आये कुछ अब्र कुछ शराब आये , उसके बाद आये जो अजाब आये। फैज़ एहमद फैज़ साहब की ग़ज़ल का ये मशहूर मतला और ग्लोबाल वार्मिंग से बढ़ता हुआ ख़तरा अंग...
आये कुछ अब्र कुछ शराब आये ,
उसके बाद आये जो अजाब आये।
फैज़ एहमद फैज़ साहब की ग़ज़ल का ये मशहूर मतला और ग्लोबाल वार्मिंग से बढ़ता हुआ ख़तरा अंगूर की बेटी पे भारी पड़ सकता है। (देखें :Global warming may lead to wine shortage,THE INDEPENDENT ).बड़ा नाज़ुक मसला है अंगूर की बागवानी के लिए ताप बजट। तापमान में थोड़ी भी घटबढ़ यहां प्रति एकड़ उत्पाद को असरग्रस्त कर सकती है। ऐसे में एक ही विकल्प बचता है :नै अभिनव प्रजातियां या तो विकसित की जाएं या बढ़ते हुए तापमानों के सबब घटते अंगूर उत्पादों का दृष्टा बना जायें सोमरस की देवी को याद करें.
दुनिया भर में जिस तरह से ऊर्जा की खपत साल दर साल बढ़ती जाए है और ऑस्ट्रेलिया अमरीका और ब्राज़ील जैसे देश पेरिस समझौते से पल्ला झाड़ के अलग खड़े हो गए हैं मान लेने का कोई कारणनहीं है ,तापमानों में वृद्धि अनुमित दो सेल्सियस के पार नहीं निकल जाएगी। भारत जैसे देश तो अपनी जनसंख्या को बढ़ने से रोक ही नहीं पा रहें हैं ज़ाहिर है ऊर्जा की खपत के बरक्स ये टोटा यूं ही बढ़ता जाएगा ये अच्छी बात है हमारे यहां अंगूर की खेती सीमित ही है वाइन बनाने वाले राज्य भी भारत में गिनती के ही हैं लेकिन केलिफोर्निया ,इटली ,ऑस्ट्रेलिया जैसे देश कार्बन एमिशन के वार से बच नहीं सकेंगे जहां अंगूर की खेती भी आजीविका का एक अच्छा खासा ज़रिया बनी हुई है। इन पंक्तियों के लेखक को राबर्ट मंडावी वाइनरी (केलिफोर्निया राज्य) के अंगूरों के बाग़ विजिट करने वाइन टूर करने का अच्छा खासा अनुभव है। बड़ा नाज़ुक मसला है अंगूर की बेटी का ,इसकी बागवानी करना खाला जी का घर नहीं है।
और अगर भूमंडलीय तापमानों (ग्लोबल टेम्प्रेचर्स )में यह वृद्धि चार सेल्सियस तक पहुँच गई तब अंगूर की खेती का ८५ फीसद रकबा (भाग )अच्छी शराब बनाने में कामयाब नहीं हो पायेगा क्योंकि मौसिम का बिगड़ैल मिज़ाज़ इसकी बागवानी पर भारी पड़ेगा ऐसा अनुमान माहिरों ने लगाया है इस आशय की चेतावनी भी देकर आगाह किया है ट्रंपीय सोच को।
दो फीसद की वृद्धि भी दुनिया भर के अंगूर के बाग वाले ५६ फीसद इलाकों को इस काबिल नहीं छोड़गी के वह इस की खेती में हाथ डाल सकें निवेश को भी आगे कोई नहीं आएगा। जबकि वाइन शराब का अच्छा विकल्प दिल का आशिक बतलाई गई है।
लेकिन आस का दीप रोशन रहेगा और २४ फीस अंगूर उत्पादन क्षम ज़मीन ही मौसम से असरग्रस्त हो पाएगी यदि अंगूर की ऐसी नस्ल गढ़ी जा सके जो जलवायु परिवर्तन के अनरूप बनी रहे। लेकिन क्या शोध का पहिया इस ओर घूमेगा जो नै से नै मिसाइलें और जैवास्त्र चोरी छिपे बनाने में मशगूल है।
पीत चटकी (पीतकोयल पीत पक्षी प्रजाति , ऐसी स्ट्रेन जो कोकिला है कोयल की तरह मीठा गातीं हैं )जैसे कोयल की खान में कैद कर ली जाये कुछ वैसी ही नाज़ुक है यह अंगूरी शराब की खेती। वाइनरियों का रख रखाव।एकाधिक अध्ययनों से ऐसे ही संकेत मिले हैं।
"In some ways ,wine is like the canary in the coal mine for cliamate change impacts on agriculture ,because these grapes are so climate sensitive ,"said Benjamin Cook from Colombia University and the Nasa Goddard Institute for Space Studies ,co-author of the above mentioned study ."However there is still chances to adapt to a warmer world," he said ."It requires taking the problem of climate change seriously."
