चिकित्सा खिड़की से :क्या है मायलोमा (Myeloma )? मायलोमा एक प्रकार का रक्त कैंसर होता है जो अस्थिमज़्ज़ा में बनी उन कोशिकाओं से पैदा होता है ...
चिकित्सा खिड़की से :क्या है मायलोमा (Myeloma )?
मायलोमा एक प्रकार का रक्त कैंसर होता है जो अस्थिमज़्ज़ा में बनी उन कोशिकाओं से पैदा होता है जिन्हें प्लाज़्मा सेल्स कहते हैं। अस्थि -मज़्ज़ा (Bone marrow )स्पंजी ऊतक होते हैं जो हमारे शरीर की अपेक्षाकृत कुछ बड़े आकार की अस्थियों (हड्डियों )के अंदरूनी भाग में पाये जाते हैं। अस्थि -मज़्ज़ा अनेक प्रकार की कोशिकायें पैदा करती है।
इस स्थिति में जहां -जहां प्लाज़्मा कोशिकायें होतीं हैं वहां -वहां यह कैंसर पैदा हो सकता है। जहां -जहां और जहां कहीं भी छोटी या बड़ी अस्थियों में ,हड्डियों में अस्थि -मज़्ज़ा है जैसे छोटी अस्थियों के मामले में श्रोणि -क्षेत्र (Pelvis ),रीढ़ (spine )और रिब-कैज यानी पसली की हड्डी के चारों ओर का ढांचा पसली -पिजर या पर्शुका पिंजर जो छाती को सुरक्षा देता है भी इससे नहीं बच पाता है। बड़ी अस्थियों की तो आप बात छोड़िये क्योंकि ये कैंसर शरीर में विभिन्न जगहों ,शरीर के अस्थि -मज़्ज़ा युक्त विभिन्न अंगों पर हो सकता है इसीलिए इसे अक्सर मल्टीपिल माये -लोमा भी कह दिया जाता है। बल्कि लोकप्रिय यही नाम ज्यादा हो गया है आजकल इस कैंसर का।
इस लाइलाज बनी बीमारी में कैंसर कोशिकायें अस्थि -मज़्ज़ा में एक अड्डा बना लेती हैं जहां ये एकत्रित होतीं जातीं हैं ,द्रुत गति से इनकी संख्या बढ़के स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को मात देने लगती है.ये कैंसर -ग्रस्त कोशिकायें सहायक -प्रतिपिंड (रोग जुझारू तंत्र )तो क्या बनाएंगी एब्नॉर्मल प्रोटीन (असामान्य प्रतिपिंड )तैयार करने लगतीं हैं जो गुर्दों के लिए समस्या बन गुर्दों में खराबी पैदा कर सकते हैं।
मल्टीपल मायेलोमा के इलाज़ की हमेशा ज़रूरत नहीं पड़ती है ,लेकिन रोग का पता चलने पर रक्त तथा अन्य जांच चलती है तब तक जब तक लक्षण मुखर (प्रकट )न हो जायें। लक्षणों के प्रकटीकरण पर बहुबिध इलाज़ और प्रबंधन मयस्सर रहता है।
क्या होतीं हैं प्लाज़्मा कोशिकायें ?
