा है कि हल्की वस्तुएं पानी पर तैरती है व भारी वस्तुएं पानी में डूब जाती है। लेकिन कुछ समय बाद वह मान्यता भी गलत साबित हुई क्योंकि यह देखा गया कि हल्की सुई पानी में डूब जाती है जबकि टनों वजनी जहाज पानी में मजे से तैरते रहते है। द्रव के उपर द्रव भी तैर जाता है, पानी पर तेल तैरने की घटनाएं भी देखी जाती है। ऐसी बहुत सी विविधताएं सामान्य जीवन में देखने को मिलती है। जैसे कि छोटा सा कंकड़ पानी में डूब जाता है जबकि हजारों किलो भारी मछलियां पानी में तैरती है आदि।
इनसे इस बात को भी बल मिला कि तैरने के लिये हल्का या भारी होना भी पर्याप्त नहीं है बल्कि कुछ अन्य कारण भी होना चाहिए। यह भी देखा गया है कि तेल पानी में हमेशा तैरता है, चाहे तेल, पानी में डाला जाए अथवा पानी तेल में, इसका कारण तेल का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है. जिस भी द्रव का घनत्व कम होता है जिस भी द्रव्य का घनत्व कम होता है वह हमेशा ज्यादा घनत्व वाले द्रव्य की उपरी सतह पर रहेगा।
तैरने का ही दूसरा उदाहरण सुई व जहाज का है। यह आर्कमिडीज के सिद्धांत से बखूबी समझा जा सकता है।
लोहे की बनी सुई का भार द्रव के सतह पर छोटे से स्थान पर पड़ता है इसलिये वह डूब जाती है परंतु जहाज की आकृति इस तरह की होती है कि उसका भार पानी के बहुत बड़े क्षेत्र पर बंटकर फैल जाता है इसलिये उसके द्वारा हटाये गये द्रव का भार जहाज के भार से अधिक होता है। पानी हटाने की इस प्रक्रिया को उत्पल्वन कहते हैं। इसलिये भारी जहाज पानी पर तैरता है।
वहीं मछली के पानी पर तैरने का कारण कुछ अलग है, मछली अपने आकार के कारण पानी में तैरती है। वह अपने डैनो के द्वारा पानी को अलग-अलग दिशा में हटाती है इसी के द्वारा वह अपने तैरने की दिशा निर्धारित करती है। मछली अपने डैनो के द्वारा अपने वजन के समकक्ष पानी को हटाती है और आर्कमिडीज के सिद्धांत के अनुसार पानी में तैरती है। समुद्र के पानी में लवण अधिक मात्रा में घुले रहने से पानी खारा होता है जिससे उसका घनत्व बढ़ जाता है इसलिये समुद्र के पानी में तैरना नदी के पानी में तैरने से आसान है।
इजरायल के पास डेड-सी के नाम से जाने-जाने वाले समुद्र के पानी में तो लवण इतना अधिक घुला हुआ है कि वहां पर कोई भी जलचर जीवित नहीं रह पाता लेकिन इस विशेषता के कारण इसमें व्यक्ति डूब नहीं सकता वह आराम से तैर सकता है, बैठे रह सकता है।
इस प्रकार तैरने वाले पत्थरों के संबंध में भी जानकारियां कुछ खास है।
जल में तैरने वाले पत्थर प्यूसिम पत्थर के नाम से जाने जाते हैं ये प्यूसिम पत्थर अंदरूनी तौर पर सरंघ्रीय या छिद्रित होते हैं जिनमं कोष्ठों में हवा भरी होती है। भू-विज्ञान की एक किताब पेट्रालॉजी ऑफ इग्नीशियस रॉक(लेखक एफ.एच.हैच, ए.के. वेल्स) में ऐसे पत्थरों के संबंध में जानकारी मिलती है जो पानी पर तैरते है। इनकी आंतरिक संरचना एकदम ठोस न होकर अंदर से स्पंज अथवा डबल रोटी जैसे होती है जिसमें बीच-बीच में वायु कोष बने होते है। इन वायु प्रकोष्ठों के कारण ये पत्थर वजन में भारी होने के बाद भी घनत्व के हिसाब से हल्के होते है तथा इस कारण ये पत्थर पानी में तैर सकते है।
प्यूसिम पत्थर की उत्पत्ति के संबंध में यह एक अन्य किताब पेट्रालॉजी इग्नीशियस, सेडीमेन्ट्री एंड मेटामॉर्फिक लेखक ई.जी.एंटर्स, हार्वे में बताया गया है। पृथ्वी की भीतरी सतह मैग्मा में तापमान हजारों डिग्री सेन्टीग्रेड होता है जिसमें चट्टाने पिघली हुई अवस्था में रहती है साथ ही इसमें विभिन्न गैसे रहती है जब भी ज्वालामुखी खुलते है तब उसके मुख से भारी दबाव के साथ गर्म लावा निकलता है जिसमें गर्म गैसें, पिघली हुई चट्टाने बाहर निकलती हैं जो धीरे-धीरे ठंडा होकर ठोस रूप में परिवर्तित होने लगता है, जिसमें गैस के बुलबुले बचे रहते है। यह वायु के प्रकोष्ठों के रूप में पत्थर में रह जाती है। यह विशिष्ट संरचना स्पंज, डबल रोटी की तरह दिखती है।
ऐसे पत्थर जिसमें वायु प्रकोष्ठ होते है प्यूमिस पत्थर के नाम से जाने जाते है। यह हल्के रंग के होते हैं जिसमें सिलिका व एलुमिना का प्रतिशत अधिक होता है। ऐसे तैरने वाले पत्थर प्यूसिम पत्थर कृत्रिम रूप से भी बनाये जाते हैं जो बाजारों में उपलब्ध होते है। ये खुरदरे व सरंघ्रीय होते है।
