हाल ही में मैसाच्युसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (अमरीका )के विज्ञानकर्मियों ने पता लगाया ,मूषकों पर ४० हर्ट्ज़ आवर्ती की रोशनियां और ध्वनि तरं...
हाल ही में मैसाच्युसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (अमरीका )के विज्ञानकर्मियों ने पता लगाया ,मूषकों पर ४० हर्ट्ज़ आवर्ती की रोशनियां और ध्वनि तरंगें डालने पर उनके दिमाग (मस्तिष्क ,ब्रेन )में मौजूद प्लाक का सफाया होने लगता है।
यही प्लाक मनुष्यों में भी अल्झाइमर्स और कई अन्य अपविकासी ( डी -जेनरेटिव ब्रेन डिज़ीज़ )की वजह बनता है।
विदित हो ,हमारा मस्तिष्क गहन ध्यानावस्था (मेडिटेशन )में गामा तरंगें पैदा करता है। इनकी आवृति परास (फ्रीक्युएंसी रेंज २५ -१०० हर्ट्ज़ )तक होती है। लेकिन औसतन आवृती ४० हर्ट्ज़ होती है। गहन ध्यान मग्न योगियों पर संपन्न अध्ययनों से भी अनेक अध्ययनों में इस बात की पूर्व में पुष्टि हुई है। जबकि सुसुप्तावस्था (डीप स्लीप ,ड्रीमलेस डीप स्लीप )यानी गहन निंद्रा की अवस्था में हमारा मस्तिष्क डेल्टा और अल्फा तरंगें पैदा करता है।इनकी आवृत्ति जबकि ४ -१२ हर्ट्ज़ रहती है।
दिमाग के एकल कोशिका या न्यूरॉन और हमारी याददाश्त
अल्झाइमर्स रोग में न्यूरॉन के सेतुबन्धों के गिर्द एक प्रोटीन बीटा एम्लोयड मिसफोल्ड होकर अपने टुकड़ों से बे -तरतीब गुच्छ या गुच्छे बनाने लगती है यही प्लाक कह लाता है।न्यूरानों के बीच संवाद का पुल यही प्लाक तोड़ने लगते हैं इसीलिए इस रोग में स्मृति ह्रास यानी यादगार का क्षय देखने में आता है।जैसे -जैसे दुनिया बाहर में सीनियर सिटिजंस की संख्या उम्र में इज़ाफ़ा होने के साथ बढ़ने लगी है अल्झाइमर्स रिसर्च को तवज्जो मिलना लाज़िमी सा हो गया है क्योंकि इसे बुढ़ापे का सठियाना कभी कभार ना -दानी में मान लिया जाता है जबकि यह एक लाइलाज दीर्घकालिक रोग है जिसमें दिमाग ही अपविकास के फलस्वरूप सिकुड़के छोटा कम होता चला जाता है।
मंत्रोच्चार की भारतीय पद्धति इस स्मृति ह्रास को मुल्तवी रखने में कारगर मानी जाने लगी है। यहां रटंत विद्या खूब फलवती होती है क्योंकि यह याददाश्त को पुख्ता बनाती है। हमारी पीढ़ी के तमाम लोगों को पच्चीस तक पहाड़े (टेबिल्स )आज भी कंठस्थ हैं याद हैं। यहां विद्याक भूमिका में वही ४० हर्ट्ज़ आवृति तरंगें हैं जो मंत्रोच्चार की विशेष पद्धति आरोह अवरोह से पैदा होतीं हैं। यही अनुनासिक एवं मधुर ध्वनियाँ मस्तिष्क को तरंगित रखतीं हैं तथा ४० हर्ट्ज़ की आवृति की प्रायिकता संभावना को बढ़ा देतीं हैं।
श्रव्य और दृश्य कोर्टेक्स -सिग्नल ,सम्प्रेषण संकेत का संशाधन, यहीं कहीं दिमाग के किसी हिस्से में होता है कैसे पैदा होतीं हैं यह ख़ास आवर्ती तरंगें मंत्रोच्चार से इसकी यांत्रिकी अभी अनुमेय ही है।
अनुमान है दिमाग के एक हिस्से जिसकी आकृति समुद्री घोड़े से मिलती जुलती है तथा जो न्यूरानों का जाल मात्र है और हिप्पोकैम्पस कहलाता है इन तरंगों से सकारात्मक संकेत ग्रहण करता है। यही दिमाग का वह हिस्सा है जिसका याददाश्त से संबंध है तथा जो प्लाक से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। प्लाक के सफाये की शुरुआत यहीं कहीं से होती है। और मस्तिष्क के उन बाकी भागों तक चली जाती है जहां जहां प्लाक ने डेरा जमाया है।
सनातन परम्परा में ॐ या प्रणव सिर्फ परमात्मा या वाहगुरु का ही नाम नहीं है इसके उच्चारण से हमारा सृष्टि बोध जागृत होता है। बाधाएं दूर रहतीं हैं इस संज्ञान से इसी जादुई ४० आवृति तरंगों से जो ॐ के उच्चारण से पैदा होती हैं। एक ओंगकार (औंकार )यही है।