ये हमारे रुधिर में मौजूद श्वेत रक्त कणिकाओं (वाइट सेल्स )की ही एक किस्म हैं। हमारे रोग रोधी सुरक्षा तंत्र का यह एक ज़रूरी हिस्सा हैं ,चोकीदार हैं ,सुरक्षा प्रहरी हैं । ये कुछ प्रोटीन तैयार करतीं हैं जिन्हें एंटी -बॉडी या प्रति -पिंड कहा जाता है। आकार में इन अपेक्षाकृत बड़े अणुओं को ,इन प्रोटीनों को इम्म्यूनो -ग्लो -बुलिन भी कह दिया जाता है। जब हमारा शरीर विभिन्न संक्रमणों (Infections )का सामना करता है तब एक सुरक्षा प्रबंध के रूप में उस इंफेक्शन से जूझने मुकाबला करने के लिए प्लाज़्मा कोशिकायें ये एंटीबॉडी बनातीं हैं। आततायी रोगकारकों के खिलाफ यह असलाह है ,गोला -बारूद है। जैसा और जिस किस्म का इंफेक्शन वैसा ही सुरक्षा इंतज़ाम खड़ा कर लेती हैं प्लाज़्मा कोशिकायें। सीमा सुरक्षा बल हैं ये हमारे रोगरोधी तंत्र का। ये चुन -चुन के रोग कारक आतताइयों विषाणु और जीवाणु किस्म- किस्म के पैथोजन्स (वायरस ,बैक्टीरिया आदि )को मारने का माद्दा रखतीं हैं।
इन इम्म्यूनो -ग्लोब्युलिन या प्रोटीनों की पांच किस्में इस प्रकार हैं :
(१)IgA
(२)IgG
(३ )IgM
(४ )IgD
(५) IgE
मायलोमा ग्रस्त प्रत्येक मरीज़ में मायलोमा कोषिकायें इन प्रतिपिंडों में से किसी एक की सामान्य प्रति न बनाके असामान्य किस्म बनाने लगतीं हैं।
You might hear your doctor calls the antibodies proteins ,para -proteins , or a monoclonal spike.
रोग के ज्यादातर मामलों में रक्त की जांच के दौरान ये असामान्य प्रतिपिंड रक्त में पता लग जाते हैं कुछ में इनका पता पेशाब की जांच में चलता है। ये असामान्य प्रतिपिंड रोग से जूझने में नाकामयाब रहते हैं। ये दोषपूर्ण इम्म्यूनोग्लोबुलिन अपने बचावी काम को ठीक से निभा ही नहीं पाते हैं।
संदर्भ -सामिग्री :
(१)http://www.cancerresearchuk.org/about-cancer/myeloma/about
(२ )http://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/multiple-myeloma/home/ovc-20342830
(३ )https://www.reference.com/science/substance-inside-bone-blood-cells-498fd7dc55cb36e6
(४ )https://en.wikipedia.org/wiki/Multiple_myeloma
(५)http://www.macmillan.org.uk/information-and-support/myeloma/understanding-cancer/what-is-myeloma.html
(६ )https://www.medicalnewstoday.com/articles/285666.php
मायलोमा एक प्रकार का रक्त कैंसर होता है जो अस्थिमज़्ज़ा में बनी उन कोशिकाओं से पैदा होता है जिन्हें प्लाज़्मा सेल्स कहते हैं। अस्थि -मज़्ज़ा (Bone marrow )स्पंजी ऊतक होते हैं जो हमारे शरीर की अपेक्षाकृत कुछ बड़े आकार की अस्थियों (हड्डियों )के अंदरूनी भाग में पाये जाते हैं। अस्थि -मज़्ज़ा अनेक प्रकार की कोशिकायें पैदा करती है।
इस स्थिति में जहां -जहां प्लाज़्मा कोशिकायें होतीं हैं वहां -वहां यह कैंसर पैदा हो सकता है। जहां -जहां और जहां कहीं भी छोटी या बड़ी अस्थियों में ,हड्डियों में अस्थि -मज़्ज़ा है जैसे छोटी अस्थियों के मामले में श्रोणि -क्षेत्र (Pelvis ),रीढ़ (spine )और रिब-कैज यानी पसली की हड्डी के चारों ओर का ढांचा पसली -पिजर या पर्शुका पिंजर जो छाती को सुरक्षा देता है भी इससे नहीं बच पाता है। बड़ी अस्थियों की तो आप बात छोड़िये क्योंकि ये कैंसर शरीर में विभिन्न जगहों ,शरीर के अस्थि -मज़्ज़ा युक्त विभिन्न अंगों पर हो सकता है इसीलिए इसे अक्सर मल्टीपिल माये -लोमा भी कह दिया जाता है। बल्कि लोकप्रिय यही नाम ज्यादा हो गया है आजकल इस कैंसर का।
इस लाइलाज बनी बीमारी में कैंसर कोशिकायें अस्थि -मज़्ज़ा में एक अड्डा बना लेती हैं जहां ये एकत्रित होतीं जातीं हैं ,द्रुत गति से इनकी संख्या बढ़के स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को मात देने लगती है.ये कैंसर -ग्रस्त कोशिकायें सहायक -प्रतिपिंड (रोग जुझारू तंत्र )तो क्या बनाएंगी एब्नॉर्मल प्रोटीन (असामान्य प्रतिपिंड )तैयार करने लगतीं हैं जो गुर्दों के लिए समस्या बन गुर्दों में खराबी पैदा कर सकते हैं।
मल्टीपल मायेलोमा के इलाज़ की हमेशा ज़रूरत नहीं पड़ती है ,लेकिन रोग का पता चलने पर रक्त तथा अन्य जांच चलती है तब तक जब तक लक्षण मुखर (प्रकट )न हो जायें। लक्षणों के प्रकटीकरण पर बहुबिध इलाज़ और प्रबंधन मयस्सर रहता है।
क्या होतीं हैं प्लाज़्मा कोशिकायें ?
