वृक्षों का परस्पर संवाद :तरुवर इंटरनेट तरुवर बोला पात से सुनो तात एक बात , या घर यही रीत है एक आवत एक जात। जानतें हैं तरुवर भी विश्व की ...
वृक्षों का परस्पर संवाद :तरुवर इंटरनेट
तरुवर बोला पात से सुनो तात एक बात ,
या घर यही रीत है एक आवत एक जात।
जानतें हैं तरुवर भी विश्व की नश्वरता को।इसमें आश्चर्य जैसा कुछ भी नहीं है वृक्षों के भी सहकारी संगठन है भूमिगत संजाल बिछा है नेटवर्क है संवाद का।ठीक हमारी अंडर ग्राउंड केबिल्स की तरह।वृक्ष हमारे वरिष्ठ नागरिक हैं इनका आगमन हमसे तीस करोड़ साल पहले ही हो गया था विकास क्रम में ही इन्होनें ने संवाद का एक जाल बुना है जिसे हम इवोल्यूशनरी अंडर ग्राउंड नेटवर्क कह सकते हैं।
वृक्ष मूल यानी पेड़ों की गहरी जड़ें एक Mycorrhiza network से लैस होतीं हैं। इस संजाल को आप फफूंदी और वृक्षों का परस्पर सहजीवन यापन कह सकते हैं कहो तो सिम्बिओटिक लिविंग।
पादप कार्बनिक अणु तैयार करते हैं जिन्हें हम शुगर्स या कार्बोहाइड्रेट्स कहते हैं।(फफूंद अपना भोजन-शुगर वृक्षों से लेते हैं बदले में वृक्षों को पानी और वृक्षों के पैरों तले की मिट्टी को पोषण कहो तो न्यूट्रिशन प्रदान करते हैं। ) वृक्ष शुगर बनाने का काम सूरज की रौशनी की मौजूदगी में जिस बिध करते हैं उसे प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया कहा जाता है कहो तो फोटो -सिन्थिसिस फोटो का मतलब रौशनी या 'प्रकाश' होता है जिसका 'क्वांटम' फोटोन कहलाता है।फोटोन प्रकाश का सबसे छोटा मूलभूत पेकिट है जो अविभाज्य है।
पृथ्वी पर के ९० फीस पादप इसी फफूंद सेतु से परस्पर जुड़े होते हैं। अमूमन एक वृक्ष ही फफूंद की दर्जनों स्पेसीज (प्रजातियों) से कनेक्ट करता है।फंगी कहो या फंजाई यही इनका न्यूरॉन- जाल ,संवाद सेतु कहो तो पड़ोसी वृक्ष के साथ संवाद है।टेलीफोन एक्सचेंज है।
वृक्षों में भी मदर्स ट्री का अलग और विशेष दर्ज़ा है इनका मातृत्व ही नव अंकुरित पादपों को पालता पोषता है। पुष्टिकर तत्व प्रदान करता है।
ये माताएं ही विपत्ति काल में पुष्टिकर तत्व मुहैया करवाती हैं। लोकडाउन के समय में ये आपूर्ति लाइन को बाधित नहीं होने देती हैं नवजात और किशोर सेपलिंग्स इनके भरोसे ही रहते हैं।
वृक्षों पर आश्रित फफूंद आसन्न सूखे (ड्रॉट )के प्रति भी खबरदार करते हैं। कीटों के संभावित हमले की भी इत्तला आश्रयदाता वृक्षों को सही वक्त पर दे देते हैं। एन्ज़ाइम्स या आवश्यक किण्वक भी फफूंद ही वृक्षों को उपलब्ध करवाते हैं कह सकते हैं फफूंद इनका बचावी तंत्र हैं।डिफेन्स नेटवर्क भी हैं ,यही है असली लिविंग टुगेदर।
वृक्षों का भूमिगत इंटरनेट भी इनके प्रतिरक्षण तंत्र को मजबूती प्रदान करता है।फफूंद पेड़ों की जड़ों में एंट्री मिलने पर बचावी रसायन तैयार करते हैं कहो तो रोग निरोधी व्यवस्था वृक्षों की फफूँद ही अपने हाथोँ में आगे बढ़ के ले लेते हैं।
वृक्ष रोग विज्ञान से जुड़े माहिरों ने वनस्पति शास्त्रियों ने पता लगाया है तरुवर इस नेट वर्क सम्प्रेषण सेतु का स्तेमाल कार्बन भंडारण में भी करते हैं और इन कार्बन भंडारों को यंगर सेपलिंग्स को वक्त ज़रूरत पड़ने पर अंतरित भी कर देते हैं। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में इस जानकारी का अपना महत्व है। सिर्फ दस खरब पेड़ लगाइये उनकी देखरेख का जिम्मा लीजिये और जल-वायु परिवर्तन की मार -अप्रत्याशित सूखा और भयंकर बाढ़ का पुनरावर्तन ,जंगलों का लगातार जलना ,वर्षा के बंटवारे में बड़े फेर बदल से बचने का सरल और कारगर उपाय है -पुनर -वनीकरण।यही समय है कन्फेशन का।
