A new study found that eye movements could reveal whether a person was in lust or in love. This article is introducing this study in Hindi language.
![]() |
आँखें प्रेम का सत्य और वासना के धोखे उजागर करने की राह हैं। |
यह आँखें सच बोलती हैं। प्रेम का विज्ञान अब उतना अबूझ न रहा। किसी अजानी रम्य काया को देखकर उपजी और अन्तर में छुपी हुई अभीप्सा अब रहस्य नहीं रह जायेगी। अब आँखें प्रेम का सत्य और वासना के धोखे उजागर करने की राह बन गयीं हैं। विज्ञानियों ने अब अनिश्चित प्रेम की मुलाकातों में छुपे सार्वजनीन प्रश्न "क्या यह मिलना सही है?" का उत्तर जान लिया है। अब हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि हमसे मिलने वाला कोई अजनबी हमसे प्रेम किये जाने को लेकर उत्सुक है अथवा गहरी वासना से आवृत? और यह सब कुछ बतायेंगी उसकी आँखों की गतिविधियाँ।
पत्रिका ’साइकोलॉजिकल साइंस’ (Psychological Science) में ऑनलाइन प्रकाशित जेनेवा विश्वविद्यालय (University of Geneva) एवं यूशिकागो के मनश्चिकित्सा एवं मनोविज्ञान विभाग (UChicago's Departments of Psychiatry and Psychology) के विशेषज्ञ सहयोगियों के साथ 'यूशिकागो हाई-परफॉर्मेंस इलेक्ट्रिकल न्यूरोइमेजिंग लेबोरेटरी' (UChicago High-Performance Electrical NeuroImaging Laboratory) के निदेशक ’स्टीफेनी कैसिऑपो’(Stephanie Cacioppo) के नवीनतम शोध में यह पाया गया है कि आँखों की गति (Eye-movements) यह स्पष्ट कर सकती है कि कोई व्यक्ति प्रेम में है अथवा वासनायुक्त।
यदि किसी व्यक्ति की आँखें सम्मुख बैठे अजनबी की आँखों या चेहरे पर ही टिकी रह जाती हैं तो इसका अर्थ है कि वह उसे प्रेम के योग्य समझता है अथवा उसके मन में उसके प्रति प्रेम की भावना उल्लसित है; परन्तु इसके विपरीत यदि देखने वाले की आँखें सम्मुख व्यक्ति के शरीर पर ही एकटक देखती रहें तो इसका अर्थ है कि वह उस व्यक्ति के प्रति कामेच्छा से ग्रस्त है। हमारी आँखों के यह संकेत स्वयं को क्षण भर में तीव्रता से अभिव्यक्त करते हैं।
यदि किसी व्यक्ति की आँखें सम्मुख बैठे अजनबी की आँखों या चेहरे पर ही टिकी रह जाती हैं तो इसका अर्थ है कि वह उसे प्रेम के योग्य समझता है अथवा उसके मन में उसके प्रति प्रेम की भावना उल्लसित है; परन्तु इसके विपरीत यदि देखने वाले की आँखें सम्मुख व्यक्ति के शरीर पर ही एकटक देखती रहें तो इसका अर्थ है कि वह उस व्यक्ति के प्रति कामेच्छा से ग्रस्त है। हमारी आँखों के यह संकेत स्वयं को क्षण भर में तीव्रता से अभिव्यक्त करते हैं।
