गर्भावस्था में मधुमेह के खतरे और उपाय।
गर्भ धारण के बाद गर्भकाल आधा गुजर चुका है, सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। आप खासी खुश हैं, उत्साहित भी हैं। 24वें सप्ताह में आपकी प्रसूता विद आपको रूटीन जांच के तहत ही Oral glucose tolerance test के लिए कहती है।
टेसट में पता चलता है कि आपको Gestational diabetes है। अब आगे क्या होगा? विस्मित हैं आप!
अमरीकी मधुमेह संघ_Amrican Diabetes Assocition, ADA के मुताबिक़ गर्भावस्था में 18 फीसदी अमरीकी महिलाएं मधुमेह से ग्रस्त हो जातीं हैं। इस अवस्था में अब तक जो हारमोन शिशु के विकास में मददगार थे, इंसुलिन के काम में बाधा डालने लगते हैं। नतीज़न आपका ब्लड शुगर लेवल (खून में शक्कर का स्तर) बढ़ जाता है। सामान्य से खासा ऊपर चला जाता है।
लेकिन इसमें इतना घबराने की भी ज़रुरत नहीं है। इलाज़ मिलने पर आपको और गर्भस्थ को कोई जोखिम नहीं है, कोई खतरा नहीं रहेगा। बस अपने Diabetes expert (मधुमेह माहिर) के कहे अनुसार आपको इसका प्रबंधन करना है!
गर्भकाल का 24-28 वाँ सप्ताह:
कितनी ही गर्भवती महिलाओं में इस अवधि के दौरान कोई लक्षण प्रकट नहीं होते मधुमेह के। लेकिन कुछ को बार-बार प्यास लग सकती है, बार-बार पेशाब भी आ सकता है, थकान के साथ वज़न भी कम हो सकता है।
इन्हीं लक्षणों के प्रकट होने पर प्रसूति और स्त्रीरोगों का माहिर चिकित्सक आपको ओरल ग्लूकोज़ टोलरेंस टेस्ट_Oral Glucose Tolerance Test लेने की सलाह देता है। ब्लड सुगर उच्चतर पाए जाने पर उसके अनुरूप ही इसके प्रबंधन का खाका तैयार किया जाता है।
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39-32 वाँ सप्ताह:
खून में तैरती अतिरिक्त शक्कर_Sugar को काबू में रखने के लिए आपके अनुकूल लेकिन रोजाना किया जाने वाला व्यायाम और एक एकदम से निर्धारित विशेष खुराक बताई जाती है, जिसमें औसत दर्जे के तीन मील्स और दो अल्प आहार रोजाना शामिल रहते हैं।
ऐसे रोगियों के लिए अलग फूड चार्ट होता है। इसमें शामिल हो सकते हैं फल (सुपाच्य कार्बोहाईड्रेट), हरी सब्जियां, मोटे अनाज (गेंहू चने की रोटी, छिलका सहित चना), ब्राउन राईस। फलों के जूस, केंडी, मिष्टी दही, मिठाई आदि न्यूनतम रखी जाती हैं। यदि कसरत और इस विशेष खुराक से आपकी ब्लड शुगर काबू में नहीं होती है, तब इंसुलिन शोट्स पे आपको डाला जाता है. नपी तुली इंसुलिन शुगर के स्तर को देखभाल के ही दी जाती है।
33-36 वाँ सप्ताह:
ब्लड शुगर का यदि ठीक से प्रबंधन नहीं किया जाता है, तब पेट में पल रहे बच्चे का वजन कुछ बढ़ सकता है, जिकी वजह से प्रसव में दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। इसीलिए गर्भस्थ पर भी बराबर निगाह रखी जाती है, अल्ट्रासाउंड के ज़रिये उसकी बढ़वार की तर्ज़ का जायज़ा लिया जाता है। उसकी हार्ट रेट जानने के लिए एक नॉन स्ट्रेस टेस्ट_Non Stress Test भी किया जाता है। मधुमेह प्रबन्धन में ढील बच्चे के लिए भी मोटापे और मधुमेह के खतरे बढ़ा सकती है।
37-40 वाँ हफ्ता:
अब कभी भी आप प्रसव के लिए तैयार हैं। ADA के अनुसार वे गर्भवती महिलायें जो गर्भावस्था में मधुमेह की चपेट में आ जाती हैं, उनमें लार्जर बेबीज़ के आने की सामान्य से ज्यादा संभावना बनी रहती है। एक तरह से यह प्रवृत्ति दिखलाई दे सकती है। नवजात का ब्लड शुगर लेवल कम भी हो सकता है कुछेक दिनों तक। लेकिन जो महिलाएं मधुमेह का प्रबंधन नियम से करतीं हैं, प्रसव के बाद उनका मधुमेह भी चला जाता है। प्रसव के बाद खून में शक्कर का स्तर भी सामान्य हो जाता है।
लेकिन यदि आप गर्भ काल में मधुमेह की गिरफ्त में आ जातीं हैं, तब आगे चलके आपके लिए सेकेंडरी डायबीटीज_Secondary Diabetes का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए भावी जीवन के लिए जीवन शैली पे ध्यान देना पड़ता है, आवश्यक तबदीली भी लानी पड़ती है। जोखिम तत्वों से बचिए, अपने शुगर एक्सपर्ट से सलाह मशविरा करिए।
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लेकिन इसमें इतना घबराने की भी ज़रुरत नहीं है। इलाज़ मिलने पर आपको और गर्भस्थ को कोई जोखिम नहीं है, कोई खतरा नहीं रहेगा। बस अपने Diabetes expert (मधुमेह माहिर) के कहे अनुसार आपको इसका प्रबंधन करना है!
