रंजना भाटिया जी के पिछले लेख पर बृजमोहन श्रीवास्तव और जीशान हैदर जैदी की टिप्पणियों से उपजा विवाद बेहद दुखद है। नैसर्गिक न्याय के तकाजे...
रंजना भाटिया जी के पिछले लेख पर बृजमोहन श्रीवास्तव और जीशान हैदर जैदी की टिप्पणियों से उपजा विवाद बेहद दुखद है। नैसर्गिक न्याय के तकाजे 'आरोपित को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाय' के अनुसार बृजमोहन श्रीवास्तव और जीशान हैदर जैदी की सफाई सुनने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि उन्होंने अपनी टिप्पणी किसी गलत मंशा से नहीं की थी। उनकी टिप्पणी पर बवाल होने से पहले मैंने स्वयं उस टिप्पणी को पढा था और मुझे व्यक्गित तौर पर उसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा था। बृजमोहन जी ने सिर्फ शंका व्यक्त की थी कि पहली यात्री कोई और तो नहीं। उनकी बात पर जीशान जी ने आदतन मजाक के लहजे में बात आगे बढा दी थी। जिसे लेकर हवा में तलवार भांजने की क्रियाऍं सम्पन्न होने लगी।
जहां तक बृजमोहन श्रीवास्तव की टिप्पणी का सवाल है, तो अगर उनकी जगह पर मैं स्वयं होता और रंजना जी की पोस्ट पढने के बाद मुझे लगता कि पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कोई और है, तो शायद मैं भी इस बात को इसी ढंग से कहता। अगर ब्लॉग जगत से जुडे लोग यह चाहते हैं कि लोग उनकी रचनाओं पर खुले दिल से टिप्पणी करें, तो फिर इस टिप्पणी में कोई बुराई नजर नहीं आनी चाहिए। लेकिन यदि लेखक की आकांक्षा ही यह है कि उसकी रचनाओं की हर हाल में प्रशंसा की जाए, जैसा कि ब्लॉगजगत में अमूमन होता भी है, तो फिर यह टिप्पणी गलत होती। और मेरी समझ से न तो इस ब्लॉग का उददेश्य यह है और न ही रंजना जी अथवा कोई अन्य समर्पित लेखक/लेखिका भी यह चाहेगी, इसलिए इस तरह की टिप्पणियों के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। हमें पाठकों की समझ और विद्वता पर शक करने का न तो कोई अधिकार है और न ही हमें ऐसा करना चाहिए। और अगर हम ऐसी गलती कर रहे हैं, तो फिर हम पाठक से प्रतिक्रिया की अपेक्षा ही क्यों कर रहे हैं। लेकिन अगर हम चाहते हैं कि लोग हमारे विचारों को जानें और उनपर अपनी समझ और बौद्धिक स्तर के अनुसार प्रतिक्रिया करें, तो हमें प्रत्येक परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।
जहॉं तक कमेट बॉक्स में माडरेटर लगाने की बात है, सिद्धान्तत: मैं इसके बिलकुल खिलाफ हूं। माडरेटर लगाने का सीधा सा मतलब है कि आप तो अपने मन की कह लें और पाठकों को उनके मन का कहने से रोक दें। यह निहायत ही गलत तरीका है। अगर आप किसी से अपने मन की बात कह रहे हैं, तो फिर उसके मन की सुनने के लिए भी आपको तैयार रहना चाहिए। क्योंकि जब आपने कोई क्रिया की है, तो उसके बाद तो प्रतिक्रिया होनी ही है। हॉं प्रतिक्रिया गलत दिशा में न हो, इसके लिए आपको स्वयं ही संयमित और सजग रहना होगा ताकि प्रतिक्रियास्वरूप आप असहज न हों। दूसरी बात यह कि मेरे लिए लगातार नेट से जुडे रहना सम्भव नहीं है। मैं यह कतई नहीं कर सकता कि हर घंटे कमेण्ट बॉक्स देखता रहूं और टिप्पणियों को अपनी सुविधा के अनुसार प्रकाशित/डिलीट करता रहूं। तीसरी बात यह ब्लॉग विज्ञान पर आधारित है। इसमें आमतौर से ऐसी सामग्री प्रकाशित नहीं की जाती हैं, जिनसे किसी की भावनाऍं आहत हों, इसलिए भी इसमें मॉडरेशन की आवश्यकता महसूस नहीं होती है।
