हमारी पृथ्वी अम्मा के पूरे जीवन काल में वृक्षों का बड़ा महत्व रहा है और आइंदा भी क़ायम रहेगा। कहीं ये स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी तो कहीं स्टेचू ऑफ़ यू...
हमारी पृथ्वी अम्मा के पूरे जीवन काल में वृक्षों का बड़ा महत्व रहा है और आइंदा भी क़ायम रहेगा। कहीं ये स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी तो कहीं स्टेचू ऑफ़ यूनिटी बन खड़े हैं आकाश की बुलंदियों को नापते हुए। ये कार्बन लेते हैं संग्रहण के लिए हमारे वायुमंडल से और प्रतिदान में हमें दे देते हैं प्राण वायु ऑक्सीजन। ऑक्सीजन की खपत करने वाले तमाम जीवों का यही आधार बनते हैं। बहुत गहरे तक जाती हैं धंसी होती हैं पृथ्वी की कोख में इनकी जड़ें। यहीं से इन जड़मूलों से ही अपने अपने -पादप राइज़ो-इसफिअर से पुष्टिकर तत्व ग्रहण करते हैं। पृथ्वी की कुल सतह का लगभग एक तिहाई भाग तरुवर लिए हुए हैं हालांकि इसका समान वितरण नहीं है। वृक्ष अपने आगोश में ताने खड़े हैं -एक तनौबा ,एक किरीट या मुकुट। हमारे असली क्षत्रप हैं वृक्ष।
वह कतरा जमीन का जो किसी पादप की जड़ों के इर्द गिर्द होता है ,और उनकी मौजूदगी और अमाल के बायस तब्दील हो जाता है।
विशेष :मूल परिवेश या कैम्पस ,राइजोस्फीयर (rhizosphere) मिट्टी के उस छोटे भाग को कहते हैं जो पौधों की जड़ से निकलने वाले द्रव्य या स्राव (secretions) तथा उससे सम्बन्धित सूक्ष्मजीवों (microorganisms) से सीधे प्रभावित होती है।कहो तो पादपों की जड़ों के गिर्द मृदा का घेरा मूलपरिवेश या राइजोइसफीयर कहलाता है।पादप और उपकारी फंगी का सहजीवन, सिम्बिओटिक लिविंग यहीं है।
Rhizo-sphere is the region of the soil in contact with the roots of a plant. It contains many microorganisms and its composition is affected by root activities .
प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा पादप हमारे ग्रह की कुल दो तिहाई कार्बन का अभिग्रहण कर लेते हैं शानदार सिंक कहो इन्हें कार्बन के हमारे समुंदरों की तरह। ग्लूकोज़ बनाने का यह काम तरुवरों के पात करते हैं जो टहनियों से निकलते रहते हैं। इन्हीं पत्तियों के नीचे स्टोमा या छिद्र होते हैं जिनके द्वारा पौधों का श्वसन -ट्रांसपिरेशन संपन्न होता है यानी जल के अणु भी हमारी हवा में नमी बनाये रखने के लिए आते रहते हैं।
तरुवर -पात एक बड़ा क्षेत्र घेरे रहते हैं प्रति इकाई भूभाग अन्य वनस्पति एवं पादपों के बरक्स। यही राज है इनके अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में कार्बन अभिग्रहण ,अधिग्रहण का। यह कार्बन वृक्ष वायुमंडल की कार्बन डायआक्साइड से ले लेते हैं। यही इनका सांस अंदर लेना और बाहर ऑक्सीजन छोड़ना है ।
दीर्घ जीवी वृक्ष सैंकड़ों साल तक जीते हुए इस कार्बन का भण्डार बनाये रहते हैं। शहरीकरण के लिए जंगलात के सफाये का मतलब कार्बन के इन विशाल भंडारों से हाथ धोना है। कहीं सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने के लिए कहीं मेट्रो -कार शेड पार्किंग आदिक बनाने के लिए इनकी बलि चढ़ाई जाती है। कैसा विकास है ये पुरखों को उजाड़ के खुद बस जाना। क्या इसे ही कायम रहने लायक विकास कहते हैं ?