गर्भकाल का 24-28 वाँ सप्ताह:
कितनी ही गर्भवती महिलाओं में इस अवधि के दौरान कोई लक्षण प्रकट नहीं होते मधुमेह के। लेकिन कुछ को बार-बार प्यास लग सकती है, बार-बार पेशाब भी आ सकता है, थकान के साथ वज़न भी कम हो सकता है।
इन्हीं लक्षणों के प्रकट होने पर प्रसूति और स्त्रीरोगों का माहिर चिकित्सक आपको ओरल ग्लूकोज़ टोलरेंस टेस्ट_Oral Glucose Tolerance Test लेने की सलाह देता है। ब्लड सुगर उच्चतर पाए जाने पर उसके अनुरूप ही इसके प्रबंधन का खाका तैयार किया जाता है।
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39-32 वाँ सप्ताह:
खून में तैरती अतिरिक्त शक्कर_Sugar को काबू में रखने के लिए आपके अनुकूल लेकिन रोजाना किया जाने वाला व्यायाम और एक एकदम से निर्धारित विशेष खुराक बताई जाती है, जिसमें औसत दर्जे के तीन मील्स और दो अल्प आहार रोजाना शामिल रहते हैं।
ऐसे रोगियों के लिए अलग फूड चार्ट होता है। इसमें शामिल हो सकते हैं फल (सुपाच्य कार्बोहाईड्रेट), हरी सब्जियां, मोटे अनाज (गेंहू चने की रोटी, छिलका सहित चना), ब्राउन राईस। फलों के जूस, केंडी, मिष्टी दही, मिठाई आदि न्यूनतम रखी जाती हैं। यदि कसरत और इस विशेष खुराक से आपकी ब्लड शुगर काबू में नहीं होती है, तब इंसुलिन शोट्स पे आपको डाला जाता है. नपी तुली इंसुलिन शुगर के स्तर को देखभाल के ही दी जाती है।
33-36 वाँ सप्ताह:
ब्लड शुगर का यदि ठीक से प्रबंधन नहीं किया जाता है, तब पेट में पल रहे बच्चे का वजन कुछ बढ़ सकता है, जिकी वजह से प्रसव में दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। इसीलिए गर्भस्थ पर भी बराबर निगाह रखी जाती है, अल्ट्रासाउंड के ज़रिये उसकी बढ़वार की तर्ज़ का जायज़ा लिया जाता है। उसकी हार्ट रेट जानने के लिए एक नॉन स्ट्रेस टेस्ट_Non Stress Test भी किया जाता है। मधुमेह प्रबन्धन में ढील बच्चे के लिए भी मोटापे और मधुमेह के खतरे बढ़ा सकती है।
37-40 वाँ हफ्ता:
अब कभी भी आप प्रसव के लिए तैयार हैं। ADA के अनुसार वे गर्भवती महिलायें जो गर्भावस्था में मधुमेह की चपेट में आ जाती हैं, उनमें लार्जर बेबीज़ के आने की सामान्य से ज्यादा संभावना बनी रहती है। एक तरह से यह प्रवृत्ति दिखलाई दे सकती है। नवजात का ब्लड शुगर लेवल कम भी हो सकता है कुछेक दिनों तक। लेकिन जो महिलाएं मधुमेह का प्रबंधन नियम से करतीं हैं, प्रसव के बाद उनका मधुमेह भी चला जाता है। प्रसव के बाद खून में शक्कर का स्तर भी सामान्य हो जाता है।
लेकिन यदि आप गर्भ काल में मधुमेह की गिरफ्त में आ जातीं हैं, तब आगे चलके आपके लिए सेकेंडरी डायबीटीज_Secondary Diabetes का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए भावी जीवन के लिए जीवन शैली पे ध्यान देना पड़ता है, आवश्यक तबदीली भी लानी पड़ती है। जोखिम तत्वों से बचिए, अपने शुगर एक्सपर्ट से सलाह मशविरा करिए।
बेहद उपयोगी, एवं सराहनीय। आभार इस जानकारी के लिए।
ReplyDeleteबेहद उपयोगी, एवं सराहनीय।
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ReplyDeleteआपकी टिपण्णी हमारा मार्ग दर्शन करती है .हमारे लेखन की आंच बनती है आपकी कही हर बात .आभार व्यक्त करता हूँ सभी का .
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 11 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने