"गॉड पार्टिकिल डिस्कवर्ड "हेड लाइंस सुर्ख़ियों में पहली मर्तबा २०१२ में आईं। यद्यपि भौतिकी के माहिरों ने इस हेडलाइन को सस्ती लोक...
"गॉड पार्टिकिल डिस्कवर्ड "हेड लाइंस सुर्ख़ियों में पहली मर्तबा २०१२ में आईं। यद्यपि भौतिकी के माहिरों ने इस हेडलाइन को सस्ती लोकप्रियता बटोरने वाली कहा। लोकप्रिय मीडिया का अपनी टीआरपी बढ़ाने वाला स्टंट कहकर नाक भौं भी खूब सिकोड़ा था लेकिन यह संज्ञा यह शीर्षक इसे नोबेल प्राइज़ से नवाज़े गए एक भौतिकी शास्त्री ली-ओन लेडरमां ने ही दी थी।
हिग्स बोसॉन मिला कहना लिखना बांचना कोई बहुत आकर्षक सुर्खी , हेड लाइन न बन पाती -जो हो यह सत्येंद्र नाथ बासु ,आइंस्टाइन और स्वयं पीटर हिग्स के साथ ज्यादती थी। यूं इसे "होली ग्रेल आफ पार्टिकिल फ़िज़िक्स " भी कहा जा सकता था लेकिन वह एक घिसा पिटा शीर्षक ही साबित होता जिसका अंग्रेजी में अर्थ होता -मच शॉट आफ्टर कण भौतिकी के लिए ।
गॉड पार्टिकल इसलिए भी ज्यादा समीचीन प्रतीत होता है ईश्वर या ब्रह्म की ही तरह यह अवधारणा में आया कण अपनी अवधारणा से ही अचिन्त्य है। और इसीलिए हमारी ज्ञानेन्द्रिय क्या तमाम भौतिक उपकरणों कण -टोहकों की शिनाख्त से यह आदिनांक बाहर रहा आया है ,आखिर कण टोही अतिअल्पजीवी ,अल्पकाली इन कथित बुनियादी द्व्य कणों की क्षणिक लीला ही इन कौतुक पूर्ण कणों की उँगलियों के निशाँ के रूप में टोह पाते हैं जिनके आधार पर मात्र निष्कर्ष निकाले जाते हैं जिनमें त्रुटि होने रहने की प्रायिकता निरंतर बनी ही रहती है यहां भी ९५ फीसद ही रही निकाले गए निष्कर्षों के सही होने और इनके अस्तित्व ,इनके होने की उम्मीद। पांच फीसद इनके न होने का अनुमान भी बना रहा है।
यानी अनुमान इन कणों की संभावित (न कि निश्चयात्मक )मौज़ूदगी का ९५ फीसद ही सही कहा जा सका है जबकि ९९. ९९ से कम कुछ भी निश्चयात्मक नहीं माना जाता है इनफरेंस निकाले जाने वाले निष्कर्षों की विश्वसनीयता में ।
एक अवधारणात्मक कण रहा है' हिग्स बोसॉन 'कण -भौतिकी की दुनिया में -स्टेंडर्ड मॉडल में।
समझा गया है अंतरिक्ष में जहां कुछ भी नहीं है वहां ये 'गॉड आफ ऑल पार्टिकिल'हाज़िर है। यही भार वाले कणों को उनका द्रव्यमान (द्रव्य -राशि )प्रदान करता है -इनके साथ इंटरेक्शन करके (एक क्रिया -प्रति-क्रिया के नतीजे के तौर पर ).
