बच्चों को गिनतियां, जोड़-घटाव एवं गणित के अन्य टर्म सिखाने के आसान उपाय।
गणित को लेकर हमारे समाज में कुछ अजीबोगरीब धारणाएं प्रचलित हैं, जैसे– गणित एक ठोस विषय है, अन्य विषयों की तुलना में गणित ज्यादा कठिन होता है, यह बेहद नीरस विषय है, गणित के अध्यापक बेहद गंभीर होते हैं, वे हँसते-मुस्कराते नहीं हैं। इसी तरह से लड़कियों के बारे में यह धारणा प्रचलित है कि वे गणित में कमजोर होती हैं। आश्चर्य का विषय है कि इन धारणाओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, फिर भी ये हमारे समाज में प्रचलित हैं।
गतिविधियों के द्वारा गणित-शिक्षण
-डॉ. ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
गणित को बहुत से लोग हव्वा समझते हैं। बचपन से ही उसको लेकर भय का माहौल बना दिया जाता है। यही कारण है कि बच्चे इससे दूर भागने लगते हैं। कुछ लोग तो गणित का नाम लेते ही थर्राने लगते हैं। ऐसे लोगों के लिए गणित एक प्रकार से ‘मैथिमैटिक्स फोबिया’ (गणित भय) से कम नहीं है। पसीना आना, जल्दी-जल्दी सांस लेना, दिल की धड़कन तेज हो जाना, स्पष्ट बोलने में दिक्कत होना, चिंता का दौरा पड़ना इत्यादि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
गणित को लेकर हमारे समाज में कुछ अजीबोगरीब धारणाएं प्रचलित हैं, जैसे– गणित एक ठोस विषय है, अन्य विषयों की तुलना में गणित ज्यादा कठिन होता है, यह बेहद नीरस विषय है, गणित के अध्यापक बेहद गंभीर होते हैं, वे हँसते-मुस्कराते नहीं हैं। इसी तरह से लड़कियों के बारे में यह धारणा प्रचलित है कि वे गणित में कमजोर होती हैं। आश्चर्य का विषय है कि इन धारणाओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, फिर भी ये हमारे समाज में प्रचलित हैं।
ऐसा नहीं है कि पहली बार स्कूल जाने वाले बच्चे गणित से पूर्णत: अनजान होते हैं। वे रूपया-पैसा समझते हैं, टॉफी और रोटियाँ गिन सकते हैं। वे दुकान से लेमनचूस या खटमिट्ठी गोलियां खरीदने का अनुभव रखते हैं। इसके अलावा उन्हें कम–ज्यादा, हल्का–भारी व दूर–पास का भी कुछ-कुछ ज्ञान होता है।
फिर ऐसा क्या हो जाता है कि स्कूल पहुंचते ही बच्चों की समझ गड़बड़ा जाती है? इसका मतलब है कि कहीं न कहीं उस प्रक्रिया में कमी है, जिसके जरिए बच्चे का गणित से परिचय कराया जाता है। संभव है कक्षा में ठोस/परिचित वस्तुओं का प्रयोग न होने की वजह से बच्चे गणित की अमूर्तता से डर जाते हों। वैसे इसका एक कारण शिक्षक का रूखा व्यवहार तथा अरूचिकर ढंग से कराया गया अध्यापन भी हो सकता है। इसके साथ ही साथ शिक्षकों द्वारा बच्चों की गलतियों को नकारात्मक नजरिये से देखना भी उनमें अपराध बोध पैदा कर सकता है और वे मैथिमैटिक्स फोबिया (गणित भय) के शिकार हो सकते हैं।
ज्यादातर अध्यापक स्कूलों में गणित पढ़ाने से बचते भी हैं, खासकर प्राथमिक विद्यालयों में, जंहा एक अध्यापक पर सभी विषयों को पढाने की जिम्मेदारी होती है। इसके भी कई कारण हो सकते हैं। जैसे कि शिक्षक को गणित की अवधारणाएं स्पष्ट न होना, शिक्षक का गणित को एक अमूर्त विषय मानना, जिसे सिर्फ ब्लैक बोर्ड और चॉक द्वारा ही पढ़ाया जा सकता है।
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शिक्षाविदों का मत है कि गणित के प्रति भय या रूचि जगाना काफी हद तक अध्यापक की सिखाने की तकनीकों पर निर्भर करता है। यदि बच्चों को उनके प्रारम्भिक ज्ञान से जोड़ते हुए उन्हें उनके आसपास पाई जाने वाली वस्तुओं, चित्रों आदि के द्वारा रोचक ढ़ंग से गणित का अभ्यास कराया जाए, तो न सिर्फ वे आसानी से उसे ग्रहण करेंगे, बल्कि उसके भय से भी पूरी तरह से मुक्त हो जाएंगे।
