Global Warming Effects and Causes in Hindi
दिन प्रतिदिन यह बढ़ती हुई गर्मी, लगता है धरती को उबाल कर रख देगी। चारों ओर ऐसा लग रहा है, सब कुछ सुलग रहा है। ऐसे में हमारे मन में यह सवाल उठना लाजमी है कि इस बढ़ती हुई गर्मी का जिम्मेदार कौन है? पढिए डॉ. गुरुदयाल प्रदीप जी का लिखा यह महत्वर्ण लेख!
'बढ़ती गरमी का दोषी कौन?'
डॉ. गुरुदयाल प्रदीप
अपने समय के महान समाज–सुधारक कबीर दास का एक दोहा है-
'काल करै सो आज कर¸ आज करै सो अब।
पल में परलय होय गी¸ बहुरि करेगा कब।।'
पल में परलय होय गी¸ बहुरि करेगा कब।।'
इस में संसार की क्षणभंगुरता के बारे में चेतावनी देते हुए लोगों को अपना काम समय रहते हुए करने की सलाह दी है। हो सकता है कि कबीर ने प्रलय का भय दिखा कर उस समय के मानव समाज में व्याप्त आलस्य को दूर करने का प्रयास किया हो। लेकिन प्रलय की स्थिति वास्तव में भयावह है।
प्रलय का अर्थ है इस धरती का विनाश अथवा यहां ऐसी विषम स्थितियों का उत्पन्न होना जिसमें जीवन का फलना–फूलना असंभव हो जाए।वैसे तो यदि हमें अपने पुराणों तथा मिथकों पर जरा भी विश्वास है तो जल–प्लावन के रूप में प्रलय कोई नयी बात नहीं है। ऐसे प्रलय अचानक हुए या फिर प्रकृति इनके बारे में समय–समय पर चेतावनी देती रही¸ साथ ही इसमें मनुष्य के अपने कर्मों का भी हाथ था या नहीं — आज हमारे पास ऐसा कोई साधन नहीं है जो इनके बारे में सही जानकारी दे सके। लेकिन भविष्य में कोई ऐसा प्रलय आया तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उसमें प्रकृति के साथ–साथ मनुष्य का हाथ अवश्य होगा।
पर्यावरण में हो रहे छोटे–बड़े परिवर्तन कबीर दास की तरह हमें इसकी चेतावनी भी दे रहे हैं तथा समय रहते सुधरने का संकेत भी।मनुष्य इस धरती का तथाकथित सबसे बुद्धिमान एवं विचारवान प्राणी है। इस धरती के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा कर उनका उपयोग केवल अपने लिए करने का गुर उसे खूब आ गया है।लेकिन अपनी बुद्धि के घमंड में उसने कबीर की बात न तब सुनी और न ही आज वह प्रकृति रूपी कबीर की चेतावनी सुनने को तैयार है। वह तो बस तथाकथित प्रगति के रास्ते पर आंखें मूंदे भागा चला जा रहा है।वह कालीदास की तरह जिस डाल पर बैठा है उसी को जाने–अनजाने काटने की प्रक्रिया में लगा हुआ है और खुश हो रहा है। आने वाले प्रलय की चेतावनी धरती के बढ़ते ताप के रूप में प्रकृतिहमें बड़े मुखर ढंग से दे रही है। इस बढ़ते ताप का दुष्प्रभाव अंत में जल–प्लावन ही होगा¸यह तय है।
हमारे पर्वतों तथा ध्रुवीय प्रदेशों पर ज़मी लाखों टन बर्फ़ जब एक साथ पिघलने लगेगी तो और क्या अपेक्षा की जा सकती है। यह पिघलती बर्फ़ हमारे सागरों और महासागरों का जल–स्तर कई–कई मीटर तक ऊंचा कर सकती है जो फिर नदियों एवं अन्य जलाशयों को भी प्रभावित करेगा ही। परिणाम– चारों तरफ़ बाढ़ ही बाढ़। यह बाढ़ हमारे अधिकांश मैदानी भागों को लील जाएगी। फिर न हम बचेंगे और न ही अन्य जीव–जंतु। खैर यह तो बाद में होगा। बढ़ता ताप अभी भी अपनी रंगत छोटे–बड़े रूप में दिखा ही रहा है।
आइए¸ ज़्यादा नहीं¸ बस पिछले सालों के समय–अंतरालहाल में घटी कुछ घटनाओं पर ही नज़र डाली जाए। ये घटनाएं मात्र कपोल–कल्पना नहीं हैं बल्कि विभिन्न वैज्ञानिक तथा पर्यावरण संस्थाओं द्वारा किए गए अध्ययन का निचोड़ हैं। इन पर दृष्टिपात करने के बाद आप को समझ में आ जाएगा कि बढ़ते ताप के फिलहाल क्या–क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं और भविष्य में ये किस प्रकार की भयानक परिस्थितियों की ओर संकेत कर रहे हैं।
Global warming predictions map |
1- वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ़ फंड के एक अध्ययन के अनुसार उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र के बर्फ़–अक्षादित क्षेत्रफल में प्रति दशक के हिसाब से 9.2 प्रतिशत की कमी हो रही है और ऐसा विशेषकर ग्रीष्मकालीन समुद्री बर्फ़ में कमी के कारण हो रहा है। ज़ाहिर है¸ यह वातावरण ताप में वृद्धि का कुपरिणाम है। जीवधारियों पर इसका कुप्रभाव— लगभग 22¸000 पोलर बियर की जनसंख्या के विलुप्त होने का ख़तरा।2- ब्रिटिश अंटार्टिका सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र अवस्थित लार्सेन बी नामक अंटार्टिका आइस शीट¸ जिसके बारे में अब तक समझा जाता कि यह पत्थर के समान अविचल संरचना है¸ बढ़ती गर्मी के कारण धीरे–धीरे विघटित होना प्रारंभ कर चुकी है। इसका कुपरिणाम इस क्षेत्र के 300 – 400 ग्लैशियरों के आकार में कमी के रूप में परिलक्षित हो रहा है।
3- युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों द्वारा किये एक अध्ययन के अनुसार साइबेरिया –क्षेत्र के सैटेलाइट द्वारा लिए गए चित्र यह दशार्ते हैं कि इस क्षेत्र में अवस्थित आर्कटिक झीलों पर जमी लगभग स्थाई बर्फ़ धीरे–धीरे पिघल रही है¸ जिसके परिणाम स्वरूप झीलें विलुप्त होती जा रही हैं। 1973 तक इस क्षेत्र में झीलों की संख्या 10882 थी जो अब घट कर मात्र 9712 रह गई हैं। मात्र बत्तीस साल के अंतरालमें ऐसी एक सौ पच्चीस झीलें पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं।
4- रूट्गर युनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार सभी सागरों का जल–स्तर सामान्यरूप से प्रतिवर्ष 2 मी.मी. की से बढ़ रहा है। वर्तमान वृद्धि का यह दर औद्योगिक क्रांति के पहले के वर्षों की तुलना में दुगना है। यदि धरती के सामान्य ताप में वृद्धि के रोक–थाम के समुचित उपाय समय रहते न किए गए तो इस दर के बढ़ते ही जाने की संभावना अधिक है।
एक अनुमान के अनुसार इस शताब्दी के अंत तक हमारे समुद्रों का जल–स्तर लगभग एक मीटर तक या उससे भी ऊंचा उठ सकता और तब भविष्य में इसके कुपरिणाम की कल्पना तो की ही जा सकती है।
5- मैसाच्युसेट इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किये एक अध्ययन के अनुसार पिछले तीन दशकों में ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उठने वाले चक्रवात धीरे–धीरे काफ़ी प्रबल होते जा रहे हैं। चक्रवात में उठने वाली हवा की गति में कम से कम 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।6-भारत के मौसम पर भी अब इसका असर देखने को मिल रहा है.
6- मौसम विभाग के अनुसार आने वाला समय कोई शुभ समाचार ले कर नहीं आने वाला है। और भी बारिश एवं आंधी–तूफ़ान के ही संकेत मिल रहे हैं। प्रशांत महासगर के क्षेत्र से उठने वाले तूफ़ानों की संख्या तथा उनकी प्रबलता में भी काफ़ी वृद्धि हुई है और इन्होंने मिल कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
7- कैट्रीना, रिटा, सुनामी आदि जैसे तूफ़ानों तथा इनसे हुई तबाही को पृथ्वीवासी भला जल्दी भूल सकते हैं क्या?
8- और तो और धरती के बढ़ते ताप का प्रभाव मानव समाज के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाज़ेशन द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे क्रिया–कलापों के फलस्वरूप वातावरण में हो रहे परिवर्तनों का कुपरिणाम¸ विशेषकर ताप–वृद्धि के कारण¸ प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख लोगों को बीमारी के रूप में भुगतना पड़ रहा है और लगभग डेढ़ लाख लोग काल के गाल में समा जा रहे हैं।
9-चीन के शीर्ष मौसम विज्ञानी ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर पिघल सकते हैं तिब्बत को बाढ़ और हिमस्खलन का सामना करना पड़ सकता हैं तथा सूखा पड़ सकता है जिससे वहां रहने वाले लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता हैं और इसका दुष्प्रभाव भारत पर भी आ सकता है।
चीन देश के मुख्य मौसम विज्ञानी झेंग गुआगुआंग के हवाले से कहा ग्लोबल वार्मिंग ने ग्लेशियरों के घटाव को तेज किया है और इन जमे हिमानी क्षेत्रों में पिघलन से पहले ही तिब्बत में कई झीलें बढ़ाव पर हैं। उन्होंने कहा ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव ने ग्लेशियरों के सिकुड़ने को तेज किया है और पिघलते ग्लेशियरों से तिब्बत की झीलें भरी हैं। यदि वार्मिंग जारी रहती है तो पश्चिमी चीन में लाखों लोगों को अल्प समय में बाढ़ और दीर्घकाल में सूखे का सामना करना पड़ेगा।
तिब्बत की सीमा भारत के लद्दाख और उत्तर प्रदेश तथा हिमाचल प्रदेश में हिमलयी क्षेत्र से लगती है एवं इनके ऊपरी जिलों में ग्लेशियर सिकुड़न तथा अचानक बाढ़ आ रहे हैं।
10- यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कांसिन–मेडिसन तथा वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन के वैज्ञानिकों के अनुसार त्रासदी यह है कि इस धरती को गरमाने में पश्चिमी देशों¸ विशेषकर तथाकथित विकसित देशों का मुख्य हाथ है। त्रासदी यह है कि इसका कुपरिणाम प्रशांत तथा हिंद महासागर के तटीय देशों एवं अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के आस–पास के देशों को¸ जहां धरती को गरमाने वाले क्रिया–कलाप न्यूनतम हैं¸ तमाम संक्रामक तथा जीवाणुजनित रोगों जैसे मलेरिया से लेकर दस्त या फिर कुपोषण जैसी स्थितियों के रूप में भुगतना पड़ रहा है। भविष्य में स्थिति के बदतर होने के ही आसार ज़्यादा हैं। कारण¸ उच्च ताप जीवाणुओं को पनपने का बेहतर सुअवसर देते हैं। साथ ही ये देश इतने गरीब हैं कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए न तो इनके पास साधन हैं और न ही सुविधा। करे कोई¸ भरे कोई। स्थिति भयावह है और इसके लिए काफ़ी हद तक हमारे क्रिया- कलाप ही ज़िम्मेदार हैं.