देखें :https://en.wikipedia.org/wiki/Peter_Higgs
हिग्स फील्ड (हिग्स क्षेत्र ) इसी कण (असली नाम हिग्स बोसॉन )के ज़रिये शेष कणों के साथ गहरा या नामलूम सा इंटरेक्शन करके उन्हें शून्य या फिर परिमाण सहित द्रव्य राशि प्रदान करता है। एक रिवाज़ सा बन गया है- यह कहना -एक कण का क्षेत्र या फील्ड दूसरे कण पर बल डालता है। जबकि सीधे -सीधे यह भी कहा जा सकता था - एक कण दूसरे पर बल डालता है।
मसलन एक पिंड का गुरुत्वीय क्षेत्र (ग्रेविटेशनल फील्ड )दूसरे पिंड पर एक फील्ड पार्टिकिल ग्रेविटोन के ज़रिये बल डालता है। इसी प्रकार विद्युतचुंबकीय क्षेत्र का बल वाहक फील्ड पार्टिकिल फोटोन कहा गया है।
कोई भी दो आवेशित कण एक दूसरे पर बल डालते हैं न कहकर यूं कहा जाता है -एक का क्षेत्र दूसरे आवेशित कण पर एक आकर्षण या विकर्षण बल डालता है जो उनके आवेशों से तय होता है।
कुलमिलाकर हिग्स बोसॉन एक फील्ड पार्टिकिल ही है। गॉड नहीं है शेष कणो का। यह एक उप -परमाणुविक अवधाराणत्मक कण है आवेश हीन ,नर्तन हीन (ज़ीरो -स्पिन ),जो बोस -आइंस्टाइन सांख्यकी का अनुकरण करता है अनुगामी है। अवधारणा के रूप में स्टेंडर्ड मॉडल में इसे एक फील्ड के रूप में ,सृष्टि में सर्वव्याप्त माना गया है अंतरिक्ष में इसकी परिव्याप्ति मानी गई है। यानी अवधारणा ही इसे 'खुद-आ ''ख़ुदा 'गॉड ,मसीहा ,यहोवा ,वाहगुरु बतलाती आई है। खुद तो क्या आता (ख़ुदा )बुलाने से भी कहाँ आया है ?कहाँ दीसा है हिग्स -बोसॉन ?जो दीसे सो माया वाली बात ही आदिनांक चरितार्थ हो रही है।
देखें :
(१ )https://www.google.com/search?q=what+is+a+boson&rlz=1CAACAP_enUS646US647&oq=what+is+a+boson+&aqs=chrome..69i57j0l5.10362j0j1&sourceid=chrome&ie=UTF-8
हिग्स बोसॉन मिला कहना लिखना बांचना कोई बहुत आकर्षक सुर्खी , हेड लाइन न बन पाती -जो हो यह सत्येंद्र नाथ बासु ,आइंस्टाइन और स्वयं पीटर हिग्स के साथ ज्यादती थी। यूं इसे "होली ग्रेल आफ पार्टिकिल फ़िज़िक्स " भी कहा जा सकता था लेकिन वह एक घिसा पिटा शीर्षक ही साबित होता जिसका अंग्रेजी में अर्थ होता -मच शॉट आफ्टर कण भौतिकी के लिए ।
गॉड पार्टिकल इसलिए भी ज्यादा समीचीन प्रतीत होता है ईश्वर या ब्रह्म की ही तरह यह अवधारणा में आया कण अपनी अवधारणा से ही अचिन्त्य है। और इसीलिए हमारी ज्ञानेन्द्रिय क्या तमाम भौतिक उपकरणों कण -टोहकों की शिनाख्त से यह आदिनांक बाहर रहा आया है ,आखिर कण टोही अतिअल्पजीवी ,अल्पकाली इन कथित बुनियादी द्व्य कणों की क्षणिक लीला ही इन कौतुक पूर्ण कणों की उँगलियों के निशाँ के रूप में टोह पाते हैं जिनके आधार पर मात्र निष्कर्ष निकाले जाते हैं जिनमें त्रुटि होने रहने की प्रायिकता निरंतर बनी ही रहती है यहां भी ९५ फीसद ही रही निकाले गए निष्कर्षों के सही होने और इनके अस्तित्व ,इनके होने की उम्मीद। पांच फीसद इनके न होने का अनुमान भी बना रहा है।
यानी अनुमान इन कणों की संभावित (न कि निश्चयात्मक )मौज़ूदगी का ९५ फीसद ही सही कहा जा सका है जबकि ९९. ९९ से कम कुछ भी निश्चयात्मक नहीं माना जाता है इनफरेंस निकाले जाने वाले निष्कर्षों की विश्वसनीयता में ।
एक अवधारणात्मक कण रहा है' हिग्स बोसॉन 'कण -भौतिकी की दुनिया में -स्टेंडर्ड मॉडल में।
समझा गया है अंतरिक्ष में जहां कुछ भी नहीं है वहां ये 'गॉड आफ ऑल पार्टिकिल'हाज़िर है। यही भार वाले कणों को उनका द्रव्यमान (द्रव्य -राशि )प्रदान करता है -इनके साथ इंटरेक्शन करके (एक क्रिया -प्रति-क्रिया के नतीजे के तौर पर ).