मेरे विचार से रंजना जी भी मेरी इन बातों से सहमत होंगी और अपनी लेखनी को पूर्व की भांति गतिमान बनाए रखेंगी तथा पाठकगणों को वैज्ञानिक जगत की अनसुनी और अनकही बातों से परिचित कराती रहेंगी। यह ब्लॉग उनकी लेखन क्षमता का पूरा सम्मान करता है और उन्हें तथा अन्य सभी रचनाकारों को यह आश्वस्त करता है कि उनके मान सम्मान की रक्षा के लिए हम पूरी तरह से सजग हैं। यदि वास्तव में किसी व्यक्ति के द्वारा उसके विरूद्ध कोई टिप्पणी की जाती है, तो उसे अविलम्ब डिलीट किया जाएगा। उसमें कोई हीला हवाली का प्रश्न ही नहीं उठता है। लेकिन इस पोस्ट के साथ जो कुछ भी अनचाहा हुआ है, उससे मैं व्यक्तिगत तौर पर दुखी और संतप्त हूँ और आशा करता हूँ कि भविष्य में पाठक आगे से समझदारी भरे कमेण्ट करेंगे, ताकि इस तरह की असहज स्थितियॉं उत्पन्न न हों।
यह कोई कहने की बात नहीं कि महिलाऍं मानसिक ही नहीं शारीरिक रूप से भी पुरूष से ज्यादा सक्षम होती हैं। यदि दो नवजात बच्चों, लडका और लडकी को पानी में डाल दिया जाए, तो जो बच्चा ज्यादा देर तक जीवित रहेगा, वह लडकी ही होगी। यह बात विज्ञान प्रमाणित कर चुका है। इसलिए आइए इस विवाद से उबरते हुए हम आगे बढें और समाज को अपनी सृजनात्मक क्षमता से लाभान्वित करने के संकल्प को दोहराऍं।
अंत में बृजमोहन जी और अन्य तमाम पाठकों से निवेदन कि वे इस ब्लॉग को अपना ही समझें और इसपर प्रकाशित समग्री पर खुले मन से अपने विचार व्यक्त करें। क्योंकि आपकी प्रतिक्रियाऍं हमारा उत्साह बढाती हैं और साथ ही साथ हमारे लिए आत्मसंशोधन का सुअवसर भी उपलब्ध कराती हैं।
जहां तक बृजमोहन श्रीवास्तव की टिप्पणी का सवाल है, तो अगर उनकी जगह पर मैं स्वयं होता और रंजना जी की पोस्ट पढने के बाद मुझे लगता कि पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कोई और है, तो शायद मैं भी इस बात को इसी ढंग से कहता। अगर ब्लॉग जगत से जुडे लोग यह चाहते हैं कि लोग उनकी रचनाओं पर खुले दिल से टिप्पणी करें, तो फिर इस टिप्पणी में कोई बुराई नजर नहीं आनी चाहिए। लेकिन यदि लेखक की आकांक्षा ही यह है कि उसकी रचनाओं की हर हाल में प्रशंसा की जाए, जैसा कि ब्लॉगजगत में अमूमन होता भी है, तो फिर यह टिप्पणी गलत होती। और मेरी समझ से न तो इस ब्लॉग का उददेश्य यह है और न ही रंजना जी अथवा कोई अन्य समर्पित लेखक/लेखिका भी यह चाहेगी, इसलिए इस तरह की टिप्पणियों के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। हमें पाठकों की समझ और विद्वता पर शक करने का न तो कोई अधिकार है और न ही हमें ऐसा करना चाहिए। और अगर हम ऐसी गलती कर रहे हैं, तो फिर हम पाठक से प्रतिक्रिया की अपेक्षा ही क्यों कर रहे हैं। लेकिन अगर हम चाहते हैं कि लोग हमारे विचारों को जानें और उनपर अपनी समझ और बौद्धिक स्तर के अनुसार प्रतिक्रिया करें, तो हमें प्रत्येक परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।
