कृषि और ग्राम आधारित आर्थिक सामाजिक व्यवस्था वाले भारत जैसे देश में मानसून और बरसात का एक महत्वपूर्ण स्थान है। मगर बरसात के आगमन के साथ ...
कृषि और ग्राम आधारित आर्थिक सामाजिक व्यवस्था वाले भारत जैसे देश में मानसून और बरसात का एक महत्वपूर्ण स्थान है। मगर बरसात के आगमन के साथ ही जो एक काफी विषम समस्या विशेषतया ग्रामीण परिवेश को गहरे प्रभावित करती है, वो है सर्पदंश।
सर्पदंश की समस्या पर विस्तार से चर्चा के लिए मैंने बात की प्रसिद्ध विज्ञान लेखक और विज्ञान प्रसारक डॉ. अरविंद मिश्र जी से, जो कि सर्पों से जुड़े अंधविश्वासों के निवारण और जनचेतना लाने में संलग्न प्रसिद्ध ब्लॉग ‘सर्प संसार’ के भी संचालक हैं।
लेखक : अरविंद जी, भारत में सर्पदंश की समस्या की गंभीरता पर प्रकाश डालें।
अरविंद मिश्र : दुर्भाग्यवश तेजी से विकसित होते देशों मे भारत मे सर्पदंश अब भी एक बड़ी आपदा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार विश्व मे अब भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सर्पदंश से सर्वाधिक मौते होती है। यहाँ प्रतिवर्ष 2.5 लाख से अधिक सर्पदंश की घटनाएँ होती हैं। जिनमें लगभग 50,000 तक लोग मर जाते हैं। गैरसरकारी आंकड़ों के अनुसार यह संख्या और अधिक भी हो सकती है। विकसित देशों की कतार में शामिल होने के आकांक्षी भारत जैसे देश के लिये ऐसे आँकड़े दुखद ही कहे जा सकते हैं।
लेखक : क्या सर्पदंश की समस्या के निराकरण की दिशा में सरकार के स्तर पर कोई ठोस योजना बनाई गई है?
अरविंद मिश्र : हाँ, विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल पर भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने 2007 मे इस विषम समस्या को दूर करने के उद्येश्य से एक प्रोटोकॉल तैयार किया गया था। मगर यह प्रोटोकॉल ग्राम्य स्वास्थ्य योजनाओं मे अपनी जगह नहीं बना पाया है , ऐसा सर्पदंश की लगातार आती ख़बरों को देखकर लगता है। ऐसे मे सिर्फ सरकारी प्रयासों पर निर्भर न रहते हुए इस संबंध मे जानकारी का एकत्रीकरण व उसका प्रसार करते हुए जन जागरूकता बढ़ाने की कोशिश करना ही एक उचित व प्रभावशाली उपाय सिद्ध हो सकता है।
लेखक : भारत मे पाये जाने वाले प्रमुख जहरीले साँप कौन से हैं ? क्या सर्पदंश की संभावना का कोई विशेष समय भी है ?
अरविंद मिश्र : पूरे विश्व मे ही अनेक दंत कथाओं और पारंपरिक मान्यताओं के चलते साँपों को काफी जहरीला और प्राणघातक जीव माना जाता रहा है, परन्तु सर्प तो किसानो के मित्र भी हैं। वो फसल तथा अनाज को नुकसान पहुँचाने वाले चूहे आदि जीव-जंतुओं से सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। सभी सर्प जहरीले व हानिकारक नहीं होते। विश्व मे सिर्फ चार तरह के साँप ही जहरीले होते हैं : 1. एलापिड्स (Elapid Snake): कोबरा, किंगकोबरा, करैत, काला मांबा आदि। 2. वैपरिड्स (Viperidae Snakes): वाइपर, सा स्केल्ड वाईपर, रसेल वाईपर, पिट वाईपर आदि 3. कोलुब्रिड्स (Colubrid Snakes): किंग स्नेक, बुलस्नेक आदि 4. हाइड्रोफ़ाईडी (Hydrophiidae Snakes): समुद्री साँप।
भारत में मुख्यतः चार प्रकार के जहरीले साँप पाये जाते हैं- करैत, कोबरा, रसेल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर। यानि ये है जहरीली साँपों की चौकड़ी!
लेखक: क्या इस चौकड़ी द्वारा सर्पदंश की संभावना का कोई विशेष समय भी है ?
अरविंद मिश्र : शीत रक्त वाले सर्पों की गतिविधियाँ मुख्यतः अप्रैल माह से बढ़ने लगती हैं। यह उनका प्रणय और प्रजनन काल भी है, जो बरसात तक जारी रहता है। इसलिए इस अवधि में उपयुक्त सावधानी रख सर्पदंश की घटनाओं पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है
लेखक : सर्पदंश की स्थिति में प्राथमिक उपचार की क्या विधियाँ अपनाई जा सकती हैं ?
अरविंद मिश्र : प्राथमिक उपचार की विधियां देश, काल की परिस्थितियों पर भी निर्भर करती हैं। भारत जैसे देश जहाँ सर्पदंश की अपनी एक अलग ही पृष्ठभूमि है की भी इसे नियंत्रित करने में उल्लेखनीय भूमिका है। भारत के लिए सुझाई विधि को इस सूत्र द्वारा अभिव्यक्त किया गया है – ‘Do it R.I.G.H.T.’
यहाँ R= Reassure the patient यानि पीड़ित को आश्वस्त करना। (लगभग 70 % सर्पदंश की घटनाएँ गैर जहरीले साँपों द्वारा ही होती हैं, और जहरीले साँपों के काटने से भी प्राणघातक घटनाएं लगभग 50 % ही होती हैं। )
I= Immobilize in the same way as a fractured limb यानि प्रभावित अंग में गतिशीलता न आने देना। और उसे वैसा ही स्थिर बनाए रखने के लिए उपाय करना जैसा फ्रैक्चर होने पर पट्टी बाँध कर करते हैं -यानि बांस की फलटी आदि से काटे हिस्से को सपोर्ट कर स्थिर कर देना अक्सर बदहवासी और भागदौड़ की वजह से साँप का जहर तीव्रता से शरीर में फैल प्राणघातक बन जाता है, प्रभावित अंग की गतिशीलता को कम कर जहर के प्रसार की गति नियंत्रित कर प्राणों के लिए बहुमूल्य समय बचाया जा सकता है।
GH= Get to Hospital Immediately यानि तुरंत अस्पताल ले जाना सर्पदंश से बचाव की परंपरिक विधियाँ जैसे ओझा सोखा, खरबिरैया या जड़ी बूटी इस दिशा में ज्यादा प्रभावी नहीं पाईं गई हैं। इसलिए इन निरर्थक प्रक्रियाओं में विलंब न कर तत्काल अस्पताल ले जाना ही उचित है।
T= Tell the doctor of any systemic symptoms यानि डॉक्टर को वो सारे क्रमिक लक्षण बताना जो उस तक लाने से पूर्व पीड़ित में देखे गए हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि यदि काटने वाला साँप मारा गया हो तो उसे भी सटीक पहचान व तदनुकूल निर्णय के लिए अस्पताल ले जाया जाना उचित है। मगर साँप को मारने या पकड़ने में समय गँवाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए, वरना यह समय की बर्बादी के अलावे मरने वालों की संख्या बढ़ा भी सकता है। इस संबंध में कुछ सावधानी बरतने की भी जरूरत है।
[post_ads] झाडफूंक या विष के प्रवाह को रोकने की पारंपरिक विधियों से बचना ही उचित है क्योंकि इनका कोई चिकित्सकीय लाभ प्रमाणित नहीं हो सका है।
कई बार लोग विष को शरीर में फैलने से रोकने के लिए रस्सी या कपड़े आदि से दंश स्थल के ऊपर बांध देते हैं। बंधन ढीला होते ही विष के पूरे शरीर में तीव्र रक्त प्रवाह के कारण तेजी से फैलने की संभावना ज्यादा रहती है। इसके अलावे अक्सर लोग इस उपाय को अपना अस्पताल पंहुचाने की तात्कालिकता से निश्चिंत हो जाने की प्राणघातक भूल भी कर बैठते हैं। जख्म के पास काटने की गलती भी अमूमन लोग कर बैठते हैं, मगर अक्सर यह रक्त प्रवाह ही नहीं बल्कि संक्रमण का कारण भी बन जाता है। इस प्रक्रिया से विष के बाहर निकल ही जाने की कोई आश्वस्ति भी नहीं है।
लेखक: भारतीय सिनेमा ने जख्म से चूसकर विष निकालने की विधि को भी काफी प्रसिद्ध कर दिया है। क्या वाकई यह प्रभावी तरीका है विष के बाहर निकालने का ?
अरविंद मिश्र : बिल्कुल नहीं। यह न सिर्फ हास्यास्पद और निष्प्रभावी है बल्कि प्राणघातक भी है। यह पीड़ित को लाभ पहुँचने में ज्यादा प्रभावशाली तो सिद्ध नहीं ही हुआ है, यदि ऐसी कोशिश करने वाले व्यक्ति के मुँह में छाले या किसी प्रकार का कोई घाव है तो उसके भी विष के प्रभाव में आ जाने की संभावना ही बढ़ाता है।
लेखक : वो कौन से क्षेत्र या संभावनाएँ हैं जहाँ सर्पदंश से सर्वाधिक ख़तरे हो सकते हैं और उनसे बचाव के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं ?
