इब्ने सफी के नाम से मेरी मुलाकात पहली बार उस समय हुई जब मैं कक्षा पाँच में पढ़ता था। और कामिक्सों की दुनिया छोड़कर उपन्यासों के पाठ...
इब्ने सफी के नाम से मेरी मुलाकात पहली बार उस समय हुई जब मैं कक्षा पाँच में पढ़ता था। और कामिक्सों की दुनिया छोड़कर उपन्यासों के पाठक वर्ग में अपनी जगह बना रहा था। बाल उपन्यासों से उठकर बड़ों के उपन्यासों में शुरूआत हुई इब्ने सफी से, जो चाचा के यहाँ पूरे चाव से पढ़े जाते थे। वहीं से मुझे भी चस्का लग गया और इब्ने सफी की जासूसी दुनिया (Ibne Safi ki Jasoosi Duniya) की हम दिन रात सैर करने लगे। ये सैर पूरी तरह घरवालों को बताये बिना चोरी छुपे होती थी क्योंकि कक्षा पाँच का छात्र और जासूसी उपन्यास! इससे बड़ी नालायकी और क्या होगी।
खैर कक्षा छह में पहुंचने पर आखिरकार एक दिन प्रिंसिपल ने बुला ही लिया मुझे। मैडम ने धड़ से सवाल किया, ‘‘सुना है तुम इब्ने सफी पढ़ते हो?’’ मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी। आखिर इन्हें कैसे पता चल गया? फिर भी हिम्मत करके मैंने नहीं में सर हिलाया। जवाब में उसी वक्त मेरे बैग की तलाशी ली गयी और बदकिस्मती से इब्ने सफी के दो उपन्यास उसमें से निकल भी आये जो फौरन मैडम ने ज़ब्त कर लिये। मैं आंसुओं को गला घोंटता हुआ और चुगलखोरों को सलवातें सुनाता हुआ घर वापस आ गया। लेकिन अगले दिन जब स्कूल गया तो मैडम ने आफिस में बुलाकर एक नावेल वापस किया और प्यार से कहा, बेटा, इसे तो मैंने पूरा पढ़ लिया है, दूसरा पढ़ रही हूं। आइंदा जब भी तुम्हें नया नावेल मिले, पढ़ने के लिये मुझे दे देना। इस तगड़े अनुबंध् के बाद प्रिंसिपल मैडम को मैं इब्ने सफी पढ़ने के लिये देता रहा और बदले में टेस्ट में हमेशा पूरे नंबर पाता रहा।
दिलों को दीवाना बना देने वाले इस उपन्यासकार का जन्म इलाहाबाद के एक छोटे से गाँव नारा में हुआ था। पिता सफी ने बच्चे का नाम इसरार अहमद (Israr Ahmad) रखा, जो बाद में इसरार (सस्पेंस) को अपने कलम का पात्र बनाकर इब्ने सफी के नाम से विख्यात हुआ।
इब्ने सफी ने प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव नारा (Nara) के प्राइमरी स्कूल में हासिल की थी और फिर आगे की शिक्षा के लिये अपनी माँ के साथ इलाहाबाद आ गये थे। क्योंकि उनके पिता सफीउल्लाह अपनी नौकरी के कारण अधिकतर बाहर रहते थे। इब्ने सफी को अध्ययन का शौक बचपन से था। मात्र आठ साल की उम्र में उन्होंने उर्दू, फारसी के भारी भरकम उपन्यास तिलिस्म होशरुबा (Tilism E Hoshruba) के सातों भाग खत्म कर डाले थे। इब्ने सफी ने ईविंग क्रिश्चियन कालेज (Ewing Christian College, Allahabad) से इंटरमीडियेट पास किया और 1948 में आगे की शिक्षा के लिये इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (Allahabad University) में दाखिला लिया था। बाद में कुछ परिस्थितियों के कारण अपना बीए उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी (Agra University) से पूरा किया।
सन 1948 में इलाहाबाद के अब्बास हुसैनी ने नकहत पब्लिकेशन (Nakhat Publications, Allahabad) की शुरूआत की। इस पब्लिकेशन ने इब्ने सफी का पहला जासूसी नावेल 1952 में ‘दिलेर मुजरिम’ (Diler Muzrim) नाम से प्रकाशित किया। इसके बाद तो जासूसी उपन्यासों का एक न टूटने वाला सिलसिला चल गया जिसने पूरे देश के लाखों पाठकों को अपना दीवाना बना दिया।
