मासिक धर्म वर्जनाएं और मेडिकल साइंस The Taboos around a natural phenomenon फीमेल (अनेकरूपा नारी )एक एक्स -एक्स प्राणि है। प्रत्येक कन्या ...
मासिक धर्म वर्जनाएं और मेडिकल साइंस The Taboos around a natural phenomenon
फीमेल (अनेकरूपा नारी )एक एक्स -एक्स प्राणि है। प्रत्येक कन्या जन्म से ही कुछ लाख फीमेल एग लेकर इस दुनिया में आती है। युवावस्था की देहलीज पर पाँव रखते ही एक स्वाभाविक क्रिया के तहत उसके गर्भाशय का अंदरूनी अस्तर हर माह मासिक रक्तस्राव (Menstrual blood )के रूप में यौनि मुख से रिसने लगता है। यह सिलसिला कमोबेश चार पांच दिन चलता है।उसके बाद मासिक धर्म से पूर्व कभी भी एक या कभी कभार दो फीमेल एग क्षरित हो जाते हैं। धर्म का यहां अर्थ स्वभाव है कुदरत है।
कुछ परम्पराएं एक सामजिक सोच के रूप में मौखिक रूप से एक पीढ़ी अनजाने ही अगली पीढ़ी को थमाती आई है। कहीं कोई लिखित शास्त्रीय प्रमाण नहीं है कि किशोरी इस अवधि में दूषित हो जाती है के उसे पवित्र तुसली के पौधे को पानी नहीं देना चाहिए। रसोई में नहीं आना चाहिए वगैरा -वगैरा अलबत्ता उसे हर माह इस रक्तस्राव की आपूर्ति के लिए एक सप्ताह आयरन के कैप्स्यूल लेने चाहिए। अकसर आयरन का शरीर द्वारा एक्सट्रेक्शन जज़्बी शाकाहारी खुराक के संग मुश्किल से ही हो पाता है । रोटी में मौजूद प्रोटीन एक आयरन एण्टागोनिस्ट है । यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि पालक पनीर के साथ भी यही होता है पनीर की प्रोटीन आयरन की जज़्बी का विरोध करती है। पालक आलू (आलू छिलके वाला )बेहतर है बढ़िया कॉम्बो कहा जाएगा।
वर्जनाओं का ज़िक्र करते हैं ,मकसद रहा होगा महिला को इन दिनों में रसोई के टंटे से राहत देना।मुश्किल के दिन बतलाते हैं इन दिनों को चंद विज्ञापन।
लेकिन यह महज एक खतरनाक वर्जना है कुछ अफ़्रीकी समाजों में भारत भी जिसका अपवाद नहीं कहा जाएगा ,इन दिनों कन्या को पशु आवासों में अस्तबलों में बस्ती से दूर झौंपड़ पट्टों में रहने को विवश किया जाता है।इसके विपरीत कुछ अग्रगामी समाजों में इन दिनों उसे अतिरिक्त शक्ति का स्रोत मेधा का धनी बतलाया जाता है। उसकी हीलिंग पावर भी ंबढ़ी हुई बतलाई जाती है यानी जख्म जल्दी भरता है आदिक।
गुजरात के श्री सहजानंद महिला इंस्टीटूट ,भुज की घटना इक्कीसवीं शती के भारत के लिए एक अजूबा ही कही जायेगी। सबरिमला से भी समाज को ही निपटना होगा।मस्जिद में औरत भी जायेगी।
उड़ीसा से सीखो -राजप्रभा कहा जाता है वहां इनदिनों को कथित मुश्किल के दिनों को। तीज के त्यौहार की तरह इस वार्षिक चार दिनी उत्सव में युवतियां झूला झूलती हैं उड़न डौले पे झूलती हैं मौज़ मस्ती का वसंत होता है यह पर्व। दक्षिण में भी प्यूबर्टी के लगते ही किशोरी को नव परिधान पहराया जाता है। उल्लास का समय है यह स्वीट सिक्सटीन, वंश वृद्धि मातृत्व की और उठा यह पहला पग है।
बत्लादें आपको युवती की इक्कीस बरस की उम्र होने पर ही पेल्विस (श्रोणि प्रदेश ,व्यक्ति की पीठ में नीचे स्थित चौड़ी हड्डियों का समुच्चय जिससे टांगें जुडी होतीं हैं )पूर्ण रूप से विकसित हो पाता है। इस उम्र से पहले पेल्विक इंकंपे -टि -बिलिटी (Pelvic Incompatibility )गर्भावस्था के लिए ख़तरा बन सकती है। विवाह इक्कीस के बाद ही बेहतर उसके बाद तो जिम्मेदारियां ही जिम्मेदारियां हैं शादी का लड्डू कुछ ऐसा ही है जो खाया वह भी न खाया वह भी नतीजा यकसां रहता है। गर्भाशय से रक्तस्राव के मौके बाद प्रसव काम उम्र में विवाह होने पर बढ़ जाते हैं।