जहॉं तक कमेट बॉक्स में माडरेटर लगाने की बात है, सिद्धान्तत: मैं इसके बिलकुल खिलाफ हूं। माडरेटर लगाने का सीधा सा मतलब है कि आप तो अपने मन की कह लें और पाठकों को उनके मन का कहने से रोक दें। यह निहायत ही गलत तरीका है। अगर आप किसी से अपने मन की बात कह रहे हैं, तो फिर उसके मन की सुनने के लिए भी आपको तैयार रहना चाहिए। क्योंकि जब आपने कोई क्रिया की है, तो उसके बाद तो प्रतिक्रिया होनी ही है। हॉं प्रतिक्रिया गलत दिशा में न हो, इसके लिए आपको स्वयं ही संयमित और सजग रहना होगा ताकि प्रतिक्रियास्वरूप आप असहज न हों। दूसरी बात यह कि मेरे लिए लगातार नेट से जुडे रहना सम्भव नहीं है। मैं यह कतई नहीं कर सकता कि हर घंटे कमेण्ट बॉक्स देखता रहूं और टिप्पणियों को अपनी सुविधा के अनुसार प्रकाशित/डिलीट करता रहूं। तीसरी बात यह ब्लॉग विज्ञान पर आधारित है। इसमें आमतौर से ऐसी सामग्री प्रकाशित नहीं की जाती हैं, जिनसे किसी की भावनाऍं आहत हों, इसलिए भी इसमें मॉडरेशन की आवश्यकता महसूस नहीं होती है।
मेरे विचार से रंजना जी भी मेरी इन बातों से सहमत होंगी और अपनी लेखनी को पूर्व की भांति गतिमान बनाए रखेंगी तथा पाठकगणों को वैज्ञानिक जगत की अनसुनी और अनकही बातों से परिचित कराती रहेंगी। यह ब्लॉग उनकी लेखन क्षमता का पूरा सम्मान करता है और उन्हें तथा अन्य सभी रचनाकारों को यह आश्वस्त करता है कि उनके मान सम्मान की रक्षा के लिए हम पूरी तरह से सजग हैं। यदि वास्तव में किसी व्यक्ति के द्वारा उसके विरूद्ध कोई टिप्पणी की जाती है, तो उसे अविलम्ब डिलीट किया जाएगा। उसमें कोई हीला हवाली का प्रश्न ही नहीं उठता है। लेकिन इस पोस्ट के साथ जो कुछ भी अनचाहा हुआ है, उससे मैं व्यक्तिगत तौर पर दुखी और संतप्त हूँ और आशा करता हूँ कि भविष्य में पाठक आगे से समझदारी भरे कमेण्ट करेंगे, ताकि इस तरह की असहज स्थितियॉं उत्पन्न न हों।
यह कोई कहने की बात नहीं कि महिलाऍं मानसिक ही नहीं शारीरिक रूप से भी पुरूष से ज्यादा सक्षम होती हैं। यदि दो नवजात बच्चों, लडका और लडकी को पानी में डाल दिया जाए, तो जो बच्चा ज्यादा देर तक जीवित रहेगा, वह लडकी ही होगी। यह बात विज्ञान प्रमाणित कर चुका है। इसलिए आइए इस विवाद से उबरते हुए हम आगे बढें और समाज को अपनी सृजनात्मक क्षमता से लाभान्वित करने के संकल्प को दोहराऍं।
अंत में बृजमोहन जी और अन्य तमाम पाठकों से निवेदन कि वे इस ब्लॉग को अपना ही समझें और इसपर प्रकाशित समग्री पर खुले मन से अपने विचार व्यक्त करें। क्योंकि आपकी प्रतिक्रियाऍं हमारा उत्साह बढाती हैं और साथ ही साथ हमारे लिए आत्मसंशोधन का सुअवसर भी उपलब्ध कराती हैं।
-जाकिर अली ‘रजनीश’
कुछ लोग हमेशा तिल को ताड बनाकर तमाशा देखते हैं। यही बात इस विवाद पर भी लागू होती है।
ReplyDeleteमेरा भी यही मानना है कि अपनी सोच और समझ के दायरे को बड़ा करें .स्त्री पुरुष के विवाद से ऊपर इंसान होने की बात सोचे ..इस ब्लॉग से जुड़ने का मुख्य उद्देश्य यही रहा कि जो बाते हमें विज्ञान की हिंदी भाषा में पता चलती है वह अधिक से अधिक यहाँ लिखी जाए ..इस के पीछे का मुख्य उद्देश्य सिर्फ यही है कि हमारी हिंदी भाषा में यह पुस्तकें बहुत कम उपलब्ध हो पाती हैं ..इस लिए अधिक से अधिक आसान भाषा में यह बात इस विषय में रूचि लिखने वालों तक पहुँच सके वही कोशिश रहती है ..यह ब्लॉग बहुत अच्छे उद्देश्य को ले कर शुरू किया गया है ..इस लिए इसी से जुड़े मुद्दे इस पर बहस का विषय बन पाए तो अधिक अच्छा है ..कोई भी टिप्पणी किसी को आहात करने वाली न हो तो अच्छा ..अपने लेखन के प्रति हर लिखने वाले को विचार का इन्तजार और नया उस विषय में जानने की उत्सुकता रहती है ..इस लिए मैंने बृजमोहन जी की टिप्पणी पर वही बात जानने के लिए अपनी टिप्पणी की ...आशा है कि आगे से इस ब्लॉग के अच्छे उद्देश्य को समझा जायेगा और सार्थक बातो को ले कर ही बात की जायेगी ..