अरविंद मिश्र : सामान्य मान्यता के अनुसार सर्पदंश को मुख्यतः ग्रामीण और कृषकों से जुड़ी समस्या ही माना जाता है और सुबह तथा रात ही ऐसी घटनाओं की मुख्य अवधि मानी जाती रही है। मगर विस्तृत अध्ययन से कई अन्य गतिविधियाँ व भोगौलिक कार्यक्षेत्र भी इस दायरे में समाहित किए गए हैं।
(i) घास काटना
(ii) रबड़, नारियल, सुपारी आदि का रोपण
(iii) रबड़ संचयन (तड़के यानि प्रातः 3-6 के मध्य)
(iv) सब्जियों की खेती या फल तोड़ते समय
(v) चाय व काफ़ी के खेत भी वायपर्स के आक्रमण के प्रमुख स्थल हैं।
(vi) रात्री में बिना टार्च के खाली पैर या बिना पाँव ढँकने वाले फूटवियर को पहने बाहर निकलना भी ऐसी दुर्घटनाओं को आमंत्रण देना है।
(vii) शाम के वक्त तालाब, झरनों आदि जलाशयों में स्नान भी ऐसी दुर्घटनाओं को आमंत्रण देना है, क्योंकि पानी के सर्पों को विषहीन मानने की मान्यता के मद्देनजर इन तथ्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि कोबरा व कई अन्य विषैले सर्प कुशल तैराक भी होते हैं।
(viii) जलधारा या जमे हुये पानी के समीप से गुजरना भी खतरनाक हो सकता है।
सावधानी हेतु सुझाव :
(i) रात्रि में पांव ढँकने वाले फुटवियर को पहन कर ही निकलें व पास में टौर्च जरूर रखें।
(ii) टहलते वक्त कदमों को ज़ोर से रखें ताकि साँप कंपन महसूस कर दूर चले जाएँ।
(iii) घास काटते तथा फल या सब्जियां चुनते वक्त छड़ी पास में रखें, जिससे पहले घास या पत्ते हिला कर साँपों को वहाँ से निकलने का अवसर मिल सके।
(iv) पहले से काटकर रखी घास भी उठाने से पहले उसे छड़ी से थोड़ा कुरेद लेना उचित है।
(v) लकड़ी आदि चुनते वक्त पत्तों तथा डंठलों में किसी भी संभावित हलचल के प्रति सतर्क रहें।
(vi) घर के आस-पास ऐसे कूड़े आदि जमा न होने दें जिनके कारण चूहे, मेढक जैसे जीवों के आने की संभावना हो, क्योंकि साँप अकसर ऐसे जीवों के प्रति आकर्षित हो अपने भोजन की तलाश में रिहायशी इलाक़ों की ओर आ जाते हैं।
(vii) जमीन पर सोने से बचें।
(ix) खिड़कियों तथा दरवाजों से पौधों को दूर रखें क्योंकि अक्सर ये पौधे साँपों के छुपने या उनपर चढ़कर खिड़कियों तक पहुँचने का कारण बन जाते हैं।
लेखक : सर्पदंश पीड़ित व्यक्ति में इसके लक्षणों के निरीक्षण हेतु क्या संकेत देखे जा सकते हैं?
अरविंद मिश्र : सर्पदंश पीड़ित व्यक्ति के लक्षणों की सावधानीपूर्वक पहचान आवश्यक है, क्योंकि इनका उभरना साँपों के प्रकार तथा उनके विष की मात्रा व तीव्रता पर भी निर्भर करता है
(i) संभव हो तो साँपों की सटीक पहचान की जानी चाहिए, ताकि इसका विषैला होना-न-होना सुनिश्चित हो सके।
(ii) किसी भी सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को कम-से-कम 24 घंटे तक गहन निरीक्षण में रखा जाना चाहिए।
(iii) कुछ देशों में सर्पदंश के चिह्न को भी सर्प के पहचान में एक सीमा तक प्रयोग किया जाता है, किन्तु भारत जैसे देश में यह प्रक्रिया ज्यादा उपयोगी नहीं पाई गई है। क्योंकि यहाँ कई विषहीन सर्प भी विषैले सर्पों की तरह ही सर्पदंश के चिह्न बनाते हैं, जैसे वुल्फ़ स्नेक (Wolf Snake)- और करैत जैसे विषैले सर्प भी हैं जो सर्पदंश का स्पष्ट चिह्न नहीं छोड़ते।
(iv) यदि कोई पारंपरिक या घरेलू दवा दे दी गई हो तो उसे भी ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि ये भी कई बार भ्रामक लक्षण उत्पन्न कर सकते हैं।
(v) सर्पदंश का वास्तविक समय भी ज्ञात होना जरूरी है, क्योंकि इससे लक्षणों में उभरते परिवर्तनों का सही आकलन हो सकता है।
सर्पदंश की समस्या पर विस्तार से चर्चा के लिए मैंने बात की प्रसिद्ध विज्ञान लेखक और विज्ञान प्रसारक डॉ. अरविंद मिश्र जी से, जो कि सर्पों से जुड़े अंधविश्वासों के निवारण और जनचेतना लाने में संलग्न प्रसिद्ध ब्लॉग ‘सर्प संसार’ के भी संचालक हैं।
लेखक : अरविंद जी, भारत में सर्पदंश की समस्या की गंभीरता पर प्रकाश डालें।
अरविंद मिश्र : दुर्भाग्यवश तेजी से विकसित होते देशों मे भारत मे सर्पदंश अब भी एक बड़ी आपदा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार विश्व मे अब भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सर्पदंश से सर्वाधिक मौते होती है। यहाँ प्रतिवर्ष 2.5 लाख से अधिक सर्पदंश की घटनाएँ होती हैं। जिनमें लगभग 50,000 तक लोग मर जाते हैं। गैरसरकारी आंकड़ों के अनुसार यह संख्या और अधिक भी हो सकती है। विकसित देशों की कतार में शामिल होने के आकांक्षी भारत जैसे देश के लिये ऐसे आँकड़े दुखद ही कहे जा सकते हैं।
लेखक : क्या सर्पदंश की समस्या के निराकरण की दिशा में सरकार के स्तर पर कोई ठोस योजना बनाई गई है?
