प्रश्न :आखिर मेरा जन्म ही क्यों हुआ ?मैंने कब याचना की मैं पैदा होऊं और इस बेहूदा तरीके से माँ के गर्भ में प्लेसेंटा में क्वारेंटीन उलटा ल...
प्रश्न :आखिर मेरा जन्म ही क्यों हुआ ?मैंने कब याचना की मैं पैदा होऊं और इस बेहूदा तरीके से माँ के गर्भ में प्लेसेंटा में क्वारेंटीन उलटा लटकूँ ४० सप्ताह तक।पीड़ादायक तरीके से तंग रास्ता बाहर आवूँ ,इतना निर्दय क्यों है भगवान् काहे को इतना कष्ट देता है ?
उत्तर :कहते हैं पौरबत्य का सारा ज्ञान प्रश्न उत्तर के माध्यम से ही प्रकट हुआ है। जो हो ये प्रश्न मेरे एक बाल सखा ने मुझसे निरंतर पूछा है अपनी सामर्थ्य भर मैंने उनकी जिज्ञासा का शमन भी किया है लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात उन्होंने आज फिर वही सवालिया मिसाइल दाग दी।
पुनरपि जन्मंम पुनरपि मरणं ,
पुनरपि जननी जठरे शयनम।
हमारा, भारतधर्मी समाज का मानना है :पूर्व जन्म की बकाया वासना ,अपूर्ण इच्छा की पूर्ती के लिए परमात्मा हमें नै काया में तब तक भेजता रहता है जब तक वासना चुक न जाएँ ,भुगता न ली जाएँ। जब कोई वासना (इच्छा ,एषणा )शेष नहीं रहती संसार चक्र से जीव मुक्त हो जाता है। गो के ये विचार नया नहीं हैं एशिया में पैदा हुए पनपे तमाम धार्मिक विश्वासों में इसका पल्लवन होता रहा है। बौद्ध ,जैन ,सिख ईसाई सभी आस्थाओं सम्बद्ध धर्म ग्रंथों में इसका ज़िक्र आया है भले ओल्ड टेस्टामेंट से इसे चर्च की वरीयता ,दबदबा बनाये रखने के लिए अलहदा कर दिया गया। यहां तक इसका वायदा दहशदगर्द भी करते हैं कहते हैं काफिर मारोगे तो जन्नत में हूरें मिलेंगी ,बेहतरीन सुरा और बेहद की संतुष्टि देने वाली हूरें वहां तुम्हारा इंतज़ार करतीं हैं।
पूछा जा सकता है ,अगर पुनर्जन्म नहीं है तो जन्नत में हूरों को कौन भोगेगा।
मेरे बाल सखा सबूत मांगते हैं पुनर्जन्म का ,मैंने उन्हें हर चंद समझाया ,जिसका प्रत्यक्ष प्राकट्य या प्रमाण नहीं होता क्या उसके अस्तित्व को नकारा जा सकता है ?
मसलन भौतिकी एवं भौतिक विज्ञानों के व्यापक दायरे में अक्सर चार मूल भूतबलों ,फ़ोर्स आफ फील्ड्स या फील्ड आफ फोर्सिज की चर्चा की जाती है :गुरुत्वाकर्षण ,विद्युतचुंबकीय ,कमज़ोर और शक्तिशाली नाभिकीय बल या बलों की ,इनसे संबद्ध चार फील्ड पार्टिकल्स हैं। गुरुत्व की डोर एक्सचेंज पार्टिकिल ग्रेविटोन , विद्युतचुंबकीय बल की फोटोन ,शक्तिशाली नाभिकीय बल की मिज़ोन्स से जुड़ी बतलाई गई है।और तो और उस हिग्स बोसॉन का आज तक कोई ऊँगली का निशाँ नहीं मिला है जिसके कारण पदार्थ पदार्थ है ,उसके मूलभूत कणों में द्रव्य राशि है।
होली ग्रेल आफ फ़िज़िक्स कहा जाता है इसे आज तक। लेकिन यूरोपीय न्यूक्लीयर रिसर्च सेंटर में भूमिगत सुरंग में कार्यारत सुपर कोलाइडर भी इसकी टोह नहीं ले सका है। तब क्या यह मान लिया जाए ,गॉड पार्टिकिल एक खाम ख़याली है ?इसका अस्तित्व नहीं है।
