फ्लू बीमारी अमरीका की राष्ट्रीय बीमारी में जगह बना चुकी है जहां हर साल इसका टीका बनता है। एक टीके की कारगर उम्र यहां साल भर ही है। शैतान वि...
फ्लू बीमारी अमरीका की राष्ट्रीय बीमारी में जगह बना चुकी है जहां हर साल इसका टीका बनता है। एक टीके की कारगर उम्र यहां साल भर ही है। शैतान विषाणु किसके काबू आया है।
आम सर्दी जुकाम इन्फ्लुएंजा के मानिटरन में यहां के माहिर 'स्नीज मशीन'Sneez Machine ' इस्तेमाल करते रहें हैं , ताकी यह ठीक- ठीक जाना जा सके छींक के साथ मरीज़ की साधारण बातचीत खांसने के दौरान वायरस कितनी दूर तक जा सकता है।
अक्सर कई क्लीनिकों में यहां सीलिंग में अल्ट्रावायलिट-C लैम्प फिट रहतें हैं समझा जाता है यह एक अच्छा जर्मीसाइड है लाइफ्बोय की तरह कारगर जो कई किस्म की फफूंदों ,विषाणु जीवाणु का खात्मा कर सकता है। ऐसे लेम्प क्लीनिकों के खासकर वरांडे में लगे होते हैं जहां से मरीज़ों की आवजाही बनी रहती है।
अलबत्ता इन लेम्पों की कारगरता के लिए संवहन यानी हवा के अणुओं का नीचे से उठकर ऊपर सीलिंग में लगे लेम्पों तक पहुंचना ज़रूरी समझा जाता है। विसंक्रमण (निर्जीवाणुकृत )के बाद ताज़े हवा के अणु फिर ऊपर आएं। और यहीं बने रहें मरीज़ों तक न पहुंचे।
गोरी चमड़ी ऐसे रेडिएशन (शक्तिशाली विकिरण )के प्रति ज्यादा संवेदी होती है चमड़ी का कैंसर पैदा कर सकती है ऐसे विकिरण की बमबारी।
डॉ. ट्रम्प के पास कहाँ से आती है इतनी ऊर्जा -वे बेहद जोश से भरे रहकर बालसुलभ कौतुक प्रकट करते हुए कहते हैं -मान लीजिये ऐसे विकिरण की बौछार कोरोना के मरीज़ों पर सीधे डाली जाए ऐसा लघुतरंग विकिरण कोई केप्सूल इम्प्लांट कर दिया जाए चमड़ी के नीचे तब क्या यह सार्स -कोव -२ (कोरोना वायरस )का देखते ही देखते सफाया नहीं कर देगा ?
ऑपरेशन थिएटर को शल्य से पूर्व ऐसे ही विकिरण से रोगकाकों (जीवाणु ,विषाणु ,फफूंद ,परजीवी आदिक पैथोजन्स )को मुक्त भले करते हैं तब जब अंदर कोई न हो न डॉ. नर्स न मरीज़ -कौन बताये ये बात डॉ. ट्रम्प को।मोदी जी ?
