कैलेंडर- एक छोटा सा शब्द; कमरे के किसी भाग में यूँ ही सी पड़ी एक वस्तु जिसकी जरुरत इस तकनीकी युग में शायद ही छुट्टियाँ देखने के लिए भी ...
कैलेंडर- एक छोटा सा शब्द; कमरे के किसी
भाग में यूँ ही सी पड़ी एक वस्तु जिसकी जरुरत इस तकनीकी युग में शायद ही छुट्टियाँ
देखने के लिए भी पड़ती हो. मगर इस छोटी सी रचना के पीछे जो हजारों वर्ष पुरानी
सभ्यता के विकास की कहानी छुपी है उसे समझ पाना सहज नहीं.
यूँ तो इसकी विवेचना में कितने थीसिस और शोधपत्र प्रकाशित किये जा सकते हैं, मगर फिलहाल प्रयास करूँगा साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अरविन्द मिश्र जी की उस जिज्ञासा तक ही सीमित रहने का कि गीता में जब श्रीकृष्ण कहते हैं कि “मैं माहों में मार्गशीर्ष / अग्रहायण हूँ” तो इसका तात्पर्य क्या है?
खोज के क्रम में अचंभित हुआ यह जानकार कि वर्षों पूर्व लोकमान्य तिलक के मस्तिष्क में भी यही सवाल उभरा और यह आधार बना उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘The Orion-The antiquity of the Vedas’ का- जिसमें उन्होंने ‘ओरायन’ (जो मृगशीर्ष/ मृगशिरा नक्षत्र का ग्रीक नाम है) को आधार बना कर खगोल विज्ञान के सिद्धांतों के माध्यम से न सिर्फ वेदों के रचना काल को प्रचलित विचारानुसार 3000-4000 ई. पू. के बजाये 6000 ई. पू. से प्राचीन सिद्ध किया, बल्कि उन्होंने वेदों तथा अन्य ग्रंथों के उद्धरणों के माध्यम से सिद्ध किया कि तब वसंत विषुव (Spring Equinox) जो सूर्य और पृथ्वी की गति का एक महत्वपूर्ण अंग है तारासमूह ओरायन के निकट पड़ रहा था.
तिलक के निष्कर्षानुसार 4000 BC से 2500 BC का यह ओरायन काल ही था जो आर्य सभ्यता के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण रहा. तत्पश्चात 2500 BC से 1400 BC का कृत्तिका काल रहा. इसी मध्य ही आर्यों की तीन शाखाएं ग्रीस, पर्सिया और भारत की ओर विभक्त हो गईं. शायद इसीलिए श्रीकृष्ण ने अपने संवाद के अगले चरण में यह भी जोड़ा की वो 'ऋतुओं में वसंत हैं'.
यहाँ यह जानना भी दिलचस्प होगा कि लगभग 5000 वर्ष पूर्व प्राचीन मिस्र निवासी जो कालगणना से अवगत थे वर्ष की शुरुआत नील नदी में आने वाली बाढ़ से मानते थे जो उनकी कृषि के लिए काफी उपजाऊ मिट्टी छोड़ जाया करती थी. उन्होंने पाया कि यही वह दौर होता है जब आकाश में एक काफी चमकीला तारा भी दृष्टिगोचर होता है. उन्होंने जिस तारे या ‘सीरियस’ (Serius Star) को अपने लिए समृद्धि का आशीर्वाद देने वाला देवता माना वो भी इसी ओरायन से ही जुड़ा हुआ है. उनकी मान्यताओं का प्रभाव उनके पिरामिड आदि निर्माण कार्यों पर भी दिखता है.
यूँ तो इसकी विवेचना में कितने थीसिस और शोधपत्र प्रकाशित किये जा सकते हैं, मगर फिलहाल प्रयास करूँगा साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अरविन्द मिश्र जी की उस जिज्ञासा तक ही सीमित रहने का कि गीता में जब श्रीकृष्ण कहते हैं कि “मैं माहों में मार्गशीर्ष / अग्रहायण हूँ” तो इसका तात्पर्य क्या है?
खोज के क्रम में अचंभित हुआ यह जानकार कि वर्षों पूर्व लोकमान्य तिलक के मस्तिष्क में भी यही सवाल उभरा और यह आधार बना उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘The Orion-The antiquity of the Vedas’ का- जिसमें उन्होंने ‘ओरायन’ (जो मृगशीर्ष/ मृगशिरा नक्षत्र का ग्रीक नाम है) को आधार बना कर खगोल विज्ञान के सिद्धांतों के माध्यम से न सिर्फ वेदों के रचना काल को प्रचलित विचारानुसार 3000-4000 ई. पू. के बजाये 6000 ई. पू. से प्राचीन सिद्ध किया, बल्कि उन्होंने वेदों तथा अन्य ग्रंथों के उद्धरणों के माध्यम से सिद्ध किया कि तब वसंत विषुव (Spring Equinox) जो सूर्य और पृथ्वी की गति का एक महत्वपूर्ण अंग है तारासमूह ओरायन के निकट पड़ रहा था.