मेरे दोस्त तमाम डिडक्टिव रीज़निंग को कूड़े दान के हवाले करना पड़ेगा तुम्हारी सबूत मांगने की ज़िद के कारण। इंडक्टिव रीज़निंग को आप मानते नहीं ,जिसके अनुसार किसी प्रामाणिक स्रोत से जो बात चली आई है उसे मान लिया जाता है जैसे वेदों निगम पुराणों से मौखिक परम्परा के तहत रिसती ज्ञान गंगा अनंत काल से चली आई है। विज्ञान में भी यही होता आया है क्या आप न्यूटन के काम का सबूत मांगते है खुद करके देखते हैं , प्राचीन भौतिकी के नियमों की पड़ताल ?इसलिए मेरे दोस्त प्रमाण किसी के होने ,न होने का प्रमाण नहीं होता है।
विज्ञान और तर्क से आगे का दायरा दर्शन है ,अंतर्मुखी प्रवाह है धर्म ,दर्शन।
विज्ञान बाहर की और देखता है जबकि इसके तमाम उपकरणों की सीमाएं हैं हमारी ज्ञानेन्द्रियों की तरह ,आपकी ऑर्गेनिक आई एक सीमा से आगे नहीं देख सकती ,कान कुछ ख़ास फ़्रिक़ुयेंसीज़ को ही कान दे पाता है। इसी प्रकार दूरबीनों रेडिओ दूरबीनों की भी ऊपरी सीमाएं हैं।
स्वयं द्रव्य के मूलभूत कणों फंडामेंटल पार्टिकिल्स का आलम यह है : न ये कण हैं न मूलभूत। इनमें आगे संरचनाएं हैं।जबकि बुनियदि कण किसी और बुनियादी चीज़ का उत्पाद नहीं होना चाहिए। यहां यही हो रहा है मेरे दोस्त। और यह सब सहज स्वीकार्य है फिर पुनर्जन्म का सबूत क्यों मांगते हो सबूत गैंग की तरह।
पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात ,
देखत ही बुझ जाएगा ज्यों तारा परभात।
अतिअल्प काली हैं कणों की जीवन अवधि। न ये कण हैं न मूलभूत ,मात्र संभावनाएं हैं इनके कहीं होने की किसी तरंग में लिपटे लिपटे।
https://home.cern/science/physics/higgs-boson
उत्तर :कहते हैं पौरबत्य का सारा ज्ञान प्रश्न उत्तर के माध्यम से ही प्रकट हुआ है। जो हो ये प्रश्न मेरे एक बाल सखा ने मुझसे निरंतर पूछा है अपनी सामर्थ्य भर मैंने उनकी जिज्ञासा का शमन भी किया है लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात उन्होंने आज फिर वही सवालिया मिसाइल दाग दी।
पुनरपि जन्मंम पुनरपि मरणं ,
पुनरपि जननी जठरे शयनम।
हमारा, भारतधर्मी समाज का मानना है :पूर्व जन्म की बकाया वासना ,अपूर्ण इच्छा की पूर्ती के लिए परमात्मा हमें नै काया में तब तक भेजता रहता है जब तक वासना चुक न जाएँ ,भुगता न ली जाएँ। जब कोई वासना (इच्छा ,एषणा )शेष नहीं रहती संसार चक्र से जीव मुक्त हो जाता है। गो के ये विचार नया नहीं हैं एशिया में पैदा हुए पनपे तमाम धार्मिक विश्वासों में इसका पल्लवन होता रहा है। बौद्ध ,जैन ,सिख ईसाई सभी आस्थाओं सम्बद्ध धर्म ग्रंथों में इसका ज़िक्र आया है भले ओल्ड टेस्टामेंट से इसे चर्च की वरीयता ,दबदबा बनाये रखने के लिए अलहदा कर दिया गया। यहां तक इसका वायदा दहशदगर्द भी करते हैं कहते हैं काफिर मारोगे तो जन्नत में हूरें मिलेंगी ,बेहतरीन सुरा और बेहद की संतुष्टि देने वाली हूरें वहां तुम्हारा इंतज़ार करतीं हैं।
पूछा जा सकता है ,अगर पुनर्जन्म नहीं है तो जन्नत में हूरों को कौन भोगेगा।
मेरे बाल सखा सबूत मांगते हैं पुनर्जन्म का ,मैंने उन्हें हर चंद समझाया ,जिसका प्रत्यक्ष प्राकट्य या प्रमाण नहीं होता क्या उसके अस्तित्व को नकारा जा सकता है ?
