लैंगिक बराबरी की राह पर एक और कदम :Induced abortion up to 24 weeks of gestational age legal वैध तरीका माना गया है अब तक गर्भावस्था के बीसव...
लैंगिक बराबरी की राह पर एक और कदम :Induced abortion up to 24 weeks of gestational age legal वैध तरीका माना गया है अब तक गर्भावस्था के बीसवें सप्ताह तक एमटीपी (Medical Termination Of Pregnancy) को लेकिन इसकी कानूनन ऊपरी सीमा बीस सप्ताह तक सीमित बने रहना कई मासूमों अठारह साल से कम की किशोरियों के लिए हालफिलाल तक गहरी मानसिक पीड़ा का सबब भी बनी है। उसे सिलसिलेवार दोहराने का कोई फायदा नहीं हैं सिवाय ये तथ्य बतलाने के इनमें से कई पीड़िता नाबालिग़ किशोरी रहीं हैं। जबकि इस दौर में यह कहने वाला कोई नहीं है :तू हिन्द बनेगा न मुसलमान बनेगा ,इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।
मेडिको लीगल मामला न बन जाए इसी आशंका से एक नाबालिगा किशोरी को एक पेशेवर माहिर ने गर्भावस्था के उन्नीसवें सप्ताह में भी गर्भपात करवाने का जोखिम लेने से साफ़ इंकार कर दिया। भाईजान आजकल मृत्यु हो जाने पर हर्ज़ाना माँगा जाता है पिटाई होने का भी डर डॉक्टरी पेशे से जुड़े लोगों को बना रहता है फिर चाहे मृत्यु मामले के उलझावों पेचीलापन से ही क्यों न हुई हो। सम्भवतया इसी आशंका से संचालित रहें हों वह माहिर। लेकिन लड़की को एक के बाद दूसरा सदमा था यह.
यहां उत्पीड़न से पैदा अपना जाया भी सदमे को बनाये रखने की वजह बना है इस मासूम के लिए और ऐसी ही निर्भयाओं के जल्लाद हत्यारे आदिनांक कानूनी दांव पेंच से मौत को मुल्तवी रखने में कामयाब दिखलाई देते हैं। गर्भपात क़ानून इस मर्म को आहत करने वाली पीड़ा से मुक्ति दिलवाने के प्रति आश्वस्त करता है।
जन्म पूर्व की डाउन सिंड्रोम जैसी विकृतियों के मामले भी शीर्ष अदालत से स्वीकृति नहीं पा सकें हैं कई मामले ,पेंच था बीस हफ्ते से गर्भावस्था का एक दो सप्ताह भी ऊपर हो जाना।
अब इस क़ानून के आ जाने से जो इक्कीसवीं शती की 'कटिंग एज़ मेडिकल टेक्नोलॉजी'अभिनव चिकत्सा प्रौद्योगिकी के साथ कदम ताल करता साफ -साफ गोचर होता है असमय काल कवलित होने वाली युवतियों को बचाया जा सकेगा जो गैर -माहिरों के हथ्थे चढ़ जाती थीं सामजिक वर्जनाओं , दीगर कारणों से। रूगणता जीवन भर की सेप्सिस जैसी चिकित्सा स्तिथियाँ (सर्क्युलेशन में माइक्रो -ऑर्गेनिज़्म का शरीक होना सेप्सिस जैसी अन्य स्तिथियों से मुक्ति दिलवाई जा सकेगी ) .
स्त्री -बांझपन का शिकार होती रहीं हैं निराश -निर्दोष -मासूम -ख़ातूनें ,हवातीनें हमारी अज़ीमतर मोहतरमाएँ इन्हीं तमाम वजहों से। बहु-चर्चित ताज़ा तरीन कानून -"मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्ट २०२० अपटू ट्वेंटी फॉर वीक्स आफ जेस्टेशनल एज )लैंगिक बराबरी की ओर उठा एक महत्वपूर्ण कदम है। फिलवक्त २६ देशों में गर्भपात पर कानूनी रोक है ,जबकि ३९ देशों में केवल उन मामलों में गर्भपात की छूट है जिनमें गर्भवती महिला की जान को गर्भावथा को आगे ले जाने से गंभीर ख़तरा हो। यहीं पर आकर इस बिल की एहमियत उजागर होती है ,और जन्म पूर्व की विकृतियों के बारे में अब कोई गर्भपात की कोई ऊपरी काल बद्ध सीमा नहीं है। आखिर मंगोलिज़्म और डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त गर्भस्थ को इस निरपेक्ष करुणाहीन दौर में लाने का फायदा भी क्या है ?वह क्यों ताउम्र भुगते पूर्व जन्म के कर्मों की सज़ा। चीन और रशिया जैसे मुल्कों में अनुनय विनय के बाद भी गर्भावस्था के बारहवें सप्ताह तक ही गर्भपात की इज़ाज़त मिलती है वह भी मेडिकल बोर्ड की अनुशंसा के बाद। 'मेडिकल बोर्ड 'का अबॉर्शन बिल २०२० में कोई ज़िक्र नहीं है। कहने वाले यहां भी कह सकते हैं कन्याओं को गर्भ में ही दफन करने का रास्ता अब और भी पुख्ता हो गया है। भाई साहब चोर चोरी से जाएगा हेरा फेरी से उसे कौन रोक सकता है। बे -ईमान के लिए कौन सा काम मुश्किल है बहरसूरत ये मेरा शरीर है मेरी कोख है मैं अपनी जरूरत और सेहत के मुताबिक़ ही इसे बरतूँगी आपको क्या ?