ReplyDeleteविवाद होने दीजिए लेकिन उसका निष्कर्ष निकलना चाहिए और जिसके आलेख में त्रुटि हो उसे क्षमा माँगनी चाहिए, बीच में टाँग आड़ने वालों को मैं गिनता नहीं जब तक उनकी भाषा और सोच शुद्ध न हो!
ReplyDeleteकल के विवाद को पढ़कर सच में बहुत दुःख हुआ था कि एक सम्मानित और अनुभवी व्यक्ति के सीधे से प्रश्न जिस में कोई भी आपत्तिजनक शब्द प्रयोग नहीं किया गया था ,को सिर्फ अनुमान और अंदाजे में बेवजह उछाला गया .
ReplyDeleteजब कि रंजना जी ने बेहद कुशलता से उस प्रश्न का उत्तर भी दे दिया था और वापस लौटे प्रश्नकर्ता को उस में अपना जवाब भी मिल गया.
मेरे ख्याल से ,भविष्य में लेख से सम्बंधित प्रश्न को अगर प्रश्नकर्ता और लेखक के बीच ही रहने दिया जाये तो बेहतर है.लेखक के उत्तर देने में असमर्थता की स्थिति में कोई अन्य ही लेखक के निमंत्रण पर उस विषय पर कहे.
मैं व्यक्तिगत रूप से किसी भी कम्युनिटी ब्लॉग से जुड़ने से हमेशा बचती रही हूँ.लेकिन जिस तरह से जाकिर जी और अरविन्द जी और रंजना जी ने यह विवाद सुलझाया है /समझा है-- आज इस ब्लॉग से जुडा होने पर मुझे फक्र है.शुभकामनायें
प्रतिक्रिया से मार्गदर्शन होता है , यह बात बिल्कुल ठीक है पर ब्लाग जगत की टिप्पणियों क्या मार्गदर्शन होगा पता नहीं । बस एक ही स्वर सुनायी देता है , वाह-वाह, बहुत खूब, बहुत अच्छा , शुभकामनाएं हम सभी इसी के आदि हो गये हैं ।कुछ लोगों को छोड़ दें तो औसतन यही करते हैं । कभी किसी को कुछ सच कह दो तो विवादित हो जाता है । आपके नाम से चिट्ठा छपने लगता है । चर्चा होती है , मेरा मानना हे कि जिसको जो समझ आता है वही कहता है यह उसकी विचार धारा को भी इंगित करता है । ऐसे पिछले दिनों में कई चर्चाएं पढ़ी । किसी को झुकना नहीं है ।
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ReplyDeleteरंजना जी आपकी इस बात से हम सब सहमत हैं ..यह ब्लॉग बहुत अच्छे उद्देश्य को ले कर शुरू किया गया है ..इस लिए इसी से जुड़े मुद्दे इस पर बहस का विषय बन पाए तो अधिक अच्छा है .. हम सबका प्रयास यही हो कि हम नये से नये विषय पर लिखें और पाठकों से यही अपेक्षा है कि वे मुददे पर ही अपनी बात कहें। इस सम्बंध में अल्पना जी की बात भी ध्यान में रखने लायक है कि लेख से सम्बंधित प्रश्न को अगर प्रश्नकर्ता और लेखक के बीच ही रहने दिया जाये तो बेहतर है. लेखक के उत्तर देने में असमर्थता की स्थिति में कोई अन्य ही लेखक के निमंत्रण पर उस विषय पर कहे.