इस लेख में प्राथमिक स्तर पर बच्चों को गणित पढ़ाने की उन्हीं रोचक एवं व्यवहारिक विधियों का जिक्र किया गया है, जिसके द्वारा बच्चों के मन से गणित के भय को निकाला जा सकता है और उनके लिए गणित को भी एक आनंददायी विषय बनाया जा सकता है।
गणित से पहला परिचय:
बच्चों को गणित सिखाने के लिए सबसे उचित तरीका यही है कि पहले उन्हें वस्तुओं के द्वारा प्रत्येेक चीज का अभ्यांस कराया जाए, फिर चित्रों के रूप में उसे ब्लैीक बोर्ड पर लाया जाए, तत्पहश्चा त उसे संख्या रूप में प्रदर्शित किया जाए। ऐसा करने पर वे गणित की अमूर्तता से भय नहीं खाएंगे और सहज रूप में गणित के प्रत्येाक रूप से घुल-मिल जाएंगे।
स्कूल आने वाला प्रत्येक बच्चा कंचे, गेंद, इमली के बीज, पैसों/सिक्कों से भलीभांति परिचित होता है। हम इनके द्वारा विभिन्न प्रकार के खेल खिलाते हुए बच्चों से गणित का परिचय करा सकते हैं। आइए जानते हैं कि वे कौन-कौन से खेल हो सकते हैं।
गिनतियों के मनोरंजक खेल:
ईंट के चपटे और थोड़ा गोल टुकड़े, जिन्हें ‘गिप्पल’ कहते हैं (खपरैल या टाइल के टुकड़े हों तो बेहतर है) इकट्ठा करके उन्हें एक के ऊपर एक रखें और फिर बच्चों की दो टीमें बनाकर उन्हें गेंद देकर थोड़ी दूर से उसमें निशाना लगाने को कहें। इसके लिए प्रत्येक बच्चे को पांच बार मौका दें और हर बार उन्हें गिनने के लिए कहें। जो बच्चा निशाना लगाकर गिप्पलों को गिरा दे, उसके लिए सभी बच्चों से तालियां बजवाएं। यह भी देंखें कि गेंद लगने से कितनी गिप्पल गिरती हैं। गिरी हुई गिप्पलों को गिनवाएं और उन्हें एक जगह लिखते जाएं। इस तरह से यह भी देखें कि एक टीम के कितने बच्चे निशाना लगाने में कामयाब होते हैं और कितने बच्चेे निशाना नहीं लगा पाते हैं। सभी लोगों की अलग-अलग गिनती करवाएं। जब एक टीम के बच्चे अपनी चांस चल लें, तो दूसरी टीम को मौका दें। जिस टीम के बच्चे अधिक बार गिप्पलों को गिरा दें, उन्हें विजेता घोषित करें।
एक छोटे से घेरे में ढ़ेर सारे कंचे रखें और थोड़ी दूरी से बच्चों को कंचे के द्वारा उसमें निशाना लगाने को कहें। निशाना लगाने पर जितने कंचे घेरे के बाहर चले जाएं, वे कंचे निशाना लगाने वाले बच्चेा को दे दें। वह उन्हेंन जोर-जोर से बोल कर सबको बताए कि उसने कितने कंचे जीते। इस तरह जो बच्चा सबसे ज्यादा कंचे घेरे के बाहर निकाल ले, उसे विजेता घोषित करें। यह खेल टीम के रूप में भी खिलाया जा सकता है।
बच्चों को दो टीमों में बांट कर उन्हें बराबर-बराबर कंचे दे दें। इसके बाद लूडो का पासा लेकर एक टीम को चलने को कहें। जो टीम पासा चलेगी, वह उसमें आने वाले नंबर के बराबर कंचे दूसरी टीम से ले लेगी। उसके बाद दूसरी टीम की बारी आएगी। वह भी ऐसा ही करेगी। जो टीम दूसरे के सारे कंचे जीत लेगी, उसे विजेता घोषित किया जाएगा।
इन खेलों के द्वारा बच्चों को एक से लेकर नौ तक की गिनतियों के बारे में बताएं। जब बच्चे इन गिनतियों को समझने लगें तो उन्हें ‘बोल भाई कितने’ खेल खिलवाएं। इसमें सभी बच्चों को एक जगह समूह में खडा कर दें और लयात्मक स्वर में पूछें- बोल भाई कितने? बच्चे जवाब देंगे- आप चाहें जितने। दो-तीन बार इस प्रक्रिया को करने के बाद एक से लेकर नौ तक की कोई भी संख्या बोलें।
आप जो भी संख्या बोलेंगे, बच्चों को उतनी संख्या के अलग-अलग समूह बनाने होंगे। जो बच्चे समूहों से अतिरिक्त बच जाएं, उन्हें अपनी गिनती करने को कहें। उसके बाद सारे बच्चों को एक जगह एकत्रित करके फिर से यही प्रक्रिया करें और कोई दूसरी संख्या बोलें। इस खेल के द्वारा बच्चे स्वतंत्र रूप से गिनतियों को गिनना सीखेंगे।