भूमि की प्रकृति के अनुरूप जबकि ज़रुरत भूमंडलीय -तापन के खिलाफ जंग में इन पुरोधाओं को बचाये रखने नए वनीकरण क्षेत्रों के रोपण की है।धरती अम्मा के हेल्दी बने रहने के लिए भी नए वनीकरण क्षेत्रों की महती आवश्यकता है इसी में पृथ्वी की सलामती के संग हमारी सेहत की नाल जुड़ी हुई है।
गौर कीजिये तरुवरों की पातें और पत्ते किस प्रकार शिखर के लिए किरीट बन खड़ी हैं और वृक्षों का एक विशाल झुरमुट कैसे एक बड़ा तनौबा ,एक विशालकाय छतरी ताने खड़ा है।जहां वृक्ष बहुल क्षेत्र हैं वहां इन तनोबों के अंदर अलग अलग ऊँचाियों पर उप -तनोबे हैं यह ठीक वैसे ही है जब आप किसी उड़ाके के झरोखों से बाहर का नज़ारा देखते हैं तो बादल के ऊपर अलग अलग स्तरों पर छोटे उड़ाके(जहाज हवाई ,वायुयान ) दिखलाई देते हैं नीचे समुन्दर में मोटर बोट्स ,शिकारे ,लघुतर रूप धारे दिखलाई देते हैं।बस ऐसे ही तनोबों के नीचे और तनोबे हैं अलग अलग स्तरों पर।
यही पत्तों का गुरुतर तनौबा (कैनोपी )एक पेचीला पारितंत्र (इकोसिस्टम )रचते हैं.जहां पर रिहाइश के लिए अन्यान्य सूक्ष्म जीवों , अन्यान्य कीटपतंगों , स्तनपाइयों ,पक्षी प्रजाइयों के बसेरे हैं हेबिटाट हैं।परस्पर आश्रित और पल्लवित।
जीवो जीवस्य भोजनम।
परस्पर पल्लवन भी हैं यहां निर्भरता भी। जीवंत पारितंत्र हैं , ये धरती अम्मा की औलादें हैं।
यही केनोपी इस बात की भी व्याख्या करती है कि किस प्रकार हमारे वन्य क्षेत्र वायुमंडल से नाइट्रोजन संग्रहण कर लेते हैं अपनी खाद भी खुद ही बन जाते हैं इन्हें किसी रासायनिक उर्वरक की दरकार नहीं रहती। अपना हाथ जगन्नाथ।
जबकि कृषि भूमि की उर्वरकता को बनाये रखने के लिए जैविक या रासायनिक खाद की ज़रुरत बनी रहती है। वन यह काम कबो-बेश खुद ही कर लेते हैं।
फलीदार(लिग्यूमइनस) और कुछ वन्य -गैर -फलीदार वृक्ष (नोन -लिग्यूमिनॉस )भी नायट्रोजन फिक्स कर लेते हैं। वायुमंडल से नाइट्रोजन संजो लेते हैं।यहां पादपों का सूक्ष्म -जीवों यथा फंगी के साथ संवर्धित सहजीवन (सिम्बिओटिक लिविंग )काम आता है यह पूरा वन्य क्षेत्र इसीलिए एक भरा -पूरा इको -सिस्टम कहलाता है।
Leguminous plants are plants that are able to fix nitrogen from the atmosphere in the soil. They do this with the help of their root nodules. Examples include; peas, beans, soybeans,
Plants which dont bear pods are non- leguminous plants . These plants dont have Rhizobium in their roots and hence deplete the soil instead of replenishing it with nitrogen like legumes. Rose, mango, Ficus, Margo etc are the examples of non leguminous plants.