इब्ने सफी के पिता सफीअल्लाह चूंकि कराची (Karachi) में थे, इसलिए इब्ने सफी को भी 1953 में पाकिस्तान बस जाना पड़ा। लेकिन कलम का जो रिश्ता वह अपने वतन की धरती पर कायम कर चुके थे उस रिश्ते को अंत समय तक निभाते रहे और उनका कलम देश के बँटवारे की तरह अलग नहीं हो सका। उनका संदेश दुनिया में फैले हुए सभी इंसानों के लिये था। यही वजह है कि इब्ने सफी ने हिन्द पाक दोनों देशों के पाठक वर्ग में अपनी समान जगह बनायी और अद्धितीय तरीके से लोकप्रिय हुए। तीन भाषाओं, उर्दू, हिन्दी और बंगला के पाठकों पर उन्होंने समान रूप से आधिपत्य जमाया।
जब सन 1960 में वे मानसिक रूप से अस्वस्थ हुए और उनका कलम तीन वर्षों के लिये रुक गया तो उस समय में अनेकों नकली इब्ने सफी पैदा हो गये थे, जिनमें कुछ आज के नामी लेखक भी शामिल हैं।
सन 1963 में जब उन्होंने पुन: लिखना शुरू किया तो उनके नये उपन्यास का विमोचन स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी ने किया था जो स्वयं भी इब्ने सफी के फैन क्लब (Ibne Safi Fan Club) में शामिल थे।
इब्ने सफी के उपन्यास कहने को तो जासूसी हैं किन्तु उनमें सस्पेंस, एस्वेंचर, हास्य हर तरह के रंग देखने को मिलते हैं। वो पाठक वर्ग को ऐसी रोमांचक दुनिया की सैर कराते हैं जो पाठक को आसपास के वातावरण से बेखबर कर देती है। उनके उपन्यासों में सबसे बड़ा रंग है साइंस फिक्शन का और यह कहने में कोई हिचक नहीं होती कि उर्दू (साथ ही हिन्दी) में जासूसी साइंस फिक्शन की शुरूआत की है इब्ने सफी ने।
इब्ने सफी ने बेतहाशा लिखा लेकिन उसके बावजूद उन्होंने अपनी कलम की पकड़ कहीं से ढीली न होने दी। कैंसर के कारण 52 साल की उम्र में जब 26 जुलाई 1980 को इब्ने सफी की मृत्यु हुई, तो उस समय तक वे मात्र पच्चीस वर्ष के लेखकीय जीवन में ढाई सौ से ऊपर उपन्यास लिख चुके थे। इनमें सत्तर के लगभग उच्च कोटि के साइंस फिक्शन शामिल हैं।
इब्ने सफी ने बेतहाशा लिखा लेकिन उसके बावजूद उन्होंने अपनी कलम की पकड़ कहीं से ढीली न होने दी। कैंसर के कारण 52 साल की उम्र में जब 26 जुलाई 1980 को इब्ने सफी की मृत्यु हुई, तो उस समय तक वे मात्र पच्चीस वर्ष के लेखकीय जीवन में ढाई सौ से ऊपर उपन्यास लिख चुके थे। इनमें सत्तर के लगभग उच्च कोटि के साइंस फिक्शन शामिल हैं।
इब्ने सफी ने साहित्य में जासूसी साइंस फिक्शन की एक नयी शुरूआत की है। उनकी कहानियां भूत प्रेतों और राक्षस व पिशाचों की कल्पनाओं का मज़ाक उड़ाती हुई हर घटना की साइंटिफिक व्याख्या प्रस्तुत करती हैं। उनकी कहानियों में अनेकों अद्भुत वैज्ञानिक कल्पनाएं दखने को मिलती हैं। ऐसी घातक किरणें, जिनसे सिर्फ चमड़े का लबादा पहनकर बचा जा सकता है। उड़नतश्तरी नुमा वायुयान, जिसे लोग दूसरी दुनिया के प्राणियों का यान समझते हैं। लेकिन जो वास्तव में मुजरिमों के एक गुप्त देश के वायुयान होते हैं। गदानुमा ऐसे हथियार जिनसे गोलियां टकराकर अपनी दिशा बदल देती हैं, जैसी साइंसी परिकल्पनाएं शामिल हैं।