विषाणु सार्स -कोव -२ की पैठ हमारे अंगों में बहुत अंदर होती हैं वहां तक ऐसा प्रकाश कभी नहीं पहुँच सकता।इसका अवतरण मरीज़ के आसपास की हवा में तभी होता है जब वह खांसता है कफ निकालता है या फिर छींकता है -उसके इर्द गिर्द कई मीटर तक हो सकता है कोरोना वायरस।
ये तमाम बातें बचकानी हैं जो ट्रम्प अक्सर कर जाते हैं भले उनकी नीयत में कोई खोट न सही लेकिन उनके सुझाये ड्रग- कॉम्बो (एज़िथ्रो मायसिन संग मलेरियाई दवाएं आदिक )गंभीर मरीज़ों के किसी काम नहीं आईं हैं अवांछित प्रभाव ज़रूर मिले हैं।
परा-बैंगनी विकिरण का अंश UVAतथा UVB ज़रूर पहुंचता है पृथ्वी तक जो शरीर की चमड़ी पर पड़ने से विटामिन -D निर्माण में विधायक भूमिका निभाता है।
अल्ट्रा -व वायलिट वांड्स से लेकर अल्ट्रावॉयलिट लेम्प की एक बड़ी इंडस्ट्री है अमरीका में लेकिन ध्यान रहे इनसे निकलने वाला विकिरण आँख के लिए दुखदाई होगा। खासकर लघुतर विकिरण का देर तक इराडिएशन,ऐसे लेम्पों से निकलकर आँखों पर बरसते रहना -कम्प्लीट बकवास हैं 'हाइप' की गई ये अधुनातन डिवाइसिज़।
विशेष :डॉ.ट्रम्प एक बेहद जोशीले व्यक्ति हैं वे अक्सर उत्तेजित रहते हैं आजकल और वाइट हाउस की औपचारिक ब्रीफिंग्स में भी वे बे -तकल्लुफ़ होकर बात करते देखे जाते हैं -यदि लीसोल (lysol )सरफेस डिसइंफेक्टेंट इंजेक किया जाए कोरोना संक्रमित व्यक्ति को तो क्या बिसात कोरोनावायरस की भाग न खड़ा हो।ऐसी ही ऊलजुलूल बातें करते हैं ट्रम्प।
शरीर के प्रमुख अंगों तक जबकि ये वायरस कोविड -१९ के गुरु -गंभीर मामलों में गहरी पकड़ बनाता पाया गया है। फिर चाहे वह अंग किडनी हो या दिल।
भाई साहब !आप ऐसी आज़माइशें न कर बैठना ईरान में सैंकड़ों मारे जा चुकें हैं नीट पीकर। यहाँ पहले ही इस समय नाके बंदी है शराब की दुकानें बंद हैं 'हूच' नकल शराब चोरी छिपे पहुँच रही है पियक्क्ड़ों तक।यह कब जहरीली हो जाए इसका कोई निश्चय नहीं। भारत में कब शराब बंदी कामयाब रही है किसी को स्मरण हो तो बतलाये बहरहाल हमारा आदर्श ज़रूर है शराब से परहेज़ ,सिगरेट से दूरी और .....शबाब और कबाब का वैधानिक कानूनन इस्तेमाल।
आम सर्दी जुकाम इन्फ्लुएंजा के मानिटरन में यहां के माहिर 'स्नीज मशीन'Sneez Machine ' इस्तेमाल करते रहें हैं , ताकी यह ठीक- ठीक जाना जा सके छींक के साथ मरीज़ की साधारण बातचीत खांसने के दौरान वायरस कितनी दूर तक जा सकता है।
अक्सर कई क्लीनिकों में यहां सीलिंग में अल्ट्रावायलिट-C लैम्प फिट रहतें हैं समझा जाता है यह एक अच्छा जर्मीसाइड है लाइफ्बोय की तरह कारगर जो कई किस्म की फफूंदों ,विषाणु जीवाणु का खात्मा कर सकता है। ऐसे लेम्प क्लीनिकों के खासकर वरांडे में लगे होते हैं जहां से मरीज़ों की आवजाही बनी रहती है।
अलबत्ता इन लेम्पों की कारगरता के लिए संवहन यानी हवा के अणुओं का नीचे से उठकर ऊपर सीलिंग में लगे लेम्पों तक पहुंचना ज़रूरी समझा जाता है। विसंक्रमण (निर्जीवाणुकृत )के बाद ताज़े हवा के अणु फिर ऊपर आएं। और यहीं बने रहें मरीज़ों तक न पहुंचे।
गोरी चमड़ी ऐसे रेडिएशन (शक्तिशाली विकिरण )के प्रति ज्यादा संवेदी होती है चमड़ी का कैंसर पैदा कर सकती है ऐसे विकिरण की बमबारी।
डॉ. ट्रम्प के पास कहाँ से आती है इतनी ऊर्जा -वे बेहद जोश से भरे रहकर बालसुलभ कौतुक प्रकट करते हुए कहते हैं -मान लीजिये ऐसे विकिरण की बौछार कोरोना के मरीज़ों पर सीधे डाली जाए ऐसा लघुतरंग विकिरण कोई केप्सूल इम्प्लांट कर दिया जाए चमड़ी के नीचे तब क्या यह सार्स -कोव -२ (कोरोना वायरस )का देखते ही देखते सफाया नहीं कर देगा ?