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सबसे बड़ी बात :पेड़ आजीवन हमारी जलवायु को हमारे अनुकूल बनाये रखने ,सुधारने सम्वर्धिते करने में जुटे रहतें हैं अहर्निश।
अलावा इसके पेड़ विंडब्रेकर्स का भी काम करते हैं खड़ी फसल बैठ न जाए इसीलिए जल्दी उग आने वाले वृक्षों की बाड़ (फेंसिंग )लगाई जाती है। मेनग्रूव्ज़ कोस्टल डूब क्षेत्र को बचा लेते हैं जहां -जहां मेनग्रूव्ज़ थे वहां वहां सुनामी कुछ न कर सकी है।
उपजाऊ मिट्टी को उड़ने बहने ना देना वृक्षों का एक और उपकार है।
कुदरती वातानुकूलन करते हैं वन्य क्षेत्र। मुझे सौभाग्य प्राप्त है चेरापूंजी के सेक्रेड वनों से आती झरनों की सनसन आवाज़ सुनने ,ठंडी ताज़ी हवा के झौंकों का आनंद लेने का। गर्मियों में इनके विशालतर क्षत्र के नीचे ठंडक ,सर्दी में गर्माहट मिलती है। यही है तापमान और नमी का रेगुलेशन तापमान और आद्रता कंट्रोल करने की तरुवर कला।
परम -आदरणीय पूर्वज हैं हमारे ये वृक्ष। इनका वज़ूद तकरीबन ४० करोड़ बरसों से है जबकि हमारा आदिम अस्तित्व गत दस करोड़ बरसों से ही है। होमोसैपिअंस को तो यहां आये जुम्मा -जुम्मा आठ रोज़ ही हुए हैं।
आरम्भ में बारहमासी जिमनोस्पर्म्स (ब्रिसिल कोन पाइन )आये बाद को अंजिओस्पर्म्स (आच्छादित बीज और फूलों वाले वृक्ष आम आदिक )आये।ब्रिसिलकोन पाइन , बाओबाब और रेडवुड जैसे वृक्ष ओल्ड टाइमर्स हैं। चार हज़ार साल क़ायम रहने वाले ब्रिसिलकोन पाइन भी यहां है दो हज़ार साला रेडवुड भी। जो स्टेचू आफ लिबर्टी(९३ मीटर्स ) को बौना बना देते हैं(लांगेस्ट १०० मीटर्स ,३६० फ़ीट ऊंचे ,बीस फ़ीट घेरे तक पाए गए हैं केलिफोर्निया के तट पर रेडवुड ).
उत्तरी अमरीका के इलाकों में कभी आबाद रहे चेस्टनट वृक्षों का सफाया एक फंगी -चेस्टनट ब्लाइट कर चुकी है अनेक वृक्ष प्रजाइयों का अस्तित्व आज खतरे में है। अपनी आखिरी लड़ाई लड़ रहा है एक बड़ा वन्य क्षेत्र -रोगकारक अन्यान्य इनवेसिव कीट ,पादप रोगों के अनायास हमले से। इनके आसपास कोई प्लांट प्रोटेक्शन अधिकारी भी नहीं है। जरूरत इन्हें बचाये रहने तकरीबन दस खरब नए वृक्ष रोपण की है तभी जलवायु परिवर्तन की मार से कुछ बचाव सम्भव है।
यूँ रेड वुड ट्रीज़ तरह- तरह के उपाय अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए अपना रहें हैं। ये अपनी पत्तियों की रूपाकृति को बदलने से लेकर फिज़िओलॉजी में भी ऊंचाई के साथ फेर बदल कर रहें हैं। यांत्रिक तबाही के बाद भी ये आंगिक पुनर्निर्माण करते रहें हैं। सिएरा नेवादा पहाड़ियों पर इनकी ऊंची -ऊंची कतारें देख आप कविता करने लगेंगे।इनकी अपनी कला संस्कृति और प्रौद्योगिकी है आज ये मदद के लिए हमें देखें और हम आँखे चुरा लें यह वाज़िब नहीं है एहसान फरामोशी है सरासर ।
संदर्भ -सामिग्री एवं प्रेरणा स्रोत :
https://timesofindia.indiatimes.com/trees-permit-human-beings-to-exist-they-are-miracles-of-science-and-of-art/articleshow/75211467.cms
‘Trees permit human beings to exist — they are miracles of s ..
https://www2.palomar.edu/anthro/homo2/mod_homo_4.htm
वह कतरा जमीन का जो किसी पादप की जड़ों के इर्द गिर्द होता है ,और उनकी मौजूदगी और अमाल के बायस तब्दील हो जाता है।
Rhizo-sphere is the region of the soil in contact with the roots of a plant. It contains many microorganisms and its composition is affected by root activities .
प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा पादप हमारे ग्रह की कुल दो तिहाई कार्बन का अभिग्रहण कर लेते हैं शानदार सिंक कहो इन्हें कार्बन के हमारे समुंदरों की तरह। ग्लूकोज़ बनाने का यह काम तरुवरों के पात करते हैं जो टहनियों से निकलते रहते हैं। इन्हीं पत्तियों के नीचे स्टोमा या छिद्र होते हैं जिनके द्वारा पौधों का श्वसन -ट्रांसपिरेशन संपन्न होता है यानी जल के अणु भी हमारी हवा में नमी बनाये रखने के लिए आते रहते हैं।
तरुवर -पात एक बड़ा क्षेत्र घेरे रहते हैं प्रति इकाई भूभाग अन्य वनस्पति एवं पादपों के बरक्स। यही राज है इनके अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में कार्बन अभिग्रहण ,अधिग्रहण का। यह कार्बन वृक्ष वायुमंडल की कार्बन डायआक्साइड से ले लेते हैं। यही इनका सांस अंदर लेना और बाहर ऑक्सीजन छोड़ना है ।
दीर्घ जीवी वृक्ष सैंकड़ों साल तक जीते हुए इस कार्बन का भण्डार बनाये रहते हैं। शहरीकरण के लिए जंगलात के सफाये का मतलब कार्बन के इन विशाल भंडारों से हाथ धोना है। कहीं सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने के लिए कहीं मेट्रो -कार शेड पार्किंग आदिक बनाने के लिए इनकी बलि चढ़ाई जाती है। कैसा विकास है ये पुरखों को उजाड़ के खुद बस जाना। क्या इसे ही कायम रहने लायक विकास कहते हैं ?