मसलन भौतिकी एवं भौतिक विज्ञानों के व्यापक दायरे में अक्सर चार मूल भूतबलों ,फ़ोर्स आफ फील्ड्स या फील्ड आफ फोर्सिज की चर्चा की जाती है :गुरुत्वाकर्षण ,विद्युतचुंबकीय ,कमज़ोर और शक्तिशाली नाभिकीय बल या बलों की ,इनसे संबद्ध चार फील्ड पार्टिकल्स हैं। गुरुत्व की डोर एक्सचेंज पार्टिकिल ग्रेविटोन , विद्युतचुंबकीय बल की फोटोन ,शक्तिशाली नाभिकीय बल की मिज़ोन्स से जुड़ी बतलाई गई है।और तो और उस हिग्स बोसॉन का आज तक कोई ऊँगली का निशाँ नहीं मिला है जिसके कारण पदार्थ पदार्थ है ,उसके मूलभूत कणों में द्रव्य राशि है।
होली ग्रेल आफ फ़िज़िक्स कहा जाता है इसे आज तक। लेकिन यूरोपीय न्यूक्लीयर रिसर्च सेंटर में भूमिगत सुरंग में कार्यारत सुपर कोलाइडर भी इसकी टोह नहीं ले सका है। तब क्या यह मान लिया जाए ,गॉड पार्टिकिल एक खाम ख़याली है ?इसका अस्तित्व नहीं है।
मेरे दोस्त तमाम डिडक्टिव रीज़निंग को कूड़े दान के हवाले करना पड़ेगा तुम्हारी सबूत मांगने की ज़िद के कारण। इंडक्टिव रीज़निंग को आप मानते नहीं ,जिसके अनुसार किसी प्रामाणिक स्रोत से जो बात चली आई है उसे मान लिया जाता है जैसे वेदों निगम पुराणों से मौखिक परम्परा के तहत रिसती ज्ञान गंगा अनंत काल से चली आई है। विज्ञान में भी यही होता आया है क्या आप न्यूटन के काम का सबूत मांगते है खुद करके देखते हैं , प्राचीन भौतिकी के नियमों की पड़ताल ?इसलिए मेरे दोस्त प्रमाण किसी के होने ,न होने का प्रमाण नहीं होता है।
विज्ञान और तर्क से आगे का दायरा दर्शन है ,अंतर्मुखी प्रवाह है धर्म ,दर्शन।
विज्ञान बाहर की और देखता है जबकि इसके तमाम उपकरणों की सीमाएं हैं हमारी ज्ञानेन्द्रियों की तरह ,आपकी ऑर्गेनिक आई एक सीमा से आगे नहीं देख सकती ,कान कुछ ख़ास फ़्रिक़ुयेंसीज़ को ही कान दे पाता है। इसी प्रकार दूरबीनों रेडिओ दूरबीनों की भी ऊपरी सीमाएं हैं।
स्वयं द्रव्य के मूलभूत कणों फंडामेंटल पार्टिकिल्स का आलम यह है : न ये कण हैं न मूलभूत। इनमें आगे संरचनाएं हैं।जबकि बुनियदि कण किसी और बुनियादी चीज़ का उत्पाद नहीं होना चाहिए। यहां यही हो रहा है मेरे दोस्त। और यह सब सहज स्वीकार्य है फिर पुनर्जन्म का सबूत क्यों मांगते हो सबूत गैंग की तरह।
पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात ,
देखत ही बुझ जाएगा ज्यों तारा परभात।
अतिअल्प काली हैं कणों की जीवन अवधि। न ये कण हैं न मूलभूत ,मात्र संभावनाएं हैं इनके कहीं होने की किसी तरंग में लिपटे लिपटे।
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