आप सभी ने पिछले लेखों में जाना कि डी एन ए की खोज कैसे हुई? और डी एन ए क्या है? पहचान परिक्षण की श्रंखला में इस परिक्षण को भी जोड़ते हुए ...
आप सभी ने पिछले लेखों में जाना कि डी एन ए की खोज कैसे हुई? और डी एन ए क्या है?
पहचान परिक्षण की श्रंखला में इस परिक्षण को भी जोड़ते हुए हम आगे बढ़ते हैं.हिन्दी में डॉ. जी.डी.प्रदीप का लिखा यह लेख 'डी•एन•ए• फिंगर प्रिंटिंग ' तकनीक विषय पर है. उनकी पूर्णअनुमति ले कर मैं यह लेख यहाँ दो भागों में प्रस्तुत कर रही हूँ. आज प्रस्तुत है पहला भाग.
यह कड़ी जटिल न लगे इस लिए पूरा प्रयास किया गया है कि विषय वस्तु सरल कर के समझायी जाये.
डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग-[भाग-१ ]
मैटर्निटी होम के कमरा नंबर आठ के सामने लोगों की भीड़ लगी हुई है। भीड़ का कारण अस्पताल के कर्मचारियों तथा उस कमरे में भर्ती नवजात शिशु की मां सरला के बीच चल रही तू–तू¸मैं–मैं की ऊँची–ऊँची आवाजें।इस भीड़ में जरा आप भी घुसें तो माजरा समझ में आ जाएगा। सरला को शक ही नहीं¸पूरा विश्वास है कि अस्पताल के कर्मचारियों की मिली भगत के कारण उसका बच्चा बदल गया है। कर्मचारी इससे लगातार इंकार कर रहे हैं। भला बताइए¸ सच कैसे सामाने आए? या तो उन कर्मचारियों की बात सच मानी जाए या फिर सरला की।
किसी बड़े रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर ट्रेन के आने का समय। प्लेटफार्म लोगों से खचा–खच भरा हुआ। अचानक एक बड़ा धमाका और सैकड़ों हता–हत। चारों तरफ चीख–पुकार और अफरा–तफरी। धमाका इतना शक्तिशाली था कि उसके आस–पास के लोगों के शवों के चीथड़े उड़ गए थे। कइयों के छिन्न–भिन्न अंग एक दूसरे से गुथ गए थे। अधिकांश शवों को पहचानना भी मुश्किल था। शवों की सही पहचान कर उनके रिश्तेदारों को सोंपना भी पुलिस के लिए एक जटिल समस्या थी।
रात के अंधेरे में किसी सुनसान जगह पर अकेले जा रही किसी महिला का बलात्कार और उसके बाद निर्ममता से की गई हत्या। अपराधी या अपराधियों का कोई अता–पता नहीं।
अनैतिक प्रेम संबंध के कारण जन्में बच्चे का पिता होने से प्रेमी का इंकार। परिणाम¸ महिला एवं उस बच्चे का भविष्य अंधकारमय। कैसे पता किया जाय कि उस बच्चे का असली पिता कौन है?
यही क्यों¸ ऐसी तमाम परिस्थतियां होती हैं¸ जहां सच्चाई की तह तक जाने के लिए पहचान की विश्वसनीय तकनीक अति आवश्यक होती है। अपराधियों तक पहुंचने के लिए संदिग्ध लोंगों से पूछ–ताछ¸ घटना से संबंधित सबूतों की जांच–परख¸ रक्त के नमूनों की जांच या फिर फिंगर प्रिंट्स के द्वारा अपराधी तक पहुंचने की जटिल–एवं श्रम–साध्य लेकिन अनिश्चित विधाएं¸ अब तक के परंपरागत तरीके थे। ऐसे में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग की विधा इस क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम के रूप में सामने आई है। इस विधा द्वारा बच्चे तथा माता–पिता के संबंधों की संदिग्धता को दूर करने से ले कर अपराधियों की सटीक पहचान¸ सभी कुछ आसानी से किया जा सकता है।
पहली बात¸ डीएनए फिंगर प्रिंटिंग के नाम से लोकप्रिय इस विधा का फिंगर अथार्त् उंगलियों से कुछ भी लेना–देना नहीं है। चूंकि उंगलियों के छाप का उपयोग व्यक्ति¸ विशेषकर अपराधियों की पहचान के रूप में बहुत पहले से किया जाता रहा है¸ अतः उसी तर्ज पर इस विधा को भी ‘डीएनए फिंगर प्रिटिंग’ (DNA Fingerprinting) का नाम दे दिया गया। वास्तव में इसे केवल ‘डीएनए टाइपिंग’ (DNA Typing) या फिर ‘डीएनए प्रोफाइलिंग’ (DNA Profiling) ही कहना चाहिए।
[Sir Alec Jeffreys, father of DNA finger printing] |