भूमि की प्रकृति के अनुरूप जबकि ज़रुरत भूमंडलीय -तापन के खिलाफ जंग में इन पुरोधाओं को बचाये रखने नए वनीकरण क्षेत्रों के रोपण की है।धरती अम्मा के हेल्दी बने रहने के लिए भी नए वनीकरण क्षेत्रों की महती आवश्यकता है इसी में पृथ्वी की सलामती के संग हमारी सेहत की नाल जुड़ी हुई है।
गौर कीजिये तरुवरों की पातें और पत्ते किस प्रकार शिखर के लिए किरीट बन खड़ी हैं और वृक्षों का एक विशाल झुरमुट कैसे एक बड़ा तनौबा ,एक विशालकाय छतरी ताने खड़ा है।जहां वृक्ष बहुल क्षेत्र हैं वहां इन तनोबों के अंदर अलग अलग ऊँचाियों पर उप -तनोबे हैं यह ठीक वैसे ही है जब आप किसी उड़ाके के झरोखों से बाहर का नज़ारा देखते हैं तो बादल के ऊपर अलग अलग स्तरों पर छोटे उड़ाके(जहाज हवाई ,वायुयान ) दिखलाई देते हैं नीचे समुन्दर में मोटर बोट्स ,शिकारे ,लघुतर रूप धारे दिखलाई देते हैं।बस ऐसे ही तनोबों के नीचे और तनोबे हैं अलग अलग स्तरों पर।
यही पत्तों का गुरुतर तनौबा (कैनोपी )एक पेचीला पारितंत्र (इकोसिस्टम )रचते हैं.जहां पर रिहाइश के लिए अन्यान्य सूक्ष्म जीवों , अन्यान्य कीटपतंगों , स्तनपाइयों ,पक्षी प्रजाइयों के बसेरे हैं हेबिटाट हैं।परस्पर आश्रित और पल्लवित।
जीवो जीवस्य भोजनम।
परस्पर पल्लवन भी हैं यहां निर्भरता भी। जीवंत पारितंत्र हैं , ये धरती अम्मा की औलादें हैं।
यही केनोपी इस बात की भी व्याख्या करती है कि किस प्रकार हमारे वन्य क्षेत्र वायुमंडल से नाइट्रोजन संग्रहण कर लेते हैं अपनी खाद भी खुद ही बन जाते हैं इन्हें किसी रासायनिक उर्वरक की दरकार नहीं रहती। अपना हाथ जगन्नाथ।
जबकि कृषि भूमि की उर्वरकता को बनाये रखने के लिए जैविक या रासायनिक खाद की ज़रुरत बनी रहती है। वन यह काम कबो-बेश खुद ही कर लेते हैं।
फलीदार(लिग्यूमइनस) और कुछ वन्य -गैर -फलीदार वृक्ष (नोन -लिग्यूमिनॉस )भी नायट्रोजन फिक्स कर लेते हैं। वायुमंडल से नाइट्रोजन संजो लेते हैं।यहां पादपों का सूक्ष्म -जीवों यथा फंगी के साथ संवर्धित सहजीवन (सिम्बिओटिक लिविंग )काम आता है यह पूरा वन्य क्षेत्र इसीलिए एक भरा -पूरा इको -सिस्टम कहलाता है।
Leguminous plants are plants that are able to fix nitrogen from the atmosphere in the soil. They do this with the help of their root nodules. Examples include; peas, beans, soybeans,
Plants which dont bear pods are non- leguminous plants . These plants dont have Rhizobium in their roots and hence deplete the soil instead of replenishing it with nitrogen like legumes. Rose, mango, Ficus, Margo etc are the examples of non leguminous plants.