अरविंद मिश्र : हाँ, विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल पर भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने 2007 मे इस विषम समस्या को दूर करने के उद्येश्य से एक प्रोटोकॉल तैयार किया गया था। मगर यह प्रोटोकॉल ग्राम्य स्वास्थ्य योजनाओं मे अपनी जगह नहीं बना पाया है , ऐसा सर्पदंश की लगातार आती ख़बरों को देखकर लगता है। ऐसे मे सिर्फ सरकारी प्रयासों पर निर्भर न रहते हुए इस संबंध मे जानकारी का एकत्रीकरण व उसका प्रसार करते हुए जन जागरूकता बढ़ाने की कोशिश करना ही एक उचित व प्रभावशाली उपाय सिद्ध हो सकता है।
लेखक : भारत मे पाये जाने वाले प्रमुख जहरीले साँप कौन से हैं ? क्या सर्पदंश की संभावना का कोई विशेष समय भी है ?
अरविंद मिश्र : पूरे विश्व मे ही अनेक दंत कथाओं और पारंपरिक मान्यताओं के चलते साँपों को काफी जहरीला और प्राणघातक जीव माना जाता रहा है, परन्तु सर्प तो किसानो के मित्र भी हैं। वो फसल तथा अनाज को नुकसान पहुँचाने वाले चूहे आदि जीव-जंतुओं से सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। सभी सर्प जहरीले व हानिकारक नहीं होते। विश्व मे सिर्फ चार तरह के साँप ही जहरीले होते हैं : 1. एलापिड्स (Elapid Snake): कोबरा, किंगकोबरा, करैत, काला मांबा आदि। 2. वैपरिड्स (Viperidae Snakes): वाइपर, सा स्केल्ड वाईपर, रसेल वाईपर, पिट वाईपर आदि 3. कोलुब्रिड्स (Colubrid Snakes): किंग स्नेक, बुलस्नेक आदि 4. हाइड्रोफ़ाईडी (Hydrophiidae Snakes): समुद्री साँप।
भारत में मुख्यतः चार प्रकार के जहरीले साँप पाये जाते हैं- करैत, कोबरा, रसेल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर। यानि ये है जहरीली साँपों की चौकड़ी!
लेखक: क्या इस चौकड़ी द्वारा सर्पदंश की संभावना का कोई विशेष समय भी है ?
अरविंद मिश्र : शीत रक्त वाले सर्पों की गतिविधियाँ मुख्यतः अप्रैल माह से बढ़ने लगती हैं। यह उनका प्रणय और प्रजनन काल भी है, जो बरसात तक जारी रहता है। इसलिए इस अवधि में उपयुक्त सावधानी रख सर्पदंश की घटनाओं पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है
लेखक : सर्पदंश की स्थिति में प्राथमिक उपचार की क्या विधियाँ अपनाई जा सकती हैं ?
विषैला कोबरा सर्प |
यहाँ R= Reassure the patient यानि पीड़ित को आश्वस्त करना। (लगभग 70 % सर्पदंश की घटनाएँ गैर जहरीले साँपों द्वारा ही होती हैं, और जहरीले साँपों के काटने से भी प्राणघातक घटनाएं लगभग 50 % ही होती हैं। )
I= Immobilize in the same way as a fractured limb यानि प्रभावित अंग में गतिशीलता न आने देना। और उसे वैसा ही स्थिर बनाए रखने के लिए उपाय करना जैसा फ्रैक्चर होने पर पट्टी बाँध कर करते हैं -यानि बांस की फलटी आदि से काटे हिस्से को सपोर्ट कर स्थिर कर देना अक्सर बदहवासी और भागदौड़ की वजह से साँप का जहर तीव्रता से शरीर में फैल प्राणघातक बन जाता है, प्रभावित अंग की गतिशीलता को कम कर जहर के प्रसार की गति नियंत्रित कर प्राणों के लिए बहुमूल्य समय बचाया जा सकता है।
GH= Get to Hospital Immediately यानि तुरंत अस्पताल ले जाना सर्पदंश से बचाव की परंपरिक विधियाँ जैसे ओझा सोखा, खरबिरैया या जड़ी बूटी इस दिशा में ज्यादा प्रभावी नहीं पाईं गई हैं। इसलिए इन निरर्थक प्रक्रियाओं में विलंब न कर तत्काल अस्पताल ले जाना ही उचित है।
T= Tell the doctor of any systemic symptoms यानि डॉक्टर को वो सारे क्रमिक लक्षण बताना जो उस तक लाने से पूर्व पीड़ित में देखे गए हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि यदि काटने वाला साँप मारा गया हो तो उसे भी सटीक पहचान व तदनुकूल निर्णय के लिए अस्पताल ले जाया जाना उचित है। मगर साँप को मारने या पकड़ने में समय गँवाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए, वरना यह समय की बर्बादी के अलावे मरने वालों की संख्या बढ़ा भी सकता है। इस संबंध में कुछ सावधानी बरतने की भी जरूरत है।
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कई बार लोग विष को शरीर में फैलने से रोकने के लिए रस्सी या कपड़े आदि से दंश स्थल के ऊपर बांध देते हैं। बंधन ढीला होते ही विष के पूरे शरीर में तीव्र रक्त प्रवाह के कारण तेजी से फैलने की संभावना ज्यादा रहती है। इसके अलावे अक्सर लोग इस उपाय को अपना अस्पताल पंहुचाने की तात्कालिकता से निश्चिंत हो जाने की प्राणघातक भूल भी कर बैठते हैं। जख्म के पास काटने की गलती भी अमूमन लोग कर बैठते हैं, मगर अक्सर यह रक्त प्रवाह ही नहीं बल्कि संक्रमण का कारण भी बन जाता है। इस प्रक्रिया से विष के बाहर निकल ही जाने की कोई आश्वस्ति भी नहीं है।
लेखक: भारतीय सिनेमा ने जख्म से चूसकर विष निकालने की विधि को भी काफी प्रसिद्ध कर दिया है। क्या वाकई यह प्रभावी तरीका है विष के बाहर निकालने का ?