ऑपरेशन थिएटर को शल्य से पूर्व ऐसे ही विकिरण से रोगकाकों (जीवाणु ,विषाणु ,फफूंद ,परजीवी आदिक पैथोजन्स )को मुक्त भले करते हैं तब जब अंदर कोई न हो न डॉ. नर्स न मरीज़ -कौन बताये ये बात डॉ. ट्रम्प को।मोदी जी ?
विषाणु सार्स -कोव -२ की पैठ हमारे अंगों में बहुत अंदर होती हैं वहां तक ऐसा प्रकाश कभी नहीं पहुँच सकता।इसका अवतरण मरीज़ के आसपास की हवा में तभी होता है जब वह खांसता है कफ निकालता है या फिर छींकता है -उसके इर्द गिर्द कई मीटर तक हो सकता है कोरोना वायरस।
ये तमाम बातें बचकानी हैं जो ट्रम्प अक्सर कर जाते हैं भले उनकी नीयत में कोई खोट न सही लेकिन उनके सुझाये ड्रग- कॉम्बो (एज़िथ्रो मायसिन संग मलेरियाई दवाएं आदिक )गंभीर मरीज़ों के किसी काम नहीं आईं हैं अवांछित प्रभाव ज़रूर मिले हैं।
परा-बैंगनी विकिरण का अंश UVAतथा UVB ज़रूर पहुंचता है पृथ्वी तक जो शरीर की चमड़ी पर पड़ने से विटामिन -D निर्माण में विधायक भूमिका निभाता है।
अल्ट्रा -व वायलिट वांड्स से लेकर अल्ट्रावॉयलिट लेम्प की एक बड़ी इंडस्ट्री है अमरीका में लेकिन ध्यान रहे इनसे निकलने वाला विकिरण आँख के लिए दुखदाई होगा। खासकर लघुतर विकिरण का देर तक इराडिएशन,ऐसे लेम्पों से निकलकर आँखों पर बरसते रहना -कम्प्लीट बकवास हैं 'हाइप' की गई ये अधुनातन डिवाइसिज़।
विशेष :डॉ.ट्रम्प एक बेहद जोशीले व्यक्ति हैं वे अक्सर उत्तेजित रहते हैं आजकल और वाइट हाउस की औपचारिक ब्रीफिंग्स में भी वे बे -तकल्लुफ़ होकर बात करते देखे जाते हैं -यदि लीसोल (lysol )सरफेस डिसइंफेक्टेंट इंजेक किया जाए कोरोना संक्रमित व्यक्ति को तो क्या बिसात कोरोनावायरस की भाग न खड़ा हो।ऐसी ही ऊलजुलूल बातें करते हैं ट्रम्प।
शरीर के प्रमुख अंगों तक जबकि ये वायरस कोविड -१९ के गुरु -गंभीर मामलों में गहरी पकड़ बनाता पाया गया है। फिर चाहे वह अंग किडनी हो या दिल।
भाई साहब !आप ऐसी आज़माइशें न कर बैठना ईरान में सैंकड़ों मारे जा चुकें हैं नीट पीकर। यहाँ पहले ही इस समय नाके बंदी है शराब की दुकानें बंद हैं 'हूच' नकल शराब चोरी छिपे पहुँच रही है पियक्क्ड़ों तक।यह कब जहरीली हो जाए इसका कोई निश्चय नहीं। भारत में कब शराब बंदी कामयाब रही है किसी को स्मरण हो तो बतलाये बहरहाल हमारा आदर्श ज़रूर है शराब से परहेज़ ,सिगरेट से दूरी और .....शबाब और कबाब का वैधानिक कानूनन इस्तेमाल।
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