Ibuprofen linked to male infertility, study says पुरुष बांझपन से जोड़ा गया आइबूप्रोफेन का सम्बन्ध ताज़ा शोध से पता चला है ...
Ibuprofen linked to male infertility, study says
ताज़ा शोध से पता चला है के आम इस्तेमाल में ली जाने वाली आइबूप्रोफेन तथा कई और गैर -स्टेरॉयड दर्दनाशी दवाएं मर्दों के अंडकोषों पर अमान्य उलटा प्रभाव डाल रही हैं ।
एक अध्ययन में जब इसकी वही खुराक जो खिलाड़ियों को पेशीय थकान से बचाव के लिए दी जाती है (१२०० मिलीग्राम -छः सौ ,छः सौ ग्राम की दिन में दो बार दी जाने वाली मानक खुराक )कुछ युवाओं को एक ख़ास अवधि तक दी गई तो उनमें अंडकोष द्वारा तैयार कुछ हार्मोनों की स्थिति वही मिली जो प्रौढ़ावस्था में मिलती है जबकि इसी अध्ययन में शामिल कंट्रोल ग्रुप में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला ये वे लोग थे जिन्हें दर्दनाशी के स्थान पर छद्म गोली 'प्लेसिबो' दी गई थी जो एक न्यूट्रल साल्ट था।
बिना डॉक्टरी पर्ची या नुश्खे के यह वह दवा है जो व्यावसायिक नाम एडविल और मॉर्टिन के नाम से अमरिका भर में फार्मेसी से आप कभी भी खरीद सकते हैं २४ x ७ x ३६५।
यह अध्ययन कोई नया भी नहीं है वास्तव में यह उस अध्ययन का विस्तार है जिसमें एस्पिरिन , अस्टमीनोफेन (acetaminophen एसिटामिनोफेन),पेरासिटामोल के साथ -साथ आइबूप्रोफेन की पड़ताल भावी प्रसूताओं द्वारा किये जाने वाले इस्तेमाल को लेकर की जाती रही है। जिसमें बहुविध अध्ययनों से यह बात सामने आई थी के इन दवाओं के असर से नर - शिशु के अंडकोष सिकुड़ने लगते हैं।और इनसे गर्भावस्था में बचे रहने की सलाह ही दी जाती रही है।
पुरुषों के अंडकोष सिर्फ स्पर्म्स (स्पर्मेटाज़ोआ ,वीर्य या शुक्र )ही नहीं बनाते हैं पुरुष -हारमोन टेस्टास्टरोन का निर्माण भी करते हैं।
ये तीनों दवाएं इनके स्वाभाविक स्राव को विच्छिन्न कर देती हैं.
गर्भस्थ में जन्मपूर्व विकृतियां भी इस अध्ययन में लगाए गए अनुमानों के अनुसार आ सकतीं हैं।
अध्ययन में आइबूप्रोफेन के असर ज्यादा गंभीर दिखलाई दिए हैं।
गर्भस्थ में जन्मपूर्व विकृतियां भी इस अध्ययन में लगाए गए अनुमानों के अनुसार आ सकतीं हैं।
अध्ययन में आइबूप्रोफेन के असर ज्यादा गंभीर दिखलाई दिए हैं।
सबसे ज्यादा असरग्रस्त वह हारमोन (luteinizing hormones) हुये जो पीयूषग्रंथि (pituitary gland )द्वारा स्रावित होते हैं तथा अंडकोषों को पुरुष -हार्मोन के निर्माण के लिए प्रेरित करते हैं।
इसीलिए ये तीनों दर्द नाशी (दवाएं )एंटी -एंड्रोजेनिक कही गईं हैं।
इनसे इस प्रकार पैदा हार्मोन असंतुलन हारमोन की विच्छिन्नता को compensated
इसीलिए ये तीनों दर्द नाशी (दवाएं )एंटी -एंड्रोजेनिक कही गईं हैं।
इनसे इस प्रकार पैदा हार्मोन असंतुलन हारमोन की विच्छिन्नता को compensated
hypogonadism,कहा गया है। इसी स्थिति का संबंध बाधित प्रजनन क्षमता ,अवसाद और हृदय और हृदय रक्त संचरण रोगों के खतरे के बढे हुए वजन से जोड़ा गया है।
