किसी की भी साख को बट्टा लगाना किसी को मानसिक रूप से आहत करना भी एक तरह का आतंकवाद ही कहा जाएगा कोरोना काल खासकर कोरोना पेशेंट्स ,संभावित ला...
किसी की भी साख को बट्टा लगाना किसी को मानसिक रूप से आहत करना भी एक तरह का आतंकवाद ही कहा जाएगा कोरोना काल खासकर कोरोना पेशेंट्स ,संभावित लाक्षणिक या गैर -लाक्षणिक दोनों ही किस्म के लोगों से भौतिक दूरी रखना तो इस वक्त की जरूरत है लेकिन उन्हें हिकारत से देखना लांछित करना वैयक्तिक या सामुदायिक रूप से एक सामाजिक अपराध है।
एक पंथ निरपेक्ष सर्वग्राही ,सर्वसमावेशी ,प्रजातन्त्री गणराज्य के लिए यह उतना ही अशोभन है जितना इस कोरोना काल में किसी कोरोना मरीज़ को अशुभ मानकर उसे तिरस्कृत करना।
महज़ एक बीमारी है महामारी, आलमी -महामारी सही, है तो यह भी -एक बीमारी ही।
ऐसी कई बीमारियां हैं इस दौर की जिनमें बेरिअर नर्सिंग की जरूरत पड़ती जैसे हेपेटाइटिस -B,एचआईवीएड्स से भी ज्यादा खतरनाक है.
हेज़मेंट फुल बॉडी सूट ,परसनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट की जरूरत पड़ती है कोविड -१९ महा -मर्ज़ में स्वास्थ्य कर्मियों को यही बचाता है जो चौबीसों घंटा कोविड -१९ मरीज़ों से घिरे रहते हैं अपनी जान की परवाह न करके हमारी जान बचाते हैं। बहुत बुरी समझी गई है कोविड -१९ बीमारी ,उतनी भी बड़ी नहीं है जितना इसे भय पैदा करके बना दिया गया है।
९०-९५ फीसद तक लोग शुरूआती इलाज़ मयस्सर होने पर रोग मुक्त होकर अपने घर चले जाते हैं। अलबत्ता सामाजिक तिरस्कार या फिर अन्य कारणों से छिपना भागना ,अस्पताल में अलग रखने के दरमियान भाग खड़े होना न सिर्फ रुग्ड़ता को बढ़ाता है अपने लिए मौत के खतरे भी मरीज़ पैदा करता है समाज को भी सांसत में डालता है।
https://www.youtube.com/watch?v=Vf5WnM7zE9U
अमरीका में ज़ारी कोरोना अध्ययनों में देखा गया है देर से इलाज़ के लिए पहुंचे युवाओं के मस्तिष्क में खून के थक्के जमा रहा है सार्स -कोविड -२। फालिज दर्ज़ किया गया है इन लेट लतीफों में फालिज यानी पैरालिसिस (पक्षाघात )-दिमाग पर आघात -सेरिब्रलस्ट्रोक। । दिमाग के बड़ी धमनी में थक्के मिलें हैं यहां। जो युवा देर से ही सही इलाज़ की बदौलत बच भी गए हैं फिलाल वे सभी गहन चिकित्सा कक्ष आईसीयू में हैं शेष जीवन इनका अपाहिज कटेगा।
लक्षण प्रकट होने पर शार्ट ब्रीथिंग का इंतज़ार मत कीजिये पहले आपात कालीन नंबरों पर अपने फेमिली डॉक्टर से परामर्श लीजिये फिर मास्क लगाकर जांच के लिए आस्था के साथ आगे आइये। आगे आने की पहल आपको ही करनी पड़ेगी समाज का भी आपको समर्थन मिलेगा।
रमज़ान का महीना हम सभी के लिए इस वेला एक कवच बनके आया है कोरोना कवच है यह मन निर्मल रहे। किसी जरूऱत मंद को इलाज़ के लिए आगे लाने में सहयोग करें। अलबत्ता हिफाज़त बरतने में कोई हर्ज़ नहीं है हिफाज़त में ही हिफाज़त है।
केवल इस बीमारी से मृत्यु का आँकड़ा पांच फीसद है। यह पर्सेंटेज भी कम हो जाए यदि मरीज़ सही वक्त पर आगे आये इलाज़ को।फिर न रुग्ड़ता बढ़ेगी न मौत के खतरे का वजन।
कोरोना मरीज़ जो ठीक हो गया है -एक मायने में वह सचमुच एक सामाजिक जंग जीत कर आया हैं जहां हर कोई उसके गिर्द हैज़ार्-डस विषाणु रोधी पैरहन में रहा है।भले मुश्किल जंग है यह जिसमें हौसले की जरूरत पड़ती है।एचआईवी -एड्स के गिर्द भी एक दौर में ऐसा ही ख़ौफ़ देखा गया था जिस दौर में पिन चुभाके भाग खड़े होने वालों से रोग आज़िज़ आ गये थे।
एड्स संक्रमित मरीज़ का रोगविज्ञानिक अध्ययन पैथोलोजिकल स्टडी और एनालिसिस भी कोई कम खतरे से भरी नहीं थी आखिर हम वह जंग भी जीते दुनिया भर में आज भी लोग मैराथन में किसी मरीज़ की सहायता के लिए दौड़ते हैं। न वह सोशल स्टिग्मा था और न ही सार्स -कोव -२ और इससे पैदा रोग कोविड -२ ही एक अपवाद है जीवन- मरण ,हारी -बीमारी जीवन का हिस्सा रहा है हमेशा रहेगा।
गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में ,
वह तिफ़्ल क्या गिरेगा ,जो घुटनों के बल चले।
तिफ़्ल -चाइल्ड
शहसवार -घुड़सवार ,हॉर्स राइडर
हिम्मत -ए -मर्द (मर्दा ),मदद दे खुदा।
https://timesofindia.indiatimes.com/india/stigma-attached-to-covid-can-cause-more-deaths-aiims-head/articleshow/75335912.cms
NEW DELHI: Stigmatising of Covid-19 patients and their famil ..