इब्ने सफी के उपन्यासों में ज़ेब्राधारी ऐसे मनुष्य पाये जाते हैं जो हाथी से भी ज्य़ादा शक्तिशाली हैं। ये मनुष्य कुछ वैज्ञानिकों के दिमाग की उपज हैं। ऐसी औरत है जो अपने यन्त्रों द्वारा किसी को हिप्नोटाइज़ करके उससे अपने आदेश मनवा लेती है। ऐसे पक्षी पाये जाते हैं जिनकी आँखों में छोटा कैमरा फिट रहता है और वे जासूसी का काम करते हैं। ऊर्जा की ऐसी परछाईयां होती हैं जिनकी रेंज में आने पर बड़ी से बड़ी इमारत ढेर हो जाती है। मशीनों से कण्ट्रोल होने वाले कृत्रिम तूफान भी उनके उपन्यासों में नज़र आते हैं। इस प्रकार की अनेकों कल्पनाएं उनके उपन्यासों में प्रदर्शित होती हें जिनमें साइंस का पहलू पूरी मज़बूती के साथ संलग्न रहता है।
मनोविज्ञान पर भी इब्ने सफी का कलम पूरी कुशलता के साथ चला है। स्पिलिट पर्सनालिटी (Split personality) का विचार उनके उपन्यास ‘जहन्नुम का शोला’ (Jahannum ka Shola) में प्रदर्शित हुआ। ‘एडलावा’ (Ad Lava) रेड इण्डियन जाति का बचा हुआ शक्तिशाली व्यक्ति, जिसके अन्दर अपनी जाति मिटाने वालों के खिलाफ गुस्सा फूटकर निकलता है और वह उनके खून से स्नान करता है। एक अपराधी जब किसी तरीके से अपना मुंह नहीं खोलता तो उसे लिटाकर उसके माथे पर लगातार पानी की बूंदें टपकायी जाती हैं। उन बूंदों की धमक उसे चीखने पर मजबूर कर देती है.
कुल मिलाकर इब्ने सफी ने आम जनमानस को एक नये साहित्य से परिचय कराया जो खोजी साहित्य था। अंधविश्वासों से दूर हटकर लोगों को साइंसी तरीके से सोचने पर मजबूर करता था और अपनी एक अलग रोचक शैली लिये हुए था। वह शैली जिसने जन जन को इब्ने सफी का दीवाना बना दिया था।
उनकी एक किताब को अंग्रेजी में अनुदित करके मशहूर प्रकाशन 'रैंडम हाउस' (Random House) ने प्रकाशित किया है। इसके अतिरिक्त कुछ समय पहले हिंदी प्रकाशन प्रारम्भ करने वाले अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशक 'हार्पर कॉलिन्स' (Harper Collins Publishers) ने भी उनकी 15 किताबों को प्रकाशित किया है।
उनकी एक किताब को अंग्रेजी में अनुदित करके मशहूर प्रकाशन 'रैंडम हाउस' (Random House) ने प्रकाशित किया है। इसके अतिरिक्त कुछ समय पहले हिंदी प्रकाशन प्रारम्भ करने वाले अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशक 'हार्पर कॉलिन्स' (Harper Collins Publishers) ने भी उनकी 15 किताबों को प्रकाशित किया है।
इब्ने सफी विज्ञान गल्प- कार ,व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधिकारिक समीक्षा .कल की कल्पना ,आइन्दा आने वाले कल का यथार्थ होती है .
ReplyDeleteइब्ने सफी विज्ञान गल्प- कार ,व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधिकारिक समीक्षा .कल की कल्पना ,आइन्दा आने वाले कल का यथार्थ होती है .
ReplyDeleteइब्ने सफी के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी थी, पर आज आपने विस्तार से बताया, इसके लिये धन्यवाद। न जाने क्यों हमारे देश में जासूसी लेखन को दोयम दर्जे का लेखन माना जाता है। जबकि विदेशों में आगाथा क्रिस्टी, और कानन डॉयल आदि को बड़े आदर के साथ पढ़ा जाता है।
ReplyDeleteपढ़ कर अच्छा लगा. जहां तक मुझे याद है इब्ने सफ़ी के उपन्यास हिन्दी में भी अनुवादित हुए हैं...