आशा है हम भविष्य में इन बातों को ध्यान में रखेंगे।
पूरा प्रकरण पढ़ जानकार और प्रतिक्रियाएं देख कर बड़ा ही अच्छा लगा...संतोष मिला...शालीनता प्रबुद्ध वर्ग का लक्षण और शोभा है.
ReplyDeleteजाकिर जी, आपकी समझदारी ने बड़ा ही प्रभावित किया है....आपलोगों के महत प्रयास सराहनीय है...मेरी शुभकामना आपलोगों के साथ है.
Zakir Ali ji ki baat ko meri baat bhi maan liya jaye...mai unki baat se puri tarah sahmat hu...
ReplyDeleteओह ! यह तो आपने पूरी पोस्ट लिख दी जो आपकी मनोव्यथा का अहसास देती है ! मैं तो इम्यून हो चला हूँ -आपकी व्यथा ,एक नवयुवक की व्यथा को समझ सकता हूँ . मैं आपकी बातों से पूरी तरह इत्तेफाक रखता हूँ ! आपने जिस तरह अपना पक्ष प्रस्तुत किया है वह सोच की परिपक्वता दर्शाता है .आईये विगत को भूल नवसृजन में लगें ! उन सभी टिप्पणी कारों का बहुत बहुत आभार जिन्होंने इस अभियान को अभिस्वीकृत ही नही प्रोत्साहित भी किया है !
ReplyDeleteअब कौन आ रहा है अगली पोस्ट लेकर ? विज्ञान संचार की दिशा में हमें अभी बहुत दूर तलक चलना है -मंजिल भी दिख नही रही है और रास्ता कंटकाकीर्ण है -हमें बस चलते जाना है -चरैवेति चरैवेति !
मै पूर्व में भी अत्यंत दुखित ह्रदय से क्षमा माग चुका हूँ ,मेरे दिमाग में शैली राइड्स का नाम बसा हुआ थामुझे यह तो पता था की यूरी गागरिन के बाद कोई महिला गई है लेकिन एक तो सन में भ्रमित था क्योंकि रूस तो ५७ में ही उपग्रह छोड़ चुका था स्पूतनिक
ReplyDeleteमैं एक ६७ वर्षीय एडवोकेट हूँ और (परीक्षार्थियों के दुर्भाग्य से ) उन्हें पी एस सी की तयारी करवाता हूँ मगर उम्र के लिहाज़ से याद दाश्त में कमी आजाना स्वाभाविक है /बैसे भी जिन किताबों के सहारे (प्रतियोगिता दर्पण ,कम्पटीशन सक्सेस व अन्य)पड़ता हूँ वह सब मेरे गुना के घर में है और वर्तमान में (अनफॉरचूनेटली) राजस्थान में आया हुआ हूँ जहाँ मेरे दिमाग (ओल्ड ) के अलावा अन्य कोई साधन नहीं /जहाँ तक डर कर बात कहने का सवाल है बुड्ढों को डर कर ही बोलना चाहिए वरना बच्चे हंसी उडाते है कि इस इस खूसंठ को जनरल नोलेज का जरा भी ज्ञान नहीं है
मेरे अपने ब्लॉग पर मैंने जो भी लिखा है उसमे से एक लाइन अथवा एक शब्द आप विद्वान आपत्ति जनक बतला दीजिये /दहेज़ की बुराई करता हूँ ,लडकी वालों के शोषण के जो तरीके समाज ने अख्त्यार कर रखे है (जिनमे लड़के की माँ भी बराबर की हिस्सेदार है )उनकी आलोचना करता हूँ /बहुओं को सताने वाली सास और ननदों की आलोचना करता हूँ /नारी को (मेरी पत्नी को छोड़ कर ) सम्मान देता हूँ /लेकिन बहू द्वारा ससुर और पति का अपमान भी सहन नहीं कर पाता हूँ क्योंकि दुर्भाग्य से आधुनिकता से दूर हूँ /
कम्पूटर और मोबाइल बनाने वाले जानते थे कि लोग खुराफात करेंगे इसी लिए उन्होंने सबसे पहले डिलीट का कालम बनाया /सार्वजानिक बाथरूम ,रेल के सेकेण्ड क्लास के शौचालय इनके जीते जागते प्रमाण है /कोई टिप्पणी पसंद न आये डिलीट करो बात ख़तम /पिष्टपेषण कर बात बढ़ाने से क्या लाभ / आप प्रतिबन्ध लगाकर मेरी मानसिकता बदल देंगे -जरा इंटरनेट खोल कर तो देखो ,केवल चुटकुला शब्द टाइप करने की देर है /ऐसे किस किस को डाटते फिरोगे /
