ये मात्र आकस्मिक नहीं है कि फ्यूज़न (संग्लन )की वह क्रिया जो सूर्य एवं ऐसे ही खरबों -खरब सितारों की एटमी भट्टी में चल रही है वह उत्तरोत्तर अ...
ये मात्र आकस्मिक नहीं है कि फ्यूज़न (संग्लन )की वह क्रिया जो सूर्य एवं ऐसे ही खरबों -खरब सितारों की एटमी भट्टी में चल रही है वह उत्तरोत्तर अभिनव और अपेक्षाकृत भारी तत्व भी बनाती चलती है।शुरुआत हाइड्रोजन के ईंधन रूप में जलने से होती है जैसा कि हमारे सूर्य में इस समय भी हो रहा है जिसके फलस्वरूप अपेक्षाकृत भारी तत्व हीलियम बनता है। लेकिन यह सिलसिला सिर्फ यहीं नहीं थमता है।हीलियम हायड्रोजन ईंधन से भारी होने की वजह से कोर में डूबने लगता है।
हीलियम सितारे की कोर (केंद्रीय भाग )में जमा होने लगती है भारी होने की वजह से। आखिर में यही हीलियम कोर ही शेष रह जाती है। अब ईंधन के रूप में हीलियम ही उपलब्ध है जो जलकर कार्बन बना सकती है। क्योंकि हीलियम के जलने से और भी ज्यादा एनर्जी निकलती है। इसी प्रकार कार्बन भी ईंधन के रूप में सुलग फुंककर पहले से अब और भी ज्यादा ऊर्जा निर्गमित करती है (उत्सर्जित करती है, एमिट करती है ) ,इस प्रकार एक के बाद एक अपक्षाकृत भारी तत्वों का निर्माण सितारों की एटमी भट्टी में होता जाता है।जैसे ये कुदरत के सबसे बड़े रासायनिक कारखाने हो निगम हों ,अन्तर-ब्रह्मांडीय।
कह सकते हैं कुदरत की बख्शीश अप्रतिम फैक्ट्री हैं सितारों की एटमी भट्टी।
क्या अनंत काल तक चलता है चल सकता है यह सिलसिला ?
लोहा (लौहतत्व आयरन )के बनने पर ऊर्जा निर्गमित नहीं होती है ,एटमी भट्टी बुझने लगती है ,आयरन की कोर पनपने लगती है ,अब एक ऐसी स्थिति आती है जब यह कोर अपने ऊपर ही फोल्ड होने लगती है गुरुत्व के बोझ (केंद्र की तरफ खिचाव )तले दबने खपने लगती है।अब तापमान सौर तापमान का भी सौ गुना हो सकता है। ऐसा होने पर यदयपि ऐसा बिरले ही होता है ,कोर भारी विस्फोट के साथ फट जाती है।एक शोक वेव दौड़ती है सितारे के बचे खुचे भाग से इसके तले रौंदे कुचले जाकर आसपास के अंतरिक्ष में गोल्ड ,प्लेटिनम ,लेड के भी आयन (आवेशित एटम ,चार्जड एटम )बन सकते हैं।
कहा जा सकता है पृथ्वी की कोख में वर्तमान स्वर्ण की खाने सुदूर अंतरिक्ष की सौगातें ही हैं ,जो किसी सुपरनोवा विस्फोट का पृथ्वी को दिया हुआ बेशकीमती तोहफा हैं।
यहां भी सृष्टि का 'पुनरपि जन्मम ,पुनरपि मरणम ' यानी ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत काम कर रहा है। एक सितारा मरा है बहुत कुछ सौगातें दे गया है अपने अवशेष के रूप में जिससे आगे और भी सितारे बनेगें जिनकी कोर से भारी तत्व ही पैदा होवेंगे।
जीवन भी अंतरिक्ष की इन (आसमानी सुल्तानों ),सुल्तानी ताकतों से ही पृथ्वी पर आया है।हमारे शरीर में भी अल्पांश में ही सही इन तत्वों की दस्तक देखी जा सकती है।
बहुचर्चित खोज जो विज्ञान पत्रिकाओं की सुर्खी बनी है -किसी सुपरनोवा विस्फोट का ही योगदान है।
विशेष :https://veerubhai1947.blogspot.com/
जीवन की निष्कामता ,निरंतरता और नश्वरता की दीक्षा भी देते हैं सितारे
सितारों का जन्म इनके आसपास फैले धूल एवं गैस के बादलों से ही कालान्तर में होता है जो इनके अपने पूर्वजों के अवशेष रूप हाइड्रोजन ,हीलियम और अल्पांश रूप सभी गैसों के तनुकृत रूप में व्याप्त हैं। अंतरिक्ष का कोई भी भाग इससे शून्य नहीं है भले एक घनमीटर भाग में एक ही हाइड्रोजन का अणु या परमाणु हो।
और हाँ ! वृक्षों की तरह खुद अपनी ही खाद बन जाते हैं सितारे।
इनका जन्म ही तब होता है जब कोई विक्षोभ कहीं से चलकर कहीं पहुँच जाता है। फिर भले उसका उद्गम स्रोत सुदूर अतीत में हुआ चाहे कोई सुपरनोवा विस्फोट रहा हो या चुंबकीय विक्षोभ। बस गुरुत्वीय आकर्षण से बादल अपने कलेवर को बढ़ाता जाता है तब तक जब तक के इसकी एटमी भट्टी सुलगने न लगे और ऐसा तब होता है जब एक संतुलन इसके अपने केंद्र की ओर के गुरुत्वीय संकोचन (ग्रेविटेशनल कोलेप्स से पैदा )और बाहर की ओर काम करते विकिरण दाब में रेडिएशन प्रेशर में न हो जाए। बस यही प्रसवकाल है सितारे का।
जो अपनी लीला भुगता कर अपने हिस्से का ईंधन हज़म कर चल देता है गोलोक।
कबीर के अंदाज़ में :
'दास कबीर जतन करि ओढ़ी ,ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया '
https://thinkloud65.wordpress.com/2011/10/03/jhini-jhini-bini-chadariya-kabir/
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )http://hubblesite.org/reference_desk/faq/answer.php.id=30&cat=stars
(२ )http://spider.ipac.caltech.edu/staff/vandyk/supernova.html
(३ )https://www.youtube.com/watch?v=QfNqBKAvkpw
(४ )https://www.youtube.com/watch?v=tXV9mtY1AoI
(५ )https://www.infoplease.com/science-health/universe/birth-and-death-star
(६ )https://www.speakingtree.in/blog/yogic-meaning-of-popular-kabir-bhajan
हीलियम सितारे की कोर (केंद्रीय भाग )में जमा होने लगती है भारी होने की वजह से। आखिर में यही हीलियम कोर ही शेष रह जाती है। अब ईंधन के रूप में हीलियम ही उपलब्ध है जो जलकर कार्बन बना सकती है। क्योंकि हीलियम के जलने से और भी ज्यादा एनर्जी निकलती है। इसी प्रकार कार्बन भी ईंधन के रूप में सुलग फुंककर पहले से अब और भी ज्यादा ऊर्जा निर्गमित करती है (उत्सर्जित करती है, एमिट करती है ) ,इस प्रकार एक के बाद एक अपक्षाकृत भारी तत्वों का निर्माण सितारों की एटमी भट्टी में होता जाता है।जैसे ये कुदरत के सबसे बड़े रासायनिक कारखाने हो निगम हों ,अन्तर-ब्रह्मांडीय।
कह सकते हैं कुदरत की बख्शीश अप्रतिम फैक्ट्री हैं सितारों की एटमी भट्टी।
क्या अनंत काल तक चलता है चल सकता है यह सिलसिला ?
लोहा (लौहतत्व आयरन )के बनने पर ऊर्जा निर्गमित नहीं होती है ,एटमी भट्टी बुझने लगती है ,आयरन की कोर पनपने लगती है ,अब एक ऐसी स्थिति आती है जब यह कोर अपने ऊपर ही फोल्ड होने लगती है गुरुत्व के बोझ (केंद्र की तरफ खिचाव )तले दबने खपने लगती है।अब तापमान सौर तापमान का भी सौ गुना हो सकता है। ऐसा होने पर यदयपि ऐसा बिरले ही होता है ,कोर भारी विस्फोट के साथ फट जाती है।एक शोक वेव दौड़ती है सितारे के बचे खुचे भाग से इसके तले रौंदे कुचले जाकर आसपास के अंतरिक्ष में गोल्ड ,प्लेटिनम ,लेड के भी आयन (आवेशित एटम ,चार्जड एटम )बन सकते हैं।
कहा जा सकता है पृथ्वी की कोख में वर्तमान स्वर्ण की खाने सुदूर अंतरिक्ष की सौगातें ही हैं ,जो किसी सुपरनोवा विस्फोट का पृथ्वी को दिया हुआ बेशकीमती तोहफा हैं।
यहां भी सृष्टि का 'पुनरपि जन्मम ,पुनरपि मरणम ' यानी ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत काम कर रहा है। एक सितारा मरा है बहुत कुछ सौगातें दे गया है अपने अवशेष के रूप में जिससे आगे और भी सितारे बनेगें जिनकी कोर से भारी तत्व ही पैदा होवेंगे।
जीवन भी अंतरिक्ष की इन (आसमानी सुल्तानों ),सुल्तानी ताकतों से ही पृथ्वी पर आया है।हमारे शरीर में भी अल्पांश में ही सही इन तत्वों की दस्तक देखी जा सकती है।
बहुचर्चित खोज जो विज्ञान पत्रिकाओं की सुर्खी बनी है -किसी सुपरनोवा विस्फोट का ही योगदान है।
'Scientists discover neutron star collisions produce gold, platinum and other elements'
इन आसमानी ताकतों की ही बख्शीश है।
विशेष :यह इस श्रृंखला की आखिरी कड़ी थी। यानी
'Scientists discover neutron star collisions produce gold, platinum and other elements'(हिंदी )चौथी और अंतिम क़िस्त )
जीवन की निष्कामता ,निरंतरता और नश्वरता की दीक्षा भी देते हैं सितारे
सितारों का जन्म इनके आसपास फैले धूल एवं गैस के बादलों से ही कालान्तर में होता है जो इनके अपने पूर्वजों के अवशेष रूप हाइड्रोजन ,हीलियम और अल्पांश रूप सभी गैसों के तनुकृत रूप में व्याप्त हैं। अंतरिक्ष का कोई भी भाग इससे शून्य नहीं है भले एक घनमीटर भाग में एक ही हाइड्रोजन का अणु या परमाणु हो।
और हाँ ! वृक्षों की तरह खुद अपनी ही खाद बन जाते हैं सितारे।
इनका जन्म ही तब होता है जब कोई विक्षोभ कहीं से चलकर कहीं पहुँच जाता है। फिर भले उसका उद्गम स्रोत सुदूर अतीत में हुआ चाहे कोई सुपरनोवा विस्फोट रहा हो या चुंबकीय विक्षोभ। बस गुरुत्वीय आकर्षण से बादल अपने कलेवर को बढ़ाता जाता है तब तक जब तक के इसकी एटमी भट्टी सुलगने न लगे और ऐसा तब होता है जब एक संतुलन इसके अपने केंद्र की ओर के गुरुत्वीय संकोचन (ग्रेविटेशनल कोलेप्स से पैदा )और बाहर की ओर काम करते विकिरण दाब में रेडिएशन प्रेशर में न हो जाए। बस यही प्रसवकाल है सितारे का।
जो अपनी लीला भुगता कर अपने हिस्से का ईंधन हज़म कर चल देता है गोलोक।
कबीर के अंदाज़ में :
'दास कबीर जतन करि ओढ़ी ,ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया '
https://thinkloud65.wordpress.com/2011/10/03/jhini-jhini-bini-chadariya-kabir/
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )http://hubblesite.org/reference_desk/faq/answer.php.id=30&cat=stars
(२ )http://spider.ipac.caltech.edu/staff/vandyk/supernova.html
(३ )https://www.youtube.com/watch?v=QfNqBKAvkpw
(४ )https://www.youtube.com/watch?v=tXV9mtY1AoI
(५ )https://www.infoplease.com/science-health/universe/birth-and-death-star
(६ )https://www.speakingtree.in/blog/yogic-meaning-of-popular-kabir-bhajan
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