जल सतह पर तैरने वाले पत्थर के संबंध में एक घटना का उल्लेख करना आवश्यक है। कुछ समय पहले एक धार्मिक स्थल के संबंध में यह खबर तेजी से फैली कि वहां रामेश्वरम् से एक ऐसा पत्थर लाया गया है जो पानी में तैरता है। पूजा-अर्चना के बाद उस पत्थर को सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए मंदिर के ही कुंए के पानी में छोड़ दिया गया। स्थानीय समाचार पत्रों में यह समाचार प्रमुखता से प्रकाशित हुआ। किसी ने इस पत्थर का संबंध रामायण काल से व समुद्र पर पुल बांधने से जोड़ा, किसी ने इसे विज्ञान के लिए चुनौती माना, तो कुछ ने इसे चमत्कारिक पत्थर की संज्ञा दी। बहरहाल पत्थर व उसके पानी पर तैरने की विशेषता को लेकर आम जनता में जिज्ञासा व कौतूहल बढ़ने लगा। मेरे पास सैकड़ों लोगों ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क कर ऐसे पत्थर के संबंध में वैज्ञानिक मत मांगा, तब मैंने विभिन्न स्त्रोतों से यह जानकारी जुटाई।
यदि पत्थरों की विविधताओं एवं विशेषताओं के बारे में ही बातें की जावे तो कुछ पत्थर एकदम चमकदार होते है तो कुछ एकदम पारदर्शी,कुछ पत्थर प्रकाश बिखेरते है तो कुछ एकदम काले व अपारदर्शी होते हैं यह संरचनागत विशिष्टताओं के संभव है। पत्थर ही क्या संसार में अनेक पदार्थ जड़ या सजीव अपनी विशिष्टता के साथ उपलब्ध है,जरूरत है उन पर तर्क व खोजपूर्ण दृष्टिकोण से विचार करने की। विज्ञान ने प्रकृति के अनेक रहस्यों को अनुसंधानों व परीक्षणों से बूझा है, फिर भी सामान्य प्राकृतिक घटनाओं व पदार्थो को अलौकिक चमत्कार के रूप में प्रस्तुत कर जन सामान्य की आस्था व विश्वास के साथ ठगी करने की अनेक घटनाएं सामने आती है।ऐसी परिस्थिति में नागरिकों को वैज्ञानिक व तर्कपूर्ण सोच से काम लेना चाहिए व स्वयं को पाखंड व अंधविश्वास के प्रचार का हिस्सा बनने नहीं देना चाहिए।
बढिया जानकारी
ReplyDeleteसुन्दर आलेख .पथ्थरों की संरचनागत विशेषता ,तैरने के सिद्धांतों का खुलासा करता .लाज आफ फ्लोटेशन हाड्रोडायनेमिक्स के तहत स्कूल में भी एक पाठ के तहत आता है .
ReplyDeleteram ram bhai
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मंगलवार, 4 दिसम्बर 2012
सेहतनामा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आदरणीय दिनेश जी, अंधविश्वास से जुड़े विषयों पर जिस गम्भीरता और समर्पण के साथ आप काम कर रहे हैं, वह काबिले तारीफ है। इस महत्वपूर्ण लेख में भी आपका श्रम और समर्पण साफ झलक रहा है। इस महत्वपूर्ण लेख के लिए बधाई स्वीकारें।
ReplyDeletebahut bahiya...
ReplyDeleteअंधविश्वास के एक प्रचलित उदाहरण को वैज्ञानिक तरीके से समझाने की एक बेहतर प्रस्तुती - बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteBahut khub ase jankariyo ke sahare hi hum andhviswash ko khatam kar sakte hai.
ReplyDeleteदिनेश जी यह कोइ नयी बात नहीं है ...तैरने की बात कक्षा आठ में पढाई जाती है....
ReplyDelete---जहां तक राम के पुल का नल-नील के द्वारा पत्थरों का तैराया जाने की बात है वह अंधविश्वास नहीं अपितु विज्ञान व इंजीनियरिंग है ....नल व नील वैज्ञानिक थे जो इस प्रकार के पत्थरों के मिलने का स्थान व पहचान समझते थे ....
--- यह वैज्ञानिक तथ्य राम व नल-नील व अन्य विद्वान् जानते थे ...अन्य सामान्य कर्मी व नागरिक नहीं ... एसा ही आजकल भी होता है ... हर व्यक्ति नहीं जानता कि वस्तुएं कैसे काम करतीं हैं ..न जान सकता ..न जानने की आवश्यकता होती है...
---कोरल रीफ व प्राचीन भारत-लंका मूल महाद्वीपीय भूलिंक के उथले स्थान पर इस प्रकार के पत्थरों का तैरता हुआ बेड़ा -लिंक बनाकर एक सेतु तैयार किया गया था... जैसा आजकल स्टील के बड़े-बड़े ड्रमों ( कछुए ) से नदियों पर पुल बनाए जाते हैं |
क्या सुन्दर और सटीक प्रतिक्रिया दी है आपने । अति सुन्दर ।आप जैसे लोगों का कोटि- कोटि धन्यवाद जो हमारी सभ्यता और संस्कृति को बहुत सूक्ष्म और वैज्ञानिक तरीके से परिभाषित करते हैं और समझते तथा समझतें हैं ।
Deleteमेरे विचार से शायद इसे प्यूसिम की बजाय प्यूमिस पत्थर कहते हैं.....
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