और मानलो किसी अड़ियल ने कह दिया कि हां मैंने लिखा तो क्या किया जायेगा सिवाय टिप्पणी डिलीट करने के और कोई उपचार है ,किस धारा में मुकदमा चलाओगे, अरे ब्लोगर अपना पता तक तो लिखते नहीं /बस इंडिया या अमेरिका लिख दिया रहते हो चाहे राम पुरा में / चोर खुद उनके मन में
रहता है तभी तो पता नहीं लिखते /
पुन क्षमा प्रार्थना के साथ निवेदन मेटर ड्राप करें /मैं पूर्व में भी निवेदन कर चुका हूँ की ब्लॉग तो पढ़ा करूंगा क्योंकि यही एक सहारा है (साहित्य का रोग बचपन से लगा है ,पत्रिकाओं में ज्यादा मेटर मिलते नहीं ) मगर टिप्पणी बिलकुल नहीं किया करूंगा /अपना उद्देश्य तो सत्साहित्य पढना है कोई नाम तो कमाना नहीं है न कोई प्रसिद्धि पाना है -और जबरन लिख भी आओ के बहुत अच्छा बहुत बढ़िया क्या फायदा /लोग समझते है उत्साह वर्धन -ऐसा कुछ नहीं होता /आप श्रेष्ट रचना लिखेंगे पांच लोग पढेंगे /कोई लिख देगा "" मै सुनता था नूपुर ध्वनि ,प्रिय यद्धपि बजती थी चप्पल ""पचपन कमेन्ट मिलेंगे वाह क्या बात है ,क्या तसब्बुर है क्या जज्वात है मेटर ड्राप करने की पुन प्रार्थना ,शर्मिन्दा हूँ ,दुखी हूँ, आहात हूँ /यह सारी गलती दिमाग में बसी अमरीकन ""शैली राइड्स "" की है सजा देना हो तो उसको दो
मोडरेशन हमें तो आवश्यक लगती है क्योंकि कभी कभी जो लिखा जाता है वह सभ्य समाज के योग्य नहीं होता. अभी हाल ही में अरविन्द जी के ब्लॉग में ऐसा हुआ था.
ReplyDeleteलगता है कि अब तो किसी विषय पर अपने विचार रखना भी गुनाह हो गया है.....कल के विवाद को देखकर तो मन अब तक व्यथित है..न किसी के मन में सहनशीलता और न ही छोटे बडे का लिहाज.
ReplyDeleteब्रिजमोहन जी ,
ReplyDeleteमैं आपसे सारे घटनाक्रम के लिए क्षमा मांगता हूँ -आप उम्रदार हैं ,बड़े हैं ,बड़ी दुनिया देखी है -अब इन छोटी मोटी बातों से क्लांत होने लगेंगें तो बड़ों की विनयशीलता और क्षमाशीलता का क्या होगा ? ब्लॉग पर आयें , मार्गदर्शन भी करें ! आज की सबसे बड़ी समस्या है हम असहिष्णु होते जा रहे हैं ! चारो और वैमनष्य और घृणा का माहौल है ! कभी कभी शिद्दत के साथ सोचता हूँ कि अच्छा हुआ तुलसी कबीर के बाद पैदा हुए नहीं तो कबीर हाथ में परिवार को तोड़ने के लिए ही लाठी लिए घूम रहे थे यद्यपि उनकी विद्वता में कहीं कोई कमी नही थी ! तुलसी ने जोड़ने का काम किया -एक आदर्श परिवार की रूप रेखा प्रस्तुत की -रामराज्य का आदर्श दिया ! शिष्य -गुरु ,भाई भाई ,पति पत्नी (एकनिष्ठता ) ,.स्वामी -सेवक के उदात्त आदर्श हमारे सामने रखे -सब जगह जोड़ा ! आज वे पूज्य हैं कबीर से कुछ कम नहीं अधिक ही ! भारतीय मनीषा में वही चिरकालिक होता है जो लोगों को जोड़ता है समन्वय करता है ! त्याग करता है -आप को यह सब क्या बताना -आप यह सब जानते ही हैं -किमाधिकम ? आईये हम जुडें -जुड़ कर आगे बढ़ें ! टूटें न बिखरें न !