A file photo of Shree Sahajanand Girls Institute in Bhuj. | Sahajanand Girls Institute/Website
फीमेल (अनेकरूपा नारी )एक एक्स -एक्स प्राणि है। प्रत्येक कन्या जन्म से ही कुछ लाख फीमेल एग लेकर इस दुनिया में आती है। युवावस्था की देहलीज पर पाँव रखते ही एक स्वाभाविक क्रिया के तहत उसके गर्भाशय का अंदरूनी अस्तर हर माह मासिक रक्तस्राव (Menstrual blood )के रूप में यौनि मुख से रिसने लगता है। यह सिलसिला कमोबेश चार पांच दिन चलता है।उसके बाद मासिक धर्म से पूर्व कभी भी एक या कभी कभार दो फीमेल एग क्षरित हो जाते हैं। धर्म का यहां अर्थ स्वभाव है कुदरत है।
कुछ परम्पराएं एक सामजिक सोच के रूप में मौखिक रूप से एक पीढ़ी अनजाने ही अगली पीढ़ी को थमाती आई है। कहीं कोई लिखित शास्त्रीय प्रमाण नहीं है कि किशोरी इस अवधि में दूषित हो जाती है के उसे पवित्र तुसली के पौधे को पानी नहीं देना चाहिए। रसोई में नहीं आना चाहिए वगैरा -वगैरा अलबत्ता उसे हर माह इस रक्तस्राव की आपूर्ति के लिए एक सप्ताह आयरन के कैप्स्यूल लेने चाहिए। अकसर आयरन का शरीर द्वारा एक्सट्रेक्शन जज़्बी शाकाहारी खुराक के संग मुश्किल से ही हो पाता है । रोटी में मौजूद प्रोटीन एक आयरन एण्टागोनिस्ट है । यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि पालक पनीर के साथ भी यही होता है पनीर की प्रोटीन आयरन की जज़्बी का विरोध करती है। पालक आलू (आलू छिलके वाला )बेहतर है बढ़िया कॉम्बो कहा जाएगा।
वर्जनाओं का ज़िक्र करते हैं ,मकसद रहा होगा महिला को इन दिनों में रसोई के टंटे से राहत देना।मुश्किल के दिन बतलाते हैं इन दिनों को चंद विज्ञापन।
लेकिन यह महज एक खतरनाक वर्जना है कुछ अफ़्रीकी समाजों में भारत भी जिसका अपवाद नहीं कहा जाएगा ,इन दिनों कन्या को पशु आवासों में अस्तबलों में बस्ती से दूर झौंपड़ पट्टों में रहने को विवश किया जाता है।इसके विपरीत कुछ अग्रगामी समाजों में इन दिनों उसे अतिरिक्त शक्ति का स्रोत मेधा का धनी बतलाया जाता है। उसकी हीलिंग पावर भी ंबढ़ी हुई बतलाई जाती है यानी जख्म जल्दी भरता है आदिक।
गुजरात के श्री सहजानंद महिला इंस्टीटूट ,भुज की घटना इक्कीसवीं शती के भारत के लिए एक अजूबा ही कही जायेगी। सबरिमला से भी समाज को ही निपटना होगा।मस्जिद में औरत भी जायेगी।
उड़ीसा से सीखो -राजप्रभा कहा जाता है वहां इनदिनों को कथित मुश्किल के दिनों को। तीज के त्यौहार की तरह इस वार्षिक चार दिनी उत्सव में युवतियां झूला झूलती हैं उड़न डौले पे झूलती हैं मौज़ मस्ती का वसंत होता है यह पर्व। दक्षिण में भी प्यूबर्टी के लगते ही किशोरी को नव परिधान पहराया जाता है। उल्लास का समय है यह स्वीट सिक्सटीन, वंश वृद्धि मातृत्व की और उठा यह पहला पग है।
बत्लादें आपको युवती की इक्कीस बरस की उम्र होने पर ही पेल्विस (श्रोणि प्रदेश ,व्यक्ति की पीठ में नीचे स्थित चौड़ी हड्डियों का समुच्चय जिससे टांगें जुडी होतीं हैं )पूर्ण रूप से विकसित हो पाता है। इस उम्र से पहले पेल्विक इंकंपे -टि -बिलिटी (Pelvic Incompatibility )गर्भावस्था के लिए ख़तरा बन सकती है। विवाह इक्कीस के बाद ही बेहतर उसके बाद तो जिम्मेदारियां ही जिम्मेदारियां हैं शादी का लड्डू कुछ ऐसा ही है जो खाया वह भी न खाया वह भी नतीजा यकसां रहता है। गर्भाशय से रक्तस्राव के मौके बाद प्रसव काम उम्र में विवाह होने पर बढ़ जाते हैं।
A file photo of Shree Sahajanand Girls Institute in Bhuj. | Sahajanand Girls Institute/Website
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