1984 में ब्रिटिश जेनेटिस्ट एलेक जेफ्रीज़ एवं उनके सहयोगियों द्वारा विकसित इस विधा की सहायता से किसी भी व्यक्ति की पहचान या फिर उसके माता–पिता कौन हैं¸ जैसे तथ्यों की पुष्टि उनके शरीर की किसी भी कोशिका में पाए जाने वाले ‘वैरिएबल नंबर टैंडेम रीपीट्स-Variable Number Tandem Repeats’ (जिन्हें संक्षेप तथा लोकप्रिय रूप में ‘वीएनटीआर्स-VNTRs’ के नाम से जाना जाता है) द्वारा आसानी एवं विश्वसनीय रूप से की जा सकती है। सुविधा के लिए आगे से हम भी इन्हें ‘वीएनटीआर्स’ के नाम से ही पुकारेंगे।
इस संदर्भ में एक और मजे़दार बात — Sir एलेक जेफ्रीज़ को स्वयं नहीं अनुमान था कि उनके द्वारा विकसित इस विधा का उपयोग व्यक्ति की पहचान करने के लिए भी किया जा सकता है। उन्होंने तो इसका विकास इस आशा से किया था कि इसका उपयोग अनुवांशिक रोगों की पहचान तथा उनके उपचार में सहायक होगा।
जिस प्रकार दो व्यक्तियों के फिंगर प्रिंट्स शत प्रतिशत एक जैसे नहीं होते¸ उसी प्रकार दो व्यक्तियों के ‘वीएनटीआर्स’ के भी एक जैसे होने की संभावना लगभग न के बराबर है। एक ही निषेचित डिंब से जन्में जुड़वां बच्चे इसके अपवाद हो सकते हैं या फिर करोडों की जनसंख्या में अपवाद स्वरूप एक–आध केस ही ऐसे मिल सकते हैं¸ जिनके वीएनटीआर्स शत–प्रतिशत मेल खा जाएं।
आजकल फोरेंसिक साइंस में इस विधा का उपयोग बढ़ता जा रहा है। कारण¸ फिंगर प्रिंट्स की तुलना में इस विधा में झंझट कम हैं¸ सुनिश्चित परिणाम मिलता है¸ साथ ही इसका दायरा भी बड़ा है। इसके लिए संदिग्ध व्यक्ति के रक्त के छीटों¸ बाल के टुकडों या फिर खरोंची हुई त्वचा अथवा वीर्य के धब्बों¸ यहाँ तक कि लार से प्राप्त मात्र कुछ कोशिकाएं ही जांच के लिए काफी हैं।
इस विधा को विस्तार से समझने के़ लिए आवश्यक है कि सबसे पहले हम यह जान लें कि ऊपर की पंक्तियों में बार–बार उल्लिखित ‘वीएनटीआर्स’ आखिर हैं क्या? इन्हें समझने के लिए सबसे पहले कोशिका¸ उसके केंद्रक¸ केंद्रक में अवस्थित गुणसूत्रों तथा उनके निर्माण में प्रयुक्त मुख्य रसायन डीएनए के बारे में जान लेना आवश्यक है।
इस संदर्भ में एक और मजे़दार बात — Sir एलेक जेफ्रीज़ को स्वयं नहीं अनुमान था कि उनके द्वारा विकसित इस विधा का उपयोग व्यक्ति की पहचान करने के लिए भी किया जा सकता है। उन्होंने तो इसका विकास इस आशा से किया था कि इसका उपयोग अनुवांशिक रोगों की पहचान तथा उनके उपचार में सहायक होगा।
जिस प्रकार दो व्यक्तियों के फिंगर प्रिंट्स शत प्रतिशत एक जैसे नहीं होते¸ उसी प्रकार दो व्यक्तियों के ‘वीएनटीआर्स’ के भी एक जैसे होने की संभावना लगभग न के बराबर है। एक ही निषेचित डिंब से जन्में जुड़वां बच्चे इसके अपवाद हो सकते हैं या फिर करोडों की जनसंख्या में अपवाद स्वरूप एक–आध केस ही ऐसे मिल सकते हैं¸ जिनके वीएनटीआर्स शत–प्रतिशत मेल खा जाएं।
आजकल फोरेंसिक साइंस में इस विधा का उपयोग बढ़ता जा रहा है। कारण¸ फिंगर प्रिंट्स की तुलना में इस विधा में झंझट कम हैं¸ सुनिश्चित परिणाम मिलता है¸ साथ ही इसका दायरा भी बड़ा है। इसके लिए संदिग्ध व्यक्ति के रक्त के छीटों¸ बाल के टुकडों या फिर खरोंची हुई त्वचा अथवा वीर्य के धब्बों¸ यहाँ तक कि लार से प्राप्त मात्र कुछ कोशिकाएं ही जांच के लिए काफी हैं।
इस विधा को विस्तार से समझने के़ लिए आवश्यक है कि सबसे पहले हम यह जान लें कि ऊपर की पंक्तियों में बार–बार उल्लिखित ‘वीएनटीआर्स’ आखिर हैं क्या? इन्हें समझने के लिए सबसे पहले कोशिका¸ उसके केंद्रक¸ केंद्रक में अवस्थित गुणसूत्रों तथा उनके निर्माण में प्रयुक्त मुख्य रसायन डीएनए के बारे में जान लेना आवश्यक है।
[तस्वीरों को बड़ा देखने के लिए उन पर क्लीक करीए.]