Read more on Brainly.in - https://brainly.in/question/9597609#readmore
सबसे बड़ी बात :पेड़ आजीवन हमारी जलवायु को हमारे अनुकूल बनाये रखने ,सुधारने सम्वर्धिते करने में जुटे रहतें हैं अहर्निश।
अलावा इसके पेड़ विंडब्रेकर्स का भी काम करते हैं खड़ी फसल बैठ न जाए इसीलिए जल्दी उग आने वाले वृक्षों की बाड़ (फेंसिंग )लगाई जाती है। मेनग्रूव्ज़ कोस्टल डूब क्षेत्र को बचा लेते हैं जहां -जहां मेनग्रूव्ज़ थे वहां वहां सुनामी कुछ न कर सकी है।
उपजाऊ मिट्टी को उड़ने बहने ना देना वृक्षों का एक और उपकार है।
कुदरती वातानुकूलन करते हैं वन्य क्षेत्र। मुझे सौभाग्य प्राप्त है चेरापूंजी के सेक्रेड वनों से आती झरनों की सनसन आवाज़ सुनने ,ठंडी ताज़ी हवा के झौंकों का आनंद लेने का। गर्मियों में इनके विशालतर क्षत्र के नीचे ठंडक ,सर्दी में गर्माहट मिलती है। यही है तापमान और नमी का रेगुलेशन तापमान और आद्रता कंट्रोल करने की तरुवर कला।
परम -आदरणीय पूर्वज हैं हमारे ये वृक्ष। इनका वज़ूद तकरीबन ४० करोड़ बरसों से है जबकि हमारा आदिम अस्तित्व गत दस करोड़ बरसों से ही है। होमोसैपिअंस को तो यहां आये जुम्मा -जुम्मा आठ रोज़ ही हुए हैं।
आरम्भ में बारहमासी जिमनोस्पर्म्स (ब्रिसिल कोन पाइन )आये बाद को अंजिओस्पर्म्स (आच्छादित बीज और फूलों वाले वृक्ष आम आदिक )आये।ब्रिसिलकोन पाइन , बाओबाब और रेडवुड जैसे वृक्ष ओल्ड टाइमर्स हैं। चार हज़ार साल क़ायम रहने वाले ब्रिसिलकोन पाइन भी यहां है दो हज़ार साला रेडवुड भी। जो स्टेचू आफ लिबर्टी(९३ मीटर्स ) को बौना बना देते हैं(लांगेस्ट १०० मीटर्स ,३६० फ़ीट ऊंचे ,बीस फ़ीट घेरे तक पाए गए हैं केलिफोर्निया के तट पर रेडवुड ).
उत्तरी अमरीका के इलाकों में कभी आबाद रहे चेस्टनट वृक्षों का सफाया एक फंगी -चेस्टनट ब्लाइट कर चुकी है अनेक वृक्ष प्रजाइयों का अस्तित्व आज खतरे में है। अपनी आखिरी लड़ाई लड़ रहा है एक बड़ा वन्य क्षेत्र -रोगकारक अन्यान्य इनवेसिव कीट ,पादप रोगों के अनायास हमले से। इनके आसपास कोई प्लांट प्रोटेक्शन अधिकारी भी नहीं है। जरूरत इन्हें बचाये रहने तकरीबन दस खरब नए वृक्ष रोपण की है तभी जलवायु परिवर्तन की मार से कुछ बचाव सम्भव है।
यूँ रेड वुड ट्रीज़ तरह- तरह के उपाय अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए अपना रहें हैं। ये अपनी पत्तियों की रूपाकृति को बदलने से लेकर फिज़िओलॉजी में भी ऊंचाई के साथ फेर बदल कर रहें हैं। यांत्रिक तबाही के बाद भी ये आंगिक पुनर्निर्माण करते रहें हैं। सिएरा नेवादा पहाड़ियों पर इनकी ऊंची -ऊंची कतारें देख आप कविता करने लगेंगे।इनकी अपनी कला संस्कृति और प्रौद्योगिकी है आज ये मदद के लिए हमें देखें और हम आँखे चुरा लें यह वाज़िब नहीं है एहसान फरामोशी है सरासर ।
संदर्भ -सामिग्री एवं प्रेरणा स्रोत :
https://timesofindia.indiatimes.com/trees-permit-human-beings-to-exist-they-are-miracles-of-science-and-of-art/articleshow/75211467.cms
‘Trees permit human beings to exist — they are miracles of s ..
कृपया इस लिंक पर भी जाएँ :
https://www2.palomar.edu/anthro/homo2/mod_homo_4.htm
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