अमरीका की पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के साइंसदानों ने चूहों पर एक संभावित सार्स -कोरोना वायरस -२ से पैदा र...
अमरीका की पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के साइंसदानों ने चूहों पर एक संभावित सार्स -कोरोना वायरस -२ से पैदा रोग कोविद -२०१९ की असरदार काट के लिए टीका बनाया है। यह परम्परागत टीकों की तरह सुई के ज़रिये नहीं एक नाखून के या फिर ऊँगली के पौर के आकार का एक पैच है जिसे शरीर के किसी भी अंग से चस्पां किया जा सकेगा जिस में से कोविद-२०१९ की काट के लिए दवा रिसेगी।
कोरोना समहू के सार्स और मिडिलईस्ट रेस्पिरेट्री सिंड्रोम वायरस की स्पाइक्-नुमा प्रोटीन से ये साइंसदान बखूबी वाकिफ थे।इस बात से भी कि यही प्रोटीन कोरोना रोधी प्रतिरोध और प्रति -रक्षण शरीर को मुहैया करवा सकती है। यहां इनका पूर्व अनुभव काम आया है। ग्लोबी संकट की इस घड़ी में हमारे ये लेबोरेट्री सिपाही रात दिन मोर्चा संभाले रहे हैं।
इस वेक्सीन को नाम दिया गया है पिटकोवेक (PittCoVacc)कहो तो पिट्सबर्गकोरोनवेक्सीन। इसके काम करने का तरीका अमरीका में वर्तमान में काम में ली जाने वाली फ्लू वेक्सीन जैसा ही है।
इस पैचनुमा में एक पूरा नेटवर्क है एक संजाल है तकरीबन ४०० सूक्ष्मतर सुइयों का जिनसे स्पाइकमनुमा प्रोटीन आहिस्ता -आहिस्ता रिसकर शरीर में दाखिल होकर सर्कुलेशन में आ जाती है। हमारी बाहरी चमड़ी ही (तकरीबन डेढ़ वर्गमीटर )सबसे ज्यादा असर -कारी रोगरोधी प्रति -क्रिया में शरीक होती है।
बेंड -एड की मानिंद इस पैच को इस्तेमाल में लिया जा सकता है जिससे रिसता है बा -ज़रिया सूक्ष्म सुइयों से शुगर और प्रोटीन सूक्ष्तर खंड। ये आसानी से चमड़ी में घुल जाते हैं आत्म -सात हो जाते हैं। कोई तकलीफ नहीं होती है इसके एडमिनिस्ट्रेशन में। हम मनुष्यों पर इसके नैदानिक परीक्षण होने को हैं।
जैसा कि आप जानते हैं हमारा शरीर तकरीबन ४० ट्रिलियन सेल्स (कोशिकाओं का घर है कहो तो बहुकार्यक्षम कारखाना ही है। इन्हीं कोशिकाओं के कल्चर (संवर्धन) से ये अति प्रभावकारी सुगर मॉलिक्यूल्स गढ़े गए हैं।
चूहों के अंदर दो हफ़्तों के इस्तेमाल के बाद एंटीबॉडी (कोरोना रोधी एंटीबॉडीज़ )बनते दिखें हैं जो एक बरस तक कायम रह सकते हैं।
इससे उम्मीद बंधी हैं यह मनुष्यों पर भी कारगर साबित होगी। विश्व महामारी के इस दौर में जबकि सब कुछ मानवता का दाव पर लगा हुआ है यह कमतर उपलब्धि नहीं है। आस बनाये रहिये। उम्मीद पे दुनिया कायम है। ना -उम्मीदी कोरोना से ज्यादा खतरनाक होती है। हम भारतीय आस का पल्लू कभी नहीं छोड़ते। सुगर का शुद्धिकरण भी परत दर परत आला दर्ज़े का रहा है इसी कोशिका संवर्धन की अभिनव जैव -इंजिनियरी के ज़रिये इस शक्कर प्रोटीन मिस्र का न सिर्फ व्यावसायिक उत्पादन हो सकता है इनकी परतें एक दूसरे पर जंचाई भी जा सकती हैं। यूं समझ लीजियेगा इस शुगर प्रोटीन मिश्र की इस फैक्ट्री में कताई होती है।तब जाक़र माइक्रो -नीडल्स तैयार होती हैं पैच के लिए। एक सेंट्रीफ्यूज के इस्तेमाल से तैयार प्रोटीन शुगर मिस्र को एक मोल्ड की शक्ल दे दी जाती है जिसे सामन्य कमरे के तापमान पर रखा एवं एक से दूसरे स्थान पर भेजा जा सकता है यहां कोल्ड चेन और उसके टूटने का कोई चक्कर ही नहीं है जैसा पोलियो जैसे अन्य टीकों के साथ होने की संभावना को भरसक प्रयत्न और उपाय करके और सावधानी से मुल्तवी रखा जाता है।गामा रेडिएशन से निहला -धुला कर गामा विकिरण डालकर इस वेक्सीन की भंडारण अवधि कहो तो शेल्फ लाइफ भी बढ़ाई जा सकती है जो एक बड़ी बात है ज्यादातर टीकों की देर तक असर्कारिता बनाये रखना एक बड़ा मुद्दा होता है।
