भौतिक विज्ञानों के झरोखे से : क्या है -क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी अथवा हिमीकृत -इलेक्ट्रॉन सूक्ष्म दर्शन ? सीधे -सीधे परिभाषा ही ...
भौतिक विज्ञानों के झरोखे से :
क्या है -क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी अथवा हिमीकृत -इलेक्ट्रॉन सूक्ष्म दर्शन ?
सीधे -सीधे परिभाषा ही देनी हो तो कह सकते हैं :यह इलेक्ट्रॉन सूक्ष्म दर्शन की ही एक अनुकूलित (प्रशीतित )किस्म है, (Optimized electron microscopy ).
अपने आसपास के जीवन में विभिन्न चीज़ों के रूप में वास्तव में हम उन फोटानों (प्रकाश के अखंडनीय कणों क्वाण्टमों )को ही देखते हैं जो उनसे टकराके हमारी आँख की ओर लौट रहें हैं ,हमारी आँख के पर्दों से लौटके टकरा रहे हैं।
दिखलाई दे सकीं चीज़ों में पैदा विकृतियों (विरूपणों )का आकार यहां दृश्य प्रकाश की (फोटोन तरंगों )की अपनी तरंगों की लम्बाई के समतुल्य ही रहता है। इन विकृतियों से आकार में छोटी चीज़ें इसीलिए हम नंगी आँखों नहीं देख पाते हैं। यानी आकार में प्रकाश -तरंगों से कम चौड़ी चीज़ों से टकराके प्रकाश लौट ही नहीं पायेगा। प्रकाश से हमारा अभिप्राय यहां केवल दृश्य प्रकाश से है। यानी अन्वेषित वस्तु और अन्वेषी प्राविधि का आकार समतुल्य होना चाहिए।
रेडिओ -टेलीस्कोपों के आकार में दीर्घकाय होने की यही एक बड़ी वजह रही है। इनके एंटीना या अभिग्राही डिशों (receiver dishes )का आकार कमसे कम उस विद्युतचुंबकीय विकिरण के तुल्य तो रहना ही चाहिए जिसे ये अन्वेषित कर लेना चाहते हैं। जी हाँ रेडिओ -दूरबीनों की ऑंखें यही रेडिओ -वेव्ज़ ही होतीं हैं जिन्हें ये पकड़ते विश्लेषित करते हैं।ये अदृश्य रेडिओ -तरंगें अंतरिक्ष के मनोरम पिंडों की खबर देती हैं।अनंत दूरी के यात्री हैं तरंगें।
इलेक्ट्रोन सूक्ष्म दर्शी की आँखें इलेक्ट्रॉन पुंज ही होते हैं। प्रकाश सूक्ष्म -दर्शी की आँखें दृश्य- प्रकाश।
इलेक्ट्रॉन तरंगों की लम्बाई प्रकश तरंगों से कमतर रहती है इसीलिए इनकी विभेदन क्षमता अधिक रहती है। और इसीलिए ये जैव -अणुओं जैसी लघुतर इकाइयों को टोह लेने की क्षमता रखते हैं इनके अंदर ताक -झाँक कर सकते हैं देख सकते हैं वहां क्या खिचड़ी पक रही है परमाणुविक स्तर पर क्या लीला चल रही है।
विशेष :प्रकाश ही नहीं पदार्थ की भी अव -परमाणुविक गति -शील कणों के रूप में द्वैत प्रकृति मुखरित होती है यानी इलेक्ट्रॉन के संगत भी एक तरंग होती है। वह पदार्थ भी है तरंग भी है। यही तो माया-शक्ति है प्रभु की -इलेक्ट्रॉन यह भी है और वह भी है और दोनों ही नहीं है। प्रतीति है प्रायिकता है उस तरंग पेकिट(Wave Packet ) में इलेक्ट्रॉन के यहीं -कहीं होने की जिसका सृजन इलेक्ट्रॉन कण की उस गति से हुआ है जिसकी तुलना प्रकाश के वेग से की जा सकती है। कहाँ है इलेक्ट्रॉन का लोकस इसका कोई निश्चय नहीं रहता है।
इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप देखी गई सूक्ष्म चीज़ों को हमारे दर्शन के लिए आवर्धित करके प्रस्तुत करता है। अलबत्ता इलेक्ट्रॉन पुंजों का उन ऊतकों ,जैव अणुओं पर प्रतिकूल प्रभाव ज़रूर पड़ता है जिनका दर्शन वह प्रस्तुत करवा रहा है विस्तृत पड़ताल के बाद।
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी का आविष्कार १९३० में ही कर लिया गया था।
अलावा इसके इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के निर्वात- कक्ष में (वेक्यूम चैंबर )में जो निर्वात बना रहना ज़रूरी होता इसके असर से ऊतकों का जलीय अंश भी उड़ने लगता है सूख कर उनकी जैव -रासायनिक संरचना ही ढेर होने लगती है। ऐसे में यहां सब गुड़ गोबर हो जाता है यानी अन्वेषित जैव अणु ही जैव -रासायनिक रूप से टूटने बिखरने लगता है।
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्म दर्शी के अंदर के महौल में निर्वात में, अन्वेषित ऊतकों के रासायनिक -बंध भी खुल सकते हैं यदि चंद किलोवोल्टता वाले विद्युत् दाब (KILOVOLT ) पर भी इलेक्ट्रॉन पुंज काम रहा है ।
इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया २०१७ रसायन नोबेलमेन तिकड़ी सर्वश्री जेक्स डुबोशे ,जोआकिम फ्रेंक साहब ,रिचर्ड हेंडरसन महोदय ने। आपने इथेन माध्यम में इतनी तेज़ी से अन्वेषित जीवाणुओं (सैंपलों ) को प्रशीतित (हिमीकृत )किया ,उनकी जैव -रासायनिक संरचनाये ज्यों की त्यों रही जैसी इनके एक्शन में रहते थी।
विशेष :कैसे द्रवीकरण (अति -शीतलीकरण )तेज़ी से ठंडा करके किया गया साम्पिल का पढ़िए अगली क़िस्त में
क्या है -क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी अथवा हिमीकृत -इलेक्ट्रॉन सूक्ष्म दर्शन ?
सीधे -सीधे परिभाषा ही देनी हो तो कह सकते हैं :यह इलेक्ट्रॉन सूक्ष्म दर्शन की ही एक अनुकूलित (प्रशीतित )किस्म है, (Optimized electron microscopy ).
अपने आसपास के जीवन में विभिन्न चीज़ों के रूप में वास्तव में हम उन फोटानों (प्रकाश के अखंडनीय कणों क्वाण्टमों )को ही देखते हैं जो उनसे टकराके हमारी आँख की ओर लौट रहें हैं ,हमारी आँख के पर्दों से लौटके टकरा रहे हैं।
दिखलाई दे सकीं चीज़ों में पैदा विकृतियों (विरूपणों )का आकार यहां दृश्य प्रकाश की (फोटोन तरंगों )की अपनी तरंगों की लम्बाई के समतुल्य ही रहता है। इन विकृतियों से आकार में छोटी चीज़ें इसीलिए हम नंगी आँखों नहीं देख पाते हैं। यानी आकार में प्रकाश -तरंगों से कम चौड़ी चीज़ों से टकराके प्रकाश लौट ही नहीं पायेगा। प्रकाश से हमारा अभिप्राय यहां केवल दृश्य प्रकाश से है। यानी अन्वेषित वस्तु और अन्वेषी प्राविधि का आकार समतुल्य होना चाहिए।
रेडिओ -टेलीस्कोपों के आकार में दीर्घकाय होने की यही एक बड़ी वजह रही है। इनके एंटीना या अभिग्राही डिशों (receiver dishes )का आकार कमसे कम उस विद्युतचुंबकीय विकिरण के तुल्य तो रहना ही चाहिए जिसे ये अन्वेषित कर लेना चाहते हैं। जी हाँ रेडिओ -दूरबीनों की ऑंखें यही रेडिओ -वेव्ज़ ही होतीं हैं जिन्हें ये पकड़ते विश्लेषित करते हैं।ये अदृश्य रेडिओ -तरंगें अंतरिक्ष के मनोरम पिंडों की खबर देती हैं।अनंत दूरी के यात्री हैं तरंगें।