एक पंथ निरपेक्ष सर्वग्राही ,सर्वसमावेशी ,प्रजातन्त्री गणराज्य के लिए यह उतना ही अशोभन है जितना इस कोरोना काल में किसी कोरोना मरीज़ को अशुभ मानकर उसे तिरस्कृत करना।
महज़ एक बीमारी है महामारी, आलमी -महामारी सही, है तो यह भी -एक बीमारी ही।
ऐसी कई बीमारियां हैं इस दौर की जिनमें बेरिअर नर्सिंग की जरूरत पड़ती जैसे हेपेटाइटिस -B,एचआईवीएड्स से भी ज्यादा खतरनाक है.
हेज़मेंट फुल बॉडी सूट ,परसनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट की जरूरत पड़ती है कोविड -१९ महा -मर्ज़ में स्वास्थ्य कर्मियों को यही बचाता है जो चौबीसों घंटा कोविड -१९ मरीज़ों से घिरे रहते हैं अपनी जान की परवाह न करके हमारी जान बचाते हैं। बहुत बुरी समझी गई है कोविड -१९ बीमारी ,उतनी भी बड़ी नहीं है जितना इसे भय पैदा करके बना दिया गया है।
९०-९५ फीसद तक लोग शुरूआती इलाज़ मयस्सर होने पर रोग मुक्त होकर अपने घर चले जाते हैं। अलबत्ता सामाजिक तिरस्कार या फिर अन्य कारणों से छिपना भागना ,अस्पताल में अलग रखने के दरमियान भाग खड़े होना न सिर्फ रुग्ड़ता को बढ़ाता है अपने लिए मौत के खतरे भी मरीज़ पैदा करता है समाज को भी सांसत में डालता है।
https://www.youtube.com/watch?v=Vf5WnM7zE9U
अमरीका में ज़ारी कोरोना अध्ययनों में देखा गया है देर से इलाज़ के लिए पहुंचे युवाओं के मस्तिष्क में खून के थक्के जमा रहा है सार्स -कोविड -२। फालिज दर्ज़ किया गया है इन लेट लतीफों में फालिज यानी पैरालिसिस (पक्षाघात )-दिमाग पर आघात -सेरिब्रलस्ट्रोक। । दिमाग के बड़ी धमनी में थक्के मिलें हैं यहां। जो युवा देर से ही सही इलाज़ की बदौलत बच भी गए हैं फिलाल वे सभी गहन चिकित्सा कक्ष आईसीयू में हैं शेष जीवन इनका अपाहिज कटेगा।
लक्षण प्रकट होने पर शार्ट ब्रीथिंग का इंतज़ार मत कीजिये पहले आपात कालीन नंबरों पर अपने फेमिली डॉक्टर से परामर्श लीजिये फिर मास्क लगाकर जांच के लिए आस्था के साथ आगे आइये। आगे आने की पहल आपको ही करनी पड़ेगी समाज का भी आपको समर्थन मिलेगा।
रमज़ान का महीना हम सभी के लिए इस वेला एक कवच बनके आया है कोरोना कवच है यह मन निर्मल रहे। किसी जरूऱत मंद को इलाज़ के लिए आगे लाने में सहयोग करें। अलबत्ता हिफाज़त बरतने में कोई हर्ज़ नहीं है हिफाज़त में ही हिफाज़त है।
केवल इस बीमारी से मृत्यु का आँकड़ा पांच फीसद है। यह पर्सेंटेज भी कम हो जाए यदि मरीज़ सही वक्त पर आगे आये इलाज़ को।फिर न रुग्ड़ता बढ़ेगी न मौत के खतरे का वजन।
कोरोना मरीज़ जो ठीक हो गया है -एक मायने में वह सचमुच एक सामाजिक जंग जीत कर आया हैं जहां हर कोई उसके गिर्द हैज़ार्-डस विषाणु रोधी पैरहन में रहा है।भले मुश्किल जंग है यह जिसमें हौसले की जरूरत पड़ती है।एचआईवी -एड्स के गिर्द भी एक दौर में ऐसा ही ख़ौफ़ देखा गया था जिस दौर में पिन चुभाके भाग खड़े होने वालों से रोग आज़िज़ आ गये थे।
एड्स संक्रमित मरीज़ का रोगविज्ञानिक अध्ययन पैथोलोजिकल स्टडी और एनालिसिस भी कोई कम खतरे से भरी नहीं थी आखिर हम वह जंग भी जीते दुनिया भर में आज भी लोग मैराथन में किसी मरीज़ की सहायता के लिए दौड़ते हैं। न वह सोशल स्टिग्मा था और न ही सार्स -कोव -२ और इससे पैदा रोग कोविड -२ ही एक अपवाद है जीवन- मरण ,हारी -बीमारी जीवन का हिस्सा रहा है हमेशा रहेगा।
गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में ,
वह तिफ़्ल क्या गिरेगा ,जो घुटनों के बल चले।
तिफ़्ल -चाइल्ड
शहसवार -घुड़सवार ,हॉर्स राइडर
हिम्मत -ए -मर्द (मर्दा ),मदद दे खुदा।
Search Results
https://www.youtube.com/watch?v=doX24hjNnNUhttps://timesofindia.indiatimes.com/india/stigma-attached-to-covid-can-cause-more-deaths-aiims-head/articleshow/75335912.cms
NEW DELHI: Stigmatising of Covid-19 patients and their famil ..
COMMENTS