हार्ट फेलियर और आघात (ब्रेन अटेक )का बढ़ा हुआ खतरा भी इसी के तहत आएगा।
स्रावी तंत्र की उन कोशिकाओं पर जो पुरुष हार्मोन तैयार करती हैं शरीर के भीतर और बाहर तथा परखनली या पेट्रो डिश में आइबूप्रोफेन के पड़ने वाले प्रभावों की भी पड़ताल की गई है कोशिश ज़ारी है यह पता लगाने की के इन दवाओं के दीर्घकालिक प्रभाव क्या स्थाई रूप से पड़ते हैं या इनसे मुक्ति भी मिल सकती है।
फिलवक्त तो निष्कर्ष यही है ये तीनों दर्दनाशी गैर स्टेरॉयड दवाएं गर्भस्थ नरशिशु के अंडकोषों को प्रभावित करतीं हैं गर्भवती द्वारा इनका सेवन करते रहने पर पैदा शिशु जन्मजात जन्मपूर्व विकृतियों से भी ग्रस्त हो सकते हैं।
बेहतर है गर्भावस्था में इन्हें इस्तेमाल करने से पहले अपने चिकित्सक से पूछ लिया जाए।
बांझपन को लेकर आज स्थिति यह है के गरीब देशों -विकासशील देशों के चार में से एक दम्पति पांच बरसों तक लगातार संतान की चाहना रखते हुए भी संतान हीन हैं।
एक अन्य अध्ययन के मुताबिक़ दुनिया भर में प्रजनन क्षमआयुवर्ग के कमसे कम साढ़े चार करोड़ दम्पति २०१० में संतान हीन थे। अनुमान लगाया गया है यह विश्वभर के दम्पतियों का १५ % है।
एक और स्वतंत्र अध्ययन के मुताबिक़ तीस फीसद संतान हीनता की वजह विश्वभर में पुरुषबाँझपन है कुलमिलाकर संतान हीनता के लिए पचास फीसद मर्द ही जिम्मेवार हैं।
देखिये तमगा फिर भी बांझपन का औरत पर लग जाता है।
प्रजनन से ताल्लुक रखने वाली एक विज्ञान पत्रिका के एक ताज़ा अध्ययन विश्लेषण से यह बात प्रकाश में आई है के उत्तरी अमरीका ,न्यूज़ीलैंड ,योरोप और ऑस्ट्रेलिया के मर्दों का स्पर्म काउंट लगातार गिरा है।
२०११ तक गुज़िश्ता चालीस बरसों में शुक्र सांद्रता (स्पर्म कंसन्ट्रेशन )में ५२ % तथा स्पर्म काउंट (एक इजेकुलेशन में मौजूद शुक्राणु )में ५९ %की गिरावट दर्ज़ हुई है।
शुक्राणु का अपना जीव विज्ञान है प्रजनन और स्पर्म बायलॉजी है आज यह विशेषज्ञता के क्षेत्र में आता है.
दवा -निगम दवा निर्माण के समय इस पर विचार नहीं करते हैं के बाज़ार में जिस नई दवा को वह उतार रहे हैं इसके घटकों का इस सब पर क्या प्रभाव पड़ेगा।कहीं स्पर्म की गुणवत्ता तो असरग्रस्त नहीं हो जाएगी।
जबकि यह पुष्ट हो चुका है के पुरुष प्रजनन तंत्र को कुछ दवाएं जैसे टेस्टस्टेरॉन्स ,कई एंटीडिप्रेसेंट्स ,ओपिऑइड्स (मार्फिन सदृश्य ),कई मानसिकरोगों के प्रबंधन में प्रयुक्त एंटी -साइकोटिक्स दवाएं ,तथा इम्यून मोडलेटर्स असरग्रस्त करतीं ही हैं।
चर्चित ताज़ा शोध से यह बात सामने आई है के आइबूप्रोफेन का इस्तेमाल तंदरुस्त लोगों में प्रजनन हारमोन को विच्छिन्न करता है हो सकता है कमतर प्रजनन क्षमता वाले पुरुषों पर ये दुष्प्रभाव ज्यादा पड़ते हों।
बेहतर है संतान प्राप्त करने के नियोजन में व्यस्त पुरुष cimetidine and acetaminophen के इस्तेमाल से भी बचे रहें ऐसी माहिरों सलाह है।