इलेक्ट्रोन सूक्ष्म दर्शी की आँखें इलेक्ट्रॉन पुंज ही होते हैं। प्रकाश सूक्ष्म -दर्शी की आँखें दृश्य- प्रकाश।
इलेक्ट्रॉन तरंगों की लम्बाई प्रकश तरंगों से कमतर रहती है इसीलिए इनकी विभेदन क्षमता अधिक रहती है। और इसीलिए ये जैव -अणुओं जैसी लघुतर इकाइयों को टोह लेने की क्षमता रखते हैं इनके अंदर ताक -झाँक कर सकते हैं देख सकते हैं वहां क्या खिचड़ी पक रही है परमाणुविक स्तर पर क्या लीला चल रही है।
विशेष :प्रकाश ही नहीं पदार्थ की भी अव -परमाणुविक गति -शील कणों के रूप में द्वैत प्रकृति मुखरित होती है यानी इलेक्ट्रॉन के संगत भी एक तरंग होती है। वह पदार्थ भी है तरंग भी है। यही तो माया-शक्ति है प्रभु की -इलेक्ट्रॉन यह भी है और वह भी है और दोनों ही नहीं है। प्रतीति है प्रायिकता है उस तरंग पेकिट(Wave Packet ) में इलेक्ट्रॉन के यहीं -कहीं होने की जिसका सृजन इलेक्ट्रॉन कण की उस गति से हुआ है जिसकी तुलना प्रकाश के वेग से की जा सकती है। कहाँ है इलेक्ट्रॉन का लोकस इसका कोई निश्चय नहीं रहता है।
इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप देखी गई सूक्ष्म चीज़ों को हमारे दर्शन के लिए आवर्धित करके प्रस्तुत करता है। अलबत्ता इलेक्ट्रॉन पुंजों का उन ऊतकों ,जैव अणुओं पर प्रतिकूल प्रभाव ज़रूर पड़ता है जिनका दर्शन वह प्रस्तुत करवा रहा है विस्तृत पड़ताल के बाद।
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी का आविष्कार १९३० में ही कर लिया गया था।
अलावा इसके इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के निर्वात- कक्ष में (वेक्यूम चैंबर )में जो निर्वात बना रहना ज़रूरी होता इसके असर से ऊतकों का जलीय अंश भी उड़ने लगता है सूख कर उनकी जैव -रासायनिक संरचना ही ढेर होने लगती है। ऐसे में यहां सब गुड़ गोबर हो जाता है यानी अन्वेषित जैव अणु ही जैव -रासायनिक रूप से टूटने बिखरने लगता है।
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्म दर्शी के अंदर के महौल में निर्वात में, अन्वेषित ऊतकों के रासायनिक -बंध भी खुल सकते हैं यदि चंद किलोवोल्टता वाले विद्युत् दाब (KILOVOLT ) पर भी इलेक्ट्रॉन पुंज काम रहा है ।
इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया २०१७ रसायन नोबेलमेन तिकड़ी सर्वश्री जेक्स डुबोशे ,जोआकिम फ्रेंक साहब ,रिचर्ड हेंडरसन महोदय ने। आपने इथेन माध्यम में इतनी तेज़ी से अन्वेषित जीवाणुओं (सैंपलों ) को प्रशीतित (हिमीकृत )किया ,उनकी जैव -रासायनिक संरचनाये ज्यों की त्यों रही जैसी इनके एक्शन में रहते थी।
विशेष :कैसे द्रवीकरण (अति -शीतलीकरण )तेज़ी से ठंडा करके किया गया साम्पिल का पढ़िए अगली क़िस्त में
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