आकाशगंगा (Galaxy) के रहस्यों से पर्दा उठाता एक शोधपरक आलेख।
जब हम ब्रह्माण्ड के रहस्यों को समझने के क्रम में तारों की दुनिया और उनके जीवन चक्र और खगोलीय पिण्ड क्वासर के बारे में जानने के बाद आज बारी है आकाशगंगा की। आकाशगंगा क्या है यह कितने प्रकार की होती है तथा इसका स्वरूप कैसा होता है, पढिए इस रोचक आलेख में:
प्रायद्वीपीय ब्रह्माण्ड : आकाशगंगा
जब हम रात में तारोँ से भरे आकाश को देखते हैं तो हम उसकी दीप्ति के वैभव से प्रफुल्लित हो उठते हैं। यदि हम किसी गाँव में रहकर आकाश दर्शन करते हैं तो और भी अधिक आनंद आता हैं, क्योंकि शहरोँ की अपेक्षा गाँवों में बिजली की रोशनी की चकाचौंध कम होतीं हैं तथा वातावरण स्वच्छ एवं शांत होता हैं।
जब हम प्रतिदिन आकाश का अवलोकन करतें हैं तो हमें धीरे-धीरे यह पता चलने लगता है कि न ही सभी तारों का प्रकाश एकसमान है, और न ही उनकें रंग। हम अपनी नंगी आंखों से जितने भी तारों एवं तारा समूहों (Constellations) को देख सकते हैं, वे सभी एक अत्यंत विराट योजना के सदस्य हैं, जो आकाश में लगभग उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ नदी के समान प्रवाहमान प्रतीत होता है। इसे 'आकाशगंगा' या 'मंदाकिनी (Galaxy) कहते हैं।
यदि हम आकाशगंगा को वैज्ञानिक भाषा में परिभाषित करें तो हम यह कह सकते हैं कि यह तारों का ऐसा समूह है जो अपने ही गुरुत्वाकर्षण बल (Gravity) के कारण एक-दूसरे से परस्पर बंधे हुए होते हैं। प्राचीन काल के ज्योतिषियों ने केवल आकाश में दिखाई देने वालें शुभ्र पट्टे को ही आकाशगंगा माना। परन्तु आज हम यह जानते हैं कि इसमें अरबों तारों (जिसमें से अधिकांश तारे नंगी आंखों से दिखाई नही देते हैं) के अतिरिक्त, हमारी पृथ्वी, चन्द्रमा, अन्य सभी ग्रह, सभी ग्रहों के भी चन्द्रमा (नैसर्गिक उपग्रह), उल्कापिंड (Meteoroid) तथा सौरमंडल के अन्य सभी सदस्य सम्मिलित हैं। आकाशगंगा की इसी विशालता के कारण ही इसे 'प्रायद्वीपीय ब्रह्माण्ड' भी कहते हैं।
हमारे ब्रह्माण्ड में करोड़ों-अरबों की संख्या में आकाशगंगाएं हैं। प्रत्येक आकाशगंगा में तारों के अतिरिक्त गैसों तथा धूलों का विशाल बादल भी होते हैं। इन विशाल बादलों को ताराभौतिकी में 'नीहारिका' (Nebula) कहा जाता हैं। आकाशगंगा के कुल द्रव्य का 98% भाग तारों तथा शेष 2% भाग गैस एवं धूल के विशाल बादलों (Gas and Dust Cloud) से निर्मित हैं।
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संरचना के आधार पर आकाशगंगाओं का वर्गीकरण
क्या आप जानते हैं कि सभी आकाशगंगाएँ एक जैसी नहीं होती हैं। संरचना के आधार पर आकाशगंगाएँ तीन प्रकार की होती हैं- सर्पिल, दीर्घवृत्ताकार तथा स्तंभ सर्पिल।
सर्पिल आकाशगंगाएँ (Spiral Galaxy):