सादर !
सभी से सादर निवेदन हैकि ज्ञान को आत्मसात करें ,सुझाव दें ,चिन्तन -मनन करें लेकिन इस मंच को युद्ध का मैदान न बनाएं .
ReplyDeleteकल की पोस्ट, उसपर टिप्पणियों का तूफान और पुनः आज की कारुणिक पोस्ट व इसपर पंचों की हाँन्जी- हाँन्जी आज ही पढ़ पाया। मन में खीझ उठ रही है। सारे बवाल की जड़ जो टिप्पणी है वह बृजमोहन श्रीवास्तव जी की दी हुई नहीं है बल्कि वह टिप्पणी है जिसमें एक स्वनामधन्य professional blogger द्वारा अपनी अद्भुत रचनाशीलता से इस सुन्दर वातावरण में एक ‘कुतिया’ छोड़कर एक बार फिर से चर्चित होने का हुनर सिद्ध किया गया है। दाल-भात में मूसलचन्द कुछ ऐसे ही होते हैं।
ReplyDeleteमुझे खीझ इस बात पर आती है कि किसी टिप्पणीकर्ता ने इस समस्या का असली सूत्रधार क्यों नहीं पहचाना। शायद पहचान तो सभी रहे हैं लेकिन मुँह खोलने की हिम्मत किसी में नहीं है।
रंजना जी ने यह टिप्पणी आज भले ही कर दी कि “मेरा भी यही मानना है कि अपनी सोच और समझ के दायरे को बड़ा करें .स्त्री पुरुष के विवाद से ऊपर इंसान होने की बात सोचे” लेकिन उन्होंने जो श्रृंखला शुरू की है वही महिला अन्तरिक्ष यात्रियों के बारे में है। अनेक ठकुरसुहाती इस बात पर की गयी है कि महिलाओं की शारीरिक और मानसिक क्षमता पुरुषों से अधिक है। तो फिर अन्तरिक्षयात्रा में जो महिला चली गयी तो इसे असाधारण घटना क्यों बताया जा रहा है। जो पुरुष अन्तरिक्ष में गये, और ज्यादा गये वे महिलाओं से कमजोर होने के बावजूद गये हैं तो असाधारण बात तो यही हुई न?
इसलिए हे माउसजीवी बुद्धिजीवियों, कृपा करके बात-बात में स्त्री-पुरुष की तुलना करने की लिजलिजी मानसिकता से ऊपर उठें और बिन्दास सोचें। अभी तक यदि आप खुराफाती आत्माओं को नहीं पहचान पाने का बहाना बनाते रहेंगे तो ऐसी ही हास्यास्पद परिणति का शिकार होंगे।
उफ़्फ़्! अब इस ज्ञान विज्ञान कि दुनिया में भी अप्रिय विवाद सिर उठाने को आ गया। वह भी जबरदस्ती मुँह खोलकर उसमें घटिया शब्द ठूस देने की नृशंस कोशिश? छिः।
ReplyDeleteकुछ तो मर्यादा का पालन करतीं ये देवियाँ? बार-बार तर्जनी उंगली तानकर आरोपित करने वाले यह तो देखें कि बाकी चार उंगलियाँ किधर इशारा कर रही हैं।
यह स्त्री-पुरूष , जाति-धर्म या देश-प्रदेश ... सबसे उपर विज्ञान का ब्लाग है ... कम से कम इसे तो निर्विवाद चलना चाहिए।
ReplyDeleteजिस ब्लॉग पर रंजना और लवली के मूल आलेखों पर ही आपत्ति हो की महिला के विषय मे क्यूँ लिखा
ReplyDeleteऊपर आया कमेन्ट ही देख ले "तो फिर अन्तरिक्षयात्रा में जो महिला चली गयी तो इसे असाधारण घटना क्यों बताया जा रहा है।
या रंजना का पूर्व आलेख "अंटार्कटिका में भारत के पहले कदम और महिलाओं का योगदान" देख ले जहां कहा गया
"अच्छी चल रही है श्रृंखला मगर इसे जेंडर बायस का कोण देना क्या इसकी उत्कृष्टता पर आघात नही करेगा ?"