अरविंद मिश्र : बिल्कुल नहीं। यह न सिर्फ हास्यास्पद और निष्प्रभावी है बल्कि प्राणघातक भी है। यह पीड़ित को लाभ पहुँचने में ज्यादा प्रभावशाली तो सिद्ध नहीं ही हुआ है, यदि ऐसी कोशिश करने वाले व्यक्ति के मुँह में छाले या किसी प्रकार का कोई घाव है तो उसके भी विष के प्रभाव में आ जाने की संभावना ही बढ़ाता है।
लेखक : वो कौन से क्षेत्र या संभावनाएँ हैं जहाँ सर्पदंश से सर्वाधिक ख़तरे हो सकते हैं और उनसे बचाव के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं ?
अरविंद मिश्र : सामान्य मान्यता के अनुसार सर्पदंश को मुख्यतः ग्रामीण और कृषकों से जुड़ी समस्या ही माना जाता है और सुबह तथा रात ही ऐसी घटनाओं की मुख्य अवधि मानी जाती रही है। मगर विस्तृत अध्ययन से कई अन्य गतिविधियाँ व भोगौलिक कार्यक्षेत्र भी इस दायरे में समाहित किए गए हैं।
विषदंत के चिह्न |
(ii) रबड़, नारियल, सुपारी आदि का रोपण
(iii) रबड़ संचयन (तड़के यानि प्रातः 3-6 के मध्य)
(iv) सब्जियों की खेती या फल तोड़ते समय
(v) चाय व काफ़ी के खेत भी वायपर्स के आक्रमण के प्रमुख स्थल हैं।
(vi) रात्री में बिना टार्च के खाली पैर या बिना पाँव ढँकने वाले फूटवियर को पहने बाहर निकलना भी ऐसी दुर्घटनाओं को आमंत्रण देना है।
(vii) शाम के वक्त तालाब, झरनों आदि जलाशयों में स्नान भी ऐसी दुर्घटनाओं को आमंत्रण देना है, क्योंकि पानी के सर्पों को विषहीन मानने की मान्यता के मद्देनजर इन तथ्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि कोबरा व कई अन्य विषैले सर्प कुशल तैराक भी होते हैं।
(viii) जलधारा या जमे हुये पानी के समीप से गुजरना भी खतरनाक हो सकता है।
सावधानी हेतु सुझाव :
(i) रात्रि में पांव ढँकने वाले फुटवियर को पहन कर ही निकलें व पास में टौर्च जरूर रखें।
(ii) टहलते वक्त कदमों को ज़ोर से रखें ताकि साँप कंपन महसूस कर दूर चले जाएँ।
(iii) घास काटते तथा फल या सब्जियां चुनते वक्त छड़ी पास में रखें, जिससे पहले घास या पत्ते हिला कर साँपों को वहाँ से निकलने का अवसर मिल सके।
(iv) पहले से काटकर रखी घास भी उठाने से पहले उसे छड़ी से थोड़ा कुरेद लेना उचित है।
(v) लकड़ी आदि चुनते वक्त पत्तों तथा डंठलों में किसी भी संभावित हलचल के प्रति सतर्क रहें।
(vi) घर के आस-पास ऐसे कूड़े आदि जमा न होने दें जिनके कारण चूहे, मेढक जैसे जीवों के आने की संभावना हो, क्योंकि साँप अकसर ऐसे जीवों के प्रति आकर्षित हो अपने भोजन की तलाश में रिहायशी इलाक़ों की ओर आ जाते हैं।
(vii) जमीन पर सोने से बचें।
(ix) खिड़कियों तथा दरवाजों से पौधों को दूर रखें क्योंकि अक्सर ये पौधे साँपों के छुपने या उनपर चढ़कर खिड़कियों तक पहुँचने का कारण बन जाते हैं।
लेखक : सर्पदंश पीड़ित व्यक्ति में इसके लक्षणों के निरीक्षण हेतु क्या संकेत देखे जा सकते हैं?