कोरोना का क्या रोना तैयार है अब कोरोना रोधी टीका बस थोड़ा इंतज़ार कीजे :देखिये उस तरफ उजाला है ,जिस तरफ (जगह) रौशनी नहीं जाती
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा ,२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार कॉम्प्लेक्स ,दिल्ली -छावनी ११० ०१०
कोरोना समहू के सार्स और मिडिलईस्ट रेस्पिरेट्री सिंड्रोम वायरस की स्पाइक्-नुमा प्रोटीन से ये साइंसदान बखूबी वाकिफ थे।इस बात से भी कि यही प्रोटीन कोरोना रोधी प्रतिरोध और प्रति -रक्षण शरीर को मुहैया करवा सकती है। यहां इनका पूर्व अनुभव काम आया है। ग्लोबी संकट की इस घड़ी में हमारे ये लेबोरेट्री सिपाही रात दिन मोर्चा संभाले रहे हैं।
इस वेक्सीन को नाम दिया गया है पिटकोवेक (PittCoVacc)कहो तो पिट्सबर्गकोरोनवेक्सीन। इसके काम करने का तरीका अमरीका में वर्तमान में काम में ली जाने वाली फ्लू वेक्सीन जैसा ही है।
इस पैचनुमा में एक पूरा नेटवर्क है एक संजाल है तकरीबन ४०० सूक्ष्मतर सुइयों का जिनसे स्पाइकमनुमा प्रोटीन आहिस्ता -आहिस्ता रिसकर शरीर में दाखिल होकर सर्कुलेशन में आ जाती है। हमारी बाहरी चमड़ी ही (तकरीबन डेढ़ वर्गमीटर )सबसे ज्यादा असर -कारी रोगरोधी प्रति -क्रिया में शरीक होती है।
बेंड -एड की मानिंद इस पैच को इस्तेमाल में लिया जा सकता है जिससे रिसता है बा -ज़रिया सूक्ष्म सुइयों से शुगर और प्रोटीन सूक्ष्तर खंड। ये आसानी से चमड़ी में घुल जाते हैं आत्म -सात हो जाते हैं। कोई तकलीफ नहीं होती है इसके एडमिनिस्ट्रेशन में। हम मनुष्यों पर इसके नैदानिक परीक्षण होने को हैं।
जैसा कि आप जानते हैं हमारा शरीर तकरीबन ४० ट्रिलियन सेल्स (कोशिकाओं का घर है कहो तो बहुकार्यक्षम कारखाना ही है। इन्हीं कोशिकाओं के कल्चर (संवर्धन) से ये अति प्रभावकारी सुगर मॉलिक्यूल्स गढ़े गए हैं।
चूहों के अंदर दो हफ़्तों के इस्तेमाल के बाद एंटीबॉडी (कोरोना रोधी एंटीबॉडीज़ )बनते दिखें हैं जो एक बरस तक कायम रह सकते हैं।
इससे उम्मीद बंधी हैं यह मनुष्यों पर भी कारगर साबित होगी। विश्व महामारी के इस दौर में जबकि सब कुछ मानवता का दाव पर लगा हुआ है यह कमतर उपलब्धि नहीं है। आस बनाये रहिये। उम्मीद पे दुनिया कायम है। ना -उम्मीदी कोरोना से ज्यादा खतरनाक होती है। हम भारतीय आस का पल्लू कभी नहीं छोड़ते। सुगर का शुद्धिकरण भी परत दर परत आला दर्ज़े का रहा है इसी कोशिका संवर्धन की अभिनव जैव -इंजिनियरी के ज़रिये इस शक्कर प्रोटीन मिस्र का न सिर्फ व्यावसायिक उत्पादन हो सकता है इनकी परतें एक दूसरे पर जंचाई भी जा सकती हैं। यूं समझ लीजियेगा इस शुगर प्रोटीन मिश्र की इस फैक्ट्री में कताई होती है।तब जाक़र माइक्रो -नीडल्स तैयार होती हैं पैच के लिए। एक सेंट्रीफ्यूज के इस्तेमाल से तैयार प्रोटीन शुगर मिस्र को एक मोल्ड की शक्ल दे दी जाती है जिसे सामन्य कमरे के तापमान पर रखा एवं एक से दूसरे स्थान पर भेजा जा सकता है यहां कोल्ड चेन और उसके टूटने का कोई चक्कर ही नहीं है जैसा पोलियो जैसे अन्य टीकों के साथ होने की संभावना को भरसक प्रयत्न और उपाय करके और सावधानी से मुल्तवी रखा जाता है।गामा रेडिएशन से निहला -धुला कर गामा विकिरण डालकर इस वेक्सीन की भंडारण अवधि कहो तो शेल्फ लाइफ भी बढ़ाई जा सकती है जो एक बड़ी बात है ज्यादातर टीकों की देर तक असर्कारिता बनाये रखना एक बड़ा मुद्दा होता है।
कोरोना का क्या रोना तैयार है अब कोरोना रोधी टीका बस थोड़ा इंतज़ार कीजे :देखिये उस तरफ उजाला है ,जिस तरफ (जगह) रौशनी नहीं जाती
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा ,२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार कॉम्प्लेक्स ,दिल्ली -छावनी ११० ०१०
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