इस ब्लॉग पर विज्ञान से सम्बंधित बात होती हैं समझ आता हैं लेकिन महिला की तारीफ़ होते ही जो कमेंट्स आ ते है वो अपने आप मे बहुत कुछ कहते हैं . एक मंच हैं जहां महिला भी आप के साथ लिख रही हैं और आप चाहते हैं की वो अगर प्रशस्ति की बात करे तो तभी करे जब वो महिला की ना हो .
स्त्री विरोधी स्वर अगर प्रखर करेगे तो जवाब सुनने को भी तैयार रहे . ब्लॉग पर स्त्री विरोधी स्वर को जो प्रखर कर रहे हैं वो खुद सोचे की उनका विरोध क्यूँ ना हो . जो स्त्री नहीं करती वो अपनी जगह ठीक हैं , पानी सर से ऊपर जाएगा तो वो भी करेगी , उनकी सहनशीलता को आप खुद ही चुनौती दे रहे हैं . मेरे बारे मे आप जो चाहे कहे मुझे कोई रोष या आपति नहीं हैं क्युकी आप को भ्रम हैं ये दुनिया आप की बनायी हैं , आप इसे चलाते हैं
Ek bahut purani kahaavat hai, jahaan 4 bartan khatakte hi hain. Mujhe agta hai, yahi baat bloggers pe bhi laagu hoti hai. Mujhe Javed Akhtar ka ek sher yaad aarahaa hai-
ReplyDeleteKoi apni hi nazar se to dekhega hamen,
Ek Qatre ko samandar nazar aaye kaise?
Har vyakti ke apne vichaar hain, apne anubhav hain aur apna ek khaas tarah ka aanuvaanshik sanrachna yukt dimag. Fir wah doosre ki baat se kyon sahmat ho?
Jab ek pariwar men ek samaan vichaardhaara ke log nahi hote, to fir ye blog jagat hai. Is tarah ke vichar uthna to swabhaavik hi hai. Par dgyaan is baat ka zaroor rahe ki hamen aage bhadna hai. Aur haan, baat aage bhad bhi chuki hai. Agli post aa gayi hai, isliye ham log beeti baaton ko bisar kar aage ki sudh len, to zyaada achchha hai.
कुछ तकनिकी कारणों से अनुपस्थित रहा, इस अनचाहे विवाद से निपटने के मोडरेटर के प्रयास का समर्थन करता हूँ, और बृजमोहन जी से अरविन्द जी के शब्दों को ही दोहराते हुए अपनी टिप्पणियों से अवगत कराते रहने का आग्रह करता हूँ.प्रतिक्रिया देते वक्त आगे भी हम ध्यान रखें की ऐसी अप्रिय स्थिति पुनः न आये. नववर्ष में यह कहानी(!) बाकी न रहे..... यही शुभकामना है.
ReplyDeleteइतना सारा विवाद हुआ, जिसमें अंत भला तो सब भला.
ReplyDeleteसत्य के अन्वेषण के लिये विवेचना ज़रूरी है, तभी तो हम सभी कोणों से विषय को प्रतिपादित कर पायेंगे. तभी तो इस शास्त्रार्थ से केंद्रित विषय समृद्ध होगा.मगर , तार्किक तौर पर रस्सी को को सांप समझ कर पीटना विवाद को जन्म देता है, जिसमें व्यक्तिगत पूर्वाग्रह और उससे उपजी वितुष्टि उसके objective nature को नष्ट कर उसे subjective कलह में तब्दील करता है.
जिस तरह विवाद में Natural Justice और प्रामाणिक व्यवस्था का निर्वाह किया गया उसके लिये ज़ाकीर जी बधाई के पात्र है.