ReplyDelete1853 को शायद आप 1953 लिखना चाह रहे होंगे
काजल कुमार जी, इब्ने सफी के उपन्यास उर्दू, हिंदी और बंगला तीन भाषाओं में प्रकाशित हुए थे. हाल ही में साउथ के किसी प्रकाशन से ये अंग्रेजी में अनुवादित होकर प्रकाशित हो रहे हैं.
ReplyDeleteगलती ठीक कर दी गई है, इसकी तरफ ध्यान दिलाने का शुक्रिया.
जानकारी देती हुई सार्थक पोस्ट .......आभार
ReplyDeleteइसी को कहते हैं यथा नामो तथा गुणः ..
ReplyDeleteइब्ने सफी का प्रभाव मुझ पर भी जोरदार रहा ....वे कलम के बादशाह थे ...
कैप्टन हमीद विनोद ,सोनिया और राजेश तथा हसोंड कासिम का क्या चरित्र चित्रण था -उफ़!
हाल ही में अपने एक मित्र के लिए इनकी एक पुस्तक ढूँढ रहा था, मिली तो नहीं; मगर अब आपकी इस पोस्ट के बाद अपने लिए नए सिरे से ढूँढना शरू करता हूँ. धन्यवाद इस जानकारी का.
ReplyDeleteइब्ने सफी बी0ए0 की कलाम में वह कमाल था कि जो भी उन्हें पढता था, दीवाना बन जाता था। उनके बारे में इस मंच पर जानकारी उपलब्ध कराने का शुक्रिया।
ReplyDeleteअभिषेक जी, उर्दू में इब्ने सफी के सभी नोवेल नेट पर उपलब्ध हैं. हाँ हिंदी में ढूंढना मुश्किल है.
ReplyDeleteधन्यवाद जिशान जी, मगर मेरे लिए तो इनकी हिन्दी रचनाएं ही उपयोगी हो पायेंगीं. अगर उर्दु रचना भी देवनागरी में होती तो भी कुछ और बात होती.
ReplyDeleteआह! सच मे हमीद, विनोद, राजेश, सोनिया याद हो आए
ReplyDeleteकितना रोमांच मिलता था इन उपन्यासों में डूब कर, क्या बताएँ!
वैसे अनुबंध बढ़िया रहा आपका :-)
इब्ने सफी जी के बारे में पढ़कर काफी अच्छा लगा. आज के समय में भी ऐसे लेखन की जरूरत है जैसा की सफी जी ने लिखा
ReplyDeleteआपने विस्तार से बताया, इसके लिये धन्यवाद।
ReplyDeletethanks for sharing...
ReplyDeleteMai ibbne safi ke bare me padha to bahut sakun mila aur unse bahut kuchh sikhne ko mila aapka bahut bahut dhanyabad
ReplyDeleteइब्ने सफी के वैज्ञानिक उपन्यासों को हिंदी रुपांतरण की PDF फाइल या पढ़ने योग्य उपन्यास नेट पर उपलब्ध है या किसी को लिंक मालूम हो तो प्लीज़ यहां पोस्ट करने की कृपा करें
ReplyDeleteJasoosi sansar blog per 7 or 8 hindi novels of Great Ibne safi are available for free reading.To read download pdf viewer app. Search on internet instead of Googles.(Imp.).
Deleteइब्ने सफी शायद विज्ञानगल्प युक्त जासूसी उपन्यास के आरंभिक लेखको में से है,उनकी कुछ रचनाये पढ़ने का मुझे सौभाग्य मिला,जो रोचक ज्ञानवर्धक एवं जानकारी परक रहा।
ReplyDeleteइब्ने सफी शायद विज्ञानगल्प युक्त जासूसी उपन्यास के आरंभिक लेखको में से है,उनकी कुछ रचनाये पढ़ने का मुझे सौभाग्य मिला,जो रोचक ज्ञानवर्धक एवं जानकारी परक रहा।
ReplyDelete7or8 hindi novels of Ibne safi are available for free reading on jasoosi sansar blog.
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