तिलक के निष्कर्षानुसार 4000 BC से 2500 BC का यह ओरायन काल ही था जो आर्य सभ्यता के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण रहा. तत्पश्चात 2500 BC से 1400 BC का कृत्तिका काल रहा. इसी मध्य ही आर्यों की तीन शाखाएं ग्रीस, पर्सिया और भारत की ओर विभक्त हो गईं. शायद इसीलिए श्रीकृष्ण ने अपने संवाद के अगले चरण में यह भी जोड़ा की वो 'ऋतुओं में वसंत हैं'.
यहाँ यह जानना भी दिलचस्प होगा कि लगभग 5000 वर्ष पूर्व प्राचीन मिस्र निवासी जो कालगणना से अवगत थे वर्ष की शुरुआत नील नदी में आने वाली बाढ़ से मानते थे जो उनकी कृषि के लिए काफी उपजाऊ मिट्टी छोड़ जाया करती थी. उन्होंने पाया कि यही वह दौर होता है जब आकाश में एक काफी चमकीला तारा भी दृष्टिगोचर होता है. उन्होंने जिस तारे या ‘सीरियस’ (Serius Star) को अपने लिए समृद्धि का आशीर्वाद देने वाला देवता माना वो भी इसी ओरायन से ही जुड़ा हुआ है. उनकी मान्यताओं का प्रभाव उनके पिरामिड आदि निर्माण कार्यों पर भी दिखता है.
मान्यता है कि रोमन पंचांग
की स्थापना राजा नूमा पोम्पिलियस-Numa Pompilius (716-673
ई. पू.) ने की थी. उसमें वर्ष में केवल दस महीने
(300 दिन) होते थे. क्योंकि वर्ष के अंतिम काफी ठंढे दो महीनों में खास काम न हो
पाने की वजह से संभवतः उन दिनों की गिनती नहीं की जाती थी. इस कैलेण्डर में बाद
में जूलियस सीजर (Julius Caesar) और फिर पोप ग्रेगरी तेरहवें (Pope Gregory 13) ने काफी सुधार किये और आज का
सर्वमान्य कैलेण्डर अस्तित्व में आया.
भारत में भी सौर वर्ष और चन्द्र वर्ष में सामंजन के प्रयास किये जाते रहे जिसमें समय के साथ अन्य सभ्यताओं के परस्पर ज्ञान का भी काफी प्रभाव पड़ा. मगर विविधता और उसमें भी पारंपरिकता के प्रति विशेष आग्रह ने हमें इस दिशा में कोई क्रन्तिकारी कदम उठाने नहीं दिए. विक्रम संवत और शक संवत पंचांगों के माध्यम से हालाँकि प्रभावशाली प्रयास हुए. मगर वैश्विक प्रगति और खगोलीय गणनाओं को देखते हुए ये समुचित नहीं थे.
आजादी के बाद महान वैज्ञानिक डॉ. मेघनाद साहा (Meghnad Saha), जिनके ज्ञान की विविधता भी अद्दभुत थी, के देखरेख में एक नए संशोधित राष्ट्रिय पंचांग का निर्माण किया गया. डॉ साहा ने अपने आलेखों के माध्यम से पूरे विश्व में प्रचलित कैलेंडरों की त्रुटियों की ओर ध्यानाकर्षण करते हुए एक ‘विश्व पंचांग’ (World Calendar) की आवश्यकता जताई. संभवतः पारंपरिकता और धार्मिक आदि कई अन्य आग्रहों के कारण यह प्रस्तावना हकीकत का स्वरुप नहीं ले पाई मगर प्रयास अब भी जारी हैं, और आशा है कि एक साझा वैश्विक कैलेण्डर एक-न-एक दिन जरुर अस्तित्व में आएगा. आखिर सूर्य-चंदमा, नक्षत्र आदि हमारे साझे हैं तो उनकी गणना में अंतर क्यों? यहाँ यह तथ्य भी विचारणीय है कि हमारा संविधान डॉ. अंबेडकर द्वारा और राष्ट्रिय पंचांग डॉ. मेघनाद साहा द्वारा! वैज्ञानिक और बौद्धिक मान्यताओं की सर्वस्वीकार्यता का अद्दभुत उदाहरण है भारतीय समाज.