यही प्लाक मनुष्यों में भी अल्झाइमर्स और कई अन्य अपविकासी ( डी -जेनरेटिव ब्रेन डिज़ीज़ )की वजह बनता है।
विदित हो ,हमारा मस्तिष्क गहन ध्यानावस्था (मेडिटेशन )में गामा तरंगें पैदा करता है। इनकी आवृति परास (फ्रीक्युएंसी रेंज २५ -१०० हर्ट्ज़ )तक होती है। लेकिन औसतन आवृती ४० हर्ट्ज़ होती है। गहन ध्यान मग्न योगियों पर संपन्न अध्ययनों से भी अनेक अध्ययनों में इस बात की पूर्व में पुष्टि हुई है। जबकि सुसुप्तावस्था (डीप स्लीप ,ड्रीमलेस डीप स्लीप )यानी गहन निंद्रा की अवस्था में हमारा मस्तिष्क डेल्टा और अल्फा तरंगें पैदा करता है।इनकी आवृत्ति जबकि ४ -१२ हर्ट्ज़ रहती है।
दिमाग के एकल कोशिका या न्यूरॉन और हमारी याददाश्त
अल्झाइमर्स रोग में न्यूरॉन के सेतुबन्धों के गिर्द एक प्रोटीन बीटा एम्लोयड मिसफोल्ड होकर अपने टुकड़ों से बे -तरतीब गुच्छ या गुच्छे बनाने लगती है यही प्लाक कह लाता है।न्यूरानों के बीच संवाद का पुल यही प्लाक तोड़ने लगते हैं इसीलिए इस रोग में स्मृति ह्रास यानी यादगार का क्षय देखने में आता है।जैसे -जैसे दुनिया बाहर में सीनियर सिटिजंस की संख्या उम्र में इज़ाफ़ा होने के साथ बढ़ने लगी है अल्झाइमर्स रिसर्च को तवज्जो मिलना लाज़िमी सा हो गया है क्योंकि इसे बुढ़ापे का सठियाना कभी कभार ना -दानी में मान लिया जाता है जबकि यह एक लाइलाज दीर्घकालिक रोग है जिसमें दिमाग ही अपविकास के फलस्वरूप सिकुड़के छोटा कम होता चला जाता है।
मंत्रोच्चार की भारतीय पद्धति इस स्मृति ह्रास को मुल्तवी रखने में कारगर मानी जाने लगी है। यहां रटंत विद्या खूब फलवती होती है क्योंकि यह याददाश्त को पुख्ता बनाती है। हमारी पीढ़ी के तमाम लोगों को पच्चीस तक पहाड़े (टेबिल्स )आज भी कंठस्थ हैं याद हैं। यहां विद्याक भूमिका में वही ४० हर्ट्ज़ आवृति तरंगें हैं जो मंत्रोच्चार की विशेष पद्धति आरोह अवरोह से पैदा होतीं हैं। यही अनुनासिक एवं मधुर ध्वनियाँ मस्तिष्क को तरंगित रखतीं हैं तथा ४० हर्ट्ज़ की आवृति की प्रायिकता संभावना को बढ़ा देतीं हैं।
श्रव्य और दृश्य कोर्टेक्स -सिग्नल ,सम्प्रेषण संकेत का संशाधन, यहीं कहीं दिमाग के किसी हिस्से में होता है कैसे पैदा होतीं हैं यह ख़ास आवर्ती तरंगें मंत्रोच्चार से इसकी यांत्रिकी अभी अनुमेय ही है।
अनुमान है दिमाग के एक हिस्से जिसकी आकृति समुद्री घोड़े से मिलती जुलती है तथा जो न्यूरानों का जाल मात्र है और हिप्पोकैम्पस कहलाता है इन तरंगों से सकारात्मक संकेत ग्रहण करता है। यही दिमाग का वह हिस्सा है जिसका याददाश्त से संबंध है तथा जो प्लाक से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। प्लाक के सफाये की शुरुआत यहीं कहीं से होती है। और मस्तिष्क के उन बाकी भागों तक चली जाती है जहां जहां प्लाक ने डेरा जमाया है।
सनातन परम्परा में ॐ या प्रणव सिर्फ परमात्मा या वाहगुरु का ही नाम नहीं है इसके उच्चारण से हमारा सृष्टि बोध जागृत होता है। बाधाएं दूर रहतीं हैं इस संज्ञान से इसी जादुई ४० आवृति तरंगों से जो ॐ के उच्चारण से पैदा होती हैं। एक ओंगकार (औंकार )यही है।
Recently scientists at MIT, USA have discovered that exposing mice to 40 hertz light signals and sound waves remove the plaques in their brain. These plaques are the cause of Alzheimer’s and other brain diseases that reduce our memories.