अरविंद मिश्र : सर्पदंश पीड़ित व्यक्ति के लक्षणों की सावधानीपूर्वक पहचान आवश्यक है, क्योंकि इनका उभरना साँपों के प्रकार तथा उनके विष की मात्रा व तीव्रता पर भी निर्भर करता है
(i) संभव हो तो साँपों की सटीक पहचान की जानी चाहिए, ताकि इसका विषैला होना-न-होना सुनिश्चित हो सके।
(ii) किसी भी सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को कम-से-कम 24 घंटे तक गहन निरीक्षण में रखा जाना चाहिए।
(iii) कुछ देशों में सर्पदंश के चिह्न को भी सर्प के पहचान में एक सीमा तक प्रयोग किया जाता है, किन्तु भारत जैसे देश में यह प्रक्रिया ज्यादा उपयोगी नहीं पाई गई है। क्योंकि यहाँ कई विषहीन सर्प भी विषैले सर्पों की तरह ही सर्पदंश के चिह्न बनाते हैं, जैसे वुल्फ़ स्नेक (Wolf Snake)- और करैत जैसे विषैले सर्प भी हैं जो सर्पदंश का स्पष्ट चिह्न नहीं छोड़ते।
(iv) यदि कोई पारंपरिक या घरेलू दवा दे दी गई हो तो उसे भी ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि ये भी कई बार भ्रामक लक्षण उत्पन्न कर सकते हैं।
(v) सर्पदंश का वास्तविक समय भी ज्ञात होना जरूरी है, क्योंकि इससे लक्षणों में उभरते परिवर्तनों का सही आकलन हो सकता है।
(i) सर्पदंश के स्थान पर त्वचा का रंग लाल हो जाना, सूजन तथा तीव्र दर्द का अनुभव
(ii) साँस लेने में कठिनाई, दृष्टि क्षमता
में कमी या धुंधलापन
(iii) उल्टी, मुँह से लार और शरीर से अत्यधिक
पसीने का निकलना
(iv) हाथ-पैरों में झनझनाहट तथा सुन्न होना
(v) प्यास, कमर दर्द, निम्न रक्तचाप
(vi) लालिमा या गहरे भूरे रंग का मूत्र त्याग, मूत्र त्याग में कमी या इसके न आने जैसे संकेत भी देखे गए हैं
इन लक्षणों
के बढ़ते जाने पर मांसपेशियों में भी कमजोरी आती जाती है और होंठ तथा जीभ भी नीले पड़ने
लगते हैं।
लेखक : सर्पदंश के उपचार हेतु क्या माध्यम अपनाए जा सकते हैं?
अरविंद मिश्र : भारत में सर्पदंश के उपचार हेतु प्रतिदंश विष या एंटी स्नेक वेनम (ASV) का एक बहुसंयोजक (Polyvalent) के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। यह चारों प्रमुख विषैली प्रजातियों – रसेल वाइपर, कोबरा, करैत और सॉ स्केल्ड वाइपर के दंश के ईलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।
किसी एक विशेष सर्प के दंश के लिए किसी विशिष्ट दवा का उपयोग अभी ज्यादा विकसित नहीं हो सका है, क्योंकि अभी यहाँ सर्पदंश के पश्चात सर्प की पहचान और उसके अनुरूप दवा दे पाना चिकित्सकों के लिए व्यावहारिक नहीं हो पाया है। अपनी सीमाओं के बावजूद भारत में एंटी वेनम का इंजेक्शन सर्पदंश से होने वाली मौतों की संख्या को रोकने तथा तत्काल राहत देने में काफी प्रभावी सिद्ध हुआ है। आवश्यकता है कि सर्पदंश प्रभावित क्षेत्रों की पुख्ता पहचान कर सरकारी अस्पतालों सहित स्थानीय मेडिकल स्टोरों पर भी इसकी समुचित व्यवस्था सुनिश्चित कर ली जाए।
सर्पदंश की स्थिति में संभव होने पर इसे तत्काल इंट्रामसक्यूलर देकर डॉक्टर के पास ले जाया जा सकता है, जहाँ जरूरत समझने पर एंटी वेनम की और खुराक भी दी जा सकती है।
एंटी वेनम इंजेक्शन से रिएक्शन की घटनाएँ अत्यल्प (10000 में एक) ही पाई गई हैं। सामान्यतः चिकित्सक एंटीवेनम के साथ डेकाड्रान/कोरामिन की भी सूई साथ ही देते हैं जो उचित भी है। ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत देश के कुछ भागों में सर्पदंश पीड़ितों के लिए एम्बुलेंस सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है। ऐसी सेवाओं का लाभ उठाकर घरेलू, झोलाछाप या झाड़-फूँक जैसी प्रक्रियाओं में समय न गँवा यथाशीघ्र निकटवर्ती अस्पताल में पहुँचने की कोशिश करनी चाहिए।
सरकार की ओर से भी सर्पदंश प्रभावित क्षेत्रों में तत्काल और प्रभावी चिकित्सा की उपलब्धता सुनिश्चित करवाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
लेखक: इस व्यवस्था में आप और किस तरह के सुधार की आवश्यकता महसूस करते हैं ?