बैक्टीरिया जैसे कुछ आदि जीवों को छोड़ सभी जीवों की कोशिका मे एक केंद्रक अवश्य होता है। इस केंद्रक में गुणसूत्र पाए जाते हैं। इन गुणसूत्रों की संख्या एक प्रजाति के सभी जीवों की सभी कोशिकाओं निश्चित होती है। यथा¸ किसी भी मनुष्य की किसी भी कोशिका में इन गुणसूत्रों के 23 जोड़े पाए जाते हैं। मनुष्य के इन 23 जोड़े गुणसुत्रों में 15 लाख जीन्स के जोड़े पााए जाते हैं। ये जीन्स वास्तव में गुणसूत्रों में अवस्थित डीएनए के दुहरे कुंडलाकार धागे के छोटे–छोटे अंश होते हैं तथा संरचना में एडेनिन ह्यअहृ¸ गुआनिनह्यघ्हृ¸ साइटोसिनह्यछहृ तथा थायमिनह्यटहृ जैसे नाइट्रोजन बेसेज़ के क्रमवार विन्यास के आधार पर एक दूसरे से अलग–अलग होते हैं।
संरचना में यही भिन्नता इन जीन्स द्वारा वहन किए जाने वाले विभिन्न अनुवांशिक लक्षणों का आधार है। एक जीन में पाए जाने वाले सभी नाइट्रोजन बेसेज़ का क्रमवार विन्यास यह तय करता है कि उसके द्वारा संश्लेषित प्रोटीन के अणु में एमीनो एसिड्स का क्रम क्या होगा। इन जीन्स की सहायता से नाना पकार के संश्लेiष्त प्रोटीन्स ही परोक्ष–अपरोक्ष रूप से कोशिका की संरचना तथा कार्य की का निधार्रण करते हैं।
संरचना में यही भिन्नता इन जीन्स द्वारा वहन किए जाने वाले विभिन्न अनुवांशिक लक्षणों का आधार है। एक जीन में पाए जाने वाले सभी नाइट्रोजन बेसेज़ का क्रमवार विन्यास यह तय करता है कि उसके द्वारा संश्लेषित प्रोटीन के अणु में एमीनो एसिड्स का क्रम क्या होगा। इन जीन्स की सहायता से नाना पकार के संश्लेiष्त प्रोटीन्स ही परोक्ष–अपरोक्ष रूप से कोशिका की संरचना तथा कार्य की का निधार्रण करते हैं।
DNA structure showing bases |
ऐसा भी नहीं है कि एक गुणसूत्र में पाया जाने वाले डीएनए के सभी अंश अर्थपूर्ण जीन्स की ही भूमिका निभाते हैं और प्रोटीन्स के संश्लेषण में ही सहायक होते हैं। इन अर्थपूर्ण अंशों के बीच–बीच में ऐसे अंश भी होते हैं जो इन अर्थपूर्ण जीन्स के क्रिया–कलापों पर नियंत्रण रखने का काम करते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी अर्थहीन अंश होते है¸ जिनका कोई मतलब नहीं होता। इन्हीं बेमतलब के अंशों में कुछ ऐसे अंश भी होते हैं¸ जहाँ ये नाइट्रोजन बेसेज़ बार–बार दुहराए जाते हैं।
उदाहरण के लिएः A-G-A-G-A-G-A-G-A-G। ऐसे दुहराए गए नाइट्रोजन बेसेज़ से बने डीएनए के अंश की संरचना में 9 से 80 बार नाइट्रोजन बेसेज़ का उपयोग हो सकता है। डीएनए के ऐसे ही अंशों को ‘वीएनटीआर्स’ [VNTRs] का नाम दिया गया है। ऐसे डीएनए को पॉलीमॉफिर्क डीएनए भी कहा जाता है तथा डीएनए के इन अंशों को मिनीसैटेलाइट्स की संज्ञा दी गई है।