यहां शानदार तरीके से एक पीताम्बर वर्णी चिड़िया का ज़िक्र इसलिए किया गया है क्योंकि पक्षी विज्ञानियों ने देखा है जब किसी फैक्ट्री के अहाते में एक कम्पनी के ऐसे परिसर में जहां बहुत से वृक्ष लगाए गए हों ,वहां थोड़ा सा भी प्रदूषण बढ़ने से पर्यावरण के प्रहरी परिंदे सबसे पहले अपने घरोंदे घौसलें छोड़ के उड़ जाते हैं।प्रदूषण के स्तर को भांप लेते हैं परिंदे।
अलग अलग विश्वविद्यालयों के विज्ञानियों ने शोधकर्ताओं के संग मिलकर ग्यारह तरह(किस्म ) के अंगूरों पर अपना ध्यान केंद्रित किया जिनमें शामिल थीं :
(१ )कबरनेट सौविग्नां (Cabernet Sauvignon )
(२ )चाससेलस (Chasselas )
(३ )चारदोँनाय (Chardonnay)
(४ )ग्रेनाचे (Grenache)
(५ )मेरलॉट (Merlot )
(६)मोनस्ट्रेल (Monastrell )
(७ )पिनोट नोयर (Pinot Noir )
(८ )सौविग्नॉन ब्लांक
(९ )सेरह (Sayrah)
(१० )ऊगनी ब्लांक आदिक
निष्कर्ष निकला उत्पादक यदि रिशफ़्लिंग करें इन किस्मों की, इससे दो सेल्सियस तक सीमित ग्लोबी तापन से होने वाले संभावित नुकसानी ५० फीसद तक कम हो जायेगी।
The researchers note that management practices like increased irrigation and using shade cloths can help protect grape wines ,but at lower levels of warming .
उत्पादकों तो ये विकल्प मयस्सर तो हों -साथ ही आलमी स्तर पर विश्वव्यापी तापन कम तो हो। नेशनल एकाडेमी आफ साइंसिज ने इस शोध कार्य को प्रकाशित किया है।अंगूर यत्पादक हर विकल्प अपनाने को तैयार हैं , ऐसे मौके तो उन्हें मयस्सर हों। सवाल यह है क्या ट्रम्प सोच के लोग आलमी तपिश को रोकेंगे या फिर ग़ालिब साहब गलत साबित होंगे -
उसके बाद आये जो अजाब आये।
फैज़ एहमद फैज़ साहब की ग़ज़ल का ये मशहूर मतला और ग्लोबाल वार्मिंग से बढ़ता हुआ ख़तरा अंगूर की बेटी पे भारी पड़ सकता है। (देखें :Global warming may lead to wine shortage,THE INDEPENDENT ).बड़ा नाज़ुक मसला है अंगूर की बागवानी के लिए ताप बजट। तापमान में थोड़ी भी घटबढ़ यहां प्रति एकड़ उत्पाद को असरग्रस्त कर सकती है। ऐसे में एक ही विकल्प बचता है :नै अभिनव प्रजातियां या तो विकसित की जाएं या बढ़ते हुए तापमानों के सबब घटते अंगूर उत्पादों का दृष्टा बना जायें सोमरस की देवी को याद करें.
