जैसा के हमने इस आलेख की पहली क़िस्त में भी बतलाया था -रेटिनल डिस्ट्रॉफी की अनेक स्ट्रेनें (Kinds या प्रकार हैं ,किस्में हैं )उनमें लेबर कंजे...
जैसा के हमने इस आलेख की पहली क़िस्त में भी बतलाया था -रेटिनल डिस्ट्रॉफी की अनेक स्ट्रेनें (Kinds या प्रकार हैं ,किस्में हैं )उनमें लेबर कंजेनिटल अमोरोसिस तथा रेटिनिटिस पिगमेंटोसा (leber congenital amaurosis और retinitis pigmentosa )भी शामिल हैं।
वास्तव में आरपीई -६५ (RPE-65 gene)नाम की एक जीन होती है जो विज़न साइकिल (बीनाई चक्र )को पूरा करवाने में अहम रोल निभाती है। यह प्रोटीन गैसोलीन बनाती है जो नेत्रों के सुचारु सामान्य प्रकार्य के लिए ज़रूरी होती है।यहां आप आँख के परदे की तुलना एक कार से कर सकते हैं। यानी इंजिन अभी चालू ही नहीं हुआ है तो कार कैसे चले। वो अहम कोशिकाएं इससे महरूम हैं वंचित हैं भूखों मरने लगीं हैं लेकिन इनकी मृत्यु होते होते ही होती है तात्कालिक मौत नहीं होती है इन कोशिकाओं की। मानो एक मिश्र,संकर ,हाईब्रीड इंजिन ही हों ये कोशिकाएं ,इनका प्रकार्य तो थम गया है ,लेकिन ये अभी टर्न आफ नहीं हुई हैं।
जीन चिकित्सा ज़रूरी गैसोलीन मुहैया करवा देती है।कोशिकाएं दिमाग को नज़र से ताल्लुक रखने वाले सन्देश भेजने लगतीं हैं ,नज़र चक्र एक बार फिर से पूरा हो जाता है और अंधत्व धीरे -धीरे ज़मीन छोड़कर भागने लगता है। बस देखने की प्रक्रिया संपन्न हो जाती है।
सारा काम एक मर्तबा की आनुवंशिक चिकित्सा कर देती है। अब दवाएं तो बारहा दी जाती हैं जो अपने घटकों में टूट जाती हैं लेकिन उपलब्ध नै जीवन इकाइयां (जींस )ज्यों की त्यों बनी रहती हैं रेटिना कोशिकाओं के लिए ये एक टेम्पलेट का काम करने लगतीं हैं ज़रूरी प्रोटीन (आरपीई -६५ ) बनाने लगती हैं .
एक मानव मित्रवत विषाणु (ह्यूमेन फ्रेंडली वायरस )को वाहन बनाकर सक्षम जीवन -इकाइयां रेटिना तक भेजी जातीं हैं।यह वायरस कईओं में पहले से ही रहता भी है। इससे कोई रोग पैदा नहीं होता है।
इसे अडिनो एसोसिएटेड वायरस (AAV )कहा जाता है।
अब से दो एक दशक पहले जीन -चिकित्सा में काम में लिए गए AAVs से इस बार इस्तेमाल की गई स्ट्रेन एक दम से अलग हैं ,वही नहीं हैं जिनकी वजह से पूर्व में जीन चिकित्सा को नाकामयाबी मिली थी। रेसिपिएंट का लिवर ही खराब हो गया था और उसे बचाया नहीं जा सका था।
इस बार रेटिना की विभिन्न कोशिकाओं को लक्षित किया गया है उन तक विषाणु के ज़रिये जीवन -इकाइयां पहुंचाई गईं हैं।
अलबत्ता एफडीए के कुछ सवालातों का ज़वाब अभी दिया जाना बाकी हैं जिनमें कुछ ये सवाल भी शामिल है :
(१ )क्या इलाज़ की एक ही बार जरूरत पड़ेगी
(२ )किस उम्र में ,आयु - वर्ग के लोगों को - इलाज़ मुहैया करवाया जा सकेगा ,शुरू किया जा सकेगा ,आबालवृद्धों सभी को ,कब ,किस उम्र में ?