स्रावी तंत्र की उन कोशिकाओं पर जो पुरुष हार्मोन तैयार करती हैं शरीर के भीतर और बाहर तथा परखनली या पेट्रो डिश में आइबूप्रोफेन के पड़ने वाले प्रभावों की भी पड़ताल की गई है कोशिश ज़ारी है यह पता लगाने की के इन दवाओं के दीर्घकालिक प्रभाव क्या स्थाई रूप से पड़ते हैं या इनसे मुक्ति भी मिल सकती है।
फिलवक्त तो निष्कर्ष यही है ये तीनों दर्दनाशी गैर स्टेरॉयड दवाएं गर्भस्थ नरशिशु के अंडकोषों को प्रभावित करतीं हैं गर्भवती द्वारा इनका सेवन करते रहने पर पैदा शिशु जन्मजात जन्मपूर्व विकृतियों से भी ग्रस्त हो सकते हैं।
बेहतर है गर्भावस्था में इन्हें इस्तेमाल करने से पहले अपने चिकित्सक से पूछ लिया जाए।
बांझपन को लेकर आज स्थिति यह है के गरीब देशों -विकासशील देशों के चार में से एक दम्पति पांच बरसों तक लगातार संतान की चाहना रखते हुए भी संतान हीन हैं।
एक अन्य अध्ययन के मुताबिक़ दुनिया भर में प्रजनन क्षमआयुवर्ग के कमसे कम साढ़े चार करोड़ दम्पति २०१० में संतान हीन थे। अनुमान लगाया गया है यह विश्वभर के दम्पतियों का १५ % है।
एक और स्वतंत्र अध्ययन के मुताबिक़ तीस फीसद संतान हीनता की वजह विश्वभर में पुरुषबाँझपन है कुलमिलाकर संतान हीनता के लिए पचास फीसद मर्द ही जिम्मेवार हैं।
देखिये तमगा फिर भी बांझपन का औरत पर लग जाता है।
प्रजनन से ताल्लुक रखने वाली एक विज्ञान पत्रिका के एक ताज़ा अध्ययन विश्लेषण से यह बात प्रकाश में आई है के उत्तरी अमरीका ,न्यूज़ीलैंड ,योरोप और ऑस्ट्रेलिया के मर्दों का स्पर्म काउंट लगातार गिरा है।
२०११ तक गुज़िश्ता चालीस बरसों में शुक्र सांद्रता (स्पर्म कंसन्ट्रेशन )में ५२ % तथा स्पर्म काउंट (एक इजेकुलेशन में मौजूद शुक्राणु )में ५९ %की गिरावट दर्ज़ हुई है।
शुक्राणु का अपना जीव विज्ञान है प्रजनन और स्पर्म बायलॉजी है आज यह विशेषज्ञता के क्षेत्र में आता है.
दवा -निगम दवा निर्माण के समय इस पर विचार नहीं करते हैं के बाज़ार में जिस नई दवा को वह उतार रहे हैं इसके घटकों का इस सब पर क्या प्रभाव पड़ेगा।कहीं स्पर्म की गुणवत्ता तो असरग्रस्त नहीं हो जाएगी।
जबकि यह पुष्ट हो चुका है के पुरुष प्रजनन तंत्र को कुछ दवाएं जैसे टेस्टस्टेरॉन्स ,कई एंटीडिप्रेसेंट्स ,ओपिऑइड्स (मार्फिन सदृश्य ),कई मानसिकरोगों के प्रबंधन में प्रयुक्त एंटी -साइकोटिक्स दवाएं ,तथा इम्यून मोडलेटर्स असरग्रस्त करतीं ही हैं।
चर्चित ताज़ा शोध से यह बात सामने आई है के आइबूप्रोफेन का इस्तेमाल तंदरुस्त लोगों में प्रजनन हारमोन को विच्छिन्न करता है हो सकता है कमतर प्रजनन क्षमता वाले पुरुषों पर ये दुष्प्रभाव ज्यादा पड़ते हों।
बेहतर है संतान प्राप्त करने के नियोजन में व्यस्त पुरुष cimetidine and acetaminophen के इस्तेमाल से भी बचे रहें ऐसी माहिरों सलाह है।
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