When the brain is under deep meditation or concentration, gamma waves are produced. These waves range anywhere from 25-100 hertz but have an average frequency of 40 hertz. A large number of studies on meditating yogis’ brains have revealed that these waves are produced under deep meditation and concentration. On the other hand, deep sleep produces delta and alpha waves that vary from 4-12 hertz.
Neurons and memory
Alzheimer’s disease is a disease of brain where clumps of misfolded protein fragments called amyloid-beta produce plaques around synapses – the connecting point between neurons. These plaques stop neurons from communicating, thus destroying memory. Nobody knows how these plaques are formed and world over research is being conducted on how to remove them. As the world’s population is ageing, more research is being carried out on Alzheimer’s and other brain diseases that affect mostly the elderly population.
Ancient Indian system of meditation and chanting Sanskrit shlokas and hymns may provide a possible solution for reducing risk of Alzheimer’s.
Scientists have recently discovered that people who chant Sanskrit shlokas have better memory. There is speculation that continuous chanting of shlokas requires memorising them a lot and it helps in memory improvement and consolidation. It is just like memorising arithmetic tables that all of us old-timers were taught when we were kids. It is also conjectured that people with better memories have less chance of getting Alzheimer’s and other brain diseases.
Mantra vibrations
The nasal and sonorous sound of proper recitation of mantras creates vibrations inside the brain that increases the probability of producing 40 hertz brain waves. Since both auditory and visual cortex, where sound and light signals respectively are processed, are in a certain section of the brain, we still do not know the exact mechanics of how such sound waves create 40 hertz for the whole brain.
Some scientists speculate that the hippocampus, which is the memory region of the brain, is positively affected by this chanting. Hippocampus is the first region of the brain affected by plaques. If plaque reduction in this region can be affected, then this cascading effect can be felt in other areas also.
The Aum sound
This could also be a possible reason why chanting of “Aum”, which has nasal tone, may have been suggested in our ancient texts as a means of meditation. Besides chanting shlokas also helps in meditation since it focusses the brain on this activity.
Patanjali clearly mentions in his yoga darshan that repeating this mantra produces knowledge of Universal consciousness and destroys obstacles to that knowledge. Naturally the word mentioned in Yoga Sutras is Pranava (the original word) which could be the “Brahmn Naad”. Yogis believe that this deep hum, which is close to 40 hertz, is the Brahmn Naad.
https://blogs.timesofindia.indiatimes.com/toi-edit-page/chanting-could-reduce-risk-of-alzheimers/
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