(३ )अब तक संपन्न आज़माइशों की दीगर प्रामाणिकता आदि क्या है
एफडीए की इस बाबत नियुक्त एक समिति ने अभी सब कुछ ठीक ही बतलाया है अपनी सिफारिशों में जिन्हें नए साल के आरम्भ जनवरी १२ ,२०१८ तक हरी झंडी मिलने की प्रबल उम्मीद है। यही एफडीए की मजूरी होगी।अमूमन ये सिफारिशें मान ली जाती हैं।
मूल आलेख अंग्रेजी में भी देखें :
“The RPE-65 gene produces the gasoline that the retina needs in order to function,” Rose says, comparing the retina to a car. “So what happens is that the engine hasn’t even turned on. Those cells are being starved, and they’re going to die. But they don’t die immediately. They’re like a hybrid engine. They’re stopped, but not turned off.”
The gene therapy allows the retina to start producing the “gasoline” it needs, which allows the cells to send the signals to the brain. Those signals are how humans see.
People with these conditions should only need to be treated with the therapy once, Rose says. Unlike drugs, genes aren’t broken down in the body. Instead, the retinal cells will use the genes like templates to produce the necessary proteins. They should never be destroyed in the process.
The virus used to get the gene into the eye in the first place is called an adeno-associated virus (AAV). This kind of virus doesn’t cause disease in humans—in fact, most people already have some in their body.
Reference:
(1)http://www.newsweek.com/2017/10/27/gene-therapy-how-new-cure-blindness-reverses-retinal-dystrophy-683335.html
(3)NEWSWEEK U.S EDITION THUS ,NOV 30,2017
वास्तव में आरपीई -६५ (RPE-65 gene)नाम की एक जीन होती है जो विज़न साइकिल (बीनाई चक्र )को पूरा करवाने में अहम रोल निभाती है। यह प्रोटीन गैसोलीन बनाती है जो नेत्रों के सुचारु सामान्य प्रकार्य के लिए ज़रूरी होती है।यहां आप आँख के परदे की तुलना एक कार से कर सकते हैं। यानी इंजिन अभी चालू ही नहीं हुआ है तो कार कैसे चले। वो अहम कोशिकाएं इससे महरूम हैं वंचित हैं भूखों मरने लगीं हैं लेकिन इनकी मृत्यु होते होते ही होती है तात्कालिक मौत नहीं होती है इन कोशिकाओं की। मानो एक मिश्र,संकर ,हाईब्रीड इंजिन ही हों ये कोशिकाएं ,इनका प्रकार्य तो थम गया है ,लेकिन ये अभी टर्न आफ नहीं हुई हैं।
जीन चिकित्सा ज़रूरी गैसोलीन मुहैया करवा देती है।कोशिकाएं दिमाग को नज़र से ताल्लुक रखने वाले सन्देश भेजने लगतीं हैं ,नज़र चक्र एक बार फिर से पूरा हो जाता है और अंधत्व धीरे -धीरे ज़मीन छोड़कर भागने लगता है। बस देखने की प्रक्रिया संपन्न हो जाती है।
सारा काम एक मर्तबा की आनुवंशिक चिकित्सा कर देती है। अब दवाएं तो बारहा दी जाती हैं जो अपने घटकों में टूट जाती हैं लेकिन उपलब्ध नै जीवन इकाइयां (जींस )ज्यों की त्यों बनी रहती हैं रेटिना कोशिकाओं के लिए ये एक टेम्पलेट का काम करने लगतीं हैं ज़रूरी प्रोटीन (आरपीई -६५ ) बनाने लगती हैं .