अरविंद मिश्र: मेरी नजर में सर्पदंश से बचाव के उपायों में और भी सुधार की आवश्यकता है। क्योंकि भारत में सर्पदंश के संबंध में चिकित्सकीय अवधारणाएँ मुखतः चार सर्प प्रजातियों (रसेल वाइपर, कोबरा, करैत और सॉ स्केल्ड वाइपर) तक ही सिमटी हुई हैं। यह मान्यता कई गंभीर समस्याओं का कारण भी बन रही हैं, जैसे कि एंटीवेनम निर्माता सिर्फ इन प्रजातियों को ध्यान में रखकर ही दवाएँ निर्मित कर रहे हैं। इस वजह से अन्य घातक प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता और इनका दंश भी मृत्यु या शारीरिक अपंगता का कारण बन जाता है। इसलिए चार प्रमुख विषैली प्रजातियों की सीमित अवधारणा से बाहर निकल इसमें यथोचित परिवर्तन व लचीलापन लाने तथा इन प्रजातियों के बेहतर वर्गीकरण की भी आवश्यकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 1981 में सर्पों का एक ऐसा ही वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया था जिसके अंतर्गत इनके तीन वर्ग निर्धारित किए गए थे–
वर्ग I : सर्पदंश की सामान्य घटनाओं के कारण बनने वाले, प्राणघातक अथवा गंभीर रूप से शारीरिक अयोग्यता के कारक साँप; जैसे रसेल वाइपर/ कोबरा, सॉ स्केल्ड वाइपर
वर्ग II : असामान्य रूप से ही सर्पदंश किन्तु जिनसे गंभीर ख़तरे की संभावना हो, जैसे करैत, हन्प नोज्ड पिट वाइपर, किंग कोबरा आदि
वर्ग III : सामान्यतः ऐसे सर्प जिनके सर्पदंश की कई घटनाएँ दर्ज हुईं मगर जिनके गंभीर परिणाम नहीं देखे गए।
अरविंद जी से हुये वार्तालाप से स्पष्ट है कि सर्पदंश को सिर्फ देश के ग्रामीण क्षेत्रों की सामयिक समस्या मान नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आवश्यकता है कि देश को राज्यवार सर्पदंश और उसके बचाव के दृष्टिकोण से संवेदनशील ज़ोन में भी वर्गीकृत किया जाए और ज्यादा संवेदनशील भागों में इसके निराकरण हेतु सघन प्रयास किए जाएँ। सर्पदंश को दैवीय आपदा की श्रेणी में रखकर भी मृतक के वारिसों को मदद दी जा सकती है।
सर्पदंश जैसी आपदा से देश को मुक्त कराने हेतु इस दिशा में और भी शोध, अध्ययन व चेतना लाने की जरूरत है। सर्पों को मार कर उनका उन्मूलन करने में कोई बुद्धिमानी नहीं है; बल्कि जागरूकता और सावधानी ला अपना बचाव सुनिश्चित करने में है। सर्प भी इस पारिस्थितिकी का अभिन्न अंग हैं और कई जगह हमने ही उनके निवास क्षेत्र तक अतिक्रमण कर उनके अस्तित्व को संकट में ला खड़ा किया है।
अंधविश्वास, गलत जानकारियाँ आदि भी साँपों और इंसानों को एक-दूसरे के शत्रु के रूप में ही स्थापित करते आ रहे हैं, जैसा कि है नहीं। ऐसे में पारिस्थितिकी तंत्र में उनके योगदान को स्वीकार करते हुये ही हमें ऐसी नीतियाँ अपनानी चाहिए कि सर्पदंश की घटनाएँ रोकी जा सकें और निःसंदेह इस दिशा में सार्थक शुरुआत व्यक्तिगत स्तर से ही की जानी चाहिए। अभिषेक मिश्र
अरविंद मिश्र : भारत में सर्पदंश के उपचार हेतु प्रतिदंश विष या एंटी स्नेक वेनम (ASV) का एक बहुसंयोजक (Polyvalent) के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। यह चारों प्रमुख विषैली प्रजातियों – रसेल वाइपर, कोबरा, करैत और सॉ स्केल्ड वाइपर के दंश के ईलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।
किसी एक विशेष सर्प के दंश के लिए किसी विशिष्ट दवा का उपयोग अभी ज्यादा विकसित नहीं हो सका है, क्योंकि अभी यहाँ सर्पदंश के पश्चात सर्प की पहचान और उसके अनुरूप दवा दे पाना चिकित्सकों के लिए व्यावहारिक नहीं हो पाया है। अपनी सीमाओं के बावजूद भारत में एंटी वेनम का इंजेक्शन सर्पदंश से होने वाली मौतों की संख्या को रोकने तथा तत्काल राहत देने में काफी प्रभावी सिद्ध हुआ है। आवश्यकता है कि सर्पदंश प्रभावित क्षेत्रों की पुख्ता पहचान कर सरकारी अस्पतालों सहित स्थानीय मेडिकल स्टोरों पर भी इसकी समुचित व्यवस्था सुनिश्चित कर ली जाए।
सर्पदंश की स्थिति में संभव होने पर इसे तत्काल इंट्रामसक्यूलर देकर डॉक्टर के पास ले जाया जा सकता है, जहाँ जरूरत समझने पर एंटी वेनम की और खुराक भी दी जा सकती है।
एंटी वेनम इंजेक्शन से रिएक्शन की घटनाएँ अत्यल्प (10000 में एक) ही पाई गई हैं। सामान्यतः चिकित्सक एंटीवेनम के साथ डेकाड्रान/कोरामिन की भी सूई साथ ही देते हैं जो उचित भी है। ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत देश के कुछ भागों में सर्पदंश पीड़ितों के लिए एम्बुलेंस सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है। ऐसी सेवाओं का लाभ उठाकर घरेलू, झोलाछाप या झाड़-फूँक जैसी प्रक्रियाओं में समय न गँवा यथाशीघ्र निकटवर्ती अस्पताल में पहुँचने की कोशिश करनी चाहिए।
सरकार की ओर से भी सर्पदंश प्रभावित क्षेत्रों में तत्काल और प्रभावी चिकित्सा की उपलब्धता सुनिश्चित करवाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
लेखक: इस व्यवस्था में आप और किस तरह के सुधार की आवश्यकता महसूस करते हैं ?