सर्पिल आकाशगंगा की संरचना डिस्क के आकार की होती हैं। सर्पिल आकाशगंगाओं का केन्द्रीय भाग थोड़ा-सा उठा हुआ प्रतीत होता हैं। केन्द्रीय भाग के बाहर उसके दो विचित्र सरंचना वाले हाथ निकले प्रतीत होते हैं। इस प्रकार के आकाशगंगा में मुख्यतः 'A' और 'B' प्रकार के गर्म एवं प्रकाशमान तारे होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि 'A' और 'B' प्रकार के तारों का जीवनकाल बहुत कम होता है। इसलिए, हम यह कह सकते हैं कि सर्पिल आकाशगंगा में कम आयु वाले तारे हैं। और यहाँ पर नये तारों का निर्माण भी होता रहता हैं। हमारी आकाशगंगा भी इसी प्रकार की संरचना वाली हैं। हमारी पड़ोसन मन्दाकिनी देवयानी (Andromeda) भी सर्पिल संरचना वाली हैं। क्या आप जानते हैं कि अभी तक सम्पूर्ण ज्ञातव्य ब्रह्माण्ड में उपस्थित सभी आकाशगंगाओं में 80% आकाशगंगाएं सर्पिल संरचना वाली हैं।
दीर्घवृत्ताकार आकाशगंगाएँ (Elliptical Galaxy):
इस प्रकार की आकाशगंगाएँ चिकनी तथा बिना किसी विचित्रता के होती हैं। ब्रह्माण्ड में अब तक ज्ञात कुल आकाशगंगाओं में लगभग 17% आकाशगंगाएँ इसी प्रकार की संरचना वाली हैं।
स्तंभ सर्पिल और अनियमित आकाशगंगाएँ (Irregular Galaxy):
इस प्रकार की संरचना वाली आकाशगंगाओं की दोनोँ सर्पिल हाथें एक सीधे स्तंभ के दोनों छोर से उद्भव होते दिखाईं देते हैं। यही सीधा स्तंभ आकाशगंगा के केंद्र से होकर गुजरता हैं। अब तक ज्ञात कुल आकाशगंगाओं में लगभग 1% आकाशगंगाएँ इसी प्रकार की संरचना वाली हैं।
इन तीन प्रकार की आकाशगंगाओं के अतिरिक्त ब्रह्माण्ड में लगभग 2% आकाशगंगाएँ अनियमित संरचना वाले हैं। इनका आकार अनियमित है तथा ये छोटे होते हैं।
हमारी आकाशगंगा : दुग्ध-मेखला (Milky way):
हमारा सूर्य और उसका परिवार यानीं सौरमंडल जिस आकाशगंगा का सदस्य हैं, उसका नाम दुग्धमेखला (Milky way) हैं। आकाशगंगा के आकार-प्रकार को समझने के लिए एक चपटी रोटी की कल्पना कीजिये, जिसका मध्यभाग थोडासा फुला हुआ हैं। अरबों-खरबों तारों से मिलकर एक विशाल योजना बनती हैं, जिसे ‘मन्दाकिनी’ कहते हैं। वास्तविकता में आकाशगंगा एक मन्दाकिनी ही हैं।
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हमारी आकाशगंगा का व्यास लगभग एक लाख प्रकाश-वर्ष है और इसमें सौ अरब से भी अधिक तारे हैं; अर्थात्, इसका सम्पूर्ण द्रव्यमान हमारे लगभग 100 अरब सूर्यों के बराबर हैं। हमारी आकाशगंगा यानीं दुग्धमेखला 24 आकाशगंगाओं के एक समूह का सदस्य हैं, जिसे ‘स्थानीय समूह’ (Local groups) कहतें हैं। हमारा सूर्य आकाशगंगा के केंद्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष दूर हैं।
सूर्य 220 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड की गति से आकाशगंगा के केंद्र की ओर परिक्रमा कर रहा है। आकाशगंगा की एक परिक्रमा को पूर्ण करने में सूर्य को लगभग 25 करोड़ वर्ष लगतें हैं। दिलचस्प बात यह हैं कि पृथ्वी पर मानव के सम्पूर्ण अस्तित्व-काल में सूर्य ने आकाशगंगा की एक भी परिक्रमा पूर्ण नहीं की हैं।
बीसवीं सदी के शुरुवाती दशकों में खगोलशास्त्रियों की ऐसी धारणा थी कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हमारी आकाशगंगा में ही समाहित हैं, परन्तु अंततोगत्वा यह धारणा पूरी तरह से गलत सिद्ध हुई।