एक मानव मित्रवत विषाणु (ह्यूमेन फ्रेंडली वायरस )को वाहन बनाकर सक्षम जीवन -इकाइयां रेटिना तक भेजी जातीं हैं।यह वायरस कईओं में पहले से ही रहता भी है। इससे कोई रोग पैदा नहीं होता है।
इसे अडिनो एसोसिएटेड वायरस (AAV )कहा जाता है।
अब से दो एक दशक पहले जीन -चिकित्सा में काम में लिए गए AAVs से इस बार इस्तेमाल की गई स्ट्रेन एक दम से अलग हैं ,वही नहीं हैं जिनकी वजह से पूर्व में जीन चिकित्सा को नाकामयाबी मिली थी। रेसिपिएंट का लिवर ही खराब हो गया था और उसे बचाया नहीं जा सका था।
इस बार रेटिना की विभिन्न कोशिकाओं को लक्षित किया गया है उन तक विषाणु के ज़रिये जीवन -इकाइयां पहुंचाई गईं हैं।
अलबत्ता एफडीए के कुछ सवालातों का ज़वाब अभी दिया जाना बाकी हैं जिनमें कुछ ये सवाल भी शामिल है :
(१ )क्या इलाज़ की एक ही बार जरूरत पड़ेगी
(२ )किस उम्र में ,आयु - वर्ग के लोगों को - इलाज़ मुहैया करवाया जा सकेगा ,शुरू किया जा सकेगा ,आबालवृद्धों सभी को ,कब ,किस उम्र में ?
(३ )अब तक संपन्न आज़माइशों की दीगर प्रामाणिकता आदि क्या है
एफडीए की इस बाबत नियुक्त एक समिति ने अभी सब कुछ ठीक ही बतलाया है अपनी सिफारिशों में जिन्हें नए साल के आरम्भ जनवरी १२ ,२०१८ तक हरी झंडी मिलने की प्रबल उम्मीद है। यही एफडीए की मजूरी होगी।अमूमन ये सिफारिशें मान ली जाती हैं।
मूल आलेख अंग्रेजी में भी देखें :
“The RPE-65 gene produces the gasoline that the retina needs in order to function,” Rose says, comparing the retina to a car. “So what happens is that the engine hasn’t even turned on. Those cells are being starved, and they’re going to die. But they don’t die immediately. They’re like a hybrid engine. They’re stopped, but not turned off.”
The gene therapy allows the retina to start producing the “gasoline” it needs, which allows the cells to send the signals to the brain. Those signals are how humans see.
People with these conditions should only need to be treated with the therapy once, Rose says. Unlike drugs, genes aren’t broken down in the body. Instead, the retinal cells will use the genes like templates to produce the necessary proteins. They should never be destroyed in the process.
The virus used to get the gene into the eye in the first place is called an adeno-associated virus (AAV). This kind of virus doesn’t cause disease in humans—in fact, most people already have some in their body.
AAVs are not the same kind of virus that was used in the first attempt at a gene therapy decades ago. In 1999, Jesse Gelsinger died after being treated with a gene therapy using an adenovirus for a condition that affected his liver.
But this gene therapy is different in many ways from the one Gelsinger tried, Rose says. “We have a different type of virus than Jesse Gelsinger received; we’re not doing it systematically, we’re using a virus that doesn’t cause disease, and with these different serotypes, we can target different cells within the retina.”
The FDA had some questions before the treatment can be approved, which a panel of experts asked on Thursday. Many of their questions were expected to center around the validity of tests used in clinical trials, the age at which patients could be treated and the likelihood that people might need more than one treatment.
The panel voted 16-0 that the treatment benefits seemed to outweigh the risks. Though not binding, this vote was important; the FDA often follows the advice of the committee when it considers whether to approve a drug.
The FDA must make its final decision before January 12.
Reference:
(1)http://www.newsweek.com/2017/10/27/gene-therapy-how-new-cure-blindness-reverses-retinal-dystrophy-683335.html
(3)NEWSWEEK U.S EDITION THUS ,NOV 30,2017
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