किसी व्यक्ति की सुनिश्चित पहचान के लिए वास्तव में उसके पूरे जीनोम के नाइट्रोजन बेस श्रृंखला का अध्ययन ही सर्वश्रेष्ठ तरीका है¸ लेकिन लगभग तीन सौ करोड़ नाइट्रोजन बेसेज़ के जोडों का अध्ययन एक जटिल¸ श्रमसाध्य एवं समय लेने वाला कार्य हैं।ऐसे में इन वीएनटीआर्स को शेष डीएनए से अलग कर उन्हें व्यक्ति के पहचान के रूप में इस्तेमाल कर लेने की विधा का विकास कर एलेक जेफ्रीज़ ने हमारे समक्ष एक नया¸ बेहतर एवं सुनिश्चित विकल्प प्रस्तुत कर दिया है।
अगली कड़ी में हम जानने का प्रयास करेंगे कि यह विधा क्या है। तब तक के लिए अनुमति चाहेंगे. नमस्कार!
(इस कड़ी के सभी लेख पढने के लिए यहां पर क्लिक करें)
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ReplyDeleteहम लोग अक्सर डीएनए फिंगर प्रिटिंग के बारे में सुनते रहते हैं। पहली बार उसके बारे में विस्तार से पढ रहा हूं।
ReplyDeleteअल्पना जी, आपने बहुत ही अच्छे ढंग से समझाया है। इस हेतु बहुत बहुत बधाई।
बहुत सुंदर ढंग से समझाया ...
ReplyDeleteडीएनए प्रोफाइलिंग की बहुत शानदार जानकारी.. अगली कड़ी का इंतजार है..
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ReplyDeleteबहुत ही रोचक शुरुआत करते हुए आपने इस विषय को लिया है -आगे की कड़ी का इंतज़ार है !
ReplyDeleteहमें समझने में कठिनाई नहीं हो रही है. बहुत सिंपल तरीके से बता रहे हैं. अगली किश्त का इंतज़ार रहेगा. आभार.
ReplyDeleteबहुत अच्छा समझाया है आपने अल्पना शुक्रिया ..मुझ जैसी बुद्धू राम को भी समझ आ गया यह ..:)
ReplyDeleteदिलचस्प आलेख .इस खोज ने मेडिकल साइंस में क्रान्ति ला दी थी ओर वर्षो पुराने कई केस भी सुलझ गए ,कई निर्दोष लोग बच गए ओर कई हत्यारे पकडे गए .
ReplyDeleteअल्पना वर्मा जी,
ReplyDeleteआपने तो डीएनए फिंगर प्रिटिंग को एकदम स्पष्ट कर दिया है। अगली कड़ी का इंतजार है..
डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग के बारे में जानकर प्रसन्नता हुई।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रयास है आप सबका। होली की शुभकामनाऍं।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रयास है आप सबका। होली की शुभकामनाऍं।
ReplyDeleteAasan tarike se apne DNA finger prints ke baare mai samjha diya...
ReplyDeleteNice Post.!!
ReplyDeleteहोली के शुभ अवसर पर,
उल्लास और उमंग से,
हो आपका दिन रंगीन ...
होली मुबारक !
'शब्द सृजन की ओर' पर पढें- ''भारतीय संस्कृति में होली के विभिन्न रंग''
डी. एन. ए. टेस्ट से व्यक्ति के माता पिता की पहचान हो सकती है,यह तो पहले से पता था लेकिन यह पता नहीं था कि अपवाद भी हो सकता है. डी. एन. ए. की सरंचना की जानकारी देने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeletechitrone ke sateek chunav tatha acche sampadan ke liye Alpana ji ko dhanyavad.sabhi saubhecchu pathkon ko is aalekh to parhane tatha uttsahvardhak tippadi dene ke liye dhanyavad.
ReplyDeleteDr.G.D.Pradeep
thanks for this info.
ReplyDeleteI think we will be not using our id card in future. our DNA use as id in future.