https://www.google.com/search?q=pictures+of+some+most+exotic+trees&rlz=1CAXGER_enUS781IN782&sxsrf=ALeKk00PObl0TPqXbTaXnUoLWb1lmoADfw:1587450717389&tbm=isch&source=iu&ictx=1&fir=Z4zJFzncoaQ34M%253A%252CPKycoQDTGum7NM%252C_&vet=1&usg=AI4_-kRSpK8XHeKD9RFfWSAqica8g7Kl2g&sa=X&ved=2ahUKEwjryu7g8vjoAhXFW3wKHQZhA04Q9QEwBXoECAoQIA#imgrc=Z4zJFzncoaQ34M:
तरुवर बोला पात से सुनो तात एक बात ,
या घर यही रीत है एक आवत एक जात।
जानतें हैं तरुवर भी विश्व की नश्वरता को।इसमें आश्चर्य जैसा कुछ भी नहीं है वृक्षों के भी सहकारी संगठन है भूमिगत संजाल बिछा है नेटवर्क है संवाद का।ठीक हमारी अंडर ग्राउंड केबिल्स की तरह।वृक्ष हमारे वरिष्ठ नागरिक हैं इनका आगमन हमसे तीस करोड़ साल पहले ही हो गया था विकास क्रम में ही इन्होनें ने संवाद का एक जाल बुना है जिसे हम इवोल्यूशनरी अंडर ग्राउंड नेटवर्क कह सकते हैं।
वृक्ष मूल यानी पेड़ों की गहरी जड़ें एक Mycorrhiza network से लैस होतीं हैं। इस संजाल को आप फफूंदी और वृक्षों का परस्पर सहजीवन यापन कह सकते हैं कहो तो सिम्बिओटिक लिविंग।
पादप कार्बनिक अणु तैयार करते हैं जिन्हें हम शुगर्स या कार्बोहाइड्रेट्स कहते हैं।(फफूंद अपना भोजन-शुगर वृक्षों से लेते हैं बदले में वृक्षों को पानी और वृक्षों के पैरों तले की मिट्टी को पोषण कहो तो न्यूट्रिशन प्रदान करते हैं। ) वृक्ष शुगर बनाने का काम सूरज की रौशनी की मौजूदगी में जिस बिध करते हैं उसे प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया कहा जाता है कहो तो फोटो -सिन्थिसिस फोटो का मतलब रौशनी या 'प्रकाश' होता है जिसका 'क्वांटम' फोटोन कहलाता है।फोटोन प्रकाश का सबसे छोटा मूलभूत पेकिट है जो अविभाज्य है।
पृथ्वी पर के ९० फीस पादप इसी फफूंद सेतु से परस्पर जुड़े होते हैं। अमूमन एक वृक्ष ही फफूंद की दर्जनों स्पेसीज (प्रजातियों) से कनेक्ट करता है।फंगी कहो या फंजाई यही इनका न्यूरॉन- जाल ,संवाद सेतु कहो तो पड़ोसी वृक्ष के साथ संवाद है।टेलीफोन एक्सचेंज है।
वृक्षों में भी मदर्स ट्री का अलग और विशेष दर्ज़ा है इनका मातृत्व ही नव अंकुरित पादपों को पालता पोषता है। पुष्टिकर तत्व प्रदान करता है।
ये माताएं ही विपत्ति काल में पुष्टिकर तत्व मुहैया करवाती हैं। लोकडाउन के समय में ये आपूर्ति लाइन को बाधित नहीं होने देती हैं नवजात और किशोर सेपलिंग्स इनके भरोसे ही रहते हैं।
वृक्षों पर आश्रित फफूंद आसन्न सूखे (ड्रॉट )के प्रति भी खबरदार करते हैं। कीटों के संभावित हमले की भी इत्तला आश्रयदाता वृक्षों को सही वक्त पर दे देते हैं। एन्ज़ाइम्स या आवश्यक किण्वक भी फफूंद ही वृक्षों को उपलब्ध करवाते हैं कह सकते हैं फफूंद इनका बचावी तंत्र हैं।डिफेन्स नेटवर्क भी हैं ,यही है असली लिविंग टुगेदर।
वृक्षों का भूमिगत इंटरनेट भी इनके प्रतिरक्षण तंत्र को मजबूती प्रदान करता है।फफूंद पेड़ों की जड़ों में एंट्री मिलने पर बचावी रसायन तैयार करते हैं कहो तो रोग निरोधी व्यवस्था वृक्षों की फफूँद ही अपने हाथोँ में आगे बढ़ के ले लेते हैं।
वृक्ष रोग विज्ञान से जुड़े माहिरों ने वनस्पति शास्त्रियों ने पता लगाया है तरुवर इस नेट वर्क सम्प्रेषण सेतु का स्तेमाल कार्बन भंडारण में भी करते हैं और इन कार्बन भंडारों को यंगर सेपलिंग्स को वक्त ज़रूरत पड़ने पर अंतरित भी कर देते हैं। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में इस जानकारी का अपना महत्व है। सिर्फ दस खरब पेड़ लगाइये उनकी देखरेख का जिम्मा लीजिये और जल-वायु परिवर्तन की मार -अप्रत्याशित सूखा और भयंकर बाढ़ का पुनरावर्तन ,जंगलों का लगातार जलना ,वर्षा के बंटवारे में बड़े फेर बदल से बचने का सरल और कारगर उपाय है -पुनर -वनीकरण।यही समय है कन्फेशन का।
रोचक जानकारी
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