देखें :https://en.wikipedia.org/wiki/Peter_Higgs
हिग्स फील्ड (हिग्स क्षेत्र ) इसी कण (असली नाम हिग्स बोसॉन )के ज़रिये शेष कणों के साथ गहरा या नामलूम सा इंटरेक्शन करके उन्हें शून्य या फिर परिमाण सहित द्रव्य राशि प्रदान करता है। एक रिवाज़ सा बन गया है- यह कहना -एक कण का क्षेत्र या फील्ड दूसरे कण पर बल डालता है। जबकि सीधे -सीधे यह भी कहा जा सकता था - एक कण दूसरे पर बल डालता है।
मसलन एक पिंड का गुरुत्वीय क्षेत्र (ग्रेविटेशनल फील्ड )दूसरे पिंड पर एक फील्ड पार्टिकिल ग्रेविटोन के ज़रिये बल डालता है। इसी प्रकार विद्युतचुंबकीय क्षेत्र का बल वाहक फील्ड पार्टिकिल फोटोन कहा गया है।
कोई भी दो आवेशित कण एक दूसरे पर बल डालते हैं न कहकर यूं कहा जाता है -एक का क्षेत्र दूसरे आवेशित कण पर एक आकर्षण या विकर्षण बल डालता है जो उनके आवेशों से तय होता है।
कुलमिलाकर हिग्स बोसॉन एक फील्ड पार्टिकिल ही है। गॉड नहीं है शेष कणो का। यह एक उप -परमाणुविक अवधाराणत्मक कण है आवेश हीन ,नर्तन हीन (ज़ीरो -स्पिन ),जो बोस -आइंस्टाइन सांख्यकी का अनुकरण करता है अनुगामी है। अवधारणा के रूप में स्टेंडर्ड मॉडल में इसे एक फील्ड के रूप में ,सृष्टि में सर्वव्याप्त माना गया है अंतरिक्ष में इसकी परिव्याप्ति मानी गई है। यानी अवधारणा ही इसे 'खुद-आ ''ख़ुदा 'गॉड ,मसीहा ,यहोवा ,वाहगुरु बतलाती आई है। खुद तो क्या आता (ख़ुदा )बुलाने से भी कहाँ आया है ?कहाँ दीसा है हिग्स -बोसॉन ?जो दीसे सो माया वाली बात ही आदिनांक चरितार्थ हो रही है।
देखें :
(१ )https://www.google.com/search?q=what+is+a+boson&rlz=1CAACAP_enUS646US647&oq=what+is+a+boson+&aqs=chrome..69i57j0l5.10362j0j1&sourceid=chrome&ie=UTF-8
( २ )Boson - Wikipedia
https://en.wikipedia.org/wiki/Boson
In quantum mechanics, a boson (/ˈboʊsɒn/, /ˈboʊzɒn/) is a particle that follows Bose–Einstein statistics.Bosons make up one of the two classes of particles, the other being fermions.
(३ )https://www.extremetech.com/extreme/208652-what-is-the-higgs-boson
What is the Higgs Boson, and why is it so important?
The Higgs boson is, if nothing else, the most expensive particle of all time. It’s a bit of an unfair comparison; discovering the electron, for instance, required little more than a vacuum tube and some genuine genius, while finding the Higgs boson required the creation of experimental energies rarely seen before on planet Earth. The Large Hadron Collider hardly needs any introduction, being one of the most famous and successful scientific experiments of all time, but the identity of its primary target particle is still shrouded in mystery for much of the public. It’s been called the God Particle, but thanks to the efforts of literally thousands of scientists, we no longer have to take its existence on faith.
Why has the Higgs been the subject of so much hype, funding, and (mis)information? For two reasons. One, it was the last hold-out particle remaining hidden during the quest to check the accuracy of the Standard Model of Physics. This meant its discovery would validate more than a generation of scientific publication. Two, the Higgs is the particle which gives other particles their mass, making it both centrally important and seemingly magical. We tend to think of mass as an intrinsic property of all things, yet physicists believe that without the Higgs boson, mass fundamentally doesn’t exist.
The reason comes back to something called the Higgs field. This field was actually theorized before the Higgs boson itself, as physicists calculated that in order for their theories and observations to jive, it was necessary to imagine a new field that existed everywhere in the universe. Shoring up existing theories by inventing new theoretical components to the universe is dangerous, and in the past led physicists to hypothesize a universal aether — but the more math they did, the more they realized that the Higgs field simply had to be real. The only problem? By the very way they’d defined it, the Higgs field would be virtually impossible to observe.