सन् 1924 में एक अमेरिकी खगोलशास्त्री एडविन हब्बल ने यह सिद्ध किया कि ब्रह्माण्ड में लाखोँ-करोड़ों की संख्या में आकाशगंगाओं का अस्तित्व हैं। दूसरी आकाशगंगाओ के अस्तित्व को सिद्ध करने के पश्चात्, हब्बल ने बाद के वर्षों में उनके वर्णक्रम (Spectrum) का प्रेक्षण (Observation) करने और तालिका के निर्माण में बिताया।
प्रसारी ब्रह्माण्ड (Expanding universe):
एडविन हब्बल ने अपने प्रेक्षणों से यह निष्कर्ष निकाला कि आकाशगंगाएं ब्रह्माण्ड में स्थिर नही हैं, जैसे-जैसे उनकी दूरी बढ़ती जाती है वैसे ही उनके दूर भागने की गति तेज़ होती जाती है।
इस तथ्य को एक ही तरह समझाया जा सकता है- यह मानकर कि आकाशगंगाएं बहुत बड़े वेग यहाँ तक प्रकाश तुल्य वेग के साथ हमसे दूर होती जा रही हैं। आकाशगंगाएं दूर होती जा रही हैं तथा ब्रह्माण्ड फ़ैल रहा है। यह डॉप्लर प्रभाव (Doppler effect) द्वारा ज्ञात किया गया है। सभी आकाशगंगाओं के वर्ण-क्रम की रेखाएँ लाल सिरे की तरफ सरक रही हैं यानी वे पृथ्वी से दूर होती जा रही हैं, यदि आकाशगंगाएं पृथ्वी के समीप आ रही होतीं, तो बैगनी-विस्थापन होता। अत: आज अनेकों तथ्य यह इंगित कर रहे हैं कि ब्रह्माण्ड प्रकाशीय-वेग के तुल्य विस्तारमान हैं, ठीक उसी प्रकार जिस तरह हम गुब्बारे को फुलाते हैं तो उसके बिंदियों के बीच दूरियों को हम बढ़ते देखते हैं।
सन् 2011 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित तीन खगोल वैज्ञानिकों साउल पर्लमुटर (Saul Perlmutter), एडम रीज (Adam G. Riess) और ब्रायन स्कमिड्ट (Brian P. Schmidt) ने निष्कर्ष निकाला कि ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति में त्वरण आ रहा है। यानी ब्रह्माण्ड समान नहीं बल्कि त्वरित गति से फ़ैल रहा है। इसके त्वरित होने का मुख्य कारण श्याम ऊर्जा है। यानी श्याम ऊर्जा ब्रह्माण्ड के विस्तार को गति प्रदान कर रही है।
हब्बल के निष्कर्ष के अनुसार किसी आकाशगंगा का वेग निम्न सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है-
आकाशगंगा का वेग = ह्ब्बल-स्थिरांक x दूरी (V=Hxd)
हम इतना तो अवश्य जान गए हैं कि दूरी, द्रव्यमान और काल तीनों ही दृष्टियों से ब्रह्माण्ड इतना अधिक विशाल है कि दैनिक जीवन के अनुभवों से अनुमान लगाना असम्भव है। अत: हमें गणित और विज्ञान के नेत्रों का सहारा लेना आवश्यक है। गणित और विज्ञान की सहायता से हम खगोलीय प्रेक्षण कर रहे हैं तथा भविष्य में भी करते रहेंगें। (विज्ञान पत्रिका 'विज्ञान आपके लिए' के 'जुलाई-सितम्बर 2015' में प्रकाशित)
-लेखक परिचय-
अच्छा लेख।
ReplyDeleteधन्यवाद्! :)
Delete(h)
ReplyDeleteधन्यवाद्, आशीष सर! :)
ReplyDeleteअच्छी जानकारी !
ReplyDeleteआभार
धन्यवाद्! :)
DeleteThanks to gives us alotof knowledge about galaxy
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
DeleteVery knowledgeable. .thnx
ReplyDeleteVery knowledgeable. .thnx
ReplyDeleteOhh realy 9yc 10qqq 4 this
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteबेहद ज्ञानवर्द्धक लेख।
ReplyDeletenice info
ReplyDeleteGalaxy is tooOoo large
ReplyDeletevery good knowlege and outstanding
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