दुनिया भर में जिस तरह से ऊर्जा की खपत साल दर साल बढ़ती जाए है और ऑस्ट्रेलिया अमरीका और ब्राज़ील जैसे देश पेरिस समझौते से पल्ला झाड़ के अलग खड़े हो गए हैं मान लेने का कोई कारणनहीं है ,तापमानों में वृद्धि अनुमित दो सेल्सियस के पार नहीं निकल जाएगी। भारत जैसे देश तो अपनी जनसंख्या को बढ़ने से रोक ही नहीं पा रहें हैं ज़ाहिर है ऊर्जा की खपत के बरक्स ये टोटा यूं ही बढ़ता जाएगा ये अच्छी बात है हमारे यहां अंगूर की खेती सीमित ही है वाइन बनाने वाले राज्य भी भारत में गिनती के ही हैं लेकिन केलिफोर्निया ,इटली ,ऑस्ट्रेलिया जैसे देश कार्बन एमिशन के वार से बच नहीं सकेंगे जहां अंगूर की खेती भी आजीविका का एक अच्छा खासा ज़रिया बनी हुई है। इन पंक्तियों के लेखक को राबर्ट मंडावी वाइनरी (केलिफोर्निया राज्य) के अंगूरों के बाग़ विजिट करने वाइन टूर करने का अच्छा खासा अनुभव है। बड़ा नाज़ुक मसला है अंगूर की बेटी का ,इसकी बागवानी करना खाला जी का घर नहीं है।
और अगर भूमंडलीय तापमानों (ग्लोबल टेम्प्रेचर्स )में यह वृद्धि चार सेल्सियस तक पहुँच गई तब अंगूर की खेती का ८५ फीसद रकबा (भाग )अच्छी शराब बनाने में कामयाब नहीं हो पायेगा क्योंकि मौसिम का बिगड़ैल मिज़ाज़ इसकी बागवानी पर भारी पड़ेगा ऐसा अनुमान माहिरों ने लगाया है इस आशय की चेतावनी भी देकर आगाह किया है ट्रंपीय सोच को।
दो फीसद की वृद्धि भी दुनिया भर के अंगूर के बाग वाले ५६ फीसद इलाकों को इस काबिल नहीं छोड़गी के वह इस की खेती में हाथ डाल सकें निवेश को भी आगे कोई नहीं आएगा। जबकि वाइन शराब का अच्छा विकल्प दिल का आशिक बतलाई गई है।
लेकिन आस का दीप रोशन रहेगा और २४ फीस अंगूर उत्पादन क्षम ज़मीन ही मौसम से असरग्रस्त हो पाएगी यदि अंगूर की ऐसी नस्ल गढ़ी जा सके जो जलवायु परिवर्तन के अनरूप बनी रहे। लेकिन क्या शोध का पहिया इस ओर घूमेगा जो नै से नै मिसाइलें और जैवास्त्र चोरी छिपे बनाने में मशगूल है।
पीत चटकी (पीतकोयल पीत पक्षी प्रजाति , ऐसी स्ट्रेन जो कोकिला है कोयल की तरह मीठा गातीं हैं )जैसे कोयल की खान में कैद कर ली जाये कुछ वैसी ही नाज़ुक है यह अंगूरी शराब की खेती। वाइनरियों का रख रखाव।एकाधिक अध्ययनों से ऐसे ही संकेत मिले हैं।
"In some ways ,wine is like the canary in the coal mine for cliamate change impacts on agriculture ,because these grapes are so climate sensitive ,"said Benjamin Cook from Colombia University and the Nasa Goddard Institute for Space Studies ,co-author of the above mentioned study ."However there is still chances to adapt to a warmer world," he said ."It requires taking the problem of climate change seriously."
यहां शानदार तरीके से एक पीताम्बर वर्णी चिड़िया का ज़िक्र इसलिए किया गया है क्योंकि पक्षी विज्ञानियों ने देखा है जब किसी फैक्ट्री के अहाते में एक कम्पनी के ऐसे परिसर में जहां बहुत से वृक्ष लगाए गए हों ,वहां थोड़ा सा भी प्रदूषण बढ़ने से पर्यावरण के प्रहरी परिंदे सबसे पहले अपने घरोंदे घौसलें छोड़ के उड़ जाते हैं।प्रदूषण के स्तर को भांप लेते हैं परिंदे।
अलग अलग विश्वविद्यालयों के विज्ञानियों ने शोधकर्ताओं के संग मिलकर ग्यारह तरह(किस्म ) के अंगूरों पर अपना ध्यान केंद्रित किया जिनमें शामिल थीं :
(१ )कबरनेट सौविग्नां (Cabernet Sauvignon )
(२ )चाससेलस (Chasselas )
(३ )चारदोँनाय (Chardonnay)
(४ )ग्रेनाचे (Grenache)
(५ )मेरलॉट (Merlot )
(६)मोनस्ट्रेल (Monastrell )
(७ )पिनोट नोयर (Pinot Noir )
(८ )सौविग्नॉन ब्लांक
(९ )सेरह (Sayrah)
(१० )ऊगनी ब्लांक आदिक
निष्कर्ष निकला उत्पादक यदि रिशफ़्लिंग करें इन किस्मों की, इससे दो सेल्सियस तक सीमित ग्लोबी तापन से होने वाले संभावित नुकसानी ५० फीसद तक कम हो जायेगी।
The researchers note that management practices like increased irrigation and using shade cloths can help protect grape wines ,but at lower levels of warming .
उत्पादकों तो ये विकल्प मयस्सर तो हों -साथ ही आलमी स्तर पर विश्वव्यापी तापन कम तो हो। नेशनल एकाडेमी आफ साइंसिज ने इस शोध कार्य को प्रकाशित किया है।अंगूर यत्पादक हर विकल्प अपनाने को तैयार हैं , ऐसे मौके तो उन्हें मयस्सर हों। सवाल यह है क्या ट्रम्प सोच के लोग आलमी तपिश को रोकेंगे या फिर ग़ालिब साहब गलत साबित होंगे -
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा ,२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार काम्प्लेक्स ,दिल्ली -छावनी ११० ०१०
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