The Higgs field was thought to be responsible for the fact that some particles that should not have mass, do. It is, in a sense, the universal medium which separates massless particles into different masses. This is called symmetry breaking, and it’s often explained by way of analogy with light — all wavelengths of light travel at the same speed in the medium of a vacuum, but in the medium of a prism, each wavelength can be can separated from homogenous white light into bands of different wavelengths. This is of course a flawed analogy, since the wavelengths of light all exist in white light whether or not we’re capable of seeing that fact, but the example shows how the Higgs field is thought to create mass through symmetry-breaking. A prism breaks the velocity-symmetry of different wavelengths of light, thus separating them, and the Higgs field is thought to break the mass-symmetry of some particles which are otherwise symmetrically massless.
It was not until later that physicists realized that if the Higgs field does exist, its action would require the existence of a corresponding carrier particle, and the properties of this hypothetical particle were such that we might actually be able to observe it. This particle was believed to be in a class called the bosons; keeping things simple, they called the boson that went with the Higgs field the Higgs boson. It is a so-called “force carrier” for the Higgs field, just as photons are a force carrier for the universe’s electromagnetic field; photons are, in a sense, local excitations of the EM field, and in that same sense the Higgs boson is a local excitation of the Higgs field. Proving the existence of the particle, with the properties physicists expected based on their understanding of the field, was effectively the same as proving the existence of the field directly.
Enter, after many years of planning, the Large Hadron Collider (LHC), an experiment massive enough to potentially falsify the theory of the Higgs boson. The 17-mile loop of super-powered electromagnets can accelerate charged particles to significant fractions of the speed of light, causing collisions violent enough to break these particles into fundamental constituents, and deform space around the impact point. With a high enough collision energy, it was calculated that scientists could basically super-charge the Higgs boson, pushing it up into an energy state where it would decay in ways that we canobserve. These energies were so great that some even panicked and said the LHC would destroy the world, while others went so far as to describe an observation of the Higgs as a peek into an alternate dimension.
Initial observations seemed to actually falsify predictions, and no sign of the Higgs could be found — leading some researchers who had campaigned for the spending of billions of dollars to go on television and meekly make the true-but-unsatisfying argument that falsifying a scientific theory is just as important as confirming it. With a bit more time, however, the measurements began to add up, and on March 14, 2013 CERN officially announced the confirmation of the Higgs boson. There is even some evidence to suggest the existence of multiple Higgs bosons, but that idea needs significant further study.
So what’s next for the God particle? Well, the LHC just recently reopened with significant upgrades, and has an eye to look into everything from antimatter to dark energy. Dark matter is thought to interact with regular matter solely through the medium of gravity — and by creating mass, the Higgs boson could be crucial to understanding exactly how. The main failing of the Standard Model is that it cannot account for gravity — one that could do so would be called a Grand Unified Theory — and some theorize that the Higgs particle/field could be the bridge physicists so desperately desire.
In any case, the Higgs is really only confirmed to exist; it is not yet remotely understood. Will future experiments confirm super-symmetry, and the idea that the Higgs boson could decay into dark matter itself? Or will they confirm every tiny prediction of the Standard Model about the Higgs boson’s properties and, paradoxically, end that entire field of study once and for all?
(३ )http://www.nature.com/nature/journal/v525/n7568/full/525160b.html?foxtrotcallback=true
(३ )http://www.nature.com/nature/journal/v525/n7568/full/525160b.html?foxtrotcallback=true
Subject terms:
A signal from the Large Hadron Collider (LHC) could challenge the standard model of particle physics for how matter and forces interact.
The LHCb experiment at CERN, Europe's particle-physics lab near Geneva, has uncovered an unexpected difference in the rate at which short-lived particles called B mesons undergo certain decays into muons and taus (heavier cousins of the electron). The standard model says that once the particles' mass differences are taken into account, the decays should occur at exactly the same rate.
The deviation is small, and the chance that it is a statistical fluctuation in random noise is too high to claim a discovery (the significance is 2.1 sigma, but physicists' threshold for a discovery is 5 sigma). However, the results are intriguing because they match previous measurements made by two other experiments elsewhere.
Phys. Rev. Lett. (in the press) http://journals.aps.org/prl/accepted/8e07cYdfSd71f65779771c1232551e3be1270df73
(४ )https://www.youtube.com/watch?v=Extf5YWGjWw
(४ )https://www.youtube.com/watch?v=Extf5YWGjWw
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-010-2017) को
ReplyDelete"जन-जन के राम" (चर्चा अंक 2744)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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विजयादशमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'