इस शोध के प्रमुख लेखक ’स्टीफेनी कैसिऑपो’(Stephanie Cacioppo) ने स्पष्ट किया है, "यद्यपि ’पहली दृष्टि में प्रेम’(Love at First Sight) के विज्ञान अथवा ’कोई प्रेम में कैसे पड़ता है’, इस संबंध में अब तक बहुत कम ज्ञात है; परन्तु नेत्रों द्वारा दी गयी प्रतिक्रियाओं के ये विभिन्न रूप हमें प्रारंभिक सूत्र पकड़ाते हैं कि कैसे स्वचालित अवधानात्मक क्रियायें (Automatic attentional processes), जैसे टकटकी लगाना इत्यादि, अजनबियों के प्रति प्रेम-भावना एवं काम-भावना में अन्तर कर सकती हैं।"
इस अध्ययन के लिए 'जेनेवा विश्वविद्यालय' के कुछ छात्र एवं छात्राओं को उन व्यक्तियों के श्वेत-श्याम चित्र दिखाये गए जिनसे वे कभी नहीं मिले थे। अध्ययन के प्रथम भाग में प्रतिभागियों को युवा एवं वयस्क विषमलिंगी जोड़ों के चित्र दिखाये गए जो इन चित्रों में एक दूसरे से वार्तालाप कर रहे थे अथवा एक दूसरे को निहार रहे थे।
दूसरे भाग में प्रतिभागियों को आकर्षक युवक-युवतियों (विपरीत लिंग के) के एकल चित्र दिखाए गए जो सीधे कैमरा/अथवा दर्शक की ओर देख रहे थे। इनमें से कोई भी चित्र कामोत्त्तेजक अथवा नग्न नहीं था। इन दोनों प्रयोगों में प्रतिभागियों को एक कम्प्यूटर के सम्मुख बैठाया गया और उन्हें इन चित्रों को दिखाकर यह कहा गया कि जितना शीघ्र एवं शुद्ध रूप से संभव हो सके, उन्हें यह निर्णय करना है कि इन चित्रों से उनमें प्रेम-भावना की प्रतीति होती है अथवा काम-भावना की।
इन अध्ययनों से तत्क्षण प्रेम-भावना एवं काम-भावना की पहचान संबंधी किसी प्रकार के महत्वपूर्ण संकेत/अंतर प्राप्त नहीं हुए और इससे पता चला कि मस्तिष्क अत्यन्त तीव्रता से इन दोनों भावनाओं को सम्पादित कर सकने में सक्षम है। परन्तु इन दोनों अध्ययनों से प्राप्त आँखों की गतिविधियों (Eye-patterns) संबंधी आँकड़ों के विश्लेषण से नेत्र-गति-प्रतिरूपों के संबंध में तब-तब महत्वपूर्ण परिवर्तन दृष्ट हुए जब-जब प्रतिभागियों ने काम-भावना या प्रेम-भावना का संकेत किया था। यह संकेत पुरुष एवं महिला दोनों प्रकार के प्रतिभागियों से प्राप्त हुए थे।
दूसरे भाग में प्रतिभागियों को आकर्षक युवक-युवतियों (विपरीत लिंग के) के एकल चित्र दिखाए गए जो सीधे कैमरा/अथवा दर्शक की ओर देख रहे थे। इनमें से कोई भी चित्र कामोत्त्तेजक अथवा नग्न नहीं था। इन दोनों प्रयोगों में प्रतिभागियों को एक कम्प्यूटर के सम्मुख बैठाया गया और उन्हें इन चित्रों को दिखाकर यह कहा गया कि जितना शीघ्र एवं शुद्ध रूप से संभव हो सके, उन्हें यह निर्णय करना है कि इन चित्रों से उनमें प्रेम-भावना की प्रतीति होती है अथवा काम-भावना की।
इन अध्ययनों से तत्क्षण प्रेम-भावना एवं काम-भावना की पहचान संबंधी किसी प्रकार के महत्वपूर्ण संकेत/अंतर प्राप्त नहीं हुए और इससे पता चला कि मस्तिष्क अत्यन्त तीव्रता से इन दोनों भावनाओं को सम्पादित कर सकने में सक्षम है। परन्तु इन दोनों अध्ययनों से प्राप्त आँखों की गतिविधियों (Eye-patterns) संबंधी आँकड़ों के विश्लेषण से नेत्र-गति-प्रतिरूपों के संबंध में तब-तब महत्वपूर्ण परिवर्तन दृष्ट हुए जब-जब प्रतिभागियों ने काम-भावना या प्रेम-भावना का संकेत किया था। यह संकेत पुरुष एवं महिला दोनों प्रकार के प्रतिभागियों से प्राप्त हुए थे।
वस्तुतः प्रतिभागियों द्वारा की गयी इन नेत्र-गतिविधियों के दौरान उनके मस्तिष्क का वह हिस्सा सक्रिय रहा जो इस प्रकार की प्रेम-सम्बन्धी उत्तेजनाओं के लिए उत्तरदायी होता है। जैसा इस शोध पत्र के प्रमुख लेखक ’स्टीफेनी कैसिऑपो’ के पति एवं सह-लेखक ’जॉन कैसिऑपो’ (John Cacioppo) निर्देश करते हैं, "उन नेत्र-क्रियारूपों की पहचान करते हुए जो विशिष्टतः प्रेम-संबंधी उत्तेजनाओं से संबंधित हैं, यह अध्ययन एक ऐसे जैव-चिह्न (bio-marker) के विकास में योगदान कर सकता है जो प्रेम-भावना एवं काम-भावना में विभेद कर पायेगा।"
'कैसिऑपो' के पूर्व अध्ययन यह बता चुके हैं कि प्रेमेच्छा एवं कामेच्छा के दौरान मस्तिष्क के हिस्सों के अलग-अलग तंत्र सक्रिय होते हैं। इस अध्ययन में कैसिऑपो के समूह ने एक ऐसे प्रयास के दृश्य प्रतिरूपों का परीक्षण करना चाहा, जो दो अलग प्रकार की भावात्मक एवं संज्ञानात्मक अवस्थाओं का मूल्यांकन करता था - जिन्हें प्रायः एक दूसरे से अलग किया जाना संभव नहीं, यथा भावुक प्रेम एवं वासनात्मक प्रेम।
शोधकर्ताओं का समूह इस तकनीक के मनःचिकित्सा के क्षेत्र में उपयोग किए जाने की संभावनाओं से अत्यन्त उत्साहित है। आँखों की इन रूपावलियों के बनने-बिगड़ने की थाह लेता कोई मोबाइल-अनुप्रयोग भी बन ही रहा होगा।
इतना अच्छा और स्तरीय भावानुवाद भावानुवाद तो मैं भी नहीं कर सकता था
ReplyDeleteआपने एक प्रोफेसनल साइंस रिपोर्टर को भी मात दे दी है !
विज्ञान का यह क्षेत्र मुझे उत्सुक करता है आैर रुचि भी जगाता है, और् फिर् आपका आशीष् ....सो इसे लिख पाया मैं। बहुत् आभार।
Deleteकाश यह देश एक विज्ञान संचारक के रूप में आपका यथेष्ट उपयोग कर पाता
Deleteआपने विज्ञान संचार के इस मिथक को भी तोडा है कि विज्ञान संचार मात्र
विज्ञान पढने वाले और वैज्ञानिकों का डोमेन है !
प्रेम और वासना के बीच के अंतर की पहचान करने वाला यह प्रयोग मानव जीवन को बेहतर बनाने में सहायक हो, ऐसी कामना है।
ReplyDeleteइस महत्वपूर्ण शोध को यहां साझा करने के लिए आभार।
[-(
ReplyDeletebadhiyaa h
ReplyDeleteकहा जाता है कि प्रेम एक अबूझ पहेली है. लेकिन इन्सान की आँखे इस अबूझ पहेली को सुलझाने में भी सक्षम है! वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण बढ़िया आलेख...
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण विषय पर उत्कृष्ट पोस्ट। धन्यवाद।
ReplyDeleteपरमात्मा है वे सारी सृष्टिका सृजनकिया है हमे तो सिर्फ यह ध्यान करना है। अब परमात्मा क्या कर रहे है वह तो परमात्माहि जाने जैसे श्री मद्भगवद्गीता मे एक श्लोक है- अच्युत कर मति ईश्वरा:- शरीर यद्वा महापनौति ईश्वरमेंही चित्त को बनाये रखना यही ज्ञानहै।
ReplyDelete