इस लेख के अगले भाग में जानिए इस बढ़ती गरमी के कारण और निवारण
स्थिति भयावह है और इसके लिए काफ़ी हद तक हमारे क्रिया- कलाप ही ज़िम्मेदार हैं.....सत्य वचन...अभी नहीं चेते तो फिर बहुत देर हो जायेगी...बहुत सार्थक पोस्ट...
ReplyDeleteनीरज
दिन प्रतिदिन बढती हुई गर्मी, हमारी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए चिन्ता का विषय है। इसके लिए कहीं न कहीं हम सब किन्ही अर्थों में जिम्मेदार हैं। पर अधिकांश लोगों को इसका इलहाम ही नहीं है। इसलिए उस विषय में जागरूकता फैलाना नितान्त आवश्यक है। क्योंकि यदि लोगों को पता ही नहीं होगा, तो फिर वे सचेत कैसे होंगे। और इस दिशा में आपका यह आलेख पूरी तरह से सफल है। इस हेतु मैं डा0 प्रदीप जी को बधाई देना चाहूंगा। साथ ही अल्पना जी को भी बहुत बहुत बधाई इस महत्वपूर्ण आलेख को यहॉं पर प्रकाशित करने के लिए और साथ ही इसे उपयुक्त चित्रों से सजाने के लिए।
ReplyDeleteस्थिति वाक़ई गंभीर है, हमें ही उपाय करने होंगे
ReplyDeleteअल्पना जी बहुत अच्छा लेख पढ़वाया आपने .सच में हालात चिंताजनक हैं ..कल के दिल्ली के मौसम ने तो एक दम से हैरान कर दिया .शुक्रिया इस लेख को पढ़वाने के लिए
ReplyDeleteजी ये तो संकेत भर है..प्रलय तो अभी आनी है..!ध्रुवों की बर्फ के पिघलने के बाद जो होगा वो अकल्पनीय है..और हम अभी तक कुछ नहीं कर पाए है...!
ReplyDeleteAlpana ji bahut hi sarthak post likhi hai apne...
ReplyDeleteसुन्दर. आपने गर्मी और बढा दी.
ReplyDeleteAcche chitron ke sath mahattwapurn lekh. Vakai kal ke bajaye aaj hi kuch karne ki jarurat hai.
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट लिखी है, बधाई..
ReplyDeleteकल की किसको खबर ,
हम जी रहे है जर्रे-जर्रे के लिए
कल की किसको खबर,
हम रोयेंगे भी जर्रे-जर्रे के लिए
..I Have dedicated my blog som-ras to maa..the word maa includes DHARITRI also, where I wrote
अपनी जननी की तुलना कभी धरती से करके देखना, दोनों की हालत क्षीण से क्षीणतर होती जा रही है।
http://som-ras.blogspot.com
बढती हुई गर्मी की समस्या पर इतने विस्तार से लेख प्रस्तुत करने और इस गंभीर समस्या पर सबका ध्यान आकर्षित करने पर आभार...
ReplyDeleteregards
यह बहुत मौजू मुद्दा है और इस पर जो सचित्र जानकारी यहाँ दी गयी है काबिले तारीफ है !
ReplyDeleteस्थिति इतनी अधिक भयावह होगी, इस प्रकार की तो किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी.लेकिन हम लोग स्वयं ही इस समस्या के जनक हैं.
ReplyDeleteaapne woqt ki nabz par hath rakha hai........sthiti sachmuch bhyavah hai.....is jagrookta k liye badhai
ReplyDeleteबेहद ज्ञान वर्धक और प्रेरक आलेख उपलब्ध करने के लिए आभार.
ReplyDelete- विजय
Haalaat wakai chintajanak hain.
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