सन्दर्भ -सामिग्री :https://timesofindia.indiatimes.com/blogs/toi-edit-page/its-gender-justice-amendment-to-mtp-act-will-align-the-reproductive-rights-of-women-with-21st-century-medicine/
प्रस्तुति मौलिक एवं अन्यत्र अप्रकाशित है।
वीरेंद्र शर्मा ,२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार कॉम्प्लेक्स ,दिल्ली -छावनी -११० ०१०
दूर -ध्वनि : 85 88 98 71 50 /९६१ ९०२ २९१४
मेडिको लीगल मामला न बन जाए इसी आशंका से एक नाबालिगा किशोरी को एक पेशेवर माहिर ने गर्भावस्था के उन्नीसवें सप्ताह में भी गर्भपात करवाने का जोखिम लेने से साफ़ इंकार कर दिया। भाईजान आजकल मृत्यु हो जाने पर हर्ज़ाना माँगा जाता है पिटाई होने का भी डर डॉक्टरी पेशे से जुड़े लोगों को बना रहता है फिर चाहे मृत्यु मामले के उलझावों पेचीलापन से ही क्यों न हुई हो। सम्भवतया इसी आशंका से संचालित रहें हों वह माहिर। लेकिन लड़की को एक के बाद दूसरा सदमा था यह.
यहां उत्पीड़न से पैदा अपना जाया भी सदमे को बनाये रखने की वजह बना है इस मासूम के लिए और ऐसी ही निर्भयाओं के जल्लाद हत्यारे आदिनांक कानूनी दांव पेंच से मौत को मुल्तवी रखने में कामयाब दिखलाई देते हैं। गर्भपात क़ानून इस मर्म को आहत करने वाली पीड़ा से मुक्ति दिलवाने के प्रति आश्वस्त करता है।
जन्म पूर्व की डाउन सिंड्रोम जैसी विकृतियों के मामले भी शीर्ष अदालत से स्वीकृति नहीं पा सकें हैं कई मामले ,पेंच था बीस हफ्ते से गर्भावस्था का एक दो सप्ताह भी ऊपर हो जाना।
अब इस क़ानून के आ जाने से जो इक्कीसवीं शती की 'कटिंग एज़ मेडिकल टेक्नोलॉजी'अभिनव चिकत्सा प्रौद्योगिकी के साथ कदम ताल करता साफ -साफ गोचर होता है असमय काल कवलित होने वाली युवतियों को बचाया जा सकेगा जो गैर -माहिरों के हथ्थे चढ़ जाती थीं सामजिक वर्जनाओं , दीगर कारणों से। रूगणता जीवन भर की सेप्सिस जैसी चिकित्सा स्तिथियाँ (सर्क्युलेशन में माइक्रो -ऑर्गेनिज़्म का शरीक होना सेप्सिस जैसी अन्य स्तिथियों से मुक्ति दिलवाई जा सकेगी ) .
स्त्री -बांझपन का शिकार होती रहीं हैं निराश -निर्दोष -मासूम -ख़ातूनें ,हवातीनें हमारी अज़ीमतर मोहतरमाएँ इन्हीं तमाम वजहों से। बहु-चर्चित ताज़ा तरीन कानून -"मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्ट २०२० अपटू ट्वेंटी फॉर वीक्स आफ जेस्टेशनल एज )लैंगिक बराबरी की ओर उठा एक महत्वपूर्ण कदम है। फिलवक्त २६ देशों में गर्भपात पर कानूनी रोक है ,जबकि ३९ देशों में केवल उन मामलों में गर्भपात की छूट है जिनमें गर्भवती महिला की जान को गर्भावथा को आगे ले जाने से गंभीर ख़तरा हो। यहीं पर आकर इस बिल की एहमियत उजागर होती है ,और जन्म पूर्व की विकृतियों के बारे में अब कोई गर्भपात की कोई ऊपरी काल बद्ध सीमा नहीं है। आखिर मंगोलिज़्म और डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त गर्भस्थ को इस निरपेक्ष करुणाहीन दौर में लाने का फायदा भी क्या है ?वह क्यों ताउम्र भुगते पूर्व जन्म के कर्मों की सज़ा। चीन और रशिया जैसे मुल्कों में अनुनय विनय के बाद भी गर्भावस्था के बारहवें सप्ताह तक ही गर्भपात की इज़ाज़त मिलती है वह भी मेडिकल बोर्ड की अनुशंसा के बाद। 'मेडिकल बोर्ड 'का अबॉर्शन बिल २०२० में कोई ज़िक्र नहीं है। कहने वाले यहां भी कह सकते हैं कन्याओं को गर्भ में ही दफन करने का रास्ता अब और भी पुख्ता हो गया है। भाई साहब चोर चोरी से जाएगा हेरा फेरी से उसे कौन रोक सकता है। बे -ईमान के लिए कौन सा काम मुश्किल है बहरसूरत ये मेरा शरीर है मेरी कोख है मैं अपनी जरूरत और सेहत के मुताबिक़ ही इसे बरतूँगी आपको क्या ?
सन्दर्भ -सामिग्री :https://timesofindia.indiatimes.com/blogs/toi-edit-page/its-gender-justice-amendment-to-mtp-act-will-align-the-reproductive-rights-of-women-with-21st-century-medicine/
वीरेंद्र शर्मा ,२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार कॉम्प्लेक्स ,दिल्ली -छावनी -११० ०१०
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