अरविंद मिश्र: मेरी नजर में सर्पदंश से बचाव के उपायों में और भी सुधार की आवश्यकता है। क्योंकि भारत में सर्पदंश के संबंध में चिकित्सकीय अवधारणाएँ मुखतः चार सर्प प्रजातियों (रसेल वाइपर, कोबरा, करैत और सॉ स्केल्ड वाइपर) तक ही सिमटी हुई हैं। यह मान्यता कई गंभीर समस्याओं का कारण भी बन रही हैं, जैसे कि एंटीवेनम निर्माता सिर्फ इन प्रजातियों को ध्यान में रखकर ही दवाएँ निर्मित कर रहे हैं। इस वजह से अन्य घातक प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता और इनका दंश भी मृत्यु या शारीरिक अपंगता का कारण बन जाता है। इसलिए चार प्रमुख विषैली प्रजातियों की सीमित अवधारणा से बाहर निकल इसमें यथोचित परिवर्तन व लचीलापन लाने तथा इन प्रजातियों के बेहतर वर्गीकरण की भी आवश्यकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 1981 में सर्पों का एक ऐसा ही वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया था जिसके अंतर्गत इनके तीन वर्ग निर्धारित किए गए थे–
प्राणरक्षक सर्प एंटीवेनम |
वर्ग II : असामान्य रूप से ही सर्पदंश किन्तु जिनसे गंभीर ख़तरे की संभावना हो, जैसे करैत, हन्प नोज्ड पिट वाइपर, किंग कोबरा आदि
वर्ग III : सामान्यतः ऐसे सर्प जिनके सर्पदंश की कई घटनाएँ दर्ज हुईं मगर जिनके गंभीर परिणाम नहीं देखे गए।
अरविंद जी से हुये वार्तालाप से स्पष्ट है कि सर्पदंश को सिर्फ देश के ग्रामीण क्षेत्रों की सामयिक समस्या मान नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आवश्यकता है कि देश को राज्यवार सर्पदंश और उसके बचाव के दृष्टिकोण से संवेदनशील ज़ोन में भी वर्गीकृत किया जाए और ज्यादा संवेदनशील भागों में इसके निराकरण हेतु सघन प्रयास किए जाएँ। सर्पदंश को दैवीय आपदा की श्रेणी में रखकर भी मृतक के वारिसों को मदद दी जा सकती है।
सर्पदंश जैसी आपदा से देश को मुक्त कराने हेतु इस दिशा में और भी शोध, अध्ययन व चेतना लाने की जरूरत है। सर्पों को मार कर उनका उन्मूलन करने में कोई बुद्धिमानी नहीं है; बल्कि जागरूकता और सावधानी ला अपना बचाव सुनिश्चित करने में है। सर्प भी इस पारिस्थितिकी का अभिन्न अंग हैं और कई जगह हमने ही उनके निवास क्षेत्र तक अतिक्रमण कर उनके अस्तित्व को संकट में ला खड़ा किया है।
अंधविश्वास, गलत जानकारियाँ आदि भी साँपों और इंसानों को एक-दूसरे के शत्रु के रूप में ही स्थापित करते आ रहे हैं, जैसा कि है नहीं। ऐसे में पारिस्थितिकी तंत्र में उनके योगदान को स्वीकार करते हुये ही हमें ऐसी नीतियाँ अपनानी चाहिए कि सर्पदंश की घटनाएँ रोकी जा सकें और निःसंदेह इस दिशा में सार्थक शुरुआत व्यक्तिगत स्तर से ही की जानी चाहिए। अभिषेक मिश्र
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बहुत काम की जानकारी।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteइस महत्वपूर्ण वार्ता से सर्पदंश सम्बंध बड़े काम की जानकारियां एक जगह संग्रहीत हो गयी हैं। आभार।
ReplyDeleteकाफी उपयोगी जानकारी , बरसात का मौसम है ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रो में इस जानकारी की विशेष आवश्यकता है , अक्सर हर साल कई लोग अपनी जान सर्प दंश के कारण गवा देते हैं.
ReplyDeleteऐसी जानकारियों का, आम लोगों में अभाव है. अच्छा लेख.
ReplyDeleteGood Knowledge
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