भारत में भी सौर वर्ष और चन्द्र वर्ष में सामंजन के प्रयास किये जाते रहे जिसमें समय के साथ अन्य सभ्यताओं के परस्पर ज्ञान का भी काफी प्रभाव पड़ा. मगर विविधता और उसमें भी पारंपरिकता के प्रति विशेष आग्रह ने हमें इस दिशा में कोई क्रन्तिकारी कदम उठाने नहीं दिए. विक्रम संवत और शक संवत पंचांगों के माध्यम से हालाँकि प्रभावशाली प्रयास हुए. मगर वैश्विक प्रगति और खगोलीय गणनाओं को देखते हुए ये समुचित नहीं थे.
आजादी के बाद महान वैज्ञानिक डॉ. मेघनाद साहा (Meghnad Saha), जिनके ज्ञान की विविधता भी अद्दभुत थी, के देखरेख में एक नए संशोधित राष्ट्रिय पंचांग का निर्माण किया गया. डॉ साहा ने अपने आलेखों के माध्यम से पूरे विश्व में प्रचलित कैलेंडरों की त्रुटियों की ओर ध्यानाकर्षण करते हुए एक ‘विश्व पंचांग’ (World Calendar) की आवश्यकता जताई. संभवतः पारंपरिकता और धार्मिक आदि कई अन्य आग्रहों के कारण यह प्रस्तावना हकीकत का स्वरुप नहीं ले पाई मगर प्रयास अब भी जारी हैं, और आशा है कि एक साझा वैश्विक कैलेण्डर एक-न-एक दिन जरुर अस्तित्व में आएगा. आखिर सूर्य-चंदमा, नक्षत्र आदि हमारे साझे हैं तो उनकी गणना में अंतर क्यों? यहाँ यह तथ्य भी विचारणीय है कि हमारा संविधान डॉ. अंबेडकर द्वारा और राष्ट्रिय पंचांग डॉ. मेघनाद साहा द्वारा! वैज्ञानिक और बौद्धिक मान्यताओं की सर्वस्वीकार्यता का अद्दभुत उदाहरण है भारतीय समाज.
इसीलिए
पं. नेहरु ने कहा भी था कि– “हमने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है. यह वांछनीय होगा
कि हमारे नागरिक, सामाजिक और अन्य कार्यों में काम आने वाले कैलेण्डर में कुछ समानता
हो और इस समस्या को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिया जाना चाहिए.”
इस लेख में मैंने
यूँ तो अरविन्द मिश्र जी की जिज्ञासा और और उससे जगी मेरी उत्सुकता को अपनी सीमा
के अंतर्गत पूर्ण करने के प्रयासों को ही स्वरुप दिया है, मगर इस दौरान मैंने
महसूस किया कि यह एक काफी जटिल विषय भी है- जिसे यथोचित प्रकार से रखने के लिए
गणित, खगोल आदि कई विषयों का ज्ञान आवश्यक है. कई प्रश्न अभी भी जटिल और अनुत्तरित
हैं, आशा है प्रबुद्ध जनों से इनपर और जानकारी मिल सकेगी.
काल गणना से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने अभिषेक जी, आभार।
ReplyDeleteआपको एवं साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के सभी सदस्यों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
An erudite discourse! Tonight incedently Sirius is just overhead at midnight anouncing a happy 2014 to humanity! Thanks for this very well timed post!
ReplyDeleteअभिषेक भाई, अरविंद जी की जिज्ञासा के बहाने हमारा भी ज्ञानवर्द्धन हुआ, आभार।
ReplyDeleteआप सभी को नया साल मुबारक हो।
कोई जटिल नहीं है ....विक्रम संवत से अपना भारतीय काम चलने दो सब ठीक होजायेगा--विश्व केलेंडर की कोइ आवश्यकता नहीं है .इसीलिए मेघनाद साहा की योजना नहीं बनी क्योंकि वह अवैज्ञानिक व अव्यवहारिक थी............
ReplyDeleteसंक्षेप में कलेंडर का पूरा इतिहास आपने बता दिया ! यह बात भी सही है कि अलग अलग कलेंडर में कमियाँ भी है | २१ वीं सदी में वैज्ञानिक दृष्टि कोण पर आधारित निर्दोष और सर्वमान्य कलेंडर वांछनीय है |
ReplyDeleteनया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
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रोचक पोस्ट ! सोचने में भी कितना अजीब लगता है कि अगर कलेंडर और पंचांग न होता तो दुनिया के काम काज कैसे चला करते ?
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