ये हमारे रुधिर में मौजूद श्वेत रक्त कणिकाओं (वाइट सेल्स )की ही एक किस्म हैं। हमारे रोग रोधी सुरक्षा तंत्र का यह एक ज़रूरी हिस्सा हैं ,चोकीदार हैं ,सुरक्षा प्रहरी हैं । ये कुछ प्रोटीन तैयार करतीं हैं जिन्हें एंटी -बॉडी या प्रति -पिंड कहा जाता है। आकार में इन अपेक्षाकृत बड़े अणुओं को ,इन प्रोटीनों को इम्म्यूनो -ग्लो -बुलिन भी कह दिया जाता है। जब हमारा शरीर विभिन्न संक्रमणों (Infections )का सामना करता है तब एक सुरक्षा प्रबंध के रूप में उस इंफेक्शन से जूझने मुकाबला करने के लिए प्लाज़्मा कोशिकायें ये एंटीबॉडी बनातीं हैं। आततायी रोगकारकों के खिलाफ यह असलाह है ,गोला -बारूद है। जैसा और जिस किस्म का इंफेक्शन वैसा ही सुरक्षा इंतज़ाम खड़ा कर लेती हैं प्लाज़्मा कोशिकायें। सीमा सुरक्षा बल हैं ये हमारे रोगरोधी तंत्र का। ये चुन -चुन के रोग कारक आतताइयों विषाणु और जीवाणु किस्म- किस्म के पैथोजन्स (वायरस ,बैक्टीरिया आदि )को मारने का माद्दा रखतीं हैं।
इन इम्म्यूनो -ग्लोब्युलिन या प्रोटीनों की पांच किस्में इस प्रकार हैं :
(१)IgA
(२)IgG
(३ )IgM
(४ )IgD
(५) IgE
मायलोमा ग्रस्त प्रत्येक मरीज़ में मायलोमा कोषिकायें इन प्रतिपिंडों में से किसी एक की सामान्य प्रति न बनाके असामान्य किस्म बनाने लगतीं हैं।
You might hear your doctor calls the antibodies proteins ,para -proteins , or a monoclonal spike.
रोग के ज्यादातर मामलों में रक्त की जांच के दौरान ये असामान्य प्रतिपिंड रक्त में पता लग जाते हैं कुछ में इनका पता पेशाब की जांच में चलता है। ये असामान्य प्रतिपिंड रोग से जूझने में नाकामयाब रहते हैं। ये दोषपूर्ण इम्म्यूनोग्लोबुलिन अपने बचावी काम को ठीक से निभा ही नहीं पाते हैं।
संदर्भ -सामिग्री :
(१)http://www.cancerresearchuk.org/about-cancer/myeloma/about
(२ )http://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/multiple-myeloma/home/ovc-20342830
(३ )https://www.reference.com/science/substance-inside-bone-blood-cells-498fd7dc55cb36e6
(४ )https://en.wikipedia.org/wiki/Multiple_myeloma
(५)http://www.macmillan.org.uk/information-and-support/myeloma/understanding-cancer/what-is-myeloma.html
(६ )https://www.medicalnewstoday.com/articles/285666.php
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