जब बच्चेू एक से लेकर नौ तक की गिनतियां पूरी तरह से समझ लें, तब उन्हें बताएं कि इन संख्याओं को किस तरह से लिखा जाता है। उन्हें यह भी बताएं लिखने की जरूरत इसलिए पड़ती है जिससे कि याद रखने में आसानी हो। जैसे कि रमेश ने गिप्पल वाले खेल में पांच बार गेंद से सही निशाना लगाया, कंचे वाले खेल में उसने आठ कंचे बाहर निकाले और पांच बार उसकी टीम पासे वाला खेल जीती। अब अगर घर पर अपने माता-पिता को यह बात बतानी हो, तो वह घर जाते-जाते भूल न जाए, इसलिए उन्हें अपनी कॉपी में लिख सकता है। इसके लिए वह कंचे, गेंद और पासे के चित्र बनाकर उनके आगे उन संख्याओं को लिख सकता है, जितनी बार वह उस खेल को जीता है। बच्चों को यह भी बताया जाए कि लिखी हुई संख्याएं हमेशा सुरक्षित रहती हैं और जरूरत पड़ने पर कभी भी देखी/पढ़ी जा सकती हैं।
जोड़-घटाने के खेल:
जब बच्चे- गिनतियों को समझने लगें और उनमें गिनने की समझ पैदा हो जाए, तो उन्हें जोड़ घटाने के खेल खिलाए जाने चाहिए। इसके लिए उपरोक्त खेलों को ही लिया जा सकता है। जैसे कि गिप्पल वाले खेल में एक ही टीम के सदस्यों ने कितनी बार गिप्पल गिराने में कामयाबी पाई। अगर एक बच्चे ने एक से अधिक बार गिप्पल गिराईं, तो कुल कितनी गिप्पल गिरीं। इसी प्रकार दूसरे खेलों के द्वारा भी जोड़ का खेल कराया जा सकता है।
घटाने की समझ विकसित करने के लिए भी इन्हीं खेलों का उपयोग किया जा सकता है। जैसे कि एक टीम ने दूसरी टीम से कितनी ज्याेदा बार मैच जीते। एक खिलाड़ी ने दूसरे खिलाड़ी से कितनी ज्या दा गिप्पले गिराईं। या फिर कल की तुलना में आज कितनी कम या अधिक गिप्पलें गिराईं।
इसके लिए एक अन्य खेल भी खेला जा सकता है। इस खेल में बच्चों की दो टीमें बना कर उन्हें अलग-अलग पासे दे दिये जाएं। दोनों टीमें अपना-अपना पासा चलें और उनमें जिस टीम के पासे में अधिक अंक आए, वह दोनों पासों के अंकों को आपस में जोड़ या घटा कर आई हुई संख्या के बराबर कंचे दूसरी टीम से ले ले।
प्रारम्भ में जोड़/घटाव के लिए छोटी-छोटी संख्याओं का ही उपयोग करें। जब बच्चे जोड़/घटाव की अवधारणा समझ लें, तो उन्हें उसको लिखने का तरीका समझाएं और उन्हें जोड़ तथा घटाव के चिन्हों के बारे में बताएं। जब बच्चे इसे समझ जाएं, तो उनके आसपास की वस्तुओं को आपस में जोड़ने/घटाने के लिए प्रेरित करें।
जब बच्चे इस खेल में थोड़ा माहिर हो जाएं, तो उन्हें रूपये/सिक्के का उदाहरण देकर भी यह खेल कराया जा सकता है। जैसे पांच रूपये के सिक्के लेकर यह बताना कि अगर सोनू ने दो रूपये की दो टाफियां खरीदीं, तो उसके पास कितने रूपये बचेंगे। या फिर कि अगर उसने दो रूपये की टॉफी और दो रूपये की खट्टी-मीठी गोलियां खरीदीं, तो उसने कुल कितने रूपये खर्च किये और उसके पास कितने रूपये बचे। एक बार जब बच्चे रूपयों/सिक्कों के द्वारा इस काम को करने लगेंगे, तो फिर उन्हें लिखकर/चित्र बनाकर कार्य करने में दिक्कत नहीं होगी।
अगली कड़ी में आप पढ़ेंगे शून्य की अवधारणा, स्थान मान, गुणा, भाग तथा सम-विषय संख्याओं को सिखाने के आसान तरीके।
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गणित सच में मज़ेदार है ... लेकिन मुझे बचपन में कभी geometry के सिद्धांत कभी सही से समझ में नहीं आये .. मुझे गणित में statics से जुड़े प्रश्न मज़ेदार और आसान लगते थे परन्तु यह geometry के Theorem आदि सही ढंग से समझ में नहीं आते थे ... क्या करे इसके बारे में ... Statics के जुड़े प्रश्न तो चुटकी में हल कर लेता था चाहे वह कितने भी जटिल क्यों न हो लेकिन geometry मेरे लिए एक mystery बन कर रह गयी ...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
बहुत सुंदर ! धन्यवाद् !
ReplyDeleteInteresting..............
ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteबहुत अच्छा !
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